Tuesday, 30 July 2024

" भूखे भजन न होय गोपाला "

 रिपोतार्ज 

       "भूखे भजन न होय गोपाला 
       पकड़ ये अपनी कंठी माला "
 
  18 जुलाई को अचानक (राब्ता) शिवम झा की कॉल आई तब मैं कहीं जा रहा था तो पहली फुर्सत में कॉल बैक किया। फ़ोन उठाते ही शिकायत कि दादा आपने मैसेज नहीं देखा क्या? मैंने अचकचा कर कहा थोड़ा व्यस्त था बालक बताओ क्या बात है तो शिवम ने बताया कि 20 जुलाई को पुराने वैन्यू पालम में ही 11 बजे से कार्यक्रम है आप स्वीकृति देवें। मैंने भी हँसते हुए कहा लो जी लो दी भई 😊। मैं समय से हाज़िर हो जाऊंगा। अब प्रोग्राम गुडगांव में हो या दिल्ली के दूसरे कोने में या मध्य में मुझे समय से पहुंचना पसंद है। हैदराबाद में वक्त की पाबंदगी बड़ी समस्या है। ऐसा कई प्रोग्राम में देखने में आया कि मैं समय से उपस्थित हो गया किंतु जिन्होंने आमंत्रण दिया वे स्वयं नदारत थे😱। सो सामान्य शिष्टाचार के अनुसार मैं 30 से 45 मिनिट प्रतीक्षा करता फिर संबंधित को एक मेसेज ड्रॉप कर वापिस बैक टू पैवेलियन। हाल तो दिल्ली का भी कुछ अच्छा नहीं है किंतु वास्तविक साहित्यकार समय पर उपस्थित होकर साहित्य की गरिमा बचाए हुए हैं।👍🏼

         ख़ैर 20 जुलाई को सुबह 5 बजे उठे, फ्रेश हुए फिर तेजगढ़ी से 7 बजे ब्ला ब्ला ली और ठीक 8.40 ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट वहां से दो मेट्रो बदली और ठीक साढ़े नौ बजे मीटिंग स्थल। लेकिन ये क्या मीटिंग हॉल पर लगा गोदरेज का ताला हमें मुंह चिढ़ा रहा था 😏जैसे कहना चाह रहा हो क्यूं बे घर से फालतू हो क्या जो सुबह इतनी जल्दी टपक पड़े। अब उसे कैसे समझाएं कि इसमें हमारी गलती कछु नाही है। हम तो प्रिकॉशन ले रहे थे लेकिन ब्ला ब्ला ने हमें कुछ ज्यादा ही जल्दी ड्रॉप कर दिया। गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी इसलिए और कहीं जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता सो वहीं जीने की सीढ़ियों पर पसर गए।🙃 कुछ रुके फिर शिवम को फ़ोन मिलाने के लिए जैसे ही मोबाइल निकाला तो शिवम का मेसेज देखा किन्ही अपरिहार्य कारणों से प्रोग्राम11 की जगह 12 बजे शुरु होगा। बस भैय्या जोर वाली झुंझलाहट हो आई पर कर भी क्या सकते थे। शिवम से बात हुई तो उसने बताया कि आधे घंटे में पहुंचता हूं। मैंने भी झट कह दिया आ जा भाई सुबह पांच बजे निकला हूं नाश्ता संग संग करेंगे🥘🍰। शिवम अनय के साथ पहुंचा और लग गया काम में। शिवम भी नाश्ता भूल गया और गर्मी का प्रकोप देखते हुए हमने भी उसे याद न दिलाई। तभी संजय जैन जी ने प्रवेश किया फिर आज की उत्सव मूर्ति अमृत बिसारिया जी भी परिवार के साथ आ पहुंची। धीरे धीरे हॉल भरने लगा और ठीक 12 बजे मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के पश्चात सरस्वती वन्दना हुई। संचालन का दायित्व संभाला शायर संजय जैन जी ने।
      
         राब्ता के संरक्षक विवेक कवीश्वर डॉक्टर कामना मिश्र, खुर्रम नूर, डॉक्टर पूजा सिंह गंगानिया, नीलम गुप्ता जिन्होंने औरों पर एवम स्वंय पर भी अच्छा तंज कसा के अतिरिक्त हशमत भारद्वाज, गोल्डी गीतकार, दीपिका वल्दिया सीमा कौशिक के अतिरिक्त शिवम झा ने भाई बहन के रिश्तों पर गद्यात्मक कविता प्रस्तुत की। मैंने भी अपनी एक गज़ल प्रस्तुत की। वाह वाह के बीच कुछ रिफ्रेशमेंट वितरित हो गया और जब हम फ्री हुए तब तक जय श्री राम। अब भैय्या सुबह से भूखे बैठे ब्रह्म देवता के हिस्से में भोजन तो नहीं अलबत्ता जमकर वाह वाह जरूर हिस्से में आई।🫠

ग़ज़ल 

प्रेम नहीं इतना भी आसां, ख़ुद को खोना पड़ता है 
प्रेम पगे तो हसरत जगती, वरना रोना पड़ता है 

दो ज़िस्मो की बात नहीं ये, दिल का साथ ज़रूरी है 
छत के नीचे साथ हों फ़िर भी, तन्हा सोना पड़ता है

एक दूजे की फ़िक्र भले हो,फ़िर भी ऐसा हो जाता है 
दुनिया को दिखलाने ख़ातिर, इक सा होना पड़ता है 

यकीं नहीं तो आकर देखो, हर घऱ यही कहानी है 
मिट्टी के बर्तन को मिट्टी, से भी धोना पड़ता है

नहीं जगत में कोई ऐसा, जिसको सब कुछ हासिल हो
कभी कभी कुछ पाने खातिर, सब कुछ खोना पड़ता है 

प्रेम की चाहत सच्ची है ग़र,गमलों से शुरआत करो 
नफ़रत के जंगल में उल्फ़त, बीज ही बोना पड़ता है 

यही रीत है यही गीत है, यही मश्वरा है मेरा  
कभी कभी दूजे का बढ़कर, बोझ भी ढोना पड़ता है 

जो अक्षम है प्रेम में उसको, दुनिया ताने देती है 
कभी प्रेम में ख़ुद की ख़ातिर, ख़ुद को रोना पड़ता है  
 
दुनिया की सब बातें छोड़ो, ख़ुद पे कर विश्वास 'प्रदीप' 
प्रेम का धागा सुई नू हौले, हौले पिरोना पड़ता है 
- प्रदीप डीएस भट्ट  -20524

         कार्यक्रम से निफराम हुए और दो मोहतरमाओं के साथ सीधे मेट्रो स्टेशन हौज़ ख़ास चेंज की तभी परम पूजनीय पेट से आकाशवाणी हुई देखो भैय्या मेरठ तक जाना है तो कुछ मुझमें डालो वरना हम तो यहीं मेट्रो 🤤के फर्श पर लेट रहे हैं। हमें भी लगा प्रदीप बाबू पेट के साथ इतनी ज्यादती भी अच्छी नहीं सो भईया एक साथी नाम भूल गया रे...... के साथ भुट्टे के दाने खाए फिर एक एक कॉफी गटकी तब जाकर जान में जान आई। फिर कनॉट प्लेस से आनंद विहार की मेट्रो ली फिर कौशांबी से फिर वही ब्ला ब्ला और भइया जी सीधे साढ़े आठ बजे मेरठ अपने महल में। एक बात पल्ले बांध ली घर से भले किसी समय निकलो पहले ठूस लो नईं तो.....😹


प्रदीप डीएस भट्ट -30724

Friday, 26 July 2024

" वादे हैं वादों का क्या "

    
       "  वायदे हैं वायदों का क्या "


        बचपन में घर का सामान लेने के लिए अम्मा जब परचूने की दुकान पर भेजती थी तब हम हर सामान अलग अलग दुकानदार से लेते थे ताकि समान लेने के बाद दुकानदार से ज्यादा से ज्यादा रूंगा यानि फ्री में कुछ ले पाएं और रुंगे में चने गुड़ मूंगफली वगैरह वगैरह। इसी के साथ बचपने में हमने विनिमय का पाठ भी सीखा कि आप गेंहू या अन्य अनाज देकर परचुने वाले से विनिमय एक्सचेंज के तहत सब्जी वाले से आइसक्रीम वाले से अपनी पसंद का सामान खरीदते थे इस पद्धति में फ़ायदा हमेशा दुकानदार का होता था और नुकसान हमेशा बच्चों का क्यों कि उन्हें समझ नहीं थी कि क्या देकर कितना लेना है।ये उस ज़माने के दुकानदारों की मार्केटिंग स्ट्रेजिटी होती थी ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित किया जा सके। और उन ग्राहकों में बच्चों की संख्या ज्यादा होती थी।

         अब इसी परम्परा का निर्वाह राजनैतिक पार्टियां अपने हित को सर्वोपरी मानते हुए वोटरों को लुभाने के लिए करने लगी हैं। जहां तक मुझे याद है यह दक्षिण भारत में महिलाओं को त्योहारों पर साड़ी बांटने से शुरु हुआ फिर शिवाजी गणेशन जया के समय दक्षिण की जनता को फ्री टी वी भी बांटा गया। सभी राजनैतिक दल एक दूसरे पर आपेक्ष तो लगाते किंतु स्वयं भी इस दलदल का हिस्सा बनने के लिए कोई कोर कसर न छोड़ते रहे। चूंकि मैं स्वयं दक्षिण में पांच वर्ष रहा हूं तो मैंने स्वयं से जाना कि वहां पंचायत से लेकर विधानसभा तक के चुनाव में फ्री की रेवड़ियां बांटने   का चलन किसी भी हद को पार करने को सदैव आतुर रहता है। सब पार्टियों का बस एक ही लक्ष्य कि किसी भी तरह सत्ता हथियानी है फिर चाहे राज्य पर कितना भी कर्ज़ चढ़ जाए। इसी के साथ तुष्टीकरण का छौंक लगाने में भी लगभग सभी पार्टियां एक दूसरे को पछाड़ती नजर आती हैं। कहीं मुस्लिम तुष्टीकरण तो कहीं ईसाई तुष्टीकरण। इसकी भी इंतेहा देखिए मंदिरों में ईसाई पुजारी नियुक्त कर दिए किन्तु चर्च और मस्जिद में हिंदू काज़ी या फादर नहीं मिलेगा।

         ऐसा भी नहीं है कि उत्तर भारत में फ्री की रेवड़ी बाँटने में राजनैतिक पार्टियों ने कोई कमी छोड़ी है यहाँ भी हमाम में सभी नंगे हैं। अगर एक राजनैतिक पार्टी फ़्री की रेवड़ी पर लंबे लंबे भाषण देकर दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था का हवाला देती फिरती है फ़िर माहौल देखकर वह भी फ़्री बाँटने में मशगूल हो जाती है फ़िर वह चाहे फ़्री बिजली हो फ़्री राशन हो या किसान सम्मान निधि। लेकिन आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल ने फ़्री की रेवड़ी की ऐसी ऐसी घोषणाएँ की कि कॉंग्रेस और बीजेपी की पेशानी पर भी बल पड़ गए। ये विषय अलहदा है कि दिल्ली वालों को ये फ़्री का चूरन पिछले दस साल से बेचा जा रहा है और tax पेयर की जान निकली जा रही है। तेलंगाना में के सी आर इसी फ़्री की पॉलिटिक्स से सत्ता पर दस साल काबिज रहे किंतु इस बार उन्हें मुँह की खानी पड़ी।

         कॉंग्रेस द्वारा इस बार के लोकसभा चुनाव में महिलाओं को एक लाख रुपये देने की खटाखट गारंटी दी ,युवाओं को एक साल के लिए प्रशिक्षुता कार्यक्रम के तहत एक लाख रुपये देने का वादा कर दिया साथ ही किसानों की कर्ज़ माफ़ी की गारंटी अलग से दे दी।  हर चुनावी सभा में राहुल गाँधी बिना माइक के भी खटाखट घोषणाएँ करते रहे। बिना किसी अर्थशास्त्री से परामर्श लिए। आख़िर इतनी सारी गारंटी पूरी करने पर कुल कितना खर्च आएगा।  एक अनुमान के अनुसार कम से कम 35 से 40 लाख करोड़ सालाना जब कि भारत का पूरे वर्ष का बज़ट ही केवल 47 लाख करोड़ का है तो कोई इन महानुभावों से पूछे कि 5, 7 लाख में ये क्या क्या कर पाएंगे। संविधान हमें बोलने की आजा़दी देता है तो इसका मतलब कुछ भी आएं शांए बकते रहो। आप हो या कॉंग्रेस ,समाजवादी पार्टी हो या टीएमसी या फ़िर दक्षिण की पार्टी वे अभी भी उसी 60,70 के दशक वाली सोच से बाहर नहीं आएं हैं उन्हें लगता है वादे हैं कर दो जीतने के बाद हमें कौन सा कोई वादा पूरा करना है। लेकिन स्थिति अब वैसी रही नहीं है। उदाहरण स्वरूप चुनाव ख़त्म होते ही उत्तर प्रदेश, कर्नाटक में लोग जिनमें स्त्रियों की संख्या ज्य़ादा थी पहुँच गईं कॉंग्रेस दफ़्तर कि लाओ भईय्या ज़ल्दी से हमार एक लाख रुपैय्या हमारे हवाले करो। अब बेचारे दफ़्तर के कर्मचारी उन्हें क्या जवाब दें कि वादा करने वाले तो दिल्ली के बंगले में AC में लोट मार रहे हैं।  निराश में मुँह लटकाए वो घरों को लौटते हुए सोच रहे थे "न ख़ुदा ही मिला, न विसाल ए सनम। न इधर के रहे, न उधर के रहे" घऱ जाकर गारंटी कार्ड देख रहे होंगे कि एक मोदी है जो बिना गारंटी दिए भी मकान राशन सब दे रहा है और एक ये चुरकट पार्टी है जिसे वोट देकर कुछ भी हासिल नहीं हुआ।       फ़्री की पॉलिटिक्स करके श्री लंका करके देख चुका है। उसकी अर्थव्यवस्था रसातल में चली ही गईं थी वो तो भारत ने उसे संभाल लिया। इससे पहले यही हाल वेनेजुएला का रहा है इस देश की अर्थव्यस्था आज भी पटरी पर नहीं लौटी है। जहाँ तक भारत गणराज्यों का प्रश्न है तो इसमें पंजाब, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना एवम् उड़ीसा की हालात ज्य़ादा ख़राब है।  इन राज्यों का कर्ज़ निरंतर बढ़ता जा रहा है। रिजर्व बैंक इस विषय में इन राज्यों की सरकारों एवम् केंद्र सरकार को आगाह कर चुका है किंतु ये सभी राज्य अभी भी गहरी निंद्रा में लीन नज़र आते हैं। बज़ट में अगर संतुलन नहीं बिठाया जाएगा तो अर्थव्यस्था पटरी पर कैसे लौटेगी। व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष को ध्यान में रखकर फ़ैसले नहीं लिए जाते बल्कि राज्य को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए कुछ कठोर फैसलों की ज़रूरत होती है जिनका कड़ाई से पालन किया जाना भी अत्यंत आवश्यक है।

        प्रश्न फिर वही मुंह बाए खड़ा है कि आख़िर इस खटाखट पॉलिटिक्स पर कौन लगाम लगाएगा, क्यों कि जो इस फ्री की रेवड़ी बांटने के विरुद्ध में हैं वे अन्य पार्टियों द्धारा किए जा रहे लोकलुभावन वादों पर जनता में उठे उत्साह से निरुत्साह हो जा रहे हैं और मजबूरी में उन्हें भी न चाहते हुए इस बाजीगरी में शामिल होना पड़ता है। कुछ राजनैतिक पार्टियां तो इससे भी इतर नया राग अलापने में लगी हैं और वो है टैक्स पेयर के पैसे का दुरुपयोग करके वोट की खरीद फरोख्त करना वैसे तो ये ग्राम पंचायत के चुनाव से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव में बरसों से हो रहा है किंतु यदि हम पिछ्ले दो तीन दशकों पर दृष्टिपात करेंगे तो पायेंगे कि अब बात सिर्फ़ वोटरों को लुभाने तक सीमित नहीं रह गई है वरन जीते हुए उम्मीदारों की खरीद फरोख्त तक भी पहुंच गई है। एक दो नहीं वरन निश्चित संख्या में आने वाले उम्मीदवारों को खरीदकर सत्ता हासिल की जा रही है। अब ज्यादातर पार्टियों की परंपरा, एथिक्स, विचारधारा सिर्फ़ किताबों तक ही सीमित रह गई है। निश्चित रूप से वोटरों को भ्रमित कर वोट हासिल करना, टैक्स पेयर के पैसे को सत्ता पाने की चाबी माना जाने लगा है जो कि एक स्वस्थ्य लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नहीं है किंतु यहां किसको किसकी पड़ी है। सभी पार्टियां एक दूसरे के उम्मीदार को तोड़कर अपने दल में लाने के लिए जुगत लगा लगा रहे हैं भले ही वो पार्टी की विचार धारा से मेल खाए न खाए अंतिम और एक ही लक्ष्य है कि सत्ता पर कैसे काबिज़ हुआ जाए। बरसों से सुनते आ रहे हैं उम्मीद पर दुनियां कायम है। बस हम भी कुछ अच्छा होने की उम्मीद ही कर सकते हैं कि भारत के वोटर को अगले किसी चुनाव में इस खटाखट पॉलिटिक्स से मुक्ति मिले।

         अंत में ये ठीक है कि राजनैतिक पार्टियां अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वोटरों को सिर्फ़ सत्ता तक पहुंचने का एक सुगम मार्ग समझती हैं। पार्टियां कभी खटाखट का वायदा करती हैं कभी चटाचट का कभी साड़ी का वायदा कभी कलर टी वी का वायदा कभी बच्चा के जन्म से लेकर मरण तक के इंतज़ाम का वायदा कभी फ्री बिजली का वायदा कभी फ्री पानी का वायदा और भी न जाने कितने किस प्रकार के वायदे। वायदे हैं वायदों का क्या? लेकिन क्या इन सब बेहदगियों के लिए वोटर ज़िम्मेदार नहीं हेयर। माना गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यापन करने वाले वोटर के लिए फ्री में कुछ भी मिल जाना उसके जीवन चक्र के लिए कुछ दिनों के लिए अच्छा होगा किंतु अगले पांच साल तक वही वोटर इस फ्री के लिए क्या क्या चुकाता है ये वो भी नहीं जानता। कभी किसी एनजीओ अब तक क्यूं ये ज़रूरत महसूस नहीं की कि भारतीय वोटरों के लिए कुछ काम किया जाए। और तो और हर राजनैतिक पार्टी अपने चुने हुए सांसदो और विधायकों के लिए संसद या विधायका में कैसे व्यवहार करना है इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाती हैं किंतु जिन वोटरों के वोट से वो जीत कर आती हैं उसके लिए कोई कार्यक्रम किसी भी पार्टी के पास नहीं है। आख़िर देश में रहने वाले हर कैटेगिरी के वोटर कब अपनी जिम्मेदारी समझेंगे। और देश या राज्य को सफेद हाथी में तब्दील होने से रोकेंगे।


प्रदीप डीएस भट्ट 
कवि/लेखक
मेरठ (उत्तर प्रदेश)
Mob:9410677280

Wednesday, 24 July 2024

"विषय पर भी बोलिए हुज़ूर"

रिपोर्ताज 

"कहां कब बोलना कितना, समझ में गर जो आ जाए 
तो निश्चित मानिए साहिब, कि क़िस्मत भी बदल जाए"

      "विषय पर भी बोलिए हुज़ूर" 
 
    24 मई को आलोक यात्री जी का व्हाट्सअप पर संदेश मिला कि कृपया 13 जुलाई को कथा रंग के कार्यक्रम के लिए आरक्षित कर लें। चूंकि तब तक किसी अन्य कार्यक्रम का आमंत्रण/ निमंत्रण नहीं आया था इसलिए हमने सहर्ष स्वीकृति दे दी साथ ही ऊपर वाले माले 😹 जिसे भेजा भी कहते हैं को समझा भी दिया कि देखो भैय्या अमुक तिथि से दो दिन पहले को हमें याद दिला देना 🤪 नई तो दुनिया में हमसे बुरा कोई न होगा। लगता है ससुरा भेजा भी बिलकुल फ्राई हुए बैठा था। एक दम विस्फोटक अंदाज़ में बोला अबे तुमसे बुरा इस दुनियां में कोई हैय्ये नहीं तो तो दूसरे की बात बार बार काहे करते हो बे। सच बात तो ये है बाबू पूरी धरती तुमसे परेशान है। जिस दिन किसी के हत्थे चढ़ गए न बेटे उस दिन तुम्हारा हैप्पी बर्डी पक्का।😘 सच कहें तों ये सच सुनकर हम थोड़ा झुंझला तो गए लेकिन फिर ये सोचकर चुप हो गए कि बिना भेजे के प्रदीप बाबू कैसे दिखेंगे। बस कुछ न सूझा तों खींसे निपोर दीं।

