Friday, 28 February 2025

" पुरुषों की भी सोचो "

        
          "पुरुषों की भी सोचो कोई "

         अब जब एक जन्म का रिश्ता बनने से पहले ही रिश्ते की चुनरिया तार तार हुई जा रही है तो उस सूरत में सात जन्मों के साथ की बात कौन करे। कल जब आगरा के मानव शर्मा के सुसाइड के विषय में समाचार सुना तो बेसाख्ता कुछ दिनों पूर्व बंगलूरू के अतुल सुभाष जो बिहार का रहने वाला था और महिंद्रा एंड महिंद्रा कम्पनी में AI और ML में डिप्टी जनरल मैनेजर था की आत्म हत्या का समाचार आँखों के आगे चल चित्र की भांति तैर गया। जहाँ अतुल सुभाष और उनकी पत्नि निकिता सिंघानिया में पहले प्यार हुआ फिर शादी फिर बाद में मन मुटाव बड़े झगड़े में परिवर्तित हो गया बात तलाक तक जा पहुंची। जौनपुर फैमिली कोर्ट में मुकदमा भी दर्ज हुआ। आरोप ये भी था कि निकिता ने 3 करोड़ की डिमांड की थी,  न मानने पर घरेलु हिंसा और दहेज़ के मुकदमे में फंसाने की धमकी दी और सिर्फ़ धमकी दी ही नहीं वरन अतुल पर उसकी ससुराल वालों की तरफ़ से कुल नौ केस उस पर दायर भी कर दिए। ऐसी विकट परिस्थिति में किसी का भी मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है और नतीजतन दिसंबर-2024 को इस प्रकरण की परिणति अतुल की आत्महत्या के रूप में सामने आई।  पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने के केस में निकिता उसकी माँ निशा और साले अनुराग सिंघानिया को अरेस्ट किया किन्तु कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा तीनों को ही जनवरी-2025 में जमानत दे दी गई। अब इस केस में आगे क्या होगा भगवान ही जाने। अभी पूरी तरह लोग इस दुःखद समाचार से उबरे भी नहीं थे कि TCS में मैनेजर मानव शर्मा ने 6:57 मिनिट का वीडियो बनाकर अपनी व्यथा घर वालों से और आम जन से शेयर की और साड़ी का फंदा गले में डालकर अपनी इह लीला समाप्त कर ली। पहली नजर में  दोनों ही केसों में एक जैसे हालात दिखाई दे रहे हैं। आख़िर क्यूँ और कैसे ये रोग हमारे भारतीय समाज में फैलता जा रहा है। जिसे रोकने की कोशिश करता फ़िलहाल तो कोई दिखाई नहीं दे रहा। न ही समाज के किसी हिस्से से न ही न्यायालयों से  कोई एक PIL ही दायर कर दो भई!

        सुबह का समाचार पत्र खोलते ही लगभग हर पृष्ठ पर इस तरह के समाचार दिखाई पड़ेगे कि पत्नि ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी, बेटे ने नशे के लिए पैसे न देने पर माँ या पिता को दादी या दादा को गंडासे से काट डाला।  जीजा ने साली के लिए पत्नि को चाकू घोंपा, बलात्कार की घटनाएँ तो ऐसे छपती हैं जैसे इसके बिना समाचार पत्र समाचार पत्र ही न कहलायेंगे। सच तो ये भी है कि ये सब हमारे समाज में घट भी रहा है और जो घट रहा है उसको रोकने की पहल कौन करे । अदालतें ऐसे केसों से पटी पडी हैं।  जहाँ तक भारतीय संविधान का प्रश्न है तो वह महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्रदान करता है किन्तु वास्तविकता इससे कोसों दूर नजर आती है जिस प्रकार SC ST एक्ट का दुरुपयोग धड़ल्ले से होता है उसी प्रकार महिलाओं द्वारा पुरुषों को कितना और किस रूप में प्रताड़ित किया जाता है इसकी बस कल्पना भर ही की जा सकती है। एक्सर हम सिर्फ़ पुरुषों द्वारा महिलाओं के शोषण की बात सुनते हैं किन्तु इसका एक दूसरा पहलू भी होता है महिलाओं द्वारा भी पुरुषों का शोषण होता है और कुछ ज्यादा ही और ऐसा सिर्फ घर में ही नहीं होता वरन कार्य स्थल पर भी होता है! महिला काम नहीं करती है जब पुरुष अधिकारी टोकता है या काम को सुचारू रूप से करने के विषय में बार बार चेतावनी देता है या अपने आचरण में सुधार न लाने पर सेवा पुस्तिका में विपरित प्रविष्टि की चेतावनी देता है तो वह महिला आसान हथियार का उपयोग करते हुए उस पुरुष अधिकारी पर शोषण का आरोप लगा देती है और कई बार एक या दो नहीं महिलाओं का पूरा गैंग इस तरह के खेल रच देता है उसके बाद पुरुष प्रताड़ना का कभी ख़त्म न होने वाला सिलसिला चल निकलता है इसका जीता जागता उदाहरण अभी CRPF में तैनात महिला अधिकारी का अपने sabordinet के साथ किया गया व्यवहार अखबारों की सुर्खियों में रहा।  प्रताड़ना जब हद से ज्यादा बढ़ी तो उसने पूरे परिवार के साथ जहर खा लिया. पति पत्नि तो चल बसे किन्तु समय रहते इलाज मिलने से बेटी बच गई।

