Wednesday, 25 May 2022

" बस यूँ ही "

 


रिपोतार्ज़

                                            

                                     “बस यूँ ही”




 

कभी कभी आप कुछ करके या लिखकर भूल जाते हैं और ऐसा अकेले मेरे साथ ही होता हो ना जी ना ऐसा कभी न कभी सबके साथ होता है। खैर किस्सा कुछ यूँ है कि मैं 30 नवम्बर-2018 को मुम्बई से रिलीव हुआ और 12 दिसम्बर-2018 को मैंने अपने चरण कमल हैदराबाद में रख दिये। कादम्बिनी क्ल्ब, साहित्य सेवा समिति काव्य धारा, काव्य सरोवर, कहानीवाला, सूत्रधार न जाने कितन ग्रुप्स से जुडाव हुआ। “ यहाँ यह सनद रहे कि हैदराबाद ऑफिस में मैं अकेला देहली वाला (हिन्दी भाषी) बाकी सब तेलगू, दो कन्नड वाले। वो बोलते और मैं सुनता रहता किन्तु अच्छी बात यह थी कि ऑफिस में एक मात्र हिंदी समाचार पत्र “डेली हिन्दी मिलाप” मेरी सीट पर मेरे आने से पहले ही रखा हुआ होता। मैं भी खुश कि चलो कोई तो है जो दोस्ती निभा रहा है। मेरा अपना मानना रहा कि छ्पना और खपना मेरे बस की बात नही किंतु यहाँ यानि हैदराबाद में आकर कुछ मित्रों की सलाह को खारिज़ न कर सका और अंतोगत्वा 29 फरवरी-2020 को मेरा पहला काव्य संग्रह दरिया सूखकर सहरा हुआ है” उर्दु हॉल, हिमायत नगर में विमोचित हो गया।  फिर एक लम्बा समय कोरोना भाई साहब खा गये (अभी भी बीच बीच में अपनी उपस्थिति जताने से नही चूकते) इसी बीच निमंत्रण आते रहे और कोरोना भाई साहब को छ्काते हुए कुछ समय चुराते हुए विभिन्न शहरों के कवि सम्मेलन वगैरह में अपनी शिरकत करते रहे।

 

14 फरवरी-2022 जब हम ऑफिस पहुँचे तो टेबल पर रखे “डेली हिंदी मिलाप” रखा था, फ्रेश होकर पन्ने पलटने शुरु किया तभी होली पर्व पर प्रतियोगिता के विषय में पढा।जो कि युद्द्वीर फांऊडेशन करा था। कुछ देर सोचा और अगले ही दिन फॉर्म वगैरह भरकर कविता, फ़ोटो स्कैन की और भेज दिया।  इस बीच हम ऑफिस व्यक्तिगत कार्यों में व्यस्त हो गये। इसी बीच 15,16 अप्रैल गोवा में व 29,30 अप्रैल व 1 मई नेपाल के सम्मेलनों में व्यस्त हो गये। फुर्सत मिली तो कुछ और कार्यो में मन लगाकर बैठ गये ( हम सच्ची कह रहे हैं कार्यो में न कि किसी नाज़नीन से) लगभ 15-20 दिनों तक मेल भी खोलने की जहमत नही उठाई और उठाते भी क्यों अवकाश पर जो थे। घूमफिर कर 16 मई को हैदराबाद पहुँचे फिर 17 को ऑफिस्। एक लम्बे सफर के बाद थकावट भी आ ही जाती है ( भाई लोगों गलत न समझना-हम अभी बूढे न हुए हैं वैसे भी कवि का तन बूढा होता है कलम नही बल्कि कलम की धार तो कुछ ज़्यादा ही तेज़ हो जाती है) खैर 18 को मेल खोला तो मिलाप का मैसेज  “तनिक आप अपना दूरभाष/मोबाईल नम्बर तो देवें। मेल पढते ही हमारी बत्ती जल गई सब कुछ याद हो आया। तुरत ही अपना मोबाईल नम्बर छोड दिया, और लीजिए अगले दिन फातिमा जी का फोन आ गया। आप तो डेली हिन्दी मिलाप ऑफिस के सामने ही रहते हैं फिर आपने अपना मोबाईल नम्बर क्यूँ नही दिया। हमने बताया शायद भूल गये होंगे। फातिमा जी फिर बोली हम कब से आपसे सम्पर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं खैर कल आप ऑफिस आकर मिलें, हमने कहा सम्भव नही ऑफिस कार्यो में व्यस्त है, फुर्सत पाते ही आपके दर्शन करेंगे  सब कुछ जानते हुए भी हमने पूछा वैसे फातिमा जी मैटर क्या है। उन्होंने तुरंत ही बताया आपकी कविता को पुरुस्कार मिला है आप अपना प्रमाणपत्र यहाँ आकर प्राप्त कर लें, हमने कहा ऐं ये क्या बात हुई, फिर पूछ ही लिया क्या कोई फंक्शन नही कर रहे है उन्होंने तुरत कोरोना भाई साहब की दुहाई दे डाली। हम सोच में पड गये, कोरोना भाई साहब एक बार आये दूसरी बार आये तीसरी बार आए, अब जब कोरोना खुद को भारत में सुरक्षित महसूस नही कर रहा फिर ये इससे इतना क्यूँ डर रहे हैं, अरे भाई फंक्शन कर लेते थोडा चाय पानी का जुगाड हो जाता। खैर हमने आज यानि 23 मई को आने का वादा दिया। फातिमा जी बोली आज तो18 है हमने कहा मोहतरमा जहाँ से घर चलता है उसके प्रति भी हमारी कुछ जिम्मेदारी है ना।

