Saturday, 28 December 2024

खुराफ़ाती चीन

              "खुराफ़ाती चीन"

        चीन की सभ्यता दुनिया की पुरानी सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। इसका इतिहास लगभग तीन हज़ार वर्ष पुराना है। चीन का आधिकारिक नाम झोंग्गुआ जिसका अर्थ मध्य साम्राज्य या केंद्रीय राष्ट्र है किंतु पश्चिमी देशों द्वारा इसे कई नामों से जाना जाता है जिसमें सिनो या सिना सिने कैथे लेकिन इसका प्रचलित नाम चीन ही है। यूं तो चीन कभी किसी देश का गुलाम नहीं रहा किंतु अंग्रेजों ने उसे 1840 में अर्थ उपनिवेश अवश्य बनाया था।1911 में डॉक्टर सतयान सेन के नेतृत्व में अंतिम छींग वंश का तख्ता पलट कर चीन लोक गणराज्य की स्थापना की गई । सत्तारूढ़ कोमिंग तांग के कुशासन का अंत कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा 1949 में किया गया जिससे चीनी जनता को कुछ हद तक राहत मिली किंतु सही अर्थों में चीन को स्वतंत्रता द्वितीय विश्वयुद्ध 1939-45 के बाद ही नसीब हुई। किंतु चीन को पूरी तरह अंग्रेजों से मुक्ति 1 जुलाई 1997 को मिली जब हॉन्गकॉन्ग पूरी तरह चीन के नियंत्रण में आ गया इस तरह 1841 से शुरु हुए ब्रिटिश शासन का अंत अंततः 1997 में हो गया यानि कुल 146 वर्ष की परतंत्रता। उस समय चीन की स्थिति बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं थी। चारों तरफ़ सामान्य से सामान्य चीज़ों का भी अभाव था किंतु विस्तारवाद का कीड़ा तब भी चीन के शासकों में अन्दर तक धंसा हुआ था। इसी का परिणाम था 1962 में भारत पर चीन द्वारा आक्रमण का किया जाना था। तत्कालीन भारत सरकार की गलत और गलत फहमी पूर्ण नीतियों के कारण भारत को पराजय का मुंह देखना पड़ा। ये एक ऐसा झटका था जिससे भारत को उबरने में काफ़ी वक्त लगा। हालांकि भारत द्वारा 1967 में नाथुला की संक्षिप्त लड़ाई में चीन पर बढ़त लेने से भारतीय सेना का मोराल काफ़ी हद तक कवर हुआ किंतु असली मोराल डॉकलाम विवाद पर भारत की प्रतिक्रिया से ज्यादा पैदा हुआ।
        
         1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया दो खेमों में विभक्त हो गई थी, एक खेमा अमेरिका के संग था तो दूसरा सोवियत संघ के साथ यानि कि दुनिया के शेष देश किसी एक महाशक्ति के साथ रहने के लिए अभिशप्त थे किंतु कुछ देश थे जो इन दोनों महाशक्तियों के साथ नहीं रहना चाहते थे। सोवियत संघ और अमेरिका दोनों बाक़ी देशों को अपने अपने हिसाब से प्रलोभन दे रहे थे ताकि वे विश्व पटल पर अपने आपको अजेय योद्दा दिखा सकें। इसी कड़ी में तीसरा विश्वयुद्ध न हो इसके लिए यू एन ओ की स्थापना की गई जिसमें प्रमुख पांच देशों का दख़ल तय था इसलिए अमेरिका की तरफ़ से भारत की दावेदारी को इस लिहाज़ से महत्वपूर्ण माना गया कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है एवम् जनसंख्या के हिसाब से भी चाइना के बाद भारत ही दूसरे नंबर पर था किंतु धन्य हो उस समय की विदेश नीति जिसे तत्कालिक सरकार द्वारा नकार दिया गया और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रख दी यानि वे देश जो न अमेरिका के पक्ष में थे न सोवियत संघ के पक्ष में तो वो देश बन गए तीसरी दुनिया के देश। अब चूंकि अमेरिका सोवियत संघ से शक्ति संतुलन साधना चाहता था तो उसने चीन को बढ़ावा दिया। नतीजतन चीन माओ से तुंग के नेतृत्व में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा और आज चीन विश्व की सबसे बड़ी फैक्ट्री बनकर उभरा है। ज़रूरत पूरी हुई तो पेट भरा, पेट भरा तो सपने बड़े होने लगे और उन सपनों को पूरा करने में विश्व के देशों से हो रही पैसों की बरसात में उसकी पुरानी आकांक्षा यानि विस्तारवाद फिर सिर उठाने लगा। आज जो चीन है उसका उभार 1966 से 2020 यानि 54 वर्षों में हुआ है। अमेरिकी लडाकू विमानों की नकल करके चीन अब छटी पीढ़ी के लडाकू विमान बनाने की ओर अग्रसर हैं वहीं भारत पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने की ओर प्रयास रत्त है। फ़िलहाल भारत के पास फ़्रांस से प्राप्त राफेल लड़ाकू विमान हैं जो कि 4.5 पीढ़ी के हैं अच्छी बात ये है कि अब ये विमान भारत में ही निर्मित होंगे।

चीनी सिनीजाईनेशन
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          1978 में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना शुरू किया और सुधारी करण की नीति का पालन किया। 1980 तक आते- आते पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में चीन अव्वल होकर निकला।  2022 की रिपोर्ट के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 18 ट्रिलियन डॉलर था जिसके बदौलत चीन के पास पैसे की भरमार हो गई है तो उसका ध्यान चीन के विकास तक सीमित नहीं रहा है पिछले 40-45 सालों में लगभग पूरे चीन में सड़कों, पुलों, ट्रेन ट्रैक का जाल बिछ गया है यही हाल हवाई अड्डों का भी है। चीन अब विकसित हो चुका है एक अनुमान के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था का आकार इस समय लगभग 19 ट्रिलियन डॉलर है जिस कारण वो अब उस अमेरिका को भी आँखे दिखाने लगा है जिसने उसे इस मजबूत स्थिति में खड़ा करने में मदद की। यही का कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में विश्व के कई देश चीन की विस्तारवादी नीतियों से खासे परेशान हो गए हैं जिस कारण बड़ी बड़ी कम्पनियों ने अपना कामकाज समेटना शुरू कर दिया है और उनका पसन्दीदा डेस्टिनेशन भारत बन गया है। 1995 से चीन ने 11वें पंचेन लामा गेदुन चेकई न्यीमा एवं अन्य राजनैतिक लोगों को अपने यहाँ बंदी बनाया हुआ है जिनकी रिहाई के लिए लगातर  निर्वासित तिब्बती संसद जो कि भारत में है,  समय समय पर अपनी आवाज़ बुलंद करती रहती है।  इस संसद का आरोप है कि चीनी   सिनीसाईजेशन जिसका एक ही सूत्र है कि तिब्बती लोगों को चीनी संस्कृति अपनाने के लिए मजबूर किया जाए न मानने की स्थिति में जुल्मों सितम की एक कभी ख़त्म न होने वाली दास्तान से सामना। तिब्बती लोगों का कहना है कि तिब्बत कभी  भी चीन का हिस्सा नहीं रहा।फिर भी चीन है कि तिब्बत के मुद्दे पर भारत से भी 
भिड़ता रहता है। रूस, मंगोलिया, किरगिस्तन, कजाखस्तान, म्यांमार, अफगानिस्तान, पाकिस्तान,  उत्तर कोरिया,ताजिकिस्तान नेपाल से सीमा विवाद में उलझा हुआ है पिछले दो तीन वर्षों में उसने ताइवान को हड़पने की  भरकस कोशिश की है वो जब तब ताईवान के आकाश में अपने फाईटर प्लेन भेजकर उसे धमकाने की कोशिश करता रहता है किन्तु अमेरिका के सपोर्ट के कारण वो ताईवान का कुछ भी बिगाड़ नहीं पा रहा। इन सबके बावजूद भी एशिया में दूसरे ताकतवर देश भारत से नए नए विवाद में उलझता ही रहता है। 

