“बुलेट पर बैलट भारी”
(‘मुस्तफा कमाल अतातुर्क’ पाशा का कमाल” तुर्की जैसे
जाहिल देश को किया निहाल”)
‘मुस्तफा कमाल अतातुर्क’ पाशा
(जाहिल इस्लामिक और कट्टरपंथी देश से नए पढे लिखे (मॉडर्न) युग की शुरुआत के पुरोधा)
15 जुलाई-2016 को तुर्की मे एक नाकाम तख़्ता पलट
हुआ जिसमे अप्रत्याशित रूप से तुर्की की जनता की जीत हुई। शायद इतिहास मे ऐसा कभी
नहीं हुआ होगा जब सैन्य तख़्ता पलट के विरुद्ध उस देश की जनता सेना के मुक़ाबिल आकार
खड़ी हो गई और तख़्ता पलट की कोशिश कर रहे विद्रोहियों को मैदान छोडकर भागने पर
मजबूर होना पड़ा। इस्तांबुल और अंकारा की सड़कों पर सैन्य साजो समान से लैस विद्रोही
सेना की एक टुकड़ी आम आबादी के ऊपर जंगी जहाज या हेलीकाप्टर उड़ेंगे और विरोधियों का
दस्ता ऐसा सोचेगा कि वे आम आदमी पर अपनी धाक जमा लेंगे और जो जी मे आएगा वो कर
लेंगे तो तुर्की कि जनता द्वारा जिस साहस का परिचय उन सैनिकों को दिया जिससे वे ही
नहीं वरन पूरे विश्व परिदृश्य पर एक संदेश साफ गया कि कभी कभी परिस्थिति विकत मोड
भी ले लेती है। इस तख़्ता पलट की असफल कोशिश मे जीत तुर्की की जनता की जीत हुई जो
एक अच्छा शगुन ही नहीं वरन लोकतन्त्र के लिए एक अच्छा संकेत भी है।
15 जुलाई-2016 को हुए सैन्य विद्रोह की तस्वीरें
पिछले 60 वर्षो मे
तुर्की मे ये पाँचवी बार तख़्ता पलट हुआ जिसमे जीत तुर्की की जनता की हुई। इस बार
के तख़्ता पलट मे जहां तुर्की के राष्ट्रपति राजब तैयब एडोर्गन जो कि 2004 से ही
तुर्की की सत्ता पर काबिज हैं इस पूरी वारदात मे निपट खामोश रहे वही तुर्की के
प्रधानमंत्री बिनली यिलिदरिम बार बार कहे जा रहे थे कि मुझे विश्वास है कि ये
तख़्ता पलट की कोशिश नाकाम हो जाएगी। आखिर इस तख्ता पलट की विभीषिका मे जहां 265
लोगों ने अपनी जान गवाईं और लगभग 2000 लोग घायल हुए ऐसा क्या चमत्कार हो गया कि
सैन्य तख़्ता पलट की कोशिश को तुर्की जनता ने नाकाम कर दिया। एक निजी तुर्की चैनल
ने तुर्की के प्रधानमंत्री बिनली यिलिदरिम का आई फोन पर एक फेस टाइम इंटरव्यू
प्रसारित कर दिया, जिसमे तुर्की के प्रधानमंत्री बिनली यिलिदरिम ने
तुर्की की जनता से आहवाहन किया कि वे बिना किसी डर और भय के सड़कों पर निकले और
तख़्ता पलट कि इस कोशिश को नाकाम कर दें जिसके बाद लोग कर्रफ़्यू तोड़कर सड़कों पर जमा
होने लगे और विद्रोही सैन्यकर्मी को मैदान छोडकर भागने पर मजबूर कर दिया।आइए आज
तुर्की के विषय मे कुछ सूक्ष्म दर्शन कर लिया जाए।
तुर्की के इतिहास को तुर्क जाति के इतिहास
और उससे पूर्व के इतिहास के दो अध्यायों में देखा जा सकता है. सातवीं से 12वीं सदी के बीच में मध्य एशिया से तुर्कों की कई शाखाएं यहां आकर बसीं।
इससे पहले यहां से पश्चिम में आर्य (यवन, हेलेनिक) और पूर्व
में कॉकेशियाई जातियों की बसावट रही।तुर्की में ईसा के लगभग 7500 वर्ष पहले मानव बसाव के प्रमाण यहां मिले हैं। हिट्टी साम्राज्य की
स्थापना 1900-1300 ईसा पूर्व में हुई थी. 1250 ईस्वी पूर्व ट्रॉय की लड़ाई में यवनों (ग्रीक) ने ट्रॉय शहर को नेस्तनाबूत
