रिपोतार्ज़
"ग़ज़ल कुंभ में नज़्म"
-ये क्या कर रही हैं मोहतरमा-
पिछले वर्ष हरिद्वार में आयोजित ग़ज़ल कुंभ में किन्ही कारणों से उपस्थिति न दर्ज़ कराने का मलाल इस वर्ष 1 सितंबर -2023 को क्रमांक 39 पर दर्ज़ होने पर कुछ कम ज़रूर हुआ। 🤗बारह वर्ष के पश्चात होने वाले कुंभ की तुलना में ये कुंभ पिछले 15 वर्ष से निरंतर ग़ज़ल के विद्यार्थियों को साहित्य की गंगा में डुबकी लगाने का अवसर प्रदान करता है। निश्चित रूप से इसके लिए बसंत चौधरी फाउंडेशन,नेपाल एवम् अंजुमन फरोग ए उर्दू दिल्ली के अतिरिक्त दीक्षित दनकौरी जी एवम् उनकी कर्मठ टीम जिसमें अल्का शरर जी प्रिय सन्तोष सिंह, राजेश उपाध्याय, राजीव मिश्र, कृष्ण गौतम व अन्य के निस्वार्थ अथक परिश्रम के लिए मेरे पास उपर्युक्त शब्द नहीं हैं किंतु टीम ग़ज़ल कुंभ निश्चित रूप से इसकी बधाई की पात्र है। 👌🏽
ख़ैर बहु प्रतीक्षित ग़ज़ल कुंभ की तिथि भी आ पहुँची इसी बीच हम हैदराबाद को बॉय बॉय करके उत्तम प्रदेश के तेजी से विकसित होते शहर मेरठ में अपना डेरा जमा चुका थे। 🤝हरिद्वार में आयोजित 25,26,27 नवंबर को तीन दिवसीय सेमिनार अटेंड करके जब मैं 28 को वापिस आ रहा था तो गुलाबी ठंड ने जकड़ लिया हमने पूछा क्यूँ भाई काहे इतना प्रेम जता रही हो तो गुलाबी ठंड मुस्कुरा कर बोली ठाकुर 17 बरस तक मुंबई और हैदराबाद में रहे हो तुम्हें बहुत मिस्स्स्स कर रहे थे और तुमसे चिपकाने को बहुत मन कर रहा था सो चिपक गए अब हमें झेलो। 🤣 नजला ज़ुकाम खाँसी साथ लिए लिए हम एक हफ़्ते तमिलनाडू एवम् केरल का भी प्रवास कर आए किंतु ये मुई बिना सुर वाली खाँसी ने हमारा पिंड न छोड़ा। देसी नुस्खों के अलावा दो दो डॉक्टर भी बदल लिए किंतु अफ़सोस दिल गड्ढे में .... 🥳
12 जनवरी को सुबह सुबह मेरठ से हम लदे फंदे ( ठंडी के कपड़ों से)अपने काव्य संग्रह "उर नाद" के सिलसिले में india net book नौयडा जाने के लिए निकले। अभी टिकिट बनवाकर निपटे ही थे कि इंडियन रेलवे का msg आ पहुँचा कि भईय्या ट्रेन संख्या such n such कैंसिल कर रहे हैं। अगर ग़ज़ल कुंभ से प्रेम है तो प्लेन से नई तो भैय्ये माटे माटे यानि पैदल निकल लो 🫣 तभी फ़ोन घनघना उठा देखा तो पाया उधर प्रदीप मिश्र अज़नबी जी यही सूचना दे रहे थे कि ट्रेन कैंसिल हो गईं है और सबने 😏(पता नहीं किन किन ने) प्रवास निरस्त कर दिया है। हमने कहा हुज़ूर बाक़ी को छोड़ो अगर आप तैय्यार हों तो अगले आधे घण्टे में बतावें कि क्या मैं आपका हवाई यात्रा का प्रबंध करूँ। भईय्या एक घंटा प्रतीक्षा के बाद हमने 13 की सुबह 8 बजे का टिकिट बुक किया। लगभग दो घण्टे बाद अज़नबी जी ने सूचित किया कि .........😫
