Saturday, 31 December 2016

नोटबन्दी




"मेरे प्यारे देश वासियों"

ये है दो रूपये का नोट इस नोट के पीछे 1975 में छोड़े गए आर्यभट्ट का चित्र छपा है 

8 नवम्बर-२०१६ सायं 8 बजे नेशनल टीवी पर अचानक देश के प्रधानमंत्री नमूदार होते हैं उनके साथ तीनों सेनाओं के अध्यक्ष,वित्त मंत्री आदि बैठे हैंआवाज आती है मेरे प्यारे देश वासियों और उस समय जो लोग टीवी देख रहे होते हैं उन्हें लगता हैं कि प्रधानमंत्री पाकिस्तान से सम्बंधित कोई विशेष घोषणा करने वाले हैं लोग जहाँ के तहां बैठे रहकर चुपचाप सुनने लगते है। किन्तु ये क्या अचानक लगभग 5 मिनिट के भाषण के बाद प्रधानमंत्री घोषणा करते हैं कि आज राज 12 बजे से 500 और 1000 के नोट रद्दी हो जायेंगे। लोग हतप्रभ रह जाते हैं लोग समझ नहीं पाते कि क्या करें और क्या न करें। जो लोग 8 बजे तक अरबपति थे वे करोडपति और जो करोडपति थे वे 8:10 बजे लखपति हो गए थे। इससे नीचे का जिक्र न ही करूँ तो अच्छा है।


     9 व् 10 को बैंक व् एटीएम बंद हो ही रहे और 11 को जब खुले तो बैंकों के बहार लम्बी लम्बी लाइनें लगना स्वाभाविक ही था, जहाँ शुरू शुरू में लोगों ने इसे एक अच्छा कदम बताया समय समय बीतते बीतते लोगों के सब्र का बांध भी टूटना शुरू हो गया।  आश्चर्य जनक रूप से 8 नवम्बर कि रात्रि से अगले २-३ दिनों तक पोलिटिकल पार्टीस जहाँ इसे देश हित में उठाया कदम बता रही थी धीरे धीरे उन्हें समझ में आया कि 2017 में होने वाले 5 राज्यों के चुनाव उसमें भी उत्तर प्रदेश और पंजाब जो कि दो बड़े राज्य हैं में चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने जो पैसा जमा किया था वह भी तो रद्दी हो गया।  उसके बाद जो पॉलिटिकली पार्टी ने स्यापा पाया है जिसमें ममता जो कि सामान्यत: पश्चिम बंगाल से बहार काम ही निकलती हैं ने हर जगह अपने हाथ पांव मंरने शुरू कर दिए। इसी दौरान ममता ने मर्यादाओं कि सभी सीमाओं को लाँघ डाला और भूल गई कि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और वे 30 राज्यों में से एक कि मुख्यमंत्री मात्र। खैर उनसे तो ऐसी ही आशा थी। आप के केजरीवाल ये सोच सोच कर परेशां हो रहे थे कि वे किस दीवार में अपना सर दे मारे  क्यों कि ऐसा सुनने में आ रहा है कि उनके 3 हजार करोड़ रूपये मात्र दस मिनिट में रद्दी में बदल गए। कांग्रेस अभी तक ये समझ ही नहीं पाई है कि वो हँसे या रोये । निश्चित रूप से बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उड़ीसा बीजू जनता दल के मुख्यमंत्री नविन पटनायक ने नोटबंदी का समर्थन कर सभी विपक्षी पार्टियों को विक्षिप्त कर डाला। सभी विपक्षी पार्टियाँ अभी तक सकते में हैं और अनाप-शनाप बयानबाजी करके जनता में अपनी हंसी उडवा रहीं हैं।