कर दिया और आसपास के इलाकों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।1200 ईसा पूर्व से तटीय क्षेत्रों में यवनों का आगमन आरंभ हो गया. छठी सदी
ईसापूर्व में फारस के शाह साईरस ने अनातोलिया पर अपना अधिकार जमा लिया. इसके करीब 200
वर्षों के पश्चात 334 ईस्वी पूर्व में सिकन्दर
ने फारसियों को हराकर इस पर अपना अधिकार किया. बाद में सिकन्दर अफगानिस्तान होते
हुए भारत तक पहुंच गया। ईसा पूर्व 130
ईस्वी में अनातोलिया रोमन साम्राज्य का अंग बना। ईसा के 50 साल बाद संत पॉल ने ईसाई धर्म का प्रचार किया और सन 313 में रोमन साम्राज्य ने ईसाई धर्म को अपना लिया. इसके कुछ सालों के अन्दर
ही कान्स्टेंटाईन साम्राज्य का अलगाव हुआ और कान्स्टेंटिनोपल इसकी राजधनी बनाई गई.

कैस्पियन सागर के
पश्चिम सागर के पश्चिम मे वे मधी तुर्की के कोनया मे स्थापित हो गए 1071 में
उन लोगों ने बिजेंटाइनों को परास्त कर एशिया माइनर पर अपना आधिपत्य जमा लिया। मध्य
टर्की में कोन्या राजधानी बनाई और मुस्लिम संस्कृति को अपना लिया।इस
साम्राज्य को 'रुम सल्तनत' कहते
हैं क्योकि इस इलाके़ में पहले इस्तांबुल के रोमन शासकों का अधिकार था जिसके नाम
पर इस इलाक़े को रुम कहते थे। यह वही समय था जब तुर्की के मध्य (और धीरे-धीरे
उत्तर) भाग में ईसाई रोमनों (और ग्रीकों) का प्रभाव घटता गया और यहाँ ईसाइ के बदले
मुस्लिम शासकों का राज हो गया था। अपने ईसाई तीर्थ स्थानों की यात्रा का मार्ग
सुनिश्चित करने और कई अन्य कारणों की वजह से यूरोप में पोप ने धर्म युद्ध आह्वान किया। योरोप से आए धर्म योद्धाओं ने यहाँ पूर्वी तुर्की पर अधिकार
बनाए रखा पर पश्चिमी भाग में सल्जूक़ों का साम्राज्य बना रहा। लेकिन इनके दरबार
में फ़ारसी भाषा और संस्कृति को बहुत महत्व दिया गया। अपने सामानान्तर के पूर्वी सम्राटों,
गज़नी के शासकों की तरह, इन्होंने भी तुर्क
शासन में फ़ारसी भाषा को दरबार की भाषा बनाया। सल्जूक़ दरबार में ही सबसे बड़े सूफ़ी कवि रूमी
(जन्म 1215) को आश्रय मिला और उस दौरान लिखी
शायरी को सूफ़ीवाद की श्रेष्ठ रचना माना जाता है। सन् 1220 के
दशक से मंगोलों ने अपना ध्यान इधर की तरफ़ लगाया। कई मंगोलों के आक्रमण से उनके
संगठन को बहुत क्षति पहुँची और 1243 में इनके कई साम्राज्य
को मंगोलों ने जीत लिया। हाँलांकि इसके शासक 1308 तक शासन
करते रहे पर साम्राज्य बिखर गया।
वर्तमान तुर्क पहले यूराल और
अल्ताई पर्वतों के बीच बसे हुए थे। जलवायु के बिगड़ने तथा अन्य कारणों से ये लोग
आसपास के क्षेत्रों में चले गए। लगभग एक हजार वर्ष पूर्व वे लोग एशिया माइनर में
बसे। नौंवी सदी में ओगुज़ तुर्कों की एक शाखा कैस्पियन सागर के पूर्व बसी और
धीरे-धीरे ईरानी संस्कृति को अपनाती गई। ये सल्जूक़ तुर्क थे। तुर्क या ओटोमन साम्राज्य दुनिया के अब तक के सबसे शक्तिशाली
साम्राज्यों में से एक था। 1839 में व्यापक सुधार आंदोलन आरंभ हुआ,
जिससे सुलतान के अधिकर नियंत्रित कर दिए गए। इसी आशय का एक संविधान 1876
