रिपोतार्ज़
“नेपाल-भारत महोत्सव”
पिछ्ले वर्ष यानि 2021 के मध्य में दितीय नेपाल-भारत
महोत्सव शायद सितम्बर-2021 में होना तय हुआ। इस विषय में मेरी क्रांतिधरा मेरठ के
सर्वेसर्वा विजय पण्डित जी से काफी लम्बी चर्चा हुई। मैंने भी अपनी पुस्तक दरिया
सूखकर सहरा हुआ है की एक प्रति मय प्रोफाइल के उन्हें भिजवा दी। किंतु कोरोना के उधम मचाने के कारण ये महोत्सव
सितम्बर-2021 के स्थान पर 26,27 व 28 फरवरी-2022 को होना तय हुआ। मैं भी
हर्षित कि चलो “स्वामी प्रदीपानंद” का हैप्पी बर्डे इस बार नेपाल में भगवान पशुपति
नाथ के चरणों में मनाया जाएगा इसी बीच दीपावली पर मेरा मेरठ जाना हुआ जहाँ विजय जी
से आत्मिक भेंट हुई। हमारी विभिन्न विषयों पर लगभग 2 घंटे चर्चा चली। मैं भी घूम
फिर कर वापिस हैदराबाद भारत सरकार की सेवा में हाजिर हो गया। चूँकि सडक मार्ग तो
ज़्यादा अच्छा है नही अतएव मैंने निर्णय लिया की हवाई मार्ग से जाना ही उचित होगा
और अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में 25 फरवरी-2022 की जाने की व 1 मार्च-2022 की
वापिसी की टिकिट करने के लिए अपने अनुज महेश भट्ट को फोन किया और अगले ही दिन
टिकिट हो भी गई। किंतु ये क्या कोरोना महाराज के पेट में फिर ऐंठन होने लगी, ऐंठन ज़्यादा बढते देख नेपाल प्रशासन ने 125 के स्थान पर मात्र भारत से
मात्र 25 साहित्यकारों को ही आने की अनुमति देने का निश्च्य किया। विजय जी द्वारा
मंच पर सूचना तुरंत सार्वजनिक कर दी गई। लोग हतप्रभ अरे ये क्या हो गया, सबसे ज्यादा परेशान हवाई यात्रा वाले(कैंसिलेशन
चार्जिस बहुत अधिक जो ठहरे) आपस में बात करने पर तय किया गया कि जनवरी-2022 के
अंतिम सप्ताह तक इंतज़ार करते हैं यदि कोरोना की ऐंठन ठीक नही हुई तो प्रोग्राम को
पोस्ट्पोन करना ही बेहतर होगा। और लीजिए साहब जनवरी का अंतिम सप्ताह भी आ गया साथ
में फरवरी के भी दो तीन दिन निकल गये लेकिन कोरोना माहराज अपनी ऐंठन में ही रहे और
अंतोगत्वा प्रोग्राम पोस्ट्पोन कर दिया गया। हमने भी अपनी फ्लाइट की टिकिट कैंसिल
करवा दी और बचा हुआ पैसा महेश को अपने पास ही रखने को कह दिया।
अचानक मार्च-2022 में कोरोना माहराज की ऐंठन भारत के लोगों
ने ठीक कर दी और भारत सरकार ने भी परिपत्र जारी कर दिया कि “मास्क ऑप्शनल है” फिर
क्या था मार्च के प्रथम सप्ताह में ही अप्रैल माह 29,30
व 01 मई-2022 को नेपाल भारत महोत्सव की नई तिथि प्राप्त हो गई। जहाँ पिछ्ले टिकिट
कैंसिलेशन चार्जिस की टीस दिल में थी वहीं ये संतोष भी था कि चलो अब बाबा
पशुपतिनाथ के दर्शन तो होंगे। चूँकि हम ठहरे भारत सरकार की सेवा में तो नेपाल जाने
के लिए हेड ऑफिस से पर्मिशन तो चाहिए ही थी सो 1 अप्रैल को मुम्बई कार्यालय को
पत्र भिजवा दिया। बिना अनुमति के जा नही सकते, और अनुमति 21