        अब आते हैं चीन की नई खुराफात पर, चीन ने अभी हाल में अपनी संसद में एक प्रस्ताव पारित कर ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा डैम या बांध बनाने की घोषणा कर दी है। चीन में भारत को तीआंझू के नाम से भी जाना जाता है इसका अर्थ आदर्श स्थान या स्वर्ग जैसी भूमि का स्वामी होता है। इसके अलावा भी चीन में भारत को यिन- तू कहकर भी पुकारा जाता है। चीन में बौद्ध धर्म सर्वाधिक है के अतिरिक्त  ताओवाद, इस्लामिक, कैथोलिक, प्रोटेंस्टेटवाद एवं कन्फ्यूशियस वाद प्रचलित है किन्तु जब से जी शिनपिंग सत्ता में आए हैं वहां धर्म को चरस कहा जाने लगा है जिसको मानने का मतलब चरस का नशा माने जाना लगा है। इससे पहले कि मैं इसके पक्ष विपक्ष में अपने विचार व्यक्त करूं हमें ये जान लेना ज़रूरी है कि चीन में किसी भी देश की अपेक्षा लगभग 98000 छोटे बड़े बांध हैं जिनमें विश्व का सबसे बड़ा बांध थ्री गोरजेस भी शामिल है। जिससे वह 88.2 बिलियन किलो वॉट घंटा की विद्युत उत्पन्न करता है। इसमें 39.3 KM या 31,930,000 एकड़ फीट पानी मौजूद है इसका कुल क्षेत्रफ़ल 1045 कम  है। इसके बनने के बाद पृथ्वी के घूमने की गति 0.06 माइक्रो सेकेंड का अंतर आ चुका है जिसकी पुष्टि नासा ने भी की है। वैसे दुनिया का सबसे ऊंचा जिनपिंग प्रथम आर्च बांध है जिसकी ऊंचाई 305 मीटर या 1001 फीट है वहीं दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा तटबंध बांध 300 मीटर या 984 फीट नूरेक बांध तजाकिस्तान में है।जहां तक भारत का प्रश्न है तो आज भी भाखड़ा नांगल डैम दुनिया का सबसे ऊंचा तथा सीधे ग्रैविटी वाला बांध है वैसे सबसे बड़ा बांध हीराकुंड है जिसकी लम्बाई 25.8 किलोमीटर है। यह बांध इंजीनियरिंग का अदभुत नमूना माना जाता है जिसे उड़ीसा में 1957 में बनाया गया था। जहां तक टिहरी बांध का प्रश्न है तो यह उत्तराखण्ड में बना है जिसकी ऊँचाई 260.5 मीटर है इसे गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी तथा भीलगंगा नदी पर बनाया गया है। यह दुनिया का सबसे लम्बा मिट्टी का बांध है। टिहरी बांध को स्वामी रामतीर्थ सागर बांध भी कहते हैं। 

         जब से चीन ने विकासवाद की उड़ान भरी है तब से उसे कुछ भी अनुचित नहीं लगता इसका जीता जागता उदाहरण 1979 में दिखाई दिया जब आंदोलन कारी छात्रों पर चीनी सेना ने टैंक चढ़ा दिए थे 1978 में  वियतनाम द्वारा बीजिंग से अलग होकर मास्को से 25 सालों के सोवियत रूस के साथ एक पारम्परिक रक्षा समझौता कर लिया साथ ही वियतनाम ने कम्बोडिया में कठपुतली माओवादी कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ़ युद्द का ऐलान कर दिया परिणाम स्वरूप चीन ने कम्युनिस्ट वियतनाम के खिलाफ़ युद्द शुरू कर दिया और लगभग 2,20,000 सैनिकों को युद्ध के मैदान में उतार दिया इस युद्ध में चीन और वियतनाम दोनों को ही भारी नुकसान हुआ । चीन ने जहां इसे वियतनाम के खिलाफ़ दंडात्मक कार्यवाही बताया वहीँ वियतनाम ने इसे अपनी सम्प्रभुता से जोड़कर देखा। यानि पैसा आया तो पॉवर आई और पॉवर आई तो विस्तारवादी नीति आई और इसका खमियाजा भुगतने के लिए उसके पड़ौसी अभिशप्त हैं।  आए दिन चीन कुछ न कुछ ऐसा करता रहता है जिससे पूरे विश्व की आँखों में वो खटक जाता है फिर चाहे वो पाकिस्तान के रास्ते उसका महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट CPEC जो कि 3000 KM लम्बा है बना रहा है  वहीं वह श्रीलंका को कर्ज़ देकर लगभग कंगाल कर चुका है वो तो भला हो भारत का जिसने समय रहते श्रीलंका को सम्भाल लिया लेकिन चीन हर गरीब देश को कर्ज दे रहा है जब वो देश कर्जा उतारने में असमर्थता व्यक्त करता है तब चीन उसके संसाधनों पर कब्ज़ा जमा लेता है मतलब कि ब्रिटेन की तरह चीन भी वर्तमान में उपनिवेशवाद की राह या चाह पाले हुए है। 

         अब जब चीन ने एक ट्रिलियन डॉलर यानि करीब 137 अरब डॉलर की लागत से नए बाँध बनाने का फैसला कर लिया है तो इससे सबसे ज्यादा खतरा भारत और बांग्लादेश को है, विपरित परिस्थितियों में चीन नए बाँध से भारत में क्रत्रिम बाढ़ ला सकता है जिससे भारत के अलावा इसका असर बांग्लादेश पर भी पड़ना तय है। य़ह बाँध वह यारलुगां जंगबो ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम पर बन रहा है ब्रह्मपुत्र यार लूंग नदी तिब्बत के पठार से होlकर बहती है। यारलूंग या भारतीय नाम ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलकर भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बांग्लादेश को सेती है। चीन की ये परियोजना दुनिया की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है। यार लूंग जंगबो नदी पर जल विद्युत परियोजना इंजीनियरिंग की विषम चुनौतियों से भी सामना करना पड़ेगा ऐसा इसलिए कि ये पूरा हिमालयी क्षेत्र टेक्टॉनिक प्लेटो पर टिका हुआ है। और इस क्षेत्र में भूकंप आना नई बात नहीं है हाँ ये बात अलग है कि जब ये बाँध कम्प्लीट हो जाएगा तो चीन को इससे 300 अरब किलोवाट से अधिक की बिजली मिलेगी जो कि वर्तमान थ्री गोरजेस बाँध के 88.3 से तीन गुने से भी ज्यादा है। जहाँ तक भारत का प्रश्न है भारत ने चीन के साथ सीमा पार नदियों से सम्बन्धित विभिन्न मसलों पर चर्चा करने के लिए 2006 में स्पेशल लेवल मैकेनिज्म की स्थापना की, वैसे चीन बाढ़ के मौसम के दौरान भारत को ब्रह्मपुत्र नदी और सतलुज नदी पर जल विज्ञान सम्बन्धित जानकारी साझा करता रहा है। निश्चित रूप से चीन का एक मात्र मकसद विद्युत उत्पादन मात्र नहीं है बल्कि वह इस बाँध के द्वारा सैनिक शक्ति का प्रयोग भी करना चाहता है मतलब युद्ध जैसी स्थिति में चीन इस बाँध से अतिरिक्त पानी छोड़कर भारत को परेशान कर सकता है।

         अब प्रश्न यह है कि यदि इस बाँध के निर्माण को लेकर चीन की मंशा ठीक नहीं है तो भारत इस विषय में बचाव के लिए क्या कर रहा है। भारत सरकार इसके प्रतिउत्तर में सियांग परियोजना लेकर आ रही है। सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना के पूरा होने पर इससे न केवल विद्युत उत्पन्न होगी बल्कि चीन की ओर से किसी भी दुस्साहस करने पर यदि वह पानी छोड़ता है तो वह पानी भारत द्वारा बनवावाए गए बाँध में किसी हद तक समाहित हो जाएगा। इस बाँध में 9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा हो सकता है। यदि चीन पानी छोड़ता है तो यह पानी बफर के रूप में कार्य करेगा। इससे पूरे साल नदियों में पानी का प्रवाह एक जैसा रहेगा। यानि कुल मिलाकर भारत न सिर्फ अपनी प्रतिरक्षा की तैयारी कर रहा है बल्कि वह अपने पड़ौसी बांग्लादेश का भी ख्याल निरन्तर रख रहा है। जहाँ तक भारत और चीन की विदेश नीति के तुलनात्मक अध्ययन की बात है तो चीन दूसरे देशों को खा जाने में विश्वास करता है वहीँ बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हुए घनघोर अत्याचारो के बावजूद आज जब वहाँ अन्न का संकट उत्पन्न हुआ तो भारत ने मानवीय सम्वेदना को ध्यान में रखते हुए आलू प्याज के अतिरिक्त 25 हजार टन चावल भिजवा रहा है वो भी बिल्कुल निःशुल्क।

