SATARDAY, 05th May-2018
“बोतल में जिन्न या जिन्ना”
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रागंण की दीवार में लगी मौहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर ने पिछले कुछ समय से बवाल मचाया हुआ है। तस्वीर लगाने के पक्ष और विपक्ष में तलवारें खिंच गई हैं। नेता तो आम तौर पर ऐसे मौकों के लिए तैयार ही बैठे रहते हैं सो उन्होंने तुरंत ही अपने अपने फायदे के अनुसार अपनी अपनी चालें चलनी शुरू कर दी हैं। लेकिन प्रश्न ये है की आजाद भारत के किसी भी विद्यालय या महाविद्यालय में एक कट्टर शिया मुसलमान की तस्वीर क्यों लगाई जाए जब कि वो भारत के टुकड़े करने के लिए जिम्मेदार हो । अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के छात्र नेताओं का ये कहना कि उनकी तस्वीर १९९३८ से वहां लगी हुई है तो गलती किसकी है भाई ? आप ही की ना ,आपने समय रहते क्यों नहीं उसे उठाकर बाहर का रास्ता दिखया ? या आपको पाकिस्तान के जनक से ज्यादा प्यार था तो आप भी पाकिस्तान में ही विराजते। स्वतंत्र भारत में ऐसे लोगों की तस्वीर तो छोडिये उनका नाम लेना भी हराम होना चाहिए । अलोगढ़ मुस्लिम विश्विद्याल के उन छात्र नेताओं/वहां के प्रशासन पर अभी तक भी कोई एक्शनक्यों नहीं लिया गया ? एक छात्र नेता का यह कहना कि जिन्ना वहां के लाइफ मेम्बर थे तो भैय्या लाइफ मेम्बर का मतलब तो समझ लो । जब तक आदमी जीता है तभी तक तो ना वो तो 11 सितम्बर 1948 को ये दुनियां छोड़ गया तो उसके बाद क्यों नहीं उतारी। मतलब मन में चोर है “खायेंगे रहेंगे भारत में और गीत गायेंगे पाकिस्तान के ? तो ऐसे लोगों के लिए सही कहा गया है कि “एक टंगड़ी के लिए अपने अब्बा को नकार कर पडौसी को अब्बा बना लो “ ताकि वो जब भी टंगड़ी बनाए तुम्हें दे देगा। अब वो देगा या नहीं ये तो दूसरा विषय है लेकिन आस पर ही तुम जैसे लोग अपना अब्बा बदल लेते हों फिर ये तो देश की बात है।
जीवन में कुछ चीज़े/लोग ऐसे होते हैं जो मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते। मौहम्मद अली जिन्ना वही चीज समझ लें या लोग। आज़ादी से पहले अपनी महत्वकांशाओं के पखों पर सवार होकर मौहम्मद अली जिन्ना ने उस समय की सभी राजनैतिक पार्टियों के नाक में दम करके रखा हुआ था। नेहरु के साथ उनका बैर तो जग जाहिर रहा ही है। उनकी महत्वकांशाओं की पूर्ति में आल इण्डिया मुस्लिम लीग जिसकी स्थापना मुस्लिम नेताओं ने नवाब सलीमुल्ला की लीडरशिप में 30 दिसम्बर 1906 को ढाका में की। सलिमुल्ल्हा ही इसके संस्थापक व अध्यक्ष थे किन्तु इसके पहले अधिवेशन की अध्यक्षता मुश्ताक हुसैन नि की थी। मुस्लिम लीग का सबसे प्रमुख उद्देश्य यही था कि वे किसी भी प्रकार से अंग्रेजों को तलवे चाट कर उनके द्वारा थोपे गये क़ानूनी या गैर क़ानूनी किसी भी प्रकार के अधिकारों के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करना ताकि वे अंग्रेजों की आँखों के तारे बन सके। अपनी इसी निष्ठा का सबूत देने के लिए उन्होंने अमृतसर के अधिवेशन में मुस्लिमों के लिए पृथक देश या कहें कि द्विराष्ट्र का खाका खींचा जिससे अंग्रेजों को ये मेसेज जाए कि भारत के आजाद होने पर मुस्लिमों के लिए एक अलग देश बनाने के लिए अंग्रेजों को राजी किया जा सके।मौहम्मद अली जिन्ना को अपनी राजनैतिक महत्वकांशा पूरी करने के लिए मुस्लिम लीग एक मुफ़ीद प्लेटफोर्म लगा और उन्होंने इसका उपयोग अपने फायदे के लिए करना शुरू कर दिया ।जिन्ना मुसलमानों का एक छत्र नेता बनकर नेहरु को ये दर्शाना चाहते थे कि हिंदुस्तान के मुस्लमान सदैव उनके साथ खड़े रहेंगे किन्तु ऐसा था नहीं भारत के सारे मुस्लमान जिन्ना को अपना एक छत्र नेता नहीं मानते थे। आगे बढ़ने से पहले आइये जिन्ना के विषय में कुछ जान लिया जाए।
