चीन की सभ्यता दुनिया की पुरानी सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। इसका इतिहास लगभग तीन हज़ार वर्ष पुराना है। चीन का आधिकारिक नाम झोंग्गुआ जिसका अर्थ मध्य साम्राज्य या केंद्रीय राष्ट्र है किंतु पश्चिमी देशों द्वारा इसे कई नामों से जाना जाता है जिसमें सिनो या सिना सिने कैथे लेकिन इसका प्रचलित नाम चीन ही है। यूं तो चीन कभी किसी देश का गुलाम नहीं रहा किंतु अंग्रेजों ने उसे 1840 में अर्थ उपनिवेश अवश्य बनाया था।1911 में डॉक्टर सतयान सेन के नेतृत्व में अंतिम छींग वंश का तख्ता पलट कर चीन लोक गणराज्य की स्थापना की गई । सत्तारूढ़ कोमिंग तांग के कुशासन का अंत कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा 1949 में किया गया जिससे चीनी जनता को कुछ हद तक राहत मिली किंतु सही अर्थों में चीन को स्वतंत्रता द्वितीय विश्वयुद्ध 1939-45 के बाद ही नसीब हुई। किंतु चीन को पूरी तरह अंग्रेजों से मुक्ति 1 जुलाई 1997 को मिली जब हॉन्गकॉन्ग पूरी तरह चीन के नियंत्रण में आ गया इस तरह 1841 से शुरु हुए ब्रिटिश शासन का अंत अंततः 1997 में हो गया यानि कुल 146 वर्ष की परतंत्रता। उस समय चीन की स्थिति बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं थी। चारों तरफ़ सामान्य से सामान्य चीज़ों का भी अभाव था किंतु विस्तारवाद का कीड़ा तब भी चीन के शासकों में अन्दर तक धंसा हुआ था। इसी का परिणाम था 1962 में भारत पर चीन द्वारा आक्रमण का किया जाना था। तत्कालीन भारत सरकार की गलत और गलत फहमी पूर्ण नीतियों के कारण भारत को पराजय का मुंह देखना पड़ा। ये एक ऐसा झटका था जिससे भारत को उबरने में काफ़ी वक्त लगा। हालांकि भारत द्वारा 1967 में नाथुला की संक्षिप्त लड़ाई में चीन पर बढ़त लेने से भारतीय सेना का मोराल काफ़ी हद तक कवर हुआ किंतु असली मोराल डॉकलाम विवाद पर भारत की प्रतिक्रिया से ज्यादा पैदा हुआ।
1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया दो खेमों में विभक्त हो गई थी, एक खेमा अमेरिका के संग था तो दूसरा सोवियत संघ के साथ यानि कि दुनिया के शेष देश किसी एक महाशक्ति के साथ रहने के लिए अभिशप्त थे किंतु कुछ देश थे जो इन दोनों महाशक्तियों के साथ नहीं रहना चाहते थे। सोवियत संघ और अमेरिका दोनों बाक़ी देशों को अपने अपने हिसाब से प्रलोभन दे रहे थे ताकि वे विश्व पटल पर अपने आपको अजेय योद्दा दिखा सकें। इसी कड़ी में तीसरा विश्वयुद्ध न हो इसके लिए यू एन ओ की स्थापना की गई जिसमें प्रमुख पांच देशों का दख़ल तय था इसलिए अमेरिका की तरफ़ से भारत की दावेदारी को इस लिहाज़ से महत्वपूर्ण माना गया कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है एवम् जनसंख्या के हिसाब से भी चाइना के बाद भारत ही दूसरे नंबर पर था किंतु धन्य हो उस समय की विदेश नीति जिसे तत्कालिक सरकार द्वारा नकार दिया गया और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रख दी यानि वे देश जो न अमेरिका के पक्ष में थे न सोवियत संघ के पक्ष में तो वो देश बन गए तीसरी दुनिया के देश। अब चूंकि अमेरिका सोवियत संघ से शक्ति संतुलन साधना चाहता था तो उसने चीन को बढ़ावा दिया। नतीजतन चीन माओ से तुंग के नेतृत्व में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा और आज चीन विश्व की सबसे बड़ी फैक्ट्री बनकर उभरा है। ज़रूरत पूरी हुई