में पारित हुआ, किंतु एक वर्ष तक चलने के बाद
वह स्थगित हो गया। तब वहाँ अनियंत्रित राजतंत्र पुन: स्थापित हो गया। 1908 में युवक
क्रांति हुई, जिसके
बाद 1876 का संविधान फिर लागू हुआ। करीब सात सौ वर्षों तक यह साम्राज्य चला। सन 1908 में समाज के युवा वर्ग ने ओटोमन साम्राज्य के निरंकुश और अधिनायकवादी शासक
अब्दुल हमीद दितीय के शासन को ध्वस्त किया और देश के पुराने संसदीय जनतंत्र को फिर
से लागू किया। तभी से विश्वविद्यालय के इन क्रांतिकारी छात्रों को युवा तुर्क बोला
जाने लगा। इसी संविधान की वजह से तुर्की या टर्की
विश्व का अकेला ऐसा देश है जो मुस्लिम बहुल (99 प्रतिशत)
होने के बाद भी संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्ष है। इस राष्ट्र को यूरोप और एशिया
के बीच का पुल कहा जाता है और वास्तव में राजनैतिक, भौगोलिक
और सांकेतिक दृष्टि से यह देश दोनों महाद्वीपों के बीच पुल का काम करता है। इसके
एक शहर इस्ताम्बुल में ऐसा पुल है जो एशिया की धरती को यूरोप की धरती से जोड़ता है।
संसार में यही एक ऐसा शहर है जो दो महाद्वीपों में बसा है।
तुर्की
से संबन्धित कुछ विशेष घटनाएँ निमन्वत हैं:-
1. एक समय में ऑटोमन साम्राज्य का केंद्र रहे तुर्की में 1920 के दशक में
राष्ट्रवादी नेता मुस्तफ़ा कमाल
अतातुर्क के नेतृत्व में धर्मनिर्पेक्ष गणतंत्र की स्थापना की गई। 1923 में तुर्की को गणतंत्र को घोषित
किया गया है। मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क को तुर्की का
राष्ट्रपति बनाया गया।
2. 1938 में अतातुर्क
के निधन के बाद लोकतंत्र और बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था के विकास में खलल पड़ गया. इसके बाद से सेना ने कई
बार धर्मनिर्पेक्षता के लिए ख़तरा समझी जाने वाली सरकारों को बेदखल किया है।
3. 1952 में तुर्की ने
अतातुर्क की तटस्थता की नीति को छोड़ नेटो गठबंधन सेना के साथ हाथ मिला लिया।
4॰ 1960 में
डेमोक्रटिक पार्टी की सरकार का सेना ने तख़्तापलट किया।
5. 1974 में तुर्की की सेनाओं ने
साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर नियंत्रण कर लिया जिसका नतीजा साइप्रस द्वीप का
बंटवारा था।
6. 1980 में तुर्की के चीफ़ ऑफ़ जनरल
स्टाफ़ केनान एवरेन के नेतृत्व में तीसरा तख़्तापलट
किया गया।
7. 1984 में कुर्द संगठन पीकेके ने
अलगाववादी गुर्रिला अभियान शुरू किया जो एक गृहयुद्ध में तब्दील हो गया. अब तक
कुर्द संगठनों और तुर्की की सरकार के बीच संघर्ष जारी है।
8. तुर्की काफ़ी लंबे समय से यूरोपीय यूनियन का हिस्सा बनना चाहता रहा
है. 2005
में सदस्यता पर बातचीत शुरू हुई थी लेकिन इसमें बहुत धीमी
प्रगति हुई है, क्योंकि कई E.U. सदस्य देश तुर्की के सदस्यता
को लेकर पूरी तरह सहमत नहीं हैं.2011 में सीरियाई युद्ध शुरू होने के बाद तुर्की की
सीमाओं पर लगातार स्थिति तनापूर्ण बनी
हुई है। सीरियाई युद्ध से विस्थापित
हुए लाखों शरणार्थी तुर्की पहुंच रहे हैं।
9.
