Saturday, 8 April 2023

एक ख़ूबसूरत दिन की मधुर स्मृतियाँ

रिपोतार्ज़

“ एक खूबसूरत दिन की मधुर स्मृतियाँ”
(इंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया,गच्ची बॉली)

पिछले वर्ष तीन दिवसीय नेपाल-भारत साहित्यिक महोत्सव में सम्मलित होने के लिए मैं 28 अप्रैल-2022 की सांय को को नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुँचा। दिल्ली एअरपोर्ट पर लखनऊ से पधारे पत्रकार व लेखक प्रिय मनीष शुक्ला से भेंट हुई। उन्हीं से ज्ञात हुआ कि सेम फ्लाइट में बिजनौर से गिरिश त्यागी एवम प्रयागराज से डॉक्टर मोहिका महेरोत्रा भी यात्रा कर रही हैं । भारत के विभिन्न प्रदेशों से साहित्यकार इस साहित्यिक यज्ञ में अपनी आहुति देने काठमांडू पहुँच रहे थे। ये पहला अवसर था जब किसी साहित्यिक आयोजन में सम्मलित होने वाले किसी भी साहित्य्कार से मेरा परिचय नहीं था। जो एक मात्र परिचय हुआ वह भी एअर पोर्ट पर मनीष के रुप में। खैर 29,30 31 मार्च को साहित्यिक चर्चाओं में बहुत आनंद आया साथ ही विभिन्न स्थानों की सैर साथ में एक से बढकर एक साहित्यिक विभूतियाँ। प्रदीप बाबू इससे बढिया और क्या चाहिए। इसी आयोजन में साहित्य की धरती बिहार से पधारे कई मित्रों से मुलाकात हुई। डॉक्टर राशि सिन्हा, अजय श्रीवास्तव, नूतन सिन्हा और हाँ विभा रानी श्रीवास्तव (दीदी) उनसे प्रथम मुलाकात में मैंने उन्हें इसी सम्बोधन से सम्बोधित किया। सौम्य सहज और अपनी बात को बडे ही सहज तरीके से रखने की अदभुत कला। चार पाँच दिन कैसे गुजर गये पता ही नही चला था। इस साहित्यिक प्रवास में डॉक्टर राशि की बिटिया अद्रिका कुमार (बबुआ)पहले दिन तो थोडा सकुचाई किंतु अगले दिन से बबुआ मेरी बढिया वाली दोस्त बन गईं।  अब आप सोच रहे होंगे कि इस आयोजन को तो लगभग एक वर्ष हो गया फिर काहे को रिपोतार्ज़ तो भईय्या इस बार ये आयोजन नेपाल के बीरागंज में 17,19 19 मार्च को आयोजित हुआ। कम्पीटेंड ऑथारिटी की स्वीकृति के अभाव में इस बार हम सम्म्लित होने से चुक गये। 

