Monday, 27 March 2017

यथा राजा तथा प्रजा




यथा राजा तथा प्रजा



इस देश में कुछ हद दर्जे के बेशर्म पत्रकार,नेता और कुछ नोकरशाह भरे पड़े हैं जिन्हें इस बात की बिलकुल भी फ़िक्र नहीं है कि उनके उवाच से किस जाति या धर्म के लोगों की भावनाएं आहात होती हैं सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने अपने परिवार और ज्यादा से ज्यादा अपनी जाति के लोगों से ज्यादा उन्हें किसी कि फ़िक्र नहीं है स्वम परिवार या जाति को कैसे पावर मिले 24X7 वो सिर्फ़ यही सोचते रहते हैं वैसे तो सभी राजनितिक दलों पर ये उक्ति लागू होती है किन्तु उत्तर प्रदेश के विषय में ज्यादा व्यवहारिक है जहाँ कांग्रेस ने एक लंबे समय तक उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार में राज किया है वहीँ जहाँ तक उत्तर प्रदेश का प्रश्न है वहां बारी बारी से कांग्रेस समाजवादी पार्टी बहुजन समाजवादी पार्टी और बीजेपी ने भी दो टर्म में शासन किया हैजहाँ तक पूरे देश की आस्था के केंद्र अयोध्या स्थित भगवान राम के मंदिर का प्रश्न है बीजेपी को छोड़कर ज्यादातर मौकों पर शेष सभी राजनितिक पार्टियों ने हिन्दुओं के साथ सदैव सौतेला व्यवहार ही किया है मुलायम सिंह यादव ने तो इस विषय में दुष्टता की सभी सीमाएं लांघ डाली हैं वे जब-जब उत्तर प्रदेश में काबिज हुए उन्होंने हिन्दुओं को सदैव हाशिये पर ही धकेल दिया हैजहाँ तक मायावती का प्रश्न है उन्हें भी अपना परिवार (व्यक्तिगत नहीं) ही सबसे प्रिय है फ़िर दलित दलित और सिर्फ़ दलित और उसके बाद अगर कुछ सूझ जाये तो माननीय कांशीराम (सही व्यक्ति) पत्थर के बुत  यहाँ मैं कांग्रेस के विषय में कोई टिपण्णी नहीं करूँगा क्यों कि स्वन्त्रता के पश्चात् जो भी बुरी श्तिति बनी है उसके लिए सिर्फ़ मैं उसे ही जिम्मेदार मानता हूँ


अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश के ताज़ा घटना क्रम की तो बीजेपी या यूँ कहें कि योगी सरकार ने कामकाज अभी संभाला मात्र है, और कानून व्यवस्था में 9 मार्च से पहले की तुलना में आश्चर्जनक रूप से कम से कम २25 प्रतिशत का सुधार दिखाई देना शुरू हो गया है जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए एक शुभ सन्देश है इसी सुधार की उत्तर प्रदेश कब से बाट जोह रहा था सुधार सदैव ऊपर से नीचे की तरफ़ किये जाएँ तभी कारगर होते हैं नीचे से उपर कभी कुछ नहीं होता शास्त्रों में कहा भी गया है यथा राजा तथा प्रजा राजा जैसा कर्म करेगा प्रजा भी वैसा ही अनुसरण करेगी सामान्यता: कहा जाता है कि ब्रह्मचारी को पावर मिल जाये तो वो न्याय व्यवस्था अवश्य सुद्रण करेगा क्यों कि उसे मोह माया से कोई सरोकार नहीं होता शायद इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनवाया ताकि वो हरियाणा को तन मन धन से सेवा कर सकें और शायद इसी कड़ी में योगी आदिय्य नाथ को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया है जिसका पूरे देश में स्वागत किया जा रहा है। बीजेपी के यदि राजनितिक इतिहास को देखें तो यह ज्ञात होता है कि वह जहाँ जहाँ भी सत्ता में हैं वहां कम से कम हिन्दू मुस्लिम दंगा न होने पाए। इसलिए उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में जो पिछली राजनितिक पार्टियाँ दंगे की राजनीती करती थी उन पर अंकुश अवश्य लग जायेगा। विपक्ष में बैठा हुआ प्रत्येक दल इस बात की पुरजोर कोशिश करेगा कि राज्य में वो कैसे पुन: सत्ता के केंद्र को अपने अधीन करे और मुझे कोई शक नहीं है कि वे इस जाहिलाना हरकत का भी सहारा ले सकते हैं।


