Friday, 6 December 2019

-निर्भया से लेकर दिशा (प्रियंका) कविता और उन्नाव की उस अनाम लड्की तक-



-प्रदीप की कलम से-


-निर्भया से लेकर दिशा (प्रियंका) कविता और उन्नाव की उस अनाम लड्की तक-


बार बार एक ही लाईन हम इस अपराध की कडी निंदा करते हैं। अपराधी बख्शे नहीं जाएगें किंतु स्थिति जस की तस। एक घटना तभी तक सुर्खियाँ बटोरती है जब तक कोई इससे बडी दूसरी घटना उसका स्थान लेने के लिए आ धमकती। और फिर उस पहली घटना को लोग इतनी जल्दी भूलने लगते हैं जैसे वे कल क्या खाया था इसको याद नहीं रखना चाहते। कोई मेरी बात से सहमत हो या ना हो किंतु ज्यादातर इसी मानसिकता से ग्रसित हैं। घटनाएँ एक सी हैं बस लड्कियों के नाम और शहर के नाम अलग अलग और कई बार तो एक ही शहर में ऐसी कई घटनाएँ हो जाती हैं और ज्यादातर मामलों में पोलिस पर सवालों जवाबों के चौक्को छक्को की बरसात होती रहती है। ज्यादातर मामलों में पोलिस ही सवालों के घेरे में होती है किंतू कुछ मामलों में पोलिस भी जब अच्छा काम करती है तो वही चौक्के छक्के फूलों की बरसात में भी तब्दिल होते देखे गये हैं। निश्चित उन कामों को करते हुए पोलिस समाजिक दबावों को राजनैतिक दबावों पर तरजीह देती होगी। आप माने ना माने किंतु पोलिस भी आखिर हम और आप जैसी ही है। हमारे ही सामाजिक ताने बाने का हिस्सा है। ज्यादातर मामलो में नीचे ही रहता है किंतु कुछ मामलों में जो उपर होता है वह एक झटके में इतना ऊपर हो जाता है कि अगले पिछ्ले सब रिकार्ड धवस्त कर देता है। हैदराबाद का दिशा केस कुछ उन्ही चुनौतियों पर खरा उतरता है। दो तीन घटनाएँ याद आ रही हैं जिन्हें लिखने का ये सही समय है।

2015 में मिज़ोरम में सैय्यद फरीद खान ने एक नागा लड्की के साथ बलात्कार किया था, पोलिस ने उसे दिमापुर सेंट्रल जेल में डाल दिया। वो भी वहाँ बिरयानी खाता रहता किंतु वहाँ के जागरुक नागरिकों की दस हजार की भीड ने उसे जेल से छुडवाया, पहले तबियत से पिटाई, धुलाई रंगाइ और नलाई की फिर नंगा किया और एक खंबे से बांधकर जिंदा जला दिया। ये घटना एक नज़ीर बन गई और उसके बाद फिर कभी मिज़ोरम में बलात्कार की घट्ना प्रकाश में नही आई।

इसी प्रकार नागपुर का पप्पू यादव केस याद है। सरे आम लड्कियों को छेडना उन पर फब्तियाँ कसना और शायद कुछ का उसने बलात्कार भी किया हो। नागपुर शहर के लोगो ने पोलिस और प्रशासन से कितनी बार गुहार लगाई किंतु पोलिस और प्रशासन के रुखे रवैये से तंग आकर वहाँ की महिलाओं ने स्वँय ही उसे सबक सिखाने का फैसला किया और एक दिन जब वह एक लडकी का पीछा करता हुआ उस मौहल्ले तक आ गया और फिर उस मौहल्ले की सब महिलाओं ने उसे इतना कूटा कि उसका वहीं पर हैप्पी बर्ड डे हो गया|

इसी कडी में उत्तर प्रदेश के रामपुर या बरेली की भी एक घटना स्मरण हो रही है जब इंस्पैक्टर शर्मा बलात्कार के आरोपी को पकडने गये तो वहाँ उसकी गिरफ्तारी का विरोध हुआ और पत्थरबाजी हुई अलग से। स्थिति बिगड्ते देख इंस्पैक्टर शर्मा ने आरोपी को गोली मारकर घायल कर दिया किंतु मीडिया में ये खबर वायरल हो गई कि एक बलात्कारी को एक इंस्पैक्टर ने सरेआम गोली मारी।

ये निश्चित है कि इस प्रकार के तुरत फुरत इंसाफ वाहवाही बटोरने की दृष्टी से उचित लगते हैं किंतु ये घटनाँ नज़ीर बिलकुल भी नहीं बननी चाहिए अन्यथा समाज में गलत संदेश जाएगा। हम कोई अरब देश नहीं है जो चोरी करने पर हाथ काटने की सज़ा देंगें या बुर्का ना पहनने या एक औरत के घर से अकेले बाज़ार निकलने पर सरे आम उसे गोलियों से भून देंगें। ये एक सभ्य समाज की पहचान तो नहीं हो सकती किंतु ये बात भी गौर करने वाली है कि लोग लोकतंत्र को मज़ाक ना समझे। “यथा राजा तथा प्रजा” आव्श्यक्ता है राजनैतिक एवम कोर्पोरेट (धन्ना सेठों) लोगों को अपने गिरेबाँ में झाँकने की। क्यों कि ज्यादातर केस में यही लोग स्वंय या इनकी औलादें इन सब में शामिल होती है और जब आंच आती है तो ये अपनी सो काल्ड इज़्ज़त की खातिर किसी भी हद तक गिर जाते हैं।और इस काम में इनका साथ देते हैं नेता और कभी खुशी से कभी दबाव में पोलिस ।