मार्च के प्रथम सप्ताह में अचानक विभा दीदी दूरभाष यंत्र पर दस्तक दी तो हमें सुखद अनुभूति हुई। राम राम शाम शाम के बाद उन्होंने बताया कि वे 25 मार्च को हैदराबाद प्रधार रही हैं साथ ही पूछ भी लिये कि इससे पहले तो हम नेपाल में मिल ही लेंगे लेकिन हम एड्वांस में टिकिट भेजकर बता रहे हैं कि 25,26,27 मार्च को खाली रहियेगा। हम तो खुशम खुश हो गये। इसी बीच उन्होंने बताया कि राशि से भी बात हो गई है (डॉक्टर राशि के पति देव का ट्रांसफर छ: माह पूर हैदराबाद हो गया है) हमने उन्हें आश्वत किया कि आप बेफिक होकर हैदराबाद पधारिये। बातों ही बातों में विभा दि ने बताया कि यहाँ हैदराबाद में कोई मीनाक्षी श्रीवास्तव हैं जो कि कहानियाँ लिखती है उन्होंने अपनी पुस्तक किसी सज्जन के हाथ उन तक पहुँचवाई है। हमने कहा पिछले चार वर्षो से हैदराबाद के साहित्यिक जगत में हमारी पैठ है हम तो इस नाम की महिला को नहीं जानते। खैर जब विभा दीदी ने क्षमा माँगते हुए सो कॉल्ड मीनाक्षी श्रीवास्तव का मोबाइल नम्बर भेजा और बताया कि उनका नाम प्रेमलता श्रीवास्तव है तो हमने बताया हाँ इन्हें तो बहुत अच्छी तरह जानते हैं। चूकि विभा दीदी के पति अरुण ईंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया के कॉन्सिल सदस्य हैं इसी के दो दिवसीय सम्मेलन के लिए वे हैदराबाद पधार रहे थे। डॉक्टर प्रेमलता एबिड्स में रहती हैं और विभा दीदी को खैरताबाद में रुकना था सो अगले शनिवार को डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव से मिलकर हमने कार्यक्रम की पूरी रुपरेखा बनाई और उनके ही घर पर एक गोष्ठी के आयोजन का फैसला किया। 
वित्तीय वर्ष की क्लोज़िंग का समय चल रहा है सो हम भी शनिवार को ऑफिस में थे। लगभग 1 बजे दीदी का फोन आया कि हम हैदराबाद एअरपोर्ट पहुँच गये हैं और गाडी द्वारा नियत स्थान पर पहुँचकर बताते हैं। लगभग 2:30 विभा दीदी ने जो एडरैस हमें व्हाट्सप किया वो खैराताबाद का न होकर गच्चीबॉली का निकला। हम सोच ही रहे थे कि ये क्या हुआ तभी फोन घनघना उठा उधर दीदी थी बताया कि खैरताबाद में कमरे कम होने के कारण सम्मेलन का स्थान बदल दिया गया है। हमने कहा फिकर नॉट दी हम एक घंटे में पहुँच रहे हैं। तुरंत सुहास भटनागर को फोन मिलाया उन्होंने कहा आधे घंटे में पहुँचते हैं। हैदराबाद की तेज धूप में सुहास जी हमारे यूसुफगुडा का पता भूल गये और मुड गये दूसरी तरफ अब किसे देखकर किसके पीछे मुडे ये बात यहीं छोड देते हैं ( कदि हँस भी लिया करो बादशाहो) सवा तीन पहुँचे पानी शानी पिया और चल दिये मेट्रो की सवारी का आनंद लेने के लिए रायदुर्ग मेट्रो (ब्लू लाईन का अंतिम स्टेशन) पहुँचे और टैक्सी लेकर सीधे इंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया कॉवेरी ब्लॉक- डी-4 में सीधे एंट्री। अगले दो घंटो तक भूली बिसरी यादों को समेटते हुए  विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। सुहास जी को एक कार्यक्र्म में जाना था वो साढे पाँच निकल लिए। इसी दौरान डॉक्टर राशि से बातचीत में पता चला कि बबुआ को 103 बुखार है और राशि जी की स्वंय भी तबियत गडबड है सो उन्होंने रविवारीय गोष्ठी में आने में असमर्थना व्यक्त की। ऐसा ही दो तीन और महानुभावों ने अपनी अपनी व्यस्ताओं का हवाला देते हुए आने में असमर्थता जताई तो डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव से बात कर तय किया गया कि मैं स्वंय, डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव एवम सुहास भटनागर कल साढे ग्यारह बजे विभा दीदी के रुम में ही गोष्ठी करेंगे। ये सब तय हो जाने के बाद विभा दीदी ने अपनी साहित्यिक संस्था  “लेख मंजूषा” को लाइव कर दिया जिसमें मैंने अपनी दो कविताएँ प्रस्तुत की। 

अगले दिन नियत समय यानि साढे ग्यारह बजे हम फिर हाज़िर थे। यूँ तो इंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया का प्राँगण काफी बडा भी है और हरियाली से युक्त भी है किंतु तेज धूप इस बात की इज़ाज़त कतई नहीं दे रही थी कि हम अपनी गोष्ठी खुले मैदान या पार्क में करने का साहस भी करें। एक ख्याल आया और हम डायनिंग में चले भी गये किंतु जल्द ही अहसास हो गया कि हमारी आवाज़ से ज्यादा आवाज तो बर्तनों के खडकने की आ रही थी। बेसाख्ता बचपन में सुनी चंद लाईन याद हो आईं। 
खडक सिंह के खडकने से खडकती हैं खिडकियाँ
खिडकियों के खडकने से खडकता है खडक सिंह