 

आज लगभग 12:30 बजे हम हिंदी मिलाप के ऑफिस पहुँचे, रिसेप्शन वाले ने फातिमा जी को मैसेज छोडा और कुछ ही देर बाद फातिमा जी एक लिफाफा लेकर हमारे सम्मुख प्रकट हो गई। दुआ सलाम के बाद उन्होंने हमें प्रमाण पत्र व एक 6,000/- हजार का चैक थमा दिया और प्राप्ती के हस्ताक्षर के लिए कहा हमने भी चुपचाप अपनी फोटो के आगे ऑटोग्राफ देकर इतिश्री कर ली। हमने उन्हें धन्यवाद किया तो वो फट पडी, आप लोगों को क्या लगता है हम इसी काम के लिए बैठे हैं, हम मिलाप के स्टाफ हैं ,ये ट्रस्ट का काम हैं लेकिन हम फिर भी कर रहे हैं। मुझे लगा वे पता नही किस किस से नाराज़ होकर भरी बैठी हैं इसलिए पुन: उनका धन्यवाद किया किंतु उनकी नाराज़गी जा ही नही रही थी” आप सामने ही रहते हैं फिर भी.......... मैंने कहा मेरी कहाँ गल्ती है फातिमा जी मैं 3 हफ्ते से प्रवास पर देहली में था 16 को हैदराबाद वापिस आया हूँ, इससे पहले कि वे कुछ और कहती मैंने जय श्रीराम बोला और दरवाज़े की ओर लपक लिया।

 

ऑफिस आकर प्रमाण-पत्र चेक किया तो पाया मेरे प्रमाण-पत्र के साथ चिपक कर प्रिया जैन का प्रमाण-पत्र भी साथ ही आ गया है ( ना ना हुज़ुर सिर्फ प्रमाण-पत्र चेक वगैरह कुछ नही) आज तो सम्भव नही हाँ कल ज़रुर फातिमा जी को कष्ट दूँगा क्यों कि कल अगर प्रिया जैन अपना प्रमाण-पत्र लेने पहुँची और वो उन्हें नही मिला तो .............

 

 

जय श्रीराम

 

 

 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-23:05:2022


" रिलीज़ "

 



                                                                                  “रिलीज़”

          प्रिया लगभग दौडती हुई पहली मंज़िल पर अपनी माँ के कमरे में पहुँच कर ठिठक गई, वह बुरी तरह हाँफ रही थी। शारदा चौधरी ने एक उचटती हुई सी निगाह उस पर डाली और बोली, क्या हुआ, अपने को संयत करते हुए प्रिया लगभग चीखती हुई बोली, माँ मैं ये क्या सुन रही हूँ ? शारदा चौधरी ने फिर एक उचटती हुई निगाह प्रिया की तरफ डाली और पूछा क्या सुन रही हो, खुलकर बोलो तो पता चले। प्रिया को शायद ऐसे किसी उत्तर की उम्मीद नही थी वह फिर बोली- माँ तुम मलिक अंकल के साथ शादी कर रही हो, बोलो माँ, शरदा चौधरी से कोई जवाब न पाकर वह फिर चिखी माँ तुम्हें शर्म नही आती इस उम्र में ये सब करते हुए तुम्हें तो सोचकर भी पाप लगना चाहिए। तुम्हारी इस हरकत से मेरे ससुराल में कितना बडा हंगामा हो गया है। तुम्हारा आठ साल का नाती है छ: साल की नातिन, वैभव भैय्या और भाभी सब टेंशन में हैं, तुम्हें ये क्या सूझी माँ, कुछ तो समाज का हमारा ख्याल करना चाहिए था ना। प्रिया एक साँस में पता नही क्या क्या कह गई। किंतु शारदा चौधरी अभी भी शांत भाव से पलंग पर ही बैठी सब कुछ सुनती रहीं। 

          तुम्हें और कुछ कहना है प्रिया या सब हो गया, एक बार फिर प्रिया को जोर का झटका जोर से लगा, वह हतप्रभ सी रह गई। माँ तुम जानती भी हो कुछ समझती भी हो या यूँ ही बैठे बिठाए मलिक की गोद में बैठने का फैसला ले लिया। वैभव की शादी पिछ्ले साल ही तो हुई है जल्दी ही तुम दादी बनने वाली हो, कुछ तो शर्म करो माँ। तुम्हारी उम्र अब 30-35 की नही रही बल्कि 53 साल की है। क्या इस उम्र में भी तुम्हें अय्याशी सूझ रही है, अब तुम्हारी उम्र नीचे से रिलीज़ होने की नही रही। तुम एक साथ चार चार घर बर्बाद करने पर तुली हो। इतना बडा मकान, दो दो गाडी, पापा का चलता हुए बिजनेस, जिसे अब तुम और वैभव सँभाल रहे हो। आखिर ऐसा निर्णय लेने से पहले तुम्हें पापा की बिलकुल भी याद नही आईं, पापा कितना प्यार करते थे तुम्हें और तुम उन्हें। फिर ये सब सब क्यूँ माँ। वैभव की तो हिम्मत ही नही हो रही तुमसे बात करने की और वो तुमसे बात भी क्या करेगा, भाभी अलग परेशान है कि उनके मैयके वाले क्या कहेंगे। तुम ऐसा कैसे कर सकती हो माँ। चीखते चीखते प्रिया रोने लगी और वहीं धम्म से ज़मीन पर बैठ गई।