         मुझे याद है कुछ सालों पहले एक समाचार प्रकाशित हुआ था जिसका लब्बोलुआब यह था कि जबलपुर क्षेत्र से 4500 के लगभग लोग गायब हो गए पुलिस ने खोजबीन शुरू की तो कईयों को मथुरा वृन्दावन में ढूँढ लिया गया जब उनसे घर छोड़ने का कारण पूछा तो उत्तर ने सभी को चौंका दिया।  उनका कहना था कि पत्नियों के अत्याचार इतने बढ़ गए थे कि जिंदगी जीना दुरूह जान पड़ा । चूँकि वे आत्महत्या करने का साहस नहीं जुटा पाए तो उन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग कर साधु बनना ज्यादा उचित समझा। लगभग एक वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश शासन में उच्च पदस्थ अधिकारी के घर की एक वीडियो फुटेज वायरल हुई थी जिसमें पत्नि पत्नि पति को कभी झाड़ू कभी बेलन कभी चिमटे से उन अधिकारी पर प्रहार करती दिखाई देती है, बच्चा भी पिता की हालत देखकर स्वयं को बचाने का प्रयास करता दिखाई देता है । अब आप स्वयं सोचिए डिजिटल युग चल रहा है तो सामने आ भी गया वरना कौन मानेगा कि पत्नि इतनी बेरहम भी हो सकती है। जहाँ तक विवाहित पुरुषों के अधिकारों का प्रश्न है तो कानून कुछ यूं है,  पर वास्तव में है क्य़ा?

     i) मानसिक उत्पीड़न की शिकायत 
    ii) पत्नि द्वारा की गई हिंसा और उत्पीड़न के 
        खिलाफ़ शिकायत 
   iii) दहेज़ के झूठे केस की शिकायत 
   iv)  गाली गलौज और धमकियों की शिकायत 
    v) मायके में ज्यादा दिनों तक रहने की शिकायत 
   vi) शारीरिक हिंसा की शिकायत 
  vii) पत्नि के किसी और से अफेयर की शिकायत 
  viii) तलाक के लिए याचिका 
  IX) स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति पर अधिकार 
  X) अगर पति बेरोजगार है तो मैंटीनेंस अधिकार 

         आखिर पुरुष इतना कठोर फैसला कर क्यूँ रहे हैं वैसे जिस तरह के दोनों केस हैं मैं उन्हें पूर्ण पुरुष की श्रेणी में नहीं रखना चाहूँगा ऐसा इसलिए भी कि बिहार का अतुल सुभाष हो या आगरा का मानव शर्मा दोनों की इतनी उम्र नहीं है जो इस तरह के मानसिक दबाव को झेल सकें। लड़की हो या लड़का विवाह इसलिए नहीं होते कि महत्वाकांक्षाओं के पर्वत के नीचे दबकर प्राणों को त्याग दिया जाए. बड़े परिवारों में चाचा चाची, ताऊ ताई, मामा मामी नाना नानी मौसा मौसी, तहेरे चचेरे ममेरे फुफेरे इतने भाई बहन होते थे कि बच्चे इससे नहीं तो उससे अपने दिल की बात कहकर दिल को हल्का कर लेते थे किंतु न्यूक्लियर फैमिली ने बहुत कुछ के अलावा बच्चों के इन रिश्तों को  हमसे छिन लिया है । जिस कारण लोगों के दिल बहुत भारी हो गए हैं उन्हें दिल हल्का करने का कोई साधन या उपाय नज़र नहीं आता.  आज डिजिटल युग का ज़माना है लोग एक लाख डेढ़ लाख का फोन रखकर समझते हैं कि कोई न होगा तो दिल इससे बहल जाएगा किन्तु दिल इससे बहलता नहीं वरन और अकेला हो रहा है।