प्रदीप डीएस भट्ट-301224

         
         


         

         

Friday, 27 December 2024

"पक्षी विहीन नागालैंड"

रिपोर्ताज 
           " पक्षी विहीन नागालैंड "

        पिछले वर्ष दिसम्बर-2023 की तमिलनाडु एवं केरल की साहित्यिक यात्रा के पश्चात ABS4 द्वारा जून-2024 में आयोजित नेपाल यात्रा में मैं सहभागिता नहीं हो सकी क्यूँ कि घर में धार्मिक आयोजन था किन्तु जब अगस्त में तय हुआ कि इस बार नागालैंड में आयोजन प्रस्तावित है तो हमने तुरन्त हामी भर दी। पहली फुर्सत में डिसाइड किया कि यात्रा ट्रेन से करेंगे और लो जी जैसे ही हमने डिसाइड किया कुछ और साथियों ने भी ग्रुप में अपनी सहमति प्रदान कर दी। 🫠 चूँकि बुकिंग 4 महीने पहले करवाई जा सकती है और अभी समय शेष था सो हम तो रिलेक्स थे तभी नीरव जी का संदेश प्राप्त हुआ कि तो राधा बिष्ट जो कि लखनऊ की हैं और कभी जर्मनी, कभी बंगलौर कभी नोएडा प्रवास पर रहती हैं के टिकिट की जिम्मेदारी आप ले लें, सो भैय्या जिम्मेदारी ले ली। 😝आने जाने के टिकिट बुक किए साथ ही दीमापुर रेलवे-स्टेशन पर एक ठो कमरा भी बुक कर दिया ताकि रात 12 बजे भटकना न पड़े,🙂‍↔  किन्तु ये क्या दो दिन बाद due to रिनोवेशन work booking कैंसिल का mag हमारे मुबलिया में आ धमका। क्या करें क्या न करें के बीच हमने राधा बिष्ट जी से मुबलिया पर संवाद किया और होटल सेब towar में ही एक कमरा बुक कर दिया चूँकि उनकी रूम पार्टनर अमीना खातून थीं सो एक कमरे की जगह दो कमरे कर लिए,  जैसे जैसे 17 दिसम्बर की तिथि नजदीक आ रही थी थोड़ा सा एक्साइटमेंट भी हो रहा था लेकिन जे क्या 14 को खबर लगी कि राधा जी परिवार में क्षति होने के कारण नहीं जा पाएंगी🤤 सो उनका टिकिट कैंसिल किया,  तभी waiting लिस्ट में अनीता प्रसाद जी से बात कर सूचित किया गया कि आपका नगालैंड का कार्यक्रम confirm हो गया है आप राधा बिष्ट की जगह अमीना जी के साथ कमरा साझा कर सकती हैं, ट्रेन फ्लाईट जैसे भी सम्भव हो देख लें, तीन दिन यूं ही गुजर गए तभी राश दादा राश का आग्रह कि मैं बिटिया के साथ हूँ एक कमरा हमारा भी कर दें ख़ैर आनन् फानन में फोन किया तो उन्होंने क्रिसमस के कारण होटल फूल होने का हवाला देकर हाथ खड़े कर दिए सो एक्स्ट्रा बेड के साथ दो कमरे 6 लोगों के लिए फ़ाइनल। 17 को मेरठ से दिल्ली NDRS से 16:20 की ट्रेन ली और राजधानी दौड़ पड़ी अपने गंतव्य की ओर लोहे की सड़क पर धड़क धड़क करते हुए। रात्रि 10 बजे अनीता जी का फोन कि टिकिट confirm नहीं हुई क्या करें 😱हमने भी उनींदे से में ही कह दिया current टिकिट लेकर रत्ननेश्वर जी,  राश दादा या अमीना खातून के साथ बैठ जाएं TT आवे तो मैनेज करें । चूँकि राजधानी सुबह 4 बजे पटना पहुंचती है तो सभी उन्हें मिल गए वे बैठ भी गईं लेकिन जब 8,9  बजे TT 😢 आया तो उसने घोषित कर दिया आप  पक्के तौर पर बिना टिकिट हैं रत्नेश्वर, राश दादा अमीना सब TT को समझाने में नाकामयाब हुए तब 

"जब कोई भी तरकीब मेरे काम न आई प्रदीप 
 सो यूँ किया कि ख़ुद को हवाले तिरे किया "

         सो भैय्या 17 कम्पार्टमेंट😇😇 को कूदते फांदते AC 3 tire की स्थिति जनरल बोगी से बदतर। ख़ैर टीटीई को ढूंढ़ते ढूंढ़ते पैंट्री कार जा पहुंचे वहां का नज़ारा बस पूछो मति, गरमा गर्म चाय की चुस्कियां लेते सभी TT साथ कुछ पुलिस ब्रदर्स। खैर तेजपाल जी से ही पूछा तेजपाल जी कहां मिलेंगे🤥 माजरा जानकर उन्होंने तुरन्त अनीता जी और मुझे चाय ☕ ऑफर की। इधर उधर की बातें करते हुए उन्होंने बताया वो खेकड़ा कस्बे के हैं सो मैंने बागपत का होने का हवाला देते हुए तुरन्त गुज़ारिश की कि इन मोहतरमा के लिए कुछ करें।  किन्तु अफ़सोस दिल ब्लैक होल में, उन्होंने बताया कि उन्होंने बाबू रत्नेश्वर सिंह जी की सहमति से ही अपने टैबलेट में एंट्री कर ली है इसलिए वो कुछ नहीं कर सकते ख़ैर पेमेंट के लिए जब अनीता वाई फाई कनेक्ट करने के बाद भी पेमेंट न कर पाईं तो हम थे न😻 सो तुरन्त 7200 की पेमेंट कर दी किंतु रकम 7200 ना ना ना 7020 ऐसा इसलिए कि जब हिसाब किया तो पता पता चला कि अंजाने में ही सही हमने अनीता जी को 7020 की जगह 7200 बोल दिए थे,  न भैय्या गुस्सा न कि करो, हिसाब किताब में अपना हाथ शुरू से ही अंग्रेज़ी की तरह तंग रहा है। खेकड़ा बागपत का रिश्ता इतना काम आया कि उन्होंने AC 3Tire की यात्री अनीता जी को 2tire में बैठने की इजाज़त दे दी। 👏अनीता जी का मूड थोड़ा खराब हुआ जो कि होना स्वाभाविक भी था सो बोल दिया पैंट्री में जो दो चाय पी हैं समझिए उन 2 चाय की क़ीमत 7200 न न 7020 समझें जब लगा कि वो मुस्कराने से बच रही हैं तो हमने दूसरा जुमला उछाल दिया चलिए यूं समझिए कि आपने प्रथम श्रेणी में यात्रा की है किंतु परन्तु लेकिन समझा ही तो नहीं जाता न प्रभु।🙀 ख़ैर रात्री 12:30 पर दीमापुर पहुंचे, ऑटो लिया और अपने आपको कमरों में धकेल दिया।

         गद्दे इतने ज्यादा अनस्टेबल थे कि लगा ज़्यादा जोर की करवट ली तो कहीं उछलकर खिड़की के रास्ते कोहिमा न पहुंच जाएं। राश दादा के साथ उन्हीं गद्दों पर लगभग दुई घंटे गुफ्तियाने के बाद पता नहीं कब सो गए। खटर पटर की आवाज़ ने जगा दिया देखा सूर्य 🌞 देवता लतिया रहे हैं हमने आंख मलते हुए कहा प्रभु थोड़ा सोने दें तो और जोर से लतिया दिए फिर गरज कर बोले अबे हमें उदित हुए डेढ़ घंटा हो गया है बे हम यहां जल्दी उदित हो जाते हैं यानि 4 सवा चार बजे और हां अस्त भी जल्दी होते हैं। सोना था तो घर रहते यहां क्या...... आगे के शब्द डॉट से समझ लें। प्रभु पूरे गुस्से में थे सो हमने उठने में ही भलाई समझी,  आँखें मलकर पुनः खोली तो खुर्शीद मियां आकाश में फिर चमक दमक बिखेर रहे थे। आनन फानन में तैयार हुए रत्नेश्वर बाबू और राश दादा को उठाया तभी तुम में लगा फोन घनघना उठा दूसरी ओर से मधुर सी आवाज़ में बताया गया कि भुक्कड़ो  नाश्ते का समय 7.30 से 9.00 बजे तक है इससे पहले कि नाश्ता खत्म हो जाए टूट पड़ो। 😾लो जी नाश्ते की बात सुनते ही दोनों बंधुओं ने तय किया कि पहले पेट पूजा बाक़ी काम दूजा। छोले भटूरे, कॉन्फ्लेक्स bred buttar, हलुआ, चाय कॉफी, भर पेट खा लिया क्या पता लंच कब मिले न मिले। 