दिनों के भीतर आनी चाहिए। खैर हमारी नेपाल यात्रा की एक्साईमेंट देखकर कुछ लोगों
ने ताना मारा “क्या जी नेपाल जाने के लिए इत्ता काई कू एक्साइटिड हो रे जी”हमने एक उच्छवास भरते हुए कहा “तुम न समझोगे
मियाँ” बचपन में जब कुछ लौंडे हमें
पीट देते थे तो हम कहते थे बेटा नानी के घर से इस बार पहलवान बनकर आयेंगे फिर
तुमसे भिडेंगे (मतलब नानी के घर जाकर खूब माल पेलेंगे और पहलवान बनकर लौटेंगे) तो
मियाँ जी फिर बोले नेपाल तुमारी ननिहाल है जी, मैंने भी
कॉलर झाडते हुए कहा मियाँ भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए, वो
हमारे हम उनके। भगवान राम का विवाह माता सीता से हुआ। माता सीता कहाँ की हैं नेपाल
के जनकपुर की, और हम उनके बच्चे और हाँ मियाँ तुम भी
उन्हीं के बच्चे हो। मियाँ जी थोडे से कंफ्यूज़ हो गये हमने उनके कंधे पर हाथ
रखकर समझाया देखो मियाँ भगवान राम और माता सीता हमारे माँ बाप हैं। अब हम कहाँ जा
रहे हैं, मियाँ जी बोले नेपाल, तो
नेपाल हमारा ननिहाल हुआ ना। अब हम वहाँ जा रहे हैं तो खूब खायेंगे खूब पीयेंगे फिर लौट कर हैदराबाद ही तो आयेंगे।
तो समझ लो मियाँ क्या क्या हो सकता है। मियाँ जी को अब पूरी बात समझ में आ गई थी
इसलिए खींसे निपोरते हुए बोले “जय श्री राम”। निश्चित रुप से मेरे लिए ये अप्रयाशित
था। मियाँ जी ने शायद ये सोचकर जय श्रीराम का नारा लगा दिया कि इस बंदे से पीछा छुडाने
का यही एक मात्र विकल्प है शायद उन्हें डर रहा हो कि कहीं अगर वे बहस में ज्यादा उलझे
तो मैं उन्हें भी ननिहाल ना लिवा ले जाऊँ।
23 अप्रैल
को हम भी हैदराबाद से बंगलौर राजधानी पकडकर देल्ही के लिए निकल पडे। अगले दिन यानि
24 को निज़ामुद्दीन स्टेशन उतरे और सीधे अपने मित्र पवन गोयल को सरप्राइस दे डाला। खैर
बडे ही आत्मिय माहौल में दोनों जन गले वले मिले । चूँकि संतोष सम्प्रति जी से पहले
ही एक काव्य गोष्ठी का प्रोग्राम तय हो चुका था सो नाश्ता करके जा पहुँचे संतोष जी
के घर फिर वहाँ से गोष्ठी स्थल तक । तीन चार
घंटे कैसे निकल गये पता ही नही चला। अगले दिन फिर प्रिय मित्र राजपाल यादव जी से गुरुग्राम
में एक गर्मजोशी भरी मुलाकात की फिर अगले दिन एडवोकेट मित्र ने घर पर ही आमंत्रित कर
लिया, बिहार से हैं बढिया भोजन (ब्राह्मण को और क्या
चाहिए) मित्र के पिताजी व माता जी से मिलकर अत्यंत प्रसन्न्ता हुई मित्र के पिताजी
मेरे आने के बाद ही खाना खाने पर अडे रहे शायद ये भी प्रेम का एक तरीका है। खैर मधुर
वातावरण में मुलाकात के बाद वापिस लौटते हुए मेट्रो में भीड ने किसी वृद्ध जन को धक्का
दिया वे मेरे ऊपर और मेरा प्यारा चश्मा मेट्रो की पटरियों पर शायद वो दोनों ही मिलन
को तडप रहे थे।
अगले दिन
