प्रिय
पाखी,
किसी
को भौतिक रुप से (जिसे पैसे से खरीदा जा
सके) उपहार देने मात्र से प्रेम पदर्शित करना आम है। सभी अपनों के लिए किसी न किसी
रुप में अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं। उन भावनाओं को व्यक्त करने का तरीका भी यही
है कि किसी अपने प्रिय को कोई उपहार दिया जाए ताकि उसे प्रसन्न किया जा सके जिससे
सम्बंधित को लगे कि उसे उसकी कितनी फिक्र है (इश्क है या नहीं ये अलग विषय हो सकता
है) सामान्यत: इस प्रकार की भावनाएँ भौतिकवाद के पंजे से बच नहीं पाती और सम्बंधों
में थोडी सी भी तल्खी आ जाए तो विवाद सत्य नारायण की कथा की तरह ज्यादा से ज्यादा
पाँच अध्यायों तक ही चल पाते हैं, अन्यथा एक दो अध्याय
में ही रिश्तों की इति श्री हो जाती है और फिर सिलसिला चल पडता है एक दूसरे को
नीचा दिखाने या शर्मिंदा करने का “किसने किससे कितना झूठ बोला ये सब रिश्तों
में खटास आने के बाद ही शुरू होता है” अन्यथा मीठा मीठा गप्प गप्प कडवा कडवा
थू थू)। शायद एक हद के बाद लोग रिश्तों में तल्खियाँ बरदाश्त नहीं कर पाते जो कि
स्वाभाविक प्रक्रिया है। कभी कभी तो बात दिया गया उपहार वापिस माँगने तक भी आ जाती
है (टीन एज़ बच्चे या तुम्हारे शब्दों में पौधे) मैंने इस सच्ची घटना को एक
कहानी में ढालने का प्रयास किया है।(आजकल कविताओं के साथ- साथ कहानियाँ भी लिख रहा
हूँ) (स्ट्र्म्ब्लिंग दी रॉक नॉट गैदर मॉस यानि जो पत्थर लुढकता ही रहता है उस
पर कभी काई नहीं जम पाती) वो काई ज्ञान की भी हो सकती है और प्रेम की भी। प्रेम तो सभी करना तो चाह्ते हैं लेकिन कोई
प्रेम को समझना नहीं चाहता (सब कुछ पाने की जल्दी जो ठहरी)। समझना मुश्किल होता है
किसके दिल में क्या है। खैर अच्छी बात ये है कि 15 अप्रैल-2022 से पहले मैं इन
सबसे बचा रहा क्यों कि जीवन में इतनी तल्खियाँ थी कि उन्हें बयाँ करना मुश्किल है।
ईश्वर की कृपा रही कि इन तल्खियों /बदतमिज़िओं के
बाद भी मुझे औरत जात से नफरत नहीं हुई (एक को छोडकर)। किंतु 9 अगस्त -2022
से तकलीफों का जो सिलसिला चल रहा है उसमें कुछ तकलीफ लेकर 26 अगस्त से तुम भी
शामिल हो गईं अशंकित या सशंकित मन के साथ्। तुम्हारे मन में क्या है तुम जानो। मैं
आज भी 15 अप्रैल वाला ‘पा’ ही हूँ।
‘तुम ढूँढो खुशिया अपनी पैसों में,और मैं ढूँढू बस तुम में ’ तुम्हें शायद बुरा लगा था, किंतु जब 13 सितम्बर को पार्सल मिलने के बाद तुमने दोनों भावयुक्त मेसैज (ऊपर वाला मैंने लगभग पढ लिया था किंतु दूसरा पढने से पहले ही........तुमने मैसेज डीलीट कर दिये मुझे निश्चित रुप से बहुत खराब लगा और गुस्सा भी आया। उस दिन अच्छा नहीं लगा। ( क्या डर था या है) मैं तुम्हें तुमसे बेहतर समझ सकता हूँ। फिर तुम बार बार पैसे भेजने के लिए कह रही हो, क्यूँ, हम जिस रिश्ते में हैं उसमें पैसा इतना महत्वपूर्ण कैसे और कब हो गया। पाखी उन दोनों ही दिनों में मैं बहुत ज्यादा व्यथित हुआ। तुम मुझे पाकर गौरवांवित महसूस करती हो मैं