         19 की प्रात :7.30 बजे परम प्रिय मित्र श्यामल मजूमदार दादा उत्तराखंड की आठ सदस्यीय टीम को वाया लखनऊ लेकर होटल 🏨 सेब टॉवर आ पहुंचे। चूंकि रूम 12 बजे से आरक्षित थे सो हमने ऑफर दे डाली जब तक तुम नहीं मिलता तब तक महिलाएं तुम नंबर 207 में एवम् पुरुष 206 में फ्रेश हो सकते हैं। साढ़े बारह के क़रीब नीरव जी सैनी धर्मपाल धर्म भी आ पहुंचे, चूंकि प्रोग्राम स्थल दूर था सो चेंज किया और जा पहुंचे पद्मपुखरी स्थित राष्ट्रभाषा हिन्दी संस्थान परिसर जिसे पद्म श्री तेजमेन जमीर द्वारा हिन्दी की अलख जगाए रखने हेतु स्थापित किया गया था। नागालैंड की सुरम्य वादियों में स्थित राजधानी दीमापुर के पद्मपुखरी में तीन दिवसीय इक्कीसवें राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारम्भ या ये कहें कि स्वागत नागालैंड के पारम्परिक लोकनृत्य से किया गया तत्पश्चात सम्मोहित करने वाला लोक गायन प्रस्तुत किया गया तत्पश्चात वेणु मण्डप में दीप प्रज्जवलन सरस्वती वंदना पुस्तकों के लोकार्पण एवं पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया तत्पश्चात बहुभाषीय कवि सम्मेलन का आयोजन। प्रथम दिन सुहावना एवं आनन्द प्रदान करने वाला था। होटल आकर तय किया कि भैय्या आज काली जबान वाले प्रदीप भट्ट के कारण लंच नसीब नहीं हुआ सो डिनर इसके सर ही ठोको सो राश दादा उनकी बिटिया पूजा अनीता प्रसाद अमीना खातून और हम आ पहुंचे होटल के ही डिनर रूम में सर्वसम्मति से तय हुआ खिचड़ी और आलू के पराठे साथ में दही, हमने झिझकते हुए जैसे ही ये कहा ये न हो कि कल नाश्ते में आलू पराठा ही मिले चार जोड़ी घूरती हुई आंखों को अपने चेहरे पर गड़ते हुए पाया सो चुप्पी साधने में ही भलाई समझी। आर्डर 20 मिनिट में ही सर्व करने बंदा आया मैंने कहा ओ तेरे की आर्डर खिचड़ी और आलू पराठे का और आया है अंडा करी और रोटी, प्रोनॉन्सिएशन की धक्का मुक्की का परिणाम था अंडा 🥚 करी ख़ैर इस बार 30 मिनिट का टाइम कहकर बंदा गया तो वहीं टेबल पर एक छुटका कवि सम्मेलन शुरु हो गया। लगभग 40 मिनिट बाद मनचाहा ऑर्डर नसीब हुआ। खा पीकर सब अपने कमरों में जा घुसे अगली सुबह जल्दी उठने के वायदे के साथ। डर भी था कहीं भास्कर ☀️ महोदय देर तक सोने पर गुस्से में पिछवाड़ा ही न जला दें।

         20 की सुबह पूरी भाजी का नाश्ता किया और साढ़े नौ बजे पद्मपुखरी स्थित वेणु मण्डप में। चूंकि प्रथम सत्र का संचालन हमारे ही जिम्मे था सो गुरु हो जा शुरु की तर्ज़ पर माइक पकड़ा और शुरु हो गए। राष्ट्रभाषा संस्थान की निदेशिका पी ताकालीला, अनिल सुलभ जी एवं सुरेश नीरव जी द्वारा सभी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न भागों से पधारें कवियों ने रचना पाठ किया। हमने सोचा क्यों न इस शुभ अवसर पर हिन्दी विषय पर ही कुछ पढ़ा जाए आखिर तेजमेन जमीर जी की आत्मा जहां कहीं भी होगी वो ये देखकर प्रसन्न तो होवेगी कि 30,35 लोगों में कोई तो है जो उनकी तरह हिन्दी की अलख जगा रहा है।

गीत 
      " हिन्दी है तो है हिन्दी "

सुबह से शाम अंग्रेज़ी, मग़र दिल में बसी हिन्दी 
सजी जो भाल पर माँ के, वही प्यारी मेरी हिन्दी 
कि सब व्यापार की बातें,मगजमारी क्यूँ करनी है 
मेरी हिन्दी, तेरी हिन्दी,मग़र हिन्दी तो है हिन्दी! 

तमिल है तेलुगू है और मलयालम,भी कन्नड़ भी, 
कि कुछ विकसित हुईं हैं, और बाक़ी कुछ है अनगढ़ भी, 
भले दक्षिण में बोली जा रही, पर सब समझ आता,
अगरचे सीखना चाहो तो, सीखन में मज़ा आता,
इन्हीं से संस्कृति अपनी,ये जिन्दी हैं तो सब जिन्दी! ! 


मराठी और गुजराती, अलग संदेश हैं देती, 
मिले पंजाबी जब संग में, तो एक दूजे को हैं सेंती,
असमिया और उड़िया, बात  बंग्ला की करूँ मैं क्या,  
सभी कल्चर समेटे, बात फ़िर दिल्ली करूँ मैं क्या,
मिला लो सिंध भी इसमें,ये सिंधी है सब सिंधी! !! 

कोई कुछ भी कहे लेकिन,सभी भाषाएं बढ़िया हैं, 
कहो कुमाऊँनी या फ़िर, कहो गढ़वाली बढ़िया है, 
सभी का सार है इसमें, कि कम प्रचार है इसमें, 
मग़र जो प्रेम है बसता, सदी का साथ है इसमें,
लड़ो आपस में कितना भी, मग़र सन्धि तो है सन्धि ! !! !

कि छोड़ो भाषा के झगड़े, गले मिल बात तो कर लो, 
कि थोड़ा हम सबर कर लें, औ थोड़ा तुम सबर कर लो, 
सभी भाषाओं की जननी, है संस्कृत देव भाषा जी,
यही संदेश है इसका, करो जीवन में आशा जी,
करो निश्चय अभी मन में,अमर हिन्दी तो है हिन्दी! 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट -14923

         इसके बाद तो बस चला चली ही बचती है और कुछ अलग है तो महिलाओं का फ़ोटो सेशन जिसमें कुछ पुरुष भी अपनी भड़ास निकाल लेते हैं। सो राष्ट्र गान न कि राष्ट्र गीत के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। 