2015
तुर्की कई पिछले कुछ समय से कई चरमपंथी हमलों का शिकार रहा है.
अंकारा में पिछले साल एक रैली पर हमला हुआ, पिछले दिनों
इस्तांबुल में अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर चरमपंथी हमले में कई लोगों की
जान गई थी।
1913 में सुलतान
मेहमत शासन का अध्यक्ष बना। प्रथम विश्वशुद्ध के समय टर्की के नेताओं ने जर्मनी का
साथ दिया। इस युद्ध में टर्की पराजित हुए। युद्ध-विराम-संधि के होते ही अनबर पाशा
और उसके सहयोगी अन्य शीर्षस्तरीय नेता टर्की छोड़कर भाग गए। एशिया माइगर आदि क्षेत्र ब्रिटेन, फ्राँस,
ग्रीस और इटली में बटँ गए। 1919 में ग्रीस ने
अनातोलिया पर आक्रमण किया, किंतु मुस्तफ़ा कमाल (कमाल अतातुर्क) के नेतृत्व में हुए
संघर्ष में (1922) ग्रीस पराजित हुआ। सुलतान का प्रभाव क्षीण
होने लगा और अंकारा में मुस्तफा कमाल के नेतृत्व में व्यापक मान्यताप्राप्त
राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई। 1923 की लासेन संधि के
अनुसार टर्की का प्रभुत्व एशिया माइनर तथा थ्रेस के कुछ भाग पर मान लिया गया। 29
अक्टूबर 1923 को टर्की गणराज्य घोषित हुआ।इसके
पश्चात् टर्की में अतातुर्क सुधारों के नाम से अनेक सामाजिक राजनीतिक और विधिक
सुधार हुए। गणतांत्रिक संविधान में धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक
संगठनों के उत्मूलन और स्त्रियों के उद्धार आदि की व्यवस्था हुई। अरबी लिपि के
स्थान पर रोमन लिपि का प्रचलन घोषित हुआ। मुस्तफा कमाल की मृत्यु (1938) के
पूर्व तक उसके नेतृत्व में रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी अत्यधिक प्रभावशाली और मुख्य
राजनीतिक संगठन के रूप में रही।
आधुनिक तुर्की के संस्थापक मुस्तफा कमाल
पाशा मुस्तफ़ा कमाल
पाशा फ़र्स्ट वर्ल्ड वार में तुर्की ने जर्मनी का
साथ दिया। 1919 में मुस्तफ़ा कमाल पाशा (अतातुर्क) ने देश का
आधुनिकीकरण आरंभ किया। उन्होंने शिक्षा, प्रशासन, धर्म इत्यादि के क्षेत्रों में पारम्परिकता छोड़ी और तुर्की को आधुनिक
राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।सेकंड वर्ल्ड वार में
टर्की प्राय: तटस्थ रहा। 1945 में यह "संयुक्त
राष्ट्रसंघ" (UNO) का सदस्य बना। 1947 में USA ने
टर्की को सोवियत संघ के
विरुद्ध सैनिक सहायता देने का वचन दिया। वह सहायता अब भी जारी है। इस समय टर्की
नाटो,
सेंटो और बाल्कन पैक्ट का सदस्य है।मुस्लिम-टर्की धर्मनिरपेक्ष
राष्ट्र है। संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का पूरा आश्वासन है। मुसलमानों में
सुन्नी बहुसंख्यक हैं। तुर्की यहाँ
प्राय: सार्वभौम भाषा है। इसमें वर्णों की रचना ध्वनि पर आधारित है। 1928 के
भाषा-सुधार आंदोलन से अरबी लिपि के स्थान पर रोमन लिपि का
प्रयोग होने लगा है।1960 तक तत्कालीन प्रधान मंत्री मेंडरीज ने विधिक स्वातंत्र्य, भाषा,
