“पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशक और लेखकों का मानदेय”
इससे पहले कि मैं इस विषय में अपने विचार प्रकट करुँ मैं आपके साथ महाभारत की एक घटना साझा करना चाहता हूँ। ईश कृपा से जब वेदव्यास जी ने जब यह जान लिया कि द्वापर के अंत में और कलयुग प्रारम्भ होने से पूर्व एक ऐसा युद्द लडा जाएगा जिसमें अट्ठारह अक्षोणिनी सेना का विनाश होना तय है तब उन्होंने इसे पूर्व में ही कलमबद्ध करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी से आज्ञा ली और निवेदन किया कि आप तीनों लोकों में कोई ऐसा व्यक्ति या देवता बतावें जो इसे कलबद्ध करने में सहायक हो तब ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान विष्णु जी के पास जाने का अनुरोध किया । वेदव्यास जी भगवान विष्णु के पास गये और उन्हें अपनी समस्या बताई साथ ही निवेदन किया कि वे इस पुनीत कार्य में उनकी सहायता करें। भगवान विष्णु ने कहा हे! वेदव्यास मेरी दृष्टी में एक मात्र गणेश ही ऐसा है जो यह कार्य अविरल गति से कर सकता है अतएव आप देवाधिदेव भगवान शंकर के पास जाएँ एवम उनसे गणेश जी को इस पूनीत कार्य के लिए माँग लें। वेदव्यास जी तुरंत भगवान शंकर के पास पहुँचे और लेखन कार्य के लिए गणेश जी की सहायता का अनुरोध किया। शंकर जी ने कहा ठीक है किंतु आप स्वंय गणेश से ही इस विषय में अनुरोध करें वो आपकी बात भी कदापि न टालेगें। तुरंत गणेश जी को बुलाया गया, वेदव्यास जी ने उनसे महाभारत काव्य के लेखन का भार वहन करने का अनुरोध किया। गणेश जी ने कहा मुझे कोई आपत्ति नही किंतु एक अनुरोध है कि मेरी कलम एक बार लिखने के लिए उठी तो वह लगातार लिखेगी अतएव आप इस बात का ध्यान रक्खें कि मेरी कलम रुकने न पाए, अगर रुकी तो मैं तुरंत ही कार्य मध्य में ही छोड दूँगा। वेदव्यास जी भी तुरंत ही समझ गये कि गणेश कार्य बंधन में बंधने के इच्छुक नही है इसलिए वे इस प्रकार का व्यव्हार कर रहे हैं। वेदव्यास जी ने गणेश जी से कहा मुझे आपका प्रस्ताव स्वीकार है किंतु मेरा भी एक अनुरोध है कि जब तक आपको मेरे श्लोक का अर्थ स्पष्ट न हो आप उसे कलम बद्ध न करें। गणेश जी ने इस पर अपनी सहमति दे दी। जब लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ तो वेदव्यास जी ऐसे श्लोकों की रचना करते जिनका अर्थ समझने में गणेश जी को अधिक समय लग जाता और उस दौरान वेदव्यास जी अगले कई शोलोकों की रचना कर लेते थे।
• भारत में 31 मार्च 2014 तक कुल 99,660 अखबार और पत्रिकाओं का रजिस्ट्रेशन हुआ है। इनमें 13,761 अखबार और 85,899 पत्रिकाएं हैं। सबसे ज्यादा अखबार और मैगजीन हिन्दी में छपते हैं। हिन्दी में कुल 40,159 अखबार-मैगजीन हैं।
• भारत का पहला न्यूज पेपर 'द बंगाल गैजेट' 29 जनवरी 1780 को जेम्स अगस्टस हिक्की द्वारा प्रकाशित किया गया था. इसे 'कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर' भी कहा जाता था और लोग इसे 'हिक्की गेज़ेट ' के रूप में याद रखते थे।
कलयुग से तात्पर्य मशीनों के युग से है। आज भी कमोबेश वही स्थिति है। लोग बिना सोचे समझे बस लिखे जा रहे हैं क्यों कि उनको लिखना है, छपना है और खपना भी है। कम लिखो किंतु अच्छा लिखो कोई नहीं कहता बस लिखो, छपो, और और इस अंधी दौड में खप जाओ। लेखन की स्थिति यह है कि एक से बढकर एक पत्रिकाएँ बंद हो गई है और तो जाने दीजिए लब्ध प्रतिष्टित “ गीता प्रेस,गोरखपुर भी बंद हो गई है। आजकल जिधर भी देखिए कुकरमुत्ते की तरह प्रकाशक उभर आएँ हैं और ऐसा इसलिए कि लोग छ्पना चाहते हैं इसलिए उनका काम सिर्फ इतना ही है कि वे टैकस्ट बुक की तरह किताबें छापें बिना यह जाने कि ये छपने योग्य हैं भी या नहीं। प्रकाशक को पैसा चाहिए और छपने वाले को वाह वाही। ऐसी स्थिति में गुणवत्ता की बात करना ही बेईमानी है । इनसे भी बुरा हाल उन समाचार पत्रो का है जो दो चार पंक्तियों की कविता के साथ कवि को फोटो छाप रहे हैं। उन्हें ये मालूम ही नही कि इनसे उनकी साख दिन प्रतिदिन और नीचे गिर रही है। क्यों कि ऐसे प्रकाशक कवि वगैरह कुछ भी नही हैं न ही उन्हें कविता का क आता है सिर्फ और सिर्फ व्यापार। उनकी भी मजबूरी है पत्रि पत्रिकाएँ या न्यूज़ पेपर चलाए रखने की तो लेखकों को मानदेय कौन देगा और कहाँ से देगा। अब तो धीरे धीरे स्थिति ये आ गई है कि पत्र पत्रिकाओं में या समाचार पत्रों में छपने के लिए प्रकाशक उल्टे लेखकों से मानदेय लेगा। अब ऐसी स्थिति में आप साहित्य की बडी बडी बातें तो भूल ही जाइये।