Saturday, 20 October 2018

स्वच्छता ही सेवा




“स्वच्छता ही सेवा“
पहलू नंबर- एक 
            
पिछले दिनों अमेरिका में माइकल और भारत में “तितली” तूफ़ान का जबर्दस्त शोर मच रहा था। सरकारें दोनों ही तूफानों से हुए जान माल के नुकसान का हिसाब किताब लगाने में व्यस्त थी तभी अचानक  Me Too नामक तूफ़ान ने दोनों ही तूफानों की हवा निकाल दी।अगर इसे मीडिया की नज़र से तोलें तो पाएंगे कि ये मुद्दा सब सिरियल और अन्य कार्यक्रमों पर भारी पड़ गया। किंतु मैं आज़ इस तूफ़ान की बात नहीं करुंगा वरन हम भारत सरकार के फ़्लेगशिप कार्यक्रम “स्वच्छ भारत अभियान” पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे।

            श्री नरेंद्र मोदी ने जब 26 मई-2014 को प्रधानमंत्री  पद की शपथ ली तो उनके दिमाग या अन्तर्मन में कुछ मुद्दे ऐसे थे जिन पर वे तुरंत कुछ करना चाहते थे अतएव 02 अक्तूबर-2014 को राजपथ से उन्होने इसकी विधिवत घोषणा कर दी एवं 02 अक्तूबर-2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाने का संकल्प लिया एवं समस्त देशवासियों से इस संकल्प को पूरा करने के लिए सहयोग मांगा।बहुत से लोगों ने इसका मज़ाक उड़ाया और अपनी विपक्षी पार्टियों ने अपना धर्म निभाते हुए इस पर टीका टिप्पणी शुरू कर दी। उन सबकी नज़र में ये ऐसा मुद्दा नहीं था जिसे प्रधानमंत्री को इसकी आगे आकार स्वंम बागडोर संभालनी पड़े किंतु जब प्रधानमंत्री मोदी ने लाल क़िले की प्राचीर से 26 जनवरी-2015 को अपना संकल्प दोहराया और देश भर के गणमान्य व्यक्तियों को इस अभियान के लिए नामित करना शुरू कर दिया तब जाकर विपक्ष को समझ में आया कि ये कितना बड़ा मुद्दा बन चुका है और पूरा विपक्ष भविष्य में इसके फ़ायदे के बारे में सोचने लगा और फिर इस मुद्दे के गुणा भाग में लग गए। तब कॉंग्रेस को याद आया कि ये कार्य तो गाँधी जी द्वारा बरसों तक किया गया और ये मानते हुए कि गाँधी पर तो काँग्रेस का हक़ है “स्वच्छ भारत अभियान” के विषय में अनाप शनाप वक्तव्य देने की एक कभी ख़त्म ना होने वाली सिरीज़ शुरू कर दी। किंतु तब तक ये मुद्दा इतना आगे बढ़ चुका था कि कॉंग्रेस या अन्य किसी पार्टी के लिए करने को कुछ बचा ही नहीं था।

            पिछले चार वर्षो में इस अभियान ने क्या झंडे गाड़े ये तो सर्व विदित है किंतु इस अभियान से प्रेरित होकर सिंगापुर ने इसे हाथों हाथ लिया चाइना ने भी इसमें भरपूर रुचि दिखाई और तो और पाकिस्तान जैसा देश भी इस अभियान की कामयाबी से अपने आप को जोड़ने से ना रोक सका और इमरान ख़ान ने इसे पूरे पाकिस्तान में लागू करने का आहवाहन पाकिस्तानी जनता से किया है। निश्चित रूप से ये एक स्वागत योग्य कदम है। ऐसा भी नहीं है कि इस अभियान से सिर्फ़ विदेशी ही जुड रहे हैं भारत में तो इस अभियान की महत्ता को देखते हुए अक्षय कुमार ने “टाइलेट एक प्रेम कथा” शीर्षक से एक फीचर फिल्म ही बना डाली जिसने व्यवसायिक तौर पर भी काफ़ी मुनाफ़ा कमाया और अक्षय रातों रात स्वच्छ भारत अभियान के अघोषित दूत बन गए । ये विषय अलग है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने उन्हें  स्वच्छता दूत घोषित करने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगाया। आज़ अक्षय मुंबई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के स्वच्छता दूत का घोषित चेहरा भी हैं। इसी मुद्दे की दूसरी कड़ी में अक्षय एनई महिलाओं की माहवारी पर भी एक सत्य घटना से प्रेरित होकर “पैडमैन” फ़िल्म बनाई जो कि व्यवसायिक तौर पर और स्वस्थय संदेश देने में पूर्ण सफल रही।