अंत में एक बेताल प्रश्न यह भी रह गया कि 28.11.2019 के बाद 29.11.2019 को एक शादी शुदा औरत का जला हुआ शव भी हैदराबाद में बरामद हुआ था प्रियंका को इंसाफ की पुकार में उस गरीब औरत के विषय में ना तो हैदराबाद जनता को कुछ याद है और ना ही अन्य को। उन्नाव की घटना की मार्मिक कहानी ये है कि बलात्कार के बाद आरोपियों को पोलिस से पकडा किंतु वे जमानत पर बाहर आ गए और कल ये वीभत्व कृत्य किया। लोग हतप्रभ है कि कैसे एक व्यक्ति ने पोलिस को सूचना दी और उस जलती हुई लडकी ने एक किलोमीटर तक चलती रही और उसी ने पोलिस को उस व्यक्ति के मोबाइल से सूचना दी। हो हल्ला होने पर पहले उन्नाव से लखनऊ फिर ऐअर एम्बुलेंस से देल्ही। अब हम सभी को गम्भीरता से सोचना होगा कि आखिर हम समाज के लोग किस तरफ जा रहे हैं।

                              -प्रदीप देवीशरण भट्ट- 06.12.2019, हैदराबाद-

Monday, 4 November 2019

- देल्ही चलो या देल्ही छोडो-





- देल्ही चलो या  देल्ही छोडो-
हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी देल्ही में हवा के प्रदुषण  पर ही चर्चा हो रही है। कुछ नही बदला है अगर कुछ बदला है तो वायु प्रदुष्ण का इंडेक्स वो भी बहुत मामूली स्तर पर्। मैं प्रदुषण कम की बात नही कर रहा हूँ वरन इंडेक्स में बढोत्तरी की बात कर रहा हूँ कि पिछ्ले वर्ष की बनिस्पत इस वर्ष इसमें कितनी बढोत्तरी रही। देल्ही एन सी आर हर वर्ष नये रिकार्ड बनाने पर तुला है और हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी सभी प्रकार के मीडिया ने अपना अपना मुँह “दीपावली” पर्व की ओर मोड दिया है और शुरु हो गई है अन्नत बहस जिसका इस वायु प्रदूषण से कोई लेना देना नहीं है। सनातन धर्म के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम जब चौदह वर्ष का वनवास काट्कर अयोध्या लौटे तो अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत में उत्सव का आयोजन किया एवम दीप प्रज्ज्वलित कर, आसमान में रंग बिरंगी आतिशबाजी कर अपने अराध्य श्रीराम का स्वागत किया। यह एक परम्परा है जिसका पालन हम आज भी कर रहे हैं ।

ये भी सर्व विदित है कि शरद पूर्णिमा के पश्चात एव्म दीपावली के दिन से शरद ऋतु का पूरी तरह आगमन हो जाता है चूँकि वर्षा ऋतु  से शरद ऋतु के मध्य बद्लाव आता है अतएव विभिन्न प्रकार के कीट पतंगे इस दौरान पैदा होते हैं जो स्वास्थ्य को हाँनि पहुँचाते हैं । अब एक दिन की आतिशबाजी से कितना वायु प्रदुषण फैलता है? चलिए माना कुछ फैलता है तो बारुद की गंध से स्वास्थ्य को हाँनि पहुँचाने वाले कितने प्रकार के कीट पतंगे उस एक दिन में मरते हैं। और अगर मैं एक दिन पूर्व या पश्चात भी मानुँ तो कितने दिन वायु प्रदुष्ण फैलेगा ? इन दिनों में कुछ दिमाग से पैदल नेतागण, कुछ मीडिया संस्थान जानबूझ कर दीपावली पर्व को टार्गेट करते हैं किंतु अन्य धर्मो के पर्वो में मुँह में दही जमा लेते हैं। गज़ब है इनका दोगलापन?

देल्ही या अन्य शहरों में वायु प्रदुष्ण किस खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है या जाता है तभी सारे मिलकर शोर मचाना शुरु करते हैं। केमिकल से देल्ही की यमुना नदी भी बैंगालुरू झीलों की तरह ही झाग छोडने लगी है ऐसा क्यूँ हो रहा है कोई शोर नहीं कोई सम्वाद नहीं। और चूँकि अगले वर्ष देल्ही में चुनाव है अतएव हर राजनैतिक पार्टी ऐसा कोई भी विषय नहीं छोडना नहीं चाहती जिससे उसे वोटों में फायदा पहुँचता दिखता हो। आखिर जिन वोटों की खातिर ये राजनैतिक पार्टियाँ लडने मरने को तैयार दिखती हैं सत्ता प्राप्त होते ही उन्हीं वोटरों को एक तीसरी या चौथी श्रेणी के दास से अधिक नहीं समझती।  अब चलिए थोडी सी जानकारी भी साझा कर लेते हैं।