यानि 28:04:2022 की अपरान्ह 13:50 की इंडिगो की फ्लाइट, जिसने टेक ऑफ 14:30 पर किया किंतु काठमांडू
16:45 उतार भी दिया। यात्रा के दौरान ही प्रिय मनिष से भेंट हुई जो लखनऊ से आ रहे थे,
डॉक्टर मोनिका मेहरोत्रा जो प्रयागराज से और गिरिश त्यागी जी बिजनौर
से महोत्सव में भाग लेने जा रहे थे। काठमांडू के प्यारे मौसम ने बाहें खोलकर हमारा
स्वागत किया जैसे कह रहा हो “आओ ठाकुर आओ,बहुत देर
लगा दी आने में” इसी दरमियान हम चारों की आपस में थोडी
बहुत चुहलबाजी भी चलती रही। एअर पोर्ट से टैक्सी लेकर सीधे पहूँचे पशुपतिनाथ भवन जहाँ
हमारे रहने का इंतेज़ाम किया गया था, पता चला कि प्रधानमंत्री
मोदी जी ने ही उसका उद्घाटन किया था। अब तो हमारी छाती भी 42 से 56 इंच की हो
गई। सांय को होटेल मैंनेजमेंट द्वारा भारत से पधारे सभी साहित्यकारों का नेपाली रीति रिवाज से स्वागत किया गया। माथे
पे बडा सा तिलक, 54 मनके की रुदाक्ष की माला और सर झुकाकर अभिवादं।
सच कहें तो बहुतेरे सम्मेलन कवि सम्मेलन अटैण्ड किये हैं किंतु ऐस स्वागत तो कभी ना
हुआ। पशुपतिनाथ भगवान की की जय्। सांय को किसी अन्य स्ठान पर स्वागत समारोह एवँ डिनर,
साथ में कई ब्राँड की बेहतरीन शराब रखी हुई थी। जो पीते थे उन्होंने
संकोच वश नही पी और हम जैसे लोग जो पीते नही हैं वो ब्रांड देखकर ही खुश हो गये।
अगले दिन यानि 29:04:2022
की प्रात: भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन किये,भीड तो ज्यादा नही थी किंतु अव्यवस्था
अपनी कहानी खुद कह रही थी। विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ के मंदिर की दशा निश्चित रुप से
शोचनीय है। मंदिर से लौटे ब्रेकफास्ट किया और पहुँच गये मीटींग हॉल में जहाँ तरतीब से सजा हुआ मंच,
बैठने की बेहतरीन व्यवस्था और उससे भी ज्यादा आत्मियता भरा मेजबानों
का व्यव्हार मन को छू गया। सभी सत्रों के संचालन की जिम्मेदारी श्रीमती कंचना झा व
दिनेश डी सी द्वारा सन्युक्त रुप से निभाई गई। नेपाल- भारत महोत्सव का शुभारम्भ सरस्वती
वंदना से हुआ। फिर नेपाल पर्यटन बोर्ड द्वारा भारत के सभी साहित्यकारों का स्वागत तिलक,
रुद्राक्ष की माला, नेपाल-भारत महोत्सव की मित्रता
के रुप में एक थैला व एक स्मारिका प्रदान की गई। इस स्मारिका में हिंदी भाषा के ऊपर मेरा भी लेख प्रकाशित हुआ है। स्मारिका
का विमोचन महोत्सव के मुख्य अतिथि ललित प्रज्ञा प्रतिष्ठान के कुलपति के के कर्माचार्य
जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ।प्रथम सत्र में ही भारत व नेपल्ल के सभी साहित्यकारों
का परिचय हुआ। भारत की ओर से द्वारिका प्रसाद अग्रवाल व आदित्य प्रताप सिंह (छत्तीसगढ)
से, विभा रानी श्रीवास्तव, नसीम अख्तर,डॉक्टर राशी सिन्हा,नूतन कुमारी सिन्हा, मीना कुमारी परिहार,प्रेमलता सिह,मीरा प्रकाश, रवि