          शारदा चौधरी अभी भी शांत भाव से सब कुछ सुन रही थीं, उन्होंने प्रिया से फिर पूछा कुछ और कहना सुनना है या आगे के शब्द उन्होंने जानबूझ कर हवा में तैरने के लिए छोड दिये। प्रिया ने सर उठाकर शारदा चौधरी की तरफ देखा, रो रो कर उसकी आँखे एकदम लाल हो चुकी थीं। फिर एक दम चिल्लाकर बोली हाँ मेरा हो चुका और तुम भौंको। शारदा चौधरी जानती थीं कि प्रिया अभी भी कॉफी अप्सेट है इसलिए बोलीं हाँ मैं भौकूँगीं, आज तो ज़रुर भौकूँगी फिर एकदम शांत स्वर में बोलीं  पहले तुम फ्रेश हो जाओ अगर ठीक लगे तो दो कॉफी बना लाओ फिर बैठकर बात करते हैं। मुझे उम्मीद है तुम अपनी माँ के लिए इतना तो कर सकती हो। प्रिया यंत्रवत सी खडी होकर वॉशरुम में गई फ्रेश हुई फिर किचन में जाकर दो कॉफी बनाकर माँ के पलंग के सामने कुर्सी डालकर बोली। अब बचा ही क्या है कुछ बोलने सुनने के लिए माँ फिर भी कहो मैं सुनने के लिए तैयार हूँ किंतु अंतिम बार।अगर आपने अपना फैसला नही बदला तो आज ये हमारी अंतिम मुलाकात होगी। एक फीकी सी मुस्कान के साथ शारदा चौधरी ने प्रिया के हाथ से कॉफी का मग लिया फिर न जाने क्या सोचकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली मैं इतनी भी बुरी नही प्रिया जितना तुम सोचे बैठी हो। खैर सुनो.....


          मैं जब 19 बरस की थी तब तुम्हारे पापा के साथ मेरी शादी हुई, तुम्हारे पापा का भरा पूरा परिवार था, मैं खुश थी मुझे कभी भी मायके की याद ज्यादा याद नही आई क्यों कि मुझे यहाँ पूरा मान सम्मान मिला। 21बरस की उम्र तुम आई फिर 24 की उम्र में वैभव फिर पता ही नही चला तुम दोनों की परवरिश में समय कैसे पंख लगाकर उड गया। तुम्हारा MBBS का 3rd year था और वैभव का इंजीनियरिंग में 1st year था,जब तुम्हारे पापा अचानक प्रभु के चरणों में विलीन हो गये। मैं उस समय 42 साल की थी। तुम्हारे पापा के जाने के बाद सभी ने हमसे किनारा कर लिया। सबको चिंता थी तो सिर्फ बिजनेस के अपने अपने हिस्से की, चलो शुक्र है तुम्हारे दादा जी जिंदा थे सो उन्होंने स्वंय ही बिजनेस के चार हिस्से कर सबको बराबर बाँट दिया। हमारे हिस्से में जो भी आया वो मेरे और तुम दोनों के लिए कॉफी था। मुझे जितनी समझ बूझ थी उसके अनुसार मैंने इसे आगे बढाया, ज्यादा का तो पता नही फिर भी तुम दोनों की पढाई लिखाई, शादी वगैरह में अच्छा खासा पैसा खर्च हुआ वो सब इस चलते हुए बिजनेस से ही आया। तुम्हारी शादी को भी 9 साल हो गये हैं विभू की शादी को दूसरा लग गया है, तुम दोनों अपने अपने कामों में व्यस्त हो। मुझे ये बिलकुल भी पसंद नही कि मैं अपनी मर्ज़ी किसी पर थोपूँ फिर चाहे वो मेरे अपने बच्चे ही क्यूँ न हों। कहते कहते शारदा चौधरी ने एक लम्बा पॉज़ लिया। तुम आज लगभग तैंतीस साल की हो गई हो और मैं 53 की होकर चौवन में लग गई हूँ। इसमें कोई शक नही कि तुम्हारे पापा घर का भी ख्याल रखते थे मेरा भी बच्चों का भी और बिजनेस का भी और शायद  कहते कहते शारदा चौधरी ने फिर एक लम्बा पॉज़ लिया, मुझे कोई शियाकत भी नही उनसे, हर व्यक्ति की ज़िंदगी में कुछ पल अपने लिए भी होने चाहिए जो शायद तुम्हारे पापा भी चाहते थे। पहले तुम दोनों की जिम्मेदारी, फिर तुम्हारी शादी फिर विभू की जिम्मेदारी फिर शादी। तुम दोनों अपनी अपनी फैमली में खुश हो और मैं भी तुम दोनों से कोई शिकवा शिकायत नही रखती क्यों कि समय के साथ ऐसा ही होता है और हमें इसे हँसकर स्वीकार कर लेना चाहिए न कि बच्चों को कोसते हुए ज़िंदगी गुजारनी चाहिए।