लेखन और प्रेस स्वातंत्र्य पर रोक लगा दी। इसके विरुद्ध प्रबल
आंदोलन हुआ। 27 मई 1960 को प्रधान
मंत्री मेंडरीज़ और राष्ट्रपति बायर (Bayar) "नेशनल
यूनिटी कमिटी" द्वारा गिरफ्तार कर
लिए गए। जनरल गुरसेल कार्यवाहक अध्यक्ष
तथा प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करने लगे। ग्रांड नेशनल असेंबली की स्थापना हुई
और 1961 में जनरल गुरसेल राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।1961
के संविधान में टर्की पुन: प्रजातांत्रिक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बना,
जिसमें जन-अधिकारों तथा विधिसम्मत न्याय की पूर्ण व्यवस्था है। राष्ट्र
पर किसी एक व्यक्ति, समूह या वर्ग का अधिकार नहीं है।
टर्की की आधी राष्ट्रीय आय का स्रोत कृषि है। सेकंड वर्ल्ड वार के पश्चात् उद्योगीकरण की ओर राष्ट्र
की प्रवृत्ति बढ़ी। कृषि के क्षेत्र में मशीनों के प्रयोग ने विशेष क्रांति को
जन्म दिया। 1960 में सैनिक शासन स्थापित होने के समय टर्की की
आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं थी। विकास-योजनाओं को तेजी से बढ़ा देने के कारण
टर्की ऋण-ग्रस्त हो गया। व्यापार में घाटे की स्थिति उत्पन्न हो गई। इसके बाद
आर्थिक उन्नति के लिए व्ययों में कटौती, मूल्यनियंत्रण का
उन्मूलन, करों में संशोधन आदि आवश्यक कदम उठाए गए।टर्की में
प्राकृतिक साधन तो प्रचुर मात्रा में हैं, किंतु
अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए उसे मशीनी उद्योग में अधिक व्यय करना पड़ता है। इसके
निमित्त उसे पाश्चात्य देशों से, विशेषकर अमरीका से, ऋण भी मिलता है। 1990 के दशक में देश में
मुद्रास्फीति 70% तक बढ़ गई थी।
एक जाहिल इस्लामिक कट्टरपंथी देश को मात्र 10 वर्षो
मे एक पढ़ा लिखा और उन्नति शील देश के रूप मे
स्थापित किया उन्होंने 10 साल के अन्दर टर्की को एक जाहिल इस्लामिक देश से एक modern
पढालिखा progressive देश बना दिया। उनके विषय मे
एक रोचक तथ्य यह है कि सबसे पहले उन्होंने एक अभियान चलाया और टर्की को उसकी अरबी
जड़ों से काटकर तुर्की के आत्मसमान को जागृत किया। तत्पश्चात उन्होंने देश में अरबी
भाषा पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अरबी लिपि को त्याग कर Latin आधारित
नयी लिपि तुर्की भाषा के लिए विकसित कराई । एक मीटिंग के दौरान उन्होने वहाँ उपस्थित
शिक्षा शिक्षा-विदों,एवं मंत्रियों के समूह से पूछा कि हम किंतने
दिनों मे नयी तुर्की लिपि को सभी देश वासियों को सीखा सकते हैं और कितने दिनों मे इसे
राजकाज की भाषा मे इस्तेमाल कर सकते हैं। तब सभी ने अपने अपने अंदाज मे किसी ने एक
वर्ष, किसी ने 2 वर्ष, किसी ने तीन वर्ष
और अंत मे एक मंत्री जो शिक्षाविद भी थे ने कहा कि ये कार्य मुकम्मल करने मे कम से