श्रीवास्तव बिहार से, नीता चौधरी ( जमशेदपुर झारखंड) अनिला सिंह
चांडक( जम्मू) रमा निगम व कैलाश आदमी, भोपाल, राधा पाण्डेय सिक्किम,ऐश्वर्या सिन्हा जौनपुर (उत्तर
प्रदेश),आलोक कुमार रस्तौगी (देल्ही), सावित्री
मिश्र (उडीसा),त्रिलोक फतेहपुरी, दलबीर
फूल जी हरियाणा, मनिष शुक्ला लखनऊ (उत्तर प्रदेश),डॉक्टर मोनिका मेहरोत्रा, प्रयागराज, गिरिश त्यागी (बिजनौर- उत्तर प्रदेश) अरविंद कुमार गाजीपुर, महेश भट्ट बनारस प्रभु त्रिवेदी व हरिराम बाजपई- इंदौर मध्य प्रदेश,
डॉक्टर विजय पंडित- मेरठ (उत्तर प्रदेश) व प्रदीप देवीशरण भट्ट- हैदराबाद
(तेलांगना) इस तीन दिवसीय नेपाल- भारत महोत्सव की शान रहे। वहीं नेपाल से श्री राधेश्याम,
अस्मिता सुमार्गी,अरुणराज सुमार्गी,नरेंद्र बहादुर श्रेष्ठ, रेखा यादव, मंजिला अनिल,मुरारी सिग्देल, प्रमोद
प्रधान व पारू तिमील्सेना जी उपस्थित रहे।
द्वितीय सत्र में बहुभाषी कवि सम्मेलन
आयोजित किया गया जिसमें दोनों देशों के कवियों ने अपनी कविताओं/गज़लों से समां बाँधा।
तृतीय सत्र में मुशायरे का आयोजन किया गया जिसमें लोगों की उपस्थिति न के बराबर रही।
30 अप्रैल को को प्रथम सत्र में नेपाल पर्यटन बोर्ड की ओर से ललितपुर नग पालिका प्रतिनिधी
द्वारा सभी भारतीय अतिथियों का स्वागत किया गया।
स्वागत के दौरान ही भगवान इंद्र ने भी धूमधाम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। पाटन
के विश्व धरोहर में शामिल दरबार स्कायर, कृष्ण मंदिर, गोल्डन टेम्पल और राष्टीय संग्राहालय का
भ्रमण किया। दूसरे सत्र में शोध पत्र प्रस्तुत किये गय, भारत
की ओर से श्री गोपाल नारसन द्वारा हिंदी का भारतीय उप महाद्वीप और वैश्विक स्तर पर
कल आज और भविष्य पर शोध पत्र प्रस्तुत किया गया। नेपाल की ओर से प्रमोद प्रधान द्वारा
नेपाली साहित्य्कों को अंतर्राष्ट्रीय करण को प्रश, अनुवादकों
की समस्या विषय पर शोध पत्र पढा गया। तृतीय सत्र जहाँ नेपाल भारत सम्बंधो के ऊपर रहा
वहीं चौथा सत्र में नेपाली डायस्पोरा के योगदान की चर्चा अहम रही। पाँचवा सत्र लघु कथा के लिए रहा। छटे सत्र में महिला
सशक्तिकरण पर चर्चा सार्थक रही। दूसरे दिन का एक विशेष सत्र भी रहा जिसमें तृतीय नेपाल-भारत
महोत्सव हेतु एक कमेटी का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षता नेपाल की ओर से राधेश्याम जी
ने व भारत की ओर से डॉक्टर विजय पंडित ने की। भारत की ओर से प्रदीप देवीशरण भट्ट,
मनीष शुक्ला, डॉक्टर राशि सिन्हा, डॉक्टर मोनिका मेहरोत्रा व राधा पाण्डेय उपस्थित रहे इसमें सात सूत्रीय घोषणा
पत्र की रुपरेखा तैयार हुई। जिस पर सभी ने हस्ताक्षर कर अगले दिन इसे प्रस्तुत करने
का निर्णय लिया।
तीसरे दिन यानि 1 मई-2022 (मजदूर दिवस) सभी साहित्यकारों को