 सो विचार त्याग दिया और उल्टे पैरों चल पडे जहाँ कमरे के वातानुकूलित वातावरण में अरुण श्रीवास्तव जी हमारा बडी बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे।  सबसे पह्ले अरुण श्रीवास्तव का सत्कार किया फिर विभा दीदी ने “लेख मंजूषा” को फेसबुक लाइव कर दिया। सुहास भटनागर, डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव और मैंने भी अपनी दो रचनाएँ प्रस्तुत कर दीं। बहुत आग्रह पर विभा दीदी ने नेपाल सम्मेलन में पढी अपनी लघु कथा हम सब को सुनाई। और इस तरह रविवारीय गोष्ठी का प्रथम सत्र 1 बजे सम्पन्न हो गया। लंच का समय हो गया था तभी विभा दीदी ने कहा कुछ और चर्चा करें या भोजन? हम सब ने एक दूसरे की तरफ देखा और मैंने तुरंत दीदी को देखते हुए कहा दी “भूखे भजन न होय गोपाला पकड ये अपनी कंठी माला” फिर सभी खिलखिला कर हँस पडे। प्रथम सत्र की उपलब्धि ये रही कि अरुण श्रीवास्तव जी भी पूरी तन्मयता के साथ एक अच्छे श्रोता के रुप में गोष्ठी में उपस्थित ही नहीं रहे वरन वाह वाह भी करते रहे। कवि हो या लेखक उसे और क्या चाहिए  अच्छा भोजन और अच्छी सी वाह्।
बढिया भोजन ग्रहण करने के बाद थोडी देर तो कमरे में आराम फरमाया फिर विभा दीदी ने बताया कि आज महादेवी वर्मा जी का अवतरण दिवस है सो हम दूसरे सत्र में दो विषयों पर लाइव चर्चा करेंगे फिर कविता पाठ फिर साढे चार बजे टी ब्रेक्। सब खुश थे। 3:15 पर दूसरा सत्र शुरु हुआ । सबसे पहले दी को हैदराबाद स्टाइल में सम्मानित किया गया। फिर विषय: ज्ञानपीठ, पद्म पुरुस्कर, आधुनिक मीरा...... क्या महादेवी जी भी परिचय की मोहताज़ हैं? एवम “ संस्मरण- साहित्य अवसर महान लोगों से संबंधित होते हैं, अब चाहे वे महान लोग द्वारा रचित हो या फिर साधारण लोगों ने महान लोगों से संबंद्ध अपने  संस्मरण प्रस्तुत किये हों। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि इन दोनों विषयों पर चर्चा करने के लिए पहले विषयों को समझना आवश्यक था जो मेरे कुछ भी पल्ले नहीं पडा न सुहास जी को और न डॉक्टर प्रेमलता को। मैंने दी से पूछा दी क्या ये विषय आपने चुने हैं उनके मना करने पर मैंने हाथ जोडते हुए कहा अपने अल्प ज्ञान के कारण मैं इस चर्चा से दूर ही रहना पसंद करुँगा किंतु दी का आदेश खैर्। जो थोडा बहुत दिमाग काम करता है उससे पूरा जोर लगाया और अपने साथियों के संग इस पर जैसे तैसे चर्चा की अब ये तो लाइव देख रहे मित्र गण ही बेहतर बता सकते हैं कि पास हुए या फेल्। खैर कविताओं का दौर फिर चल पडा इस बार सबने दो की जगह तीन तीन कविताएँ पढकर अपनी अपनी कविताओं की भूख शांत की। साढे चार बजे कॉफी का दौर चला फिर इंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया के खूबसूरत प्रांगण की तस्वीरें अपने मोबाईल में कैद की। हम अभी फोटोग्राफी में व्यस्त ही थे कि तभी हमारा राष्ट्रिय पक्षी मोर एक बडी चट्टान पर पेडों के झुरमुट में आकर बैठ गया। हम तो हम ठहरे पूछ ही लिया क्यों पक्षी राज हमारी कविताएँ सुनकर हमसे मिलने आए हो।शायद वो मोरनी से झगडकर आया था सो बोला तुम्हारी कविताओं से बेहतर तो मोरनी की बक बक ही सही है। तुम्हारी कविताएँ तुम्हें ही मुबारक लो भईय्या हम तो चले, देर हुई तो मोरनी रात का डीनर कैंसिल कर देगी। इससे पहले हम और कुछ पूछते वो तो उड लिया भईय्या।

कॉफी विद विभा दी के बाद हमने दी से प्रस्थान की अनुमती माँगी। दी की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी कि वे हमें छोडे। डॉक्टर प्रेम लता श्रीवास्तव और सुहास भटनागर से वे पहली बार ही मिली थी किंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम चारों बरसों से एक दूसरे को जानते हों। इसी बीच सुहास जी ने टैक्सी बुक कर ली तो दी ने कहा इसे कैंसिल कर दीजिए। रात के डिनर के बाद जाईएगा। सुहास जी ने बताया उन्हें अपनी बेटी के यहाँ जाना है तो दी ने कहा तो कुछ नहीं किंतु उनकी आँखे हल्की सी नम अवश्य हो गईं। लगबग साढे पाँच के करीब हमने दी से विदा ली। एक खूबसूरत दिन की मधुर स्मृतियों को सजोएँ हम तीनों चल पडे। 


-प्रदीप देवीशरण भट्ट-27.03.2023