कम 7 वर्षों का समय लगेगा। तब मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने कहा एक वर्ष यानि 1 दिन और
7 वर्ष यानि 7 दिन।अगले सात दिनों मे राजकाज का सभी कार्य नयी तुर्की लिपि मे किया
जाना आवश्यक है अन्यथा सज़ा के लिए तैयार रहें। ‘मुस्तफा कमाल अतातुर्क’ (राष्ट्रपति-तुर्की) ने कुरआन शरीफ को नयी तुर्की लिपि में लिखवाया। मस्जिदों
से अरबी अजान बंद कर दी गयी और उसे तुर्की भाषा में दी जाने लगी। ‘मुस्तफा कमाल अतातुर्क’ (राष्ट्रपति-तुर्की) का कमाल ने कहा कि हमें अरबी इस्लाम नहीं चाहिए हमें
तुर्की इस्लाम चाहिए। हमें अरबी भाषा में कुरआन रटने वाले मुसलमान नहीं चाहिए
बल्कि तुर्की भाषा में कुरआन समझने वाले मुसलमान चाहिए।
‘मुस्तफा कमाल अतातुर्क’ (राष्ट्रपति-तुर्की) न टर्की को इस्लामिक राज्य से एक सेयुलर राज्य मे तब्दील
कर दिया। उन्होंने इस्लामिक शरियत की शरई courts जो सदियों
से चली आ रही थी उन्हें बंद भी कर दिया और तुर्की का नया कानून बनाया जो इस्लामिक
न हो के modern था .इसके बाद उन्हें मुस्लिम सिविल कोड को abolish
कर Turkish सिविल कोड बनाया। मौखिक तलाक गैर
कानूनी कर दिया। 4 शादियाँ गैर कानूनी कर दी। family
planning अनिवार्य कर दी। अतातुर्क ने पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था
बदल दी । नयी तुर्की लिपि में पाठ्य पुस्तकें लिखी गयी मदरसों और दीनी इस्लामिक
शिक्षा पे प्रतिबन्ध लगा दिया गया । पूरी तुर्की में modern शिक्षा
को अनिवार्य कर दिया गया । नतीजा ये निकला की सिर्फ 2 सालों
में देश में साक्षरता 10% से बढ़ के 70 % हो गयी .
सबसे बड़ा काम जो अतातुर्क ने किया वो देश के
इस्लामिक पहनावे और रहन-सहन को बदल दिया। इस्लामिक दाढ़ी, कपडे, पगड़ी प्रतिबंधित कर दी। पुरुषों को पगड़ी की जगह Hat पहनने
की हिदायत दी गयी।महिलाओं के लिए हिजाब नकाब बुर्का प्रतिबंधित कर दिया गया ।
देखते देखते महिलाएं घरों से बाहर निकाल कर पढने लिखने लगी और काम करने लगी।पर्दा
फिर भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ। इसके लिए अतातुर्क ने एक तरकीब निकाली। वेश्याओं
के लिए बुर्का और पर्दा अनिवार्य कर दिया । इसका नतीजा ये निकला की जो थोड़ी बहुत
महिलाएं अभी भी परदे में रहती थी उन्होंने एक झटके में पर्दा छोड़ दिया । अतातुर्क
ने रातों रात देश की महिलाओं को इस्लामिक जड़ता और गुलामी से मुक्त कर दिया। मुस्तफा
कमाल अतातुर्क’ पाशा ने महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा
दिया। 1935 के आम चुनावों में तुर्की में 18 महिला सांसद चुनी गयी थी।ये वो दौर था जब की अभी बहुत से यूरोपीय देशों
में महिलाओं को मताधिकार तक न था।
::: प्रदीप भट्ट
:::24.08.2016
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