और ये है 2000 का नोट जिस पर मंगल्यान का चित्र है  

जहाँ बैंको के बहार लम्बी लाइने लगी हुई हैं और लोग पैसे पैसे को मोहताज़ नज़र आ रहे हैं वहीं कुछ धन्ना सेठों ने बैंको के अधिकारीयों और कर्मचारियों से साठ-गांठ कर अपने काले धन को सफ़ेद कर लिया। लेकिन बुरा हो आजकल कि तकनीक का एक एक कर सब धरे जा रहे हैं क्यों कि किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि टेक्नोलॉजी के माध्यम से सरकार उन्हें इतनी जल्दी धर दबोचेगी। जहाँ जहाँ पुराने नोट छिपाए गए थे वहीँ पर उन्होंने नए तब्दील किये नोट भी रख दिए और देखिये कैसी साडी एजेसियाँ उनके पीछे पड गई। और लाखों ही नहीं वरन करोड़ों में नए और पुराने नोट पकड लिए गए। इससे पहले भारत में 1978 में नोटबंदी हुई थी लेकिन इतनी चर्चा नहीं हुई था किन्तु इस बार तो बाप रे बाप ,आइये पहले ये जानने की कोशिश करते हैं कि आज तक विश्व में कहाँ कहाँ नोटबंदी  हुई।

भारत में प्राचीन समय में जो मुद्रा प्रणाली प्रचलन में थी उसकी एक बानगी के दर्शन भी कर लें 

फूटी कौड़ी से कौड़ी तक      
कौड़ी से दमड़ी तक         
दमड़ी से धेला तक 
धेला से पाई तक 
पाई से पैसा तक 
पैसा से आना  और 
आना से रुपया 

  256 दमड़ी =192 पाई =128धेला =64 पैसा (ओल्ड)=16 अन्ना-1 रुपया 
प्राचीन मुद्रा क इन्हीं इकाइयों ने हमारी बोल-चाल की भाषा को कई कहावतें भी दीं,जो पहले भी प्रचलित थी और आज भी प्रचलित है

1982, में घाना जो कि एक छोटा सा अफ़्रीकी देश है में टैक्स चोरी व भ्रष्टाचार रोकने के उद्देश्य से वहां 50  सेडी के नोटों को बंद कर दिया गया था और नोटबेदी का कदम उठाया गया था  इस कदम से घाना के नागरिकों को अपनी ही मुद्रा में विश्वास कम हो गया, और उन्होंने विदेशी मुद्रा और ज़मीन-जायदाद का रुख कर लिया, जिससे न सिर्फ देश के बैंकिग सिस्टम को भारी नुकसान पहुंचा, बल्कि विदेशी मुद्रा पर काला बाज़ारी बेतहाशा बढ़ गई थी ग्रामीणों को मीलों चलकर नोट बदलवाने के लिए बैंक जाना पड़ता था, और अंतिम समय सीमा खत्म होने के बाद बहुत ज़्यादा नोट बेकार हो गए थे


1984, नाइजीरिया में मुहम्मदू बुहारी के नेतृत्व वाली सैन्य सरकार ने भ्रष्टाचार से लड़ने के उद्देश्य से बैंक नोटों को अलग रंग में जारी किया था, और पुराने नोटों को नए नोटों से बदलने के लिए सीमित समय दिया था नाइजीरिया सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों में से एक यह कदम पूरी तरह नाकाम साबित हुआ था, और कर्ज़ में डूबी व महंगाई तले दबी अर्थव्यवस्था को कतई राहत नहीं मिल पाई थी, और अगले ही साल बुहारी को तख्ता-पलट के कारण सत्ता से बेदखल होना पड़ा था

1987, में भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में भी नोत्बंदी लागु की गई थी जब वहां सत्तासीन सैन्य सरकार ने काला बाज़ार को काबू करने के उद्देश्य देश में प्रचलित 80 फीसदी मुद्रा को अमान्य घोषित कर दिया इस कदम के प्रति लोगों में काफी गुस्सा रहा, और छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए तथा भारी विरोध प्रदर्शन किया गया, देशभर में प्रदर्शनों का दौर काफी लंबे अरसे तक जारी रहा, और आखिरकार अगले साल सरकार को हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस और सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी


        1990, की शुरुआत में
ज़ायरे में बैंक नोटों में सुधार के नाम पर तानाशाह मोबुतु सेसे सेको को उस दौरान भारी आर्थिक उठापटक का सामना करना पड़ावर्ष 1993 में अप्रचलित मुद्रा को सिस्टम से पूरी तरह वापस निकाल लेने की योजना के चलते महंगाई बेतहाशा बढ़ गई, और अमेरिकी डॉलर की तुलना में स्थानीय मुद्रा में भारी गिरावट दर्ज की गई इसके बाद गृह-युद्ध हुआ, और वर्ष 1997 में मोबुतु सेसे सेको को सत्ता से बेदखल कर दिया गया