तो पेट भरा, पेट भरा तो सपने बड़े होने लगे और उन सपनों को पूरा करने में विश्व के देशों से हो रही पैसों की बरसात में उसकी पुरानी आकांक्षा यानि विस्तारवाद फिर सिर उठाने लगा। आज जो चीन है उसका उभार 1966 से 2020 यानि 54 वर्षों में हुआ है। अमेरिकी लडाकू विमानों की नकल करके चीन अब छटी पीढ़ी के लडाकू विमान बनाने की ओर अग्रसर हैं वहीं भारत पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने की ओर प्रयास रत्त है। फ़िलहाल भारत के पास फ़्रांस से प्राप्त राफेल लड़ाकू विमान हैं जो कि 4.5 पीढ़ी के हैं अच्छी बात ये है कि अब ये विमान भारत में ही निर्मित होंगे।
चीनी सिनीजाईनेशन
---------------------------
1978 में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना शुरू किया और सुधारी करण की नीति का पालन किया। 1980 तक आते- आते पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में चीन अव्वल होकर निकला। 2022 की रिपोर्ट के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 18 ट्रिलियन डॉलर था जिसके बदौलत चीन के पास पैसे की भरमार हो गई है तो उसका ध्यान चीन के विकास तक सीमित नहीं रहा है पिछले 40-45 सालों में लगभग पूरे चीन में सड़कों, पुलों, ट्रेन ट्रैक का जाल बिछ गया है यही हाल हवाई अड्डों का भी है। चीन अब विकसित हो चुका है एक अनुमान के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था का आकार इस समय लगभग 19 ट्रिलियन डॉलर है जिस कारण वो अब उस अमेरिका को भी आँखे दिखाने लगा है जिसने उसे इस मजबूत स्थिति में खड़ा करने में मदद की। यही का कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में विश्व के कई देश चीन की विस्तारवादी नीतियों से खासे परेशान हो गए हैं जिस कारण बड़ी बड़ी कम्पनियों ने अपना कामकाज समेटना शुरू कर दिया है और उनका पसन्दीदा डेस्टिनेशन भारत बन गया है। 1995 से चीन ने 11वें पंचेन लामा गेदुन चेकई न्यीमा एवं अन्य राजनैतिक लोगों को अपने यहाँ बंदी बनाया हुआ है जिनकी रिहाई के लिए लगातर निर्वासित तिब्बती संसद जो कि भारत में है, समय समय पर अपनी आवाज़ बुलंद करती रहती है। इस संसद का आरोप है कि चीनी सिनीसाईजेशन जिसका एक ही सूत्र है कि तिब्बती लोगों को चीनी संस्कृति अपनाने के लिए मजबूर किया जाए न मानने की स्थिति में जुल्मों सितम की एक कभी ख़त्म न होने वाली दास्तान से सामना। तिब्बती लोगों का कहना है कि तिब्बत कभी भी चीन का हिस्सा नहीं रहा।फिर भी चीन है कि तिब्बत के मुद्दे पर भारत से भी
भिड़ता रहता है। रूस, मंगोलिया, किरगिस्तन, कजाखस्तान, म्यांमार, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया,ताजिकिस्तान नेपाल से सीमा विवाद में उलझा हुआ है पिछले दो तीन वर्षों में उसने ताइवान को हड़पने की भरकस कोशिश की है वो जब तब ताईवान के आकाश में अपने फाईटर प्लेन भेजकर उसे धमकाने की कोशिश करता रहता है किन्तु अमेरिका के सपोर्ट के कारण वो ताईवान का कुछ भी बिगाड़ नहीं पा रहा। इन सबके बावजूद भी एशिया में दूसरे ताकतवर देश भारत से नए नए विवाद में उलझता ही रहता है।