मौहम्मद अली जिन्ना (मुहम्मद अली झीणाभाई – गुजराती )का जन्म 25 दिसम्बर 1876 आधुनिक सिंध प्रान्त के कराची जिले के वजीर मेसन में हुआ था । जिन्ना मिठीबाई और जिन्नाभाई पूंजा की सात संतानों में सबसे बड़े थे। इनके पिता एक संपन्न गुजरती परिवार के व्यापरी थे लेकिन जिन्ना के जन्म के पहले ही वे कठियावाद छोड़ कर सिंध में जाकर बस गए। जिन्ना मूलतः हिंदू राजपूत थे किन्तु इनके पिता द्वारा इस्लाम धर्म अपनाने के कारण सब भाई बहनों का नामकरण मुस्लिम नामकरण किया गया जिन्ना की स्कूली शिक्षा अलग अलग जगहों पर हुई जिनमें सिंध मदरसा उल इस्लाम ,फिर गोकुलदास तेज प्राथमिक विद्यालय ,फिर क्रिश्चन मिशनरी स्कूल कराची चले गए तथा बाद में इन्होने बम्बई विश्विद्यालय से ही मैट्रिक पास किया। मैट्रिक की पढाई पूरी करने के बाद जिन्ना ग्रैहम शिपिग एंड ट्रेडिंग कंपनी में अप्रन्तिस हो गए तदुपरांत माँ के आग्रह पर इंग्लैंड जाने से पूर्व इन्होने शादी भी कर ली जो ज्यादा दिनों तक टिक न स्की। इंग्लैंड में पढाई के दौरान ही ये दादाभाई नौराजी एवं फिरोजशाह मेहता के प्रशंसक बन गए एवं ब्रिटिश संसद में दादाभाई नौराजी के प्रवेश के लिए इन्होने छात्रो के साथ प्रचार में भी भाग लिया । पिता के व्यवसाय में फेल होने पर ये बम्बई आ गए और वकील बन गए । इनकी योग्यता को देखते हुए बालगंगाधर तिलक इनसे प्रभावित हुए और उन्होंने १९०५ में अपने ऊपर गले राजद्रोह के मामले की सुनवाई के लिए जिन्ना को ही आपना वकील नियुक्त कर दिया।1918 में उन्होंने एक पारसी लड़की रति से विवाह कर लिया उनके इस अंतधार्मिक विवाह का पारसी और कट्टरपंथी मुस्लिम समाज में व्यापक विरोध हुआ जिसकी परिणिति रति के इस्लाम धर्म क़ुबूल करने से हुई । 1919 में दोनों की एक पुत्री हुई जिसका नाम डीना रखा गया । जिसकी शादी बाद में एक भारतीय पारसी बिजनेसमैन नेविल वाडिया से हुई कितु जिन्ना अंत तक इस शादी के खिलाफ रहे। विभाजन के बाद जिन्ना पाकिस्तान चले गए और डीना ने भारत में रहना ज्यादा ठीक समझा।
1896 में जिन्ना कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। प्रारम्भ में तो जिन्ना ने हिंदू मुस्ल्मिम एकता पर ही अपना फ़ोकस रखा एवं कांग्रेस और मुस्लिम लीग का लखनऊ में समझौता भी करवाया। काकोरी कांड में पकड़े गए चरों कैदियों को जब मृत्यु दंड दिया गया तब सन्ग्त्रल कौंसिल के 78 सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल अद्वार्ड फ्रेडरिक लिंडले वुड को शिमला जाकर उन कैदियों की सजा कम करने हेतु (मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में बदलने हेतु) मेमोरियल दिया गया था जिस पर जिन्ना के अतिरिक्त पंडित मदन मोहन मालवीय एन सी केलकर लाला लाजपत रे व गोविन्द वल्लभ पन्त आदि के भी हस्ताक्षर थे। किन्तु कांग्रेस द्वारा मुसलमानों के प्रति उदासिनता को देखते हुए उन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया और 1913 में मुस्ल्मिल लीग में शामिल हो गए और 1916 में लखनऊ अधिवेशन की अधक्ष्ता भी की । वैसे भी उन्हें इस हिंदू मुस्लिम एकता से कुछ लेना देना नहीं था क्यों कि वे जानते थे कि आज़ादी मिलने के बाद गाँधी जी नेहरु को ही प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहेंगे। अतएव उन्होंने देश में रह रहे मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा और स्वशासन के लिए लाहौर अधिवेशन चौदह सूत्री संवैधानिक सुधर का प्रस्ताव रखा साथ ही मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र का लक्ष्य भी निर्धारित किया । 