       अब भैय्या जी 25 मई को एक कार्यक्रम में शिरकत करने लखनऊ जाना जरूरी था तो जा पहुंचे। गर्मी की भयंकरता देखते ही बनती थीं इसलिए मिलने जुलने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और चुपचाप होटल विश्वनाथ में पड़े रहे। जून में कहीं भी न जाने का फ़ैसला कर लिया था। इंतज़ार था कथा रंग की मीटिंग का तो पता चला इस बार कार्यक्रम की तैयारियों के चलते मासिक मीटिंग मुल्तवी है। अलबत्ता इसी बीच मित्र के आग्रह पर उनकी पुस्तक के लोकार्पण के साथ साथ हमारे तीसरे काव्य संग्रह "उर नाद" का भी लोकार्पण 30 जून को हिन्दी भवन में संपन्न हो गया। बाकी किसी कार्यक्रम में जाने से हमने परहेज़ ही रक्खा। दिन भी है न काटे नहीं कटता और वो भी बढ़िया वाली गर्मी के साथ। AC हो लेकिन दामिनी ही जब तब दर्शन दे तो कोई क्या करे। एक दिन नीचे वाले फ्लैट में रहने वाले अरुण त्यागी जी अड़ गए कि आप मेरे कहने से कोटक महिंद्रा ज्वाइन कर लें। बात तो सही थी अब घर में आदमी बीवी और टीवी एक साथ कब तक झेल सकता है सो ज्वाइन कर लिया ट्रेनिंग भी हो गई और एग्जाम भी क्लियर हो गया। तो भैय्या दिन घर में न काटकर कोटक लाइफ इंश्योरेंस के वातानुकूलित ऑफिस में काट रहे हैं। कोई मिला तो जो समझा दिया जो सीखा है वो आगे ट्रांसफर कर रहे हैं और खाली समय में कहानी या गीत गजल। है न बढ़िया "न हींग न फिटकरी, और रंग भी चोखा"।

        इंतज़ार की घड़ियां खत्म हुई और भेजे में सुरक्षित तिथि से दो दिन पूर्व ही घंटी बज उठी कि लो भैय्या जी हो जाओ तैय्यार पुरूस्कार/ अलंकरण समारोह बस आया ही चाहता है। हमने भी अंगड़ाई लेते हुए कहा सुनो बे हमें भी याद है। इस बार सर्दी में बादाम अखरोट किशमिश के साथ थोड़े से मखाने भी खाए थे। हमारे भेजे ने घूरकार😡 हमारी देखा फिर बोला बेटा भरी पूरी वाली सर्दी में 500 बादाम 500 ग्राम मखाने और 500 ग्राम किशमिश ? कुछ ज्यादा तो नहीं खा लीए तुमने।  हमने भी बात टालने के उद्देश्य से कहा अबे काहे हमारी बेज्जती में दाग लगवाने पर तुले हो। कभी कभी एडजस्ट भी कर लिया करो। ख़ैर साहब 13 की सुबह सुबह नहा धोकर तैय्यार हो ही रहे थे हमने अलमारी से ब्लैक जेड कलर वाला कुर्ता पायजामा निकाला और जैसे ही पहनने को हुए तो भेजा फिर चीखा अबे तुम सुधरोगे नहीं क्या। माना तुम्हरा कहानी संग्रह "काला हंस" काफ़ी लोगों द्वारा पसंद किया गया है लेकिन बेटा तुम वहां निखालिस दर्शक की हैसियत से जा रहे हो और हां हमारी जानकारी के मुताबिक़ तुम्हें पुरुस्कार भी न मिल रिया है फिर किस पर बिजली गिराने की फ़िराक में हो। अब हम गुस्से में तमतमा गए देखो बेटा जल्दी अपनी जगह वापिस पहुंचो वरना हम बिना तुम्हारे ही खिसक लेंगे फिर देखे किसे गरियाते हो 😎 शायद भेजे को बात समझ में आ गई इसलिए वो तुरन्त अपने खोल में वापिस और हम सुबह साढ़े छः बजे भैसाली बस अड्डे। न न न न भैंस वाला कोई सीन नहीं है मित्रों भैंसाली बस अड्डे का नाम है जहां से दिल्ली गाजियाबाद देहरादून वगैरह की बसें मिलती हैं।

         अभी बस चली भी नहीं थी कि झमाझम बारिश शुरु। जैसे तैसे गाजियाबाद के पुराने बस अड्डे पर पहुंचे। ऑटो पकड़ा और सीधे सिल्वर लाइन प्रेस्टिज स्कूल। लेकिन ये क्या बुलंदशहर रोड़ की जगह ऑटो वाले महाशय नेहरू नगर लेकर आ पहुंचे थे। पता चला प्रोग्राम बड़े स्कूल में है तो ऑटो वाला बड़े इत्मीनान से बोला वो स्कूल तो नीरे जंगल में है हम छोड़ देंगे लेकिन 100 रूपया और लगेगा और हां वापिसी में कोई सवारी नहीं मिलने वाली। हमने बारिश की वृद्धि को देखते हुए कहा माहराज छोड़ दीजीए हम लेट नहीं होना चाहते। ख़ैर जिक जैक करते हुए उसने जैसे तैसे कार्यक्रम स्थल तक छोड़ा। स्कूल की सड़क पर ही पानी इतना भरा हुआ था कि ऑटो अब पलटा कि तब पलटा की स्थिति के बीच ऑटो वाले को पैसे दिए।बचपन में छलांग लगाने की आदत आज काम आई। चार पांच बार में सीधे स्कूल के गेट पर। हॉल में पहुंचे तो यात्री जी ने स्वागत किया फिर रिंकल से मिले फिर शिवराज जी से। यात्री जी आने वालों का स्वागत भी कर रहे थे साथ ही अपनी टीम को निर्देश भी दे रहे थे कभी प्रत्यक्ष रूप से कभी मोबाइल के माध्यम से। जिम्मेदारी इसी का नाम है। तभी प्रिंसिपल डॉक्टर माला कपूर गौहर से आत्मीय मुलाकात हुई। धीरे धीरे ही सही लोग आ रहे थे। इसी बीच माला कपूर जी के निर्देश पर अलग अलग कक्षाओं के विद्यार्थी दो दो की श्रेणियों में उपस्थित साहित्यकारों से अभिवादन के पश्चात अपने अंदाज़ में सवाल जवाब कर रहे थे। मेरे पास भी दो बच्चियां आईं। लगभग पंद्रह मिनट तक वो मेरे विषय में मेरी साहित्यिक यात्रा के विषय में सवाल जवाब करती रहीं। बाद में उनमें से एक ने फ़ोटो लेने की इच्छा जताई तो माला कपूर जी स्वयं भी आकर खड़ी हो गईं। निश्चित रूप से कथा रंग के लिए ये एक बड़ी उपलब्धि है। अगर ये प्रोग्राम किसी होटल में आयोजित होता तो ये नन्हें कलमकार कहां आ पाते। यात्री जी इसके लिए बधाई के पात्र हैं। एक और चीज़ यात्री जी के अलावा माला जी जो कि कथा रंग की संरक्षिका भी हैं पूरे कार्यक्रम पर लगातार नजर बनाए हुए थीं। बच्चों को साहित्य के प्रति कैसे आकर्षित किया जाए इसके लिए उनके द्वारा की गई पहल काबिले तारीफ़ है।

        अभी बच्चों से बात कर ही रहे थे कि घोषणा हो गई कि नाश्ता तैय्यार है कुछ पेट पूजा कर लीजिए। मैं और अन्य नाश्ता स्थल के लिए चले तो एक छोटी बच्ची जो शायद 8th स्टैंडर्ड में होगी हमारे पीछे पीछे चल रही थी मैंने उसे रास्ता देते हुए कहा बेटा आप आगे आ जाओ तो उस बच्ची ने कहा सर मैं आप के प्रोटोकॉल में हूं। एक सेकेंड में मुझे अपनी दिल्ली की प्रोटोकॉल ऑफीसर की ड्यूटी याद हो आई। 😁 मैंने कहा इसकी ज़रूरत नहीं है बच्चा तो उसने फिर विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा सर प्रिंसिपल मैम का आदेश है। इससे पहले मैं कुछ कहता तब तक गरमा गर्म कचौरी की खुशबू नथुनों से आ टकराई सो उस बच्ची के सर पर हाथ घर आशीष दिया और पिल पड़े नाश्ते पर। अब भैय्या कचौरी संग आलू की सब्जी, पोहा और जलेबी देखकर तो भरा पेट भी डकार लेना भूल जाए। ख़ैर बढ़िया नाश्ते के बाद हल्की सी बारिश में गरमा गर्म कॉफी प्रदीप बाबू कुछ ज्यादा ही बढ़िया है। 😊

         11 बजे कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत हुई। चार सत्रों में आयोजित कथा रंग कहानी महोत्सव एवम अलंकरण समारोह की शुरुआत सरस्वती वंदना एवम से रा यात्री जी की तस्वीर पर माल्यार्पण से हुई। प्रथम सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने की। इस सत्र में वर्तमान कहानी की चुनौतियों पर सार गर्भित विमर्श हुआ। अन्य के अतिरिक्त बिस्मिल्लाह जी ने गोरखपुर के एक वाक्ये का जिक्र किया जिसमें उन्होंने अपने लिए एक नई कहानी ढूंढने पर प्रकाश डाला। जिन पर मां सरस्वती की कृपा है वो किसी भी विधा अनुधा में लिखें फिर वो कहानी हो या गीत गजल या अन्य, ऐसे ही लिखने के लिए कुछ न कुछ ढूंढ लेते हैं। मैं स्वयं मानता हूं कि कहानी का प्लॉट मिलते ही लेखक कहानी को बुनने लगता है फ़र्क बस इतना होता है कि लेखक के पास स्वेटर बुनने वाली सलाई न होकर कलम होती है। वी एन राय हों या ममता कालिया सभी ने  इस विषय पर अपने विचार रक्खे। अल्का सिन्हा के बाद पाखी पत्रिका के पंकज शर्मा ने भी उक्त विषय पर विचार प्रकट किए। सच कहूं तो पंकज शर्मा क्या कहना या परिभाषित करना चाहते थे मेरी समझ में तो कुछ नहीं आया के अतिरिक्त भी कुछ प्रतिष्ठित विभूतियां भी विषयांतर होते रहे।यही कुछ हाल द्वितीय सत्र के सदर आबिद सुरती का भी रहा वे भी विषय को छोड़कर अपने घर गृहस्थी की यादों में खोए नज़र आए। क्या ये ज़रूरी है कि अच्छा साहित्यकार विषय से इतर सब कुछ कहे और विषय को तन्हा ही छोड़ दे अन्य साहित्यकारों या दर्शकों के लिए। कुछ तो गड़बड़ है प्रदीप बाबू।

       तीसरे सत्र की शुरुआत अद्विक प्रकाशन द्वारा से रा यात्री जी की स्मृति में प्रकाशित ग्रंथ के लोकार्पण से हुई तत्पश्चात 2023 के कथा रंग कहानी प्रतियोगिता के विजेताओं को हंस पत्रिका के संपादक संजय सहाय, डॉक्टर माला कपूर "गौहर" अब्दुल बिस्मिल्लाह हिन्दी अकादमी के उप सचिव ऋषि शर्मा, कायनात काजी अशोक मैत्रेय आलोक यात्री द्वारा पुरस्कृत किया गया। प्रथम पुरुस्कार वन्दना वाजपई को प्रदान किया गया। इसके अतिरिक आशीष ददोतर, दिव्या शर्मा, रेणु हुसैन, सुधा गोयल, तौसीफ़ बरेलवी, अरुण अर्णव मनु लक्ष्मी मिश्र, डॉक्टर असलम जमशेदपुरी, रिंकल शर्मा, शकील अहमद सैफ , वीना चुनावत, शिवजी श्रीवास्तव, राम नगीना मौर्य, डॉक्टर रंजना जायसवाल, राष्ट्र वर्धन अरोड़ा व बीना शर्मा जी को सम्मानित किया गया। डॉक्टर माला कपूर गौहर जी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रेषित किया। कुछ बातों को इग्नोर कर दें तो कार्यक्रम के तीनों सत्र बेहद शानदार रहे। एक बात जो मैंने नोट की वो ये कि जहां लोग स्टेज शेयर करने को लेकर मारा मारी करने से भी नहीं चूकते वहीं यात्री जी सहजता लिए हुए स्टेज से दूरी बनाए रखते हैं।

        तीसरा सत्र सम्पन्न हो चुका था और जैसा कि अपेक्षित था सभी उपस्थित के पेट में चूहे पूरा उधम उतारे हुए थे सो मौके की नज़ाकत को देखते हुए मंच से भोजनावकाश की घोषणा हो गई। हम भी भोजन स्थल की तरफ लपक लिए 🤪 भैय्या हमें शुरु से ही लाइन में लगकर खाना खाना पसंद नहीं सो या तो प्रथम पंक्ति में या अंतिम। सो भईया प्लेट पकड़ी और मिसी रोटी दाल सब्जी सहित एक टेबिल पकड़ ली जहां मुलाकात हुई कमलेश भट्ट कमल जी से। इधर उधर की बात की और वापिस हॉल में " बन्ने की दुल्हनियां" देखने। चूंकि बारिश पुनः आ धमकने की संभावनाएं ज्यादा थीं सो साढ़े चार तक नाटक का आनंद लिया और सुभाष जी की गाड़ी में आ धमके। इससे पहले की वो कुछ कहते हम बोल पड़े प्रभु अगर अंत तक नाटक के लिए रुकेंगे तो......... सुभाष जी तो सुभाष ठहरे हास्य व्यंग्य के सरताज सो अट्टहास लगाते हुए बोले अब कार में घुस ही गए हो तो हिंदी भवन स्थित अट्ठाहस कार्यक्रम में चलो जब तक मन लगे बैठो वरना खिसकने के हज़ार रास्ते हैं। हमने आसमान की तरफ देखा तो बदल घुरड घुरड कर डरा रहे थे सो माैसम के मिजाज़ को देखते हुए हमने तुरंत हां में अपनी मुंडी हिला दी और जा पहुंचे हिंदी भवन। इसी बहाने कुछ परिचित चेहरों से मिलना जुलना हो गया। लगभग एक घंटा बिताने के बाद हमने लोकल की वोकल पकड़ी और जा पहुंचे द्वारका।

         अगले दिन चूंकि कोलकत्ता से पधारी हिम्मत चौरड़िया जी की पुस्तक के लोकार्पण में विशेष अतिथि आमंत्रित थे सो लक्ष्मी नगर वाया वसंत विहार संतोष संप्रिति के की कार में ढूंढते ढूंढते कार्यक्रम स्थल जा पहुंचे। लगभग दो ढ़ाई घंटे के कार्यक्रम में जमकर कविताओं का दौर चला। कम कवि ज्यादा कविताएं। वहां से निफराम हुए सीधे आनंद विहार बस पकड़ी और मेरठ।  दो दिनों का सफल साहित्यिक प्रवास। प्रदीप बाबू बढ़िया है।


प्रदीप डीएस भट्ट -24725

Saturday, 6 July 2024

"मिट्टी की महक"

"मिट्टी की महक"

         19 दिसंबर दिन रविवार 2021 की एक सुबह। आज छुट्टी का दिन था इसीलिए निवेदिता थोड़ा ज़्यादा देर तक सोना चाहती थी। किन्तु अकस्मात उसे याद आया कि आज तो बच्चों को अपने दादा दादी, चाचा चाची, बुआ फूफा, ताऊ जी ताई जी एवम उनके नौनिहालों से ज़ूम के माध्यम से बातें करनी हैं। इसीलिए वो जल्दी से फ्रेश हुई फिर सुबह के लगभग सभी ज़रूरी काम निपटाते निपटाते भी उसे 9 बज ही गए। चूंकि बच्चे अभी छोटे थे बेटी 4th में और बेटा 2nd में इसीलिए उसने निश्चय किया कि काम निपटाकर ही बच्चों को उठायेगी। ताकि फ्रेश होकर बच्चे व पतिदेव सीधे ब्रेकफस्ट की जगह branch करें ताकि भारत में बातचीत करके सीधे रात में डिनर करें। वैसे भी वाशिंगटन डीसी और भारत के कई शहरों में लगभग नौ दस घंटे का फ़र्क है। इसलिए बात देहरादून करनी हो या दिल्ली या फिर कोलकाता। यूं तो 20 दिसंबर से क्रिसमस की छुट्टियां पड़ने ही वाली थीं किंतु बच्चों को भारत में हर रविवार अपनों से बात करनी ही होती थी और ये स्थिति कोरोना के बाद ज्यादा हो गई थी। इसलिए तय नियम के अनुसार आज भी यही प्रोग्राम सुनिश्चित था। निवेदिता ने जून 2019 में जर्मनी से माइक्रोसाफ्ट के हेड ऑफिस वाशिंगटन डी सी में प्रमोशन पर ज्वाइन किया था वहीं प्रणव को जब ट्रांसफर की कोई गुंजाइश नजर नहीं आई तो उसने सीमेंस कंपनी छोड़नी ही बेहतर समझा। अच्छी बात ये हुई कि जनरल मोटर्स ने वाशिंगटन डी सी में ही पोस्टिंग दे दी। बस इस प्रक्रिया में प्रणव को चार महीने लग गए। इधर निवेदिता को भी बच्चों के स्कूल की व्यवस्था करने में दो महीने का समय लग गया। जब ज़िंदगी पटरी पर आने लगी तो प्रणव और निवेदिता ने मिलकर तय किया कि ऑफिस के साथ साथ बच्चों को भी वाजिब समय देना जरूरी है ताकि बच्चे मन में भारत को हमेशा बसाए रहें। 

         चूंकि अभी 9 ही बजे थे तो निवेदिता ने सोचा कि प्रणव और बच्चों को दो घंटे और सोने देती हूं ताकि उनकी हफ़्ते भर की नींद पूरी हो सके। प्रणव कल रात ही यूएई के एक महीने के टूर से लौटा था तो निवेदिता ने मन ही मन बुदबुदाते हुए कहा प्रणव को थोड़ा और सोने देती हूं उसके लिए थोड़ी सी रियायत तो बनती है। जहां तक प्रणव का प्रश्न था तो वो अगर टूर पर नहीं है तो शनिवार रविवार को घर का कोई काम नहीं करता था बस पूरे दो दिन या तो बच्चों के होमवर्क पर फोकस करेगा या फिर बच्चों के साथ बिलकुल बच्चा बनकर उधम उतारता फिरेगा। बच्चों के आने के बाद प्रणव निवेदिता से भी ज्यादा बच्चों में मस्त रहना पसंद करता था। निवेदिता का वही रूटीन कि सुबह जल्दी उन्नीदा सा सोकर उठना फिर घर का काम बच्चों के स्कूल की तैय्यारी करते करते निवेदिता को समय का पता ही नहीं चलता था लेकिन जल्दी ही वो इन सबको अभ्यस्त हो गई थी और समय से सब काम निपटाकर प्रणव और वो साथ साथ ही ऑफिस के लिए निकल जाते। पिछ्ले दस सालों से निवेदिता भारत से बाहर ही थी। वैशाली जब होने वाली थीं तब उसने सासू मां को खास तौर से छः महीने के लिए कैलिफोर्निया बुला लिया था। जब सासू मां भारत गई उससे पहले ही अवनि और निलोत्पल निवेदिता के पास आ गए थे। इस तरह एक साल में सब कुछ आराम से हो गया। यही प्रक्रिया 2014 में भी अपनाई गई बस इतना फर्क रहा कि पहले अवनि और सुहासिनी कैलिफोर्निया आ गए थे बाद में प्रणव के माता पिता। बस यूं ही दिन हंसते गाते गुजर गए।

         फ़रवरी 2020 में प्रणव और निवेदिता एक महीने के लिए दिल्ली देहरादून कोलकाता की यात्रा कर मार्च 14 को यूएस पहुंचे ही थे कि कोरोना ने दस्तक दे दी। भारत से वापिसी पर निवेदिता और प्रणव ने महसूस किया कि बच्चे दादा दादी नाना नानी सभी को बहुत मिस कर रहे हैं किंतु जब दोनों बार बार पूछते कि फिर कब इंडिया चलेंगे तो निवेदिता कह देती पहले कोरोना चाचा अपने घर जाएंगे तब। निवेदिता की बात सुनकर प्रणव मुस्कुरा भर देता था ऐसा ही जब बच्चे प्रणव से पूछते तो प्रणव हंसते हुए कहता पहले कोरोना मामा को अपने घर जाने दो। अब मुस्कुराने की बारी निवेदिता की होती थी। इधर जब कोरोना ने भयंकर रूप धारण करना शुरु किया तो अमेरिका क्या पूरे विश्व में ही हाहाकार मच गया और फिर क्या बच्चे क्या बड़े सब घरों में कैद हो गए। सब कुछ ऑनलाइन हो गया ऑफिस बंद स्कूल बंद सब कुछ ऑनलाइन ऑनलाइन ऑनलाइन। प्रणव ने समय रहते तीन चार महीने का राशन वगैरह का स्टॉक कर दिया था। सब घरों में कैद थे तब निवेदिता और प्रणव ने तय किया कि हफ्ते में एक बार जूम या अन्य माध्यम से भारत में सभी परिवाद से जुड़े रहेंगे ताकि बच्चे उदास न रहें। ये आइडिया ऐसा था जिसे सभी ने हाथों हाथ लिया। एक महीने तक बच्चे दादा दादी नाना नानी चाचा चाची के साथ रहे थे तो उन्हें रिश्तों का मर्म समझ आने लगा था। जून 2021 के आस पास कोरोना का प्रकोप तो बहुत कम हो गया किंतु निवेदिता और प्राणव अब भी घर से ही काम कर रहे थे। बच्चों के स्कूल खुलने की भी अभी दूर दूर तक कोई गुंजाइश नजर नही आ रही थी।

        चार साल कैलिफोर्निया रहने के बाद 2015 में प्रणव ने कंपनी चेंज कर सिंगापुर ज्वाइन कर लिया था निवेदिता ने भी रिक्वेस्ट कर सिंगापुर ही पोस्टिंग ले ली थी फिर जब जर्मनी का ऑफर मिला तो दोनों 2017 में जर्मनी आ पहुंचे। अभी ठीक से दो साल हुए भी नहीं हुए थे कि निवेदिता का ट्रांसफर फिर यूएस हो गया। इन्हीं सबको याद करते करते  निवेदिता ने घर का सारा काम निपटाया और फिर नहा धोकर मंदिर में ज्योत जलाकर अपने लिए एक कॉफी बनाई और ड्रॉइंग रूम की बाल्कनी में आ बैठी। बाहर का नज़ारा भी अद्भुत था कहीं धूप निकल रही थी और कहीं हल्की बौछार पड़ रही थी। निवेदिता ने आराम से एक कुर्सी में स्वयं को समेट लिया और दूसरी कुर्सी पर टांगे फैलाकर बैठ गई। अचानक पानी की हल्की बौछार ने निवेदिता के चेहरे को तर बतर कर दिया। इस अचानक आई बौछार से निवेदिता के हाथ से कॉफी लगभग गिरते गिरते बची। निवेदिता को अपनी और प्रणव की पहली मुलाक़ात याद हो आई फिर निवेदित ने कॉफी के मग को अच्छे से संभाला और कुर्सी पर उसी अवस्था में आ बैठी। पुराने दिनों की बातें याद आते ही निवेदिता के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तैर गई। न जाने कब निवेदिता कॉफी की चुस्की लेते लेते अतीत की यादों में खोती चली गई।......
         
         दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से फ्रंटियर अल सुबह 4 बजे मुम्बई के लिए निकलती है। चूंकि सिंघवी इंजिनियर कॉलेज में निवेदिता का B.Tech कंप्यूटर साइंस में एडमिशन हो गया था और वो चार साल के लिए घरवालों से दूर हो रही थी सो भारतीय सोच के अनुरूप  निवेदिता का पूरा परिवार उसे अल सुबह उठकर ट्रेन तक छोड़ने आया था। निवेदिता के साथ पूरा परिवार मतलब पूरा परिवार जिसमें उसके बड़े भाई सुहास चक्रवर्ती भाभी सुहासिनी माता अवनि चक्रवर्ती और पिता निलोत्पल चक्रवर्ती इसी के साथ दो प्यारे बच्चे सुष्मिता एवम प्रसून। अब जब ये तय हो गया कि निवेदिता अब मुंबई जाकर रहेगी तो पिता ने फौरन राजधानी एक्सप्रेस का टिकिट बुक कर दिया ताकि बिटिया आराम से जाए लेकिन बिटिया ने फरमाइश के तौर पर अपनी अलग ही बात रख दी कि उसे एक बार फ्रंटियर से जाने की इजाज़त दी जाए। ये फरमाइश ऐसी थी कि घर में सभी लोग चौंक उठे। बड़ा भाई तुरंत बोल पड़ा ये कैसी फरमाइश हुई हम तेरे लिए फ्लाइट का टिकिट भी ले सकते थे लेकिन चूंकि तेरी सहेली तेरे साथ ही जा रही है और समान कुछ ज्यादा है इसलिए पापा ने राजधानी का टिकिट बुक किया है और हमारी बहनिया है कि खटपटिया ट्रेन से जाने की फरमाइश कर रही है। सुहास अपनी बात कह चुका था इसलिए उसको छोड़कर सभी कुछ देर तो मौन बैठे रहे फिर अचानक सुष्मिता और प्रसून एक साथ बोल पड़े बुआ आप भी न कमाल करती हो हम सब चाहते हैं कि आप राजधानी से जाओ लेकिन आप हो कि मुर्गे की डेढ़ टांग की तरह फ्रंटियर फ्रंटियर फ्रंटियर फ्रंटियर। अचानक सुष्मिता को अंदाजा हुआ कि उसे ये सब नहीं बोलना चाहिए था इसलिए वो तो चुप हो गई लेकिन प्रसून चूंकि सुष्मिता से छोटा था इसलिए वो आंख बंद कर अपनी ही धुन में बोले जा रहा था। बुआ आप कभी राजधानी में गई हो क्या? नहीं न तो फिर आपको क्या पता राजधानी के मजे। जब हम पिछ्ले साल नानी के गए थे न नानी के पास कोलकाता तो राजधानी से गए थे। ट्रेन चली तो फ्रूटी थोड़ी देर बाद चाय कॉफी बिस्किट पानी की बोतल फिर सूप फिर खाना और बाद में आइसक्रीम सब कुछ फ्री, मजा ही मजा और आप वाली ट्रेन में कुछ भी नहीं सब खरीदना पड़ता है बुआ खरीदना। इससे पहले कि प्रसून कुछ और कहता सुहास ने उसका कान पकड़कर डांट लगाई तो निवेदिता एक दम उठी और सुहास के हाथ से प्रसून का कान छुड़ाते हुए बोली इसे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं भैय्या ये अभी बहुत छोटा है। सुहास ने भी निवेदिता से पूछ ही लिया कितना छोटा है प्रसून मिट्ठू। महाशय अभी छः साल के हैं तो इतना प्रवचन दे रहे हैं। इससे पहले कि सुहास आगे कुछ कहता निलोत्पल ने बीच में टोकते हुए कहा सुहास बच्चों पर बिगड़ना बंद करो। 

         उधर सुहासिनी के मन में कुछ और ही चल रहा था उसे पूरा विश्वास था कि निवेदिता का जरूर किसी से चक्कर चल रहा है। वरना भरे पूरे घर की लड़की राजधानी एक्सप्रेस की जगह फटीचर ट्रेन में जाने की जिद क्यूं करेगी। वो इस बात को सुहास और अपनी सास अवनि से शेयर करना चाह रही थी किंतु जब बाबू जी ने सुहास को बच्चों के विषय में टोक दिया तो वह मन मसोसकर रह गईं। तभी निलोत्पल बोले तुम बोलो मिट्ठू (निवेदिता के घर का नाम) निवेदिता बोली फ्रंटियर मेल जिसका नाम अब गोल्डन टेंपल है,1 सितम्बर 1928 से अभी 2006 तक अमृतसर से बम्बई तक लगातार चल रही है। इतनी पुरानी ट्रेन से न जाने कितने लोग इसमें सफ़र कर अपनी अपनी मंजिल तक पहुंच चुके हैं। धर्मेंद्र, साहिर सतीश कौशिक शाहरूख कितने नाम गिनवाऊँ पापा। इस ट्रेन का एक लंबा शानदार इतिहास रहा है। मैं भी इस ट्रेन से सफर कर इस इतिहास का हिस्सा बनना चाहती हूं। बस इतनी सी बात है पापा। जहां तक अनुमेहा का प्रश्न है वो भी फ्लाइट और राजधानी दोनों का टिकिट अफोर्ड कर सकती है किन्तु हम दोनों ने ही फ्रंटियर से जाने का फ़ैसला किया है। निलोत्पल ने टेंस माहौल में जोर का ठहाका लगाया और निवेदिता से बोले जहां तक मेरा और सुहास का प्रश्न है हम दोनों बाप बेटे शायद यही सोच रहे थे कि निवेदिता शायद राजधानी एक्स्प्रेस के महंगे टिकिट के लिए फिजूल में क्यूं पैसे खर्च किए जाएं सोच रही होगी और जहां तक तुम्हारी मां और भाभी का प्रश्न है इन दोनों के दिमाग़ में निवेदिता का किसी लड़के से चक्कर है इसीलिए वो फ्रंटियर में जा रही है। इससे पहले कि अवनि चक्रवर्ती कुछ कहतीं सुहासिनी एक दम बोल पड़ी ऐसा कुछ भी नहीं है पापा फिर रुआंसे स्वर में अवनि से बोली मम्मी देख लो पापा हम दोनों को ही खींच रहे हैं। एक लम्बी उच्छवास भरते हुए अवनि बोली अब इस विषय में कोई चर्चा नहीं होगी फिर निलोत्पल की ओर मुड़कर बोली अगर निवेदिता फ्रंटीयर में ही जाना चाहती है और वो भी स्लीपर में तो आप निवेदिता और अनुमेहा दोनों के टिकिट फ्रंटियर से ही कर दीजीए। सभी ने महसूस किया कि अवनि ने फ्रंटियर पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया है। ऐसा तभी होता था जब उन्हें न चाहते हुए भी किसी की इच्छा के आगे आधा अधूरा झुकना पड़ता था। आज कुछ ऐसा ही हुआ था।

         बस यूं ही दिन बीतते रहे और 17 जुलाई भी आ पहुंची। ट्रेन चूंकि 18 जुलाई सुबह 4 बजे की थी तो पूरा घर निवेदिता की पैकिंग में मदद करने में मसरूफ़ था। ये तय हुआ था कि जब तक कॉलेज हॉस्टल अलॉट नहीं होता है तब तक निवेदिता फिलहाल अनुमेहा की बुआ के पास ही रुकेगी। एडमिशन के समय यूं तो निवेदिता के साथ निलोत्पल और अवनि भी गए थे और एडमिशन कन्फर्म होने के बाद हॉस्टल के विषय में एडमिनिस्ट्रेशन से बात हो गई थी। चूंकि अभी कॉलेज और हॉस्टल दोनों ही निर्माणाधीन स्थिति में थे तो ये तय हुआ कि जब तक निर्माण कार्य पूरा नहीं होता तब तक स्टूडेंट अपनी व्यवस्था स्वयं करेंगे। अब जिन्हें विले पार्ले जिससे जुहू बस लगा हुआ ही है जैसी जगह पढ़ने और रहने को मिल जाए तो वो थोड़ा क्या ज्यादा इंतज़ार भी कर सकता है। निवेदिता का वैसे भी मुंबई में ही पढ़ने का मन था भले ही उसे ब्रांच कोई भी मिले। 12th में 95% और PCM में 93% लाने पर वैसे भी उसको ज्यादा दिक्कत होने वाली नहीं थी। सो "जहां चाह वहां राह" कहावत को चरितार्थ करते हुए उसे मुम्बई के सिंघवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल भी गया। अच्छी बात ये रही कि उसकी बेस्ट फ्रेंड अनुमेहा को भी सिंघवी कॉलेज में ही एडमिशन कंफर्म हो गया। सायं चार बजते बजते सभी तैय्यारियां पूर्ण हो गई। थोड़ी देर में अनुमेहा भी अपने मम्मी पापा के साथ आ गई। तय भी यही हुआ था की अनुमेहा निवेदिता के घर पर ही रुकेगी क्यूं कि अनुमेहा द्वारका में रहती थी और निवेदिता टैगौर गार्डन। अब जब सब काम निपट गये तो सुहास की तरफ़ से घोषणा हुई कि आज का डिनर उसकी तरफ़ से वो भी कनॉट प्लेस में। अब चूंकि सुबह चार बजे ट्रेन थी तो सोना कौन चाहेगा सो तय हुआ कि रीगल में नाइट शो देखेंगे फिर खाते पीते दो तीन बजे तक निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। साढ़े सात बजे सुहास ने अपनी i 10 कार में निवेदिता और अनुमेहा का सामान सेट किया निलोत्पल चक्रवर्ती ने अपनी मारुती ऑल्टो। बच्चे तो बुआ के साथ चिपक लिए साथ में सुहासिनी और अनुमेहा ऑल्टो में निलोत्पल अवनि अनुमेहा के माता पिता। सभी की सवारी साढ़े आठ बजे कनॉट प्लेस जा पहुंची, सेंट्रल पार्क की पार्किंग में दोनो गाड़ियां पार्क की। चूंकि आज संडे था तो पूरा कनॉट प्लेस मस्ती से सराबोर था। कोई कुछ बेच रहा था कोई कुछ खरीद रहा था। कहीं कोई बैंड अपनी संगीतमयी प्रस्तुति से लोगों का मन मोहने का प्रयास कर रहा। मतलब कुछ न कुछ बस हो रहा था। सब तरफ़ हँसते मुस्कराते लोग। बच्चे तो बच्चे बड़े भी बच्चा बनने को तैयार। ये सब पिछ्ले एक दो साल से ही शुरु हुआ था। देखकर ऐसा लगता था जैसे हम किसी यूरोपियन कंट्री में विचर रहे हों। सब कुछ इतना अच्छा लग रहा था कि पूरी फैमिली ने पिक्चर का प्रोग्राम कैंसिल किया और स्टैंडर्ड रेस्टोरेंट में डिनर के बाद सब कनॉट प्लेस की मस्ती में खो गए। 

         रात का कब 1 बज गया पता ही नहीं चला। सभी थक चुके थे किंतु दिल्ली में ऐसी मस्ती सबने एक अरसे बाद की थी। अनुमेहा के पिता राजीव शर्मा कनॉट प्लेस के एनडीएमसी में ही उप निदेशक थे किन्तु ऑफिस से घर और घर से ऑफिस बस पिछले 27 सालों से यही रूटीन था और उनकी पत्नी शालिनी शर्मा वो केंद्रीय विद्यालय में टीजीटी टीचर। उनका भी वही रूटीन घर से स्कूल और स्कूल से घर। लेकिन आज अनुमेहा के कारण दोनों ने ही एक लम्बे अरसे बाद कुछ घंटे ही सही लेकिन ज़िंदगी जी ली थी। निश्चित दोनों ही स्वयं को नये जोश से भरा पा रहे थे या ये कहना ज्यादा श्रेयस्कर होगा कि दोनों ही पुनः रिचार्ज हो गए थे। कुछ यही हाल निलोत्पल और अवनि का भी था दोनों ही कोलकत्ता से सत्तर के दशक में जे एन यू में पढ़ने आए थे। अवनि ने जे एन यू से मास्टर किया और फिर पीएचडी वहीं निलोत्पल ने अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री ली फिर इधर उधर काम करते हुई लास्टली अस्सी के दशक में फाइनेंशियल एक्सप्रेस न्यूज़ पेपर ज्वाइन कर लिया और अभी भी वहीं काम कर रहे थे। अवनि ने पीएचडी करने के बाद दो चार फ़ुटकर नौकरी की फिर वो भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर लग गईं। आजकल हिन्दी विभाग में एच ओ डी हैं। निलोत्पल और अवनि का कलकत्ता से दिल्ली की ट्रेन में ही परिचय हुआ फिर वो परिचय मित्रता में तब्दील हो गया और अंततोगत्वा दोनों एक दूसरे के प्यार में गिरफ़्तार हो गए और परिणीती स्वरूप प्यार शादी के पवित्र बंधन में।1983 में दोनों ने घरवालों की रजामंदी से शादी भी कर ली और अवनि अवनि रथ से अवनि चक्रवर्ती बन गई।

         आसमान में बादल चांद को अपने आगोश में लेने के लिए बढ़े आ रहे थे वहीं अवनि और निलोत्पल भी पुराने दिनों को याद करते हुए मंद मंद मुस्कुराते हुए एक दूसरे के नजदीक होते जा रहे थे। सुहास और सुहासिनी मम्मी पापा की मनोदशा को भांपने का प्रयास कर रहे थे। उधर अनुमेहा और निवेदिता बच्चों संग फुल टू मस्ती में मगन थे। घूमते घूमते पूरा परिवार कनॉट प्लेस स्थित क्वॉलिटी आइसक्रीम की दुकान पर आ पहुंचा। सबने अपने पसंद की आइसक्रीम ली तभी सुहास ने कहा रात का डेढ़ बज रहा है आइसक्रीम खाते खाते पालिका पार्किंग की तरफ चलते हैं। सभी ने स्वीकृति में सिर हिलाया और ग्यारह नंबर की सवारी से पालिका पार्किंग की ओर बढ़ चले। पार्किंग तक पहुंचते पहुंचते काले काले घने बादलों ने चांद को पूरी तरह अपने आग़ोश में जकड़ लिया था। कनॉट प्लेस का आसमान काले बादलों से पूरी तरह ढक चुका था। जैसे ही दोनों कारें पार्किंग से बाहर निकली ताबड़ तोड़ बारिश शुरु हो गई शायद बारिश कहना चाह रही थी आज दिल्ली की सड़कों की सफाई धुलाई मेरे जिम्मे है। तेज बारिश में कार चलाना और वो भी रात में। निलोत्पल और सुहास दोनों ने ही गाड़ी की गति 40 से नीचे ही रक्खी। जैसे तैसे दोनों कारें निजामुद्दीन स्टेशन पहुंची। कार से सामान बाहर निकालाकर एक तरफ़ रक्खा फिर वहीं रेलवे बाउंड्री से सटाकर दोनों कारें खड़ी कर दी गईं। बच्चों को निवेदिता और अनुमेहा ने संभाला और सामान बाक़ी छ्हो ने। प्लेटफॉर्म नंबर एक पर आकार सबने अपनी अपनी श्वांसो को नियंत्रित किया जो सामान उठाकर चलने के कारण अनियंत्रित हो गई थीं। सुहास आधा गीला आधा सूखा ही इंक्वारी पर पहुंचा तो पता चला ट्रेन दो घंटे लेट है छः या सात बजे आएगी। किस प्लेटफॉर्म पर आएगी पूछते ही इंक्वायरी वाला घूरकर बोला कान खोलकर घोषणा सुनते रहें पता चल जाएगा। सुहास मन ही मन बुदबुदाया अभी तो ढ़ाई ही बजे हैं। खैर सभी ने तीन चार बैंचों पर कब्ज़ा किया। चाय सबको चाहिए थी सो पास ही ठेले से सभी को चाय देते और खुद की चाय सुड़कते हुए सुहास बोला जिसे आराम करना है कर लो। ट्रेन दो घंटे लेट है। सुहासिनी चाय सुड़कते हुए बोली अजी छोड़ो भी काहे का आराम वाराम यूं ही गप्पा मारते मारते समय यूं गुजर जाएगा जैसे गधे के सिर से सींग। सुहासिनी की बात सुनकर सब खिलखिला कर हंस पड़े और वास्तव में गप्पा मारते मारते कब छः बज गए पता ही नहीं चला। बारिश भी लगभग एक घंटा बरसने के बाद शायद पानी लेने कहीं और चली गई थी। तभी एनाउंस हुआ अमृतसर से चलकर मुंबई जाने वाली गोल्डेन टेंपल एक्सप्रैस प्लेटफॉर्म नम्बर 5 पर 7.10 पर आने की संभावना है।
सभी ने उठकर अंगड़ाई ली और सामान उठाया ही था की सुहास बोल पड़ा अरे यार प्लेटफॉर्म टिकिट तो लिया नहीं तभी राजीव शर्मा बोले प्लेटफ़ॉर्म टिकिट मैंने ले ली हैं। सुहास ने एक लम्बी उच्छवास भरी और कृतज्ञता से शर्मा अंकल जी को थैंक यू कहा। सभी प्लेटफॉर्म नंबर 5 पर आ पहुंचे। 7.30 पर गोल्डेन टेंपल भी आ पहुंची। आसमान बिल्कुल साफ़ था और सूर्य प्राची से पश्चिम की अपनी यात्रा शुरु कर चुका था। S-9 में 9 निवेदिता का और S9-12 अनुमेहा का यानि दोनों लोअर बर्थ। निलोत्पल, अवनी राजीव और शालिनी चारों ही नीचे की बर्थ देखकर प्रसन्न थे। जब सब कुछ सेट हो गया तो सबने चैन की श्वांस ली। गाड़ी छूटने में तीन चार मिनिट शेष थे और इधर अवनि एवं शालिनी दोनों के चेहरों की कांति क्षीण हो रही थी। निवेदिता और अनुमेहा को सब समझ आ रहा था तो दोनों एक दम बोली गाड़ी छूटने वाली है आप लोग नीचे चलो। निलोत्पल समझ चुके थे इसलिए सभी वापिस प्लेटफॉर्म पर आ गए साथ ही अनुमेहा और निवेदिता भी। जैसे ही सिग्नल ग्रीन हुआ अवनि और शालिनी की आंखों से बरसात शुरु हो गई। दोनों ने अपनी अपनी मम्मियों को ढांढस बढ़ाते हुए कहा इंजीनियरिंग करने जा रहे हैं ससुराल नहीं मातेSSS! अनुमेहा और निवेदिता ने माते कुछ इस अंदाज़ में कहा कि सभी की हंसी छुट गई। आसपास खड़े कुछ अन्य परिवार जन भी जो अपनों को विदा करने आए थे विशेष अंदाज़ में माते सुनकर अपनी हंसी नहीं रोक पाए। तभी राजीव शर्मा ने कहा चलो बच्चों ट्रेन में चढ़ो गार्ड ने हरी झंडी दिखा दी है। इधर ट्रेन धीरे धीरे प्लेटफॉर्म छोड़ रही थी उधर चक्रवर्ती परिवार और शर्मा परिवार आंखो में नमी लिए हाथ हिलाकर स्वयं को सांत्वना देते हुए मंथर गति से प्लेटफार्म की सीढ़ियां चढ़ रहा थे।