          खैर मलिक जी मेरी ज़िंदगी में 2-3 बरस पूर्व आए, हर तरह से जिंदादिल इंसान, तकलीफें हैं किंतु सिर्फ अपने लिए मानते हैं किसी को उन तकलीफों में शामिल करना पसंद नही करते। उनका मानना है लोगों को बताकर या सुनाकर क्या होगा, लोग सुनेंगें हमदर्दी जतायेंगे फिर भूल जायेंगे, कभी उनमे से किसी से मुलाकात होगी तो वो मेरी ज़िंदगी के भरे हुए पन्ने मुझे ही सुनायेंगे इसलिए किसी को कुछ न बताना है न जताना है। ईश्वर ने जो ज़िंदगी दी वो उसमें बहुत खुश हैं। उनसे जो भी मिलता है वो उन्हें उनके व्यवहार के कारण याद रखता है। तकलीफों के बीच रहकर भी कैसे खुश रहा जाता है ये मैंने उन्हीं से सीखा।  

          आज की तारिख में उनका मुझसे कैसा सम्बंध है ये तुम अभी नही समझ पाओगी। कुछ और बाल पकने दो। हाँ उनकी उम्र भी बता देती हूँ वे 58 वर्ष के हैं, एक बेटी है जिसकी शादी हो चुकी है। भारतीय जीवन बीमा निगम से स्वैछिक रिटायर्मेंट ले लिया है। पेंशन में खुश हैं। उनका वैवाहिक जीवन न के बराबर है जानती हो अच्छी बात क्या है कि इसके बावज़ूद घर की जिम्मेदारी अभी तक निभाते आ रहे हैं। मैंने एक दिन जोर देकर पूछा भी था तकलीफ नही होती जो साथ है उसके साथ बात भी नहीं तो जानती हो हँसकर बोले “ ये ज़रूरी नही उससे नफरत करुँ, दूर रहने के और भी रास्ते” और फिर जोर से बडी देर तक खिलखिलाकर हँसते रहे। अब रही तुम्हारी रिलीज़ होने वाली बात तो प्रिया- रिलीज़ होने की कोई उम्र नही होती। महत्वपूर्ण यह है कि आप रिलीज़ कहाँ से होना चाहते हैं, सिर्फ नीचे से या ऊपर से यानि दिल से भी। हम समय समय पर नीचे से रिलीज़ होते रहते कभी चाह्ते हुए भी और कभी न चाह्ते हुए भी किंतु ऊपर यानि दिल में पता नही क्या क्या भरकर बैठे रहते हैं, किसी को दिल से रिलिज़ होने का मौका मिलता है किंतु ज्यादातर को निश्चित नही और इसमें पुरुष और  स्त्रियाँ दोनों ही होती हैं। स्त्रियाँ तो कभी कभी अपनी सहेली से कह सुन भी लेती हैं किंतु ज्यादातर पुरुष स्वंय में ही घुटते रहते हैं। से याद रखो नीचे से रिलीज़ तो कुदरत भी कर देती हैं किंतु ऊपर से हमें स्वंय होना पडता है और इसके लिए एक ऐसे व्यक्ति की ज़रुरत पडती है सबके साथ तो रहे किंतु आपके साथ विशेष्। कहते हैं न ढूँढने से तो भगवान भी मिल जाते हैं सो मैं इसे ईश्वर की कृपा मानती हूँ कि जो मुझे मलिक जी टकरा गये। प्रिया तुम शायद गुस्से में कुछ ज्यादा ही तल्ख हो गई थीं इसलिए अपनी माँ पर ही तुमने ये सवाल दाग दिया। प्रिया कुछ बोलना चाहती थी किंतु शारदा चौधरी ने हाथ के इशारे से चुप रहने के लिए कह दिया और फिर प्रवाह को आगे बढाते हुए बोलीं। लडकी हो या औरत एक उम्र तक ही रिलीज़ हो पाती है मैं भी हुई और तुम अब भी हो रही हो, कभी स्वंय के द्वारा या कभी अपने साथी के द्वारा किंतु जितना जोर हम नीचे की रिलीज़ पर देते हैं या सोचते हैं क्या उतना कभी ऊपर के रिलीज़ पर देते हैं। कभी नहीं।नीचे से रिलीज़ करने वाला साथी मिल जाता है किंतु ऊपर से रिलीज़ करने वाला.... किस्मत वालों को ही मिलता है। (शारदा चौधरी प्रिया की बातों से इतनी दुखी हो गई थीं कि कई वाक्यों को उन्होंने कई बार दोहरा दिया था।) कुछ रुककर वो फिर बोलीं  खैर सुनों मैं और मलिक जी शादी नही कर रहे क्यों कि मलिक जी पहली से ही बहुत कुछ सह चुके हैं बडी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्भाला है और अब लोगों को कैसे सम्भ्ला जाता है सिखाते हैं। हम दोनों ने ही तय किया है कि महीने में एक या दो बार हम दोनों ही कहीं बाहर जाया करेंगे एक दूसरे को ऊपर से रिलीज़ होने में मदद करेंगे कभी ज़रुरत पडी तो नीचे से भी।और हाँ अय्याशी ही करनी होती तो मैं ग्यारह साल इंतेज़ार नही करती। किसी के साथ समय निभाने को अय्याशी नही कहा जा सकता अगली बार जब तुम ये शब्द इस्तेमाल करो तो सौ बार सोचना। एक अंतिम बात उन्हें मेरी ज़रुरत कम है मुझे उनकी ज्यादा क्यों कि उन्होंने बरसों से तकलीफों में जीना सीख लिया है और मैंने अभी शुरु ही किया है। 


