Monday, 4 November 2019

- देल्ही चलो या देल्ही छोडो-





- देल्ही चलो या  देल्ही छोडो-
हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी देल्ही में हवा के प्रदुषण  पर ही चर्चा हो रही है। कुछ नही बदला है अगर कुछ बदला है तो वायु प्रदुष्ण का इंडेक्स वो भी बहुत मामूली स्तर पर्। मैं प्रदुषण कम की बात नही कर रहा हूँ वरन इंडेक्स में बढोत्तरी की बात कर रहा हूँ कि पिछ्ले वर्ष की बनिस्पत इस वर्ष इसमें कितनी बढोत्तरी रही। देल्ही एन सी आर हर वर्ष नये रिकार्ड बनाने पर तुला है और हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी सभी प्रकार के मीडिया ने अपना अपना मुँह “दीपावली” पर्व की ओर मोड दिया है और शुरु हो गई है अन्नत बहस जिसका इस वायु प्रदूषण से कोई लेना देना नहीं है। सनातन धर्म के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम जब चौदह वर्ष का वनवास काट्कर अयोध्या लौटे तो अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत में उत्सव का आयोजन किया एवम दीप प्रज्ज्वलित कर, आसमान में रंग बिरंगी आतिशबाजी कर अपने अराध्य श्रीराम का स्वागत किया। यह एक परम्परा है जिसका पालन हम आज भी कर रहे हैं ।

ये भी सर्व विदित है कि शरद पूर्णिमा के पश्चात एव्म दीपावली के दिन से शरद ऋतु का पूरी तरह आगमन हो जाता है चूँकि वर्षा ऋतु  से शरद ऋतु के मध्य बद्लाव आता है अतएव विभिन्न प्रकार के कीट पतंगे इस दौरान पैदा होते हैं जो स्वास्थ्य को हाँनि पहुँचाते हैं । अब एक दिन की आतिशबाजी से कितना वायु प्रदुषण फैलता है? चलिए माना कुछ फैलता है तो बारुद की गंध से स्वास्थ्य को हाँनि पहुँचाने वाले कितने प्रकार के कीट पतंगे उस एक दिन में मरते हैं। और अगर मैं एक दिन पूर्व या पश्चात भी मानुँ तो कितने दिन वायु प्रदुष्ण फैलेगा ? इन दिनों में कुछ दिमाग से पैदल नेतागण, कुछ मीडिया संस्थान जानबूझ कर दीपावली पर्व को टार्गेट करते हैं किंतु अन्य धर्मो के पर्वो में मुँह में दही जमा लेते हैं। गज़ब है इनका दोगलापन?

देल्ही या अन्य शहरों में वायु प्रदुष्ण किस खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है या जाता है तभी सारे मिलकर शोर मचाना शुरु करते हैं। केमिकल से देल्ही की यमुना नदी भी बैंगालुरू झीलों की तरह ही झाग छोडने लगी है ऐसा क्यूँ हो रहा है कोई शोर नहीं कोई सम्वाद नहीं। और चूँकि अगले वर्ष देल्ही में चुनाव है अतएव हर राजनैतिक पार्टी ऐसा कोई भी विषय नहीं छोडना नहीं चाहती जिससे उसे वोटों में फायदा पहुँचता दिखता हो। आखिर जिन वोटों की खातिर ये राजनैतिक पार्टियाँ लडने मरने को तैयार दिखती हैं सत्ता प्राप्त होते ही उन्हीं वोटरों को एक तीसरी या चौथी श्रेणी के दास से अधिक नहीं समझती।  अब चलिए थोडी सी जानकारी भी साझा कर लेते हैं।

क्या आप जानते हैं वायु प्रदुषण के कारण हर वर्ष सिर्फ देल्ही में ही 80 मौतें होती हैं एवम पूरे विश्व में 42000 । भारत में कुल 06 मेट्रो सिटी हैं जिनमें मुम्बई (आबादी लगभग 1.5 करोड),कोलकता (आबादी लगभग 2 करोड ,चेन्नई (आबादी लगभग 70 लाख , बैंगालुरू(आबादी लगभग 80 लाख)  और हैदराबाद (60 लाख  और इनमें लगभग 80-90 लाख वाहन हैं। और अंत में देल्ही जिसकी आबादी लगभग 2.5 करोड और आपको जानकर आश्चर्य होगा अकेले देल्ही में 1 करोड से ज्यादा रजिस्टर्ड वाहन हैं और उनमें से 70 प्रतिशत दो पहिया वाहन। बाहर से आने वाले वाहनों का बोझ देल्ही पर अलग पडता है ये तब है जब देल्ही में मेट्रो ट्रेन भी है। इसके अतिरिक्त कितने जैनरेटर, इंवर्टर हैं इसकी कोई गिनती नही है। छोटे मोटे और बडे भी ऐसे कितने उद्योग धंधे चल रहे हैं जो कि अंधाधुंध प्रदुष्ण फैलाए जा रहे हैं किंतु इनकी रोकथाम की किसको फिक्र है। बस पंजाब और हरियाणा में किसान पराली जला रहे हैं उन पर ठिकरा फोड कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। क्य्हों नहीं चायना की तरह मानक से ज्यादा प्रदुष्ण फैलाने वाले सटील प्लांट बंद कर दिये जाते और जो नही माने तो भारी भरकम जुर्माना लगाया जाए ताकि औरों को भी सबक मिले। ये कह देना कि वो देल्ही वासी जो सिगरेट नहीं पीता वो भी इस प्रदुष्ण के कारण एक दिन में 20 सिगरेट पी लेता है ।ये क्यूँ नही बताते कि बच्चे भी इससे कितने प्रभावित हो रहे हैं और इसके लिए हम (देल्ही की सरकार ) जिम्मेदार है। लेकिन साहब ये कहने की हिम्मत कौन करेगा। शायद  कोई नहीं।  हमें अपनी मदद खुद ही करनी पडेगी।

                                                                                    -प्रदीप देवीशरण भट्ट-