“स्वच्छता ही सेवा“
पहलू नंबर- एक
पिछले दिनों अमेरिका में माइकल और भारत में “तितली” तूफ़ान
का जबर्दस्त शोर मच रहा था। सरकारें दोनों ही तूफानों से हुए जान माल के नुकसान का
हिसाब किताब लगाने में व्यस्त थी तभी अचानक Me Too नामक तूफ़ान ने दोनों
ही तूफानों की हवा निकाल दी।अगर इसे मीडिया की नज़र से तोलें तो पाएंगे कि ये
मुद्दा सब सिरियल और अन्य कार्यक्रमों पर भारी पड़ गया। किंतु मैं आज़ इस तूफ़ान की
बात नहीं करुंगा वरन हम भारत सरकार के फ़्लेगशिप कार्यक्रम “स्वच्छ भारत अभियान” पर
कुछ प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे।
श्री नरेंद्र मोदी ने जब 26 मई-2014
को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो उनके
दिमाग या अन्तर्मन में कुछ मुद्दे ऐसे थे जिन पर वे तुरंत कुछ करना चाहते थे अतएव 02
अक्तूबर-2014 को राजपथ से उन्होने इसकी विधिवत घोषणा कर दी एवं 02 अक्तूबर-2019 तक
भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाने का संकल्प लिया एवं समस्त देशवासियों से इस
संकल्प को पूरा करने के लिए सहयोग मांगा।बहुत से लोगों ने इसका मज़ाक उड़ाया और अपनी
विपक्षी पार्टियों ने अपना धर्म निभाते हुए इस पर टीका टिप्पणी शुरू कर दी। उन
सबकी नज़र में ये ऐसा मुद्दा नहीं था जिसे प्रधानमंत्री को इसकी आगे आकार स्वंम
बागडोर संभालनी पड़े किंतु जब प्रधानमंत्री मोदी ने लाल क़िले की प्राचीर से 26
जनवरी-2015 को अपना संकल्प दोहराया और देश भर के गणमान्य व्यक्तियों को इस अभियान
के लिए नामित करना शुरू कर दिया तब जाकर विपक्ष को समझ में आया कि ये कितना बड़ा
मुद्दा बन चुका है और पूरा विपक्ष भविष्य में इसके फ़ायदे के बारे में सोचने लगा और
फिर इस मुद्दे के गुणा भाग में लग गए। तब कॉंग्रेस को याद आया कि ये कार्य तो
गाँधी जी द्वारा बरसों तक किया गया और ये मानते हुए कि गाँधी पर तो काँग्रेस का हक़
है “स्वच्छ भारत अभियान” के विषय में अनाप शनाप वक्तव्य देने की एक कभी ख़त्म ना
होने वाली सिरीज़ शुरू कर दी। किंतु तब तक ये मुद्दा इतना आगे बढ़ चुका था कि
कॉंग्रेस या अन्य किसी पार्टी के लिए करने को कुछ बचा ही नहीं था।
पिछले चार वर्षो में इस अभियान ने
क्या झंडे गाड़े ये तो सर्व विदित है किंतु इस अभियान से प्रेरित होकर सिंगापुर ने
इसे हाथों हाथ लिया चाइना ने भी इसमें भरपूर रुचि दिखाई और तो और पाकिस्तान जैसा
देश भी इस अभियान की कामयाबी से अपने आप को जोड़ने से ना रोक सका और इमरान ख़ान ने
इसे पूरे पाकिस्तान में लागू करने का आहवाहन पाकिस्तानी जनता से किया है। निश्चित
रूप से ये एक स्वागत योग्य कदम है। ऐसा भी नहीं है कि इस अभियान से सिर्फ़ विदेशी
ही जुड रहे हैं भारत में तो इस अभियान की महत्ता को देखते हुए अक्षय कुमार ने “टाइलेट
एक प्रेम कथा” शीर्षक से एक फीचर फिल्म ही बना डाली जिसने व्यवसायिक तौर पर भी
काफ़ी मुनाफ़ा कमाया और अक्षय रातों रात स्वच्छ भारत अभियान के अघोषित दूत बन गए ।
