"जाट हिंसा –तीन दिनो तक हरियाणा बंधक”
पिछले दिनों हरियाणा मे
आरक्षण को लेकर जाटों ने जो उत्पात मचाया तो मैं हतप्रभ रह गया क्यों कि जाट तो
जमीदार होते हैं। सामन्यात: एक एक जाट के पास 50-100 बीघा जमीन होना आम बात है।
जाटों मे शादियाँ भी देख समझ कर की जाती हैं ।अगर लड़के वाले के पास 100-50 बीघा जमीन
है तो शादी करने मे कोई गुरेज़ नहीं फिर चाहे वो बेरोजगार ही क्यों न हो। जहां तक
अंतरजातीय विवाह का प्रश्न है तो इस विषय मे जाट बहुत ज्यादा संवेदनशील होता है।
वो शादी के लिए हाँ करने से ज्यादा लड़का हो या लड़की को मारना ज्यादा उचित समझता
है। आनर किलिंग के अनेकों केस इसी के परिणाम हैं। समान्यत: कट्टरता के विषय मे
मुसलमानों को सबसे ऊपर समझा जाता है फिर जाटों को उसके बाद गूजरों को किन्तु कहीं
कहीं ये एक दूसरे से आगे भी निकलते देखे गए हैं। जब जाट हरियाणा मे आरक्षण- आरक्षण
का खेल रहे थे वहाँ कानून व्यवस्था बिलकुल नदारत पाई गई ऐसा इसलिए भी की 80
प्रतिशत से ज्यादा पुलिस विभाग मे जाटों का वर्चस्व है। कमोबेश यही स्थिति पश्चिमी
उत्तर प्रदेश मे भी जहां जाट बहुलता मे हैं। जब ये सब चल रहा था तब सोशल मीडिया पर जाटों को
लेकर बहुत सारे चुट्कुले फॉरवर्ड किए जा रहे थे जो कि ज़्यादातर जाटों की बुद्दि को
लेकर थे। जाटों के विषय मे एक बात सदियों से सुनते आ रहे हैं “आगे सोचे
दुनिया पीछे सोचे जाट” अब आप स्वंम जाटों के विषय मे अंदाजा लगा सकते हैं। किन्तु जाटों के
उजले पक्ष को भी देखा जाना आवश्यक है। आइये आज इसी विषय मे कुछ इतिहास कुरेदा जाए।
जाट न होने की सज़ा
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जाट शब्द की व्युत्पत्ति जाट शब्द का निर्माण संस्कृत के 'ज्ञात' शब्द से हुआ है। अथवा यों कहिये की
यह 'ज्ञात' शब्द का अपभ्रंश है। लगभग १४५० वर्ष
ई० पूर्व में अथवा महाभारत काल में भारत में अराजकता का व्यापक प्रभाव था। यह चर्म
सीमा को लाँघ चुका था। उत्तरी भारत में साम्राज्यवादी शासकों ने प्रजा को असह्य
विपदा में डाल रखा था। इस स्थिति को देखकर कृष्ण ने बड़े भाई बलराम की सहायता से कंस को समाप्त कर उग्रसेन को मथुरा का शासक नियुक्त किया। कृष्ण ने साम्राज्यवादी शासकों से संघर्ष
करने हेतु एक संघ का निर्माण किया। उस समय यादवों के अनेक कुल थे, किंतु सर्व प्रथम उन्होंने अंधक और व्रशनी कुलों का ही संघ बनाया। संघ के
सदस्य आपस में सम्बन्धी होते थे इसी कारण उस संघ का नाम 'ज्ञाति-संघ' रखा गया।
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प्राचीन
ग्रंथो के अध्ययन से यह बात साफ हो जाती है की परिस्थिति और भाषा के बदलते रूप के
कारण 'ज्ञात' शब्द ने 'जाट' शब्द का रूप धारण कर लिया। महाभारत
काल में शिक्षित लोगों की भाषा संस्कृत थी। इसी में साहित्य सर्जन होता था। कुछ
समय पश्चात जब संस्कृत का स्थान प्राकृत भाषा ने ग्रहण कर लिया तब भाषा भेद के
कारण 'ज्ञात' शब्द का उच्चारण 'जाट' हो गया। आज से दो हजार वर्ष पूर्व
की प्राकृत भाषा की पुस्तकों में संस्कृत 'ज्ञ' का
स्थान 'ज' एवं 'त' का स्थान 'ट' हुआ मिलता है। इसकी पुष्टि व्याकरण
के पंडित बेचारदास जी ने भी की है। उन्होंने कई प्राचीन प्राकृत भाषा के व्याकरणों