उत्तर प्रदेश में जहाँ बीजेपी का सत्ता का वनवास ख़त्म हुआ वहीँ आम जन की अपेक्षाएं भी योगी सरकार से धवस्त हो गई थी। जिस शासन में महिलाएं  न सुरक्षित हो वहां के राजकाज से ज्यादा राजा पर प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं किन्तु पिछली सपा सरकार को इससे क्या लेना देना वैसे भी पूरे देशी में समाजवादी पार्टी को समाजवादी गुंडा पार्टी कहकर सम्बोधित किया जाता रहा है।जिस राज्य में पुलिस की जगह गुंडों का राज हो वहां तरक्की के मायने ही बेमानी हो जाते हैं। अच्छा हुआ इस बैगेरत पार्टी का अंत हुआ। अब कम से कम लड़कियां पढने लिखने के लिए घर से बाहर जाने में डरेंगी तो नहीं। किन्तु अपवाद हो सकते हैं। चिरप्रतिक्षित राम मंदिर का निर्माण जो कि हिन्दुओं के ह्रदय में बसा हुआ है पूर्ण होना ही चाहिए किन्तु कुछ वाहयत पत्रकार और कुछ अवन्छिनीय नेता अपनी अपनी ढपली पीटने के लिए तैयार बैठे हैं जिनकी परवाह किसी भी कीमत पर नहीं की जानी चाहिए आखिर ये हमारी आस्था का प्रश्न है। उस आततायी बाबर के नाम पे राम मंदिर को तोड़कर लाखों हिन्दुओं के रक्त का गारा बनाकर  जिस मस्जिद का निर्माण किया गया। ये तो भला हो कारसेवकों का जिनके द्वारा १९९१ में उस पाप के आखिरी निशान को ढहा दिया गया ताकि भव्य राममंदिर का निर्माण हो सके।

कुछ घटिया किस्म के लोगों को मेरे शब्दों पर आपति हो सकती है किंतु इस के शब्दों का इस्तेमाल करने से मुझे लेशमात्र भी संकोच नहीं है। क्यों भारतवर्ष में रहने वाले हिन्दुओं को अपने ही लोगों द्वारा लगातार छला जाता रहा है। अपने वातानुकूलित कमरों में बैठकर कुछ छद्म नेता कुछ बे-पेंदी के लोटे की तरह व्यवहार करने वाले पत्रकार को शायद मालूम ही नहीं कि इस रामलला के लिए कितने लाख हिन्दुओं ने इस रामलला कि रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे है या वे जानकर भी अनजान बनने का नाटक कर रहे हैं ताकि नकारात्मकता फैलाकर टीवी की बहसों में अपने आप को चमकाया जा सके। आखिर राम लाल क्या है कैसे वो इस स्थिति में पहुंचा आइये इस पर कुछ प्रकाश डालते हैं :-

जिस समय बाबर दिल्ली का सुल्तान था उस समय राम जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। उनकी सिद्ध की हुई सिद्धियों से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके शिष्य बनना चाहते थे उनमे से एक ख़वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकन अयोध्या पहुंचे और उनसे मिन्नत की कि उन्हें वे अपना शिष्य स्वीकार कर लें। जिसे श्यामनन्द जी ने मान लिया और उनके आशीर्वाद से ख़वाजा अब्बास मूसा ने योग और अनेक सिद्धियाँ प्राप्त कर ली जिससे लोग श्यामनन्द महाराज के नाम के साथ ही उनका भी नाम लिया जाने लगा। इसी बीच जलालशाह नाम का एक फ़क़ीर जो कि कुटिल  भी और कट्टर मुस्लमान भी था भी श्यामानंद जी के पास आया और शिष्य बनने की इच्छा जाहिर की।श्यामनन्द जी ने उसकी भी इच्छा का मान रखा और उसे भी अपना शिष्य बना लिया उसने भी ख्वाज़ा अब्बास की तरह योग और सिद्धियाँ प्राप्त की। उसका श्यामानंद जी के पास आने का सिर्फ़ एक ही कारण था और वो ये कि पुरे भारतवर्ष में सिर्फ़ इस्लाम धर्म को ही देखना चाहता था इसलिए उसने और जलालशाह के साथ बाबर से मिलकर उसका विश्वास जीता और अपनी इच्छा बताई जिसे बाबर ने अयोध्या के राम मंदिर या रामलला को ख़ुर्द मक्का बनाने के लिए हाँ कह दी। 