क्या आप जानते हैं वायु प्रदुषण के कारण हर वर्ष सिर्फ देल्ही में ही 80 मौतें होती हैं एवम पूरे विश्व में 42000 । भारत में कुल 06 मेट्रो सिटी हैं जिनमें मुम्बई (आबादी लगभग 1.5 करोड),कोलकता (आबादी लगभग 2 करोड ,चेन्नई (आबादी लगभग 70 लाख , बैंगालुरू(आबादी लगभग 80 लाख)  और हैदराबाद (60 लाख  और इनमें लगभग 80-90 लाख वाहन हैं। और अंत में देल्ही जिसकी आबादी लगभग 2.5 करोड और आपको जानकर आश्चर्य होगा अकेले देल्ही में 1 करोड से ज्यादा रजिस्टर्ड वाहन हैं और उनमें से 70 प्रतिशत दो पहिया वाहन। बाहर से आने वाले वाहनों का बोझ देल्ही पर अलग पडता है ये तब है जब देल्ही में मेट्रो ट्रेन भी है। इसके अतिरिक्त कितने जैनरेटर, इंवर्टर हैं इसकी कोई गिनती नही है। छोटे मोटे और बडे भी ऐसे कितने उद्योग धंधे चल रहे हैं जो कि अंधाधुंध प्रदुष्ण फैलाए जा रहे हैं किंतु इनकी रोकथाम की किसको फिक्र है। बस पंजाब और हरियाणा में किसान पराली जला रहे हैं उन पर ठिकरा फोड कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। क्य्हों नहीं चायना की तरह मानक से ज्यादा प्रदुष्ण फैलाने वाले सटील प्लांट बंद कर दिये जाते और जो नही माने तो भारी भरकम जुर्माना लगाया जाए ताकि औरों को भी सबक मिले। ये कह देना कि वो देल्ही वासी जो सिगरेट नहीं पीता वो भी इस प्रदुष्ण के कारण एक दिन में 20 सिगरेट पी लेता है ।ये क्यूँ नही बताते कि बच्चे भी इससे कितने प्रभावित हो रहे हैं और इसके लिए हम (देल्ही की सरकार ) जिम्मेदार है। लेकिन साहब ये कहने की हिम्मत कौन करेगा। शायद  कोई नहीं।  हमें अपनी मदद खुद ही करनी पडेगी।

                                                                                    -प्रदीप देवीशरण भट्ट-  

Monday, 2 September 2019

"गणेश चतुर्थी सिर्फ़ उत्सव नहीं वरन स्वतंत्रता प्राप्ति क़ा अजेय अस्त्र भी"






            "गणेश चतुर्थी सिर्फ़ उत्सव नहीं वरन 
            स्वतंत्रता प्राप्ति क़ा अजेय अस्त्र भी"

"गणेश चतुर्थी सिर्फ़ उत्सव नहीं वरन स्वतंत्रता प्राप्ति क़ा अजेय अस्त्र भी"

जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत काव्य लिखने क़ा निर्णय किया तो उसे निर्बाध गति से लिखने हेतु वेदव्यास जी ने त्रिमूर्ति (ब्रह्मा विष्णु महेश) से किसी सुपात्र को यह दायित्व देने की प्रार्थना की तब त्रिमूर्ति की आज्ञा से भगवान गणेश ने इस कार्य हेतु अपनी सहमति दी किंतु एक शर्त रक्खी कि मेरी क़लम रुकनी नहीं चाहिए अन्यथा मैं कार्य छोड़ दूंगा, तब महर्षि वेदव्यास ने भी एक शर्त रक्खी कि जब तक गणेश श्लोक की विवेचना कर अर्थ ना समझ लें तब तक वे उसे लिखेंगे नहीं।

महाभारत जैसे महाकाव्य को लिखने हेतु भगवान गणेश जी ने भगवान परशुराम जी से हुए युद्ध के दौरन उनके फरसे के प्रहार से टुटे हुए एक दाँत को कलम के रुप में प्रयुक्त किया। तभी से भगवान गणेश को एकदंत कहा जाने लगा। जब लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ तो वेदव्यास जी ऐसे श्लोकों की रचना करते जिन्हें समझने और विवेचना करने में गणेश जी बहुत समय लगता और वेदव्यास तब तक आगे के श्लोकों क़ा निर्माण कर लेते।  

आइए अब भगवान गणेश के उत्सव की करते हैं जो की गणेश चतुर्थी सो प्रारम्भ होकर दस दिनों तक चलता रहता है। लोग अपनी श्रद्दा अनुसार ढाई दिन पाँच दिन सात दिन या फिर पूरे दस दिनों के लिए  श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना अपने घरों में करते हैं। इस उत्सव को शुरु करने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को जाता है जिनका जन्म 23 जुलाई-1856 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के  एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। 16 वर्ष की आयु में उनके पिता का साया उनके सर से उठ गया तत्पश्चात ही उन्होंने अपनी हाई स्कूल की परिक्षा उत्तीर्ण की। अपने मित्र अगरकर के साथ मिलकर उन्होंने  ये  निश्चय किया कि देश को स्वत्ंत्र कराने हेतु कुछ अभिष्ठ कार्य किया जाए। तब उन्होंने निश्चय किया कि वे जीवन पर्यंत सरकारी नौकरी नहीं करेगें। तिलक जी ने लेखक, राजनेता, स्वतंत्रता सैनानी, समाज सुधारक, शिक्षक, वकील इन  सभी  क्षेत्रों में बडे लगन के साथ कार्य किया। उनके द्वारा बडे पैमाने पर किया जा रहे सामाजिक कार्यो के कारण ही उन्हें लोकमान्य की उपाधि से विभूषित किया गया।
   
