Tuesday, 28 September 2021

मेरी नज़र से

नज़्म

     "मेरी नज़र से"

मेरी कोशिश है 
य़े स्केच ख़ूबसूरत हो
बिलकुल तुम्हारी तरह
जैसी क़े तुम दिखती हो

मैं पशोपेश में हूँ
लोग तुम्हें कैसे देखेंगे
पर चाहता हूँ तुम्हें देखें
भले ही एक बार
पर देखें मेरी नज़र से

य़े इतना मुश्किल भी नही
स्त्री को स्त्री सा देखना
मगर लोग देखते नही
देखते है उसके कपड़े
और शायद.....

मगर मैं आश्वस्त हूँ
मेरे साथ ऐसा नही होगा
लोग देखेंगे मेरी तन्मयता
मेरी मेहनत मेरा प्यार
मेरी नज़र से

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-
28:09:2021

Monday, 13 September 2021

हिंदी की आस बनेगी एक दिन ख़ास यानि लिंगंवा फ्रांक़ा

“हिंदी की है आस बनेगी एक दिन खास यानि ‘लिंग्वा फ्रांका’ ”
      हम इस वर्ष स्वंत्रता के 75 वां वर्ष मना रहे हैं’ सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर भी इसे भव्यतम रुप में मनाने की होड सी लगी हुई है। निश्चित रुप से ये अच्छी बात है। हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी 14 सितम्बर को “हिंदी दिवस” के रुप में  मनाया जाएगा। मुझे उम्मीद है कुछ मंत्रालयों में इस विषय में पत्रावलियाँ अंग्रेजी में ही प्रस्तुत की जाएगीं। हम जैसे हिंदी प्रेमियों को इससे कितना कष्ट होता है उनकी बला से। किंतु कहीं न कहीं दिल में ये आस अवश्य है कि एक न एक दिन हमारी हिंदी भाषा भी ‘लिंग्वा फ्रांका’ (प्रयोग में ली जाने वाली वह प्रभावशाली भाषा जो प्रयोग में लेने वालों की मातृ भाषा न हो) बनेगी) 

       विश्व परिदृश्य पर पिछले तीन हजार वर्ष के इतिहास में देखें तो ग्रीक, लैटिन, पॉर्च्युगीज, स्पैनिश, फ्रेंच और अंग्रेजी एथेंस की ग्रीक भाषा अलग-अलग दौर में प्रभावशाली रही हैं। 18वीं सदी के मध्य में फ्रांस के विद्वान वॉल्टेयर ने ‘फिलॉसफी ऑफ हिस्ट्री’ लिखी। इसका विषय संपूर्ण मानव जाति का इतिहास था। अध्ययन में यह तथ्य निकलकर आया कि ईसा पूर्व नौवीं सदी से लेकर चौथी सदी तक यूरोप शहर रूपी कई साम्राज्यों में बंटा हुआ था। इनमें से एथेंस व्यापार और सैन्य ताकत बनकर उभरा। इसलिए प्रभावशाली एथेंस की ग्रीक भाषा यूरोप की लिंग्वा फ्रांका बनी। ईसा पूर्व 201 से आने वाले 600 वर्षों तक एथेंस यूरोप का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बना रहा। लिहाजा कैथोलिक चर्च की ताकत बढ़ी और रोमन भाषा लैटिन लिंग्वा फ्रांका बन गई। लेकिन लैटिन लिंग्वा फ्रांका बनी रही क्यों कि आने वाले एक हजार साल तक कोई नई वैश्विक शक्ति नहीं उभरी।

       1492 में कोलंबस ने अमेरिका की खोज की और छह वर्ष बाद वास्कोडिगामा ने भारत में कदम रखा। ये दोनों यात्राएं पुर्तगाल के खर्चे पर हुई और इस तरह से पुर्तगाल साम्राज्य शक्तिशाली होने लगा। पुर्तगाल की देखा-देखी स्पेन और फ्रांस भी उपनिवेशवाद में कूदे। इस दौरान पॉर्च्युगीज, स्पेनिश और फ्रेंच लिंग्वा फ्रांका की दौड़ में रहीं। इंग्लैंड में स्थिति ऐसी थी कि राजघराने में जो शिक्षा ली जाती थी उसका माध्यम फ्रेंच भाषा होती थी न कि अंग्रेगी। उस सम्य के सभ्य समाज में अंग्रेजी गरीबों की भाषा और दरिद्रता की निशानी मानी जाती थी। 

       वर्तमान में अंग्रेजी भाषा को ‘लिंग्वा फ्रांका’ का दर्जा प्राप्त है। ऐसा इसलिए कि पिछ्ले लगभग 600 वर्षो से  ब्रिटेन आर्थिक, सामजिक,राजनैतिक बाजारी कारण व सैनिक शक्ति के लिहाज से विश्व के उन पाँच महत्वपूर्ण देशों में स्थान रखता है जो कि सीधे सीधे शेष विश्व पर अपना प्रभाव रखते हैं। चूँकि अमेरिका के अतिरिक्त विश्व प्रमुख 7 देशों में अंग्रेजी ही बोली जाती है इसलिए वर्तमान दौर में अंग्रेजी ही लिंग्वा फ्रांका बनी हुई है। जहाँ तक अंग्रेगी का ताल्लुक है इसे प्रथम अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। चूँकि ये एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पती एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई। चूँकि ब्रिटिश हुकूमत कई देशों पर रही है अतएव जैसे जैसे अंग्रेगी का प्रचलन बढा ये उन देशों में भी ज्यादा बोले जाने लगी जहाँ उस देश की अपनी भाषा पहले से ही मौजूद थी। ऐसा इसलिए भी हुआ क्यों कि ब्रिटिश लोगों ने 18,19 एवम 20वीं शताब्दी में  सैन्य, राजनितिक, आर्थिक, वैज्ञानिक एवम सांस्कृतिक पर अपनी पकड बनाने के उद्देश्य से अंग्रेगी भाषा के प्रयोग पर अधिक बल दिया जिससे इसे छटी भाषा के रुप में लिंग्वा फ्रांका होने का गौरव प्राप्त हुआ। कुछ देश ऐसे भी रहे जिन्होंने इसे अपनी मातृ भाषा के बाद दूसरी भाषा के रुप में मान्यता प्रदान की।

