"पुरुषों की भी सोचो कोई "
अब जब एक जन्म का रिश्ता बनने से पहले ही रिश्ते की चुनरिया तार तार हुई जा रही है तो उस सूरत में सात जन्मों के साथ की बात कौन करे। कल जब आगरा के मानव शर्मा के सुसाइड के विषय में समाचार सुना तो बेसाख्ता कुछ दिनों पूर्व बंगलूरू के अतुल सुभाष जो बिहार का रहने वाला था और महिंद्रा एंड महिंद्रा कम्पनी में AI और ML में डिप्टी जनरल मैनेजर था की आत्म हत्या का समाचार आँखों के आगे चल चित्र की भांति तैर गया। जहाँ अतुल सुभाष और उनकी पत्नि निकिता सिंघानिया में पहले प्यार हुआ फिर शादी फिर बाद में मन मुटाव बड़े झगड़े में परिवर्तित हो गया बात तलाक तक जा पहुंची। जौनपुर फैमिली कोर्ट में मुकदमा भी दर्ज हुआ। आरोप ये भी था कि निकिता ने 3 करोड़ की डिमांड की थी, न मानने पर घरेलु हिंसा और दहेज़ के मुकदमे में फंसाने की धमकी दी और सिर्फ़ धमकी दी ही नहीं वरन अतुल पर उसकी ससुराल वालों की तरफ़ से कुल नौ केस उस पर दायर भी कर दिए। ऐसी विकट परिस्थिति में किसी का भी मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है और नतीजतन दिसंबर-2024 को इस प्रकरण की परिणति अतुल की आत्महत्या के रूप में सामने आई। पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने के केस में निकिता उसकी माँ निशा और साले अनुराग सिंघानिया को अरेस्ट किया किन्तु कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा तीनों को ही जनवरी-2025 में जमानत दे दी गई। अब इस केस में आगे क्या होगा भगवान ही जाने। अभी पूरी तरह लोग इस दुःखद समाचार से उबरे भी नहीं थे कि TCS में मैनेजर मानव शर्मा ने 6:57 मिनिट का वीडियो बनाकर अपनी व्यथा घर वालों से और आम जन से शेयर की और साड़ी का फंदा गले में डालकर अपनी इह लीला समाप्त कर ली। पहली नजर में दोनों ही केसों में एक जैसे हालात दिखाई दे रहे हैं। आख़िर क्यूँ और कैसे ये रोग हमारे भारतीय समाज में फैलता जा रहा है। जिसे रोकने की कोशिश करता फ़िलहाल तो कोई दिखाई नहीं दे रहा। न ही समाज के किसी हिस्से से न ही न्यायालयों से कोई एक PIL ही दायर कर दो भई!
सुबह का समाचार पत्र खोलते ही लगभग हर पृष्ठ पर इस तरह के समाचार दिखाई पड़ेगे कि पत्नि ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी, बेटे ने नशे के लिए पैसे न देने पर माँ या पिता को दादी या दादा को गंडासे से काट डाला। जीजा ने साली के लिए पत्नि को चाकू घोंपा, बलात्कार की घटनाएँ तो ऐसे छपती हैं जैसे इसके बिना समाचार पत्र समाचार पत्र ही न कहलायेंगे। सच तो ये भी है कि ये सब हमारे समाज में घट भी रहा है और जो घट रहा है उसको रोकने की पहल कौन करे । अदालतें ऐसे केसों से पटी पडी हैं। जहाँ तक भारतीय संविधान का प्रश्न है तो वह महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्रदान करता है किन्तु वास्तविकता इससे कोसों दूर नजर आती है जिस प्रकार SC ST एक्ट का दुरुपयोग धड़ल्ले से होता है उसी प्रकार महिलाओं द्वारा पुरुषों को कितना और किस रूप में प्रताड़ित किया जाता है इसकी बस कल्पना भर ही की जा सकती है। एक्सर हम सिर्फ़ पुरुषों द्वारा महिलाओं के शोषण की बात सुनते हैं किन्तु इसका एक दूसरा पहलू भी होता है महिलाओं द्वारा भी पुरुषों का शोषण होता है और कुछ ज्यादा ही और ऐसा सिर्फ घर में ही नहीं होता वरन कार्य स्थल पर भी होता है! महिला काम नहीं करती है जब पुरुष अधिकारी टोकता है या काम को सुचारू रूप से करने के विषय में बार बार चेतावनी देता है या अपने आचरण में सुधार न लाने पर सेवा पुस्तिका में विपरित प्रविष्टि की चेतावनी देता है तो वह महिला आसान हथियार का उपयोग करते हुए उस पुरुष अधिकारी पर शोषण का आरोप लगा देती है और कई बार एक या दो नहीं महिलाओं का पूरा गैंग इस तरह के खेल रच देता है उसके बाद पुरुष प्रताड़ना का कभी ख़त्म न होने वाला सिलसिला चल निकलता है इसका जीता जागता उदाहरण अभी CRPF में तैनात महिला अधिकारी का अपने sabordinet के साथ किया गया व्यवहार अखबारों की सुर्खियों में रहा। प्रताड़ना जब हद से ज्यादा बढ़ी तो उसने पूरे परिवार के साथ जहर खा लिया. पति पत्नि तो चल बसे किन्तु समय रहते इलाज मिलने से बेटी बच गई।
मुझे याद है कुछ सालों पहले एक समाचार प्रकाशित हुआ था जिसका लब्बोलुआब यह था कि जबलपुर क्षेत्र से 4500 के लगभग लोग गायब हो गए पुलिस ने खोजबीन शुरू की तो कईयों को मथुरा वृन्दावन में ढूँढ लिया गया जब उनसे घर छोड़ने का कारण पूछा तो उत्तर ने सभी को चौंका दिया। उनका कहना था कि पत्नियों के अत्याचार इतने बढ़ गए थे कि जिंदगी जीना दुरूह जान पड़ा । चूँकि वे आत्महत्या करने का साहस नहीं जुटा पाए तो उन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग कर साधु बनना ज्यादा उचित समझा। लगभग एक वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश शासन में उच्च पदस्थ अधिकारी के घर की एक वीडियो फुटेज वायरल हुई थी जिसमें पत्नि पत्नि पति को कभी झाड़ू कभी बेलन कभी चिमटे से उन अधिकारी पर प्रहार करती दिखाई देती है, बच्चा भी पिता की हालत देखकर स्वयं को बचाने का प्रयास करता दिखाई देता है । अब आप स्वयं सोचिए डिजिटल युग चल रहा है तो सामने आ भी गया वरना कौन मानेगा कि पत्नि इतनी बेरहम भी हो सकती है। जहाँ तक विवाहित पुरुषों के अधिकारों का प्रश्न है तो कानून कुछ यूं है, पर वास्तव में है क्य़ा?