अयोध्या पहुंचकर ख्वाज़ा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह ने मिलकर सबसे पहले अयोध्या और उसके आस पास की जमीनों में मुस्लिम मुर्दों को दफनाना शुरू कर दिया आर मीरबांकी खां के साथ मिलकर मंदिर को गिराकर मस्जिद निर्माण का विचार बनाया। अपने शिष्यों कि ये हरकत देखकर श्यामानंद जी माहराज जी ने रामलाल कि मूर्तियों को सरयू नदी में प्रवाहित कर दिया और स्वम हिमालय में तपस्या हेतु चले गये।मंदिर के पुजारियों ने पूजा से सम्बंधित सभी सामान हटा दिए और स्वम मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए किन्तु जलालशाह के कहने से सभी पुजारियों के सर कलम कर दिए गए। जब इस घटना का पता राजा महताब सिंह जो कि बद्री नारानायंण की यात्रा के लिए निकले थे, तुरंत अयोध्या पहुंचे और ७४ दिनों तक युद्ध किया किन्तु साढ़े चार लाख मुग़ल सनिकों के सामने एक लाख पिचहत्तर हज़ार सैनिक की ज्यादा न चली और सभी शहीद हो गए। तादुपरान्य मीरबांकी ने तोप से मंदिर को उदा दिया और मस्जिद के निर्माण में गारे के लिए पानी की जगह रामभक्तों के लहू का इस्तेमाल किया गया। (इतिहासकार कनिर्घम अपने लखनऊ गजेदियर के 66वे अंक के प्रष्ट 3 पर लिखता है कि एक लाख चौहत्तर हज़ार हिन्दुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात ही मीर बांकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चरों आवर तोपें लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया)। राम मंदिर या रामलाल कि रक्षा के लिए इसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की "जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बनाकर लखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी।" अबतक कुल कितने लोग इस पुनीत कार्य में अपने प्राणों कि आहुति दे चुके हैं उसे निचे दी गई तालिका से आसानी से समझा जा सकता है