       अगर मैं यह कहूँ कि अंग्रेगी भाषा का उत्थान चौथी या शायद पाँचवी शताब्दी के मध्य में इंग्लैंड में एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा शुरु हुआ। एंग्लो सेक्सन लोग कई तरह की बोलियों/ भाषाओं को बोलते थे,यहाँ यह कथन स्प्ष्ट है कि वाइकिंग हमलावरों द्वारा अपनाई गई प्राचीन नोर्स भाषा का प्रभाव वर्तमान अंग्रेगी भाषा पर ज्यादा है। ये विषय अलग है कि अंग्रेजी भाषा लगातार अपना विकास करती रही और अन्य देशों में बोले जाने वाली भाषा के शब्दों को स्वंय में समाहित करती रही जिससे इसकी ताकत में ज्यादा वृद्धि हुई। वर्तमान में जो अंग्रेजी बोलते हैं उसमें नोर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी संख्या में उपयोग हुआ है। वर्तमान अंग्रेजी भाषा में प्राचीन ग्रीक और लैटिन का अत्याधिक प्रभाव दिखायी पडता है। अंग्रेजी बोलने वाले लगभग 53 देश हैं जिनमें संयुक्त राष्ट्र, यूरोपितन संघ,राष्ट्रमण्डल, नाटो देश व नाफ्टा के देश शामिल हैं। एक सर्वे के अनुसार पूरे विश्व में अंग्रेजी बोलने वाले देशों के क्रम में अमेरिका प्रथम स्थान भारत दूसरे स्थान पर ,नाइजिरिया तीसरे स्थान पर और आश्चर्यजनक रुप से ब्रिटेन चौथे स्थान पर आता है। इसके बाद फिलिपिंस कनाडा और आस्ट्रेलिया का नम्बर आता है। मतलब जिस अंग्रेजी भाषा की उत्पती ब्रिटेन में हुई वही देश अंग्रेजी बोलने वाले देशों में चौथे नम्बर पर है मतलब उसने अपना आधिपत्य जमाने के उद्देश्य से अंग्रेजी भाषा को इतना ताकतवर बना दिया कि समूचा विश्व बिना अंग्रेजी भाषा के चल नही सकता। किंतु हर जगह अपवाद होते हैं जो यहाँ भी है। चीन में मंदारिन भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है किंतु चीन के बाहर न के बराबर किंतु चीन ने आज जो मुकाम हासिल किया है वह मंदारिन की बदौलत ही किया है। अंग्रेजी का उपयोग उतना ही किया गया जितना आव्श्यक था।

       जहाँ तक हिंदी भाषा का प्रश्न है तो विश्व में अंग्रेजी, मंदारिन के बाद इसका स्थान तीसरा है। भारत में हिंदी के बाद सबसे अधिक बंगाली भाषा( लगभग 30 करोड) बोली जाती है। जिस प्रकार आज अंग्रेजी वैश्विक भाषा के रुप में विश्व में प्रतिष्ठित है उसी प्रकार आने वाले समय में हिंदी भी वैश्विक भाषा के रुप में निश्चित अपना स्थान बनाएगी। हिंदी भारत के अतिरिक्त नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, तिब्बत, अफगानिस्तान, श्रीलंका इत्यादि  देशों में प्रमुख रुप से बोली और समझी जाती है।पूरे भारतीय उपमहाद्वीप हिंदी धीरे धीरे सम्पर्क भाषा के रुप में अपना स्थान निश्चित करती जा रही है । भारत में इस समय कुल छ: कास्मोपोटिन शहर हैं जिनमें चेन्नई को छोडकर आपको हिंदी भाषा बोलने वाले समझने वाले देल्ही,मुम्बई, बंगलौर,कोलकत्ता और हैदराबाद में आसानी से मिल जायेंगे।

       भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितम्बर, 1949 को इसे राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया जिससे इसका प्रयोग और चौतरफा विकास हुआ। जैसे बंगला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम आदि को क्रमश: बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल आदि की राजभाषा (मुख्य प्रांतीय भाषा) बनाया गया है। ऐसा करने से किसी भी भाषा का महत्व कम नही हुआ है? निश्चित रुप से नही। बल्कि इससे उन सभी भाषाओं का उत्तरदायित्व और प्रयोग क्षेत्र पहले से अधिक बढ़ गया है। जहाँ पहले केवल परस्पर बोलचाल में काम आती थी या उसमें साहित्य की रचना होती थी, वहीं अब प्रशासनिक कार्य भी हो रहे हैं। यही स्थिति हिन्दी की भी है। इस प्रकार हिन्दी सम्पर्क और राष्ट्रभाषा तो है ही, राजभाषा बनाकर इसे अतिरिक्त सम्मान प्रदान किया गया है।

       आज का युवा निश्चित रुप से अंग्रेगी के साथ हिंदी भाषा को भी महत्व देने लगा है उसे अच्छी तरह से पता है कि विकास का पहिया केवल अंग्रेजी या प्रांतीय भाषा के सहारे नही घूम सकता। पिछ्ले कुछ वर्षो में देश में ही नही वरन विदेशों में हिंदी और संसकृत भाषा सीखने की एक होड मची हुई है।  मल्टीनेशनल कम्पनियाँ अच्छी तरह से जानती है कि भारत एक बहुत बडा बाज़ार है, अगर उन्हें अपना माल बेचना है तो उन्हें भारत की मुख्य भाषा हिंदी को स्वीकार करना ही होगा साथ ही इसी बहाने प्रांतीय भाषाओं का भी विकास हो रहा है सिर्फ माल बेचने के उद्देश्य से नही वरन फिल्म उद्योग भी अपनी सभी फिल्मों, वेब सीरिज़ को हिंदी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में डब कराके प्रदर्शित करता है ताकि ज्यादा से ज्याद लोगों तक उसकी पहुँच सुनिश्चित हो। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यहां 24 आधिकारिक भाषाएं हैं, परंतु हिंदी लगभग सब जगह बोली जाती है और यह सबसे अधिक तेजी से बढ़ भी रही है।   पढाई का माध्यम भी धीरे धीरे हिंदी अंग्रेजी के इर्द गिर्द ही सिमटता जा रहा है जो कि एक अच्छा संकेत है। इस विषय में भारत सरकार द्वारा भी विभिन्न स्तरों पर प्रोत्साहन प्रदान किये जा रहे हैं। मैं आशा करता हूँ कि 2050 तक हिंदी अगली (सातवीं) लिंग्वा फ्रांका का होने कादर्जा अवश्य प्राप्त कर लेगी। 

 
- प्रदीप देवीशरण भट्ट -14:09:2019
01:09:2021

“अफगानिस्तान के राजनितिक घटना क्रम का भारत पर प्रभाव”