अब आते हैं चीन की नई खुराफात पर, चीन ने अभी हाल में अपनी संसद में एक प्रस्ताव पारित कर ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा डैम या बांध बनाने की घोषणा कर दी है। चीन में भारत को तीआंझू के नाम से भी जाना जाता है इसका अर्थ आदर्श स्थान या स्वर्ग जैसी भूमि का स्वामी होता है। इसके अलावा भी चीन में भारत को यिन- तू कहकर भी पुकारा जाता है। चीन में बौद्ध धर्म सर्वाधिक है के अतिरिक्त ताओवाद, इस्लामिक, कैथोलिक, प्रोटेंस्टेटवाद एवं कन्फ्यूशियस वाद प्रचलित है किन्तु जब से जी शिनपिंग सत्ता में आए हैं वहां धर्म को चरस कहा जाने लगा है जिसको मानने का मतलब चरस का नशा माने जाना लगा है। इससे पहले कि मैं इसके पक्ष विपक्ष में अपने विचार व्यक्त करूं हमें ये जान लेना ज़रूरी है कि चीन में किसी भी देश की अपेक्षा लगभग 98000 छोटे बड़े बांध हैं जिनमें विश्व का सबसे बड़ा बांध थ्री गोरजेस भी शामिल है। जिससे वह 88.2 बिलियन किलो वॉट घंटा की विद्युत उत्पन्न करता है। इसमें 39.3 KM या 31,930,000 एकड़ फीट पानी मौजूद है इसका कुल क्षेत्रफ़ल 1045 कम है। इसके बनने के बाद पृथ्वी के घूमने की गति 0.06 माइक्रो सेकेंड का अंतर आ चुका है जिसकी पुष्टि नासा ने भी की है। वैसे दुनिया का सबसे ऊंचा जिनपिंग प्रथम आर्च बांध है जिसकी ऊंचाई 305 मीटर या 1001 फीट है वहीं दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा तटबंध बांध 300 मीटर या 984 फीट नूरेक बांध तजाकिस्तान में है।जहां तक भारत का प्रश्न है तो आज भी भाखड़ा नांगल डैम दुनिया का सबसे ऊंचा तथा सीधे ग्रैविटी वाला बांध है वैसे सबसे बड़ा बांध हीराकुंड है जिसकी लम्बाई 25.8 किलोमीटर है। यह बांध इंजीनियरिंग का अदभुत नमूना माना जाता है जिसे उड़ीसा में 1957 में बनाया गया था। जहां तक टिहरी बांध का प्रश्न है तो यह उत्तराखण्ड में बना है जिसकी ऊँचाई 260.5 मीटर है इसे गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी तथा भीलगंगा नदी पर बनाया गया है। यह दुनिया का सबसे लम्बा मिट्टी का बांध है। टिहरी बांध को स्वामी रामतीर्थ सागर बांध भी कहते हैं।
जब से चीन ने विकासवाद की उड़ान भरी है तब से उसे कुछ भी अनुचित नहीं लगता इसका जीता जागता उदाहरण 1979 में दिखाई दिया जब आंदोलन कारी छात्रों पर चीनी सेना ने टैंक चढ़ा दिए थे 1978 में वियतनाम द्वारा बीजिंग से अलग होकर मास्को से 25 सालों के सोवियत रूस के साथ एक पारम्परिक रक्षा समझौता कर लिया साथ ही वियतनाम ने कम्बोडिया में कठपुतली माओवादी कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ़ युद्द का ऐलान कर दिया परिणाम स्वरूप चीन ने कम्युनिस्ट वियतनाम के खिलाफ़ युद्द शुरू कर दिया और लगभग 2,20,000 सैनिकों को युद्ध के मैदान में उतार दिया इस युद्ध में चीन और वियतनाम दोनों को ही भारी नुकसान हुआ । चीन ने जहां इसे वियतनाम के खिलाफ़ दंडात्मक कार्यवाही बताया वहीँ वियतनाम ने इसे अपनी सम्प्रभुता से जोड़कर देखा। यानि पैसा आया तो पॉवर आई और पॉवर आई तो विस्तारवादी नीति आई और इसका खमियाजा भुगतने के लिए उसके पड़ौसी अभिशप्त हैं। आए दिन चीन कुछ न कुछ ऐसा करता रहता है जिससे पूरे विश्व की आँखों में वो खटक जाता है फिर चाहे वो पाकिस्तान के रास्ते उसका महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट CPEC जो कि 3000 KM लम्बा है बना रहा है वहीं वह श्रीलंका को कर्ज़ देकर लगभग कंगाल कर चुका है वो तो भला हो भारत का जिसने समय रहते श्रीलंका को सम्भाल लिया लेकिन चीन हर गरीब देश को कर्ज दे रहा है जब वो देश कर्जा उतारने में असमर्थता व्यक्त करता है तब चीन उसके संसाधनों पर कब्ज़ा जमा लेता है मतलब कि ब्रिटेन की तरह चीन भी वर्तमान में उपनिवेशवाद की राह या चाह पाले हुए है।