तुम्हें, वास्तव में मैं तुम्हारे लिए खास ही हूँ । “न भूतो न भविष्यते”15 अप्रैल से 26 अगस्त तक कुछ भी झूठ नहीं था सब कुछ शीशे की तरह साफ है। तुम्हारे शब्दों में तुम्हें किसी ने आज तक पाँच रुपये ऑफर नहीं किये उल्टे तुम्हारा तन, मन धन सब कुछ लूट कर चलते बने। और मैं तुमसे धन नहीं केवल भावनाएँ (भविष्य में कभी मैसेज डीलिट मत करना) चाहता हूँ। तुम्हें महादेव की सौगंध खाकर वचन दिया था कि स्थिति परिस्थित कुछ भी हो मेरे लिए तुम सर्वोपरि रहोगी, मैं आज भी तुम्हें वचन देता हूँ मैं तुम्हारा साथ कदापि कदापि नही छोडूँगा और मैं इस पर दृढ प्रतिज्ञ हूँ। भगवान को मानती हो तो विश्वास करना भी सीखो, उन्होंने ही हम दोनों को 15 अप्रैल को मिलवाया, 16 को हम दोनों को ही पता था कि हम एक दूसरे के पूरक बन गये हैं। आख्रिर कब तक खुद को आजमाती रहोगी। तुम अच्छी तरह जानती भी हो और मानती भी हो कि तुम्हारे जीवन में मुझसे ज्यादा अच्छा और लॉयल कोई नहीं हो सकता। तुम मेरा पहला और अंतिम प्रेम हो। जैसे मैं टिम्सी के जाने के बाद हर लडकी में टिम्सी को ही देखता हूँ वैसे ही जब भी किसी महिला से किसी प्रोग्राम में मिलता हूँ तो तुरंत तुम्हारा हँसता मुस्कुराता चेहरा सामने आ जाता है। अगर मैं अच्छा और सच्चा नहीं होता तो तुम कदापि मेरा वरण नही करती। ये अलग बात मैं इस अच्छे पन की कीमत पिछले तीस पैतीस साल से अदा किये जा रहा हूँ। तुम्हारे हिस्से के अच्छे पन की कीमत भी मैं ही चुकाउँगा।
“झूठ
धूप की लग जाती जब रिश्तों में
कर्ज़ चुकाना पडता है तब किश्तों में”
जिस रिश्ते की शुरुआत झूठ पर टिकी हो
वो रिश्ता ज्यादा दिन चल नहीं सकता मैंने तो फिर भी लगभग तीन दशक चला दिया। ये
जानते हुए भी कि सामने वाला एक झूठ छुपाने के लिए दूसरा झूठ बोल रहा है मैंने कभी
किसी का भी झूठ उसको बताकर शर्मिंदा नहीं किया, रिश्तों
की मर्यादा यही कहती है। वरना रिश्ते जुडते कम हैं और टूटने ज्यादा लगते हैं। कहीं
न कहीं टिम्सी का भविष्य सब कुछ सह लेने को बाध्य करता रहा जो कि ठीक भी था किंतु
अब उसे गये हुए भी साढे सात वर्ष हो चुके हैं। पिछले साढे सात सालों में स्थिति
पहले से कहीं ज्यादा भीषण हो गई हैं। बहुत सारा अच्छा पन बाकी था इसलिए कहा नहीं
सिर्फ सहा, फिर कहता भी किससे? फिर 15 अप्रैल को तुम मेरे जीवन में आईं और थोडे
दिनों में ही हम दोनों की दुनियाँ बदल गई। मुझे लगा ये वही है जिसकी कमी मेरे
अंतर्मन में बरसों से रही है और निश्चित तुम्हारी सोच भी ऐसे ही थी। जानती हो हम
दोनों में शायद एक ही फर्क है मैं तकलीफें झेलते झेलते पिछले 30 वर्षो में ज्यादा
धैर्य धरना सीख गया हूँ। इसलिए आज तक हँसता रहा मगर अंदर से घुटता रहा। कभी कभी मन
में आता है मरने से पहले उन दुष्टों को अच्छा सा सबक सिखाउँ जिन्होंने तुम्हें
तल्ख अनुभव दिये हैं (शायद ऐसा करूँ भी)
“मुझे पता है कभी-कभी मैं लास्ट हो जाती हूँ
और कभी कभी बहुत रुड भी हो जाती हूँ
कभी कभी एक