अफगानिस्तान के राजनितिक घटना क्रम का भारत पर प्रभाव




इससे पहले कि मैं अफगानिस्तान के वर्तमान हालात पर अपनी बात रक्खूँ , बेहतर होगा कि अफगानिस्तान के इतिहास पर एक सूक्ष्म दृष्टी डाल ली जाए। पूर्व में अफगानिस्तान भारत वर्ष का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। आज जिसे हम कंधार के नाम से जानते हैं वह महाभारत के एक महत्पूर्ण पात्र शकुनि जिसे आमजन की भाषा में शकुनि मामा के नाम से विख्यात है । आज से लगभग पाँच हजार पाँच सौ वर्ष पूर राजा सुबाला का गंधार प्रदेश पर राज्य करते थे। शकुनि इन्हीं राजा सुबाला के पुत्र थे इनकी बहन गंधारी का विवाह हस्तिनापुर के राजा धर्तराष्ट्र के साथ हुआ था। महाराजा रणजीत सिंह ने कई मर्तबा अफगानिस्तानियों को युद्ध में हराया था।एक लम्बे समय तक अफगानिस्तान ब्रिटिश शासन के अधीन रहा। सोवियत संघ में कम्युनिस्टों का राज्य था जो कि अपने विस्तारवाद के लिए जाने जाते हैं इसी तरह चीन भी विस्तारवाद के लिए जाना जाता है। ईरान एवम सोवियत संघ की इस क्षेत्र में उठा पटक चलती ही रहती थी। ब्रिटिशर अफगानिस्तान में आए दिन के उठा पटक से घबरा गए थे या ये कहें तो ज्यादा उचित होगा कि उन्हें इस उठा पटक के भारत में पहुँचने या उसका असर यहाँ पर पडने का ज्यादा अंदेशा हो गया था। अतएव ब्रिटिश इंडिया की ओर से मॉटीमर डूरंड और अफगानिस्तान की ओर से अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच एक समझौता हुआ (जो की अमीर अब्दुर रहमान की मृत्यु तक ही मान्य था) दोनों ने जिस समझोते पर दस्तखत किये कालान्तर में उसे ही डूरंड रेखा के नाम से जाना गया। य रेखा  हिंदुकुश पर्वत श्रंखला जो कि लगभग 800 मील लम्बी है, से सर मार्टिमर डूरंड ने एक रेखा खींची जो कि भारत और अफगानिस्तान के जनजातीय प्रभाव वाले क्षेत्रों से होकर गुजरी  वर्तामन में यह रेखा 2430 किलो मीटर लम्बी है जो कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान को विभाजित करती है। भारत और अफगानिस्तान के मध्य इसका केवल 106 किलोमीटर का ही हिस्सा है जिसे विवादित माना गया है।

         जो बाइडन, अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा की गई घोषणा कि अमेरिकी सेना 11 सितम्बर-2021 तक अफगानिस्तान से वापस अमेरिका लौट जाएगी” के बाद जिस तेजी से अफगानिस्तान के हालात बदले हैं, निश्चित रुप से उसकी कल्पना अमेरिका ने कभी नही की होगी। 20 वर्ष तक अफगानिस्तान में जबरदस्ती अपनी नाक घुसेडे रक्खी। वो भी सिर्फ इसलिए ताकि सोवियत संघ जिसने अफगानिस्तान में 18 वर्षो तक अफगानिस्तान में अपनी दादागिरि चलाने की कोशिश की को नीचा दिखाया  जा सके। जब कि इससे पूर्व ब्रिटेन भी मुँह की खाकर अफगानिस्तान छोड चुका था।  सेना वापसी के इस फैसले से पिछ्ले एक सप्ताह में जो बाइडन की लोकप्रियता 56 प्रतिशत से गिरकर 43 प्रतिशत पे आ गई है। जो विश्व प्ररिदृष्य पर ये साबित करने के लिए काफी है कि जो बाइडन के इस एक फैसले से कैसे सिर्फ दक्षिण एशिया ही नही वरन पूरे विश्व में यह संदेश गया कि अमेरिका ने पिछ्ले दरवाजे से तालिबान को सत्ता सौंपने का रास्ता साफ कर दिया है वो भी सैनिक साजो सामान के साथ जिससे अफगानी जनता त्राही त्राही करने को मजबूर हो गई है।

 

        चूँकि अफगानिस्तान की सीमाएँ पूर्व में पाकिस्तान,उत्तर पूर्व में भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कजाकस्तान व तुर्केमिस्तान से तथा पश्चिम में ईरान से लगी हुई हैं अतएव सीधे सीधे अफगानिस्तान में तालिबानी शासन आने से इन देशों पर बहुत ज्यादा दबाव बना रहने वाला है। वर्तमान में चीन ने तालिबान को मान्यता देने का मन बना लिया है ऐसा करके वो तालिबान से शिंझियांग प्रांत में उईगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार को नज़र अंदाज़ करने की शर्त रख सकता है किंतु इससे भी बडा कारण अफगानिस्तान में तांबे, लिथियम के लगभग 75 लाख डालर के भंडार पर उसकी लालची नज़र है। जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है तो तालिबान उसकी ही नाज़ायज़ औलाद है जिसे उसने अफगानिस्तान के सम्पूर्ण भू भाग पर कब्ज़े के दृष्टीकोण से पैदा किया। इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान में अलकायदा व हक्कानी ग्रुप भी सक्रिय है।

 

जहाँ तक भारत का प्रश्न है 2001 से आज तक भारत ने लगभग पच्चीस हजार करोड का इंवेस्ट्मेंट अफ्गानिस्तान में विकास के लिए किया है। इसी के मद्दे नज़र भारत देखो और इंतज़ार करो की नीति पर चल रहा है। वैसे भी भारत के लिए मानवता प्रथम ,व्यापार द्वितीय पायदान पर आता है। किंतु तालिबान की पुरानी इमेज को देखते हुए उस पर किसी भी हाल में भरोसा नही किया जा सकता। एशिया में रुस भारत का  पारम्परिक मित्र है अतएव अफगानिस्तान के वर्तमान हालात को देखते हुए भारत को रुस के साथ मिलजुल कर भविष्य की योजना बनानी होगी। ताकि पाकिस्तान और चीन के षडयंत्रो पर लगाम लगाई जा सके। यहाँ यह विषेश है कि अफगानिस्तान का एक प्रांत पंजशीर अभी भी तालिबान के हाथ में नही आया है। इतिहास गवाह है कि पंजशीर पर न ब्रिटेन विजय पा सका,न सोवियत संघ न तालिबां। जब कि अमेरिका ने तालिबान के विरुद्ध पंजशीर के लडाकों  की सहायता अवश्य ली। ये सही है कि आज तालिबान का कब्जा पूरे अफगानिस्तान पर हो गया है और वहाँ अंतरिम सरकार का भी ऐलान कर दिया है किंतु जिस सरकार के ज्यादातर मंत्री दुर्दांत आतंकवादी हों उस देश और उसके आस पडौस के देशों के हालात कितनी तेजी से बदलेंगे ये कोई नही जानता। ये सर्व विदित है कि पूर्व में तालिबान को अमेरिका ने पाला पोसा और वर्तमान में पाकिस्तान अपने कुत्सित इरादों के लिए तालिबान को इस्तेमाल कर रहा है किंतु जहाँ तक तालिबान के विषय में मेरी समझ है मैं निश्चित रुप से कह सकता हूँ कि तालिबान वही रोल अदा कर रहा है जो कि भारतीय माइथालौजी में “भस्मासुर” ने किया है। पंजाब का उग्रवाद याद है न, जिन्होंने भिंडरेवाला को अपने दुश्मनों को ठोकने के लिए उत्पन्न किया उसने पहले अपने आका की सुनी फिर अपने आका को ही ठोक दिया। (बुरे काम का बुरा नतीज़ा)।जब तक तालिबान को खुद को आर्थिक और सौनिक दृष्टी से मजबूत नही कर लेता वो पाकिस्तान और चीन दोनों की बातें मानने का नाट्क करेगा और जैसे ही वह मजबूत होगा वह अपना असली रंग दोनों ही देशों को दिखायेगा। परिणाम स्वरुप या तो तालिबान का पूरी तरह खात्मा हो जाएगा ये पाकिस्तान और चीन में वो तबाही मचाएगा कि दोनों ही देशों को षडयंत्रों से बाज आना पडेगा।