क्रम
संख्या
युद्ध का विवरण
मारे गए हिंदु
१.
राजा महताब सिंह के नेत्रत्व में युद्ध लड़ा गया। राजा महताब वीरगति को प्राप्त हुए
1,74,000
२.
देवीदीन पाण्डेय,अयोध्या से 6 मील की दुरी पर स्थित सनेथू गाँव ने आसपास
के क्षत्रियों को एकत्र कर युद्ध किया। पंडित देवीदीन पाण्डेय भी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
  90,000
३.
हंसवर के राजपूत महाराजा रणविजय सिंह ने अपनी 25 हजार सेना के साथ 10 दिन तक युद्ध किया और लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
25,000
४.
महाराजा रणविजय सिंह के मृत्यु के पश्चात् उनकी रानी जयराज डुमरी ने 3000 हजार नारियों कि सेना के साथ युद्ध किया बाबर की सेना के साथ छापामार युद्ध किया ,ये युद्ध वे बाबर के मरने के बाद हुमायूं के गद्दी पर बैठने के बाद तक करती रहीं। इसी मध्य रानी के गुरु महेश्वरानन्द जी ने 24,000 सन्यासियों के सेना बनाई और हुमायं के सेना पर कुल 10 हमले किया जिसमें अंत में रामजन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी का आधिपत्य हो गया किन्तु ये ज्यादा दिनों तक नहीं रह और मुगलों के हाथों रानी और महेश्वरानन्द अपनी 27 हजार की सेना सहित वीरगति को प्राप्त हुए ।
27,000
५.
स्वामी बलरामचारी ने इस सबसे दुःखी होकर गाँव गाँव घूमकर रामभक्तों और सन्यासियों की सेना का गठन किया और लगभग मुग़ल सेना पर 20 बड़े हमले किये जिसमें से 15 में वे विजयी रहे और रामलला पर उनका अधिपत्य रहा किन्तु पांच में उन्हें हार का मुख देखना पड़ा। ये सिलसिला अकबर के गद्दीनशी होने तक होता रहा। उस दौरान हुए युद्ध में लगभग 1,20,000 हिन्दुओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। इसी बीच बार बार के युद्ध से आज़िज आकर अकबर ने राजा बीरबल और राजा टोडरमल के कहने से खास कि टाट से चबूतरे प्र 3 फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया। जिससे युद्ध रुक गया किन्तु इसी बीच स्वामी बल्राम्चारी का स्वास्थ्य बिगड़ता गया और अंतत: उन्होंने कुम्भ के त्रिवेणी तट पर अपने प्राण त्याग दिए।