अब मेरठ वापिस जाने का कोई सीन तो बन नहीं रहा था सो इंडिया नेट बुक से प्राप्त उर नाद का प्रूफ़ अप्रूव करके टैक्सी ली और सीधे कनॉट प्लेस होते हुए सरोजनी नगर मार्किट जहाँ हमारी मित्र लंच पर प्रतीक्षा कर रही थीं। लंच के बाद जैसी महिलाओं का शग़ल होता है थोड़ी शॉपिंग कर ली जाए हमने भी रुपये 50/- में एक मफ़लर खरीद कर अपने हिस्से की शॉपिंग निपटाई 😜 साँझ घिरने लगी थी सो हौज़ ख़ास उनके घऱ चल दिये। उन्होंने बहुत आग्रह किया कि सुबह यहीं से एअरपोर्ट चले जाना हमने भी विनम्रता से हाथ जोड़ दिए। देवी ये सम्भव नहीं है। अपनी तो आदत हो गईं है एअरपोर्ट पर रात बिताने की और 10 बजे विदाई लेकर सीधे एअरपोर्ट। रात भर जागते रहे सुबह 7 बजे फ्लाइट में बैठते ही सो गए। ठीक 9:40 मुंबई और ठीक 10:45 पर विले पार्ले स्थिति सन्यास आश्रम जा पहुँचे। हमारे मित्र अक्षय चंदेरी पहले ही पहुँच चुके थे। द्वार पर ही दीक्षित से मुलाक़ात हो गईं। नमस्कार चमत्कार के बाद रूम नंबर 203 अलॉट हो गया। कुल चार लोग।बारी बारी से फ्रेश हुए और ठीक 12 बजे खाने की प्रथम प्लेट हमने पकड़ ली। अक्षय जी तुरंत बोल पड़े। आ जाइए सभी पण्डित जी ने शुभारंभ कर दिया है 😄 खाना खाया और सीधे प्रथम तल स्थित कार्यक्रम स्थल पर जहाँ पर क्रम संख्या पूछकर हमें एक बैग दे दिया गया जिसमें ट्रॉफी के साथ बसंत चौधरी जी द्वारा लिखित दो पुस्तकें ख़ूबसूरत कवर के साथ साथ ही शक़ील शिफ़ई जी की पुस्तक झुर्रियाँ भी उसमें मौज़ूद थीं।
थोड़ा विलम्ब से ही सही कार्यक्रम अपरान्ह 1:20 पर शुरू हुआ। प्रथम सत्र में बसंत चौधरी जी जो कि मुख्य अतिथि थे, स्वास्थय संबंधी समस्या के कारण उपस्थित नहीं हो सके। उनकी अनुपस्थित में श्री अमर जीत मिश्र विशिष्ट अतिथि के अतिरिक्त वीरेंद्र याज्ञनिक ने कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की। प्रथम सत्र में 95वें वर्षीय श्री नंद लाल पाठक, पुणे एवम् शक़ील शिफ़ाई मेरठ (अनुपस्थित) ग़ज़ल कुंभ सम्मान -2024 से सम्मानित किया गया। प्रथम सत्र का संचालन देवमणि पाण्डेय जी द्वारा किया गया। श्री नंदलाल पाठक जी की अध्यक्षता में दूसरे सत्र का प्रारम्भ हुआ।सत्र का संचालन अल्का शरर जी द्वारा किया गया। देश भर से पधारे ग़ज़ल गो ने एक से एक पढ़कर प्रस्तुति देकर महफ़िल को रोशन कर दिया। तभी एक मोहतरमा को अल्का जी ने ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए प्यार से बुलाया वो बड़ी अदा से आईं फ़िर ग़ज़ल पढ़ने लगीं लेकिन ये क्या मेरी तरह और भी और प्रथम पंक्ति में विराजे दीक्षित जी भी चौंक उठे किंतु वो मोहतरमा बड़ी शान से ग़ज़ल की जगह नज़्म पढ़ इठलाती हुईं नीचे उतरी दीक्षित जी ने टोका तो बहस कि नहीं ये नज़्म नहीं ग़ज़ल ही थी। मेरे जैसे ग़ज़ल के कम जानकर को भी समझ आ रहा था कि ये ग़ज़ल तो कतई न पढ़ रही थी पर भईय्या कौन समझाए ऐसे लोगों को 🤣🤣🤣 न जी न मुझे उनका नाम न पता है जी मैं तो उनकी ग़ज़ल को समझने में मशगूल था 🥰 ख़ैर मेरा भी नंबर सायं को चायपान के बाद आया। ग़ज़ल देखें
नमक दरिया में थोड़ा सा मिला दूँ
मैं अपनी आँख का आँसू गिरा दूँ
ग़मों के साए में जीना है मुश्किल
ख़ुशी के वास्ते तुमको भुला दूँ
जो समझा ही नहीं अश्कों की क़ीमत
तो फ़िर ख़ातिर उसी के क्यूँ गिरा दूँ
