Sunday, 21 May 2023

"हगने के दस मूतने के पाँच"

रिपोतार्ज़
                “हगने के दस 
                 मूतने के पाँच”

क्यों चौंक गये ना, 😆जी मुझे भी लगा क्या ये शीर्शक ठीक रहेगा फिर लगा हम आम दिनों में एक दूसरे से कभी गुस्से में कभी व्यंग्य स्वरुप और कभी यूँ ही (दिल्ली वाले जो ठहरे) किन किन विशेषणों से युक्त भाषा का प्रयोग करते हैं तो फिर पक्का हो गया जी इस रिपोतार्ज़ का शीर्शक तो यही रहेगा( मतलब खटोला यहीं बिछेगा की तर्ज़ पर)। 🤓 दिल्ली छोडे हमें 16 साल हो गये लेकिन दिल्ली ने हमें न छोडा है चाहे मुम्बई रहे हो या अब हैदराबाद आना जाना लगा ही रहता है। मुझे आवश्यक कार्य से 3 मई को मेरठ पहुँचना था इसलिए मैंने समय रहते 30 अप्रैल की एस सी टू टायर की (दुरंतो- सिकंदराबाद-निज़ामुद्दीन) में प्रतीक्षा सूची में टिकिट आरक्षित करवा लिया। ऐसा इसलिए कि बंगलौर-दिल्ली राजधानी में काफी लम्बी प्रतीक्षा सूचि थी। मैं निश्चिंत भी था क्यों कि हैदराबाद के पिछले लगभग साढे चार वर्ष के प्रवास में कभी ऐसा नहीं हुआ था कि मुझे स्टेशन से वापिस आना पडा हो। जब हम ज्यादा निश्चिंत हो जाते हैं तभी गडबड हो जाती है। तो लीजीए हुज़ूर हम गुसलखाने की ओर जाना ही चाहते थे कि मोबाइल में मैसेज आ गया कि आप प्रतीक्षा सूचि-1 पर आकर अटक गये हैं हमसे न हो पाएगा 🙃अपना दूसरा इंतेज़ाम कर लो भैय्या।  मतलब हो गया ना हैप्पी बड्डे! स्नान ध्यान तो छूट गया हम लग गये फ्लाइट के चक्कर में शायद रेलवे वालों ने एअर वालों से सैटिंग कर रक्खी है। हैदराबाद- दिल्ली का किराया 16500/- , 1 मई का ट्राई किया तो 13,500/- फिर मुँह लटकाए लटकाए हमने 2 मई ट्राई किया तो सिर्फ आकाशा (राकेश झुंझुनवाला- शेयर मार्किट टाइकून) की फ्लाइट में शाम की एक टिकिट मिली वो भी 9500/-। हमने सोचा तुरंत बुक करो बे🥱 कहीं सोचते रह गये तो इसके भी रेट बढ जाएंगे। अब सोचिए शनिवार, रविवार, सोमवार और मंगलवाल मिलाकर चार दिन खराब हो गये।  मतलब दोनों तरफ से जय सियाराम्। खैर हैदराबाद से दिल्ली और दिल्ली से मेरठ पहुँचने में रात काली हो गई। 

सुबह उठे और लग गये अपना ज़रुरी काम निपटाने में ,शाम तक उससे जब काम से फारिग होकर घर आए तो दोनों भाईयों के बच्चे बोले क्या ठाकुर 🦜खाली हाथ, सजा मिलेगी बरोबर मिलेगी। हमने भी उनके सुर में सुर मिला दिया हुकूम करें जनाब ए आली तो  बोले सभी बच्चा लोगों को भयंकर वाली  पार्टी मांगता है। हमने कहा कुछ खास है क्या छुटकी बोली खास क्या ठाकुर “असलियत में चाँद मेरे पास है” का लोकार्पण गुजरात के होटेल में किया था न, तो हमें भी बढिया वाले होटेल में हमारी पसंद की पार्टी और हाँ इस बार आर्डर सिर्फ हमारा चलेगा यानी बच्चों का बच्चे जो आर्डर करेंगे वो बडो को भी खाना पडेगा, ये नहीं कि दाल रोटी दाल रोटी, वो तो रोज़ घर में भी खाते हो भई। हमने मन ही मन कहा “रज़िया फिर से गुंडो में फंस गई” (सच कहूँ तो इत्ते सोणे सोणे  गुंडे हो तो रजिया को फँसने में रोज़ मज़ा आएगा ही)। खैर साहब इस बार हमने भी ना नुकुर नहीं की और सीधे सीधे सरेंडर कर दिया। बच्चे खुश तो ईश्वर खुश्। दो तीन दिन बिताकर सीधे मुरादाबाद (बैच्चु लुलू पार्टी कहानी यहीं जनमी थी) फिर दो दिन बाद सीधे दिल्ली की बस पकडी और कौशाम्बी मेट्रो स्टेशन उतर गये। मुरादाबाद से दिल्ली भले ही ए सी बस थी किंतु सफर तो सफर है सो सोचा कि शाहदरा की मेट्रो पकडने से पहले निफराम हो लिया जाए। हम जैसे ही निफराम होने सुलभ शौचालय में घुसे तो वहाँ बैठे आदमी ने तुरंत कहा बाबू जी “हगने के दस और मूतने के पाँच” हम एक दम सन्न ठिठक गये सो अलग। उसके चेहरे की तरफ देखा तो बडा भोला भाला शायद कुछ दिनों पहले ही बिहार से आया था। हमारे चेहरे पर तुरंत एक मुस्कार तैर गई हमने भी उसी अंदाज़ में उसे जवाब दे दिया ना भैय्या हगने का प्रोग्राम ना है हमारा मूत के निकल लेंगे। वो बोला बाबू जी बुरा मत मानियो जाने से पहले बताना हमारा धरम है, कई लोग काम तो दस का करें हैं पर देंवे है पाँच रुप्प्या ही। ज्यादा कहो तो माँ बहन की गाली भी दे देंवे हैं सो हम पहले ही बता देने में अपनी और उसकी भलाई समझें हैं। खैर पाँच मिनिट में निफराम होकर हम बाहर आए उसने खुद ही उठकर हमें बैग़ थमा दिया हमने उसे पचास रुपये पकडा दिये तो बोला बाबू जी खुले दे दो, हम पे खुले ना हैं । मैंने उसके कंधे को थपथपाकर कहा हमें पैसे वापिस ना चाहिए भैय्या, बचे पैसे से बाहर जाकर छोले कुलचे हमारी तरफ से खा लेना। हमें तुम्हारी बात और अंदाज बढिया लगा।😆 इससे पहले कि वो और कुछ बोलता हमने जय सियाराम कहा और दूसरी मेट्रो लेकर निकल लिए दोस्त के घर।