के आधार पर नविन प्राकृत व्याकरण बनाया है जिसमे नियम लिखा है कि संस्कृत 'ज्ञ' का 'ज' प्राकृत में विकल्प से हो जाता है
और इसी भांति 'त' के स्थान पर 'ट' हो जाता है। इसी आधार पर पाणिनि ने अष्टाध्यायी व्याकरण में 'जट' धातु का प्रयोग कर 'जट झट संघाते' सूत्र बना दिया। इससे इस बात की पुष्टि
होती है कि जाट शब्द का निर्माण ईशा पूर्व आठवीं शदी में हो चुका था।
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मदन मोहन मालवीय ने कहा था की जाट इस
देश की रीढ़ हैं
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जींस और डीएनए के हिसाब से जाटों को
ईरान इराक से लेकर दक्षिणी रूस तक परिभाषित किया जा सकता है
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जाट एक नस्ल है जाति नहीं
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समान्यत: जब बुजुर्ग जाट मरता है तो
वो अपने लड़कों को जमीन जायदाद के हिसाब के अतिरिक्त ये बताना कभी नहीं भूलता कि
उसने किस किस से कर्ज ले रखा है जिसे उसे मरने के बाद उन्हे उतरना है।
भाइयों हमारे भी हाथ बंधे हैं
सुरजमाल(1755 से 1763) और उनके पुत्र जवाहर
(1763-68) को जाटों का प्रथम और दीतीय सर्वमान्य राजा माना जाता है।जाट समान्यत:
खेती करने वाले और कुछ जमीदार भी पाये जाते हैं मुगलों के पाटन के साथ ही ब्रज
मण्डल मे जाटों का ही प्रभुत्व कायम हो गया।जाटों ने ब्रज मे सामाजिक जीवन और
राजनैतिक जीवन को कुछ ज्यादा ही प्रभावित किया।इस कल को ‘जाट काल’ के नाम से भी जाना जाता है।
ब्रज कि सं कालीन राजनीति मे जाट बहुत ज्यादा शक्तिशाली बन कर उभरे और इसी दौरान
जाटों ने डिग,भरतपुर,मुरसन हाथरस और सिनसिनी जैसे कई राज्यों को
स्थापित किया। इन सब मे डिग भरतपुर के राजा ज्यादा महत्वपूर्ण माने गए। जाट राजाओं
ने लगभग सौ वर्षों तक ब्रजमंडल के एक बड़े भू भाग पर राज किया। जाट राजाओं के राज
मे इन्होने अपने सिक्के चलाये और राज्य का विस्तार भी किया। ऐसा माना जाता है कि
पंचायत व्यवस्था जाटों की ही दें है क्यों की ये लोग अपने से ऊँचा किसी को भी नहीं
मानते इसी कारण प्रत्येक गाँव मे पाँच लोगों की एक संस्था बना कर सभी तरह के फैसले
करने का अधिकार दे दिया गया।जिस कारण इनमे उज्जडता आ गई। जहां जहां भी ये बहुलता
मे थे वहाँ वहाँ इन्होने और जतियों को अपने बल से डराया धमकाया।
प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहास लेखक विन्सेंट
स्मिथ ने भी अपनी पुस्तक "अकबर दी ग्रेट मुग़ल" में निकोलो-मनूची
के उल्लेख की पुष्टि करते लिखा है - 'बादशाह औरंगजेब जब दक्षिण में मराठा युद्ध में सलंग्न था -मथुरा
क्षेत्र के उपद्रवी जाटों ने सम्राट अकबर का मकबरा तोड़ डाला | उसकी कब्र खोदकर
उसके अवशेष अग्नि में जला डाले | इस प्रकार अकबर की अंतिम आंतरिक -इच्छा की पूर्ति हुई |'(अकबर
थे ग्रेट मुगल ,पगे नो। 328 ,विंसेंट
स्मिथ)