 

निश्चित रुप से भारत को फूँक फूँक कर कदम रखना होगा और दक्षिण एशिया में अपने आप को एक धीर गंभीर देश के रुप में अपनी स्थिति को मजबूत करना होगा साथ ही अपने चिरपरिचित सहयोगियों/मित्रों को लेकर ही इसका सामना करना होगा। ये कहना गलत नही होगा कि वर्तमान स्थिति में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जो अफगानिस्तान में स्थिरता दे सकने में सक्षम है और ऐसा भारत के दोस्त ही नही वरन दुश्मन भी चाहेंगे क्यों कि भारत की इमेज अफगानिस्तान में एक खास दोस्त की है जिसने अफगानिस्तान को दोबारा खडा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। अफ्गानिस्तान की अस्थिरता न रुस के लिए बेहतर है न चीन के लिए न पाकिस्तान के लिए और न ईरान के लिए।

- प्रदीप देवीशरण भट्ट -13:09:2019


Saturday, 26 June 2021

ड्रग डे

"ड्रग डे"
आज विश्व ड्रग डे है। 
सर्वप्रथम अन्तर्मन ने एक प्रश्न किया इसकी क्या आवश्यकता है?
ख़ैर पश्चिमी सभ्यता जो भी दे  उसे मीठा समझकर गप्प गप्प खा जाईये और अपने बच्चों को भी खिलाइये। आख़िर इसे अपना कर ही तो आप स्वयं क़ो साबित कर पाएंगे कि आप  मॉडर्न हैं। किंतु भारतीय संस्कृति क़ो कड़वा समझकर थू थू करते रहिए। तो चलिए एक लघु कथा का रसास्वादन करते हैं। 

युवा फ़िल्म डायरेक्टर मोहित वर्मा फ़िल्म क़े नायक सुदर्शन खन्ना क़ो सीन समझाते हुए बता रहे थे कि सुदर्शन ये सीन इंजीनियर कॉलिज क़े "एनुअल डे" पर आयोजित एक कार्यकम का है जहाँ आप प्रोफ़ेसर हैं औऱ कॉलेज स्टूडेंट क़ो ड्रग से दूर रहने औऱ इसे देश में पूरी तरह प्रतिबंधित करने क़े लिए आह्वान करते हैं। सुदर्शन ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा हो जाएगा यार चिंता न कर वैसे भी मैं इसी कॉलिज का पास आउट हूँ।  मोहित ने आश्चर्य से देखते हुए कहा, आपने पहले क्यूँ नही बताया। सुदर्शन ने चहकते हुए बताया सरप्राइज था तुम सबके लिए। 

     मोहित ने सब तैय्यारियों का जायज़ा लिया फ़िर एक्शन बोलते ही सुदर्शन ने अपने डायलॉग बोलने शूरु कर दिये किंतु ये क्या ? सुदर्शन बीच में ही अटक गया ख़ैर बार बार रीटेक से तंग आकर मोहित ने सुदर्शन क़े पास जाकर बोला,  यार क्या हो रहा। सुदर्शन ने मोहित क़ो एक तरफ़ कोने में खींचते हुए अपनी बहुत बड़ी समस्या साझा की कि यार आज 'पुड़िया' नही ली है औऱ ये कम्बख्त मैनेजर भी इंतजाम  नही कर पा रहा है, कह रहा है पुड़िया होटल में रह गई है  औऱ होटल यहाँ से 60 किलोमीटर दूर है औऱ हाँ एक बात औऱ यार अब तू मुझे ड्रग पे भाषण मत पेलना। पुड़िया लिऐ बिना मुझसे एक्टिंग नही होती। 
     मोहित ने एक तीखी नज़र सुदर्शन पर डाली फ़िर हँसते हुए कहा बिना पुड़िया मुझसे भी डायरेक्टिरी कहाँ होती है?  मूड ही नही बनता ससुरा। फ़िर दोनों मुस्कुराते हुए वैनिटी वैन की तरफ़ चल दिये। 

-  प्रदीप देवीशरण भट्ट  -
26:06:2021

Saturday, 17 April 2021

"असमंजस"

         
         " असमंजस  "

    लगभग 23-24 वर्ष पहले का वाक्या है। मैं देल्ही में नौकरी कर रहा था, कभी कभी मंडी हाऊस या अन्यत्र कहीं नाटक देखने भी चला जाता था। पिक्चर देखने,  घूमने औऱ कविताएँ लिखने के अतिरिक्त एक नया शौक़ लगा था औऱ वो था अंक विद्या (Nimerology) में हाथ आजमाना। 