         अनुमेहा और निवेदिता ने फ़ैमिली को विदा कर अपनी अपनी सीटें पकड़ी और कुछ देर पारिवारिक बातें करने के बाद सीट पर पैर फैलाकर बैठ गईं। 11 एवम 14 नंबर के यात्री अपर सीट पर सोए पड़े थे शायद पंजाब या हरियाणा से आ रहे थे वहीं 10 और 13 नंबर की सीट के यात्री थोड़े से अनमने से लग रहे थे अनुमेहा ने पूछ ही लिया अंकल सब ठीक तो है न तो बोले हम दोनों की बीच वाली सीट है। दिन में तो ठीक है रात में बीच वाली सीट पर सोना महाभारत ही है और हां अगर रात में टॉयलेट के लिए उठना पड़ जाए तो पहले उतरो फिर चढ़ना दुबारा महाभारत होने जैसे है। निवेदिता को समझ आ गया था कि अंकल नीचे वाली बर्थ चाहते हैं। इसलिए उसी ने पहल करते हुए अंकल को उनकी पत्नी के लिए रात में सोने के लिए अपनी सीट ऑफर कर दी। अंकल शायद इसी की ताक में थे इसलिए तुरन्त निवेदिता के सर पर हाथ रखकर ढेरों आशीर्वाद दे डाले। उधर अनुमेहा अपनी सीट पर पूरा पसर गई और आंखों के इशारों में निवेदिता को समझा दिया कि मेरी सीट की हामी मत भर दियो। निवेदिता ने भी आंखो से ही सांत्वना दी कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। अंकल आंटी से बात करते करते मथुरा भी आ पहुंचा। तभी अनुमेहा से कहा चल मैं गर्मागर्म चाय लाती हूं तू कुछ खाने को निकाल। तभी आंटी बोल पड़ी बेटा मेरे लिए भी चाय ले आना। अनुमेहा ने हां भरते हुए प्लेटफार्म पर लगभग छलांग लगाई और दो मिनिट में ही चाय वाले के साथ हाज़िर। निवेदिता ने हंसते हुए चाय वाले को चार चाय के पैसे दिए फिर बोली इतनी फुर्ती मत दिखा ये ट्रेन तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली। अनुमेहा ने भी हंसते हुए ही जवाब दिया तू बैठी है न अगर ट्रेन छूटती तो चेन तो खींच ही देती। यूं ही हँसते गाते ट्रेन भरतपुर पहुंची तो दोनों ने तय किया कि थोड़ा सो लिया जाए। बस अंकल आंटी एक सीट पर और अनुमेहा निवेदिता सीट नम्बर 12 पर। निवेदिता ने खिड़की की तरफ़ सिर रख लिया और अनुमेहा ने निवेदिता के पैरों की तरह। 

         खुली खिड़की से आ रही ठंडी हवा ने दोनों को कब सुला दिया पता ही नहीं चला। अचानक जोर की बिजली चमकी और खिड़की के रास्ते बारिश की तेज बौछार सीधे निवेदिता के चेहरे को भिगो गई। इस      अप्रत्याक्षित घटना से निवेदिता एक दम हड़बड़ा कर उठ बैठी। हवा के साथ तेज बारिश खुली खिड़की के रास्ते लगातार सीट भिगोए जा रही थी। निवेदिता उठी और खिड़की बन्द करने का प्रवास करने लगी किंतु खिड़की थी कि जिद्दी बच्चे सी बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तभी उसके कानों से एक आवाज टकराई आप हटिए मैं देखता हूं। निवेदिता ने पलटकर देखा 11नम्बर की बर्थ वाला पैसेंजर था हष्ट पुष्ट लगभग पौने छः फीट हाइट का गेहुआं रंग आंखों पर गोल फ्रेम का नजर का चश्मा। निवेदिता ने एक शॉट में ही उसका एक्सरे कर लिया था। वो 'जी' कहते हुए पीछे हट गई। थोड़ी सी मशक्कत के बाद आखिरकार खिड़की का शीशा नीचे आ ही गया। अब बारिश अपना सारा जोर खिड़की के शीशे पर निकाल रही थी। निवेदिता ने थैंक्स कहा। सीट नम्बर 11 के बंदे ने बस मुंडी हिलाकर जवाब दिया और बाथरुम की तरफ़ चला गया थोड़ी देर बाद वापिस आकर बोला शीशा नीचे करते हुऐ कालख लग गई थी मैंने हाथ धो लिए हैं आप भी धो लें। कालिख आपके हाथों में भी लग गई है। निवेदिता ने अपने हाथों की ओर देखा और हां कहते हुए बाथरूम की तरफ़ चली गईं तब तक खटर पटर सुनकर अनुमेहा भी जाग चुकी थीं। निवेदिता ने वापिस आकर देखा कि अनुमेहा ने सीट पर गिरे पानी को न्यूज़ पेपर से साफ़ कर दिया था। वो 11 नम्बर की सीट वाला बन्दा भी अनुमेहा वाली सीट पर ही बैठ गया था। निवेदिता ने उसी सीट पर अपने आप को एडजस्ट कर लिया। थोड़ी ख़ामोशी के बाद निवेदिता ने 11 नम्बर वाले से पूछ ही लिया कौन सा स्टेशन आने वाला है सर। उस बन्दे ने आंखों से चश्मा उतारकर हाथ में लिया फिर रुमाल से ग्लास साफ़ करते हुए कहा कोटा अभी 15 मिनट पहले निकला है अब बड़ा स्टेशन तो रतलाम आएगा फिर वापिस चश्मा पहनते हुए बोला मेरा नाम प्रणव भार्गव है। निवेदिता ने जल्दी से अपना परिचय दिया फिर अनुमेहा की ओर मुड़ते हुए कहा ये अनुमेहा शर्मा हैं फिर बिना रुके ही ये भी बता दिया कि हम दोनों का मुम्बई के इंजिनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो गया है। उस बन्दे ने हूं कहा और पूछा मुम्बई में कहां और किस कॉलिज में। इस बार अनुमेहा ने जवाब दिया जी सिंहवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग जो जुहू में है। अनुमेहा ने जुहू पर कुछ ज़रूरत से ज्यादा जोर दिया तो प्रणव मुस्कुरा दिया। इससे पहले कभी मुम्बई आई हैं आप दोनों। दोनों ने एक साथ कहा जी at the time of admission वो भी मम्मी पापा के साथ। इस बार प्रणव और ज्यादा मुस्कुरा दिया फिर बोला लगता है आप दोनों को मुम्बई कुछ ज्यादा ही पसंद है। अनुमेहा ने तुरन्त कहा मुझे तो दिल्ली से बढ़िया कुछ लगता नहीं पर इन माहरानी को मुम्बई कुछ ज्यादा ही अच्छी लगती है सो इनकी जिद पर हमें भी सिंघवी कॉलेज में ही कंप्यूटर साइंस में एडमिशन लेना पड़ा है। "अब दोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी ही"।

         यूं ही बात चीत का सिलसिला चल निकला तो फिर रतलाम स्टेशन तक लगातर चलता रहा। रतलाम स्टेशन आते ही प्रणव तेजी से स्टेशन पर उतरा फिर थोड़ी देर में ही दो लंच प्लेट हाथ में लिए वापिस सीट पर। अनुमेहा ने प्रणव के हाथ से दोनों प्लेट लेकर साइड में लगी लंच सीट पर रख दी। तब तक दोनों अंकल आंटी भी एक पूरी नींद लेकर उठ चुके थे। प्रणव ने अंकल से पूछ लिया आपको कुछ चाहिए तो बता दें मैं लाकर देता हूं। अंकल जिनका नाम श्रीप्रकाश था बोले नहीं बेटा हम बाहर का कुछ भी खाना अवॉइड ही करते हैं हां मजबूरी की बात अलग है। बेटी ने दो समय का खाना बनाकर दिया है। कल सुबह तक भी कुछ बचा ही रहेगा। जी ठीक है कहकर प्रणव ने 17 नम्बर सीट वाले को उठाया लीजिए हुज़ूर आपके लिए खाना आ गया है खाकर मुझे भी और इस खाने को भी कतार्थ करें। प्रणव के इस अंदाज़ पर निवेदिता और अनुमेहा दोनों ही खिलखिलाकर हंस पड़ी। 14 नम्बर वाला भी प्रणव की उम्र का रहा होगा। नीचे उतरते ही पहले फ्रेश होकर आया फिर प्रणव को घूरता हुआ बोला बेटा अहसान मत जताओ हम जो घर से लाए थे वो तो तुम अंबाला में ही का चर गए। जब दिल्ली इत्ती देर ट्रेन रुकी थी तब कुछ नाश्ता ही ले लेते पर काहे को लोगे भई हम हैं न तुम्हारा अत्याचार झेलने के लिए। प्रणव ने हंसते हुए अनुमेहा से कहा अनुमेहा जी निवेदिता जी ये हैं शशांक शर्मा हिमाचल के सोलन से, ये भी वहीं यानि सिंघवी कॉलेज से B Tech कर रहे हैं electronic से ये थर्ड ईयर छात्र हैं, आपके सीनियर। नमस्कार के बाद निवेदिता और अनुमेहा दोनों ही एक दम सतर्क होकर बैठ गईं। शशांक बोला देखो भाई सीनियर विनीयर हम कल से होंगे और हां रैगिंग तो नहीं हां हल्की फुल्की खिंचाई आप दोनों की निश्चित होगी और उस खिंचाई में ये महाशय भी होंगे इन्होंने अपने बारे में तो नहीं ही बताया होगा ये भी वहीं के प्रोडक्ट हैं। ब्रांच इनकी भी एलेट्रोनिक ही है और वे भी थर्ड ईयर स्टूडेंट हैं तो भाइयों एवम.... नहीं बहनों वहनों नहीं तो साथियों सीनियर होने के नाते ये ट्रेन जब भी बोरीवली स्टेशन पहुंचेगी तो अपन वहीं उतरेंगे वहीं से टैक्सी कर सीधे मलाड अपने महल में फिर एक दम रुककर पूछा आप दोनों कहां जाएंगी। अनुमेहा ने उत्तर दिया हम दोनों मेरी बुआ के पास विद्या विहार जाएंगे। कल वहीं से सिंघवी कॉलेज आ जायेंगे। ठीक है तो टैक्सी पहले हमें छोड़ेगी फिर आप दोनों आगे निकल जाना। हां यही ठीक रहेगा कहकर प्रणव बोला बाकी प्रवचन बाद में देना स्वामी जी पहले भोजन कर लो फिर अनुमेहा की तरफ देखकर बोला आप कुछ खाएंगी या फिर सोना है। अनुमेहा ने निवेदिता की तरफ़ देखा और साथ लाए खाने को खोलने लगी। निवेदिता के आग्रह पर चारों ने एक दूसरे के साथ खाना शेयर किया फिर निवेदिता ने शशांक से पूछ ही लिया ये खाने का क्या चक्कर है। सुशांत बोला भाई साहब चंडीगढ़ अपनी मौसी के यहां आए हुए थे और हम सोलन से सीधे चलकर अंबाला आए हमारी अम्मा ने 30 पूरी करेला आलू की सब्जी और पता नहीं क्या क्या बना कर दिया था भाई साहब ने सायं 4 बजे से रात्रि 9 बजे तक अंबाला स्टेशन पर ही सब कुछ निपटा दिया। अब आप बताओ कल रात ग्यारह बजे से अब तीन बज रहे हैं। मतलब नाश्ता नाम की कोई चीज़ होती है या नहीं। अम्बाला कैंट से सोए तो सीधे कोटा आकर उठे अरे भई दिल्ली उठ लेते और हमें भी उठा देते। क्यूं कि हमारी नींद तो कुंभकर्णी नींद है सो गए तो सो गए। अनुमेहा खूब जोर से हंस पड़ी निवेदिता भी मुस्कुरा पड़ी। प्रणव ने शशांक से कहा चलो महाराज अभी काफी समय है अपनी अपनी सीट पर चलो दो तीन घण्टे और आराम किया जा सकता है।

         ट्रेन बोरीवली स्टेशन 1 घंटे लेट यानि रात्रि साढ़े बारह बजे पहुंची प्लेटफार्म से बोरीवली ईस्ट तक बाहर आते आते एक बज ही गया तभी अनुमेहा का मोबाइल घनघना उठा दूसरी तरफ़ अनुमेहा के फूफा जी थे हाय हैलो के कुछ ही देर बाद बुआ और फूफा दोनों ही अनुमेहा और निवेदिता के सामने आ खड़े हुए। बुआ जी एकदम गुस्से में बोली 2 घण्टे से फ़ोन कर रहे हैं फ़ोन क्यूं नहीं उठाया अनुमेहा। इससे पहले कि अनुमेहा कोई जवाब देती निवेदिता ने बात संभालते हुए कहा बुआ जी हम दोनों खाना खाकर सो गए थे इसलिए पता नहीं चला। फूफा जी ने कहा कोई बात नहीं बेटे लेकिन फिक्र तो होती ही है ख़ैर चलो कार पार्किंग में है अब कुली तो मिलने से रहा सो हम लोग ही सामान उठाते हैं। ये सब इतना अप्रत्याक्षित हुआ था कि अनुमेहा और निवेदिता शशांक और प्रणव को बॉय भी न बोल सके। उधर प्रणव ने जब देखा कि अनुमेहा के बुआ और फूफा उन्हें लेने आएं हैं तो दोनों चुपचाप अपना सामान उठाकर दूसरी तरफ़ मुड़ लिए। शशांक कुछ कहना चाहता था किंतु प्रणव की भाव भंगिमाएं देखकर वो भी चुपचाप समान उठाकर पीछे पीछे हो लिया। टैक्सी में बैठते ही शशांक बोल ही उठा यार माना उनके रिश्तेदार लेने आ गए थे लेकिन हम उन्हें बॉय तो बोल सकते थे। प्रणव ने शशांक की ओर देखे बिना ही कहा वो दोनों अभी मुंबई में आई ही हैं अगर अनुमेहा अपनी बुआ और फूफा से हमारा परिचय कराती तो दोनों को ही दिक्कत होती। भले ही वे मुम्बई में रहते हैं लेकिन उनकी भी जड़े नॉर्थ की ही हैं। वे एक दम कुछ भी पचा पाने में असहज ही होते। शशांक ने हां में मुंडी हिलाई तो प्रणव ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा शर्मा जी समझे तो सही लेकिन देर से।

         अगले दिन निवेदिता और अनुमेहा जैसे ही सिंघवी कॉलेज पहुंचे तो प्रणव और शशांक ने दोनों को देखते ही कहा "विले पार्ले केलवाणी मण्डल द्वारका दास जे सिंघवी कॉलेज ऑफ इंजिनियर" में आप दोनों का स्वागत है। सामान्यत: लोग सिंघवी कॉलेज कहकर ही सम्बोधित करते हैं। इसलिए कॉलेज का पूरा नाम लेकर सम्बोधन करना निवेदिता और अनुमेहा दोनों को ही बड़ा अजीब सा लगा लेकिन अंदर ही अंदर दोनों खुश भी थीं कि चलो इंजिनियर कॉलेज का पहला दिन उन्हें जीवन भर याद रहेगा। सीनियर द्वारा रैगिंग जब होगी तब होगी अभी तो सीनियर द्वारा ऐसा स्वागत अच्छा ही लगा। प्रणव और शशांक ने निवेदिता और अनुमेहा को साथ लिया और सीधे एडमिन डिपार्टमेंट में ले गए काफी सारी फॉर्मेलिटी पूरी करने करने में आधा दिन निकल गया। जहां तक हॉस्टल की बात है तो वही रटा रटाया जवाब कि जैसे ही खाली होगा आपको बता दिया जाएगा। वहां से सीधे चारों कैंटीन में आ पहुंचे। निवेदिता ने कूपन लेने की कोशिश की तो शशांक ने कहा आज तो नहीं मतलब बिलकुल भी नहीं देवियों आज हमारी तरफ से। जब आप दोनों जम जाएंगी तो बढ़िया वाली पार्टी लेंगे। ठीक है कहकर निवेदिता वापिस सीट पर आ बैठी तभी चार लड़के लड़कियां वहां आ पहुंचे प्रणव ने निवेदिता और अनुमेहा का परिचय कराया। जैसे ही पता चला कि फर्स्ट ईयर स्टूडेंट हैं उनमें से एक लड़की बोली सीनियर खड़े हैं और जूनियर बैठे हैं चलो खड़े हो जाओ और हां आंखें नीची रखना। अनुमेहा की ओर इशारा करते हुए दूसरी लड़की बोली कल से बॉब कट नहीं बेबी पोनी टेल समझीं। अनुमेहा ने नीची नजर किए किए ही हां में मुंडी हिलाई। शशांक जो खाने के लिए लाया था उस पर उन चारों ने कब्ज़ा कर लिया फिर निवेदिता की ओर देखते हुए एक लड़का बोला ओ मैडम चलो अपने सीनियर के लिए हर सामान का टोकन लो खाने की थाली छोड़कर और सप्लाई यहां इस टेबल पर तुम दोनों करोगी। निवेदिता और अनुमेहा टोकन काउंटर की तरफ़ चल पड़ी। जो भी आइटम कैंटीन में मौजूद था सबका कूपन लिया फिर एक एक करके टेबल पर लाकर रखने लगी। अनुमेहा को गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन करते भी क्या जब प्रणव और शशांक ही चुप थे तो वो क्या कर सकते थे। जब सब सामान टेबिल पर लग गया तो उन चारों में से एक जिसका नाम भारत जैन था बोला तुम दोनों की सर्विस ढीली है अब अपना मूड नहीं है खाने का चलो अब तुम दोनों खड़े खड़े ही ये सारे आइटम खाओ और अगर नहीं खाए तो कल इसी जगह इसी टाइम फिर यही तो लग जाओ। अनुमेहा और निवेदिता को भूख तो बहुत जोर की लग रही थी लेकिन खिंचाई के कारण भूख उड़ गई थी लेकिन अब जब सीनियर्स ने खाने का आर्डर हुआ तो दोनों भूखों की तरह दोनों पिल पड़ी लेकिन दोनों गरीब जान कितना खाती। आधे आइटम खत्म करते करते दोनों को डकार आ गई। निवेदिता और अनुमेहा ने सॉरी कहा तो सब जोर जोर से हंसने लगे। कैंटीन में भीड़ भी इकट्ठी हो चुकी थी। भरत ने दोनों को बाकी बचा खाने के लिए कहा तो दोनों ने हाथ जोड़ दिए। तभी पीछे से आवाज़ आई बस बस भरत आज पहला दिन है दोनों का बख्श दो भई। निवेदिता ने धीरे से नजर उठाकर देखा भरत के कंधे पर हाथ रक्खे एक लड़की दिखी। निवेदिता को अपनी ओर चोर नज़रों से देखते हुए वो लड़की बोली सुष्मिता भट्टाचार्य 3rd year और तुम दोनों अपना इंट्रो दो। अनुमेहा ने भी चोर नज़रों से देखा बॉब कट सुनहरे बाल आंखो पर प्रोग्रेसिव लेंस का चश्मा लगाए आकर्षक चेहरा। भरत के अलावा भी सभी बड़ी इज़्ज़त से उसे देख रहे थे। जब निवेदिता और अनुमेहा का इंट्रो हो गया तो सुष्मिता ने बोला इन दोनों का आज पहला दिन है भरत और हां प्रणव अब तुम सब मिलकर टेबल क्लियर करो और वो भी पांच मिनिट में। जी मैम कहकर छहो के छहो बाकी बचे खाने पर पिल पड़े और पांच मिनिट से पहले ही टेबल क्लियर हो गई। मीटिंग बर्खास्त चलो कल मिलेंगे। सभी ने एक दम एक स्वर में यस मैम कहा। सुष्मिता जाने के लिए मुड़ी फिर एक दम पलटकर निवेदिता के पास आकर अपना मोबाइल देकर बोली इसमें अपना नम्बर सेव कर दो और हां प्लेस भी डाल देना। जी मैम कहकर निवेदिता ने अपना रिलायंस का मोबाइल नम्बर सुष्मिता के मोबाइल में सेव कर दिया। थैंक यू कहकर सुष्मिता ने निवेदिता के कंधे पर हाथ रक्खा और तेजी से वहां से चली गई। सुष्मिता के जाने के बाद सबने चैन की सांस ली तभी भरत बोला चलो अपने अपने बिलों में वापिस चलो सुष्मिता मैम का कोई भरोसा नहीं तुरन्त वापिस भी आ जाती हैं। ठीक है कहकर सभी वहां से निकल लिए निवेदिता और अनुमेहा ने भी बाहर आकर ऑटो लिया और सीधे विद्या विहार।