            इसी अभियान से प्रेरणा लेकर उत्तराखंड के अविनाश प्रताप सिंह ने देहारादून में “वेस्ट वारियर्स”  के साथ स्वंम  सेवी के तौर पर शुरुआत की। ऐसा नहीं है कि उनका कार्यक्षेत्र सिर्फ़ देहारादून तक सीमित है वरन वो पूरे उत्तराखंड एवं अन्य पहाड़ी राज्यों में भी इसे फैला रहे हैं। इसी कड़ी में 3 आर मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटिड (पहले नोकुड़ा ) की शुरुआत मनीष पाठक, पारस अरोड़ा कचरे को समस्या मानने वालों के बीच जाकर इसे कैसे और किस तरह हल किया जाए इस अपने विचार लोगों के साथ साझा करते हैं। वे लोगों को सिर्फ़ जागरूक ही नहीं करते वरन उन्हें कचरे से कैसे पैसा कमाया जा सकता है इसकी ट्रेनिंग भी देते हैं। इसी प्रकार टाटा ट्रस्ट के चैयरमैन रतन टाटा ने 2016 से ग्रामीण इलाकों में काम करने के इच्छुक 400 पेशेवर युवाओं का एक दल तैयार किया जो देश के 26 राज्यों के 7000  गांवों के लगभग 60 लाख से ज़्यादा लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाने में सफल हुए हैं । इसी कड़ी में आई आई एम बंगलुरु से पास आउट तीन साथियों ने मिलकर जी पी एस रिन्यूऐबलस  की स्थापना की और आज़ ये कंपनी बंगुलुरु शहर के 3500 टन कचरे का निपटान करती है। आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में रहने वाले पेंडेला सुरेश जो कि 2014 में राजनीति में उतरे लेकिन आसफ़ल रहे किंतु उन्होने चुनाव के दौरान महसूस किया कि लोग शहर में कचरे से सबसे ज्यादा परेशान हैं अतएव उन्होने 2014 में ही  एक अलाभकारी इनोवेटिव सिटिज़ेन रिड्रेसल फोरम की स्थापना की । कुछ ही दिनों बाद उन्होने कचरे की समस्या को हल करने के लिए एक ऐप लांच किया जिसमें शहर के लोग अपनी शिकायतें भेज सकते हैं। इस संस्था के पास इस समय 10000  सदस्य हैं।
            स्वच्छता के इस मिशन में टी सी एस ने हिमाचल प्रदेश के मंडी के सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए 4000 हजार से ज़्यादा शौचालय का निर्माण किया है।उनके इस पुनीत कार्य में मंडी के डिप्टी कमिश्नर ऋग्वेद मिलिंद ठाकुर ने एक महती भूमिका का निर्वाह किया है। इसलिए 2016 में मंडी को भारत का सबसे स्वच्छ जिला घोषित किया गया। ऐसा भी नहीं कि स्वच्छ भारत अभियान को सिर्फ़ प्राइवेट कंपनियों ने ही आगे बढ़ाया बल्कि इस पुनीत कार्य में ओएनजीसी ने भी जहां भी उनके उपक्रम हैं के आसपास के गांवों को ओडीएफ बनाने में अपना योगदान प्रदान किया है।सबसे अच्छी बात यह है कि ओएनजीसी ने असम के एसएचआईवीएसएजीएआर चरई और जोरहाट ज़िलों में कोई 12000 से भी कम लागत वाले 14000 शौचालयों का निर्माण कराया है।