आगरा सूबा में नियुक्त मुग़ल सेनाधिकारियों से राजाराम का दमन नहीं किया जा सका, तो बादशाह ने आम्बेर के राजा बिशनसिंह को,जिसका पिता राजा रामसिंह उन्ही दिनों में मृत्यु को प्राप्त हुए थे -मथुरा का फौजदार बनाकर जाटों के विरुद्ध भेजा | राजा बिशनसिंह उस समय नाबालिग था सो लाम्बा का ठाकुर हरिसिंह उसका अभिभावक होने के नाते सभी कार्य संचालित करता था | ठाकुर हरीसिंह ने ही खंडेला के राजा केसरी सिंह जो खुद भी बाद में औरंगजेब का विद्रोही बना और शाही सेना से युद्ध करता हुआ वीर गति को प्राप्त हुआ था को समझाकर साथ ले आया था | केसरीसिंह समर के अनुसार-'राजाराम को दण्डित करने हेतु राजा केसरी सिंह को भी शाही फरमान भेज कर आमंत्रित किया गया था | अपने भाई बांधवों के साथ केसरीसिंह ने युद्धार्थ प्रयाण किया | रेवाड़ी परगने के खोहरी नामक कस्बे के पास अपनी सैनिक चौकी स्थापित करके केसरीसिंह ने राजाराम के ठिकानों पर आक्रमण किए | राजाराम भी मुकाबले के लिए अपने साथियों के आया और दोनों दलों के बीच जमकर घोर युद्ध हुआ | जाटों की सेना पराजित होकर समर-भूमि से पलायन कर गई। "जाटों के नवीन इतिहास" के अनुसार -राजाराम युद्ध में घायल होकर बंदी बना लिया गया था। सेना के मुग़ल सैनिकों ने उसका मस्तक काटकर बादशाह के पास भेज दिया। इस प्रकार इस जाट वीर ने धर्म विरोधी शाही नीति के खिलाफ विद्रोह में वीर-गति प्राप्त की |
आगरा सूबा में नियुक्त मुग़ल सेनाधिकारियों से राजाराम का दमन नहीं किया जा सका, तो बादशाह ने आम्बेर के राजा बिशनसिंह को,जिसका पिता राजा रामसिंह उन्ही दिनों में मृत्यु को प्राप्त हुए थे -मथुरा का फौजदार बनाकर जाटों के विरुद्ध भेजा | राजा बिशनसिंह उस समय नाबालिग था सो लाम्बा का ठाकुर हरिसिंह उसका अभिभावक होने के नाते सभी कार्य संचालित करता था | ठाकुर हरीसिंह ने ही खंडेला के राजा केसरी सिंह जो खुद भी बाद में औरंगजेब का विद्रोही बना और शाही सेना से युद्ध करता हुआ वीर गति को प्राप्त हुआ था को समझाकर साथ ले आया था | केसरीसिंह समर के अनुसार-'राजाराम को दण्डित करने हेतु राजा केसरी सिंह को भी शाही फरमान भेज कर आमंत्रित किया गया था | अपने भाई बांधवों के साथ केसरीसिंह ने युद्धार्थ प्रयाण किया | रेवाड़ी परगने के खोहरी नामक कस्बे के पास अपनी सैनिक चौकी स्थापित करके केसरीसिंह ने राजाराम के ठिकानों पर आक्रमण किए | राजाराम भी मुकाबले के लिए अपने साथियों के आया और दोनों दलों के बीच जमकर घोर युद्ध हुआ | जाटों की सेना पराजित होकर समर-भूमि से पलायन कर गई। "जाटों के नवीन इतिहास" के अनुसार -राजाराम युद्ध में घायल होकर बंदी बना लिया गया था। सेना के मुग़ल सैनिकों ने उसका मस्तक काटकर बादशाह के पास भेज दिया। इस प्रकार इस जाट वीर ने धर्म विरोधी शाही नीति के खिलाफ विद्रोह में वीर-गति प्राप्त की |
जब गुर्जर राजस्थान मे पटरी उखाड़ ले गए फिर हम तो जाट हैं बैठे भी न
मैंने जाटों का
संक्षिप्त इतिहास ही देना मुनासिब समझा क्यों की मेरा लेख हरियाणा मे हुई हिंसा को
लेकर है। हिंसा के दौर मे ही एक कहावत और चल पड़ी थी “ऑडी मे बैठा जाट भीख मांगा
कैसा लगेगा?”(मेरी नज़र मे आरक्षण राजनैतिक भीख ही है जो वोटों
को ध्यान मे रखकर दी जाति है। सामाजिक सराकोरों से इसका कुछ लेना देना नहीं है)
हरियाणा मे जानबूझकर आरक्षण की आग लगाई गई ताकि गैर जाटों को पार्ले दर्जे तक
नुकसान पहुंचाया जा सके और जाट अपने इस मकसद मे कामयाब भी हो गए क्यों की राजनीति
से लेकर पुलिस,सरकारी ऑफिस मे सभी जगह जाटों की संख्या गैर
