Saturday, 14 July 2018

झिरिया -पानी पानी पानी

                                  “झिरिया
(पत्थरों के बीच अस्थायी गढ्ढे खोदकर पानी निकालना )
पाषण युग में बसे मुंबई शहर की कहानी भी अजीब है। 225 ईसा पूर्व इसे हैप्तानेसिया के नाम से पुकारा जाता था तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इस द्वीप समूह मौर्यों के साम्राज्य का एक विशिष्ट भाग रहा ।इसके बाद सिल्हारा वंश के हिंदू राजाओं ने इस पर शासन किया तत्पश्चात इस पर गुजरात के राजा ने इस पर अधिकार कर लिया।1534 में इस द्वीप को पुर्गालियों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया जिसे बाद में इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय को इसे उपहार स्वरूप प्रदान कर दिया गया। इसके बाद बड़ा फेर बदल 1668 में हुआ जब ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी को इसे नाम मात्र के 10 पौंड में पत्ते पर दे दिया गया । 1661 में इस द्वीप की आबादी मात्र 10 हजार ही थी। किन्तु 1675 आते आते इस द्वीप की आबादी आश्चर्यजनक रूप से 60 हजार हो गई ।इसी दौरान ईस्ट इण्डिया कंपनी ने सूरत से अपना मुख्यालय बम्बई में शिफ्ट कर लिया। 1817 से सभी द्वीपों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य प्रारम्भ हुआ जिसमें सिविल कार्यों  द्वारा पुनर्स्थापन किया गया । इस परियोजना को होर्न्बोय वेल्लार्ड के नाम से पुकारा गया जो 1845 में पूर्ण हुआ। सभी द्वीपों को आपस में जोड़ने से इसका क्षेत्रफल लगभग 431 किलोमीटर के लगभग बैठता है ।इंग्लैंड से माहरानी मैरी  व जोर्ज पंचम के आगमन को उत्सव में तब्दील करने के उद्देश्य से ही 2 दिसम्बर 1911 को गेटवे ऑफ इण्डिया का निर्माण कार्य शुरू हुआ और अंतत: 4  दिसम्बर 1924को इसे पूरा कर लिया गया जो आज के मुंबई की एक विशेष पहचान बन गया है। 1906 आते आते इस शहर की आबदी बढ़कर 10 लाख हो गई थी जो  की जनसँख्या के लिहाज से कलकत्ता के बाद दूसरे नंबर पर थी। आज  2018 में आते आते  लगभग 2 करोड़ को पार कर गई है।   1947  में आज़ादी मिलने के बाद इसे बॉम्बे राज्य की राजधानी बनाया गया 1950 में उत्तरी ओर स्थित सैलसेट द्वीप के भागों को मिला लिया गया जो कि इस शहर की आज तक की स्थिति को दर्शाता है ।1955 के पश्चात् जब बॉम्बे राज्य को पुनर्व्यवस्थित किया गया तो इसे भाषा के आधार पर महाराष्ट और गुजरात दो भागों में विभक्त कर दिया गया । इस दौरान बॉम्बे को लेकर फ़साद भी हुए कि इसे किधर रखा जाना ठीक होगा इसी में लगभग 105 लोगों ने पुलिस फायरिंग में अपनी जान दे दी 1 मई 1960 को इस महाराष्ट और गुजरात दो राजों में पूर्ण रूप से बाँट दिया गया तथा बोम्बे को महाराष्ट की राजधानी घोषित कर दिया गया।
मुंबई शहर में कार्यरत्त Bombay Municipal Corporation यानि BMC जिसका वार्षिक बजट किसी छोटे मोटे देश के बराबर है हर वर्ष मुंबई शहर की सड़कों के गढ्ढे भरने का बीड़ा उठती है किंतु मुंबई की पहली ही बारिश में उसकी पोल खुल जाती है ये सिलसिला मैं व्यक्तिगत रूप से पिछले 12 वर्षो से देख रहा हूँ ऐसा ही कुछ हाल NDMC & MCD ट्रांस यमुना नमक अलग निगम बना दिया गया है किन्तु स्थिति जस की तस है। कल ही मिंटो ब्रिज के नीचे पानी भर गया और DTC की एक बस लगभग दो तिहाई तक डूब गई। बाकी इलाकों का जिक्र करना तो फ़िजूल ही है । मैं लगभग 25 वर्ष डेल्ही में रहा हूँ और मिंटो ब्रिज के पास ही मेरा ऑफिस होता था हर बरसात में मिंटो ब्रिज में पानी भरने के कारण कोई ना कोई दुर्घटना होती ही रहती थी कई मर्तबा तो मैंने रबर की नाव से पुलिस वालों को मिंटो ब्रिज के नीचे फंसे हुए वाहनों  से लोगों को निकलते हुए देखा है । शायद डेल्ही की बरसात का मिंटो ब्रिज ही बैरोमीटर में तब्दील हो गया है जिसे देखकर शहर के अन्य हिस्सों में हुई बारिश का अंदाजा लगाया जा सकता है। कुछ इसी तरह मुंबई की बारिश में भी वरली, जय हिन्द माता रोड मिलन सबवे  (26 july-2005 की बाढ़ का ट्रेड मार्क ) वगैरह में यदि बारिश का पानी जमा हो जाए तो मान लीजिए भयंकर बारिश हुई है। 

