Thursday, 17 December 2020

"आत्मिक सुख"


"मुझे बदनाम करने से, तुम्हें हासिल न कुछ होगा 
चलो ऐसा करो कुछ तुम, मुहब्बत हमसे हो जाए”

दिनांक: 13:12:2020 को लगभग 11:15 बजे सुहास जी का फोन पर आदेश आया कि जिंदादिल शख़्सियत के मालिक प्रिय राजकुमार जी अपनी गाड़ी लेकर चलने वाले हैं अतएव आप मिट्टीगुडा मेट्रो स्टेशन पहुँच जाएँ, विजय लक्ष्मी बस्वा भी वहीं पर हमें ज्वाइन करेगीं। (तय कार्यक्रम के मुताबिक पहले हमें मियापुर मेट्रो स्टेशन पर 13:00 मिलना था) एक लंबे अरसे बाद गाना गाते चुहलबाजियाँ करते हुए हम लोग मियापुर पहुँचे मैने आर्या जी को फोन किया तो उन्होंने कहा आप लोग चले मैं थोडी देर में निकलती हूँ। हमने बिंदास फिर गाड़ी आगे बढ़ा दी “गूगल माता के सहारे” सुहास जी ने हँसते हुए कहा  राज जी हम लोग जल्दी पहुँच जाएगें और “लीजीए गूगल माता नाराज़ हो गई”। हमें कायदे से 13:30 तक पहुँच जाना चाहिए था किंतु गूगल माता ने “सब इतना गडमड कर दिया कि हमें पुराने तरीके अपनाने पड़े और कभी आटो वाले से कभी चौकीदार से कभी फल वाले से पूछते थक नहीं गए वरन पक गये । (अच्छी बात ये थी कि पेट्रोल टैंक फूल था)  गैर भला हो आटो में बैठी उस कृष्णकली का जिसने हमें अपने पीछे आने को कहा और लगभग 14:15 बजे हम “एलिएन स्पेस स्टेशन, तेलापुर, हैदराबाद”” पहुँच गये। मैंने मन ही मन कहा बेटा “एलिएन” से मिलने आए हो तो ठंड रक्खो। 

  अपरान्ह 15:00 बजे आर्य जी ने क्षमा माँगते हुए दर्शन दिए तब तक हम भी अपनी भडास एलिएन स्पेस स्टेशन-14 में चल रहे एक समारोह में बिन बुलाए मेहमान की तरह घुसकर उनके रेफ्ररेशमेंट और पानी पर निकाल चुके थे अतएव हम सभी ने मुस्कुराते हुए कहा “कोई गल्ल नई जी”। हमारी तरह हसीन वारावरण का (ढूँढते- ढूँढते) आनंद लेते हुए प्रिय शिल्पी और तरुणा जी ने भी दर्शन दे दिये, कुछ देर बाद सुदेशन जी और योगेश पाण्डेय और अंत में गिटार के साथ प्रिय अनुराग मुस्कान हाजिर हुए। खैर कुछ ज़रुरी इंतज़ामात के बाद “कहानीवाला”(“कहानीवाला आर्ट एंड थियेटर”) की तृतीय सभा का कार्यक्रम शुरु हुआ।  प्रथम सत्र में जहाँ  “सबंधो के बदलते स्वरुप” पर एक गहन एवम सार्थक चर्चा की गई। वही मध्यान में प्रिय अनुराग के द्वारा गाए लोकगीत/गज़ल का आनंद गिटार के साथ लिया गया। 

दूसरे सत्र में कविताओं,गीत,गज़ल नज़्मों का एक बेहतरीन दौर चला जिसमेन,अनुराग मुस्कान अपनी एक कविता से समां बांधा वहीं योगेश पाण्डेय ने अपनी कविता “दूर कही ले जाकर तुम्हें/मैं तुमहारे पास आना चाहता हूँ, श्आर्या झा ने हथेली पर मेरी चाँद तुमने/पेशानी पर मैंने प्यार लिखा, मंजूला दूसी ने “जानती हूँ की बहतु दूर निकल आए हैं, तरुणा मन्ना ने “क्यूँ इतनी गहरी उदासी में खोई रहती हूँ” ,शिल्पी भटनागर ने क्यूँ न चिंतन करें/आत्म मंथन करें व तुझे आजकल मैं सोचता हूँ”, सुदेषणा सामंथा ने एक दीवानगी सी हो गई है/हर शाम तुम्हें देखने की आदत हो गई है”  विजया बस्वा ने अपनी एक रचना के माधयम से कोरोना पर जमकर अपनी भडास निकाली, राजकुमार छाबरा ने बच्चों की मनोदशा पर बेहतरीन रचना “दूसरे बच्चे का पदार्पण पर पहले बच्चे के अह्सासात पर” प्रस्तुत की। सुहास भटनागर ने मोनालिसा पर लिखी अपनी रचना”ये जो तुम्हारी मुस्कुराहट है,मुझे मुझसे ही दूर ले जाती है प्रस्तुत कर उपस्थित लोगों का मन मोह लिया “ और अंत में मेरी बारी आई और मैंने पहले माहौल को देखते हुए अपना एक शेर पढ़ा फिर अपनी दो नज़्मों  “यदि तुम्हें उससे प्रेम है अनंत”  एवम “इस धरा पर बस तुम्हीं हो जो मुझे अच्छी लगीं” पढ़ी।
और अंत में आर्या झा जी की खूबसूरत मेहमान नवाज़ी, राज जी का चाय के प्रति अटूट प्रेम और बिना किसी लाग लपेट के चाय की फर्माइश करना मेरा भूख लगने पर समोसों पर टूट पड़ना। एक ख़ुशनुमा माहौल, खूबसूरत लोग  खूबसूरत बातें, कुछ मुस्कुराते चेहरे,मर्यादित चुहलबाज़ी।  सब कुछ मन को कहीं अंदर तक छू गया। सुदेशना जी द्वारा आयोजित कहानीवाला की दूसरी मीटिंग की याद भी ताज़ा कर गया। हाँ शर्मा जी और नेहा जी हमने आप दोनों को मिस किया। 

आपका अपना ही
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-