1916 में जिन्ना के साथ मिलकर होम रूल लीग कीकी स्थापना की एवम लखनऊ में इसकी बैठक कर आजादी की लडाई में हिंदू एवम मुस्लिमों की सहभागिता सुनिश्चित की। इसी क्र्म में अंग्रेजों द्वारा चलाए जा रहे दमनात्मक कार्यो का विरोध करने के लिए तिलक ने गणेश चतुर्थी को चुना एवम लोगों से आवाहन किया कि वे अपनी एकता दर्शाने ने लिए इसे त्यौहार के रुप में वृहत स्तर पर मनाएं ताकि अंग्रेजो को भारतियों की शक्ति का अंदाजा हो।तिलक जी ने देशभक्ति के साथ सामाजिक सरोकारों के साथ भी भारतियों को जोडने का कार्य किया। उन्होंने गणेश पूजन को एक जन आंदोलन बना दिया. उन्होंने एक प्रसिद्ध नारा दिया स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं और मैं इसे पा कर रहूँगावर्तमान में ये पर्व सिर्फ़ महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश तेलागंना तक सीमित नहीं है वरन संपूर्ण भारत वर्ष में उल्लास के साथ मनाया जाता है ।
जैसे जैसे इस पर्व की मान्यता बढती गई वैसे वैसे लोगो में इसके प्रति रुचि पैदा होती गई। वैसे भी भारतीय सनातनी परम्परा में पूजन चाहे किसी भी देवता का किया जाए किंतु प्रथम पूजन भगवान गणेश का ही किया जाता है, शादी विवाह के मौके पर तो विशेष रुप से। आज जब विश्व पर्यावरन की चुनौतियों से दो चार हो रहा है तो इस महान उत्सव में श्री ग़णेश की प्रतिमाएं भी प्लास्टर औफ पेरिस के स्थान पर खालिस मिट्टी की कहीं कहीं फल सब्जियों की नारियल की बनाई जा रही हैं जो कि भारत के लोगों के पर्यावरण को लेकर दृष्टिकोण को दर्शाता है। इसी क्र्म में लोग अब इस बात पर भी ध्यान देने लगे हैं कि गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन से नदी या समुद्र प्रदुषित ना हों इस विषय में पहली बार भारत की राजधानी देल्ही में नये प्रयोग के तौर पर 128 कत्रिम तालाबों का निर्माण किया गया है ताकि लोग गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन यमुना नदी के स्थान पर इन तालाबों में करें। निश्चित रुप से देल्ही सरकार के इस प्रयास की प्रशंसा की जानी चाहिए।

                                                 
                                                  -प्रदीप देवीशरण भट्ट- 03.09.2019

Thursday, 8 August 2019

हैदराबाद की चिनम्म्म












“जनता जनार्दन की मंत्री”
कृष्ण भक्त, प्रखर वक्ता और हैदराबाद की चिनम्म्म
(भूतो ना भविष्यते}


यूं तो भारत में कई राजनेता रहे हैं जिनका व्यक्तित्व  किसी परिचय का मोहताज नही रहा किंतु उनमें से कितने ऐसे हैं जिन्होनें अपनी ओजस्वनी वाणी से राष्ट्रीय ही नही वरन अंतर्रष्ट्रीय स्तर पर अपने सम्बोधन से समां बांध दिया हो। निश्चित रुप से गिने चुने ही ऐसे प्रखर वक्ता हुए हैं जिनमें स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपई का नाम सवर्ण अक्षरों में अंकित है, स्वर्गीय इंदिरा गांधी दूसरे नम्बर पर और तीसरे नम्बर पर निश्चित स्वर्गीय  सुषमा स्वराज्। यहां मैं नरेंद्र दामोदर मोदी जो कि भारत के प्रधान् मंत्री हैं का नाम इसलिए नही लेना चाहूँगा कि क्यों कि ये लेख सुषमा जी के विषय में लिखा जा रहा है और नरेंद्र दामोदर मोदी ने जो स्वयं के लिए जो मानक स्थापित किये हैं वे कई मर्तबा उनसे भी आगे चले जाते हैं।

कुछ लोग सुषमा जी को महिला राजनेताओं में सर्व श्रेष्ठ मानते हैं मेरी दृष्टी में ये उचित नही है क्यों कि राजनेता सिर्फ राजनेता होता है उसे हम किसी जेन्डर में नही विभक्त नही किया जा सकत। वैसे भी ये उचित नही है क्यों कि महिला हो या पुरुष वो प्रांत या राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है ना कि  किसी खास जेंडर का। ऐसा करने से हम स्वयं ही स्त्री पुरुष में भेद भाव कर रहे हैं जिससे समाज में वैमस्यता ही बढेगी जिससे सभी को बचा जाना चाहिए।