ये विषय अलग है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने उन्हें स्वच्छता दूत घोषित करने में ज़्यादा वक़्त नहीं
लगाया। आज़ अक्षय मुंबई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के स्वच्छता दूत का घोषित चेहरा भी
हैं। इसी मुद्दे की दूसरी कड़ी में अक्षय एनई महिलाओं की माहवारी पर भी एक सत्य
घटना से प्रेरित होकर “पैडमैन” फ़िल्म बनाई जो कि व्यवसायिक तौर पर और स्वस्थय
संदेश देने में पूर्ण सफल रही।
इसी अभियान से प्रेरणा लेकर उत्तराखंड
के अविनाश प्रताप सिंह ने देहारादून में “वेस्ट वारियर्स” के साथ स्वंम
सेवी के तौर पर शुरुआत की। ऐसा नहीं है कि उनका कार्यक्षेत्र सिर्फ़
देहारादून तक सीमित है वरन वो पूरे उत्तराखंड एवं अन्य पहाड़ी राज्यों में भी इसे
फैला रहे हैं। इसी कड़ी में 3 आर मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटिड (पहले नोकुड़ा ) की
शुरुआत मनीष पाठक, पारस अरोड़ा कचरे को समस्या मानने वालों के बीच
जाकर इसे कैसे और किस तरह हल किया जाए इस अपने विचार लोगों के साथ साझा करते हैं।
वे लोगों को सिर्फ़ जागरूक ही नहीं करते वरन उन्हें कचरे से कैसे पैसा कमाया जा
सकता है इसकी ट्रेनिंग भी देते हैं। इसी प्रकार टाटा ट्रस्ट के चैयरमैन रतन टाटा
ने 2016 से ग्रामीण इलाकों में काम करने के इच्छुक 400 पेशेवर युवाओं का एक दल
तैयार किया जो देश के 26 राज्यों के 7000
गांवों के लगभग 60 लाख से ज़्यादा लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाने में सफल
हुए हैं । इसी कड़ी में आई आई एम बंगलुरु से पास आउट तीन साथियों ने मिलकर जी पी एस
रिन्यूऐबलस की स्थापना की और आज़ ये कंपनी
बंगुलुरु शहर के 3500 टन कचरे का निपटान करती है। आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर
में रहने वाले पेंडेला सुरेश जो कि 2014 में राजनीति में उतरे लेकिन आसफ़ल रहे
किंतु उन्होने चुनाव के दौरान महसूस किया कि लोग शहर में कचरे से सबसे ज्यादा
परेशान हैं अतएव उन्होने 2014 में ही एक
अलाभकारी इनोवेटिव सिटिज़ेन रिड्रेसल फोरम की स्थापना की । कुछ ही दिनों बाद
उन्होने कचरे की समस्या को हल करने के लिए एक ऐप लांच किया जिसमें शहर के लोग अपनी
शिकायतें भेज सकते हैं। इस संस्था के पास इस समय 10000 सदस्य हैं।
स्वच्छता के इस मिशन में टी सी एस ने
हिमाचल प्रदेश के मंडी के सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए 4000 हजार से ज़्यादा
शौचालय का निर्माण किया है।उनके इस पुनीत कार्य में मंडी के डिप्टी कमिश्नर ऋग्वेद
मिलिंद ठाकुर ने एक महती भूमिका का निर्वाह किया है। इसलिए 2016 में मंडी को भारत
का सबसे स्वच्छ जिला घोषित किया गया। ऐसा भी नहीं कि स्वच्छ भारत अभियान को सिर्फ़ प्राइवेट
कंपनियों ने ही आगे बढ़ाया बल्कि इस पुनीत कार्य में ओएनजीसी ने भी जहां भी उनके
उपक्रम हैं के आसपास के गांवों को ओडीएफ बनाने में अपना योगदान प्रदान किया