     मई या जून का महीना चल रहा था मैं देहरादून में बडे़ भाई साहब के पास मिलने के लिए गया हुआ था। रविवार का दिन था उन्होंने मुझसे कहा शाम को प्रेमनगर एक मीटिंग में चलेंगे। मायने स्वीकारोक्ति में सर को हिला दिया। शाम को चार बजे मैं उनके साथ नियत स्थान पर पहुँच गया, लेकिन ये क्या हमारे पहुँचने के 5 मिनिट्स के बाद ही झमाझम बारिश शुरू हो गई। जल्दी ही समझ आ गया क़ि ये बारिश 2-3 घंटे से पहले तो रुकेगी नही। मीटिंग के लिए कोरम पूरा नही था सो मीटिंग पोस्टपोंड कर दी गई। जिनके यहाँ मीटिंग थी वो एक क्रिश्चन फेमिली थी। चाय के साथ बातों अनवरत सिलसिला चल निकला। कई विषयों पर बात करते हुए भाई साहब ने मेरे शौक़ के विषय में बताया तो बात numerology पर आ गई । उनकी छोटी लड़की ने मरियम ने तुरंत मुझसे कई सवाल कर डाले मैंने भी बारी बारी से उसके सवालों का जवाब दिया तभी मरियम क़ी मम्मी ने अपने लड़के शायद पीटर नाम था के विषय में कुछ जानना चाहा मेरे स्वीकृति में सर हिलाते ही दरवाजा खुला औऱ एक 15-16 साल का लड़का भीगता हुआ अंदर आया औऱ भाई साहब के पैर छुए, मेरा परिचय पाकर वो मेरे भी पैर छूने के लिए झुका तो मैंने रोकते हुए उसे गले लगा लिया। कुछ देर निःशब्दता छाई रही फ़िर पुनः चर्चा शुरू हो गई। पीटर ने स्वयं ही बता दिया क़ि पिछले लगभग एक वर्ष से वह साधुओं के संपर्क में है उसे चर्च जाना अच्छा नही लगता वो सन्यास लेना चाहता है। एक बारगी तो मैं भी चक्कर खा गया क्यों क़ि इस तरह क़ी स्थिति उत्पन्न होगी इसकी मैंने कल्पना भी नही क़ी थी वैसे भी इस समस्या का समाधन numerology के माध्यम से होने का प्रश्न ही नही था । मैं कुछ देर शांत रहा फ़िर पीटर क़ी DOB ली कुछ गुणा भाग किया तो इतना समझ आ गया क़ि अंक सात का जबरदस्त प्रभाव है किंतु ये अस्थाई है। ख़ैर कुछ देर बाद मैंने मनोचिकित्सक क़ी भाँति उससे बात क़ी। मैंने पूछा तुमने कौन कौन सी धार्मिक पुस्तकें पढ़ी हैं उसने तपाक से श्रीमद्भागवत औऱ रामायण का नाम लिया, मैंने पूछा बाईबिल तो उसने कहा, नही, मैंने पूछा क्यों, तो उसने कहा अंदर से इच्छा नही होती। 
       मैंने उससे कुछ औऱ प्रश्न पूछे जिसका उसने बड़ी बेबाकी से उत्तर दिया। मेरे एक प्रश्न क़ि जिन साधुओं के पास तुम जाते हो क्या वे तुम्हें क्रिश्चियन धर्म त्यागने औऱ सनातन धर्म अपनाने के लिए किसी तरह का प्रेशर डालते हैं तो उसने हँसते हुए कहा भईय्या वो सब मस्त रहते हैं कुछ भी उल्टा सीधा पाठ नही पढ़ाते वरन कहते हैं जब तक तेरा मन हो आया कर जब ना हो तो मत आना। 

      मैंने कहा ठीक है तुम अगले तीन महीने तक साधुओं क़ी टोली के वहाँ न जाओ बल्कि घऱ में एक घंटा बाईबल पढ़ो, हर संडे चर्च जाओ अगर उसके बाद भी तुम्हारा मन न करे तो तुम वही करना जो तुम्हारा मन करे। मैं तीन महीने बाद सिर्फ़ तुमसे मिलने स्वयं आऊँगा। पीटर ने कुछ देर तक सोचा फ़िर पैरों को हाथ लगाते हुए बोला ठीक है भैय्या ये भी करके देखता हूँ। शायद मम्मी को ख़ुशी मिले। फ़िर मैंने बात बदलते हुए हँसते हुए कहा मेरी दक्षिणा ? उसने कहा कितने देने हैं, उसकी मम्मी उठी भी मैंने हाथ के इशारे से रोकते हुए कहा पैसे नहीं अपन को गर्म समोसे मांगता। वो मुसकुराता हुआ उठा औऱ छाता लेकर बाहर क़ी ओर चला गया। 

       मैंने पीटर क़ी मम्मी को कहा मैंने जानबूझ कर उसे बाहर भेजा है ताकि आपको कुछ बता सकूँ। देखिए पीटर पर  ज्य़ादा दबाव न बनाएं। मैं एक प्रयास कर रहा हूँ मुझे उम्मीद है सफ़लता मिलेगी। अगर फ़िर भी वो संन्यास लेना चाहता है तो उसे डांटे डपटें नहीं। कुछ औऱ सुझाव देते हुए मैंने उन्हें ईश्वर पर विश्वास करने क़ी बात कही। तब तक पीटर भी समोसे ले आया था। चाय समोसे चट्ट करने के बाद हमने उनसे विदा ली। रास्ते में स्कूटर चलाते हुए भाई साहब ने मेरा नया नामकरण कर दिया। 'स्वामी प्रदीपानंद'! !

(c)प्रदीप देवीशरण भट्ट
17:04:2021

Monday, 8 February 2021

"पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन औऱ मानदेय"

“पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशक और लेखकों का मानदेय”
इससे पहले कि मैं इस विषय में अपने विचार प्रकट करुँ मैं आपके साथ महाभारत की एक घटना साझा करना चाहता हूँ।  ईश कृपा से जब वेदव्यास जी ने जब यह जान लिया कि द्वापर के अंत में और कलयुग प्रारम्भ होने से पूर्व एक ऐसा युद्द लडा जाएगा जिसमें अट्ठारह अक्षोणिनी सेना का विनाश होना तय है तब उन्होंने इसे पूर्व में ही कलमबद्ध करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी से आज्ञा ली और निवेदन किया कि आप तीनों लोकों में कोई ऐसा व्यक्ति या देवता बतावें जो  इसे कलबद्ध करने में सहायक हो तब ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान विष्णु जी के पास जाने का अनुरोध किया । वेदव्यास जी भगवान विष्णु के पास गये और उन्हें अपनी समस्या बताई साथ ही निवेदन किया कि वे इस पुनीत कार्य में उनकी सहायता करें। भगवान विष्णु ने कहा हे! वेदव्यास मेरी दृष्टी में एक मात्र गणेश ही ऐसा है जो यह कार्य अविरल गति से कर सकता है अतएव आप देवाधिदेव भगवान शंकर के पास जाएँ एवम उनसे गणेश जी को इस पूनीत कार्य के लिए माँग लें। वेदव्यास जी तुरंत भगवान शंकर के पास पहुँचे और लेखन कार्य के लिए गणेश जी की सहायता का अनुरोध किया। शंकर जी ने कहा ठीक है किंतु आप स्वंय गणेश से ही इस विषय में अनुरोध करें वो आपकी बात भी कदापि न टालेगें। तुरंत गणेश जी को बुलाया गया, वेदव्यास जी ने उनसे महाभारत काव्य के लेखन का भार वहन करने का अनुरोध किया। गणेश जी ने कहा मुझे कोई आपत्ति नही किंतु एक अनुरोध है कि मेरी कलम एक बार लिखने के लिए उठी तो वह लगातार लिखेगी अतएव आप इस बात का ध्यान रक्खें कि मेरी कलम रुकने न पाए, अगर रुकी तो मैं तुरंत ही कार्य मध्य में ही छोड दूँगा। वेदव्यास जी भी तुरंत ही समझ गये कि गणेश कार्य बंधन में बंधने के इच्छुक नही है इसलिए वे इस प्रकार का व्यव्हार कर रहे हैं। वेदव्यास जी ने गणेश जी से कहा मुझे आपका प्रस्ताव स्वीकार है किंतु मेरा भी एक अनुरोध है कि जब तक आपको मेरे श्लोक का अर्थ स्पष्ट न हो आप उसे कलम बद्ध न करें। गणेश जी ने इस पर अपनी सहमति दे दी। जब लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ तो वेदव्यास जी ऐसे श्लोकों की रचना करते जिनका अर्थ समझने में गणेश जी को अधिक समय लग जाता और उस दौरान वेदव्यास जी अगले कई शोलोकों की रचना कर लेते थे।