          जब हम विदेश मंत्रियों की बात करते हैं तो हमे सरदार स्वर्ण सिंह (इनके प्रखर वक्ता होने के कोई सबूत नही हैं) स्वर्गीय  अटल बिहारी बाजपाई जिन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में दिये गये ओजस्वी भाषण के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। भारतवर्ष की संसद में और रैलियों में उनकी ओजस्वी वाणी सुनने के लिए लोग दूर दूर से चलकर आते थे फिर चाहे वो उत्तर भारत का कोई प्रदेश हो या सुदुर दक्षिण का कोई सुदूर इलाका, उनके चाहेने वाले हर जगह मौजूद थे। इसी प्रकार स्वर्गीय  इंदिरा गांधी के भाषण तार्किकता से लिए हुए और ओजस्वी होते थे फिर वो देश में हों य विदेश में किंतु स्वर्गीय  सुषमा स्वराज्  इन सब से भी अलग् ही नज़र आती थीं । उसका कारण शायद उनका आध्यात्मिक होना भी है। वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम से प्रभावित रहीं वहीं वे परम कृष्ण भक्त थीं इसी कारण उन्होने अपनी एक मात्र संतान जो कि लडकी है का नाम बांसुरी रखा। ये उनके कृष्ण के प्रति उनके प्रेम और भक्ति को दर्शाता है।

          पांच वर्ष के विदेष मंत्री के अपने कार्यकाल में सुषमा स्वराज् जी ने जो लोगों से अपनत्व पाया उसे पाने के लिए लोग तरसते हैं। सही मायनों में उन्होने सोशल मिडीया का सही इस्तेमाल कहाँ और कैसे किया जाता है ये कई मंत्रालयों के मंत्रियों और अधिकारियों और अपने धुर विरोधियों को भी सिखाया कि कैसे एक ट्वीट पर तुरंत कार्यवाही की जा सकती है या की जानी चाहिए। गीता जो कि एक मूक बधिर बच्ची 20 वर्ष पूर्व गलती से भारत पाकिस्तान की सीमा क्रोस कर जाती है या, जर्मनी में अपना सामान चोरी होने पर मार्था सिर्फ ट्वीट पर अपनी समस्या बताती है और सुषमा जी तुरंत उससे उसका मोबाइल नम्बर लेकर कुछ ही देर में उसकी समस्या का समधान करने के लिए जर्मनी स्थित अधिकारियों को दौडा देती हैं। हामिद जिसे सात वर्ष पुर्व पाकिस्तान ने जासूसी के आरोप में जेल में डाल दिया था उनकी माँ की फरियाद पर तुरत फुरत कार्यवाही करते हुए पाकिस्तान को भी विवश कर दिया कि हमीद को छोड दे। इसी प्रकार हैदराबाद की जैनब बी जिन्हे सउदी अरब में अतयधिक परेशानियों का सामना करना पड रहा था सुषमा जी ने तुरंत कार्यवाही करके उन्हे सकुशल हैदराबाद पहुंचाने में मदद की।

याद करने बैठेगें तो ऐसे सैकडो प्रकरण निकल आयेगें जहाँ सुषमा जी की सह्रदयता के कारण कुछ उन्हें माँ, कुछ अपनी छोटी या बहन कहते हैं। जाधव केस के सिलसिले में महाराष्ट्र स्थित जाधव के परिवार को पूरा भरोसा  दिया कि वे इस बात को सुनिश्कित करेगीं की जाधव के मामले में पाकिस्तान कुछ उल्टा सीधा करने का कुत्सित प्रयास ना करे। उन्होने ही भारत के नामचीन वकील हरीश साल्वे से व्यक्तित्गत बात करके उनहे ये केस भारत की ओर से अंतर्राष्ट्रीय अदालत में लड्ने के कहा और हरीश साल्वे ने भी स्थिति की गम्भीरत्ता को ना केवल समझा बलिक मात्र एक रुपये की फीस में ये केस लडने का फैसला किया । यहाँ बात पैसे की नही देश के समान की थी। उडी अटैक के बाद संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में दिये गये उनके भाषण ने पाकिस्तान को नंगा करके रख दिया था। भाषण के बाद करतल धवनी से उनका सम्मान कौन भूल सकता है।

राजनेता होते हुए भी उन्होने अपने परिवार की जिम्मेदारी से कभी भी विमुख होने का प्राअस नही किया वरन एक अच्छी पत्नि एक अच्ची माँ होने का फर्ज़ उन्होने बखूबी निभाया जिस कारण उन्हे लिम्का बुक औफ रिकाड में सुखी दम्पती के तौर पर दर्ज  किया गया। व्यक्तिगत हो राजनैतिक या पारिवारिक वे हर मोर्चे पर फतह पाने में कामयाब रहीं । उन्होने राजनितिक जीवन में भी व्यक्तिगत सम्बंध बानाए। वसुंधरा राजे जहाँ उन्हे अपनी बडी बहन व राजनीतिक सलाह्कार मानती हैं वहीं सुमित्रा महाजन अपनी छोटी बहन, लालकृष्ण अड्वानी जहाँ उन्हे अपनी राजनैतिक पुत्री मानती थे वहीं  मुख्तार अब्बास नकवी उन्हें अपनी बडी बहन जिनसे वे हर रक्षा बंधन को राखी बंधवाते थे ऐसे ही उपराष्ट्रपति  एवम ऊपरी सदन के सभापति एम वैक्य्या नायडू को इस बात का मलाल रहेगा कि इस बार सुषमा उन्हें राखी नही बांधेगी इसी दुख से और भी कई नेता दुखी हैं जिन्हें सुषमा जी उन्हें हर वर्ष रक्षा बंधन पर राखी बांधा करती थी। निश्चित ही ये एक अपूर्णीय क्षती है जिसे शब्दों में बयान नही किया जा सकता।