-प्रदीप देवीशरण भट्ट-25:05:2022

Wednesday, 18 May 2022

“नेपाल-भारत महोत्सव”

 

रिपोतार्ज़

               “नेपाल-भारत महोत्सव”

 

पिछ्ले वर्ष यानि 2021 के मध्य में दितीय नेपाल-भारत महोत्सव शायद सितम्बर-2021 में होना तय हुआ। इस विषय में मेरी क्रांतिधरा मेरठ के सर्वेसर्वा विजय पण्डित जी से काफी लम्बी चर्चा हुई। मैंने भी अपनी पुस्तक दरिया सूखकर सहरा हुआ है की एक प्रति मय प्रोफाइल के उन्हें भिजवा दी।  किंतु कोरोना के उधम मचाने के कारण ये महोत्सव सितम्बर-2021 के स्थान पर 26,27 व 28 फरवरी-2022 को होना तय हुआ। मैं भी हर्षित कि चलो “स्वामी प्रदीपानंद” का हैप्पी बर्डे इस बार नेपाल में भगवान पशुपति नाथ के चरणों में मनाया जाएगा इसी बीच दीपावली पर मेरा मेरठ जाना हुआ जहाँ विजय जी से आत्मिक भेंट हुई। हमारी विभिन्न विषयों पर लगभग 2 घंटे चर्चा चली। मैं भी घूम फिर कर वापिस हैदराबाद भारत सरकार की सेवा में हाजिर हो गया। चूँकि सडक मार्ग तो ज़्यादा अच्छा है नही अतएव मैंने निर्णय लिया की हवाई मार्ग से जाना ही उचित होगा और अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में 25 फरवरी-2022 की जाने की व 1 मार्च-2022 की वापिसी की टिकिट करने के लिए अपने अनुज महेश भट्ट को फोन किया और अगले ही दिन टिकिट हो भी गई। किंतु ये क्या कोरोना महाराज के पेट में फिर ऐंठन होने लगी, ऐंठन ज़्यादा बढते देख नेपाल प्रशासन ने 125 के स्थान पर मात्र भारत से मात्र 25 साहित्यकारों को ही आने की अनुमति देने का निश्च्य किया। विजय जी द्वारा मंच पर सूचना तुरंत सार्वजनिक कर दी गई। लोग हतप्रभ अरे ये क्या हो गया, सबसे ज्यादा परेशान हवाई यात्रा वाले(कैंसिलेशन चार्जिस बहुत अधिक जो ठहरे) आपस में बात करने पर तय किया गया कि जनवरी-2022 के अंतिम सप्ताह तक इंतज़ार करते हैं यदि कोरोना की ऐंठन ठीक नही हुई तो प्रोग्राम को पोस्ट्पोन करना ही बेहतर होगा। और लीजिए साहब जनवरी का अंतिम सप्ताह भी आ गया साथ में फरवरी के भी दो तीन दिन निकल गये लेकिन कोरोना माहराज अपनी ऐंठन में ही रहे और अंतोगत्वा प्रोग्राम पोस्ट्पोन कर दिया गया। हमने भी अपनी फ्लाइट की टिकिट कैंसिल करवा दी और बचा हुआ पैसा महेश को अपने पास ही रखने को कह दिया।

 