• भारत में 31 मार्च 2014 तक कुल 99,660 अखबार और पत्रिकाओं का रजिस्ट्रेशन हुआ है। इनमें 13,761 अखबार और 85,899 पत्रिकाएं हैं। सबसे ज्यादा अखबार और मैगजीन हिन्दी में छपते हैं। हिन्दी में कुल 40,159 अखबार-मैगजीन हैं।

• भारत का पहला न्यूज पेपर 'द बंगाल गैजेट' 29 जनवरी 1780 को जेम्स अगस्टस हिक्की द्वारा प्रकाशित किया गया था. इसे 'कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर' भी कहा जाता था और लोग इसे 'हिक्की गेज़ेट ' के रूप में याद रखते थे। 

कलयुग से तात्पर्य मशीनों के युग से है। आज भी कमोबेश वही स्थिति है। लोग बिना सोचे समझे बस लिखे जा रहे हैं क्यों कि उनको लिखना है, छपना है और खपना भी है। कम लिखो किंतु अच्छा लिखो कोई नहीं कहता बस लिखो, छपो, और और इस अंधी दौड में खप जाओ।  लेखन की स्थिति यह है कि एक से बढकर एक पत्रिकाएँ बंद हो गई है और तो जाने दीजिए लब्ध प्रतिष्टित “ गीता प्रेस,गोरखपुर भी बंद हो गई है। आजकल जिधर भी देखिए कुकरमुत्ते की तरह प्रकाशक उभर आएँ हैं  और ऐसा इसलिए कि लोग छ्पना चाहते हैं इसलिए उनका काम सिर्फ इतना ही है कि वे टैकस्ट बुक की तरह किताबें छापें बिना यह जाने कि ये छपने योग्य हैं भी या नहीं। प्रकाशक को पैसा चाहिए और छपने वाले को वाह वाही। ऐसी स्थिति में गुणवत्ता की बात करना ही बेईमानी है । इनसे भी बुरा हाल उन समाचार पत्रो का है जो दो चार पंक्तियों की कविता के साथ कवि को फोटो छाप रहे हैं। उन्हें ये मालूम ही नही कि इनसे उनकी साख दिन प्रतिदिन और नीचे गिर रही है। क्यों कि ऐसे प्रकाशक कवि वगैरह कुछ भी नही हैं न ही उन्हें कविता का क आता है सिर्फ और सिर्फ व्यापार। उनकी भी मजबूरी है पत्रि पत्रिकाएँ या न्यूज़ पेपर चलाए रखने की तो लेखकों को मानदेय कौन देगा और कहाँ से देगा। अब तो धीरे धीरे स्थिति ये आ गई है कि पत्र पत्रिकाओं में या समाचार पत्रों में छपने के लिए प्रकाशक उल्टे लेखकों से मानदेय लेगा। अब ऐसी स्थिति में आप साहित्य की बडी बडी बातें तो भूल ही जाइये।

Friday, 29 January 2021

"दिलकश अदा" A bueatifull date


 “दिलकश अदा” 
“ ब्यूटीफुल डेट”

दोस्तों ये बात है 2003 की, मैं शाहदरा (देल्ही) से रोज़ाना 08:50 बजे की रुट नम्बर 317 की DTC बस से कनाट प्लेस जाता था। कुछ दिनों से उस समय की बस उपलब्ध न होने के कारण किसी सह-यात्री ने एक स्वराज माज़दा को बुक कर लिया था। हम कुछ चुनिंदा लोग ही उससे सफर करते थे। 2003 में ही रिलायंस के मोबाईल ने दूरभाष के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। 16500/- की कीमत पर (स्टालमेंट में भी उपलब्ध था) सैमसंग या मोटोरोला जो जिसको पसंद हो। मैंने भी अपने लिए एक स्टालमेंट में बुक किया। उसे बड़ी शान से सहेज कर रखते थे। कोई देखना भी चाहे तो दूर से ही दर्शन कराते थे (जैसे उसके हाथ में लेते ही काल लग जाएगी) ख़ैर लगभग तीन महीने बाद ये घटना घटी। मैं 08:40 बजे उस स्वराज माज़दा में चढ़ा और अपनी नियत सीट पर बैठ गया तभी एक आवाज आई।  

- माफ कीजिए शायद आपका मोबाइल गिर गया है ।

- मैंने प्रश्न वाचक दृष्टी से अपनी ग्रीवा को उधर घुमाया जहाँ से आवाज़ आई थी। देखा तो पाया कि एक गोरे रंग की औसत कद की गोरी मेरी ओर ही निहार रही थीं । मैने पूछा आप मुझसे मुखातिब हैं ?