परमपिता परमेश्वर उनकी आत्मा को मोक्ष प्रदान करे।


-प्रदीप देवीशरण भट्ट-08.08.2019

            

Wednesday, 15 May 2019

टाइम मैगजीन की गलत टाइमिंग




Pradeep Devisharan Bhatt:



-Time Magzine की गलत Timing-

आजकल जिसे देखो लोकसभा चुनाव -2019 फेसबुक, ट्विटर एवं  व्हाट्सएप पर अपना ज्ञान बघारने में लगा हुअा है। कोई मोदी का फ़ैन है तो  कोई कॉंग्रेस का (राहुल का कोई फ़ैन नहीं है, अन्य दलों की तो बात ही छोड़ो) सब लगे हुए हैं नेकी औऱ बदी का हिसाब क़िताब करने। ऐसा प्रतीत होता है जैसे 3 जून क़ो सरकार बनने पर उन्हें विज्ञान भवन के अशोक हाल में उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए सम्मानित किया जाएगा। जब कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। लोग भूल जाते हैं कि बारातियों की आवभगत द्वारचार तक ही होती है। उसके बाद ख़ाना खाईये औऱ घर क़ो सरकिये। यही हाल रिश्तेदारों का भी होता है । उनकी देखभाल लड़की की विदाई तक औऱ परिवार की मिजाज पूर्सि एक बरस तक। उसके बाद हम भले और हमारे  दामाद और हमारी लड़की भली । इस सत्य क़ो जिसनें जान लिया पहचान लिया वो सुखी वरना भईय्या होता रह दुःखी ।

अब आते हैं time magzine के कवर पेज की और उस पर लिखी इबारत की  " India divider in chief" जिस पर विपक्ष कपड़े फाड़कर अपनी छाती पीट रहा है कि देखो हम तो पहले ही कहते थे की मोदी देश तोड़ रहा है, मुस्लिमों के विषय में नहीं सोच रहा है, नोटबंदी और gst के कारण देश गर्त में चला गया है देश में असुरक्षा का माहौल है जिस कारण forign निवेशक आगे नहीं आ रहे इसलिए मोड़ी लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद का सहारा ले रहा है एवं फलाना और ढिकाना।

इससे पहले की मैं इस मामले की चीरफाड़ करूं आपा ये जान लें की Time magzine में ये लेख लिखा किसने है ? ये हैं जनाब आतिश तासीर  पत्रकार हैं (आतिश मतलब आग) पाकिस्तान के एक प्रांत के गवर्नर के पुत्र! इनकी जानकरी इतनी अधकचरी है कि इन्हें पत्रकार कहना मुनासिब नहीं होगा औऱ वो भी Time Magzine के लिऐ जिसमें अपने लेख में विश्व के सबसे बडे़ लोकतंत्र के प्रधानमंत्री के विषय में तथ्यहीन जानकारी पेश की। आतिश तो पाकिस्तान से है उसकी भारत के प्रति  कुंठा तो समझ आती है किंतु Time Magzine ने इस लेख को प्रकाशित करके अपनी साख पर ज़रुर बट्टा क्यूँ लगा लिया ये समझ से बाहर है। हम पहले ये जान लें कि Time Magzine में नरेन्द्र मोदी को पहली बार जगह नहीं मिली है। 2014, 2015 एवं 2017 में प्रधानमंत्री मोड़ी को विश्व के 100 सबसे पवरफुल लोगों में से ऐक माना गया है॥
 
 अब बात करते हैं देश के असुरक्षित माहौल की जिससे विदेशी निवेशक घबरा रहे हैं। चूंकि हमारा मुक़ाबला पाकिस्तान से तो कभी था ही नहीं सो हम चीन से तुलना करते हैं। भारत में वर्ष 2015 में FDI से लगभग 45 अरब रुपए आए थे वहीँ 2018 में यही आंकड़ा लगभग 60 अरब में परिवर्तित हो गया। कैसे ? ? ?
भारतवंशियों ने 2017 में कुल 70 अरब रूपए देश में भेजे एवं 2018 में लगभग 80 अरब रुपए भारत में भेजे। जबकि चीनी नागरिकों ने 2017 में 64 अरब रुपए एवम 2018 में लगभग 73अरब रूपए (statics as per world bank report) अब इन छद्म पत्रकार महोदय से कोई ये पूछे की अगर भारत में माहौल सुरक्षित नहीं है तो FDI में इतनी बढ़ोत्तरी कैसे और Indian Daispora (भारत के बाहर जाकर बसने वाले लोग, जिन्हें हम भारतवंशी भी कहते हैं )इसी प्रकार चायनीज डायस्पोर ये विश्व में सबसे ज्य़ादा है॥ क्या ये संभव है कि कोई भारतवंशी अपनी मेहनत की कमाई सिर्फ़ देशप्रेम की खातिर भारत भेजेगा हर्गिज नहीँ जब तक के उसे अच्छा रिटर्न ना मिलै फ़िर forign इन्वेस्टर्स ऐसा रिस्क क्यूं लाएगा। मतलब कि ये लेख सिर्फ़ औऱ सिर्फ़  भारत और एक मजबूत प्रधनमंत्री पर कीचड़ उछालने के लिए प्रकाशित कराया गया है । कौन लोग हैं इसके पिछे ? ?