         तीसरा दिन चूंकि शैक्षिक पर्यटन को समर्पित था तो टीम उत्तराखंड मजूमदार दादा की अगुवाई में  कोहिमा के लिए सुबह सवेरे निकल गई बाकी कॉम्प्लीमेट्री नाश्ते का मोह न त्याग सके सो तय किया कि लोकल ही रमणीय स्थलों का प्रवास किया जाए। हम अनिल सुलभ जी, शशि प्रेम देव, अनीता प्रसाद और अमीना खातून गाड़ी लेकर निकल पड़े। पहला पड़ाव ग्रीन पार्क जहां रमणीय वातावरण में सभी ने कविताओं की वीडियो बनाई, वहां से निपटकर निकल ही रहे तो सुमन जी टकरा गए जिनसे कल शाम ही मुलाक़ात हुई थी वे मैथ टीचर हैं जो 1997 से यहीं जमे हुए हैं। हमने सोचा लोकल हैं तो ज्यादा जानकारी मिलेगी गाइड का खर्चा भी बचेगा सो उनकी मोटर साईकिल को कहा कि आप यहीं 1 घंटे विश्राम करो हम इन्हें लेकर 4 घंटे में आते हैं। उस बिचारी को क्या पता ह्यूमर क्या होता है सो जब तक उसे कुछ समझ आता हम उन्हें लेकर फुर्र। अब हम सबकी बागडोर सुमन मोदी जी के हाथ में और दूसरा पड़ाव बैंबू रिसॉर्ट वहां लकड़ी से बहुत कुछ बनाया जा रहा था हम जैसे ही घुसने लगे एक श्वान 🐕 🐶 दिख गया, उसने हमें देखा भी और देखा भी नहीं उसने भौंकने के धर्म का पालन भी नहीं किया, वहां से निपटे तो उसी प्रांगण में वुड इंपोरियम चले गए वहां दूसरा श्वान 🐕 🐕 स्थिति फ़िर पहले श्वान की तरह, सब आगे बढ़ गए लेकिन हम तो हम ठहरे सीटी बजाई तो उसने एक आँख खोलकर हमारा नीचे से ऊपर तक का जायज़ा लिया फिर आंखों ही आंखों में बोला कि चाईदा तैन्नू जल्दी दस मैन्नू मैंने थोड़ा स्टाइल मारते हुए पूछ लिया तुम कुत्ते हो बे कुत्ते काटो न काटो कमसकम भौंकने 🐶 का धर्म तो निभाओ। उसने एक अगड़ाई ली फिर बोला सुनो बे मुसलमान बरसों तक बकरे को पालते हैं फिर ईद में उसका झटका मटका कर देते हैं। यहां नागालैंड में स्थिति विकट है यहां के लोगों की पहली पसंद हम हैं फिर हमारा बहुत दूर का रिश्तेदार वराह है हमने सर खुजाते हुए पूछा वराह तो वो श्वान और बिगड़ गया बोला अबे शूकर 🐖 हमने कहा नहीं हमारा नाम भट्ट है प्रदीप भट्ट अब उसे और गुस्सा आ गया बोला अबे ये सब सुअर 🐷 के पर्यायवाची शब्द हैं वराह और शूकर और ये क्या बे भट्ट नाम है  प्रदीप भट्ट सुनो ये कहते हुए तुम गंदे वाले जेम्स बॉन्ड लगते हो। हमने तुरन्त हाथ जोड़े तो श्वान महाराज आगे बोले कि कितने दिनों से हो हींया हमने कहा तीन दिन से उसने बड़ी गम्भीरता से कहा तीन दिनों में कोई चिड़िया, छिपकली कॉकरोच,कबूतर, टिड्डा टिड्डी फ़िर हांफते हांफते उसने नाम की जगह चित्र उकेर दिए और बोला,🕊️🦩🐇🐿️🦨🦡🦫🦜🦢🐉🐲🦔🐿️🐀🐁🦥🕊️🐇🦌🐐🐂🐄🫏🐎🐏🐑🦙🐈‍⬛🐈🐕‍🦺🦮🐩 
 देखे हो, हमने ना में मुंडी हिलाई तो बोला ये ससुरे इंसान छोड़कर सब कुछ खा जाते हैं और तुर्रा ये कि हम प्रकृति प्रेमी हैं। और हां ये तितलियों की चटनी बनाकर खाते हैं।हमने पूछा हमने तो यही सुना है नागालैंड वाले आदमी भी खा जाते हैं इस बार उस श्वान 🐕 ने हल्की सी बत्तीसी दिखाई फिर बोला अगर ये सच होता तो तुम जिंदा थोड़े ही रहते फिर एक दम से उदास होते हुए बोला अब तुम खुदई सोचो जिस कुत्ते को ये पता न हो कि वो कितने पल का मेहमान हो वो भौंकेगा या आने वाली मौत को आँख बंद कर गच्चा देने का प्रयास करेगा।अच्छा सुनो अब तुम पतली गली से निकल लो बेटा वरना हम अपना सिर्फ धर्म निभाएंगे नहीं वरन पिछवाड़े पे काट खायेंगे फिर लगवाते रहना 14 ठो इंजेक्शन। हमने अभी कदमों को जुंबिश दी ही थी कि मरी मरी आवाज में वो श्वान 🐕 फिर बोला यहां से तीसरा ठिकाना तुम्हारा शिव मंदिर है वहां शिवजी से कहना कि अगले जनम हमें नागालैंड ने पैदा कीजौ।

         वास्तव में हमारा तीसरा ठिकाना शिव मन्दिर ही था जो कि रँगा पहाड़ है वहां कबूतर मस्ती में दाना चुगते मिले जैसे उन्हें पता हो यहां नागाओं की हद खत्म हो जाती है फिर हैंडीक्राफ्ट इंपोरियम,  छेत्री रिवर ब्रिज, noune रिसॉर्ट जहां हमने फ्राइड राइस के साथ कविताएं पढ़ी। राज बारी आर्कियोलाजी हिडिम्बा, कूडा गाँव, शाम को लौटते हुए thaihku village decoration और दीमापुर बाज़ार। रास्ते में खेतों में मुर्गियां 🐓🐓 दाने चुगते बहुत दिखीं, पूछने पर सुमन जी ने बताया एक महीना खिलाएंगे फिर हैप्पी वाला बर्थडे। कुछ लोग कुछ खरीदारी करना चाहते थे लेकिन पता चला यहां दुकानें सुबह 8 बजे से सायं 6 बजे तक ही खुलती हैं। संडे प्रे डे घोषित होता है सिर्फ़ बेकरी और मेडिकल शॉप खुल सकती हैं। कोई अन्य दुकान खुली मिली तो ग्यारह हज़ार फाइन। अगले दिन यानि 22 को 12 बजे होटल छोड़ना था और हमारी ट्रेनवा मिडनाइट यानि 23 दिसम्बर की वेरी अर्ली मार्निंग 2.08 पर चूंकि हम अकेले थे सो कोहिमा जा नहीं सकते थे सो तय किया कि रूम एक दिन के लिए एक्सटेंड करते हैं किंतु ये क्या रिसेप्शनिस्ट ने बड़े अदब से कहा हुज़ूर ए आला कल कहते तो मैनेज हो जाता क्रिसमस के कारण होटल फूल टू फूल है फ़िर बड़े प्यार से कहा आप चेक आउट करके सामान लॉकर में रख सकते हैं वो भी फ्री बिलकुल फ्री। चूंकि सुमन जी की बिटिया मेरठ में BDS कर रही है तो तय हुआ था कि उसके लिए एक पैकेट गर्म कपड़े उसको पहुंचा दूं तो उन्हें फोन कर वस्तु स्थिति बताई वे कुछ ही देर में लेने आ गए। खाना खाया और जो स्थान कल देखने से रह गए थे उन्हें उनके साथ देखा फिर रात्रि में उन्होंने ही स्टेशन ड्रॉप भी किया और 24 को मंगल टू मंगल करते वाया दिल्ली मेरठ और इस तरह नागालैंड की यात्रा सम्पन्न।

मास्टर पास्टर डॉक्टर 
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         और अंत में आप सोच रहे होंगे कि क्या नागालैंड में कुछ रोचक भी देखा या सुना। जी हां हुज़ूर नागालैंड में शादी के बाद लड़का लड़की के यहां आकर रहता है एक दो दिन नहीं वरन जीवन भर जैसे यहां लड़की अपने ससुराल में जीवन भर रहता है। टीचर नागी हो या दूसरे प्रदेश का उसे पूरी इज़्ज़त बख़्शी जाती है चूंकि यहां क्रिश्चियन बहुलता में हैं तो यहां चर्च की भरमार है। फादर हो या डॉक्टर उन्हें भी पूरी इज़्ज़त वो भी टैक्स फ्री जी हां नागालैंड को स्पेशल राज्य का दर्ज़ा हासिल है सो सर्विस क्लास की बल्ले बल्ले लेकिन बाहर का व्यक्ति ज्यादा शो ऑफ़ करे तो कुछ भी हो सकता है इसलिए पैसा कमाओ लेकिन दिखाओ नहीं नई ते। अब एक और रोचक पहलू नागालैंड को त्यौहारों की भूमि भी कहा जाता है इसका दूसरा नाम नागा हिल्स है, दीमापुर नाम हिडिंबा के नाम पर है। 1 दिसम्बर 1963 को आसाम से अलग होकर नागालैंड अस्तित्व में आया। नागालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिवल प्रमुख है। नागालैंड में कोन्याक, ए ओ, लौथा, अंगामी, चोकरी, संगतम, बंगाली, जेमे, यिमखिउग्ररु, चांग के अतिरिक्त भी 6,7 भाषाएं बोली जाती हैं। लगभग 17भाषाएं नेपाली भी है किंतु आश्चर्य इनमें से एक भी इस राज्य की भाषा नहीं है वरन अंग्रेजी है। निश्चित क्रिश्चियन सोसाइटी के प्रभाव का असर है। एक और महत्वपूर्ण जैसे मुसलमानों में बहत्तर फिक्रे होते हैं और अहमदिया, शिया, सुन्नी वगैरह वगैरह की मस्जिद अलग हैं वैसे ही यहां चर्च भी अलग अलग एक बानगी देखिए: Mao bapist church, angami bapiest church, ao bapist church, rengma, sumiyimchunger, lotha,konyak,nagamis church, Bengali church, Nepali, Spirits of faith church for new born क्रिश्चियन आदि आदि। लोग विदेशों की तरफ़ आकर्षित होते हैं उनके लिए हुज़ूर भारत में इतना कुछ है कि उसे देखने और समझने के लिए एक जीवन पर्याप्त नहीं है।