         पहला दिन ऑफिस का हो या कॉलेज का या फिर स्कूल का सभी को अच्छे से याद रहता है। ऐसी ही फीलिंग अनुमेहा और निवेदिता को भी हुई। आज जो कॉलेज में हुआ उसे रेंगिग कहो या हल्की फुल्की खिंचाई दोनों को पहले तो बहुत गुस्सा आया था किंतु ऑटो में घर लौटते हुए अनुमेहा और निवेदिता ने बात करते करते इस खिंचाई से उत्पन्न हुई ख़ुशी को एक दूसरे से साझा किया फिर दोनों ही खूब जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी। ऑटो वाले ने पीछे मुड़कर मसला समझने की कौशिश की तो निवेदिता बोली भैय्या आगे देखो आगे। जब चार बजे दोनों विद्या विहार पहुंचीं तब भी उनके चेहरे पर आज की खिंचाई से उत्पन्न खुशी चेहरे पर मचल रही थी। बुआ जी ने पूछा तो दोनों ने सब कुछ बता दिया। बुआ जी अदरक वाली चाय चाहिए हां अभी बनाती हूं कहकर किचन में चली गईं फिर थोड़ी देर बाद ही तीन कपों के साथ कुछ बिस्किट नमकीन लेकर लौटीं तो उनके चेहरे पर भी मुस्कान तैर रही थीं। जब अनुमेहा ने पूछा तो बोली मुझे कॉलेज का अपना पहला दिन याद हो आया। सीनियर ने बालों में सरसों का तेल लगा दिया था फिर लाल रिबन लगा कर दो चोटियां बनाकर उन्हें आगे की तरफ लटका दिया था और आदेश दिया था कि पूरे एक साल तक ये चोटियां ऐसे ही आगे लटकी रहेंगी और हां सीनियर हम हों या हमसे ऊपर वाले कॉलेज में ऐसा ही रहना है। तुम दोनों तो फिर भी हल्के में छुट गई। रैगिंग पहले ज्यादा होती थी अब तो गवर्नमेंट ने काफी कुछ पर रोक लगा दी है। अनुमेहा बोली बुआ अभी तो चार साल पड़े हैं कल देखते हैं क्या होता है। बुआ जी अपने एक्सपीरियंस से बोली आज से ज्यादा कुछ नहीं होगा। तुमने बताया न अनुमेहा कि सुष्मिता घोष ने निवेदिता का नम्बर लिया है। निश्चित वो एंटी रैगिंग की तरफ से होगी। आजकल कॉलेज में आठ दस सीनियर लोगों की एंटी रैगिंग टीम बना दी जाती है जो सीधे मैनेजमेंट को रिपोर्ट करती है। कुछ भी गलत हुआ तो टीम ज़िम्मेदार। निवेदिता ने बुआ जी की तरफ देखकर पूछा आपको ये सब कैसे पता बुआ जी। बुआ जी हंसते हुए बोली मैं पवित्रा जोशी पिछ्ले साल तक मिठीबाई में ही पढ़ा रही थी। अभी अभी वीआरएस ले लिया है बच्चों। ओ तेरे की तो ये बात है बुआ जी अनुमेहा ने कभी बताया ही नहीं। अब पता चल गया न मेरी बहन अब चल कल की तैयारी करते हैं कहते हुए अनुमेहा ने निवेदिता को दोनों कंधों से पकड़ते हुए बेडरूम के बाजू वाले कमरे की ओर धकेला। 

         विद्या विहार से सिंघवी कॉलेज ऑटो से आना और ऑटो से ही वापिस जाना निवेदिता और अनुमेहा की दिनचर्या का हिस्सा बन गया था। दोनों ने एक बार लोकल ट्रेन का स्वाद भी चख लिया था और एक ही दिन में समझ आ गया कि ये हमसे न हो पाएगा इसलिए ऑटो का विकल्प ही बेहतर है। हँसते गाते मुस्कुराते एक वर्ष यूं ही निकल गया।  दो सेमेस्टर पूरे हो चुके थे। इससे पहले कि तीसरा सेमेस्टर शुरु हो सभी ग्रुपों ने अपने अपने हिसाब से पिकनिक का प्रोग्राम बना लिया। निवेदिता और अनुमेहा के ग्रुप ने माथेरान जाना तय किया और प्रणव और शशांक के ग्रुप ने महाबलेश्वर, लेकिन प्रणव ने ये कहते हुए जाने से मना कर दिया वो महाबलेश्वर पिछले वर्ष ही घूम चुका है इसलिए वो माथेरान जाना पसंद करेगा। अनुमेहा को पता था कि प्रणव निवेदित एक दूसरे में इंट्रेस्टेड है लेकिन पिछले एक साल में बात सिर्फ़ मौन से लेकर आंखों तक पहुंची थीं। प्रणव और निवेदित के अतिरिक्त अनुमेहा भी यदा कदा दोनों की आंखों की भाषा पढ़ने लगी थी। इस बात का आभास सुष्मिता को भी था। सुष्मिता सीनियर होने के बावजूद निवेदिता से मित्रवत व्यवहार रखती थीं एक दिन जब अनुमेहा ने पूछा मैम आप निवेदिता पर कुछ ज्यादा ही कृपा रखती हो तो सुष्मिता ने घूरकर देखते हुए कहा तुम आज से मुझे मैम कहना बंद करो "दी" चलेगा फिर एक लम्बी सांस लेते हुए बोली निवेदिता मेरी छोटी बहन का नाम है। चार साल छोटी है मुझसे। उस दिन जब भरत तुम दोनों की खिंचाई कर रहा था तो मैंने अपनी सहपाठी को सारा माजरा समझने भेजा था। चूंकि सीनियर सिर्फ़ जूनियर की खिंचाई कर रहे थे रैगिंग नहीं इसलिए जब आरुषि ने निवेदिता का नाम बताया तो मैने भरत को टोक दिया था। बस यही कारण है जो मुझे निवेदिता का ख्याल रखने के लिए प्रेरित करता है। वैसे अनुमेहा मैं सिर्फ निवेदिता की ही नहीं वरन तुम्हारी भी पूरी खबर रखती हूं। सुष्मिता की बात सुनते ही निवेदिता और अनुमेहा दोनों ही सुष्मिता के गले लग गईं। कुछ क्षण यूं ही गुजर गए। जब तीनों अलग हुई तो तीनों की ही आंखों में खुशी के आंसू छलक आए थे। तभी प्रणव की आवाज़ ने तीनों का ध्यान भंग किया मैम थोड़ी सी कृपा मुझ पर भी बरसाएं। तभी शशांक बोल उठा कुछ शेष बचे तो इस अशेष को भी। सुष्मिता हंसते हुए बोली सभी को निश्चित मिलेगी लेकिन पहले अपने गोल पर फोकस करना सीखो। मुझे तुम चारों में से किसी की भी बैक नहीं चाहिए। एक बार में एक सेमेस्टर क्लियर होना ही चाहिए। चारों ने इक दूसरे के हाथ पर हाथ रखते हुए एक स्वर में कहा निश्चित ऐसा ही होगा मैम। शशांक सुष्मिता को सम्बोधित करते हुए बोला मैम आप कहां जा रही हैं पिकनिक के लिए। सुष्मिता हाथ झटकते हुए बोली सातवां सेमेस्टर शुरु होने में अभी दस दिन बाकी है इसलिए अपन तो कल सुबह की फ्लाइट से सीधे नागपुर पंद्रह दिन बाद आएंगे। आख़िरी साल है अपना आगे तो अब सब कुछ निपटा कर ही जाना होगा। तुम लोग एंजॉय करो। पिछ्ले एक साल में निवेदिता और अनुमेहा सिर्फ दीपावली पर ही दिल्ली होकर आई थीं वो भी सिर्फ एक हफ़्ते के लिए इसलिए जब पिकनिक का प्रोग्राम बना तो दोनों की बांछे खिल गईं। प्रणव तुम माथेरान ही जा रहे हो न। जी मैम कहते हुए प्रणव ने बताया शशांक भी साथ ही जाएगा। ये तो और भी अच्छा है । ठीक है मैं अब चलती हूं तुम लोग अपना ध्यान रखना।

         प्रोग्राम तय करते हुए दस दिन यूं ही निकल गए फिर तय दिन पर समय सुबह 6.30 पर सभी 30 स्टूडेंट अंधेरी स्टेशन पर पहुंच गए। 7.46 की फास्ट लोकल ली और लगभग डेढ़ घंटे बाद सभी लोग नेरल स्टेशन और वहां से टॉय ट्रेन लेकर सभी लोग लगभग 11बजे माथेरान। मुंबई से 100 किलोमीटर की दूरी, समुद्र तल से 2600 फीट की ऊंचाई पर स्थित माथेरान सह्याद्रि पर्वत्र श्रंखला से घिरा हुआ सुन्दर हिल स्टेशन। सभी ने पहले होटल में डेरा जमाया फिर खा पीकर निकल गए घूमने। इस ग्रुप में अशोक सावंत भी था जिसका बी टेक का ये अंतिम वर्ष था। कैंपस सलेक्शन के अंतर्गत उसका इंफोसिस में चयन भी हो गया था। वो पिछ्ले एक वर्ष से निवेदिता के नज़दीक आने की भरपूर कोशिश कर रहा था किंतु प्रणव शशांक और सुष्मिता की चौकस निगाह से वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था। माथेरान का प्लान भी उसी ने बनाया था ताकि वो निवेदिता के साथ समय बिता सके लेकिन प्रणव ने महाबलेश्वर का प्रोग्राम छोड़कर निवेदित के साथ माथेरान आने का निश्चय किया तो अशोक कुछ ज्यादा ही चिढ़ गया। कॉलेज में भी एक दो बार उसकी प्रणव और शशांक से झड़प हो चुकी थी। अशोक और उसके दो तीन चमचे फिल्मी स्टाइल में सीनियर होने का भरपूर फ़ायदा उठाने के लिए कुख्यात भी थे फिर वो लड़का हो या लड़की लेकिन निवेदिता और अनुमेहा के बारे में उनकी दाल बिलकुल नहीं गल रही थीं। लगभग आधे दिन घूम फिरकर सभी लोग होटल वापिस आ गए वैसे भी 5 बजे के बाद पहाड़ों में अंधेरा छाने लगता है। रात नौ बजे के बाद जब सब खा पीकर फिट हो गए तो तय हुआ कि होटल के कोर्टयार्ड में सब इकट्ठा होंगे और अधम उतारेंगे। अशोक सांवत ने अपने चेले चपाटों के साथ एक तरफ़ डेरा डाल दिया और आदेश दिया कि फर्स्ट ईयर की सभी लड़कियां का डांस प्रोग्राम शुरू होगा। आदेश तो आदेश है वो भी सीनियर का कुल 8 लड़कियों जिसमें अनुमेहा और निवेदिता भी शामिल थीं गानों पर डांस शुरू कर दिया। एक गाना दो गाने फिर जब तीसरा गाना बजा तो सबने हाथ खड़े कर दिए। अशोक नशे में फुल टू मस्त था वो अपनी जगह से ही चिल्लाया पैर रुकने नहीं चाहिएं नाचो बसंती नाचो। सभी ने एक स्वर में मना किया तो अशोक उठकर लड़कियों की तरफ बढ़ा,प्रणव और शशांक जानते थे कि अशोक का निशाना अनुमेहा और निवेदिता ही हैं इसलिए इससे पहले कि अशोक कोई बदतमीजी करें दोनों ने अशोक को अपनी जगह बैठने के लिए कह दिया। बात बढ़ी तो फिर बढ़ती चली गईं बात मार पीट तक पहुंचती इससे पहले ही होटल मेनेजमेंट ने सभी को हदों में रहने की हिदायत दे डाली। कुछ ही देर में सभी अपने कमरों में चले गए। सुबह प्रणव और शशांक 8 बजे नाश्ते पर आए तो देखा अशोक सब लड़कियों को धमकी दे रहा था। कल रात का फ़ैसला कल कॉलेज में होगा। यहां तो हम पांच ही सीनियर हैं वहां कॉलेज में सब सीनियर के सामने नचवाऊंगा समझे। ये आमची मुंबई है यहां वही होता है जो अपुन लोग चाहता है। शशांक गर्म दिमाग़ का बन्दा वो आगे बढ़ना ही चाहता था तभी प्रणव ने उसे रोक दिया। शशांक कुछ कहता इससे पहले ही प्रणव बोल पड़ा शशांक मैं अकेला इन सबको संभाल सकता हूं लेकिन इन आठ लड़कियों में क्या दम नहीं है जो इसे जवाब दे सकें। आज हम बीच बचाव कर देंगे लेकिन कल फिर यही सब कहीं और हुआ तो इन्हें कौन बचाएगा। I इन्हें अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ने की आदत डालनी चाहिए। ये सुनकर अशोक और उसके चेले चपाटे प्रणव को वहां देखकर आग बबूला हो गए। तुम दोनों इन सबके ठेकेदार बनकर आए हो क्या। कल कॉलेज में तुम्हारा भी इंतज़ाम करता हूं। शशांक बोला कल तो कल आएगा न ला आज तेरा इंतजाम मैं ही किए देता हुं। तभी निवेदिता बोल पड़ी शशांक शांत हो जाओ फिर अशोक की तरफ़ देखकर बोली तो कल मिलते हैं कॉलेज कैंटीन में ग्यारह बजे सीनियर अशोक सावंत। अशोक सांवत को निवेदिता से ऐसे किसी उत्तर की अपेक्षा नहीं थी सो वो पहले तो सकपका गया फिर बोला हां हां ठीक है कल ग्यारह बजे।

        अगले दिन कैंटीन में भारी भीड़ जमा थी। निवेदिता और अनुमेहा तो ग्यारह से पहले ही कैंटीन में पहुंच गईं। प्रणव और शशांक भी अपने कुछ सहपाठियों के साथ कैंटीन में एक कोने में खड़े थे। ग्यारह बज गए बारह बज गए लेकिन अशोक सांवत और उसके चेले चपाटे सब नदारत। आख़िर साढ़े बारह बजे तय किया गया कि अब और इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है सभी अपनी अपनी क्लास में चलते हैं। आश्चर्य अगले तीन दिन यूं ही निकल गए लेकिन अशोक और उसके चेले चपाटे कॉलेज में नहीं दिखे तो सभी को चिंता हो गई आख़िर पांचवे दिन खबर लगी कि माथेरान से लौटते समय उन सभी का कर्जत में झगडा हो गया था। जिनसे झगड़ा हुआ वो सभी लोकल ऑफेंडर्स थे। बात पुलिस तक भी पहुंची। जब पोलिस को पता चला कि चारों स्टूडेंट्स हैं तो चेतावनी देकर छोड़ दिया गया किंतु झगड़े में लगी चोट के कारण चारों बांद्रा के अपने किराए के फ्लैट में आराम कर रहे थे। अगले सोमवार को जब चारों कॉलेज पहुंचे तो काफ़ी शांत थे। प्रणव शशांक निवेदिता एवम अनुमेहा भी उनकी क्लास में ही उनसे मिलने पहुंचे। इससे पहले कि कोई कुछ कहता समझता अशोक ने माथेरान के व्यवहार के लिए निवेदिता से हाथ जोड़कर माफ़ी मांग ली। निवेदिता ने अशोक का हाथ पकड़कर कहा जो हुआ सो हुआ मैं अब उसे भूल चुकी हूं। लेकिन ये सब कैसे हुआ पूछने पर अशोक बोला झगड़े के बाद तुम सभी लोग वापिस आ गए मैं अमन रजत और प्रवीण अगले दिन सुबह निकले। रात का हैंगओवर था सो कर्जत में सीट को लेकर कहा सुनी हो गई बात बढ़ी तो हाथा पाई हो गईं मैंने फोन पर पुलिस को इनफॉर्म कर दिया लेकिन चूंकि हमारी रात की उतरी नहीं थी तो मामला उल्टा हो गया। वो सब लोकल गुंडे थे तो पोलिस ने हमारे ही खिलाफ़ उल्टा मामला बना दिया था वो तो रजत ने सुष्मिता मैम को फोन पर सारी स्थिति बताई फिर पता नहीं क्या हुआ कि एक घंटे बाद पुलिस ने हमें चेतावनी देकर छोड़ दिया। वापिस आकर पता चला कि सुष्मिता मैम ने अपने भाई को फोन किया और उन्होनें वहां के सी आई से बात की तब हम छूटे थे। सुष्मिता मैम का भाई कौन है शशांक ने यूं ही पूछ लिया पता चला वो नागपुर के असिस्टेंट पोलिस कमिश्नर हैं। ओ तेरे की सुष्मिता मैम ने हमें कभी नहीं बताया। तभी पीछे से सुष्मिता की आवाज़ आई। जब तक बहुत जरूरी न हो तब तक इंफ्लूलेंस नहीं करना चाहिए शशांक। जी मैम शशांक कहते हुए पीछे हट गया। सुष्मिता बोली माथेरान में जो कुछ भी हुआ मुझे पता चल गया था। भगवान जो करता है अच्छा ही करता है। अगर इन चारों के साथ ये न हुआ होता तो अशोक इससे ज्यादा मुसीबत में फंस सकता था। इसे एक साथ दो सबक मिल गए पहला अपने दोस्तों के साथ कोई बदतमीजी नहीं दूसरा बुरे वक्त में दोस्त ही काम आते हैं। अचानक प्रणव ने सुष्मिता से पूछ लिया आप नागपुर से कब लौटीं। आज सुबह ही वापिस आई हूं और हां मुझे स्टेशन रिसीव करने अशोक ही आया था। शायद कृतज्ञता जताने जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। ख़ैर जो हुआ अच्छा हुआ। आगे से कोई गड़बड़ नहीं और हां निवेदिता माथेरान में दीवार फिल्म का डायलॉग मारने का ख्याल कहां से आया तुम्हें फिर हंसते हुए निवेदिता को गले लगाते हुए बोली कीप इट अप डियर। Thx दी कहकर निवेदिता ने सुष्मिता के अपनत्व के लिए आभार जताया। 

         इधर जब निवेदिता और अनुमेहा ने बुआ जी और फूफा जी को हॉस्टल अलॉट होने की सूचना दी तो दोनों बिगड़ गए। ये क्या भई ये तीन बेडरुम का मकान किसलिए है। यहां हम बूढ़े बुढ़िया ही तो रहते हैं। दोनों बच्चे तो बाहर सेटल हो गए हैं और मेरे रिटायरमेंट में अभी चार साल हैं। अगले महीने DGM पर प्रमोशन हो जाएगा तो अपन जुहू शिफ्ट हो जाएंगे। आखिर ONGC की नौकरी है भाई फिर खुद ही खिलखिलाकर हंस पड़े। निवेदिता ने बहुत समझाया लेकिन बुआ फूफा पर कोई असर नहीं हुआ। निवेदिता ने सारा किस्सा दिल्ली अपने माता पिता को बताया तो तीन दिन बाद ही निलोत्पल और अवनि विद्या विहार सुबह सुबह पहुंच गए। अचानक दोनों को देखकर पहले तो पवित्रा और विनय जोशी चौंक गए लेकिन जब सारा मामला समझ में आया तो बोले आज संडे है। पहले खा पी लें फिर बतियाते हैं। नाश्ते के बाद विनय जोशी ने कहा देखो चक्रवर्ती जी बेटा आस्ट्रेलिया सेटल है और बिटिया सिंगापुर। जब तक नौकरी है तब तक मुंबई में फिर बाद में अपन तो देहरादून लौट जाएंगे। इतना बड़ा मकान वहां बंद ही तो पड़ा है। मैंने तो पवित्रा को भी नौकरी करते रहने के लिए कहा था लेकिन ये नहीं मानी और पिछ्ले साल वीआरएस ले लिया। अब हम दोनों अकेले रहें उससे बेहतर है दोनों बिटियां यहीं रह लेंगी तो क्या बुरा है। निवेदिता को लगता है ये हम पर बोझ बन रही है तो ये इसकी गलतफहमी है। जहां एक साल हमारे साथ रही हैं तीन साल और सही फिर तो इसकी भी जॉब लग जानी है। अब हम ठहरे धर्म कर्म वाले लोग लड़की से पैसा लेने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। एक काम करें घर में दो बाई आती हैं एक बाई का पैसा निवेदिता की तरफ़ से आप दे दिया करें इससे निवेदिता को यहां रहने में कोई परहेज़ नहीं होगा। महीने के एक हजार तो साल के बारह हज़ार। क्यों निवेदिता ये मंजूर है या एक दो रुपए और बढ़ा दूं। फिर अपनी बात पर विनय जोशी खुद ही हंस पड़े। और कोई रास्ता न देखकर निलोत्पल और अवनि ने हथियार डाल दिए। मुंबई जैसे शहर में जहां हर काम टको पर चलता हो वहां ऐसे भी लोग रहते हैं सोचकर निलोत्पल आश्चर्यचकित थे। लेकिन ये दुनिया अपवादों पर ही चलती है और आज ये अपवाद वे विनय जोशी और पवित्रा के रूप में देख रहे थे। अगले दिन शाम को निलोत्पल और अवनि ने दिल्ली की उड़ान ये सोचकर भरी कि दोनों बच्चियां मुंबई जैसे शहर में सुरक्षित हाथों में हैं।

