"तुमने
मुझे इस बुलंदी तक नवाज़ा क्यूँ था
गिर के
मै टूट गया काँच के बर्तन कि तरह "
आदमी भी पैसे और प्रसिद्धि के लिए क्या
-क्या नहीं करता । उदाहरण देख लो अपने जन्मदिन के दिन शाहरुख ने क्या कहा था
कि" देश मे आशिष्णुता और असंवेदनशीलटा बढ़ रही रही है " आज वही शाहरुख अपनी फिल्म "दिलवाले"
के फ्लॉप होने के दर से अपने बोले गए शब्दो का यह कहकर बचाव कर रह रहे कि मेरे
शब्दो को अलग तरह से प्रचारित किया गया है। कर दी न नेताओ वाली बात आखिर करे भी तो क्यो न नेता और
अभिनेताओ मे ज्यादा अंतर भी तो नहीं है । दोनों ही एक ही थ्योरी पर चलते हैं
:" Out
of side, out of Mind"
इसकी एक और बानगी देखिए जिस सलमान खान से लंबे समय
से बैर चल रहा था उसे भी एक ही झटके मे खतम कर "Big Boss" मे अपनी फिल्म दिलवाले कि प्रमोशन के लिए एक विशेष add campaign कारवाई जा रही है ताकि दर्शको कि नाराजगी को दूर किया जा सके । और ऐसा
सिर्फ शाहरुख ही नहीं वरन सलमान कि भी
मजबूरी नज़र आती है क्यो कि उनकी भी "सुल्तान " फिल्म कि शूटिंग शुरू हो
चुकी है और उन्हे भी डर है कि कहीं दर्शक आमिर और शाहरुख कि ही तरह उनकी भी फिल्म
का boycott करने का
फैसला न कर लें।
इसे कहते है DAR अपनी साख खो देने का अपनी प्रसिद्धि के बट्टा लगने का ।प्रसिद्धि के घोड़े
पर सवार सामान्यता आदमी अपना होश खो देता है वो भूल जाता है ये जनता है कब किस को
उठा दे कब किसको गिरा दे कोई नहीं जनता ।जिस जनता के पैसे और प्यार ने उन्हे इस
लायक बनाया है वो जनता नहीं जनता जनार्दन होती है । सीधे शब्दो मे कहूँ तो पिछले कुछ
समय से शाहरुख की फटी पड़ी है और इतनी जगह
से कि उसे समझ नहीं आ रहा कि कहाँ कहाँ से सिले।
इसी बीच 18 दिसम्बर भी आ गई और पिछले कुछ
दिनों से जारी सारी धमा - चोकड़ी के नित नए बनते फसानों को झेलती हुई कोजोल और
शाहरुख खान अभिनीत “ दिलवाले ‘ और प्रियंका चोपड़ा,
दीपिका पोदुकोने और रणवीर सिंह अभिनीत” बाजीराव मस्तानी ‘
दोनों ही फिल्मे आखिरकार 18 दिसंबर रिलीज हो ही गई। इन दोनों फिल्मों के विषय मे
जितना लिखा गया या निर्माताओ द्वारा बड़े स्तर पर जो प्रचार अभियान चलाया गया इस
लिहाज से प्रथम दिन यानि शुक्रवार को तो दिलवाले (लगभग 22 करोड़ ) ही बाजी मारती
नज़र आई वही बाजीराव मस्तानी लगभग 13 करोड़ की कमाई ही कर पायी किन्तु अगले दिन कमाई
के मामले मे जहां बाजीराव मस्तानी ने लगभग 16 करोड़ अपने खाते मे जोड़े वही दिलवाले
लगभग 20 करोड़ पर ही अटक गई । रविवार का दिन तो निश्चित ही बाजीराव के नाम रहा होगा
क्यों कि ये फिल्म एक लंबी रेस का घोडा साबित होने वाली है।
बाजीराव मस्तानी कि जो कि
एन एस इनामदार द्वारा लिखित पुस्तक “ राऊ ” कि जो कि पेशवा के राजा बाजीराव और
बुंदेलखंड के राजा यवन पुत्री मस्तानी कि
प्रेम कहानी है। फिल्म मे ऐसा बहुत कुछ जिस
पर लिखा जा सकता है किन्तु राजा छत्रसाल का किसी वीर सैनिक को मदद के लिए न भेजकर अपनी
पुत्री मस्तानी को ही क्यो भेजा गया समझ से परे है। बाजीराव पेशवा का एक राजा के दरबार
मे मुस्लिम रिवायत के हिसाब से राजा से समक्ष सलाम करने का क्या ओचित्य है ये तो संजय
लीला भंसाली ही जाने ।ये ठीक है की बुंदेलखंड मे कटार से विवाह की परंपरा रही है तो
क्या राजा छत्रसाल को बाजीराव पेशवा को बुंदेलखंड कि परंपरा का ज्ञान नहीं करना चाहिए
था और आग्रह करना चाहिए था कि अब आप बुंदेलखंड के कुँवर बन चुके है अतएव सादर पधारें और हमारी पुत्री
से विवाह करें।
छत्रसाल ने बुंदेलखंड की स्वतंत्र
सत्ता स्थापित करने में अथक परिश्रम किया। औरंगज़ेब ने इन्हें भी दबाने की कोशिश की
पर सफल न हुए। छत्रसाल ने कलिं को भी अपने अधिकार में किया। सन् १७०७ ई० सें
औरंगज़ेब के मरने के बाद बहादुरगढ़ गद्दी पर बैठा। छत्रसाल से इसकी खूब बनी। इस समय
मराठों का भी ज़ोर बढ़ गया था।
छत्रसाल स्वयं कवि थे। छत्तरपुर
इन्हीं ने बसाया था। कलाप्रेमी और भक्त के रुप में भी इनकी ख्याती थी। धुवेला-महल
इनकी भवन निर्माण-कला की स्मृति दिलाता है। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के
काल में हुई। छत्रसाल की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड राज्य भागों में बँट गया। एक भाग
हिरदेशाह,
दूसरा जगतराय और तीसरा पेशवा को मिला। छत्रसाल की
मृत्यु १३ मई सन् १७३१ में हुई थी।
(क) प्रथम
हिस्से में हिरदेशाह को पन्ना, मऊ, गढ़ाकोटा, कलिंजर, शाहगढ़
और उसके आसपास के इलाके मिले।
(ख) द्वितीय
हिस्से में जगतराय को जैतपुर, अजयगढ़, जरखारी, बिजावर, सरोला, भूरागढ़ और बाँदा मिला।
(ग) बाजीराव को तीसरे
हिस्से में कलपी, हटा, हृदयनगर, जालौन, गुरसाय, झाँसी, गुना, गढ़कोटा और सागर इत्यादि मिला।
उपरोक्त के अतिरिक्त यह भी एक सत्य है कि हम काफी
दिनो से शाहकार शब्द भूल से गए हैं ये फिल्म देखकर ये कहना पड़ेगा कि ये संजय लीला भंसाली
का अब तक का सबसे बड़ा शाहकार हैं। बाहुबली के पश्चात युद्ध का बहुत खूबसूरत चित्रण
फिल्म मे किया गया है। बड़े और खूबसूरत सेट फिल्म कि शोभा बढ़ाने मे अपना अप्रतिम योगदान
देते नज़र आते हैं। निशिचित रूप से ये फिल्म बाकी फिल्म निर्माताओ का दिमाग खोलने के
काफी होगी और वे ये सोचने पर मजबूर होंगे कि बही सड़े-गले विषयों से हटकर भी कुछ अनोखा
किया जा सकता है।