सत्य कहने का नहीं, साहस अगर तुममें "प्रदीप"
यूं करो कि हाथ पकड़ी, कलम तत्क्षण तोड़ दो
अनंत समीक्षा
===========
33 पृष्ठों में शब्दों के उठान गिरान, अनंत समीक्षा की कहानी एक बलखाती खाती नदी की तरह पहाड़ो से उतरकर जंगलों और मैदानों में अपना वजूद तलाशती अंतत: सागर से जा मिलती है एक वाक्य या संवाद असरदार है।"समीक्षा भले ही आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से भरी महिला हो लेकिन अनंत की मौजूदगी में समीक्षा को स्त्रीत्व का अहसास होता था"
रियूनियन
=======
एक युनिवर्सिटी में साथ पढ़े फिर अपने अपने काम में मशगूल हो गए कुछ दोस्तों कहानी है जो एक लम्बे अंतराल के बाद मिलते हैं। युनिवर्सिटी में सिर्फ़ पढ़ाई नहीं होते वरन वहां रिश्ते पनपते भी हैं, हदें पार भी करते है। कुछ अटकाव कुछ भटकाव का बोध कराती अच्छी कहानी किन्तु अंत में सस्पेंस जैसा कुछ भी नहीं।
उत्तराधिकार
=========
एक ऐसे गांव की कल्पना जो हमें अधिकतर दक्षिण भारत की फिल्मों में ही देखने को मिलते हैं। कहानी कहीं कहीं विरासत फिल्म के सीन क्रिएट करने की भरकस कोशिश करती नजर आती है।
प्रोफेसर मां के लाल
=============
पूरी कहानी lost & found पर आधारित है। कुछ नाटकीय घटनाक्रम है। कहानी पढ़ते हुए जैसे जैसे पृष्ठ बदलते हैं कहानी का अगला सीन स्वत: सामने आ खड़ा होता है। अब इस तरह की कहानियों पर यदा कदा ही फिल्में बनती हैं। ममता दीक्षित अगर ममता दीक्षित ही हैं तो अनिल दीक्षित अनिल कैडी कैसे हो गए। समझ से परे की बात है।
मां की दिशा
========
एक अच्छी कहानी अगर इसे थोड़ा और शिंक्र कर दिया जाए तो एक अच्छी लघु कथा हो सकती है।
उम्मीदों का चौका
============
एक और उम्दा कहानी। जो लोग हर जगह जेंडर ढूंढते उनके लिए अच्छी नसीहत।
बदल दी तकदीर
===========
अंतिम कहानी में फिर वही जेंडर की असमानता का मुद्दा उठाया गया है। बेटे बेटी में भेद विभेद। अपनी ही लिखी पंक्तियां याद हो आईं।
"जन मानस का ये ही मत है
औरत की दुश्मन औरत है "
प्रदीप डीएस भट्ट 25424