        1991, सोवियत संघ (यूएसएसआर - यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स) मिखाइल गोर्बाचेव के नेतृत्व वाले सोवियत संघ ने अपने 'अंतिम साल' की शुरुआत में 'काली अर्थव्यवस्था' पर नियंत्रण के लिए 50 और 100 रूबल को वापस ले लिया था, लेकिन यह कदम न सिर्फ महंगाई पर काबू पाने में नाकाम रहा, बल्कि सरकार के प्रति लोगों को विश्वास भी काफी घट गया
उसी साल अगस्त में उनके तख्तापलट की कोशिश हुई, जिससे उनका वर्चस्व ढहता दिखाई दिया, और आखिरकार अगले साल सोवियत संघ के विघटन का कारण बना इस कदम के नतीजे से सबक लेते हुए वर्ष 1998 में रूस ने विमुद्रीकरण के स्थान पर बड़े नोटों का पुनर्मूल्यांकन करते हुए उनमें से बाद के तीन शून्य हटा देने की घोषणा की, यानी नोटों को पूरी तरह बंद करने के स्थान पर उनकी कीमत को एक हज़ार गुना कम कर दिया गया सरकार का यह कदम तुलनात्मक रूप से काफी फायदे का सौदा रहा

        2010,
उत्तर कोरिया में तत्कालीन तानाशाह किम जोंग-इल ने अर्थव्यवस्था पर काबू पाने और काला बाज़ारी पर नकेल डालने के लिए पुरानी करेंसी की कीमत में से दो शून्य हटा दिए, जिससे 100 का नोट 1 का रह गया उन सालों में देश की कृषि भी भारी संकट से गुज़र रही थी, सो, परिणामस्वरूप देश को भारी खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ाचावल की बढ़ती कीमतों से जनता में गुस्सा इतना बढ़ गया कि आश्चर्यजनक रूप से किम को क्षमायाचना करनी पड़ी तथा उन दिनों मिली ख़बरों के मुताबिक इसी वजह से तत्कालीन वित्त प्रमुख को फांसी दे दी गई थी
1978, भारत में जब जनता पार्टी की सरकार थी तब उस समय के प्रधानमंत्री स्व०मोरारजी देसाई ने 100 रूपए से अधिक के नोट्स पर प्रतिबंध लगाकर सभी को आश्चर्य में ला दिया। मोरारजी देसाई के इस निर्णय से सारे देश में हलचल मच गई थी वर्ष 1978 में 1000 रूपए और 5000 रूपए के ही साथ 10000 रूपए के नोट्स प्रतिबधित करने से लोग प्रभावित हुए थे। हालात ये रही थी कि जिनके पास नोट अधिक थे वे खुद को आर्थिकतौर पर लगभग बर्बाद मान रहे थे। मगर फिर व्यवस्था में धीरे-धीरे नए नोट चलन में आने लगे। गौरतलब हे कि उस दौर में मुंबई जैसे शहर में 1000 रूपए में 5 स्क्वैयर फीट की जमीन भी क्रय की जा सकती थी।

1978

जब अमेरिका में पेज़र की शुरुआत हुई तो उस समय अमेरिका में ५ वर्षों में केवल १ लाख पेज़र ही बिक पाए किन्तु जब यही पेज़र भारत में इंट्रोडूस हुए तो १ वर्ष में ही ५ लाख पेज़र बिक गए थे इससे पता चलता हैं कि हम भारतीय किसी भी न्यू चीज़ को जल्दी ही स्वीकार नहीं करते किन्तु जब करते हैं तो एक रिकॉर्ड ही बनाकर दम लेते हैं। ये लिखने का का एक कारन है कितने लोग जानते हैं कि ८ नवम्बर कि रात्रि से ११ नवम्बर तक पुराने नोटों में सबसे ज्यादा क्या ख़रीदा गया । निशिचत ही लोग कहेंगे सोना, कुछ कहेंगे जमीं के सौदे सबसे ज्यादा हुए या कुछ कहेंगे की लोगों ने अग्रिम टैक्स सरकार को चूका दिए होने आदि आदि । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन तीन दिनों में सबसे ज्यादा पुरानें नोटों से आई फोन बिके वो भी १००० या १०००० नहीं अपितु एक लाख से भी अधिक । तो ये है हम भारतियों कि सोच।