अचानक मार्च-2022 में कोरोना माहराज की ऐंठन भारत के लोगों ने ठीक कर दी और भारत सरकार ने भी परिपत्र जारी कर दिया कि “मास्क ऑप्शनल है” फिर क्या था मार्च के प्रथम सप्ताह में ही अप्रैल माह 29,30 व 01 मई-2022 को नेपाल भारत महोत्सव की नई तिथि प्राप्त हो गई। जहाँ पिछ्ले टिकिट कैंसिलेशन चार्जिस की टीस दिल में थी वहीं ये संतोष भी था कि चलो अब बाबा पशुपतिनाथ के दर्शन तो होंगे। चूँकि हम ठहरे भारत सरकार की सेवा में तो नेपाल जाने के लिए हेड ऑफिस से पर्मिशन तो चाहिए ही थी सो 1 अप्रैल को मुम्बई कार्यालय को पत्र भिजवा दिया। बिना अनुमति के जा नही सकते, और अनुमति 21 दिनों के भीतर आनी चाहिए। खैर हमारी नेपाल यात्रा की एक्साईमेंट देखकर कुछ लोगों ने ताना मारा “क्या जी नेपाल जाने के लिए इत्ता काई कू एक्साइटिड हो रे जी”हमने एक उच्छवास भरते हुए कहा “तुम न समझोगे मियाँ”  बचपन में जब कुछ लौंडे हमें पीट देते थे तो हम कहते थे बेटा नानी के घर से इस बार पहलवान बनकर आयेंगे फिर तुमसे भिडेंगे (मतलब नानी के घर जाकर खूब माल पेलेंगे और पहलवान बनकर लौटेंगे) तो मियाँ जी फिर बोले नेपाल तुमारी ननिहाल है जी, मैंने भी कॉलर झाडते हुए कहा मियाँ भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए, वो हमारे हम उनके। भगवान राम का विवाह माता सीता से हुआ। माता सीता कहाँ की हैं नेपाल के जनकपुर की, और हम उनके बच्चे और हाँ मियाँ तुम भी उन्हीं के बच्चे हो। मियाँ जी थोडे से कंफ्यूज़ हो गये हमने उनके कंधे पर हाथ रखकर समझाया देखो मियाँ भगवान राम और माता सीता हमारे माँ बाप हैं। अब हम कहाँ जा रहे हैं, मियाँ जी बोले नेपाल, तो नेपाल हमारा ननिहाल हुआ ना। अब हम वहाँ जा रहे हैं तो खूब खायेंगे खूब पीयेंगे फिर लौट कर हैदराबाद ही तो आयेंगे। तो समझ लो मियाँ क्या क्या हो सकता है। मियाँ जी को अब पूरी बात समझ में आ गई थी इसलिए खींसे निपोरते हुए बोले “जय श्री राम”। निश्चित रुप से मेरे लिए ये अप्रयाशित था। मियाँ जी ने शायद ये सोचकर जय श्रीराम का नारा लगा दिया कि इस बंदे से पीछा छुडाने का यही एक मात्र विकल्प है शायद उन्हें डर रहा हो कि कहीं अगर वे बहस में ज्यादा उलझे तो मैं उन्हें भी ननिहाल ना लिवा ले जाऊँ।

 

            


23 अप्रैल को हम भी हैदराबाद से बंगलौर राजधानी पकडकर देल्ही के लिए निकल पडे। अगले दिन यानि 24 को निज़ामुद्दीन स्टेशन उतरे और सीधे अपने मित्र पवन गोयल को सरप्राइस दे डाला। खैर बडे ही आत्मिय माहौल में दोनों जन गले वले मिले । चूँकि संतोष सम्प्रति जी से पहले ही एक काव्य गोष्ठी का प्रोग्राम तय हो चुका था सो नाश्ता करके जा पहुँचे संतोष जी के घर फिर वहाँ से  गोष्ठी स्थल तक । तीन चार घंटे कैसे निकल गये पता ही नही चला। अगले दिन फिर प्रिय मित्र राजपाल यादव जी से गुरुग्राम में एक गर्मजोशी भरी मुलाकात की फिर अगले दिन एडवोकेट मित्र ने घर पर ही आमंत्रित कर लिया, बिहार से हैं बढिया भोजन (ब्राह्मण को और क्या चाहिए) मित्र के पिताजी व माता जी से मिलकर अत्यंत प्रसन्न्ता हुई मित्र के पिताजी मेरे आने के बाद ही खाना खाने पर अडे रहे शायद ये भी प्रेम का एक तरीका है। खैर मधुर वातावरण में मुलाकात के बाद वापिस लौटते हुए मेट्रो में भीड ने किसी वृद्ध जन को धक्का दिया वे मेरे ऊपर और मेरा प्यारा चश्मा मेट्रो की पटरियों पर शायद वो दोनों ही मिलन को तडप रहे थे।

 

           

 

अगले दिन यानि 28:04:2022 की अपरान्ह 13:50 की इंडिगो की फ्लाइट, जिसने टेक ऑफ 14:30 पर किया किंतु काठमांडू 16:45 उतार भी दिया। यात्रा के दौरान ही प्रिय मनिष से भेंट हुई जो लखनऊ से आ रहे थे, डॉक्टर मोनिका मेहरोत्रा जो प्रयागराज से और गिरिश त्यागी जी बिजनौर से महोत्सव में भाग लेने जा रहे थे। काठमांडू के प्यारे मौसम ने बाहें खोलकर हमारा स्वागत किया जैसे कह रहा हो “आओ ठाकुर आओ,बहुत देर लगा दी आने में” इसी दरमियान हम चारों की आपस में थोडी बहुत चुहलबाजी भी चलती रही। एअर पोर्ट से टैक्सी लेकर सीधे पहूँचे पशुपतिनाथ भवन जहाँ हमारे रहने का इंतेज़ाम किया गया था, पता चला कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने ही उसका उद्घाटन किया था। अब तो हमारी छाती भी 42 से 56 इंच की हो गई। सांय को होटेल मैंनेजमेंट द्वारा भारत से पधारे सभी साहित्यकारों  का नेपाली रीति रिवाज से स्वागत किया गया। माथे पे बडा सा तिलक, 54 मनके की रुदाक्ष की माला और सर झुकाकर अभिवादं। सच कहें तो बहुतेरे सम्मेलन कवि सम्मेलन अटैण्ड किये हैं किंतु ऐस स्वागत तो कभी ना हुआ। पशुपतिनाथ भगवान की की जय्। सांय को किसी अन्य स्ठान पर स्वागत समारोह एवँ डिनर, साथ में कई ब्राँड की बेहतरीन शराब रखी हुई थी। जो पीते थे उन्होंने संकोच वश नही पी और हम जैसे लोग जो पीते नही हैं वो ब्रांड देखकर ही खुश हो गये।