इस तरह पहला दिन बहुत ही शानदार रहा। मैं तुलनात्मक अध्यन पसंद नहीं करता किंतु अल्का शरर जी का संचालन द्वितीय सत्र की ख़ासियत रही। प्रिय अन्नपूर्णा गुप्ता 'सरगम', बिट्टू जैन 'सना' ,नंदिता माज़ी
कनक लता तिवारी द्वारा सन्यास आश्रम स्थित ख़ूबसूरत भगवान शिव विष्णु की मूर्तियों के समक्ष मेरा सम्मान किया जाना व बिट्टू जैन 'सना' द्वारा अपनी पुस्तक "आँसू और मुस्कान" सप्रेम भेंट करना अद्भुत अनुभूति रही। इसके अतिरिक नेहा नाहटा,रचना जी, पटना बिहार रूबी भूषण व खरे जी की छोटी सी बिटिया के साथ मुलाकात उल्लेखनीय रही।रात्रि खाने के बाद मैं अक्षय चंदेरी व मुकेश सिंह( नागपुर) यूँ हीं सन्यास आश्रम के प्राँगण में बैठे थे तभी जुहू घूमकर लौटी अर्चना जी को हमने वहीं रोक लिया और रात्रि 11:30 बजे तक वन बॉय वन गीत ग़ज़ल कविताओं का अविस्मरणीय दौर चला कि चारों का मन ही नहीं कर रहा था ये गोष्ठी समाप्त हो किंतु किंतु किंतु अगले दिन भी पूरे दिन कार्यक्रम अटेंड करना था सो पुनः मिलन की आस लिए चारों अपने अपने कमरे को लौट चले।
दूसरे दिन प्रात: तैय्यार होकर नाश्ता किया फ़िर बैग पैक कर लिए ताकि आज 14 की प्रस्तुति के लिए आने वालों को कोई असुविधा न हो। 14 जनवरी का पूरा दिन फ़िर ग़ज़लमय रहा। एक से एक प्रस्तुति जिसमें दीक्षित दनकौरी जी,अल्का शरर जी , ग़ाज़ियाबाद से गार्गी कौशिक, देहरादून से तनुजा शर्मा, बरेली से अभिषेक अग्निहोत्री, सन्तोष सिंह, राजेश उपाध्याय, अहमदाबाद से सावन शुक्ला आदि आदि ने समा बाँध दिया। इस सत्र की ख़ासियत ब्रह्मदेव शर्मा,यशपाल यश अमर त्रिपाठी एवम् दमयंती शर्मा रही। सच कहूँ तो इस ग़ज़ल कुंभ से जाने का मन नहीं कर रहा था। एक बात मैं बिना संकोच के कहूँगा कि मैं इस ग़ज़ल कुंभ से काफ़ी कुछ सीखकर लौटा हूँ। कुछ लोगों को लगता है कि इस तरह के आयोजन यूँ ही हो जाते हैं। नहीं मित्रों "कहानी वाला" की 6 मीटिंग आयोजित करने में मुझे और मित्र सुहास को काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ी थीं। सो मुझे अहसास है कि 150-160 प्रतिभागियों के रहने, खाने स्टेज़ वगैरह वगैरह के प्रबंध करने में पैसे के अतिरिक्त कितना श्रम लगता है। सो पुनः दीक्षित जी एवम् उनकी टीम को हार्दिक शुभकामनाएं।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
अंत में सायं 7:30 पर अपने मित्र अरुण भाई के साथ एक ...... बैठकर गपशप की फ़िर 11:15 ऑटो लिया और सीधे बांद्रा स्टेशन पहुँच गये। मध्य रात्रि 12:20 पर बांद्रा-हरिद्वार ट्रेन में सवार हुए और 16 की प्रात: 5:30 ठंड में सिकुड़ते हुए मेरठ स्टेशन और भईय्या कोहरा इतना कि बस पूछो मति। सूटकेस लुढ़काते हुए बाहर आए तो अचानक दो ढाई फूट पर एक चेहरा दिखा जो कंपकंपाते हुए पूछ रहा था कहाँ जाएंगे बाबूजी। एक तो कोहरा उस पर मुँह खोलते ही मुँह से भी कोहरा ख़ैर जैसे तैसे घऱ पहुँचे। अदरक की चाय पी और ग़ज़ल कुंभ की सुनहरी स्मृतियाँ सँजोए सीधे रजाई में😄😄😄😄😄🤗🤗🤣