है।सबसे अच्छी बात यह है कि ओएनजीसी ने असम के एसएचआईवीएसएजीएआर चरई और जोरहाट
ज़िलों में कोई 12000 से भी कम लागत वाले 14000 शौचालयों का निर्माण कराया है।
पहलू नंबर- दो
प्रधानमंत्री ने जिस भली नीयत से इस पुनीत
कार्य को करने के लोगों का आहवाहन किया और जिन नामचीन लोगों को उन्होने “स्वच्छता ही सेवा”
के ब्रांड एम्बेसड़र के रूप में नामित किया उन्होने भी आगे द्वितीय क्ष्रेणी के
लोगों को ये कार्य सौंप दिया और उन्होने अपने मातहत तृतीय क्ष्रेणी को इस कार्य के
लिए नामित कर दिया। और ये सिलसिला लगातार चल ही रहा है। लोग झाड़ू को लेकर फ़ोटो
खिचवातें हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड करके इस मिशन को पूर्ण समझ रहे हैं।
ये ऐसा क्रम है जो रुकने वाला नहीं है। कुछ लोगों ने इसे धंधे की शक्ल दे दी है ।
बड़े छोटे जो भी सेलेब्रेटी? मिलें उन्हें इस कार्य के लिए बुलाओं उनके नाज़
नख़रे उठाओ लगभग आधा बजट उन्हें पकड़वाओ,उनके साथ फ़ोटो खिचवाओ और
अपने अपने घर जाओ। लो जी हुज़ूर हो गई सफाई? ये कौन सी सफाई हुई
भाई?
उपरोक्त सत्य तथ्यों के अतिरिक्त भी
एक सत्य तथ्य है और वह है रेगुलर और दिहाड़ी पर काम करने वाले उन लाखों सफ़ाई
कर्मचारियों का जो प्रतिदिन गांवों, कस्बों,
शहरों और महानगरों की सफाई व्यवस्था संभालते हैं। प्रधानमंत्री द्वारा “स्वच्छता
ही सेवा” का मंत्र देने से पहले से ही ये फ़ौज सुबह मुंह अंधेरे अपने कार्य पर निकल
जाती है। अगर ये फ़ौज ना हो तो कल्पना कीजिए वो गाँव क़स्बा शहर या महानगर दो तीन-दिनों
में ही कितना बदसूरत दिखने लगेगा। किंतु अपना चेहरा चमकाने की होड़ में हम अपनी इस
स्वच्छ फ़ौज को भूल जाते हैं या उन्हें अनदेखा करते हैं। कोई सफाई कर्मी यदि बाजू
से निकले तो नाक मुंह सिकोड़ने लगते हैं। फ़िर उस सफाई कर्मचारी की ज़िंदगी की कल्पना
कीजिए जो रेगुलर नहीं है वरन ठेकेदार की कृपा पर है। उसे जब चाहे काम से बेदखल कर
दिया जाता है। उसे गटर साफ़ करने के लिए कहा जाता है जिसमें हमसब का गंद भरा होता
है। उसको सेफ़्टी मेज़र तक मुहैया नहीं कराए जाते। मना करने पर उससे कम दाम पर दूसरा
मजदूर ये कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है क्यों कि बेरोज़गारी सुरसा के मुंह की
तरह मुंह बाए जो खड़ी है।
अंत में एक बात तो साफ़ है कि प्रधानमंत्री
कितना भी सच्चा हो, ईमानदार हो और कितना भी नेक हो उसकी सद इच्छा को कुछ लोग जहां सिर
माथे लेकर पूरा करने में लग जाते हैं वहीं कुछ लोगों का जन्म शायद इसलिए होता है कि
उस सद इच्छा को कैसे पलीता लगाया जाए। शायद यही कारण है जो नरेंद्र मोदी आज़ भी हर सर्वे
में प्रधानमंत्री पद के जहां सबसे शशक्त उम्मीदवार नज़र आते हैं वहीं बाक़ी सब उनके आसपास
भी कहीं टिकते नज़र नहीं आते। क्यों कि इस बंदे की ईमानदारी सच्चे देशभक्त की इमेज ऐसी
बन गई है जो सब पर भारी पड़ रही है। और होना भी यही चाहिए। देश प्रथम।
-प्रदीप भट्ट –
20 th ओक्टोबर -2018