अब जब चीन ने एक ट्रिलियन डॉलर यानि करीब 137 अरब डॉलर की लागत से नए बाँध बनाने का फैसला कर लिया है तो इससे सबसे ज्यादा खतरा भारत और बांग्लादेश को है, विपरित परिस्थितियों में चीन नए बाँध से भारत में क्रत्रिम बाढ़ ला सकता है जिससे भारत के अलावा इसका असर बांग्लादेश पर भी पड़ना तय है। य़ह बाँध वह यारलुगां जंगबो ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम पर बन रहा है ब्रह्मपुत्र यार लूंग नदी तिब्बत के पठार से होlकर बहती है। यारलूंग या भारतीय नाम ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलकर भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बांग्लादेश को सेती है। चीन की ये परियोजना दुनिया की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है। यार लूंग जंगबो नदी पर जल विद्युत परियोजना इंजीनियरिंग की विषम चुनौतियों से भी सामना करना पड़ेगा ऐसा इसलिए कि ये पूरा हिमालयी क्षेत्र टेक्टॉनिक प्लेटो पर टिका हुआ है। और इस क्षेत्र में भूकंप आना नई बात नहीं है हाँ ये बात अलग है कि जब ये बाँध कम्प्लीट हो जाएगा तो चीन को इससे 300 अरब किलोवाट से अधिक की बिजली मिलेगी जो कि वर्तमान थ्री गोरजेस बाँध के 88.3 से तीन गुने से भी ज्यादा है। जहाँ तक भारत का प्रश्न है भारत ने चीन के साथ सीमा पार नदियों से सम्बन्धित विभिन्न मसलों पर चर्चा करने के लिए 2006 में स्पेशल लेवल मैकेनिज्म की स्थापना की, वैसे चीन बाढ़ के मौसम के दौरान भारत को ब्रह्मपुत्र नदी और सतलुज नदी पर जल विज्ञान सम्बन्धित जानकारी साझा करता रहा है। निश्चित रूप से चीन का एक मात्र मकसद विद्युत उत्पादन मात्र नहीं है बल्कि वह इस बाँध के द्वारा सैनिक शक्ति का प्रयोग भी करना चाहता है मतलब युद्ध जैसी स्थिति में चीन इस बाँध से अतिरिक्त पानी छोड़कर भारत को परेशान कर सकता है।
अब प्रश्न यह है कि यदि इस बाँध के निर्माण को लेकर चीन की मंशा ठीक नहीं है तो भारत इस विषय में बचाव के लिए क्या कर रहा है। भारत सरकार इसके प्रतिउत्तर में सियांग परियोजना लेकर आ रही है। सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना के पूरा होने पर इससे न केवल विद्युत उत्पन्न होगी बल्कि चीन की ओर से किसी भी दुस्साहस करने पर यदि वह पानी छोड़ता है तो वह पानी भारत द्वारा बनवावाए गए बाँध में किसी हद तक समाहित हो जाएगा। इस बाँध में 9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा हो सकता है। यदि चीन पानी छोड़ता है तो यह पानी बफर के रूप में कार्य करेगा। इससे पूरे साल नदियों में पानी का प्रवाह एक जैसा रहेगा। यानि कुल मिलाकर भारत न सिर्फ अपनी प्रतिरक्षा की तैयारी कर रहा है बल्कि वह अपने पड़ौसी बांग्लादेश का भी ख्याल निरन्तर रख रहा है। जहाँ तक भारत और चीन की विदेश नीति के तुलनात्मक अध्ययन की बात है तो चीन दूसरे देशों को खा जाने में विश्वास करता है वहीँ बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हुए घनघोर अत्याचारो के बावजूद आज जब वहाँ अन्न का संकट उत्पन्न हुआ तो भारत ने मानवीय सम्वेदना को ध्यान में रखते हुए आलू प्याज के अतिरिक्त 25 हजार टन चावल भिजवा रहा है वो भी बिल्कुल निःशुल्क।
प्रदीप डीएस भट्ट-301224