जिन भी लोगों का ये काम है उन्होने इस कहावत को चरितार्थ ज़रुर किया है कि "हम तो डूबेगें सनम तुमको भी ले डूबेंगे" अन्यथा Time जैसी प्रतिष्ठित magzine की ख़ुद की Timing इतनी ख़राब नहीँ होती। इस लेख के चिथड़े उड़ने तो अभी शुरू ही हुए हैं आगे आगे देखिए होता है क्या। 

Tuesday, 29 January 2019

दादा भाई नौ रोज़ी से राहुल गांधी तक कांग्रेस







दादा भाई नौरोजी से राहुल गांधी तक


1939 में कोंग्रेस द्वारा चर्खे वाले झंडे को अप्नाया गाया जिसे दूसरे विश्व
युध में मुक्त भारत की अंत:कालीन सरकार द्वारा अपनाया गया

कांग्रेस (स्त्रीलिंग)
अर्थ-विचार-विमर्श करनेवाली महासभा।
वास्त्विक्ता:???  ??????


आज भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस् की जो गत बनी हुई है उसे देखकर  निश्चित ही दिल को तक्लीफ  होती है । 28 दिसम्बर-1885 को ए ओ हयूम जो कि एक रिटयर्ड ब्रिटिश अधिकारी थे, दादाभाई नौरोजी एवम दिंशा वाचा ने 65 व्यक्तियो के साथ मिल्कर भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस्  स्थापना की निश्चित रुप से उस समय उन महान हस्तियो का उद्देश्य ब्रिटिश राज से भारत की मुक्ति रहा होगा 1947 में जब भारत को स्व्तंतत्रा प्राप्त हुई तब तक ये पार्टी अपने उद्देश्य से तनिक भी भट्की नही अपितु स्व्तंत्राता प्राप्ति तक सबको साथ लेकर चलती रही किंतु 1950 आते आते ये पार्टी अपने उद्देश्यो से भटक्ना प्रारम्भ हो चुकी थी 1948 में काश्मीर में काबलियो का आक्र्मण हो या 1962 में चीन जैसे सोश्लिस्ट देश पर अत्यधिक विश्वास करना हो जिसकी परीणिति भारत की युध में  पराजय के रुप में सामने आयी जैसा कि बताया जाता है कि उस समय के प्रधान्मंत्री जवाहर लाल नेहरु सिर्फ अपनी ही सुनते थे उनके निर्णय ही अंतिम होते थे जिस कारण देश को काफी बार बडे नुकसनो से दो चार होना पडाकिंतु सत्य कह्ने का साहस कौन जुटाए सरदार वल्लभ भाई पटेल जो  उन्हे सत्य से रुबरु करा सकते थे को ऐसे जटिल कार्यो में लगा दिया गया जिससे वो इस  ओर ध्यान ही नही दे पाए  आइए आगे  किसी चलने से पूर्व कोंग्रेस् के अभी तक हुए प्रेसिडेंट्स पर नज़र दौडा लेते हैं ताकि पता तो चले कि इस पार्टी में कितनी  महान विभूतिया  रही हैं:-