         उपरोक्त के अतिरिक्त भी बहुत कुछ है किन्तु अगर प्रेक्टिकली देखें तो महिलाओं और उसके घरवालों के दबाव में पुलिस भी बेबस ही दिखाई देती है। परिणाम स्वरूप 99 प्रतिशत मामलों में पुरुष उस घुटन से बाहर आ ही नहीं पाता। इससे भी बुरी स्थिति तब बनती है जब बच्चे मम्मा को पिता से ज्यादा तरजीह देने लगते हैं और परिणाम और ज्यादा भयानक हो जाते हैं. पुरुष जो पूरा जीवन परिवार के लिए समर्पित कर देता है स्वयं घर ऑफिस के मध्य खटता रहता है ताकि बच्चे कुछ बन सकें। महानगरों में रहने वाले पिताओं का पूरा जीवन ठण्डी रोटी खाते खाते बीत जाता है ताकि उसकी पत्नि और बच्चों को ताजी रोटी नसीब हो वही पत्नि जब बच्चों के बड़े होने पर बच्चों की गैंग लीडर बन जाती है तब वो पिता अपने ही घर में उपेक्षित हो जाता है।  घर में कोई भी कार्य हो उससे सलाह-मशविरा की जरुरत भी नहीं समझी जाती बस ऑफिस नोटिस की तरह उसे बात बता दी जाती है और वह पिता, पति या वह अभागा पुरुष घर की मान मर्यादा अपने झोले में सम्भाले हुए रोज मर्रा के कामों में मसरूफ हो जाता है। ऐसा नहीं कि वह विरोध नहीं कर सकता बस अपना बड़प्पन बचाने की कोशिश में लगा रहता है। महिलाओं महिलाओं और सिर्फ महिलाओं के अधिकारों का रोना रोने वाले कब जानेंगे कि पुरुष को भी पीड़ा से गुजरना पड़ता है औ उनकी सुनवाई कहीं नहीं होता., अब समय आ गया है जब लिखा जाए ।

प्रदीप डीएस भट्ट-01032025


Saturday, 15 February 2025

Master of All के बाद Master of Non

रिपोतार्ज

"Master of all के बाद Master of Non "

         कभी कभी यूँ भी होता है कि आप किसी कार्यक्रम में सहभागिता की स्वीकृति तो प्रदान कर देते हैं किंतु तभी समय का अह्म जाग जाता है और वो आँखों को गोल गोल😵‍💫 घुमाते हुए बुदबुदाता है अच्छा बेटा हमसे ही पंगे। हमें ही चेलेंज कर रहे हो और हम तुरन्त समय की शरण में लोट पोट होते हुए घिघियाते हैं🙏🏾 न माहराज न म्हारा जे मतबल कतई न था किंतु समय तो समय ठहरा दिल है कि मानता नहीं कि तर्ज़ पर झटका दिए बिना मानता ही नहीं😇। हमने विश्व पुस्तक मेले में 8 फ़रवरी को अपनी सहभागिता की स्वीकृति मित्र मण्डली को दे दी साथ ही 9 फ़रवरी को डॉक्टर श्वेता सिंह उमा पर निकल रहे प्रज्ञान विश्वम के विशेषांक में हाज़िर रहने की भी स्वीकृति प्रदान कर दी, लेकिन जे क्या एक दुःखद ख़बर और.....😢 आगे क्या बताना मियां जानते तो तुम भी हो ख़ैर वहाँ से निपटकर थोड़ा संयत हुए तो महफ़िल ए बारादरी का आमंत्रण प्राप्त हो गया अब चूँकि हम तो हम ठहरे पक्के वाले वफ़ाउद्दीन😘 जहाँ से पहला आमंत्रण मिला वहीं उपस्थित रहने का निर्णय किया।