         समय पंख लगाकर कैसे उड़ता है पता ही नहीं चलता। प्रणव और शशांक का इंजीनियरिंग का अन्तिम वर्ष था सो कैंपस सलेक्शन में शंशाक को दक्षिण कोरिया की कंपनी एलजी ने सलेक्ट कर लिया वहीं प्रणव का सीमेंस में सलेक्शन हो गया। फाइनल एग्जाम के बाद प्रणव को बैंगलौर में ज्वानिंग मिली वहीं शशांक को गुडगांव। दोनों बहुत ही खुश थे। वहीं निवेदिता थोड़ा उदास थी। निवेदिता और प्रणव समझ सब रहे थे लेकिन पहले आप पहले आप के चक्कर में फंसे हुए थे। आख़िर विदाई का दिन भी आ पहुंचा। निवेदिता अनुमेहा दोनों ही मुंबई सेंट्रल स्टेशन से प्रणव और शशांक को विदा करने आ पहुंचे। अगस्त क्रान्ति ट्रेन साढ़े पांच बजे थी लेकिन चारों चार बजे ही स्टेशन आ पहुंचे थे। ट्रेन छूटने में अभी दस मिनिट बाकी थे और हंसी मज़ाक चल ही रहा था कि अचानक प्रणव ने निवेदिता को यह कहकर प्रपोज कर दिया कि "निवेदिता क्या तुम विक्रमादित्य और वैशाली की मां बनना पसंद करोगी " ये सब कुछ इतना अचानक हुआ कि निवेदिता के साथ साथ शशांक और अनुमेहा भी हतप्रभ रह गए। निवेदिता का तो मुंह ही खुला रह गया था। असमंजस की स्थिति बनी हुई थी इसलिए प्रणव ने कहा निवेदिता सोच समझकर जवाब देना कोई जल्द बाजी नहीं है। मैं ये पिछ्ले साल भी कह सकता था किंतु मैंने तय किया हुआ था कि पहले अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं फिर प्रपोज करूंगा। निवेदिता ने सिर्फ़ हां में सर हिला दिया। इधर ट्रेन ने सीटी दी उधर निवेदिता को लगा कि उसका दिल बैठा जा रहा है।  पिछ्ले दो सालों में उसे इतना तो समझ आ गया था कि प्रणव के मन में उसके लिए विशेष है और ऐसा ही कुछ निवेदिता के मन में भी था लेकिन वह भी पहले बीटेक कंपलिट करना चाहती थी। लेकिन आज अकस्मात इस तरह प्रणव द्वारा प्रापोज करने से उसके मन में भी प्रेम नदी की धार की तरह बह निकला। ट्रेन ने जब पूरी तरह प्लेटफॉर्म छोड़ दिया तो निवेदिता ने अनुमेहा का हाथ अपने हाथ में लेकर जोर से दबा दिया जैसे वो दो साल से पनप रहे रिश्ते को एक नाम देना चाह रही हो। अनुमेहा उसकी मनोस्थिति को भली भांति समझ पा रही थी इसलिए उसने निवेदिता को चलने का इशारा किया। घर पहुंचकर निवेदिता ने तुरन्त प्रणव को टेक्स्ट मैसेज कर बता दिया कि वो इस रिश्ते को स्वीकार करती है।

         अगले दिन कॉलेज पहुंचकर निवेदिता ने सारा किस्सा सुष्मिता से बयां किया तो सुष्मिता बोल पड़ी मुझे प्रणव ने पहले ही सब कुछ बता दिया था। मैंने ही उसे स्टेशन पर प्रपोज करने के लिए सुझाव दिया था।
तुम निश्चिंत रहो अभी तुम्हारे दो साल बाकी हैं। मेरा भी माइक्रोसॉफ्ट में चुनाव हो गया है लेकिन ज्वाइनिंग तीन महीने बाद की है तो मैं यहीं मुम्बई में दोस्तों के साथ एंजॉय कर रही हुं। एक काम करो तुम प्रणव से फ़ोन पर बात कर लो और तय कर लो कि आगे क्या करना है। ये तुम दोनों के भविष्य के लिए भी ठीक रहेगा। ठीक है कहकर निवेदिता बाहर निकली और सीधे क्लास में। शाम को घर जाने से पहले उसने प्रणव से लम्बी बात की और दोनों ने तय किया कि दोनों ही विशेष परिस्थिति को छोड़कर महीने के आखरी शनिवार को बात किया करेंगे ताकि निवेदिता की पढ़ाई डिस्टर्ब न हो साथ ही प्रणव भी अपने काम पर ध्यान दे सके। यूं ही दिन महीने फिर दो साल यूं ही गुजर गए। अनुमेहा और निवेदिता दोनों ही विनय जोशी और पवित्रा के साथ अब विद्या विहार छोड़कर जुहू शिफ्ट हो गई थे। इन दो सालों में निवेदिता और प्रणव नियमित रुप से महीने के आखरी शनिवार को फुर्सत से पूरे महीने की राम कहानी एक दूसरे से साझा करते। प्रणव दो महीने पहले ही बैंगलौर शिफ्ट हो चुका था जब कि शशांक अभी भी गुड़गांव में ही था। अब जब अनुमेहा और निवेदिता दोनों का छटा सेमेस्टर पूर्ण हुआ तो दोनों ने दिल्ली जाने का प्लान कर लिया। दिल्ली पहुंचकर दोनों ने अचानक एक दिन गुड़गांव पहुंचकर शशांक को फ़ोन किया तो वो यही समझा कि दोनों मुम्बई से कॉल कर रही होंगी लेकिन जब अनुमेहा ने बताया कि हम तुम्हारे ऑफिस के लॉन में बैठे हुए हैं तो शशांक चौंक गया। ठीक है तुम दोनों बैठो अभी मुझे एक घंटा लगेगा बाहर आने में तब तक कैफेटेरिया को एंजॉय करो। बिल तुम्हारे नाम ही फटेगा शशांक हम तो मस्ती में बैठे हैं। ठीक है जितना खाना पीना है खा पी लो बिल रिक्यूप हो जाएगा। लगभग पांच बजे शशांक कैफेटेरिया पहुंचा। पार्किंग से गाड़ी निकाली और बोला चलो सीपी चलते हैं वहीं मस्ती मारेंगे। तीनों खा पीकर रात दस के लगभग फ्री हुए तो निवेदिता बोल पड़ी रह कहां रह रहे हो। सेक्टर 15 में एक साल पी जी में रहकर देख लिया पिछ्ले साल ही 2 बीएचके फ्लैट ले लिया अभी हम तीन लोग एक साथ रह रहे हैं। चौका बर्तन साफ सफाई के लिए एक और खाना बनाने के लिए एक और बाई रख ली है। ठीक है लेकिन आज तुम हमारे साथ घर चलोगे। कल संडे हैं फैमिली संग एंजॉय करेंगे। नहीं निवेदिता तुम्हें ड्रॉप कर मैं गुड़गांव निकल जाऊंगा तभी अनुमेहा बोली हमने रिक्वेस्ट नहीं की है आदेश दिया। बिना ची चपड़ के घर चलो। अरे यार कपड़े भी तो नहीं हैं। निवेदिता ने शशांक के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा रहने दे रहने दे बहाने बाजी। आज हमारी ही चलेगी। ठीक है माते कहकर शशांक ने अपना पिंड छुटाया। अनुमेहा और निवेदिता लगभग एक महीना दिल्ली में रहीं इस दौरान शायद ही ऐसा कोई शनिवार रविवार बीता हो जब तीनों ने मिलकर मस्ती न की हो। फिर दोनों जुलाई में मुम्बई लौट आईं। 

        अनुमेहा और निवेदिता का ये लास्ट ईयर था सातवां सेमेस्टर शुरु हो चुका था। 9 अगस्त 2009, अभी निवेदिता कॉलेज में घुसी ही थी कि मोबाइल की घंटी बज उठी। निवेदिता ने फ़ोन उठाया तो उधर से प्रणव लाइन पर था प्रणव ने सिर्फ इतना कहा कि उसकी पोस्टिंग कैलिफोर्निया यूएस में हो गई है वो 17 अगस्त को मुम्बई पहुंचेगा फ्लाइट 19 की रात की है। बस इतनी सी ही बात हो पाई थी निवेदिता से कि फ़ोन कट गया। निवेदिता इधर से मिला रही थी और प्रणव उधर से लेकिन मुम्बई की बारिश तो बारिश ठहरी एक बार शुरू हो गई तो पड़ती रहती है जब तक कि बादलों का पानी ही न खत्म हो जाए। ऐसे में लैंडलाइन क्या और मोबाइल क्या सबकी स्थिति एक जैसी ही थी। थक हारकर निवेदिता ने नंबर रिडायल करना बन्द कर दिया तभी लगातार तीन टेक्स्ट मैसेज में पूरी बात स्पष्ट हो गई कि प्रणव 17 को सुबह 9 बजे बैंगलौर से चलेगा और 10.20 पर मुम्बई पहुंचेगा। जे डब्ल्यू मैरियट में एक दिन रुकेगा फिर 19 को 7 बजे मुम्बई एयरपोर्ट रात 12.40 की फ्लाइट है। निवेदिता ने एक ही सांस में तीनों मैसेज पढ़ डाले फिर गहरी सांस लेकर क्लास में चली गईं। ज्यादा तेज़ जुकाम होने के कारण आज अनुमेहा कॉलेज नहीं आई थी। निवेदिता ने आज क्लास जल्दी छोड़ दी और ऑटो लेकर सीधे घर। अनुमेहा का हाल चाल पूछा और ब्लैक कॉफी के दो मग लेकर अनुमेहा के सामने। अनुमेहा कुछ पूछती इससे पहले ही निवेदिता ने प्रणव के फोन और उसके प्रोग्राम के बारे में तफ्सील से बता दिया। दोनों ने मिलकर तय किया कि  प्रणव के कैलीफोर्निया की फ्लाइट लेने से पहले उसके साथ क्वालिटी टाइम बिताया जाए। फिर अचानक अनुमेहा बोली ऐसा करते हैं कि हम तीनों 18 की सुबह लोनावाला निकलते हैं एक रात वहीं रुकते हैं फिर 19 को लोनावला से सीधे एयर पोर्ट प्रणव को ड्रॉप करते हैं फिर सीधे घर। निवेदिता ने हां में सर हिलाकर अपनी स्वीकृति तो दे दी फिर बोली बुआ जी को क्या कहेंगे। तू चिंता न कर मैं कुछ आइडिया लगाती हूं। तू प्रणव को मैसेज कर प्लान बता दे। ठीक है कहकर निवेदिता ने प्रणव को मैसेज कर दिया। शाम हो गई लेकिन प्रणव का कोई उत्तर नहीं आया। निवेदिता ने सोचा भी कि फ़ोन कर ले लेकिन फिर तय नियम की याद हो आई। अगले दिन निवेदिता कॉलेज के लिए निकल ही रही थी कि प्रणव का टेक्स्ट मैसेज देख रुक गई। मैसेज में सिर्फ एक शब्द लिखा था " No " । मैसेज पढ़कर एक बारगी तो उसे हंसी आ गई फिर उसने उस मैसेज को अनुमेहा को फॉरवर्ड कर दिया। निवेदिता का भी तुरन्त मैसेज आ गया अबे ये क्या है हम उसकी खातिरदारी करना चाह रहे हैं और वो मना कर रहा है। चल अपने तो पैसे बचे।

         17 अगस्त को अनुमेहा और निवेदिता साढ़े नौ बजे ही सांताक्रूज एयरपोर्ट पहुंच गईं। पौने ग्यारह के लगभग प्रणव बाहर आ गया। तीनों एक दूसरे से बड़े गर्मजोशी से मिले फिर टैक्सी ली और जुहू स्थित होटल जे डब्ल्यू मैरियट। प्रणव होटल के कमरे में जाकर फ्रेश हुआ और थोड़ी ही देर में नीचे डायनिंग हॉल में आ गया जहां अनुमेहा और निवेदिता बैठी हुई थीं। आते ही प्रणव ने पूछा कुछ खाना है दोनों ने ही ना में सिर हिला दिया। ठीक है कहां चलना है बताओ प्रणव के मुंह से ये सुनते ही अनुमेहा बोली जो प्लान मैंने बनाया था उसमें तो तुमने गड्डी भर का मैसेज भेज दिया था "No" मैंने इतना बड़ा मैसेज पहले कभी नहीं पढ़ा। प्रणव हँसते हुए बोला अनु उस समय मैं मीटिंग में था। मेरे पास केवल आज का दिन है क्यों कि कल मुझे यहीं बीकेसी में फुल day ट्रेनिंग अटेंड करनी है। परसों भी दो बजे तक बिजी हूं। इसलिए तुम दोनों परसों 3 बजे यहीं आ जाना लंच साथ करेगें फिर आस पास घूमेंगे फिर शाम सात बजे एयरपोर्ट ठीक है। ठीक है महाराज अनुमेहा और निवेदिता एक साथ बोल पड़ी। बाहर बारिश चालू थी इसलिए टैक्सी बुलाई और तीनों निकल पड़े मुंबई की सड़को पर। शाम आठ बजे के करीब प्रणव ने अनुमेहा और निवेदिता को जेवीपीडी छोड़ा फिर सीधे होटल। 19 अगस्त को अनुमेहा और निवेदिता कॉलेज से सीधे होटल जे डब्ल्यू मैरियट पहुंच गईं। प्रणव साढ़े तीन बजे के क़रीब होटल पहुंचा। तीनों ने पहले खाना खाया फिर होटल की लॉबी में ही गप्पे मारते रहे। ठीक सात बजे तीनों टैक्सी लेकर एयरपोर्ट आ पहुंचे। अनुमेहा को पहले ही जुकाम था बारिश में थोड़ा भीग गई तो हल्का हल्का बुखार हो आया। प्रणव ने कहा भी एयरपोर्ट छोड़कर तुम दोनों घर लौट जाओ। निवेदिता तो मानी नहीं अलबत्ता अनुमेहा को जब प्रणव ने रिक्वेस्ट किया तो वो मान गई। निवेदिता ने एयरपोर्ट एंट्री टिकिट लिया और प्राणव के साथ अन्दर एंट्री कर गई। बैगेज जमा हो गया तो दोनों एक कोने में जा बैठे बात करते करते कब दस बज गए पता ही नहीं चला। प्रणव ने सिक्योरिटी चेक के लिए प्रस्थान किया तब भी निवेदिता उसे सिक्योरिटी चेक होने तक देखती ही रही। इसी चक्कर में उसे ग्यारह बज गए वो वापिस जाने के लिए गेट की ओर आई तो सीआरपीएफ ने उसका एयरपोर्ट एंट्री टिकिट देखकर कहा आप बाहर नहीं जा सकती उधर बैठिए थोड़ी ही देर में वहां सीआरपीएफ के तीन चार और लोग आ गए। निवेदिता कुछ समझ नहीं पा रही थी। वो शायद सीआरपीएफ का सब इंस्पेक्टर था जो उससे तरह तरह के सवाल जवाब कर रहा था। निवेदिता ने पूछा मेरे पास वैलिड एयरपोर्ट एंट्री टिकिट है फिर मुझे क्यूं परेशान किया जा रहा है। सब इंस्पेक्टर बोला क्या करती हैं आप निवेदिता ने तुरन्त अपना आई कार्ड दिखा दिया तो इंस्पेक्टर बोला आपको पता है ये एंट्री टिकिट सिर्फ एक घंटे के लिए वैलिड है और आपको एयरपोर्ट के अंदर चार घंटे हो गए हैं। निवेदिता बोल पड़ी इससे क्या फ़र्क पड़ता है मैं पेनल्टी भरने के लिए तैय्यार हूं। तभी लेडी कॉन्स्टेबल के वायरलेस पर मैसेज आ पहुंचा कि तुरन्त गेट नंबर दस पर रिपोर्ट करें। सब इंस्पेक्टर और दोनों कॉन्स्टेबल तेजी से गेट नंबर पांच की ओर लपके तभी लेडी कॉन्स्टेबल फुसफुसाते हुए बोली तुम्हारे दाएं तरफ़ गेट नम्बर एक के पास वीआईपी गेट है तुम अपने मोबाइल पर यूं ही बात करते हुए वीआईपी गेट से तुरन्त बाहर निकलो। ये कहते हुए वो लेडी कॉन्स्टेबल भी तेजी से गेट नम्बर दस की ओर लपकी । निवेदिता कुछ समझी कुछ नहीं समझी बस जैसे उस लेडी कॉन्स्टेबल ने कहा था वो यूं ही मोबाईल पर कैजुअल बात करते हुए बाहर निकली। बाहर निकलते हुए उसे इस बात का अहसास हो चुका था कि आजकल जगह जगह बम फटने आम बात हैं और आए दिन एयरपोर्ट उड़ाने की थ्रेट मिलती ही रहती है। मामले की गंभीरता को देखते हुए उसको अपनी रीढ़ की हड्डी में सिहरन महसूस हुई। जिस कैजुअल तरीके से वो बात करते हुए वो बाहर निकली थी बाहर निकलते ही उसके चलने की गति अचानक बढ़ गई। एक टैक्सी वाला अभी सवारी उतारकर पैसे गिन ही रहा था कि वो झट से उसमें जा बैठी। टैक्सी वाला कुछ कहता वो बोल पड़ी जेवीपीड़ी चलो भैय्या। मैं तो बांद्रा जा रहा हूं मैडम आप दूसरी टैक्सी ले लें। निवेदिता एक दम बिफर कर बोली तुरन्त टैक्सी आगे बढ़ाओ चच्चा रात में लेडी सवारी को मना नहीं करते। टैक्सी वाला चुपचाप चल पड़ा। रास्ते में उसने अनुमेहा को शार्ट में अंग्रेजी में किस्सा बयां किया फिर चुप होकर बैठ गईं। तभी टैक्सी वाला बोल पड़ा बिटिया तुम्हारा समय अच्छा था और उस लेडी कॉन्स्टेबल को तुम भगवान का दूत समझो जो तुम बच गईं। आजकल इस मामले में पुलिस जिसे चाहे अंदर कर दे कोई पूछने वाला नहीं है। निवेदिता ने चौंक कर टैक्सी वाले को देखा उम्र यही कोई पचास पचपन के आस पास काले सफेद बालों की खिचड़ी, एक लम्बी सी चोटी। आपको सब समझ आ गया चच्चा। टैक्सी वाला हंसते हुए बोला मुंबई में पच्चीस साल हो गए बिटिया भले अंग्रेजी अच्छी तरह न बोल पाएं लेकिन समझ तो सब जाते ही हैं। लगभग पच्चीस मिनिट के बाद जब टैक्सी जेवीपीडी रुकी तो निवेदिता ने दौ सौ रूपये देते हुए टैक्सी वाले को थैंक्स कहा और बैग लेकर सीधे फ्लैट में चली गईं। 

         अगले 6 महीने तक निवेदिता और अनुमेहा पूरी तरह पढ़ाई में डूब गईं। चूंकि सातवें सेमेस्टर के बाद कैपम्स सलेक्शन था इसलिए कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहता था। इस दौरान निवेदिता और प्रणव की सिर्फ़ दो बार बात हुई थी। फेसबुक पर दोनों ने ही न आने का फ़ैसला किया था सो एक मात्र सहारा टैक्स्ट मैसेज ही थे। कैंपस में कई कंपनियां आई थीं। अनुमेहा और निवेदिता दोनों को ही इंफोसिस ने सलेक्ट किया था सो दोनों ने ही सलेक्शन के बाद सिर्फ़ लास्ट सेमेस्टर पर फोकस किया और अंततोगत्वा दोनों ने कंप्यूटर साइंस में शानदार परमोर्म किया। सितंबर 2010 तक सब कुछ निपटाकर दोनों दिल्ली वापिस लौट गईं। अनुमेहा और निवेदिता दोनों को ही 5 अक्तूबर को मैसूर में रिपोर्ट करना था। दोनों ने ही नियत तिथि को मैसूर में ज्वाइन कर भी लिया। 2 महीने की ट्रेनिंग के बाद दोनों को पोस्टिंग का इंतज़ार था तभी मेल द्वारा सूचना मिली कि अनुमेहा को हैदराबाद और निवेदिता को सरप्राइस्ली सीधे कैलीफोर्निया की पोस्टिंग मिल गई थी। अनुमेहा और निवेदिता को टीम लीडर ने बताता कि सामान्यत: ऐसा होता नहीं है। लेकिन शायद निवेदिता को मैरिट के आधार पर ये मौका दिया गया है। शाम को इंफोसिस के प्रांगण में घूमते हुए निवेदिता ने ये सूचना प्रणव को दी साथ ही माता पिता को भी बता दिया। ज्वानिंग चूंकि 1फ़रवरी 2011 को थी इसलिए निवेदित ने सभी फॉर्मेलिटी पूरी की और 24 दिसम्बर को फ्लाइट लेकर सीधे दिल्ली। 25 दिसम्बर यानि क्रिसमस को अभी निवेदिता सोकर उठी ही थी कि मोबाइल बज उठा उधर शशांक था एक ही सांस में बोला निवेदिता आ रहा हूं मैं विद प्रणव वो कल ही दिल्ली पहुंचा है। ठीक है शशांक कहकर निवेदिता जल्दी जल्दी फ्रेश हुई फिर घर में सभी को बता दिया कि शशांक और प्रणव जो यूएस में पोस्टिड है मिलने आ रहे हैं। निवेदिता को दूर दूर तक भी अंदाज़ा नहीं था आगे क्या होने वाला है। वो तो इसी बात से खुश थी कि प्रणव भी साथ में आ रहा है। लगभग 12 बजे शशांक अपनी गाड़ी लेकर पहुंच गया। दरवाज़ा सुष्मिता ने खोला शशांक को देखकर खुश हो गई फिर बोली पूरे दो साल बाद आए हो आप फिर जब साथ में प्रणव और अन्य को देखा तो सकुचाकर नमस्ते कर सबको ड्राइंग ररूम में बैठा दिया। थोड़ी देर में परिवार के सभी सदस्य ड्राइंग रूम में जमा हो गए। जब सभी का एक दूसरे से परिचय हुआ तो निवेदिता को पता चला कि प्रणव के साथ आए लोग उसके मम्मी पापा हैं। चूंकि शशांक दोनों परिवारों से परिचित था तो सभी का परिचय भी शशांक ने ही कराया। चकवर्ती अंकल ये प्रणव भार्गव के पापा शैलेश भार्गव हैं और ये मधुमिता भार्गव प्रणव की मम्मी फिर उसने सुहास सुहासिनी एवम सुष्मिता और प्रसून फिर गहरी सांस लेते हुए बोला और ये हम हैं शशांक शर्मा हिमालय वाले। शशांक की इस अदा पर सब हंस पड़े लेकिन निवेदिता कुछ असमंजस में थी। अभी चाय नाश्ता रखा ही हुआ था कि प्रणव की मम्मी ने अवनि चक्रवर्ती को संबोधित करते हुए कहा कि हम निवेदिता का हाथ मांगने हैं। थोड़ा बहुत अंदेशा तो सभी को हो चुका था किंतु बात अब साफ़ हो चुकी थी। निवेदिता को ये सुनकर जरूर झटका लगा जिसे घर के हर सदस्य ने महसूस किया।