पहलू नंबर- दो
            प्रधानमंत्री ने जिस भली नीयत से इस पुनीत कार्य को करने के लोगों का आहवाहन किया और  जिन नामचीन लोगों को उन्होने “स्वच्छता ही सेवा” के ब्रांड एम्बेसड़र के रूप में नामित किया उन्होने भी आगे द्वितीय क्ष्रेणी के लोगों को ये कार्य सौंप दिया और उन्होने अपने मातहत तृतीय क्ष्रेणी को इस कार्य के लिए नामित कर दिया। और ये सिलसिला लगातार चल ही रहा है। लोग झाड़ू को लेकर फ़ोटो खिचवातें हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड करके इस मिशन को पूर्ण समझ रहे हैं। ये ऐसा क्रम है जो रुकने वाला नहीं है। कुछ लोगों ने इसे धंधे की शक्ल दे दी है । बड़े छोटे जो भी सेलेब्रेटी? मिलें उन्हें इस कार्य के लिए बुलाओं उनके नाज़ नख़रे उठाओ लगभग आधा बजट उन्हें पकड़वाओ,उनके साथ फ़ोटो खिचवाओ और अपने अपने घर जाओ। लो जी हुज़ूर हो गई सफाई? ये कौन सी सफाई हुई भाई?

            उपरोक्त सत्य तथ्यों के अतिरिक्त भी एक सत्य तथ्य है और वह है रेगुलर और दिहाड़ी पर काम करने वाले उन लाखों सफ़ाई कर्मचारियों का जो प्रतिदिन गांवों, कस्बों, शहरों और महानगरों की सफाई व्यवस्था संभालते हैं। प्रधानमंत्री द्वारा “स्वच्छता ही सेवा” का मंत्र देने से पहले से ही ये फ़ौज सुबह मुंह अंधेरे अपने कार्य पर निकल जाती है। अगर ये फ़ौज ना हो तो कल्पना कीजिए वो गाँव क़स्बा शहर या महानगर दो तीन-दिनों में ही कितना बदसूरत दिखने लगेगा। किंतु अपना चेहरा चमकाने की होड़ में हम अपनी इस स्वच्छ फ़ौज को भूल जाते हैं या उन्हें अनदेखा करते हैं। कोई सफाई कर्मी यदि बाजू से निकले तो नाक मुंह सिकोड़ने लगते हैं। फ़िर उस सफाई कर्मचारी की ज़िंदगी की कल्पना कीजिए जो रेगुलर नहीं है वरन ठेकेदार की कृपा पर है। उसे जब चाहे काम से बेदखल कर दिया जाता है। उसे गटर साफ़ करने के लिए कहा जाता है जिसमें हमसब का गंद भरा होता है। उसको सेफ़्टी मेज़र तक मुहैया नहीं कराए जाते। मना करने पर उससे कम दाम पर दूसरा मजदूर ये कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है क्यों कि बेरोज़गारी सुरसा के मुंह की तरह मुंह बाए जो खड़ी है।

            अंत में एक बात तो साफ़ है कि प्रधानमंत्री कितना भी सच्चा हो, ईमानदार हो और  कितना भी नेक हो उसकी सद इच्छा को कुछ लोग जहां सिर माथे लेकर पूरा करने में लग जाते हैं वहीं कुछ लोगों का जन्म शायद इसलिए होता है कि उस सद इच्छा को कैसे पलीता लगाया जाए। शायद यही कारण है जो नरेंद्र मोदी आज़ भी हर सर्वे में प्रधानमंत्री पद के जहां सबसे शशक्त उम्मीदवार नज़र आते हैं वहीं बाक़ी सब उनके आसपास भी कहीं टिकते नज़र नहीं आते। क्यों कि इस बंदे की ईमानदारी सच्चे देशभक्त की इमेज ऐसी बन गई है जो सब पर भारी पड़ रही है। और होना भी यही चाहिए। देश प्रथम।
                                                                                                           