- जी हाँ मैं ही ...आगे के शब्द उसने अधूरे ही छोड़ दिये थे।

- मैंने तुरंत जेब में हाथ डाला, मोबाईल जेब से नदारत था, तुरंत सीट के नीचे झुककर देखने का प्रयास किया किंतु स्पेस कम होने के कारण देख न सका।
- उसने बडी अदा से मेरे पीछे की सीट पर जाकर मोबाईल उठाया मुझे पकड़ा दिया। मैंने शिष्टाचार निभाते हुए उन मोहतरमा की तरफ मुस्कान के साथ शुकिया उछाल दिया। जिसे उन्होंने बडी शालीनता के साथ कैच भी कर लिया। 

- अगले पाँच सात मिनिट्स तक इधर उधर की बातें होती रहीं फिर उन मोहतरमा ने अपना मोबाईल नम्बर दिया:  9385711878। शिष्टता वश मैंने भी अपना मोबाईल नम्बर: 9385731221 उनके साथ शेयर किया। 

- -चूँकि रिलायंस टू रिलायंस फ्री था तो पहले पहले यदा कदा बातें होती रही फिर धीरे धीरे दिन दो या तीन बार। 

- चूँकि मेरे office के सामने मोहन सिंह पैलेस में इंडियन काफी हाऊस था और देल्ही सरकार का भी एक काफी होम ऑफीस के पास ही खुल गया था, तो बातों बातों में उन मोहतरमा ने बताया कि वो चाय नहीं पीती हैं सिर्फ और सिर्फ काफी । सो शिष्टाचार वश मैंने उन्हें काफी पर Invite कर लिया। फिर तो सप्ताह में एक या दो बार शाम को हम बस पकडने से पूर्व काफी हाउस में बैठ जाते। मैं कभी कभी ऑफिस अपनी बाइक से कभी मेट्रो से आ जाता था तो 10:30 के अंदर उन मोहतरमा का फोन आ जाता। अरे आज आप कहाँ रह गये थे? मैं इंतज़ार कर रही थी या अगर आपको बाइक से आना था तो मुझे पिक कर लेते वगैरह वगैरह।

 एक बात विशेष जब बंदी बोलना शुरु करती थी तो उसे रोकना मुश्किल होता था। रिश्तों पर, दोस्ती पर, लम्बे लम्बे भाषण देना उसका शगल था। जब एक बार उसने दोस्ती के विषय में पूछा तो मैंने कहा मैं सिर्फ दोस्त की दोस्ती से मतलब रखता हूँ उसकी पारिवारिक या निजी ज़िंदगी में दखल देना बिलकुल भी पसंद नहीं करता। “दोस्ती देने का नाम हैं-पाने की चाह का नहीं” उसने मज़ाक में ही कहा था यार तुम तो साधु संतो जैसे प्रवचन देते हो फिर बोली अपना नाम प्रदीप भट्ट से “स्वामी प्रदीपानंद” कर लो।
 उसकी इस बात पर मैं भी मुस्कुराए बिना न रह सका। 

- -ऐसे ही मार्च-2004 आ गया। एक दिन अकस्मात उसने कहा शाम को मिलो बहुत ज़रूरी बात करनी है। मैंने कहा मार्च चल रहा है वर्किग डे में तो सम्भव नही है कल शनिवार को मिलते हैं वैसे अगर ज़्यादा ज़रुरी है तो फोन पर बता दो, वो बोली नही Saturday मेरा half होता है कल तीन बजे मैंने कहा ठीक है। 
- -मैं 2:45 पर ही काफी होम पहुँच गया। बंदी आई मैंने पूछा कुछ खाना है या सिर्फ काफी। उसने कहा सिर्फ काफी नहीं कुछ खिलाओ भी मैं आज लंच नही लाई थी। मैंने आर्डर दिया वेटर ने कहा सर 15 मिनिट वेट करना पडेग़ा। मैंने कहा कोई बात नही और फिर बातों का सिलसिला चल निकला। दस मिनिट् बाद मैंने टोकते हुए कहा पहले ज़रुरी बात कर लो मोहतरमा, उसने कहा हाँ यार, ऐसा है कि मम्मी ने आपको घर पर Invite किया है। अपने  चिरपरिचित अंदाज़ में मैंने पूछा क्यों भाई?  उसने घूरते हुए कहा ये तो वो ही बताएगीं। मैंने असमंजस की स्थिति में पूछा क्या निकिता (उसकी बड़ी बहन) की शादी पक्की हो गई। उसने कहा वो तो दो महीने पहिले ही पक्की हो गई। 7 अप्रैल की शादी भी फिक्स हो गई है समझे। अब मुझे थोड़ी सी घबराहट होने लगी थी। (तभी वेटर आर्डर रख कर चला गया) अपने को सयंत करते हुए मैंने काफी की सिप ली और पूछ ही लिया “फिर किस कारण से बुला रही हैं” अब उसके चेहरे पर झुंझलाहट साफ दिखायी दे रही थी। फिर मुस्कुराते हुए कहा मेरी शादी के लिए! अब मैं पूरी स्थिति समझ चुका था। मैंने सैंड्विच और काफी की ओर इशारा करते हुए कहा कुछ खा पी लो फिर बात करते हैं। पता नहीं उसे क्या लगा ह्त्थे से उखड़ते हुए उसने कहा पहले कह डालो फिर खा पी लूँगी। मैंने एक लम्बी उच्छ्वास भरते हुए पर्स निकाला और अपनी बेटी की फोटो दिखाते हुए कहा तुम्हें शायद गलत फहमी हो गई है मैं शादी शुदा हूँ और इस बच्ची का बाप भी। उसने दोनों हाथों में सर पकड़ते हुए मुझे खूब बुरा भला कहा। कुछ लोग हमारी तरफ देखने लग पडे थे कई तो जानते भी थे। मैंने कहा इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है मेरी तरफ से दोस्ती अभी भी औन है। उसने फिर मुझे घूरा और कहा भाड में जाओ तुम और भाड में जाए तुम्हारी दोस्ती। 
फिर पैर पटकते हुए वो बिना कुछ खाए पीए काफी होम से बाहर। 

- मैं ये सोचकर परेशान ये सैंड्विच (उसका),औऱ डोसा (जो मेरा आर्डर था) दो काफी हे भगवान कैसे खाऊँगा/पीऊँगा। लेकिन दोनों आइटम्स को पेट के हवाले कर मैं भी घऱ क़ी ओर चल दिया। 

- इसी बीच 2006 में मैं देल्ही से ट्रांसफर होकर मुम्बई आ गया। 13 अक्टूबर-2007 को देल्ही से मुम्बई की फ्लाइट पकड़ने मैं घर से निकला। प्लान किया कि पहले कनाट प्लेस चलते हैं हनुमान मंदिर की आलू की सब्ज़ी और कचौरी खाई जाए फिर एक ठो काफी फिर वहीं से एअर पोर्ट। कश्मीरी गेट से मेट्रो चेंज करते हुए क्या देखता हूँ वही मोहतरमा एक दो-ढाई साल के बच्चे का हाथ पकड़े मेरे साथ साथ मेट्रो में प्रवेश कर रहीं हैं , नज़रें मिली, उसने एक हल्की सी मुस्कान मेरी ओर उछाल दी मैंने भी शिष्टाचार का पुन: पालन किया और मुस्कुराकर अभिवादन किया। फिर उसने बच्चे की ओर इंगित करते हुए कहा बेटा अंकल को हेलो कहो, बच्चे ने झट से मेरी ओर हाथ बढा दिया मैंने भी गर्म जोशी से हाथ मिलाते हुए कहा “कैसे हो दोस्त, क्या नाम है आपका ? बच्चा बोला शलभ अंकल। मैंने जानबूझ कर दोस्त शब्द पर ज्यादा ज़ोर दिया था। एक उचटती सी नज़र मैंने उन मोहतरमा पर डाली, उसने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा सॉरी, मैंने हँसते हुए कहा कोई बात नही, गलत फहमी के लिए तो आपको माफ किया परंतु उस सैंड्विच, डोसा और दो काफी पीने के लिए मजबूर करने के लिए माफी ..फिर रुककर कहा फिर कभी। 
-
-                                                                                -प्रदीप देवीशरण भट्ट- -30:01:2021