दम से बात को खत्म कर देती
हूँ। कभी-कभी
अच्छी तरह से बात सुनती भी
नहीं हूँ। इन
सभी चीज़ों के लिए दिल से माफी
मांगती हूँ आपकी पंक्तियां हैं” जैसा हूँ स्वीकार करो”
शायद
तुमने कुछ ऐसा ही बताया था या लिखा था,सोचा
था इन पंक्तियों को एक नज़्म का रुप दूँगा लेकिन
मूड बना ही नहीं और इसे छोडकर तुम्हारे लिए काफी कुछ और लिख डाला लेकिन एक
बात सत्य है “ मैंने तो तुम्हें 15 अप्रैल की साँझ को ही स्वीकार कर लिया था वो भी
बिना किसी इफ या बट के या हिंदी में बिना लाग लपेट के। रिश्तों में कमियाँ खोजने
या निकालने का मुझे कोई शौक नहीं वरन कमियों को सामने वाले को बताए बिना दूर करने
का प्रयास करता हूँ। मुझे स्वंय पर प्रभु पर ( अब तो देवी माँ के दिन चल रहे हैं,
आज छ्टा दिन है। तुमसे आज तक कभी झूठ नहीं बोला न ही बोलूँगा| मेरे हिसाब से रिश्ते में झुठ के लिए कोई जगह होती भी नहीं )और तुम पर भी
अगाध विश्वास है लेकिन एक बात कहूँ
तुम्हें झूठ बोलना भी नहीं आता, और फिर बोलना भी क्यूँ है और
वो भी मुझसे।
अब बात करते हैं तुम्हारे अवतरण दिवस की। ये तो निश्चित था कि मैं तुम्हारे अवतरण दिवस को ग़्रांड तरीके से सेलिब्रेट करना चाहता था। नो डाउट उसमें भौतिक पदार्थ भी शामिल रहेंगे, ये मेरी प्रबल भावना थी कि तुम्हारा जन्मदिन तुम्हारे साथ सेलीब्रेट किया जाए इसलिए जून से ही प्लान किया था कि 9 अक्टूबर को रामेश्वरम या सोमनाथ जायेंगे, वहाँ पूरे विधी विधान से पूजा अर्चन करेंगे अगर सम्भव हुआ तो दोनों बच्चे साथ होंगे) फिर 9 अक्टूबर को वडोदरा किसी होट्ल में तुम्हारी मनपसंद पार्टी। लेकिन...............। सो जो करने सोचा है वो सोमनाथ या रामेश्वम न होकर हैदराबाद का पद्दमागुड्डी मंदिर में 9 अक्टूबर-2022 को प्रात: 9 बजे तुम्हारे नाम की विशेष पूजा होगी। इसलिए मई माह के अंतिम सप्ताह में तुम्हारे लिए साडियाँ मँगाने का आर्डर दिया था ( तुम्हें सरप्राइज़ देने का मन था) लेकिन साडियाँ, कोलॉज, ग्रीटिंग ,ये सब तो भौतिक है न तो गोवा के दो दिनों और कुछ 26 अप्रैल तक-2022 के दिनों तक की मधुर स्मृतियों को एक नज़्म का रुप दे दिया है फिर यूँ ही ख्याल आया कि ये तो औरों ने भी किया होगा तुम्हारे लिए तो कुछ नया क्या जो मन को संतोष देने वाला हो वो सभी करना चाहिए। तभी एक विचार मन में कौंधा वैसे भी मैं तुम्हारे जन्म दिन पर कुछ विशेष करना भी चाहता था सो याद आया कि तुम्हें तो शुगर है (और तुम ठहरी चटोरी) सो ये निश्चित किया कि, 9 अक्टूबर-2022 को तुम्हारे नाम से मंदिर में विशेष पूजा कराई जाए, प्रसाद ग्रहण किया जाए और जीवन पर्यंत के लिए चीनी बंद, आइस्क्रीम बंद, दुग्ध वाली चाय बंद,कोल्ड ड्रिंक मैं वैसे भी नहीं के बराबर पीता हूँ वो भी बंद्। (टिम्सी के जाने के बाद मैं वैसे भी मैं मखाने की खीर खाना बंद कर चुका हूँ)। और हाँ 26 सितम्बर से सुबह ब्रंच और शाम को बस एक रोटी,दाल, चावल या दलिया) तुम्हें लग रहा होगा ये सब करके मैं पाखी को प्रभावित करने के लिए कर रहा हूँ। नहीं प्रिय पाखी मेरा बस चले तो तुम कुछ फरमाइश करो और मैं उसे पूरी करने में लग जाऊँ बस्। एक बात का अहसास अवश्य हुआ कि प्रेम में देने में जो आनंद है वो कुछ भी पाने में नहीं।