                                                                                                    -प्रदीप भट्ट –
20 th ओक्टोबर -2018 


Thursday, 11 October 2018

लकीर के फ़क़ीर





“लकीर के फ़कीर”


            विदेशों में जब किसी को किसी से मिलने जाना होता है तो वह सामान्यता  पहले उस व्यक्ति को सूचित करता है कि वह या उसका परिवार उससे मिलने फलां दिन को आ रहा है ऐसा इसलिय भी कि विदेशों में बच्चा जहां 18 वर्ष का हुआ उसे परिवार से अलग कर दिया जाता है या वो अपने करियर को लेकर स्वंम ही अलग हो जाता है किंतु भारत में रहने वाले किसी भी धर्म या जाति के लोगों से पूछिये तो वो यही बताएगा कि “अतिथि देवो भव:” यानि जो अतिथि  बिना किसी तिथि के बताए अपनी मर्ज़ी से किसी रिश्तेदार के यहाँ पहुँच जाए उसे अतिथि कहा जाता है जिसे सनातन धर्म में  भगवान का दूसरा रूप माना गया  है। 

            किसी भी देश की संस्कृति की यही पहचान भी होती है  कि वे अपने देश में आने वाले मेहमानों का  किस तरह स्वागत करता है या पेश आता है किंतु कुछ मेहमान ऐसे भी होते हैं जो बिना बुलाए अवांछिनीय तरीके अपनाकर आ जाते हैं और उस प्रांत को या देश को ही अपने कुकर्मों द्वारा बरबाद कर देते हैं।कभी कभी किसी देश में गृह युद्ध होने के कारण या प्रकृतिक आपदा आने पर उस देश के लोग काफी दूर देहों में जाकर शरण लेते हैं जिन्हें शरणार्थी कहा जाता है ये शरणार्थी अवैद्य भी होते हैं और वैद्य भी किंतु दोनों ही रूपों में वो जिस देश में शरण पाते हैं उस देश की संस्कृति को अपने कर्मों द्वारा नष्ट करने का भरपूर यत्न करते हैं कभी धार्मिक आधार पर या फिर कभी राजनैतिक आधार पर इस कार्य में उस देश का ज़्यादातर मामलों में विपक्ष ही उनकी अवैद्य गतितिविधियों के लिए जिम्मेदार होता है । विपक्ष उन्हें चुनाव के नज़रिये से पालता  पोसता है जो कि अंतत: ये अवैध लोग उस देश के लोगों का हक़ मंरने लगते हैं। आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने पर इनका संरक्षण राजनैतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए करती रहती हैं जब कि उन्हें अच्छी तरह पता होता है कि इन अवैद्य लोगों को पालने पोसने से देश की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध भी लग सकती हैं किंतु राजनैतिक लोग अपनी स्वार्थ की सिद्धि के लिए इन महत्वपूर्ण बातों से स्वंम भी एवं राजनैतिक पार्टियाँ भी समझौता कर लेती हैं। इन हालत में ये समझना थोड़ा मुश्किल है कि आखिर हम सत्ता किसके लिए और क्यों प्राप्त करते हैं।