जाटों के मुक़ाबले बहुत कम है। जिस हिन्दू का नारा देकर बीजेपी सत्ता मे आई है वो
इस हिंसा को रोकने मे पूरी तरह विफल ही नहीं हुई वरन सेना को बुलाने के पश्चात भी
उन्हे कोई अधिकार न देना ये साबित करता है कि ये हरियाणा मे रह रहे गैर जाटों के
विरुद्ध अघोषित युद्ध था जिसमे सरकारी मशीनरी पूरी तरह से फेल हो गई शायद इसका
कारण यह भी है कि अपने जन्म के समय से ही हरियाणा मे कभी कोई गैर जाट मुख्यमंत्री
नहीं बना है और बीजेपी ने ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाते बनाते अचानक पंजाबी मनोहर
लाल खट्टर को मुखयमन्त्री कि कुर्सी पर बैठा दिया जिसे जाट हजम नहीं कर पा रहे हैं
और परिनीति गैर जाटों को निशाना बनाने से हुई उनकी संपतिया ही नहीं फूँक डाली गई
वरन महिलाओं से भी बदतमीजी की गई ।
जाटों ने जिस तरह
सोनीपत,पानीपत,रोहतक, झज्जर, कैथल, जींद, भिवानी, हिसार और गोहाना को आगजनी का निशाना बनाया
उससे प्रतीत होता है कि इस साजिश कि तैयारी काफी पहले से की जा रही थी जिसकी भनक
तक खट्टर सरकार को नहीं लगी। इस आग मे केवल विपक्ष के नेता ही नहीं वरन सत्ता पक्ष
के नेता भी सिर्फ जाट होने के करना तमाशा ही नहीं देखते रहे वरन उन्होने तो आग मे
घी डालने वाले बयानों से अपनी संकुचित सोच को जग जाहीर कर दिया।अब हालत ऐसे हो गए
हैं कि गैर जाट अपने कार्यस्थलों मे जाटों को रखने से पहले दस बार सोचेंगे क्यों
कि जो जाट वहाँ काम कर रहे थे वे भी उस भीड़ (जाटों की भीड़)का हिस्सा बन गए और समान
लौटकर ले गए। आश्चर्य तो ये है की वे स्कूटर मोटरसाइकलकों लौटने के बाद आराम से
चला रहे रहे हैं और लोकल पुलिस और प्रशासन जानते हुए भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहा
क्यों?
रोहतक मे पुलिस को खुली चुनौती देते दंगाई
अगर इस तरह की
सुनियोजित घटना किसी मुस्लिमों (मुज्जफरनगर की घटना गवाह है की कैसे जाट और
मुस्लिम मे झगड़े पर उत्तरप्रदेश सरकार ने मुस्लिमों का साथ दिया) या दलितों के साथ
हुई होती अब प्रांतीय,राष्ट्रीय संगठन किस तरह सक्रिय
हो गए होते। हाय हाय के नारे और छ्द्म मानवअधिकारों के पेरोकर अपनी छाती कूट कूट
कर हँगामा खड़ा कर देते और कुछ संयुक्त राष्ट्र संघ जाने की धम्की देते अलग से।
किन्तु ये मामला हिंदुओं के बीच का है और पीड़ित लोग सैनी ब्राह्मण और बनिया है
इसलिए सभी मौन ही नहीं हैं वरन निश्चिंत भी हैं।किन्तु सावधान 2019 तक देश मे इतने
चुनाव होने वाले हैं कि सभी सत्ताधारियों पर गाज गिरेगी ज़रूर।
बीजेपी अटल बिहार बाजपई
के नेत्रत्व मे 1998 से 2004 तक सत्ता फिर 10 वर्ष गायब रही क्यों? आकलन ज़रूरी है। जिस बीजेपी को ब्राह्मण बनियों और कुछ ठाकुरों की पार्टी कहा
जाता था वो इनसे लगातार छिटकती जा रही है और इन तीनों को छोडकर सभी के पीछे भाग रही
है। और जब तब सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के विषय मे उल जलूल कड़े कानून बनाकर
उन सबको भी अपने से दूर कर रही है। कहीं ऐसा न हो कि पूरे के चक्कर मे आधे से भी बीजेपी
हाथ न धो दे,वैसे भी बीजेपी से लोगों का मोह भंग होना शुरू
हो चुका है।
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प्रदीप भट्ट :::
25.06.2016