आख़िर आज मुझे ये मुंबई शहर के विषय में संक्षिप्त जानकारी क्यूँ देनी पड़ रही है तो इसका कारण है मुंबई शहर के लोगों को पानी की आपूर्ति करने वाली झीलों पर पड़ रहे अनवश्यक बोझ को कुछ समझा जा सके । जब से ये शहर अस्तित्व में आया है तब से यहाँ पर रहने वाले लोगों कुछ ना कुछ तो खा रहे होंगे और प्यास बुझाने के लिए कहीं ना कहीं से पानी प्राप्त कर ही रहे होंगे। इतिहास में झांक कर देखें तो पाएंगे कि मुंबई शहर को पानी सप्लाई करने वाली मुख्य झीलें किस कदर वर्ष दर वर्ष अपने ऊपर अतिरिक्त बोझ ढ़ोने को अभिशप्त हैं और इसका कारण है तेजी से बढती जनसँख्या जिसके लिए कोई उपाय नहीं किये जा रहे हैं आख़िर कब तक ये झीलें मुंबई का बोझ उठाएंगी ।
अपर वैतरणा :- अपर वैतरणा झील (डैम) महाराष्ट्र के इगतपुरी में स्थित है मुंबई से इसकी दूरी लगभग 100 K.M. है इसकी  ऊंचाई लगभग 41 मीटर या 135 फीट है,लम्बाई 2578 मीटर या 8304 फीट  भण्डारण क्षमता केवल 6038,046 मिलियन लीटर है। इसे 1973 में जनता के लिए खोला गया।
वैतरणा :- ये महाराष्ट के पालघर जिले में स्थित है जो कि मुंबई से लगभग 100 K.M. है इसकी ऊंचाई 82 मीटर यानि 269 फीट है इसकी लम्बाई 567.7 मीटर यानि 1860.5 फीट।इसकी भण्डारण क्षमता 174,790,000 m इसे 1957 में जनता के लिए खोला गया।

तानसा :-तानसा झील या डैम मुंबई से लगभग 90 किलोमिएटर दूर अटगाँव (महुली की पहाड़ियों  )में स्थित है। इसे एक ब्रिटिश इंजिनियर Mr.Tullock जो कि म्युनिसिपल कारपोरेशन ऑफ़ ग्रेटर मुंबई की देखरेख में १९८२ में शरू हुआ और १९२५ में पूर्ण हुआ २००१ से २००४ के मध्य में पुन: इसकी क्षमता बढाई गई है। इसकी ऊंचाई 41 मीटर,लम्बाई 2804 मीटर है । इसकी भण्डारण क्षमता 2,08,700 cubic meter है।
भातसा :- भातसा झील मुंबई से  लगभग दूर शाहपुर में स्थित है इसकी ऊंचाई 88.5 m (290 ft),लम्बाई 959m  or 3146 ft एवं  इसकी भण्डारण क्षमता 226,025 cu mi है इसे 1983 में पूरा किया गया 
तुलसी झील :-  तुलसी लेक मुंबई के संजय गाँधी नेशनल पार्क, बोरीवली में स्थित है।  इसे   1872 में बनाना शुरू किया गया एवं 1897 में इस झील का कार्य पूर्ण कर लिया गया इसका सरफेस एरिया 1.35 K.M. एवरेज डेप्थ 12 मीटर या 39 फीट है। तुलसी झील की भण्डारण क्षमता केवल 8,046 मिलियन लीटर है।

विहार झील :- 1845 में मुंबई के लोगों को जब पीने के पानी की ज़बरदस्त तंगी महसूस हुई तो इसके लिए उनके द्वारा बाकायदा आंदोलन किया गया तब  ब्रिटिश सरकार ने दो लोगों की एक समिति इस समस्या के समाधान के लिए बनाई , इस समिति के सदस्य कैप्टेन क्राफोर्ड ने मानसून के दौरान जल संग्रहण की योजना का खाका पेश किया  जिसकी अनुमति मिलने के पश्चात १८५६ में विहार लेक का कार्य शुरू हुआ व १८६० में यह कार्य पूर्ण हो गया। तब से इस लेक द्वारा मुंबई के लोगो की प्यास बुझाई जा रही है।  इस लेक का  केचमेंट एरिया 18.96 k.m. , surface area 2.7 sqa mi, Max depth 34 m (112 ft) एवं  विहार झील की भण्डारण क्षमता केवल  27,698 मिलियन लीटर है।
मोदक सागर:- मोदक सागर झील महाराष्ट्र के थाना जिला के अंतर्गत आती है, इसका सरफेस     एरिया 80.42 m  इसकी भण्डारण क्षमता 16,500,000,000 imp gal है ।
अब प्रश्न फिर वही है कि  2005 में जहाँ मुंबई की आबादी 1,78,91,000 (Growth-15,24,000)  2010 में  1,94,22,000 (Growth-15,31,000) 2015 में  2,10,43,000 (Growth-16,21,000) 2018 में  2,20,46,000 (Growth-10,03,000) की तेजी से दर्ज की जा रही है तो सरकार और BMC क्यों सोई हुई है। अगर मुंबई की जनसंख्याँ इसी तेजी से बढती रही तो वो दिन दूर नहीं जब लोग पानी के लिए त्राही त्राही करेंगे और मजबूर होकर लोग 1845 की तरह फिर से आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे ।सरकार कुछ  नई झीलें बनाने के विषय में क्यों नहीं सोच रही है । वर्तमान झीलें इस बढती आबादी को झेलने के लिए तैयार नहीं हैं हमें समय रहते चेतना होगा अन्यथा अपनी बर्बादी के लिए हम स्वंम जिम्मेदार होंगे। कहीं ऐसा ना हो कि बुंदेलखंड के पन्ना ( झिरिया यानि पत्थरों के बीच अस्थायी गढ्ढे खोदकर पानी निकालना ) में जिस प्रकार लोग दो बूंद पानी के लिए मोहताज हैं आज नहीं तो कल ये स्थिति यहाँ भी हो सकती है।

-प्रदीप भट्ट -