            इसकी बानगी अभी कल ही देखने को मिली जब काँग्रेस के एक नेता जो कि ठाकोर जाति से हैं को गुजरात के एक गाँव में बिहार और उत्तर प्रदेश से आए लोगों को सरे आम धमकाते हुए न केवल सुना गया वरन यह वाकया विडियो में भी कैद हो गया। नेता जी बड़ी शान से लोगों को धमकी दे रहे हैं “ अभी क्या टाइम हुआ है???? पुन: दोहराते हुए क्या टाइम हुआ है??? एक व्यक्ति कहता है 9 बजे हैं दूसरा कहता है 9:30 तब नेता जी दहाड़ते हुए तो .....कल शाम 9:30 बजे तक उत्तर प्रदेश और बिहार वाले इस गाँव को खाली कर दें वरना ...... वे कल स्वंम जिम्मेदार होंगें । अच्छी बात ये हुई कि कल ही उन पाँच लोगों को पुलिस ने गिरफ़्तार भी  कर लिया। लेकिन कोई बताएगा कि ये कौन सा लोकतन्त्र है ??  आख़िर हम कैसे समाज में रह रहे हैं जहाँ एक प्रदेश का आदमी दूसरे प्रदेश में जाने पर अपनी जान माल की सुरक्षा के प्रति सदैव चिंतित रहेगा तो वो अपना क्या विकास करेगा और उस प्रदेश का क्या विकास करेगा फ़िर देश की बात तो जाने ही दें।  ये ठीक है कि अवैद्य रूप से किसी दूसरे देश में घुसपैठ करने वाले लोग उस देश को धीरे धीरे लील जाते हैं। इसका एक उदाहरण देना अतिशोयक्तिपूर्ण नहीं होगा।

            पंद्रहवीं या शायद सोहलवीं के आस पास आस्ट्रेलिया की स्थिति क्या थी ? आज़ दुनियाँ के विकसित देशों की गिनती में आस्ट्रेलिया का एक महत्वपूर्ण स्थान है। क्या आप जानते हैं कि आस्ट्रेलिया के पश्चिम के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध किंतु मनहूस द्वीप जिसे रोटनेस्ट या रोतनेस्त भी कहा जाता है जब वहाँ यूरोपीय लोग पहली द्फ़े यहाँ पहुंचे तो पूरे द्वीप में चूहों की भरमार  देखकर दंग रह गए और उन्होने इसे रैट -नेस्ट  (चूहों का घोंसला ) कहना शुरू कर दिया। धीरे धीरे लोग इसे रोटनेस्ट कहलाने लगा। किंतु यूरोपीय लोगों पश्चिम आस्ट्रेलिया  पर अपना पूर्ण रूप से कब्ज़ा जमाने के लिए स्थानीय निवासियों के साथ क्या सुलूक किया ? इतना भयानक कि सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाएं । बाहर से आने वाले प्रवासियों ने पश्चिमी आस्ट्रेलिया के मूलनिवासियों  में एक जाति जिसे स्थानीय भाषा में नूगरों के साथ कैसा बर्ताव किया ?  हज़ारों की संख्या में नुंगरों लोगों को शरीर को गला देने वाली ठंठ में काल कोठरी में कैद किया गया जब वे मरने की कगार पर पहुँच जाते थे तो उन्हें रात के अंधेरे में समुद्र में  फेंक दिया जाता था।