         सो पहली फ़ुर्सत में 9 की सुबह 7.45 की ब्ला ब्ला बुक करके निफ़राम हो गए,अंदाज़ा ये था कि बन्दा हमें 9.30 तक तो सुप्रीम🙏🏾 कोर्ट पहुंचा ही देगा वहाँ से तीन पहिए अरे भाई चौकिऐं मत मतबल ऑटो से ही है किन्तु किस्मत में हों तो कंकर क्या करेंगे शंकर की तर्ज़ पर बन्दे ने राइड कैंसिल कर दि बस फिर क्या था भगियाते भगियाते 🦨 भैंसाली अड्डे से कश्मीरी गेट की बस पकड़ी लेकिन जब बस आनन्द विहार मेट्रो रुकी तो मेट्रो की आवाज़ हमारे कानों में गूँजने लगी जैसे कहना चाह रही हो अबे जित्ती देर में तू कश्मीरी गेट पहुँचेगा उत्ती देर में तो हम तुझको सेंट्रल सेक्ट्रेट फ़ेंक देंगे बे बस हमने तुरन्त बस से छलाँग लगाई पीछे से कंडक्टर की आवाज़ सुनाई दे रही थी सर जी आपका टिकिट तो कश्मीरी गेट का है लेकिन हमें सुनाई दे रहा था जैसे कह रहा हो कि किसकी जेब काट ली बे जो इत्ती तेज दुड़की लगा रिया है 😅। दौडते भागते हमने ख़ुद को मेट्रो में धकेल दिया फिर श्वांस पर थोड़ा काबू पाया और फिर मंडी हाऊस से चेंज कर सीधे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया वो भी 10.35 पर इज्ज़त बच गई रे बाबा🤣🤪🤪🤪🤪

         थोड़े से व्यवधान के बाद ठीक 11 बजे कार्यक्रम शुरू हो गया। डॉक्टर श्वेता सिंह उमा पूर्व की भाँति गज़ब ढा रही थीं, सदा की तरह हँसता मुस्कुराता चेहरा उमंग सरीन जी का, वीणा अग्रवाल, ओम्कारेश्वर पाण्डेय, राजेश रघुबर, आस्ट्रेलिया से पधारे कुँवर बैचेन के पुत्र प्रगीत कुँवर एवम भावना कुँवर, मात्र अस्सी वर्षीय खुशमिजाज शख्सियत मंजू गुप्ता जो फूलों पर कविताई रचती हैं,🌹🌹🌹 मधु मिश्रा जी और चौहान दम्पत्ति जो हमारे साथ नागालैंड प्रवास पर भी साथ थे और भी कुछ लोग पर नाम न याद आरिया है भैय्या। अभी पण्डित सुरेश नीरव जी ने कार्यक्रम में समा बाँधा ही था तभी हास्य सम्राट सुरेंद्र शर्मा जी ने घूँघट के पट खोल की तर्ज़ पर मीटिंग हॉल के पट खोलकर सभागृह में प्रवेश किया, सभी की निगाहें उनकी तरफ़ उठनी लाज़मी थीं सो निगाहें उठी, चेहरों पर हल्की सी स्मित लिए सुरेन्द जी ने भी सभी का अभिवादन स्वीकार किया। कार्यक्रम ने पुनः अपनी  रवानी पकड़ी और डॉक्टर श्वेता सिंह उमा के व्यक्तित्व एवम कृतित्व पर उपस्थित सुधीजनों ने प्रकाश डाला।🦥 डॉक्टर श्वेता से मेरी पहली मुलाक़ात 2022 में मेरठ मेरठ लिटरेरी फ़ेस्टिवल में हुई थी फिर पुनः दिसम्बर 2023 में केरल में एबीएस 4 के कार्यक्रम के दौरान हमने मंच साझा किया था सो जो देखा समझा जाना कि तर्ज़ एक शेर

"पढ़ लिया देख लिया समझ लिया
बासी अख़बार हुई ज़िन्दगी" 

न जी न श्वेता जी के विषय में बासी का कोई सीन ही नहीं है जब भी मिलोताज़ा बिलकुल ताज़ा ताज़ा रेड roz। सो कुल जमा तीन मुलाकातों के निचोड़ स्वरूप पहले तो उनकी आँखों की तबियत पूछी अब उनकी आँखे हैं ही इत्ती सुन्दर क्या बोले जी हम तो बस... अजी पूछो मति 🤓 फिर जो सच था कह दिया बिलकुल शफ्फाक सच की तरह, झूठी तारीफ़ हमसे होने की भी न है। अजी ब्लड में ही न है तो क्या करें😎 सुरेंद्र जी ने अपने उदबोधन की शुरुआत Masters of all के बाद Master of Non से की जिसको हमने रिपोर्ताज का शीर्षक बना दिया, permissions है न सुरेंद्र जी 🌹🌹🌹🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾

गर्मा गर्म भोजन की खुशबु तो भैय्या पेट पूजा की और ऑटो लेकर निकल लिए पुस्तक मेले की ओर,  

       पुस्तक मेले में पिछले वर्ष दीक्षित दनकौरी जी एवम अन्य के साथ काफ़ी सैर सपाटा किया था। आज चूँकि अंतिम दिन था तो भीड़ भी कुछ हॉल में ज़्यादा थी और कुछ में इतनी कि बच्चे हॉल क्रिकेट तो नहीं वरन यहाँ वहाँ बैठकर लूडो साँप सीढ़ी या फिर शतरंज़ जरूर खेल सकते थे।  एक सरसरी सी निग़ाह हर स्टॉल पर डालते हुए कुछ को हमने और कुछ ने हमें अभिवादन किया। इंडिया नेटबुक पर संजीव जी से मुलाक़ात हुई साथ ही विनय से भी। चूँकि अंतिम ठिकाने के तौर पर अद्विक पब्लिकेशन में स्वाति चौधरी जी से मिलने का प्लान था किंतु हॉल नम्बर 2 के अलावा स्टॉल नंबर याद नहीं था सो ढूंढ़ते रहे। तभी 30 - 35 वर्ष की महिला ने टोका सर आप प्रदीप देवीशरण भट्ट हैं। मुझे मेरे पूरे साहित्यिक नाम से पुकारने वाली देवी जी कौन हैं मैंने घूमकर उन्हें ऊपर से नीचे गौर से देखा एक सम्भ्रांत महिला साथ में 7,8 बरस की लड़की मैंने हाँ भरी तो बोली मैंने आपका कहानी संग्रह "काला हंस"  पढ़ा है। उसमें कई कहानी अच्छी लगी लेकिन लेकिन लेकिन काला हंस और ड्रग डे सबसे बढ़िया लगीं। मैंने हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा फिर उनकी इच्छा का मान रखते हुए बेटी सहित एक सेल्फ़ी ली फिर बताया कि काला हंस को लखनऊ की संस्था द्वारा पुरस्कृत भी किया जा रहा है। अपनी आदत अनुसार मैंने उनकी बिटिया को दो बच्चों की पुस्तकें ख़रीदकर दी उन्हें संकोच में देखकर कहा देवी जी सिर्फ़ आपकी नहीं हम लेखकों की भी ज़िम्मेदारी है कि बच्चों को कहानियां पढ़ने के लिए प्रेरित करें।

         आख़िर मेहनत सफ़ल हुई सामने से आवाज़ आई मिल गई फ़ुर्सत? देखा तो मुस्कुराते हुए डॉक्टर स्वाति चौधरी थीं, कभी इस स्टॉल पर कभी उस स्टॉल पर पुस्तकों को उलटते पलटते कब 6 बज गए पता ही नहीं चला इसी मध्य नेशलन ट्रस्ट बुक के लालित्य ललित जी, आचार्य राजेश जी, शिवराज जी संग दो तीन पुस्तकों के लोकार्पण में भी सहभगिता हो गई डॉक्टर स्वाति चौधरी तो थीं ही हुज़ूर। बडे पाव की दावत के मध्य एक बेटी अपनी माँ से कहती हुई नज़र आई कि ममा हिन्दी पढ़ते हुए मुझे नींद आती है🤓🤓 फिर उसने मेरी तरफ़ देखा तो sry बोला मैंने मुस्कुराते हुए कहा बेटा क़ुसूर आपका नहीं है बल्कि तभी मां की आवाज़ आई सर इन बच्चों का नहीं हमारा क़ुसूर है। बात सीधी सपाट थीं किन्तु कहीं न कहीं उस लड़की की माँ की आवाज़ के दर्द को मैंने अपने भीतर भी महसूस किया। 🥹🥹 शिवराज जी ने सिटी सेंटर नोएडा छोड़ा वहाँ से बस और खरामा खरामा ऑटो बदलते हुए 9.45 घर। न्यूज़ देखी औऱ फिर हम और हमारा बजाज की तर्ज़ पर हम और हमारा बैडवा😝😝😝😝


प्रदीप डीएस भट्ट-13225