“जवानी
कट गई कटनी थी जैसी, बुढापा संग तेरे काटना है
जो
गम बाकी बचे दामन में तेरे,उन्हें अब
संग मिल के बाँटना है”
मैं इस तीस साल पुराने रिश्ते में अब एक
क्षण भी रहने का इच्छुक नहीं हूँ बदतमिज़ियों और टेंशन से हालात ये हो गई है कि कभी
कभी लगता है सर दो भागों में विभक्त हो जाएगा। सो इस बार मेरठ गया तो सबसे पहले
अम्मा से माफी माँगी। बारिश के कारण बस एक दिन ही दो तीन लोगों से मिलना हुआ। सो अम्मा
को पहली बार अपनी व्यथा बता दी, (पूरे
परिवार ने इन व्यथाओं को बहुत झेला है) अम्मा के साथ एक बात शेयर की कि
रिटायर्मेंट तक जिंदा रहा तो ठीक अन्यथा मैं बाद में कहीं भी सब कुछ छोड कर चला
जाउँगा। मेरी हालात देककर ही अम्मा ने कहा भाई बस तू कुछ गडबड मत करियो, जहाँ तेरे जी को चैन पडे वहाँ रह्।
खैर एक निश्च्य किया है कि जून के बाद (अगर कुछ होनी न हुई तो) जून के बाद
वडोदरा शिफ्ट हो जाता हूँ। कम से कम ये तसल्ली तो रहेगी कि पाखी के पास हूँ।सो अब
जीवन पर्यंत पाखी के साथ रहना है या............. लेकिन उससे पहले अपना लिखा सब
कुछ एक पार्सल में भरकर पाखी को भेज दूँगा। यदि सम्भव हुआ तो पेंशन पेपर्स में
तुम्हारा नाम डलवा दूँगा (इसको ये भी नहीं दूँगा) साथ ही कुल जमा पूँजी की एक
वसीयत जिसमें चार हिस्सों में एक एक हिस्सा दोनों भाइयों को, एक हिस्सा तुम्हारा और एक हिस्सा प्रशु की शादी के लिए वो भी सुरक्षित
तुम्हारे हाथों में। टाइप करते करते याद आया आज सुबह करीब 05:15 पर आँख खुल गई,
छोटी टिम्सी को बाँह फैलाए अपनी तरफ आते देखा फिर पता नहीं वो कहाँ
विलीन हो गई। (वो तीसरे नवरात्र को गोलोक वासी हुई थी) जीवन में पैसे की बहुत तंगी
देखी है लेकिन तुम अच्छी तरह जानती हो मुझे फिर भी पैसे से कोई मोह नहीं है। मेरे
पास करोडों अरबों हों और उसको भोगने के लिए पाखी न हो तो क्या फायदा है ऐसे पैसे
का। मैंने अपनी सारी भावनाएँ अपने सारे
सपने सिर्फ और सिर्फ तुम तक सीमित कर दिये हैं ।टिम्सी के बाद सिर्फ तुम्हीं हो
(शिव से पहले कुछ नहीं था बाद शिव के सिर्फ तुम हो- एक पुरानी कविता की पंक्ति याद
हो आई)तुम जानती हो मैं अपने निश्च्य पर अटल रहता हूँ। मेरा तुम्हारा रिश्ता ऐसा
नहीं जो हल्की सी आँधी से उडकर कहीं दूर जा गिरे। मैं पिछले एक माह से महसूस कर
रहा हूँ कि प्रेम में विछोह क्या होता है, तुमने तो वो झेला
है... मैं रिश्तों में कमजोर नहीं हूँ। “मैं राखी के बंधन में पति बनके बहुत
खुश हूँ” स्थिति परिस्थिति कुछ भी रहे, पाखी को लेकर कोई
समझौता नहीं।हम अपनी मर्ज़ी से इस रिश्ते में आए हैं न, पैसा
जाता है जाए, जीवन जाता है जाए लेकिन पाखी नहीं, कभी भी कभी नहीं! ये तीसरे पहर का सशक्त प्यार है।
तुम्हारा
(प्रदीप भट्ट)