क्रम संख्या
नाम
समय काल
रिमार्क
1.
उमेश चंद्र बनर्जी
1885,1892

2.
दादभाई नौरोजी
18861886,1893,1906

3.
बदरुद्दीन तैय्य्ब जी
1887

4.
जोर्ज यूल
1888

5.
विल्लियम वेडंवर्ड
1889,1910

6.
फिरोज़  शाह मेह्ता
1890

7.
आन्न्द चर्लू
1891

8.
अल्फ्रेड वेव
1894

9.
सुरेंद्र  नाथ बनर्जी
1895,1902

10.
रह्मततूल्ला
1896

11.
सी शंकर नाराय्न
1897

12.
आन्न्द मोहन बोस
1898

13.
रमेश चंद्र दत्त
1899

14.
नारायण गणेश चंद्रवर्कर
1900

15.
दिनशा वाचा
1901

16.
लाल मोहन घोष
1903

17.
हेंनरी काट्न
1904

18.
गोपल  क्रिषण गोख्ले
1905

19.
रास बिहरी घोष
1907,1908

20.
मदन मोहन माल्वीय
1909,1918,1932

21.
बिशन नारायण  धर
1911

22.
रघुनथ  नरसिंह मुधोलकर
1912

23.
नवब सैय्य्द मुह्म्म्द बहदुर
1913

24.
भुपेंद्र दास बोस
1914

25.
सतेंद्र प्रसन्नसिन्हा
1915

26.
अम्बिका चरण मजूम्दर
1916

27.
एनि बेसंट
1917

28.
सैय्य्द हसन इमाम
1918
बम्बई विषेश सत्र
29.
मोती लाल नेहरु
1919,1928

30.
लाला लाजपत राय
1920
कलकत्ता षेश सत्र
31.
विजय राघवाचर्य
1920

32.
चितरंजन दास
1921,1922

33.
मोहम्म्द अली जौहर
1923

34.
अब्दुल कलम आजद
1923,1940-1946
देल्हि विषेश सत्र
35.
महत्मा  गांधी
1924

36.
सरोजनी नाय्डू
1925

37.
श्रीनिवास आयंगर
1926

38.
मुख्तर अह्मद अंसरी
1927

39.
जवाहर लाल नेहरु
1928-30,1936-37,1951-1954

40.
वल्लभ भाई पटेल
1931

41.
नेली सेन गुप्ता
1933

42.
राजेंद्र प्रसाद
1934,35,1939

43.
सुभष च्न्द्र बोस
1938 ,39

44.
आचार्य क्रिप्लानी
1947

45.
पट्टभि सीता रमैय्या
1948,49

46.
पुरुशोत्तम दास टंडन
1950

47.
उछंग राय नवल शंकर धेबर
1955,1959

48.
इंदिरा गांधी
1959,1978-84
देल्हि विषेश सत्र
49.
नीलम संजीव रेड्डी
1960-63

50.
के काम राज
19641964-67

51.
एस निलिज्गप्पा
1968-69

52.
जगजीवन राम
1970-71

53.
शंकर दयाल शर्मा
1972-74

54.
देवकांत बरुआ
1975-77

55.
राजीव  गांधी
1985-91

56.
पी वी नर सिंह राव
1992-96

57.
सीताराम केसरी
1996-98

58.
सोनिया गांधी
1998-2017

59.
राहुल गांधी
2017



उपरोक्त  टेबल से एक बात तो  क्लिर हो गई कि जब इस पार्टी का गटन किया गया था तो पार्टी महत्व्पुर्ण थी किंतु जैसे ही इस पार्टी पर नेहरु की छाया पडी इस पर्टी पर व्यक्ति महव्पुर्ण होते चले गये जिस परम्परा को नेहरु ने 1951-54 ने शुरु किया उसको इंदिरा गांधी ने 1978-84 पाला पोसा जिसे राजीव गांधी ने 1985-91 में और खाद पानी दिया और अति तो तब हो गई जब सीताराम केसरी को कोंग्रेस भवन से बाहर फिंक्वा कर सोनिया गांधी ने 1998-2017 तक इसको गांधी फर्म की तरह चलाया  हद तो तब हो गई जब इस फर्म का मुखिया राहूल गांधी को बना दिया गया जब कि वो अपने अधकचरे ज्ञन के कारण सैक्डो बार हंसी के पात्र बन चुके हैं   आखिर  कोंग्रेस्  अपने जन्म से आज तक गांधी नाम की प्रेत छाया से मुक्ति क्यो नही पा सकी है । आखिर ऐसा किस वजह से है ? क्या सिर्फ गांधी सरनेम ही इतनी  पुरानी पार्टी  को जीवित  रखने का एक मात्र जरिया बचा है निश्चित रुप से विश्व परिद्रिष्य पर इतनी पुरानी पार्टी का सूरज इस तरह अस्त हो रहा है और इसके सिनिय्र्र नेतगण अभी भी नही चेत रहे हैं वे अभी भी किसी चमत्कार की उम्मीद में सिर झुकाए बैठे हुए हैं

और लीजीए चमत्कार भी हो गया यानि राहूल गांधी ने कल ही अपनी छोटी बहन प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का महा-सचिव नियुक्त कर दिया  इसका मतलब ? कोंग्रेस् पार्टी किसी भी सूरत में गांधी सर्नेम की प्रेत छाया से बाहर आने को तैय्यार नहीं है अब बडे बडे दावे किये जायेंगे कि प्रियंका गांधी चुंकि अपनी दादी की तरह  दिख्ती है तो लोग अब तो कोंग्रेस को ही वोट देंगे क्यो  कि भारत की जनता तो गांधी परिवार के कर्ज़ के नीचे दबी हुई है, इस परिवार की गुलाम है आदि आदि ये भी अच्छा ही हुआ जो कोंग्रेस ने चुनाव से कुछ दिनो पहले ही ये दांव भी लगा लिया अन्यथा ना जाने अगले चुनाव तक कोंग्रेस किस मुगाल्ते में जीती रह्ती वैसे भी अभी हालिया हुए विधानसभा चुनावो में कोंग्रेस् के भाग्य से छिंका टूटा है और राज्स्थान,मध्य् प्रदेश और छत्तिस्गढ में कोंग्रेस अपनी सर्कार बनाने में कामयाब हो गई है जिसकी खुमारी में उसने उल्टी-उल्टी हरकते कारनी शुरु कर दी हैं जिस्का परिणम उसे लोक्सभा चुनवो में भुगत्ना
पडेगा

-प्रदीप भट्ट-