         तो कीजिए अगले रिपोर्ताज का इंतेज़ार।

Saturday, 14 December 2024

"देर लगी आने में हमको शुक्र है फ़िर भी आया तो "

रिपोर्ताज 

"देर लगी आने में हमको, शुक्र है फ़िर भी आया तो "

"ठीक हो रही खाँसी खुर्रा, लेकिन कनिया* बंद हो गये 
 अच्छे ख़ासे मलमल थे पर टाट के अब  पैबंद हो गये" 
* कान (इंस्टेंट) 
थोड़ा हँस भी लिया करो 😄😄😄😄

         मौका था महफ़िल ए बारादरी की मासिक गोष्ठी का जो कि 8 दिसम्बर को होनी निश्चित हुई थी। वर्ष 2024 की आखिरी हसीन शाम में मैंने भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने को आतुर था😊। इसी क्रम में दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में ही आलोक यात्री जी की ओर से स सम्मान आमंत्रण प्राप्त हो चुका था। पिछले एक महीने से नजले खांसी ज़ुकाम और थोड़े से बुखार बाबू के संग हम लगभग उल्टे टंगे हुए थे।🫠 खांसते ही पसलियां चीत्कार कर देती थीं। बेसाख्ता मुझे लखनऊ में बिताए बचपन की कुछ यादें ताज़ा हो आई जिनमें सर्दी की रात में "हे भुनी भुनी हैं, ये मुंगफली हैं" वो मुंगफली बेचने का अंदाज़ और सर्दी में कंपकपाते हाथों से अख़बार काटकर बनाए गए लिफ़ाफे में ढाई सौ ग्राम मुंगफली और साथ में काला नमक आहहह और गर्मियों में ककड़ी बेचता हुआ वो बंदा जो आवाज़ लगाता था "लैला की उंगलियां ले लो, मजनू की पसलियां ले लो" वो भी काले नमक के साथ, 🥒अब इन दोनों बंदों के अंदाज़ पर लाखों की MBA की डिग्रियां भी न्यौछावर �सो भैय्या जब भी खांसी आती मुझे तुरत बचपने में ले जाती और लैला की उंगलियां और मजनू की पसलियां याद आ जाती। लेकिन साहब इस बार तय कर लिया था कि महफ़िल ए बारादरी जरूर ज़रूर जरूर अटेंड करनी है।भले ही खांसी पढ़ने में व्यवधान ही क्यों न डाले। शायद नजले खांसी ज़ुकाम को अंदाज़ा हो गया था ये बंदा बहुत बड़े वाला ढीठ वाला बंदा  है 🙃सो 8 तारीख़ आते आते सवेरे वाली गाड़ी से चुपके से ये तीनों तिलंगे निकल लिए। सच कै रिया हूँ भाया पिछले नवंबर में भी इन्होंने हरिद्वार में मुझे कैच कर लिया था किंतु जब इस साल मैं दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में हरिद्वार कार्यक्रम करके लौटा तो मुझे 6 को ही अहसास हो गया था कि इस नज़ले खांसी ज़ुकाम ने तय कर लिया था कि अब दुबारा इस बंदे के साथ ना जावेंगे लेकिन साहब आदत तो बदल सकती है लेकिन फितरत नहीं  सो जाते जाते मुए पर्ची छोड़ गए "मिलते हैं नवंबर 2025 में"🌶️

         सो भैय्या 8 तारीख़ को 11.00 बजे स्कूटी उठाई और सीधे भैंसाली बस अड्डे, पहली फुर्सत में अपनी स्कूटी जमा की और गाजियाबाद वाली बस में जा बैठे की। 12 बजे जैसे ही बस ने जुंबिश की और बस अड्डे को टाटा बाय बाय बोला आगे वाली बस का ड्राईवर कूद कर आ गया और सवारी उठाने को लेकर महाभारत शुरु हो गया पहले एक दूसरे को छोटी बड़ी सभी उपाधियां दे डाली जब मन नहीं भरा तो वन टू का फोर, फोर टू का वन यानि कंडक्टर भी भिड़ गए, रास्ता पूरी तरह जाम 👻, अब तक बस की सवारियां और भीड़ ड्राईवर कंडक्टर को मोटी मोटी सुना भी रहे थे तभी दो स्टार लगाए एक पुलिस वाला और दो कांस्टेबल भी आ पहुंचे मामला बातचीत से न संभलते देख दो ⭐ ⭐ वाले ने पुलिस वाले से डंडा लिया तो चारों की तशरीफ़ को बढ़िया तरीके से गर्म कर दिया। ये लीजिए हुज़ूर मामला निपटा और हम आनंद के सागर में गोते लगाते हुए 2.45 गाजियाबाद, ई रिक्शा ली और बताया सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल, नेहरू नगर, तभी हमारा फुनवा टुनटुना गया और हम हो गए जी गापियाने में मस्त। मोबाईल से फ्री हुए तो जोर का झटका जोर से लगा, बंदा बुलंदशहर वाले स्कूल की तरफ़ अग्रसर लगा, टोका तो बोला मेरे सुनने में ग़लती हो गई लगती है। ख़ैर उसे छोड़ा दूसरा पकड़ा अब ये वाला भी पता नहीं भैय्या किन किन रास्तों की हमें सैर कराता रहा। देर से पहुंचना हमारी शान के खिलाफ़ है लेकिन मरता क्या न करता। काश मैं भी सड़क पर सन्नी देओल की तरह एक मोड़ पर गड्डी छोड़कर कार्यक्रम स्थल पहुंच जाता। ख़ैर जैसे तैसे 4.00 बजे पहुंचे हमेशा की तरह पहली मुलाक़ात आलोक जी से ही हुई, देर के आने के लिए हाथ जोड़ क्षमा मांगी⏰ फ़िर एक कुर्सी पर अपने आप को धकेल दिया।

         थोड़ा संयत हुए तो मंच पर निगाह डाली तो पाया कि बारादरी की सदारत मशहूर शायर इक़बाल अशहर कर रहे हैं सदा की भांति 'डॉक्टर माला कपूर गौहर', गोविंद गुलशन, अजीज नबील, सोमदत्त शर्मा वगैरह वगैरह मंच संचालन की जिम्मेदारी इस बार तरुणा मिश्र ने संभाली। इस शुभ अवसर पर महफ़िल ए बारादरी की ओर से डॉक्टर वीणा मित्तल एवम् ईश्वर सिंह तेवतिया जी को सम्मानित किया गया।  प्रिय आलोक यात्री जी महफ़िल में हर जगह मौजूद नज़र आए। चूंकि हम देर से उपस्थित हुए थे सो कार्यक्रम तो अनवरत चालू ही था सो अन्य के अतिरिक्त जब हमारा नाम पुकारा गया तो हम जा पहुंचे देर से उपस्थित होने के लिए अपनी आदत के अनुसार सर्वप्रथम सभागार में उपस्थित सभी से क्षमा मांगी फ़िर गीत प्रस्तुत करने से पूर्व बचपन का एक किस्सा सभी से साझा किया कि जब मैं दसवीं में फेल हुआ तो घर पर पिताजी द्वारा शरीर की डेंटिंग पेंटिंग कर दी गई, फेल होने का दुःख तो हुआ किंतु ज्यादा ख़ुशी तब मिली जब अगले दिन पता चला कि प्रमोद और दिनेश गुप्ता भी फेल हो गए। 🙃🙃🙃🙃सच्ची सच्ची बताऊं अगर भगवान जी इस ख़ुशी के बदले स्वर्ग भी देता तो मैं तुरन्त ठुकरा देता। मेरे बाद आने वाले मित्रों जिसमें डॉक्टर उर्वी अग्रवाल भी को देर से आता देखकर आज वही ख़ुशी हुई (कोई भी मित्र बुरा न माने होली दूर है) ख़ैर हमारी प्रस्तुति कुछ यूं रही:

गीत
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तुम्हारे नाम का धागा, प्रिय फ़िर बाँध लेते हैं 
कि थोड़ा ही सही पर, ज़िंदगी को साध लेते हैं 
हमें मालूम है मुश्किल मग़र,उम्मीद है फिर भी 
भले किरदार हो उलझा मगर हम बांच लेते हैं 

कहानी कोई भी हो प्रेम की, लगती सभी इक सी 
यक़ी गर हो नहीं सुन लो, हँसी भी है हँसी जैसी 
जिसे कहना है जो कह ले, वही होगा जो होना है 
ज़माने से नहीं डरना, कि उसकी ऐसी की तैसी

क़सम लेते तो हैं लेकिन,कि बस एक आध लेते हैं
भले किरदार हो कैसा, उसे हम बांच लेते हैं 

तुम्हें मालूम है मेरी कहानी, फ़िर भी ले तू सुन 
कि जो अच्छा लगे हिस्सा तू उसमें से वही ले गुन
हमारा क्या हमें मालूम है, होगा नहीं कुछ भी 
तुम्हीं परखो तुम्हीं समझो,तुम्हीं उनमें से लो इक चुन

लगी दिल में जो बरसों से उसी से आँच लेते हैं 
भले किरदार हो उलझा मगर हम बांच लेते हैं 

सदा हमने सुनी दिल की तुम्हारे दिल की तुम जानो 
अगर नाराज हो हमसे कमान ओ तीर न तानो
भरोसा हो भले न जिंदगी का यार परसों तक 
हमीं वो हैं तुम्हारे काम जो आएँगे बरसों तक 

बशर कैसा भी हो हम देख उसको जाँच लेते हैं 
भले किरदार हो कैसा मगर हम बांच लेते हैं 

मेरी हर चाह तुमसे है, नया विश्वास तुमसे है
जो बाक़ी रह गईं अब भी, वो हर इक आस तुमसे है 
हुईं जो भूल भूले से, ग़िला उसका नहीं करना
मग़र ये सत्य भी जानो, कि हर उजलास तुमसे है 

अगर वरदान दे कोई तो पूरे पाँच लेते हैं 
भले किरदार हो उलझा उसे हम बांच लेते हैं 

तुम्हीं सर्वस्व हो मेरे,ये बिलकुल सत्य तुम जानो
कि मैं पहले जैसी हूँ ,मुझे अंतस से पहचानो
बुरा जो है भला उसका, हमेशा 'दीप' है करता 
यही है रीत सदियों से, इसे मानो कि ना मानो

        अंत में एक अच्छे और खूबसूरत कार्यक्रम के लिए टीम महफ़िल ए बारादरी को साधुवाद। और पूर्व की भांति इस बार भी समोसे, छोले चावल और स्वादिष्ट गाजर का हलवा। एक ब्राह्मण को इससे ज्यादा कि 
चाईदा।🙏🏾🙏🏾🙏🏾🌹🌹🌹🙏🏾🙏🏾

प्रदीप DS भट्ट 151224

          

Monday, 9 December 2024

"अति सर्वदा वर्जियेत"

रिपोर्ताज 
              "अति सर्वदा वर्जियेत"

"वफ़ा क्या है जफा क्या है मुझे तू क्यूं बताता है 
खफा होना है हो जा बेवजेह क्यूं तिलमिलाता है"

         सितम्बर 2022 में मेरे मित्र ने आग्रह किया कि साहित्योदय संस्था द्वारा अयोध्या में रामायण का आयोजन किया जा रहा है आप अवश्य भाग लें। मित्रों को मना करना शास्त्र सम्मत नहीं है🤪, इसलिए अगले दिन पंकज प्रियम जी से फ़ोन पर गूफ्तगू की और अजीवन कार्यकारी सदस्य के रूप में साहितोदय से जुड़ाव हो गया। शायद 19,20 नवंबर 2022 को कार्यक्रम होना था मैंने 17 नवंबर की लखनऊ की फ्लाइट की टिकट भी निकाल ली लेकिन अफ़सोस 14 की मध्य रात्रि मेरठ से फ़ोन आया कि अम्मा को हॉस्पिटल में भर्ती किया है जल्दी पहुंचो। हड़बड़ाहट में टैक्सी ली सीधे हैदराबाद एयरपोर्ट, फ्लाइट ली और दिल्ली फ़िर सीधे मेरठ लगभग 17,18 दिन बाद जब अम्मा स्थिर हुई तो विदा ली और वापिस हैदराबाद। वहां पहुंचने के कुछ दिन बाद ज्ञात हुआ कि इस प्रकरण में हैदराबाद लखनऊ की टिकिट कैंसिल करना ही भूल गया था, मेरे साथ ऐसा होता ही रहता है 2020 में तो कुछ ज़्यादा ही हुआ कुल मिलाकर 25000/= का फटका पड़ा। 😝😝😝

         जुलाई 2023 में मैं सेवा निवृत होकर मेरठ में आन बसा यदा कदा साहित्योदय का व्हाट्सअप देख लेता था किंतु मथुरा में कृष्णायन कब हुआ पता ही नहीं चला🙃  यही हाल शिवायन का भी रहा वो तो भला हो मेरी एक मित्र का जिन्होने व्यक्तिगत तौर पर फ़ोन किया कि शिवायन में तो जा रहे हो न। मैने ऐसे किसी भी कार्यक्रम की जानकारी से अनभिज्ञता ज़ाहिर की तो बोली यार तुम तो आजीवन कार्यकारी सदस्य हो तुम्हें कैसे जानकारी नहीं है हमने मोबाईल पर ही फ़िर मुंडी हिलाकर अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर की तो बोली पंकज से अभी बात करो। अब चूंकि मेरा जन्म रुड़की में हुआ है सो अपने आप को उत्तराखंड कहने में कोई गुरेज नहीं है। सो पंकज जी बात हुई और तय हुआ कि हम शिवायन में अपने हिस्से की साहित्यिक आहुति देने उपस्थित रहेंगे। पंकज जी ने पूछा था कि आप सत्र में रहेंगे या शिव पर कुछ पढ़ेंगे या दोनों में हमने दोनों के लिए हामी भर दी और 4 दिसंबर को टैक्सी लेकर सुबह 9.15 पर सीधे निष्काम सेवा ट्रस्ट पहुंच गए। कुछ देर बाद पंकज प्रियम से मुलाक़ात हुई तो हमने उन्हें सूचित कर दिया कि चूंकि मैं अपने लेखन से संतुष्ट नहीं हूं अतएव मैं अपना नाम वापिस लेता हूं किंतु किसी भी सत्र में सहभागिता कर सकता हूं।👏 डॉक्टर बुद्धिनाथ दादा एवम् आचार्य देवेंद देव जिनसे मैं झांसी कार्यक्रम में मिल चुका था के कर कमलों से विधिवत कार्यक्रम आरम्भ हुआ तत्पश्चात बारह ज्योतिर्लिंग के नामों से बारह ग्रुपों ने अपने अपने हिस्से की साहित्यिक आहुति डालनी शुरु की। 