 


अगले दिन यानि 29:04:2022 की प्रात: भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन किये
,भीड तो ज्यादा नही थी किंतु अव्यवस्था अपनी कहानी खुद कह रही थी। विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ के मंदिर की दशा निश्चित रुप से शोचनीय है। मंदिर से लौटे ब्रेकफास्ट किया और पहुँच गये  मीटींग हॉल में जहाँ तरतीब से सजा हुआ मंच, बैठने की बेहतरीन व्यवस्था और उससे भी ज्यादा आत्मियता भरा मेजबानों का व्यव्हार मन को छू गया। सभी सत्रों के संचालन की जिम्मेदारी श्रीमती कंचना झा व दिनेश डी सी द्वारा सन्युक्त रुप से निभाई गई। नेपाल- भारत महोत्सव का शुभारम्भ सरस्वती वंदना से हुआ। फिर नेपाल पर्यटन बोर्ड द्वारा भारत के सभी साहित्यकारों का स्वागत तिलक, रुद्राक्ष की माला, नेपाल-भारत महोत्सव की मित्रता के रुप में एक थैला व एक स्मारिका प्रदान की गई। इस स्मारिका में हिंदी भाषा के ऊपर मेरा भी लेख प्रकाशित हुआ है। स्मारिका का विमोचन महोत्सव के मुख्य अतिथि ललित प्रज्ञा प्रतिष्ठान के कुलपति के के कर्माचार्य जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ।प्रथम सत्र में ही भारत व नेपल्ल के सभी साहित्यकारों का परिचय हुआ। भारत की ओर से द्वारिका प्रसाद अग्रवाल व आदित्य प्रताप सिंह (छत्तीसगढ) से, विभा रानी श्रीवास्तव, नसीम अख्तर,डॉक्टर राशी सिन्हा,नूतन कुमारी सिन्हा, मीना कुमारी परिहार,प्रेमलता सिह,मीरा प्रकाश, रवि श्रीवास्तव बिहार से, नीता चौधरी ( जमशेदपुर झारखंड) अनिला सिंह चांडक( जम्मू) रमा निगम व कैलाश आदमी, भोपाल, राधा पाण्डेय सिक्किम,ऐश्वर्या सिन्हा जौनपुर (उत्तर प्रदेश),आलोक कुमार रस्तौगी (देल्ही), सावित्री मिश्र (उडीसा),त्रिलोक फतेहपुरी, दलबीर फूल जी हरियाणा, मनिष शुक्ला लखनऊ (उत्तर प्रदेश),डॉक्टर मोनिका मेहरोत्रा, प्रयागराज, गिरिश त्यागी (बिजनौर- उत्तर प्रदेश) अरविंद कुमार गाजीपुर, महेश भट्ट बनारस प्रभु त्रिवेदी व हरिराम बाजपई- इंदौर मध्य प्रदेश, डॉक्टर विजय पंडित- मेरठ (उत्तर प्रदेश) व प्रदीप देवीशरण भट्ट- हैदराबाद (तेलांगना) इस तीन दिवसीय नेपाल- भारत महोत्सव की शान रहे। वहीं नेपाल से श्री राधेश्याम, अस्मिता सुमार्गी,अरुणराज सुमार्गी,नरेंद्र बहादुर श्रेष्ठ, रेखा यादव, मंजिला अनिल,मुरारी सिग्देल, प्रमोद प्रधान व पारू तिमील्सेना जी उपस्थित रहे।

 


द्वितीय सत्र में बहुभाषी कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें दोनों देशों के कवियों ने अपनी कविताओं/गज़लों से समां बाँधा। तृतीय सत्र में मुशायरे का आयोजन किया गया जिसमें लोगों की उपस्थिति न के बराबर रही। 30 अप्रैल को को प्रथम सत्र में नेपाल पर्यटन बोर्ड की ओर से ललितपुर नग पालिका प्रतिनिधी द्वारा सभी भारतीय अतिथियों का स्वागत किया गया।  स्वागत के दौरान ही भगवान इंद्र ने भी धूमधाम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। पाटन के विश्व धरोहर में शामिल दरबार स्कायर, कृष्ण मंदिर, गोल्डन टेम्पल और राष्टीय संग्राहालय का भ्रमण किया। दूसरे सत्र में शोध पत्र प्रस्तुत किये गय, भारत की ओर से श्री गोपाल नारसन द्वारा हिंदी का भारतीय उप महाद्वीप और वैश्विक स्तर पर कल आज और भविष्य पर शोध पत्र प्रस्तुत किया गया। नेपाल की ओर से प्रमोद प्रधान द्वारा नेपाली साहित्य्कों को अंतर्राष्ट्रीय करण को प्रश, अनुवादकों की समस्या विषय पर शोध पत्र पढा गया। तृतीय सत्र जहाँ नेपाल भारत सम्बंधो के ऊपर रहा वहीं चौथा सत्र में नेपाली डायस्पोरा के योगदान की चर्चा अहम रही।  पाँचवा सत्र लघु कथा के लिए रहा। छटे सत्र में महिला सशक्तिकरण पर चर्चा सार्थक रही। दूसरे दिन का एक विशेष सत्र भी रहा जिसमें तृतीय नेपाल-भारत महोत्सव हेतु एक कमेटी का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षता नेपाल की ओर से राधेश्याम जी ने व भारत की ओर से डॉक्टर विजय पंडित ने की। भारत की ओर से प्रदीप देवीशरण भट्ट, मनीष शुक्ला, डॉक्टर राशि सिन्हा, डॉक्टर मोनिका मेहरोत्रा व राधा पाण्डेय उपस्थित रहे इसमें सात सूत्रीय घोषणा पत्र की रुपरेखा तैयार हुई। जिस पर सभी ने हस्ताक्षर कर अगले दिन इसे प्रस्तुत करने का निर्णय लिया।