        निलोत्पल चक्रवर्ती ने बात का सिरा अपने हाथ में लेते हुए कहा माफ़ कीजिए आपके प्रस्ताव पर मुझे अपने घरवालों से और विशेष तौर पर निवेदिता से बात करनी होगी। निवेदिता इस प्रस्ताव पर जिस तरह से चौंकी है मुझे विश्वास है कि उसे इसकी उम्मीद नहीं थी। निलोत्पल आगे कुछ कहते इससे पहले ही प्रणव ने हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते हुए कहा इसमें मेरी गलती है। मुझे निवेदिता को फोन करके वस्तु स्थिति से अवगत करा देना चाहिए था वैसे मैंने तीन दिन पहले टैक्स्ट कर दिया था शायद निवेदिता ने देखा नहीं है।  प्रणव की बात सुनकर निवेदिता ने तुरन्त अपना इनबॉक्स चेक किया फिर बोली मैं नई पोस्टिंग की फॉर्मिलिटी में बिजी थी इसलिए देख नहीं पाई। अवनि ने निवेदिता और सुहासिनी को अंदर आने का इशारा किया साथ ही प्रणव की मम्मी को भी आने के लिए कहा। लगभग एक घंटे बाद जब चारों ड्राइंग रूम में लौटे तो सभी के चेहरे पर संतोष के भाव देखकर बाकी सदस्यों ने चैन की सांस ली। जब तक ये चारों महिलाएं अंदर थीं तब तक प्रणव अपने परिवार के बारे में तफ्सील से सब कुछ बता चुका था। प्रणव के पापा एसबीआई में मैनेजर थे और फिलहाल देहरादून में पॉस्टिड थे मम्मी हाउस वाइफ प्रणव का बड़ा भाई जो एक एमएनसी में सिंगापुर में सैटल था और छोटा भाई आई आई टी रुड़की में पढ़ रहा था प्रणव से बड़ी एक बहन जो लवली पब्लिक यूनिवर्सिटी, लुधियाना में एसोसाइट प्रोफेसर थी और उसके पति भी लवली यूनिवर्सिटी में ही एसोसिएट प्रोफेसर थे। कुल मिलाकर सब कुछ अच्छा था इसलिए निलोत्पल को रिश्ते में कोई बुराई नज़र नहीं आ रही थी फिर भी उन्होनें सीधे शैलेश भार्गव से सवाल कर दिया। शैलेश जी निवेदिता को अभी दो महीने ही हुए हैं जॉब करते हुए और प्रणव को दो साल अच्छी बात ये है कि निवेदिता भी पोस्टिंग पर कैलिफोर्निया ही जा रही है। जैसा कि प्रणव ने बताया है कि वो अगले साल वापिस आ जाएंगे तो क्या शादी अगले साल होगी । शैलेश ने रोकते हुए कहा नहीं जी प्रणव एक महीने के लिए आया है तीन दिन निकल गए हैं इसलिए शादी निवेदिता के जाने से पहले होगी। कोई ताम झाम नहीं 22 जनवरी वसंत पंचमी है, शुभ दिन है इसलिए हमने प्रणव और निवेदिता की डेट ऑफ बर्थ के हिसाब से कुण्डली बनवाई भी और पंडित जी से दिखवा भी लिया है 36 में से 29 गुण मिल रहे हैं जो काफ़ी हैं। ये एक और सरप्राईज था वो भी बड़े वाला निवेदिता के घरवाले तो अचम्भित थे ही इस बार चौंकने की बारी शशांक की ज्यादा थी। एक दम फटते हुए बोला क्या फ़ैमिली है भाई 24 घंटे से मेरे साथ हैं लेकिन मुझे भी नहीं बताया कि क्या क्या तैय्यारियाँ हैं फिर शैलेश भार्गव की तरफ़ देखते हुए बोला अंकल जी अगर आप मुझे बता देते तो मैं पण्डित जी को भी साथ ले आता आज ही काम निपटवा देते। एक ये हैं और एक मेरे घरवाले जिन्हें बिलकुल चिंता नहीं कि घर में एक लड़का है जो बड़ा हो गया है चलो दुल्हनियां ही ढूंढ लें। कहते है निभानी तुझे है ख़ुद पसंद करके बता दे शादी कर देंगे। भई कोई पूछे उनसे जब लड़की मुझे ही पसंद करनी है तो वो क्या करेगें। इससे पहले कि शशांक कुछ कहता निलोत्पल बोल पड़े चिंता मत कर शंशाक निवेदिता की शादी के बाद तेरा नंबर ही है फिर सभी जोर जोर से हंसने लगे।

         लंच वगैरह के बाद जब सब चलने को हुए तो सुहास ने प्रणव के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा प्रणव मुझे निवेदिता के चुनाव पर फक्र है। प्रणव ने सुहास के गले लगते हुए कहा मैं प्रयास करुंगा कि आपको कभी कोई शिकायत का मौका न दूं। निलोत्पल शैलेश भार्गव से बतियाते हुए कह रहे थे कि मुझे कोलकाता सभी को समझाना होगा हमें कोई एतराज़ नहीं लेकिन बाकी जो बड़े हैं उन्हें मनाना आसान नहीं होगा लेकिन जैसा मैंने आपसे निवेदन किया है क्यूं कि उस दिन शादियां बहुत होंगी इसलिए शादी देहरादून में करना ही उचित होगा। आपको थोड़ा कष्ट तो होगा किंतु... शैलेश निलोत्पल का हाथ थामते हुए बोले आप बाराती और हम घराती चिंता न करें आप बीच में एक बार आकर व्यवस्था देख लें बाक़ी आप संख्या बता दें रिसॉर्ट में सबका इंतज़ाम हो जाएगा। सबको विदा करने के बाद अवनि बोली अब जब हमने हां तो भर ली है तो इंतज़ाम भी समय से करने होंगे। मिठ्ठू तुम अनुमेहा को बोलो कि वो 15 जनवरी तक निश्चित पहुंचे फिर सुहासिनी को बोली चलो लग जाओ आज से ही आज से शुरू करेंगे तो भी शादी वाले दिन तक कुछ न कुछ याद आता रहेगा फिर निवेदिता की ओर घूमकर बोली अनुमेहा की मदर की भी तो छुट्टियां हाेगीं उनसे मेरी बात करा दे किसी रिश्तेदार को मदद के लिए बुलाने से अच्छा है उन्हें ही बुला लूं। ठीक है मां कहकर मिट्ठू न फ़ोन मिलाकर अवनि को दे दिया। शालिनी से बात करके उन्हें बड़ी ही खुशी हुई फिर सुहास को देखते हुए बोली सुहास कल से तुम इनके साथ गाड़ी एडजस्ट करो। आज रात को लिस्ट बनाते हैं कल से मैं शालिनी मिट्ठू और सुहासिनी खरीदारी शुरू करते हैं। सुहासिनी तुम बच्चों का कमरा खाली करो सारा सामान वहीं रखेंगे और दोनों बच्चे आज से ही मिट्ठू के कमरे में सोएंगे। निलोत्पल मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले सुनो मैंने शैलेश जी से बात कर ली है उन्होंने कुछ भी लेने से मना कर दिया है सिर्फ़ कपड़े और जेवर पर ही फोकस करो बाकी खाने पीने रहने का जो भी खर्च होगा वो कैश में जाएगा। अवनि शांत स्वर में बोलीं शैलेश जी से आपने जो तय किया है वो आप देखो मैने मधुमिता जी से जो तय किया है वो मुझ पर छोड़ दो। शादी बांग्ला रस्में और उत्तर भारत की रस्मों को मिलाकर होंगी। निलोत्पल हाथ जोड़ते हुए बोले ठीक है देवी।

         निवेदिता और प्रणव की शादी, ये सब कुछ इतना अचानक हुआ था कि चक्रवर्ती फैमली ठीक से कुछ प्लान कर ही न सकी बस सभी को इसी बात की प्रसन्नता थी कि प्रणव की फैमली जैसी फैमिली अगर निलोत्पल और अवनि ढूंढने लगते तो शायद एक दो वर्ष तो लग हर जाते और फिर भी गारंटी कुछ भी नहीं जब कि रिश्ता खुद लड़के वालों की तरफ़ से आया था। उत्तर भारत का संपन्न ब्राह्मण परिवार का लड़का, लड़का लड़की दोनों अपने पैरों पर खड़े हैं। सबसे बड़ी बात निवेदिता ने प्रणव और अपनी कहानी अपनी मां,भाभी सुहासिनी और प्रणव की मदर मधुमिता के सामने एक ही सांस में उस कमरे में बयां कर दी जिसके बाद मधुमिता को प्रणव पर गर्व महसूस हुआ कि उनका लड़का कितना समझदार है वहीं अवनि और सुहासिनी भी निवेदिता को लेकर यही फिल कर रहे थे। जब इतना कुछ ठीक हो तो फिर बेकार में बंगाली नॉन बंगाली पे बहस क्या करना। असली मक़सद तो बच्चों की खुशी ही है बस इसी सब पर विचार विमर्श के बाद कमरे से बाहर आकर अवनि ने मुस्कुराकर निलोत्पल की तरफ़ देखा था जिसका मतलब ही यही था कि सब कुछ चंगा है आगे बढ़ो। शादी मतलब शादी जितना छोटा ये शब्द है न उतना ज्यादा तामझाम करना पड़ता है। कुछ अपनी खुशी के लिए कुछ समाज को दिखाने के लिए। ख़ैर न न करते भी अवनि टीम ने इतना सामान इकट्ठा कर लिया जिसने बच्चों के कमरे के अलावा निवेदिता के कमरे का आधा हिस्सा घेर लिया। 15 जनवरी को अनुमेहा भी आ पहुंची। सभी रिश्तेदारों को सीधे देहरादून ऋषिकेश मार्ग पर स्थित रिसॉर्ट का पता दे दिया गया था जहां सबके लिए 20 जनवरी से सबके रहने की व्यवस्था की गई थी। निलोत्पल और सुहास ने शादी का सारा सामान 19 की सायं को बाय रोड़ रवाना किया और फिर अगले दिन सुबह 9 बजे विनय और शालिनि और शशांक एक गाड़ी में सुहास सुहासिनी और बच्चे एक गाड़ी में, निलोत्पल अवनि निवेदिता और अनुमेहा एक गाड़ी में देहरादून निकल पड़े। अच्छी बात ये थी कि आज आसमान बिलकुल साफ़ था बीते दिन की तरह दिल्ली की सड़के फॉग से अटी हुई नहीं थी। जब सभी रुड़की खाना खा रहे थे तभी सूचना मिली कि सारा सामान देहरादून पहुंच गया है।  3 बजे के लगभग सभी रिसॉर्ट पहुंच गए। महिलाएं अपने काम में और पुरुष टीम शादी की अन्य सभी व्यवस्थाओं का जायजा लेने निकल पड़े। सिर्फ़ 21 का दिन बीच में था 22 को तो शादी थी इसलिए रात में खाना खाकर एक दिन में सभी रिचुअल पूरे करने की प्लानिंग करने लगे। 

        अगले दिन सुबह से ही गहमा गहमी शूरू हो चुकी थी। कुछ रिश्तेदार पहुंच गए थे और कुछ दोपहर तक पहुंचने वाले थी। अनुमेहा की बुआ और फूफा जी ओएनजीसी से रिटायर्ड होकर 2013 में ही देहरादून के वसंत विहार में आकार बस चुके थे और 21 की सुबह सुबह वो भी रिसॉर्ट आ पहुंचे ।  महिलाओं की टीम विवाह के रिचुअल पूरे करने में लगी थीं कभी ये कभी वो करते करते समय का पता ही नहीं चला। अगले दिन यानि 22 को भी यही प्रक्रिया चल ही रही थी कि सुष्मिता अपने पति और दो बच्चों के साथ ओस्ट्रेलिया से सीधे रिसॉर्ट आ पहुंचीं। प्रणव बेहद खुश था। आनन फानन में एक कमरे की व्यवस्था की गई। तभी निवेदिता और अनुमेहा भी आ पहुंचीं। खुशी खुशी सभी गले लगे तब तक शशांक भी आ पहुंचा और सुष्मिता को देखते ही बोल पड़ा मैम आपने तो मना किया था आने के लिए फिर झेंप कर बोला स्वागत है मैम। सुष्मिता के पति शुभेंदु बनर्जी बोल पड़े सरप्राईज इसी को कहते हैं शशांक। विवाह के लिए छोटी से छोटी हर चीज़ का इंतज़ाम रिसॉर्ट में था। शाम 3 बजे निवेदिता अनुमेहा, सुष्मिता और सुहासिनी मेकअप के लिए आरक्षित रूम में पहुंच गईं दूसरे रूम में अन्य महिलाओं के लिए व्यवस्था थी। मिले जुले रिचुअल के साथ विवाह सम्पन्न हो गया। सुबह निवेदिता विदा होकर प्रणव के घर राजपुर रोड़ स्थित घर आ गईं। फ्रेश होने के बाद कंगना खेलने की रस्म की तैय्यारी चल रही थी। तय हुआ था कि दोपहर बाद निवेदिता रिसॉर्ट फेरा डालने जाएगी और शाम को वापिस आ जाएगी। प्रणव की फ्लाइट 27 की रात को दिल्ली से थी। कंगना खिलाने की रस्म चल रही थी। प्रणव और निवेदिता दोनों ही तीन तीन बार जीत चुके थे अब सिर्फ़ एक चांस था जैसे ही प्रणव और निवेदित ने अंगूठी ढूंढने के लिए परात से भरे दूधिया पानी जिसमें गुलाब की पंखुड़ियां भी तैर रही थीं में हाथ डाला तो घर के आधे सदस्य प्रणव को और आधे सदस्य निवेदिता को जीतने के लिए शोर मचा रहे थे तभी निवेदिता ने दाएं हाथ से अंगूठी ढूंढते हुए बाएं हाथ से परात के पानी से कुछ पानी प्रणव के मुंह पर छिड़क दिया जिससे प्रणव हड़बड़ा गया और निवेदिता जीत गई। घर के सभी सदस्य निवेदिता को जीतने पर बधाई दे रहे थे तभी प्रणव ने भी परात का पानी हाथ में लेकर निवेदिता के चेहरे पर छिड़क दिया। निवेदिता एकदम हड़बड़ा कर लकड़ी की पटरी से उठकर खड़ी हो गईं फिर बोली ये क्या किया तुमने प्रणव!  

         सामने दूसरी कुर्सी पर प्रणव को बैठा देखकर निवेदिता जैसे एकदम सोते से जागते हुए बोली तुम कब सोकर उठे। मुझे तो एक घंटा हो गया सोकर उठे हुए। अपने लिए कॉफी बनाई तो तुम्हारे लिए भी बना ली जानता था तुम यहीं मिलोगी। मैने तुम्हारी ठंडी कॉफी एक तरफ़ सरकाकर गर्म कॉफी रख दी थी किंतु तुम पता नहीं किन ख्यालों में थीं वो तो हवा के दबाव से खिड़की खुल गई और बारिश की बौछार तुम्हारे चेहरे पर पड़ी तो तुम एक दम खड़ी हो गईं। इतनी तन्मयता से क्या सोच रही थीं। कुछ नहीं बस यूं ही खिड़की से पानी की बौछार चेहरे पर गिरी तो तुमसे पहली मुलाकात याद हो आई फिर न जाने कब 2006 से 2011 तक की पुनः यात्रा कर डाली या यूं कहूं तो ज्यादा ठीक होगा कि पांच सालों का पुनरावलोकन कर डाला। चलो बच्चों को तैयार कर नाश्ता करते हैं फिर बारी बारी से सभी से बात करेंगे। ठीक है कहकर प्रणव उठा ही था कि निवेदिता बोल पड़ी प्रणव शाम को डिनर के बाद कुछ ख़ास बात करनी है। अभी कर लो न मिट्ठू, नहीं डिनर के बाद करेंगे। ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा कहकर प्रणव फ्रेश होने चला गया। निवेदिता ये देखकर चौंक उठी कि बच्चे नहा धोकर बिलकुल तैयार थे। निवेदिता ने मुस्कुराकर दोनों बच्चों को दुलारा फिर बोली सबको बहुत मिस करते हो न। दोनों ही बच्चों ने हां में गर्दन हिलाई फिर वैशाली बोली ममा यहां दोस्त तो हैं लेकिन रिलेटिव नहीं बस किट्टू, अनुमेहा मौसी और रितेश मौसा जी ही हैं जो जब भी न्यूयार्क से आते हैं तो लगता है जैसे कोई घर का आया है बाकि सब.... आगे की बात वैशाली ने यूं ही छोड़ दी तभी प्रणव फ्रेश होकर डायनिंग टेबल पर आ पहुंचा। सभी ने नाश्ते के नाम पर आलू प्याज के पराठे और दही खाया फिर सभी ज़ूम मीटिंग के माध्यम से देहरादून दिल्ली सिंगापुर कोलकता बात करने में मशगूल हो गए। जब रात को निवेदिता काम निपटाकर बेडरूम में पहुंचीं तो प्रणव को इंतज़ार करते देखकर बोली क्या हुआ सोए नहीं। प्रणव ने हाथ जोडते हुए कहा देवी आपका ही आदेश था कि आज डिनर के बाद कुछ जरूरी बात करनी है। हां करनी तो है तो फिर बोलो देवी क्या बात है।