         हर सत्र का एक अध्यक्ष 6,7,8  सदस्य और दो संचालक। कुल बारह सत्रों के लिए दो दिन आरक्षिति। 151 लोगों में से कुछ अनुपस्थित भी थे तो अगर मैं 110,120 भी उपस्थित सदस्य मानू तो कुल 120 रचनाएँ वो भी सिर्फ़ शिव पर आप ख़ुद ही सोचिए शिव के हाथ में त्रिशूल है, जटा में गंगा है, गले में सर्पों की माला, शरीर पर भभूत है आदि आदि। एक दो को छोड़कर सभी ने अपनी रचनाएँ इसी के इर्द गिर्द पढ़ीं। वो तो भला हो आशा शैली दीदी का जो हल्द्वानी से आई थीं और अपनी बेहतरीन ग़ज़ल से महफ़िल लूट ली। सामान्यतः मैं अनावश्यक रूप से सुझाव देने से बचता हूं किंतु साहित्योदय गीत गाने वाली किशोरी जी स्वर सुनकर लगा ही नहीं कि ये प्रोफेशनल गायिका नहीं हैं सो झिझकते हुए और इजाज़त लेकर सुझाव दे ही डाला कि आप अपनी आवाज़ का प्रोफेशनली इस्तेमाल करें बेहतर होगा लोकगीत। अब सुझाव तो उन्होनें मान लिया अब फलीभूत कब होगा राम जाने लेकिन मधुर स्वर को जाया नहीं जाना चाहिए।

         प्रथम दिन 6 सत्रों में से एक सत्र में डॉक्टर सविता मोहन जी ने अध्यक्षता की, संचालिका ने उनकी शान में इतने कसीदे पढ़े कि मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि मैं अब तक इनसे क्यूं नहीं मिला। 🙊🙊🙊लेकिन लेकिन लेकिन जब सत्र के सभी सदस्यों ने शिवलिंग पर अपने हिस्से की आहुति दे दी तो उन मोहतरमा ने माइक पकड़कर जैसे ही अपनी चोंच खोली मैं समझ गया ये पक्की लेफ्टिस्ट है, लोग दो मिनिट में ही असहज हो गए किंतु सविता जी अपनी चोंच को विश्राम देने के मूड में कतई नहीं दिखीं, 😩😩😩😩अनर्गल प्रलाप करती रहीं मैंने पास बैठे सज्जन से कहा अब अगर इन्होंने और प्रवचन दिया तो मैं...... शायद भोले मेरी और चल रही स्थिति से स्वयं असहज हो गए थे सो जैसे ही सविता जी ने अपने अनर्गल प्रलाप में मां गंगा की ठेकदार बनकर उद्घोष करने लगी कि गंगा को नहाकर मैली न करें एक मोहतरमा हत्थे से उखड़ गई और उन्हें खरी खोटी सुना डाली वे तुरन्त सतर्क हुईं और कवर करने की असफल चेष्टा करते हुए धन्यवाद कहकर अपनी सीट पर जा बैठी। एक सत्र में विजय कुमार द्रोणी जो कि gst में dy कमिश्नर हैं से इन मोहतरमा को सीख लेनी चाहिए कि मंच पर कैसा व्यवहार करना चाहिए विषयांतर होना अलग है और अपनी कुंठित मानसिकता का प्रदर्शन करना अलग।

         लंच के बाद अचानक गहमा गहमी बढ़ने पर मैंने भी उत्सुकता वश पीछे देखा तो पता चला ये पर्वतारोही संतोष यादव हैं, ख़ैर एंकर ने फ़िर गलत बताया कि ये भारत की प्रथम पर्वतारोही हैं जब कि प्रथम पर्वतारोही बछेंद्री पाल हैं जिन्होंने 1984 में प्रथम बार एवरेस्ट फतह किया था, संतोष यादव विश्व की प्रथम पर्वतारोही हैं जिन्होंने दो बार एवरेस्ट फतेह की है वो भी मई 1992 में एवं पुनः मई 1993 में।  किंतु किंतु किंतु संतोष यादव भी विषयांतर हो गईं उन्हें ये बताने में हर्ष हुआ कि वे बिहार से हैं किंतु फ़िर अपनी व्यक्तिगत नियमों कायदों को उपस्थित जन समूह पर थोपने का प्रयास करती नज़र अंत। ये जानने में किसी को इंट्रेस्ट नहीं है कि संतोष यादव सफ़ेद कपड़े ही क्यों पहनती हैं, वे साबुन क्यों नहीं लगाती, उनका ये कहना कि मैं उत्तराखंड के लोगों से कहती हूं कि आप दूसरे राज्यों से आए हुए लोगों के कपड़े न धोएं क्यों कि आप देव भूमि से हो वरन उत्तराखंड आने वाले सैलानी अपने साथ एक तौलिया दो चादर लेकर आवें। अगर सब ऐसा करेंगे तो उत्तराखंड के लोग क्या करेंगे जिनकी आय का महत्वपूर्ण हिस्सा सैलानियों से प्राप्त होने वाली आय ही है। गज़ब है ऐसी बुद्धिमता पर ✊✊।  ख़ैर प्रथम दिन की अंतिम प्रस्तुति के तौर पर दो बालिकाओं का नृत्य आकर्षक का केंद्र रहा।
         
         रात को स्वप्न में भोले नाथ ने दर्शन दिए मुझे लगा थोड़े गुस्से में हैं पूछने पर कहने लगे अच्छा हुआ तुमने कुछ नहीं पढ़ा वरना तुम्हें इस त्रिशूल से कोंच देते 
अगर कल भी यही सब हुआ तो...... आगे के शब्द उन्होंने जान बूझ कर हवा में तैरने के लिए छोड़ दिए। हमने सबकी ओर से क्षमा मांगी और बताया प्रभु कल भी यही सब होगा तो कहने लगे हम सुबह चार बजे ही गंगा स्नान कर पार्वती के साथ कैलाश को चले जाते हैं अन्यथा अगर कहीं हमें गुस्सा आ गया तो दस पाँच को समय से पहले ही अपने पास बुलवा लेंगे। 🤤🤤🤤हम आगे कुछ कहते इससे पहले ही बोले सुनो ये इन दोनों बुद्धिमान स्त्रियों को बता देना हरिद्वार में ज़्यादा प्रवचन न दें यहां सब पहले से ही ज्ञानी हैं कहीं ज्ञान उल्टा न पड़ जाए। हम पहले दिन की भांति सुबह उठे फ्रेश हुए और 8 बजे नाश्ता 🍰🍰🍰🥘🥘 पेट में डाल कर सुबह की ताज़ी हवा का आनंद लेने बाहर निकल पड़े। दूसरा दिन भी पहले दिन की ही तरह ठीक ठाक बीता। बस किसी ने भी अनर्गल प्रलाप नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड एवम् पूर्व राज्यपाल महाराष्ट्र भगत सिंह कोश्यारी जी के हाथों दो दीनी शिवायन का समापन हुआ। इसी अवसर पर पंकज प्रियम ने अगले वर्ष 2025 में 8 नवंबर को कुरुक्षेत्र में कृष्णायन की घोषणा कर दी साथ ही 
कृष्णायन में भागीदारों का लक्ष्य 251 लोगों का रक्खा। ख़ैर ये उनका अपना लक्ष्य है किंतु मेरा मानना है कि कम लोगों की भागीदारी रखने से कार्यक्रम में पकड़ बनी रहती है अन्यथा रायता फैलता ही है। कार्यक्रम कोई भी हो अर्थ तो लगता ही है।

         और अंत में इस कार्यक्रम की उपलब्धि के तौर पर प्रिय प्रेरणा सिंह एवम् अनुरानी शर्मा का बेहतरीन संचालन देखने को मिला। ऐसा इसलिए नहीं कि बाक़ी ने संचालन ठीक नहीं किया वरन इन दोनों ने ही मंच पर असहज होती व्यवस्था को बेहतर ढंग से संभाला। एक एंकर का यही श्रेष्ठ गुण होता है कि वह स्थिति को किन्हीं भी परिस्थितियों में अपने हाथ से जाने न दे। कुछ प्रस्तुतियां बेहद शानदार रहीं। कुल मिलाकर शिवायन की कुछ मधुर स्मृतियों में संस्कृति मिश्रा, बुद्धिनाथ दादा से मिलन। बाकी सब चंगा है जी।😄😄😄😄😄😄😄😄

अंत में साहित्योदय उत्तराखंड की अध्यक्ष शोभा पाराशर एवम् सचिव अर्चना झा एवम् उनकी टीम( बाक़ी सदस्य क्षमा करें, उनसे मिलना नहीं हुआ तो नाम नहीं मालूम) द्वारा किए गए प्रयासों इंतज़ामों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं!!!!!🌹🌹🌹🌹🌹


प्रदीप डीएस भट्ट 91224