 

तीसरे दिन यानि 1 मई-2022 (मजदूर दिवस) सभी साहित्यकारों को साहित्यिक भ्रमण पर चंद्रागिरी परत पर ले जाया गया, इस पर्वत की ऊँचाई लगभग 8200 फीट है। ट्राली के माध्यम से सभी ने चंद्रागिरी पर्वत की सैर की, मंदिर के दर्शन किये, वहीं के एक पार्क में नेपाल- भारत महोत्सव के सात सूत्रीय घोषणा पत्र को पढकर सभी सुधीजनों को सुनाया गया। ततपश्चात सभी वापिस होटेल लौटे, लंच लिया फिर सायं को 5 बजे नाच घर में इस तीन दिवसीय नेपल्ल- भारत महोत्सव का समापन समारोह के हिस्सा बने। कुछ बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए तत्पश्चात सभी साहित्कारों को ट्रॉफी व प्रमाण-पत्र प्रदान किये। दोनों देशों के राष्ट्रगान के साथ इस तीन दिवसीय नेपाल-भारत महोत्सव का समापन हुआ।


अगले दिन यानि 2 मई को नाश्ता करने  के बाद सभी मित्र अपने अपने गंतव्य स्थानों को लौटने शुरु हो गये। मैं भी टैक्सी लेकर एअरपोर्ट पहुँच गया। सांय 16:55 की फ्लाइट थी किंतु भगवान इंद्र पुन: अपने रुप में प्रकट हो गये और जिन मित्रों की फ्लाइट 13:50 पर थी वे भी मुझे 3 बजे वहीं बैठे हुए मिल गये। हम भी मज़ाक में पूछे का हुआ भैय्या- वो बोले का बताएं पण्डित जी फ्लाइट दिल्ली से आएगी तब जाएगी। हम मन ही मन खुश और भागो सुबह सुबह,खैर उनकी तो 15:45 की घोषणा हो गई किंतु अब हमारी लटक गई वो भी पूरे 2 घंटे हमने खुद से कहा अब हँसो बे। काठमांडू से देह्ली का सफर में काले काले बादल बारिश पूरे शवाब पर बरस रही है, कैप्टन की आवाज आई। कृपया कुर्सी की पेटी बाँधे रखिए नही तो............. खैर 20:30 पर फ्लाइट ने लैंड किया तब जाकर जान में जान आई।

 

अंत में उन चंद दोस्तों से जो इस बेहतरीन चार दिनों की साहित्यिक यात्रा में भी अपने में ही गुमसुम रहे। बढिया खुशगवार मौसम, बढिया खाना, बढिया रहने का इंतेज़ाम, बढिया मेहमाननवाज़ी कुछ चटकदार चेहरे ( पर मेरा चटकदार चेहरा मेरे साथ नही), माहरानी विक्टोरिया का आगे आगे चलना उनके पीछे अर्दली का लपकते हुए जाना, बेहद शालीनता से रिसेशनिस्ट का मेरे साथ एक फोटो का आग्रह, नाच घर में एक सज्जन का कहना सर आप जगजीत सिंह के भाई हैं, मैं आपके साथ एक फोटो ले सकता हूँ और मेरा मुस्कुराते हुए कहना जी, वे मेरे मामा के लडके हैं और मैं उनकी बुआ का। (बेस्ट कॉम्पलिमेंट इन माय लाइफ) ऐसे कॉम्प्लिमेंट मुझे मुम्बई व हैदराबाद और देल्ही में भी कई बार मिल चुके हैं।  सबसे याद रखने योग्य बात हम सबके बीच एक 7-8 वर्ष की बच्ची नाम याद नही आ रहा सो “ छोटी राशि सिन्हा” जिसने हरिद्वार में अपनी कविता सुनाई और अच्छी बात ये कि हम दोनों दोस्त बन गये।अंत में एक बात और कुछ चीज़े अटपटी लगी और मुझे कई बार ऐसा लगा कि शायद हम भारत के साहित्य्कार नेपाल के साहित्यकारों का सम्मान करने गये हैं।

 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-18:05:2022