1946 में हुए चुनावों में ज्यादातर मुस्लिम सीटों पर मुस्लिम लीग की ही जित हुई और जिन्ना ने पाकिस्तान की आज़ादी के त्वरित कार्यवाही का अबियाँ शुरू कर दिया किन्तु कांग्रेस द्वारा इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देने के कारण देश में जब कर बवाल हुआ । चूँकि दोनों ही पार्टियाँ गठबंधन की सरकार बनाने में असफल रही अतएव ब्रिटिश राज ने भारत के विभाजन को सैधांतिक मंजूरी प्रदान कर दी। किन्तु यहाँ ये विशेष है कि पाकिस्तान नाम कहाँ से आया तो मैं आपको बताता चलूँ कि जिन्ना और इक़बाल की तहरीरों को सुन सुन कर 1940 के लाहौर अधिवेशन से पूर्व ही जिन्ना की दो राष्ट्रों की थ्योरी को अमली जामा पहनाने के मकसद से रहमत अली ने 1933 में पर्चे छापकर भारत से अलग होने वाले देश का नाम “पाकिस्तान” रख दिया था। पाकिस्तान बनने के बाद जिन्ना को कायदे-आज़म,बाबा-इ-कौम यानि राष्ट्र पिता जैसी उपाधि से सुशोभित कर दिया गया उन्हें आजाद पकिस्तान का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया ।११ सितम्बर १९४८ को उनकी मृत्यु हो गई जिस पर सभी को संशय है कि उन्हें जानबूझकर हास्पिटल में भर्ती करने में देरी की गई जबकि वो कैंसर से पीड़ित थे।
आख़िर इतना सब लिखने का तात्पर्य क्या है ? इसलिए की जिन लोगों को ये लगता है कि जिन्ना सेकुलर थे वे अपने दिमाग का इलाज करा लें वे कतई सेकुलर नहीं थे कट्टरवाद कूट कूट कर भरा हुआ था। चूँकि उनके पिता ने इस्लाम धर्म अपनाया था और वो शिया समुदाय में शामिल हुए थे तो उनकी सोच की आप काल्पना कर सकते हैं । कांग्रेस बीजेपी या अन्य किसी दल में जो उनके हितैषी बैठे थीं और मौहोम्म्द अली जिन्न की तस्वीर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लगाये जाने से सहमत है उन्हें अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए । आख़िर सिर्फ़ वोटों की राजनीती कहाँ तक चलाएंगे। हर उस विषय में मुस्लिम शामिल हैं सभी पार्टियाँ क्यूँ कर अपने नेताओं को इतनी छुट दे देती हैं जिससे वे मुस्लिम तुष्टिकरण करने लगते हैं वे क्यों और कैसे भूल जाते हैं कि पाकिस्तान में गाँधी या अन्य किसी नेता की मूर्ति वहां क्यों दिखाई देती। वहां के नौनिहालों को भारत के राष्ट्रनायकों को उग्रवादी और आतंकवादी पढाया जाता है ?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद भी कोई गंगा जमुना तहज़ीब के परोकर नहीं थे उनकी सोच भी बड़ी घटिया और कट्टरपन को बढ़ावा देने वाली थी। एक पुस्तक “खिलाफ़त” जिसको लिखने वाले काजी मुहम्मद अदील अब्बासी ने इस किताब में जिक्र किया है कि आजाद भारत मुस्लिमों के लिए बिलकुल भी मुफीद नहीं होगा क्यों कि आजाद भारत में बहुसंख्यक हिंदू उन्हें चैन से नहीं रहने देंगे और उन पर तरह तरह से जुल्म करेंगे। आज़ादी के सत्तर वर्षो के पश्चात् विश्व पटल पर नज़र दौड़ाने से किसी को भी ये अच्छी तरह से समझ आ जायेगा कि विश्व में 56 मुस्लिम देशों के बनिस्पत भारत के मुस्लमान कितने शिक्षित और भय के वातावरण से कोसों दूर हैं अन्यथा सभी मुस्लिम देशों में शिया सुन्नी और ना जाने जाने कौन कौन सी नयी ब्रांचे आपस में ही लड़ मर कर ख़त्म हो रहीं हैं। तो जिन्ना हो या सर सैय्यद सभी ने मुसलमानों को अपने फायदे के लिए भड़काया ही है और स्थिति आज भी वैसी ही है। मुसलमानों का नेता बनकर कितनों ने अपनी सात पुश्तों को इंतजाम कर लिया है ये भी किसी से छुपा हुआ नहीं है ।
-प्रदीप भट्ट –
अपनी बेबाक राय अवश्य रखे किन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी बेबाक राय से व्यक्ति विशेष के सम्मान को ठेस न लगे । हम अपनी स्व्तंत्रता के प्रति सजग रहे किन्तु दूसरों कि स्वतन्त्रता मे बाधक भी न बने ।
Sunday, 6 May 2018
बोतल में बंद जिन्न या जिन्ना
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