Friday, 8 January 2021

" बचपन-पचपन"

      "बचपन-पचपन" 

मखमल से गद्दे पे लेटा 
गहरी निंद्रा में वो लीन
जब चाहेगा तब उठ्ठेगा 
भले बजाओ कितनी बीन 

दुनियाँदारी वो न जाने 
घऱ में सबको न पहचाने
जो भी प्यार जताता उससे 
उसको ही वो अपना माने

पापा का वो राज दुलारा 
औऱ माँ क़ी आँखों का तारा 
दादी औऱ छुटकी बुआ क़ी 
नज़र में वो है सबसे न्यारा

सबका ध्यान उसी पर रहता
पास में एक न एक है रहता 
जब दो तीन हों पास में उसके 
कहना हो ग़र आँख से कहता

जब तक है बचपन तुम जी लो 
बड़े हुए तो पढ़ लो खेलो
औऱ हुए कुछ बडे़ तो प्यारे 
बस एक दूजे क़ो ही झेलो 

- प्रदीप देवीशरण भट्ट - 
08:01:2021

Thursday, 7 January 2021

"यात्रा तीन ज्योतिर्लिंग क़ी"

                 “यात्रा वृतांत”
जब तक हमें किसी बात का भान न हो तब तक हम दीन दुनियाँ से बेखबर रहते हैं और जैसे ही हमें थोडी सी भी जानकारी हो जाए हम परेशान हो जाते हैं, और खंगालने लगते हैं अगले पिछ्ले सभी रिकार्ड्। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। 1987 में ट्रेनिंग के लिए नासिक आया तो त्रम्बेक्श्वर के दर्शन कर लिया बिना तब ये नहीं पता था कि ये ज्योतिर्लिंग हैं। जब पता चला तो उत्कंठा हुई कि और कहाँ कहाँ हैं सूची निकाली ।त्रम्बेक्श्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन तो दो तीन बार और कर लिए किंतु बाकी का नम्बर नहीं आया या ये कहूँ कि जब तक प्रभु न चाहें तब तक दर्शन थोडे ही होने हैं खैर 2013 में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (नागेश्वर धाम छूट गया), 2018 में उज्जैन, ओम्कारेश्वर, 2019 में मल्लिकार्जुन ,2019 में ही बाबा विश्वनाथ। फिर कोरोना काल आ गया घर में पडे पडे पगला सा गय सो नवम्बर में देल्ही को निकल गए और दिसेम्बर में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का प्लान बनाया । गुजरात से आने वाले ट्रेन का 23 दिसम्बर को टिकिट भी बुक हो गया किंतु वापसी का नहीं। फिर सर्च किया और अपने प्रिय मित्र सुहास भटनागर के साथ पर्लीवैजनाध ज्योतिर्लिंग, घ्र्ष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग और भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का प्लान किया और देखिए 23 दिसम्बर की ही टिकिट मिल भी गई। यहाँ यह कहना आवश्यक है कि मैं लगभग 13 वर्ष मुम्बई रहा किंतु इन तीनों ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का बस प्लान ही बनता रहा फलीभूत कभी नहीं हुआ।
अब चूँकि कोरोना काल है,लिमिटिड ट्रेन हैं सो 24 दिसम्बर को समय से 40 मिनिट्स पूर्व ही पर्ली पहुँच गये, फ्रेश हुए और पहुँच गये आटो पकड कर भोले के दरबार में वो खाली और हम भी सो तसल्ली से दर्शन लाभ लिया, नाश्ता किया और चल पडे बीड बस द्वारा ( No direct bus service is available), बीड से फिर बस बदली और औरंगाबाद ( यार महाराष्ट्र कैबिनेट ने जब औरंगाबाद का नाम सम्भा जी के नाम पर करने के लिए निर्णय ले लिया तो फिर अब तक काहे नहीं किया, बहुत लेट लतिफी है भाई) फिर औरंगाबाद से घ्र्ष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (ऐलोरा की गुफाएँ आधा फर्लांग की दूरी पर हैं), कमरा लिया फ्रेश हुए और पहुँच गये मंदिर दर्शन के लिए सांय की आरती में सम्म्लित होना एक रोमांचकारी अनुभव था मैंने इससे पहले कभी ये अनुभव नहीं किया, मैं उस दौरान शायद भक्ति में पूरा लीन हो चुका था। फिर अगले दिन प्रात: पुन: दर्शन किए फिर पहुँचे ऐलोरा (1987 में पहले भी देख चुका हूँ शायद घ्र्ष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग  के दर्शन किये हों किंतु याद नहीं) ऐलोरा में कुछ समय व्यतीत कर मंदिर से सादिलाबाद से औरंगाबाद से अहमदनगर से आड़े फाटा से मंचर से 21:15 पर आखिर भीमा शंकर पहूँच ही गये। भीमाशंकर में रुकने के नाम पर (मंदिर के पास) बहुत बुरा अनुभव हुआ। 

खैर सुबह फिर भोलेनाथ के दर्शन किया वो भी पूरी तसलल्ली के साथ्। फिर नाश्ता और फिर बस द्वारा पूना। वहाँ मैं अपने ऑफ़िस के गेस्ट हाऊस में रुका सुबह ऑफ़िस के सामने वाली लेन पर नाश्ते के लिए और क्या देखते हैं सड़क के दोनों ओर बरगद के घने और मोटे मोटे वृक्ष। सुहास जी तो धड़ाधड़ फोटो लेने लगे वो इस माहौल को अपने मोबाईल में क़ैद करके बहुत संतुष्ट दिखे। सांय को उन्हें हैदराबाद की बस के हवाले कर मैं मुम्बई के लिए प्रस्थान कर गया। लगभग डेढ वर्ष बाद मुम्बई आना हो रहा था।  घूमता घाता मैं भी 31 दिसम्बर को वापिस हैदराबाद वापिस आ गया। किंतु इस एक हफ्ते के प्रवास की यादें अभी दिमाग से निकल नहीं पा रही हैं। 


-प्रदीप देवीशरण भट्ट- -07:01:2021