६.
औरंगजेब के दिल्ली की गद्दी पर बैठने पर उसने अपने चरित्र के हिसाब से अयोध्या पर लगातार हमले किया और हिन्दुओं के सभी महत्वपूर्ण मंदिरों को तुडवा दिया।इसी समय समर्थ गुरु रामदास जी के शिष्य वैष्णवदास जी ने 1640 ईस्वी में रामजन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार मुगल सेना पर आक्रमण दिए इस पुनीत कार्य में अयोध्या के आसपास के सभी गांवों के लोगों ने भरपूर साथ दिया,इनमें ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुंवर गोपाल सिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदम्बा सिंह प्रमुख थे।  साथ ही चिमटाधारी साधुओं की सेना भी इनसे आकर  मिल गयी और
उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ की सेना से सात दिनों तक भीषण युद्ध किया ।चिमटाधारी साधुओं के चिमटे की मार से मुगलों की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी। जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटाकर एक अन्य सिपहसालार सैय्यद हसन अली को 50 हजार सैनिकों की सेना और तोपखाने के साथ अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को बर्बाद करके वापस आना है, यह समय सन् 1680 का था । इस सेना में ये सारे वीर ये जानते हुएभी की उनकी सेना और हथियार बादशाही सेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के आखिरी समय तकशाही सेना से लोहा लेते रहे। लम्बे समय तक चले इन युद्धों में रामलला को मुक्त कराने के लिए हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और अयोध्या की धरती पर उनका रक्त बहता रहा। ठाकुर गजराज सिंह और उनके साथी क्षत्रियों के वंशज आज भी सराय मे मौजूद हैं। आजभी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय सिर पर पगड़ी नहीं बांधते, जूता नहीं पहनते, छाता नहीं लगाते, उन्होने अपने पूर्वजों के सामने येप्रतिज्ञा ली थी की जब तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक जूता नहीं पहनेंगे, छाता नहीं लगाएंगे, पगड़ी नहीं पहनेंगे।औरंगजेब  ने सन् 1664 मे एक बार फिर श्री रामजन्मभूमि पर आक्रमण किया। इस भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं की हत्या कर दी नागरिकों तक को नहीं छोड़ा।जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने उसमे फेककरचारों ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप गज शहीदाके नाम से प्रसिद्ध है।
80,000
७.
नबाब सहादत अली के समय 1763 ईस्वी में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के राजपूत राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच आक्रमण किये गये जिसमें हर बार हिन्दुओं की लाशें अयोध्या में गिरती रहीं। लखनऊ गजेटियर मे कर्नल हंट लिखता है कीलगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान होने के नाते उसने काफिरों को जमीन नहीं सौंपी। लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62” नासिरुद्दीन हैदर के समय मे मकरही के राजा के
नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप मे लाने के लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये। परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं की शक्ति क्षीण होने लगी ,जन्मभूमि के मैदान मे हिन्दुओं और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । इस संग्राम मे भीती, हंसवर, मकरही, खजुरहट, दीयरा,अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर
चिमटाधारी साधुओं की सेना आ मिली और इस युद्ध मेशाही सेना के चिथड़े उड गये और उसे रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के बाद विशालशाही सेना ने पुनः जन्मभूमि पर अधिकार करलिया और हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया।जन्मभूमि में हिन्दुओं का रक्त प्रवाहित होने लगा।नावाब वाजिदअली शाह के समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया।फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा "इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ। दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं नें राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर बर्बाद कर डाली मस्जिदों को मिसमार करने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया।मगर हिन्दू भीड़ ने मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोईहानि नहीं पहुचाई। अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ था। इतिहासकार कनिंघम लिखता है की येअयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था।हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया।चबूतरे पर तीन फीट ऊँची खस की टाट से एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया॥ जिसमे पुनः रामलला की स्थापना की गयी। कुछ जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार नहीं हुई और
कालांतर में जन्मभूमि फिर हिन्दुओं के हाथों से निकल गयी।
15,000
८.
सन 1857 की क्रांति मे बहादुर शाह जफर के समय में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर 18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के पेड़ मे दोनों को एक साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया। जब अंग्रेज़ो ने ये देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं रामभक्तों के लिए एक स्मारक के रूप मे विकसित हो रहा है तब उन्होने इस पेड़ को कटवा कर इस आखिरी निशानी को भी मिटा दिया...इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के कारण रामजन्मभूमि के उद्धार का यह एक मात्र प्रयास विफल हो गया ...अन्तिम बलिदान ...३० अक्टूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने वोट-बैंक के लालची मुलायम सिंह यादव के द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वजफहरा दिया। लेकिन २ नवम्बर १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं।सरकार ने मृतकों की असली संख्या छिपायी परन्तु प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सरयू तटरामभक्तों की लाशों से पट गया था। ४ अप्रैल १९९१ को कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया।लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कार सेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया। परन्तु हिन्दू
समाज के अन्दर व्याप्त घोर संगठनहीनता एवं नपुंसकता के कारण आज भी हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य भगवान श्रीराम एक फटे हुए तम्बू में विराजमान हैं। जिस जन्मभूमि के उद्धार के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना रक्त पानी की तरह बहाया। आज वही हिन्दू बेशर्मी से इसे"एक विवादित स्थल" कहता है।सदियों से हिन्दुओं के साथ रहने वाले मुसलमानों ने आजभी जन्मभूमि पर अपना दावा नहीं छोड़ा है।

      उपरोक्त तालिका से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि आज के राजनैतिक माहोल में जहाँ हिन्दू ही हिन्दुओं की भावनाओं को नहीं समझ पाता  है तो ये सोचने का विषय है कि ज़रुरत से ज्यादा अच्छा होना भी कभी कभी हानिकारक होता है ।अब भारतवर्ष में इस बात को क्यों साबित करने की आवश्यकता पड़ती है कि भगवान राम कहाँ पैदा हुए थे।ये तो सर्विदित है कि भगवान् राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। इडोनेशिया जैसे देश में आज भी वहां के राजा को राम ही माना जाता है वहां एक माह रामायण भी होती है जिसे राष्ट्रिय पर्व की तरह मनाया जाता है जब कि वो एक इस्लामिक राष्ट्र है किन्तु कनवर्टेड इसलिए वो आज भी भारतवर्ष की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। किन्तु भारत में राजनीती की बिसात इन सब बातों पर भारी पड़ती  है जिसके लिए भी हम ही जिम्मेदार हैं। किन्तु ये सब भी कब तक।
अब तब उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बन गई है तो उम्मीद है कि नयी सुबह ज़रूर आएगी।
 
  
                                                                                                           ::: प्रदीप भट्ट :::

                                                                                                                                      27:03:2017