साहित्यिक भ्रमण पर चंद्रागिरी परत पर ले जाया गया, इस पर्वत की ऊँचाई लगभग 8200 फीट है। ट्राली के माध्यम से सभी
ने चंद्रागिरी पर्वत की सैर की, मंदिर के दर्शन किये,
वहीं के एक पार्क में नेपाल- भारत महोत्सव के सात सूत्रीय घोषणा पत्र
को पढकर सभी सुधीजनों को सुनाया गया। ततपश्चात सभी वापिस होटेल लौटे, लंच लिया फिर सायं को 5 बजे नाच घर में इस तीन दिवसीय नेपल्ल- भारत महोत्सव
का समापन समारोह के हिस्सा बने। कुछ बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए तत्पश्चात सभी
साहित्कारों को ट्रॉफी व प्रमाण-पत्र प्रदान किये। दोनों देशों के राष्ट्रगान के साथ
इस तीन दिवसीय नेपाल-भारत महोत्सव का समापन हुआ।
अगले दिन यानि 2 मई को नाश्ता करने के बाद सभी मित्र अपने अपने गंतव्य स्थानों को लौटने
शुरु हो गये। मैं भी टैक्सी लेकर एअरपोर्ट पहुँच गया। सांय 16:55 की फ्लाइट थी किंतु
भगवान इंद्र पुन: अपने रुप में प्रकट हो गये और जिन मित्रों की फ्लाइट 13:50 पर थी
वे भी मुझे 3 बजे वहीं बैठे हुए मिल गये। हम भी मज़ाक में पूछे का हुआ भैय्या- वो बोले
का बताएं पण्डित जी फ्लाइट दिल्ली से आएगी तब जाएगी। हम मन ही मन खुश और भागो सुबह
सुबह,खैर उनकी तो 15:45 की घोषणा हो गई किंतु अब हमारी
लटक गई वो भी पूरे 2 घंटे हमने खुद से कहा अब हँसो बे। काठमांडू से देह्ली का सफर में
काले काले बादल बारिश पूरे शवाब पर बरस रही है, कैप्टन की आवाज
आई। कृपया कुर्सी की पेटी बाँधे रखिए नही तो............. खैर 20:30 पर फ्लाइट ने लैंड
किया तब जाकर जान में जान आई।
अंत में उन चंद दोस्तों से जो इस बेहतरीन
चार दिनों की साहित्यिक यात्रा में भी अपने में ही गुमसुम रहे। बढिया खुशगवार मौसम, बढिया खाना, बढिया रहने
का इंतेज़ाम, बढिया मेहमाननवाज़ी कुछ चटकदार चेहरे ( पर मेरा चटकदार
चेहरा मेरे साथ नही), माहरानी विक्टोरिया का आगे आगे चलना उनके
पीछे अर्दली का लपकते हुए जाना, बेहद शालीनता से रिसेशनिस्ट का
मेरे साथ एक फोटो का आग्रह, नाच घर में एक सज्जन का कहना सर आप
जगजीत सिंह के भाई हैं, मैं आपके साथ एक फोटो ले सकता हूँ और
मेरा मुस्कुराते हुए कहना जी, वे मेरे मामा के लडके हैं और मैं
उनकी बुआ का। (बेस्ट कॉम्पलिमेंट इन माय लाइफ) ऐसे कॉम्प्लिमेंट मुझे मुम्बई व हैदराबाद
और देल्ही में भी कई बार मिल चुके हैं। सबसे
याद रखने योग्य बात हम सबके बीच एक 7-8 वर्ष की बच्ची नाम याद नही आ रहा सो “ छोटी
राशि सिन्हा” जिसने हरिद्वार में अपनी कविता सुनाई और अच्छी बात ये कि हम दोनों दोस्त
बन गये।अंत में एक बात और कुछ चीज़े अटपटी लगी और मुझे कई बार ऐसा लगा कि शायद हम भारत
के साहित्य्कार नेपाल के साहित्यकारों का सम्मान करने गये हैं।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-18:05:2022