भारत सरकार चाहती है कि लोग ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक मोड में पेमेंट करे लेकिन यहीं थोड़ी जल्दबाजी है हमें एक साथ घर के सारे बल्ब बदलने की आदत से बाज़ आना पड़ेगा, जिस देश में लाईट आना किसी त्यौहार से कम न होता हो वहां आदमी कैसे तो मोबाइल खरीदेगा और अगर खरीद भी लिया तो चार्ज कैसे और कहाँ करेगा। 2019 तक गांवों में बिजली पहुंचेगी तब पहुंचेगी और कितनी देर के लिए ? जहाँ तक इंटरनेट का सवाल है उसकी स्पीड प्रधानमंत्री कार्यालय में 34 बीपीएस है बाकी का तो राम ही मालिक है ।अब जब नेट कि रफ़्तार ऐसी होगी तो कैसे ई पेमेंट होगा जहाँ लोग इसे इस्तेमाल कर रहे हैं वहां का क्या हाल है। काल ड्राप की समस्या ने रविशंकर की कुर्सी ले ली बाकी की तो जाने ही दो ।मास्टर कार्ड एडवाइजरी के मुताबिक जापान जैसा टेक्नोलॉजी में महारत रखने वाला देश भी अभी मात्र 14 प्रतिशत ही कॅश लेस है।ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड दक्षिण कोरिया व् कनाडा जैसे विकसित देश भी अभी तक 50 प्रतिशत ही कॅश लेस हुए हैं । जहाँ तक बैंकिंग की भारत की जनता तक पहुँच का प्रश्न है वह भी  मात्र 30 प्रतिशत के करीब ही है। फिर ये जितने भी ई वालेट लेकर आ रहे हैं उनका चार्ज कम से कम 2.5 प्रतिशत तो होगा ही तो कैसे लोग इसे अपनाएंगे ? यहाँ मैं आपको एक विशेष सुचना से अवगत करना आवश्यक समझता हूँ कि रिज़र्व बैंक के दिशा निर्देशों के मुताबिक डिजिटल माध्यमों पर हर कस्टमर के डेट को 128 बिट एनक्रिपशन प्रणालियों के जरिये एनक्रिप्ट करने कि बाध्यता है। सेबी ने भी मोबइल माध्यमों या वायरलेस एप्लीकेशन प्लेटफ़ॉर्मों के जरिये होने वाले वित्तीय कारोबार के लिए 64 या 128 बिट एनक्रिपशन का निर्देश दिया हुआ है लेकिन इन्टरनेट सेवा प्रदाता (इसप) और दूरसंचार विभाग के बिच हुए अनुबंध के अनुसार 40 बिट एनक्रिपशन कि भी हैं। आप सोच रहे होंगे कि ये क्या गोरख धंदा है तो याद रखे कि 128 बिट एनक्रिपशनसे एनक्रिप्ट किये गए देता को समझ पाना असंभव है वहीँ 40 बिट एनक्रिपशन को काफी कमजोर सुरक्षा प्रबंध माना जाता है  यहाँ यह भी समझ लें कि जयादातर बैंक डिजिटल भुगतान में 128 बिट एनक्रिपशन का इस्तेमाल करते हैं।  इसके बाद भी पिछले दिनों खबर आयी थी कि बैंको के 32 लाख डेबिट और क्रेडिट कार्ड का देता चोरी हो गया जिस कारन बैंकों ने उन सभी कार्डों को बंद कर दिया तब आप खुद ही सोचिये सिर्फ घोषणाएं करने से तो एक दिन में सब कुछ नहीं बदल जायेगा। कदम अच्छा है किन्तु सरकार अगर इसे फेज मैनर में करती तो ज्यादा अच्छा होता।     
::: प्रदीप भट्ट :::