i) मानसिक उत्पीड़न की शिकायत
ii) पत्नि द्वारा की गई हिंसा और उत्पीड़न के
खिलाफ़ शिकायत
iii) दहेज़ के झूठे केस की शिकायत
iv) गाली गलौज और धमकियों की शिकायत
v) मायके में ज्यादा दिनों तक रहने की शिकायत
vi) शारीरिक हिंसा की शिकायत
vii) पत्नि के किसी और से अफेयर की शिकायत
viii) तलाक के लिए याचिका
IX) स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति पर अधिकार
X) अगर पति बेरोजगार है तो मैंटीनेंस अधिकार
आखिर पुरुष इतना कठोर फैसला कर क्यूँ रहे हैं वैसे जिस तरह के दोनों केस हैं मैं उन्हें पूर्ण पुरुष की श्रेणी में नहीं रखना चाहूँगा ऐसा इसलिए भी कि बिहार का अतुल सुभाष हो या आगरा का मानव शर्मा दोनों की इतनी उम्र नहीं है जो इस तरह के मानसिक दबाव को झेल सकें। लड़की हो या लड़का विवाह इसलिए नहीं होते कि महत्वाकांक्षाओं के पर्वत के नीचे दबकर प्राणों को त्याग दिया जाए. बड़े परिवारों में चाचा चाची, ताऊ ताई, मामा मामी नाना नानी मौसा मौसी, तहेरे चचेरे ममेरे फुफेरे इतने भाई बहन होते थे कि बच्चे इससे नहीं तो उससे अपने दिल की बात कहकर दिल को हल्का कर लेते थे किंतु न्यूक्लियर फैमिली ने बहुत कुछ के अलावा बच्चों के इन रिश्तों को हमसे छिन लिया है । जिस कारण लोगों के दिल बहुत भारी हो गए हैं उन्हें दिल हल्का करने का कोई साधन या उपाय नज़र नहीं आता. आज डिजिटल युग का ज़माना है लोग एक लाख डेढ़ लाख का फोन रखकर समझते हैं कि कोई न होगा तो दिल इससे बहल जाएगा किन्तु दिल इससे बहलता नहीं वरन और अकेला हो रहा है।
उपरोक्त के अतिरिक्त भी बहुत कुछ है किन्तु अगर प्रेक्टिकली देखें तो महिलाओं और उसके घरवालों के दबाव में पुलिस भी बेबस ही दिखाई देती है। परिणाम स्वरूप 99 प्रतिशत मामलों में पुरुष उस घुटन से बाहर आ ही नहीं पाता। इससे भी बुरी स्थिति तब बनती है जब बच्चे मम्मा को पिता से ज्यादा तरजीह देने लगते हैं और परिणाम और ज्यादा भयानक हो जाते हैं. पुरुष जो पूरा जीवन परिवार के लिए समर्पित कर देता है स्वयं घर ऑफिस के मध्य खटता रहता है ताकि बच्चे कुछ बन सकें। महानगरों में रहने वाले पिताओं का पूरा जीवन ठण्डी रोटी खाते खाते बीत जाता है ताकि उसकी पत्नि और बच्चों को ताजी रोटी नसीब हो वही पत्नि जब बच्चों के बड़े होने पर बच्चों की गैंग लीडर बन जाती है तब वो पिता अपने ही घर में उपेक्षित हो जाता है। घर में कोई भी कार्य हो उससे सलाह-मशविरा की जरुरत भी नहीं समझी जाती बस ऑफिस नोटिस की तरह उसे बात बता दी जाती है और वह पिता, पति या वह अभागा पुरुष घर की मान मर्यादा अपने झोले में सम्भाले हुए रोज मर्रा के कामों में मसरूफ हो जाता है। ऐसा नहीं कि वह विरोध नहीं कर सकता बस अपना बड़प्पन बचाने की कोशिश में लगा रहता है। महिलाओं महिलाओं और सिर्फ महिलाओं के अधिकारों का रोना रोने वाले कब जानेंगे कि पुरुष को भी पीड़ा से गुजरना पड़ता है औ उनकी सुनवाई कहीं नहीं होता., अब समय आ गया है जब लिखा जाए ।
प्रदीप डीएस भट्ट-01032025