        प्रणव तुम 2008 से जॉब कर रहे हो और मैं 2011 से। आज हमारा दोनों का पैकेज मिलाकर क़रीब अस्सी हज़ार डॉलर है। कैलिफोर्निया में हमारा अपना ख़ुद का फ्लैट है। हमारी अभी तक की बचत क़रीब साढ़े तीन लाख डॉलर की है और ऐसा इसलिए कि हम दोनों ही फिजूल खर्च नहीं करते। हम दोनों के लिए हमारा परिवार ही सब कुछ है। विक्रमादित्य और वैशाली कई बार इस बात पर जोर देते हैं कि हम दादा दादी के पास क्यूं नहीं रहते वैशाली तो मासूमियत से कहती भी है कि मम्मा आप और पापा वहां भी तो नौकरी कर सकते हो। मैं हंस कर टाल देती हूं लेकिन परसों उसने जब यह कहा कि ममा अब तो कोरोना भी चला गया तो सच कहूं प्रणव मुझे पहली बार लगा कि हम कितने भाग्यवान हैं जो हमारे बच्चे अमेरिकन कल्चर के आदी नहीं हुए हैं। जब 2014 में हमने ये फ्लैट लिया था तो हम दोनों ने ही ये तय किया था कि दस साल बाद हम वापिस भारत में ही सैटल होंगे। मुझे लगता है हमें अच्छे भविष्य का सहारा लेकर यहां पड़े रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। चूंकि दोनों बच्चे यहीं जन्मे हैं तो ये फ्लैट हमें बेचने की कोई जरूरत नहीं है। कल दोनों में से किसी भी बच्चे के काम आ सकता है। अभी दिसंबर चल रहा है अगले छः महीने या ज्यादा से ज्यादा एक साल में मैं ट्रांसफर ले लूंगी या कम्पनी छोड़ दूंगी। अब तुम बताओ तुम्हारा क्या कहना है तुम मेरे इस निर्णय को सही मानते हो या नहीं। प्रणव ने अंगड़ाई ली फिर निवेदिता को अपने और नज़दीक बैठने के लिए कहा फिर बोला मिट्ठू डियर मैं अपने निर्णय पर आज भी अडिग हूं बस तुम्हारे दस साल पूरे होने का इंतज़ार कर रहा था। शशांक तो भारत छोड़ना ही नहीं चाहता था किंतु पल्लवी से शादी के बाद उसने यूके जाने का फ़ैसला किया था किंतु बोलकर गया था दो साल बाद वापिस भारत लौट आएगा किंतु पल्लवी भारत में नहीं रहना चाहती थी इसलिए शशांक अब लंदन में ही सैटल हो गया है। वो भारत तो आएगा लेकिन कभी कभी। जहां तक मेरा प्रश्न है मैं भी यूएस या यूरोप में सैटल होना चाहता था लेकिन तुम्हारे आग्रह और बच्चों की अपनों के प्रति लगन देखकर भारत में ही सैटल होने का निर्णय कर लिया। सच कहूं तो 2020 का वो एक महीना जो हमने भारत में बिताया और फिर यहां पहुंचे तो कोरोना। इन सब ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। लोग अपनों की लाशों को कंधा तक नहीं दे रहे थे। ये मौत का डर क्या क्या दिखा गया।  आख़िर ये अच्छे भविष्य की तलाश कब तक और किसके लिए। पैसा बहुत हो और परिवार न हो तो सब बेकार है। आखिर हमारे असली एसेट तो हमारे बच्चे ही हैं न। बड़ी बड़ी बातें करने से कुछ नहीं होता अपना देश अपना ही होता है और देश की "मिट्टी की महक" उसके तो क्या कहने। कहते कहते प्रणव भावुक हो गया। निवेदिता ने प्रणव का हाथ अपने हाथ में लेकर प्रणव मुझे तुम पर दोनों परिवारों पर गर्व है कि उन्होंने हम दोनों को वो सब कुछ दिया जिसकी हमें जरूरत थीं किंतु जो संस्कार उन्होंने हमें दिए वो इन सबसे ऊपर हैं। हमारे पास काफ़ी पैसा है जो हमारी आवश्यकताओं को देखते हुए काफ़ी है। प्रणव ने हाथ बढ़ाकर मिठ्ठू को अपने आलिंगन में भर लिया।

         9 जनवरी -2021 की एक सुबह प्रणव और निवेदिता बच्चों को स्कूल भेजने के बाद नाश्ता कर ही रहे थे तभी प्रणव ने कहा सुनो मिठ्ठू मुझे तो सीमेंस से लगातार  बुलावा आ रहा है। सीमेंस काफ़ी अच्छे पैकेज के साथ इंडिया सब हैड बनने के लिए ऑफर दे चुका है मैंने ही अभी हां नहीं भरी है बस पोस्टिंग मुंबई या दिल्ली में से एक जगह जहां मैं चाहूं। तुमने मुझे बताया क्यूं नहीं निवेदिता हल्के गुस्से से बोली। निवेदिता तुम मेरी आदत जानती हो न जब तक काम पूरा न हो जाए मैं कहीं भी किसी से कोई डिस्कस नहीं करता। वैसे भी मैं मार्च तक रुकना चाहता हूं। ठीक है बात तो मैंने भी की है लेकिन पोस्टिंग शायद बेंगलुरु या हैदराबाद मिले। कोई बात नहीं तुम ट्राई तो करो बाकी भोले हैं न सब संभाल लेंगे कहकर प्रणव ने जोर से ठहाका लगाया। निवेदिता मुस्कुराते हुए बोली 16 सोमवार हमने रखे और भोले पे हक़ प्रणब का! प्रणव बाबू बढ़िया है। मिट्ठू जी नाराज़ न हों हम भी आपके और भोले भी आपके अब तो ख़ुश हो देवी फिर निवेदिता के कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा अगर सब कुछ योजना अनुसार निपट गया तो 9 अप्रैल को पापा और विक्रमादित्य का जन्मदिन देहरादून में मनाएंगे। निवेदिता मुस्कुराते हुए बोली बच्चों को अभी कुछ नहीं बताना है। हमारी तरफ़ से विक्रमादित्य और वैशाली दोनों के लिए बढ़िया वाला सरप्राइज होगा।  

प्रदीप डीएस भट्ट -20824




         



         

         



        
         

         

Friday, 5 July 2024

छोटी छोटी कोशिशें से उर नाद तक

रिपोतार्ज 
   
"छोटी छोटी बातें से उर नाद तक"

(भुट्टे ले लो भुट्टे बड़ा दस का छोटा बीस का)🤪🤪🤪🤪🤪🤪🤪🤪🤪🤪😝

         पिछले वर्ष 20 जून-2023 को कर्नाटक के मैसूरु में मेरे प्रथम कहानी संग्रह "काला हंस" के लोकार्पण के पश्चात जुलाई में हैदराबाद को टाटा बॉय बॉय करने से पूर्व ही मैंने अपने तीसरे काव्य संग्रह "उर नाद" की भूमिका लिखने के लिए  डॉक्टर प्रोफ़ेसर ऋषभ देव शर्मा जी से आग्रह किया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर तय समय में मुझे वापिस भी प्रेषित कर दी थी। जिसे मैंने हैदराबाद रवाना होने से पूर्व ही पब्लिशर को प्रेषित भी कर दिया था। हैदराबाद से मेरठ सेटेल होने में दो तीन महीने तो यूँ ही निकल गये। रिटायरमेंट के बाद एक बंधा बँधाया रूटीन डिस्टर्ब स्वाभाविक ही है किंतु हम ठहरे ज़रा दूसरे किस्म के बंदे 😏 सो अपनी सहित्य्यिक यात्राओं के द्वारा इससे निज़ात पाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं किंतु गर्मी भी इस बार सर्दी के बनाए अपने पुराने रिकार्ड तोड़ने पर आमादा है। अब अगर यही हाल बरख़ा रानी ने किया तो 😉....... तो भैया मई जून में नाम मात्र ही साहित्य सेवा में समय गुजारा। अब इस गर्मी में कहीं ऐसा न हो कि  हम साहित्य सेवा करने बाहर निकालें और प्रचंड लू हमसे चिपटकर कहे "कैसे हो ठाकुर " 😄 सो भईय्या जून में न लोकल न वोकल और न ही  ग्लोबल अज्जि छड्डो भी 🤗

         अक्टूबर में पब्लिशर से "उर नाद"  की प्रगति जाननी चाही तो उधर से कहा गया हुज़ूर पहले पाण्डुलिपि तो भेजें हमने अचकचा कर पूछा मतलब तो उधर से फ़िर दोहरा दिया गया हुज़ूर पहले पाण्डुलिपि तो भेजें तब तो न हम प्रगति बतावेंगे। जब हमने बताया  कि हम फलानी तारीख़ को मेल से भेज चुके हैं तो चेक कर अपनी गल्ती मान ली फ़िर बताया इसे प्रोयरिटी पर छापेंगे। हमने कहा 5दिसंबर की फ्लाइट है हमें 3 दिसंबर तक कम से कम 10 प्रतियां भेज दें ताकि तिरुवनंतपुरम में इसका लोकार्पण हो सके। उन्होंने हाँ भरी लेकिन 3 क्या 30 दिसंबर तक भी वही मुर्गे की डेढ़ टाँग। 🥳 हमने फ़िर फ़ोन मिलाकर रिक्वेस्ट की तो हमें 5 जनवरी -2024 की अदालती तारीख़ पकड़ा दी। हमने सोचा 13, 14 जनवरी को मुंबई के कार्यक्रम में लोकार्पण करवा लेंगे। लेकिन लेकिन लेकिन पूरा जनवरी ग़ायब मुंबई क्या नागपुर कार्यक्रम भी चला गया लेकिन हाय हमारा "उर नाद" न छपा। डिले डिले डिले करते फ़रवरी मार्च अप्रैल मई यूँ निकल गये जैसे गधे के सिर से सींग।  इस बीच हम देहरादून दिल्ली गुडगाँव रुड़की लखनऊ गोरखपुर और न जाने कहाँ कहाँ अपनी ग़ज़लों गीतों का परचम फैहराते रहे लेकिन उर नाद हाथ न आया।  सच कहूँ तो एक बार तो हमने सोचा कि अबे तुमने ये क्या शीर्षक लिया है "उर नाद" यानि हृदय की आवाज़।  पढ़ने वाले जब पढ़ेंगे तब पढ़ेंगे लेकिन पब्लिशर ने तो अभी तुम्हारा ख़ुद का सुर बिगाड़ दिया है। तो बेटा ख़ूब चीखो या screeming करो। तुम्हारे उर नाद को कोई न सुन रिया है।

         मई के अंतिम सप्ताह में मुझे लखनऊ जाना था सो दिल्ली एक कार्यक्रम में सहभागिता के लिए सुबह मेरठ से प्रस्थान किया किन्तु वोटिंग डे होने के कारण कार्यक्रम मुल्तवी हो गया सो अपनी मित्र के साथ कनॉट प्लेस घूमा पिक्चर देखी। वहीं बातों बातों में पता चला कि उनकी पुस्तक जिसे 28 मई को लोकार्पित होना था लगातार डीले हो रही है तो जब हमने अपनी भी दास्तां शेयर कर दी और हँसते हुए कहा कि कहीं हम दोनों की मित्रता को ध्यान में रखते हुए दोनों पुस्तकें एक साथ तो लोकार्पित होना नहीं चाहती। वे फटाक से बोली जैसी रब की इच्छा। बात हँसी मज़ाक में हुई थी लेकिन रब की निश्चित यही इच्छा थी। मैं अगले दिन कार्यक्रम अटेंड कर रहा था कि मुबलिया घनघना उठा। उधर कोरियर वाला था बोला आपका बड़ा सा वाला पैकेट है और बहुत ही भारी भी कहां पहुंचाना है तो हम बोले भैय्या पता लिखा है न वहीं पहुंचा दो। वो फिर बोला सर जहां का पता लिखा है वो शहर से बाहर पड़ता है और हमारी वहां सेवा नहीं है। मैं उसकी सद इच्छा  समझ गया और उसे भाई के घर ड्रॉप करने के लिए बोल दिया। भीषण गर्मी से दो चार होते हुए जब मैं वापिस घर पहुंचा तो "उर नाद" के बड़े से बॉक्स ने हमसे कहा "अबे इतना काहे उधम मचा रहे थे लो अब हम आ गए हैं कर लो जो करना है " हमने भी ताव में कह दिया सुनो बे फ्री में नहीं आए हो पूरम पट्ट 21600/= खर्च किये हैं समझें। अब जून की तपती जलती गर्मी में तुम्हारा लोकार्पण कहां और कैसे कराएं। ठहरो तनिक कुछ सोचते हैं।

         बस यूं ही कुछ दिन सोचने में निकल गए। जून के तृतीय सप्ताह में साहित्य सृजन कुटुंब की सन्तोष संप्रीति का फ़ोन आया न उठाने पर मैसेज "अर्जेंट कॉल करें" शाम को फ़ोन किया तो डांट सुननी पड़ गई। क्या कर सकते थे सुनते रहे जब मित्र का क्रोध तनिक शांत हुआ तो बताया कि दोनों फ़ोन किसी की गाड़ी में रह गए थे कुछ देर पहले ही मिले हैं तब फोन पर एक गहरी श्वांस लेने की आवाज़ सुनाई दी। तब जाकर हमारी जान में जान आई। ख़ैर उन्होनें जल्दी जल्दी तफ्सील में सब कुछ समझाया और छोटी छोटी बातें के साथ ही उर नाद का लोकार्पण भी उत्तर प्रदेश भवन द्वारका में 30 जून को निश्चित हो गया। अब लगभग रोज़ ही कार्यक्रम के विषय में चर्चा हो रही थी बाहर से आने वाले अतिथियों की देखभाल की ज़िम्मेदारी मैंने ले ली। सब कुछ ठीक चल रहा था अचानक 26 जून को सूचना मिली कि किन्ही अपरिहार्य कारणों से उत्तर प्रदेश भवन में कार्यक्रम नहीं हो पाएगा। मैने सुझाव दिया इसे आगे सरका देते हैं किन्तु किन्तु किन्तु सन्तोष तो सन्तोष ठहरी ठेठ हरियाणवी अंदाज़ में बोली न भाई न तारीख़ न बदलने वाली यहां नहीं तो और किसी वैन्यू में प्रोग्राम होगा पर होगा 30 जून को ही। बिग सैल्यूट फॉर हर। आख़िर दो दिन की मेहनत रंग लाई और ईश कृपा से हिन्दी भवन फाइनल हो गया। अतिथियों के लिए गांधी शांति प्रतिष्ठान में कमरे बुक हुए। तय हुआ कि मैं शनिवार को ही जीपीएफ में रुकूंगा ताकि व्यवस्था पर नज़र रखी जा सके। हम तो हम ठहरे 29 को सुबह मेरठ से निकले एक बजे अतिथि गृह में एंट्री कर ली। चूंकि साहित्य अकादमी में एक कार्यक्रम में आमंत्रित थे सो तीन बजे फ्रेश होकर बाहर निकले जीपीएफ के पीछे ही तिलक ब्रिज है उसे क्रॉस कर ही रहे थे की भुट्टा बेचती मां बेटी पर निगाह ठहर गई। मां रोक रही थी लेकिन वो छोटी बच्ची अपनी धुन में आवाज लगा रही थी "भुट्टे ले लो भुट्टे बड़े वाला दस का छोटे वाला बीस का" वो लड़की गलत रेट कोट कर रही थी इसीलिए शायद उसकी मां उसे रोक रही थी। लेकिन बाल मन कब किसकी सुनता है सो मैंने बीस रूपये देकर एक भुट्टा खरीदा उस बच्ची के सर पर हाथ फेरा और तिलक ब्रिज की सीढियां चढ़ने लगा। सच कहूं श्वांस फूल गई लेकिन सीढियां उतरते हुए सामान्य भी हो गई। भुट्टे का आनंद लेते हुए मैं जैसे ही श्रीराम सेंटर पहुंचा बरखा रानी पूरी तड़क भड़क के साथ आ पहुंची। संभलने का मौका भी नहीं मिला बस एनडीएमसी का शायद स्टोर रूम था जिसकी तिरपाल ने मुझे कुछ अन्य लोगों के साथ आश्रय प्रदान किया। और हां तीन चार श्वानो को भी। प्रोग्राम तीन बजे से और मैं पौने तीन से साढ़े तीन तक वहीं फंसा हुआ। संबंधित को मैसेज कर बता दिया कि साहित्य अकादमी की सड़क के दूसरी ओर बारिश रुकने के इंतेज़ार में हूं। तभी एक ऑटो वाले को इशारो में रिक्वेस्ट किया कि मुझे उस पार छोड़ दें वो बोला साहब वो तो रहा सामने। हमने फिर इशारे में बरखा रानी के रौद्र रूप की तरफ़ इशारा किया तब बात उसके पल्ले पड़ी और उसने बरखा में नाव से नहीं ऑटो में हमें उस पार किया। कार्यक्रम सैनिकों की पत्नियों के संस्मरण पर आधारित पुस्तक के लोकार्पण का था। एक बेहतरीन कार्यक्रम के लिए पुस्तक की सम्पादक वंदना यादव जी को ग्रांड सैल्यूट। सायं 6 बजे जीपीएफ लौटे तो वहां के सभागार में भी दीक्षित दनकौरी जी को सम्मानित किया जा रहा था। लगभग नौ बजे फ्री होकर रूम में आए और उमस भरी गर्मी में सिर्फ पंखे के सहारे जैसे तैसे रात काटी। सुबह अक्षय बंसल जी भोपाल से आ पहुंचे। कुछ देर गूफ्तगू की फिर फ्रेश हुए और हिन्दी भवन।

         हिन्दी भवन के तृतीय तल के सभागार में धीरे धीरे लोगों की आवाजाही शुरु हो गई। हल्के रिफ्रेशमेंट के बाद औपचारिक रूप से कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन से हुई।  प्रथम सत्र में अतिथियों के परिचय के पश्चात 
मेरे तीसरे काव्य संग्रह "उर नाद" एवम सन्तोष संप्रीति की दोहा पुस्तक छोटी छोटी बातें का लोकार्पण का लोकार्पण दिल्ली दिल्ली पुलिस के एसीपी आदेश त्यागी, प्रसिद्ध दोहाकर मनोज कामदेव, कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, चेतन आनंद, ऋषि शर्मा, उप सचिव हिन्दी अकादमी दिल्ली, डॉक्टर प्रोफ़ेसर रवि शर्मा, रिटायर्ड मेट्रो पॉलिटियन जज ओम सपरा के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ।

        संतोष संप्रिति की दोहा पुस्तक "छोटी छोटी बातें" की समीक्षा मनोज कामदेव जी ने की एवम प्रदीप डीएस भट्ट के तीसरे काव्य संग्रह "उर नाद" की समीक्षा डॉक्टर प्रोफ़ेसर रवि शर्मा मधुप द्धारा की गई। उसके अतिरिक्त कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, सपरा जी, डॉक्टर ऋषि शर्मा एवम चेतन आनंद ने भी पुस्तकों पर अपने विचार प्रकट किए।

         दूसरे सत्र में शैदा अमरोहवी की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें भोपाल से पधारे प्रसिद्ध शायर अक्षय बंसल, हश्मत भारद्वाज, जावेद अब्बासी, संजीव कुमार, सुनील शर्मा, कुमार राघव, संजय गिरी, सीमा वत्स, बबीता पांडेय, बलजीत, अमर पाल, श्रुति भट्टाचार्य, संगीता बिजारणियां, प्रवीण व्यास, गोल्डी, शैदा अमरोहवी, सुरेंद सिफ़र, वीणा अग्रवाल, सरिता गुप्ता, शकुन्तला मित्तल, फौजिया अफज़ल, रजनी बाला, विभा वैभवी, सुषमा गर्ग, वंदना चौधरी, रिंकल शर्मा, संतोष संप्रिति एवम मैंने भी अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत की। जरा बानगी तो देखिए।

ग़ज़ल 

1222  1222  1222  1222 

क़िताबें दोस्त हैं मेरी, शिक़ायत कम नहीं करतीं 
पढ़ूँ आधी कभी पूरी, मुहब्बत कम नहीं करतीं 

बिना इनके अधूरा मैं, बिना मेरे अधूरी ये
मैं बोलूँ  फिर भी ये अपनी, सदाकत कम नहीं करतीं

सुना बचपन से ये हमने, कसम झूठी नहीं खाना
अगर नाराज़ हों फिर ये, अदावत कम नहीं करतीं

भले कितना पढ़ो लेकिन, सलीका कुछ न सीखा तो 
भरी महफ़िल में लोगों की, हज़ामत कम नहीं करतीं

कि लिखते लोग हैं ज्यादा, मगर पढ़ते हैं इतना कम
अगर मजमून हो अच्छा, जियारत  कम नहीं करतीं

भले हो पाठ्यक्रम में या कि, पोथी गीत गज़लों में
किताबें तो किताबें हैं, तिजारत कम नहीं करतीं 

क़िताबों में अगर रुक्का  मिले प्रीतम का मत पूछो 
दिलों को ये मिलाने में , मशक्कत कम नहीं करतीं 

करो कुछ भी भले अच्छा, मगर दुनिया न पहचाने
छपे जब ये रिसालों में, बगावत कम नहीं करतीं

यही सीखा हमेशा 'दीप' ने, इज्ज़त करो सबकी 
कि इसके करते रहने से,लियाक़त कम नहीं करतीं 
    

प्रदीप डी एस भट्ट -10424

        अंत में एक विषेष बात जिसका अभाव मैंने कई कार्यक्रमों में देखा कि सो कॉल्ड साहित्यिक मठाधीश लेखक की कृति पर बस नाम मात्र की चर्चा कर अपने दायित्व की इतिश्री समझ लेते हैं वहीं इस कार्यक्रम में "उर नाद" पर डॉक्टर प्रोफ़ेसर रवि शर्मा ने तफ्सील से पुस्तक की विशेषता पर दर्शकों का ध्यानाकर्षण किया। कुछ ऐसा ही दृश्य मनोज कामदेव जी द्वारा "छोटी छोटी बातें" पर उनके उद्बोधन में दिखा के अतिरिक्त भी अन्य विभूतियों ने भी दोनों ही पुस्तकों पर सार्थक चर्चा कर श्रोताओं का पुस्तकों के प्रति आकर्षण पैदा किया। चेतन आनंद जी ने दोनों ही पुस्तकों के लेखक को सौ रूपये देकर पुस्तक प्राप्त की जो कि एक अच्छी पहल है। चेतन जी उसके लिए बधाई के पात्र हैं। समय की बाध्यतता के बाबजूद भी सभी रचनाकार अपनी रचना पढ़ सकें इसीलिए हिंदी भवन के सभागार को अतिरिक्त एक घंटा बढ़वाना पड़ा। 

विशेष टिप्पणी 
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किसी काम का बीड़ा उठाना फिर उसे येन केन प्रकारेण कैसे पूरा किया जाता है ये मित्र सन्तोष संप्रीति से सीखा जा सकता है।

प्रदीप डीएस भट्ट -4724