                                                     31.12.2016

Thursday, 8 December 2016

जयललिता




मैनेरिज्म की मालकिन जयललिता


जयललिता अब हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन ऐसा क्या था उनकी शख्सियत में कि लगभग ३-४ लाख लोग उनकी शव यात्रा में सम्मलित हुए।  इससे पहले १९४० में महात्मा गाँधी जिनकी शव यात्रा में लगभग ५-६ लाख लोग सम्मलित हुए थे।   श्रीमती इंदिरागांधी कि शव यात्रा में भी लगभग ३-४ लाख लोग, राजीव गाँधी कि शव यात्रा में भी लगभग २-३ लाख लोग सम्मलित हुए किन्तु इस विषय में अन्न्दुरै जो कि आल इंडिया अन्ना द्रविण मुनेत्र कड़गम के जनक थे और मुख्यमंत्री भी की शव यात्रा में १.५ करोड़ से भी ज्यादा लोग सम्मलित हुए इससे ये पता चलता है कि तमिलनाडु की राजनीती में किसकी कितनी पहुँच है । भारतीय राजनीती में इतना मनेरिज्म किसको नसीब होता है जो अन्नादुरे के बाद किसी हद तक एमजीआर और अब जयललिता को मिला।  
   
जयललिता जयराम जिनका जन्म,  24 फ़रवरी 1948 को मैसूर में हुआ,स्कूली शिक्षा दीक्षा पहले बंगलुरु (बंगलोर)फिर चेन्नई (मद्रास) में हुई  अपनी माँ कि इच्छा का आदर करते हुए पहले अभिनेत्री बनी फिर राजनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी ऐसी कि अच्छों अच्छों कि चूलें ही हिला डाली।  वे 1991 से 1996 , 2001 में, 2002 से 2006 तक और 201 से 2014 तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं। राजनीति में आने से पहले वो अभिनेत्री थीं और उन्होंने तमिल के अलावा तेलगु,कन्नड़ और एक हिंदी फिल्म इज्ज़त जिसमें उनके हीरो ही मैन धर्मेन्द्र साथ में थे इसके अतिरिक्त उन्होंने एक अंग्रेजी फिल्म में भी काम किया।जब वे स्कूल में पढ़ रही थीं तभी उन्होंने 'एपिसल' नाम की अंग्रेजी फिल्म में काम किया। वे 15 वर्ष की आयु में कन्नड फिल्मों में मुख्‍य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी थीं। इसके बाद वे तमिल फिल्मों में काम करने लगीं। 1965 से 1972 के दौर में उन्होंने अधिकतर फिल्में  एम् जी आर के साथ की।

फिल्मी करियर के बाद उन्होने एम॰जी॰ रामचंद्रन के साथ 1982 में राजनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने 1984 से 1989 के दौरान तमिलनाडु से राज्यसभा के लिए राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया। वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन के बाद उन्होने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। वे 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्‍यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं। अप्रैल 2011 में जब 11 दलों के गठबंधन ने 14वीं राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल किया तो वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने 16 मई 2011 को मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लीं और तब से वे राज्य की मुख्यमंत्री पद पर रहीं। राजनीति में उनके समर्थक उन्हें अम्मा (मां) और कभी कभी पुरातची तलाईवी ('क्रांतिकारी नेता') कहकर बुलाते हैं।

5 दिसम्बर 2016 को रात 11:30 बजे इनका निधन हो गया।जन्‍म से ब्राह्मण और माथे पर अक्‍सर आयंगर नमम (एक प्रकार का तिलक) लगाने वाली तमिलनाडु की पूर्व मुख्‍यमंत्री जयललिता के दाह संस्‍कार की जगह उनको दफनाया गया. वैसे तो आयंगर ब्राह्मणों में दाह संस्‍कार की परंपरा है लेकिन इसके बावजूद तमिलनाडु सरकार और शशिकला ने उनको दफनाने का फैसला लिया इस मामले में अंतिम संस्‍कार की प्रक्रिया से जुड़े लोगों का कहना है कि वह इसे द्रविड़ आंदोलन की पृष्‍ठभूमि से जोड़कर देखते हैं. उनके मुताबिक द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता मसलन पेरियार, अन्‍नादुरई और एमजी रामचंद्रन जैसी शख्सियतों को दफनाया गया था और इस‍ लिहाज से दाह-संस्‍कार की कोई मिसाल नहीं हैं इन वजहों से चंदन और गुलाब जल के साथ दफनाया जाता है

                                  ::: प्रदीप भट्ट ::: 08.12.2016