            ये सिलसिला अट्ठारवीं शताब्दी के अंत तक बे-रोक टोक चलता रहा । आस्ट्रेलिया के स्थानीय निवासी ये देखकर हैरान और परेशान थे कि जिन लोगों का उन्होने मुसीबत के समय मानवता के नाते आदर सत्कार किया उनकी सहायता की समय बीतने के साथ वे ही लोग कैसे इतने अत्याचारी बन गए।आस्ट्रेलिया लोगों ने जबरदस्ती बन गए उनके पूर्वजों के उन वहशी और क्रूरता भरे कारनामों को न केवल लिपिबद्ध किया वरन रोटनेस्ट की जेल के सामने शिलालेख में दर्ज़ भी किया साथ ही पर्थ शहर की पब्लिक लाइब्रेरी में आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों पर यूरोपीय व अन्य लोगों द्वारा की गई बर्बरता का उल्लेख करती हुई कई पुस्तकें मौजूद हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये सिर्फ़ आस्ट्रेलिया के लोगों के साथ ही हुआ है वरन पंद्रहवीं ईस्वी की शुरुआत तक ब्रिटेन में अंग्रेजी नहीं  फ्रेंच भाषा का आधिपत्य था।1528 के पश्चात ही ब्रिटेन में अंग्रेजी भाषा को पूर्ण रूप से जगह मिली। इसी प्रकार फ्रांस में जर्मनी का शासन था और वहाँ भी शासकीय भाषा जर्मन ही थी ना की फ़्रेंच। जिस भी देश या प्रदेश में वैद्य या अवैद्य वांछिनीय या अवांछिनीय लोगों ने प्रवेश किया है कालांतर में उस देश की संस्कृति ज़रूर प्रभावित हुई है। इसका जीता जागता उदाहरण भारत में भी देखने को मिलता है पहले आर्यों ने फिर मुगलों ने तदुपरान्त अंग्रेजों ने भारत में घुसपैठ की अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उन्होने धर्म जाति के नाम पर एक दूसरे को इसलिए लड़ाया ताकि उनका भला हो सके। किंतु जितना कत्ल-ए-आम मुगलों के आगमन के बाद हुआ उतना इतिहास में कम ही देखने को मिलता है। मुस्लिमों में एक से एक बादशाह आए भारत को बुरी तरह लूटा खसोटा बहू बेटियों की इज़्ज़्त लूटी। बड़े पैमाने पर धर्म परवर्तन करवाया। जो नहीं माने उनके बड़े एवं बच्चों के सामने ही नहीं वरन सरेआम महिलाओं की इज्ज़त से खिलवाड़ किया गया। भारतीय जन मानस में चार वर्ण लागू हैं । उनमें ब्राह्मणों को शिक्षार्थी वैश्य को व्यापार ,राजपूतों या क्षत्रियों को सुरक्षा एवं शूद्रों को सेवा भाव से जोड़कर देखा जाता था । भारतीय जनमानस में देवताओं के पश्चात ब्राह्मणों को श्रेष्ठ माना गया है । मुस्लिम शासकों ने सबसे ज़्यादा ब्राह्मणों पर इसलिए अत्याचार  किए ताकि अन्य जातियाँ या धर्म भय से उनका विरोध ना करें। इसलिए जिन ब्राह्मणों ने जनेऊ त्यागकर इस्लाम अपनाने से मना कर दिया उनको सरेआम क़त्ल किया गया उनकी बहू बेटियों की इज्ज़त लूट ली गई। जब मुस्लिम शासकों को इसमें ज़्यादा कामयाबी प्राप्त नहीं हुई तो उन्होने हिंदू धर्म के प्रतिकों मंदिर और देवालय को तोड़कर उन्हीं के ऊपर मस्जिद निर्माण करा दिया जिससे सनातनी /हिंदू धर्म को मानने वाले अपने इष्ट की पूजा अर्चना ना कर सकें।

            वर्तमान में भी भारत में भी कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा यही नीति अपनाई जा रही है। देश के अंदर ही कुछ गद्दार इस प्रकार के घिनौने कार्य को अंजाम देने में तनिक भी कोताही नहीं बरत रहे हैं। अल्पेश ठाकोर जो कि काँग्रेस पार्टी का विधायक है सरे आम गुजरात से उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश एवं बिहार से आए मज़दूरों को धमका रहे हैं कि गुजरात खाली करो। इस प्रकार के भाषण तो खुले आम गुजरात की वर्तमान सरकार की  कानून व्यवस्था को चुनौती देते प्रतीत होते हैं जो कि निश्चित रूप से एक गंभीर विषय है ।जब देश के चुने हुए जन प्रतिनिधि ही कानून को चुनौती देंगे तो फिर वे संविधान का सम्मान कहाँ कारेंगे। जिन पर कानून का राज स्थापित करने कि ज़िम्मेदारी है वहीं उसे खुली चुनौती दे रहा है। 550 रियासतों को जोड़कर भारत एक गणराज्य बना है। इस देश के किसी भी कोने मे आने जाने के लिए सभी को आजादी है।कुछ अपवाद छोड़ दें तो कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रांत में जाकर बस सकता है।

            मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा प्रतीत होता है कि बालासाहेब ठाकरे ने जो परंपरा” मुंबई व महाराष्ट्र से बाहरी व्यक्ति को भगाओ“ (यूपी एवं बिहार ) क़ायम की थी उनके निधन के बाद राज ठाकरे ने उस पीआर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी जिसमें वो सफल नहीं हुए और अब उसी कड़ी में ये अल्पेश? ये विषय अलग है कि बाला साहेब ठाकरे ने सबसे पहले दक्षिण भारत के लोगों पर ये निशाना साधा था उसमें आसफ़ल होने पर उत्तर प्रदेश व बिहार से आने वाले मज़दूरों पर ये स्लोगन अपनाया ये बात और कि इन सब का मकसद सीधी साधी राजनीति ना करके शार्टकट से ऊपर उठना था। किंतु आज सब ये भूल जाते हैं कि पंजाब में हरित क्रांति को लाने में इन्हीं उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों का हाथ रहा है। जब राज ठाकरे ने इस पर धमाचौकड़ी मचाई तो उसकी परिनीति नासिक पुणे से बड़े स्तर पर मज़दूरों को पलायन हुआ और वहाँ के उद्योग धंधे 90 प्रतिशत तक बंद हो गए। मजदूर तो मजदूरी करके कहीं भी अपना पेट पाल लेता है लेकिन जो उद्योगपति अपनी जमापूंजी लगाकर उद्योग खड़ा करता है वो क्या करे? गुजरात की आबादी लगभग 6 करोड़ है उसमें से 2.79 करोड़  दूसरे प्रांत के लोग बरसों से रहते हैं ।गुजरात की खुशहली में उनका योगदान लगभग 50 प्रतिशत है। अकेले सूरत में ही 50 प्रतिशत से ज़्यादा बाहरी यानि दूसरे प्रदेश के लोग निवास करते हैं। इसी प्रकार मुंबई की आबादी लगभग 2.25 करोड़ है उनमें से 60 लाख लोग तो सिर्फ़ उत्तर प्रदेश बिहार मध्य प्रदेश से हैं जो कि सर्विस इंडस्ट्री और व्यवसाय से सीधे सीधे जुड़े हैं एवं लाखों लोगों को रोजगार दे रहे हैं। मुंबई अगर आज समृद्ध है तो उसकी समृद्धि में गुजरातियों और मारवाड़ियों का बहुत बाद योगदान है। इक्का दुक्का घटना छोड़ दें तो डेल्ही की तो बात ही निराली है डेल्ही आज़ भी दिल वालों की ही है और यही इसकी पहचान है।जिसे यहाँ के बाशिंदों ने अब तक बचाए रखा है।

             उपरोक्त तथ्यों पर दृष्टिपात करने से एक बात तो साबित हो जाति है कि कुछ नेता कुछ राजनीतिज्ञ अपनी महत्वकांषाओं की पूर्ति के लिए किस हद तक जा सकते हैं। किंतु तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। गुजरातियों के विषय में एक कहावत है कि वह या तो गाँव से निकलना पसंद नहीं करता और यदि निकलता है तो फिर विदेश में जाकर ही दम लेता है। अमेरिका,ब्रिटेन,कनाडा सऊदी अरब के देश एवं अन्य देशों में कितने लोग अपना कारोबार कर रहे हैं कितने लोग नौकरी कर रहे हैं कितने लोग सर्विस इंडस्ट्री से जुड़कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। ये आंकड़ा शायद 50 लाख से ऊपर का है। यदा कदा ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं जब किसी भारतवंशी के साथ कोई दुर्व्यवहार होता है या उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।श्वेत अश्वेत की कहानी तो अलग है। अगर वो सभी देश जहाँ भारत के लोग अपनी आजीविका कमा रहे हैं उन्हें इसी तरह मारपीट कर उनकी मेहनत से कमाई संपत्ति को हड़प लिया जाए और रातों रात उन्हें उस देश से बेदख़ल कर दिया जाए तो नज़ारा क्या होगा ? निश्चित रूप से बहुत ही भयावह। जो आज़ गुजरात में हो रहा है वहीं अगर गुजरातियों के साथ मुंबई डेल्ही उत्तर प्रदेश में होने लगे तो ......


-प्रदीप देवीशरण भट्ट –
11th अक्तूबर -2018