अब बारी थी दिल्ली नौयडा के कार्य निपटाने की तो 11 मई को को इंडिया बुक्स (आगामी कहानी संग्रह “काला हंस” ) के सेक्टर 19 नौयडा पहुँचे। डॉक्टर संजीव से बेहतरीन मुलाकात रही। लगभग दो घंटे की मीटिंग में कविताओं के कई दौर चले, लगा ही नही कि हम लोग पहली बार मिल रहे हैं। 🌹वहीं पर ही जसविंदर कौर बिंद्रा जी से भी मुलाकात हुई। पंजाबी हिंदी अंग्रेजी भाषा में पूर्ण रुपेण पकड, रिटायर्ड हैं किंतु जबरदस्त जोश से भरपूर। उनके साथ स्ट्रीट लंच लिया फिर पहुँचे आदरणीय और प्रिय प्रिय प्रिय सुरेश नीरव जी नये आशियाने पर्। उन्होंने गाज़ियाबाद से दो तीन दिन पूर्व ही शिफ्ट किया है, मैं साहित्यिक दृष्टी से प्रथम व्यक्ति रहा जिसने उनके द्वार पर प्रथम अतिथि के रुप में दस्तक दी। कुछ देर बाद मधु मिश्रा जी भी पुराने निवास स्थान से कुछ सामान लेकर लौटी फिर महफिल जम गई जो सांय 7:15 तक चलती रही। खाने के आग्रह के बावजूद मैंने जाने की आज्ञा माँगी ताकि समय से मित्र के घर पहुँच सकूँ। रास्ते भर मैं अब से तीस पैतीस बरस पहले के नौयडा को याद करने की कोशिश कर रहा था जिसमें अट्टा मोड की धूल विशेष रही। 
अब दिल्ली जाओ और दोस्तों से न मिलो ऐसा तो हो ही नहीं सकता न सो अगले दिन फोन मिला दिया, उधर से आवाज़ में कुछ कम्पन लग रहा था मालूम हुआ पति देव का बॉयपास हुआ है और छुट्टी लेकर घर जा रहे हैं बस हमने भी तुरंत मेट्रो पकडी और पहुँच गये मिज़ाज़पुर्सी को। अगले दिन का कार्यक्रम निश्चित था, पहले एक छोटे से कार्यक्रम में भागीदारी फिर मित्र के साथ लंच फिर शाम को बंगलौर राजधानी। जब ये सब पूर्ण कर हम निज़ामुद्दीन स्टेशन जा रहे थे तो अहसास हुआ कि परसों और कल के मुकाबले आज तबियत कुछ ज्यादा नासाज़ सी लग रही है। जैसे दिल्ली की लू कह रही हो अरे ओ साम्भा 😡कित्ते दिन हो गये लू खाए हुए बे ,हम बोले पूरम पट्ट सोलह बरस तो लू ने कहा इस बार तो तुमसे चिपकर ही रहेेंगे बचकर दिखाओ। खैर जैसे तैसे स्टेशन पहुँचे, A-5-29 पर जाकर बैठ गये। पिछले कई बरस हो गये ठंडा पानी पीए किंतु आज सादे पानी से प्यास न बुझी और प्यास ने ज्यादा हलकान कर दिया तो पी लिया ठंडा ठंडा कूल कूल जैसे तैसे कुछ संयत हुए, ट्रेन चली तो सहयात्रियों से परिचय हुआ। ऐं पर ये क्या, 🙃जो भी अपना नाम बतावें सबका प्र से यानी श्रीमति एवम श्री प्रिया मुखर्जी बच्चे का नाम भी प्र से , दूसरी जोडी प्रियंका और रोहित की,और हम तो हैं ही प्रदीप्। अचानक अप्रैल-मई-2022 की याद हो आई जब हम गोवा और नेपाल के साहित्यिक प्रवास पर थे कुल 14 लोगों में से 11 महिलाएँ सभी का नाम र से शुरु सिर्फ हम और एक और सज्जन थे जो अलग अक्षर से नाम रखते थे। कभी कभी ऐसा होता है जो अच्छा भी लगता है। पिछ्ले एक सप्ताह से इलेक्ट्रोल, ग्लूकोन सी जैसी चीज़ों का सेवन कर उबरने की कोशिश कर रहे हैं। आज कुछ आराम सा आया तो एक ठो शेर याद हो आया। वैसे तबियत के बारे में अभी तक पूछा तो किसी ने नहीं। फिर भी शेर ठोकने में क्या हर्ज है जी 😆😆😆😆

“अब पडा तबियत में कुछ आराम सा
  तुमने जब पूछा कि कैसे हो ‘प्रदीप’”

प्रदीप देवीशरण भट्ट-
20.05.2023