" असमंजस "
लगभग 23-24 वर्ष पहले का वाक्या है। मैं देल्ही में नौकरी कर रहा था, कभी कभी मंडी हाऊस या अन्यत्र कहीं नाटक देखने भी चला जाता था। पिक्चर देखने, घूमने औऱ कविताएँ लिखने के अतिरिक्त एक नया शौक़ लगा था औऱ वो था अंक विद्या (Nimerology) में हाथ आजमाना।
मई या जून का महीना चल रहा था मैं देहरादून में बडे़ भाई साहब के पास मिलने के लिए गया हुआ था। रविवार का दिन था उन्होंने मुझसे कहा शाम को प्रेमनगर एक मीटिंग में चलेंगे। मायने स्वीकारोक्ति में सर को हिला दिया। शाम को चार बजे मैं उनके साथ नियत स्थान पर पहुँच गया, लेकिन ये क्या हमारे पहुँचने के 5 मिनिट्स के बाद ही झमाझम बारिश शुरू हो गई। जल्दी ही समझ आ गया क़ि ये बारिश 2-3 घंटे से पहले तो रुकेगी नही। मीटिंग के लिए कोरम पूरा नही था सो मीटिंग पोस्टपोंड कर दी गई। जिनके यहाँ मीटिंग थी वो एक क्रिश्चन फेमिली थी। चाय के साथ बातों अनवरत सिलसिला चल निकला। कई विषयों पर बात करते हुए भाई साहब ने मेरे शौक़ के विषय में बताया तो बात numerology पर आ गई । उनकी छोटी लड़की ने मरियम ने तुरंत मुझसे कई सवाल कर डाले मैंने भी बारी बारी से उसके सवालों का जवाब दिया तभी मरियम क़ी मम्मी ने अपने लड़के शायद पीटर नाम था के विषय में कुछ जानना चाहा मेरे स्वीकृति में सर हिलाते ही दरवाजा खुला औऱ एक 15-16 साल का लड़का भीगता हुआ अंदर आया औऱ भाई साहब के पैर छुए, मेरा परिचय पाकर वो मेरे भी पैर छूने के लिए झुका तो मैंने रोकते हुए उसे गले लगा लिया। कुछ देर निःशब्दता छाई रही फ़िर पुनः चर्चा शुरू हो गई। पीटर ने स्वयं ही बता दिया क़ि पिछले लगभग एक वर्ष से वह साधुओं के संपर्क में है उसे चर्च जाना अच्छा नही लगता वो सन्यास लेना चाहता है। एक बारगी तो मैं भी चक्कर खा गया क्यों क़ि इस तरह क़ी स्थिति उत्पन्न होगी इसकी मैंने कल्पना भी नही क़ी थी वैसे भी इस समस्या का समाधन numerology के माध्यम से होने का प्रश्न ही नही था । मैं कुछ देर शांत रहा फ़िर पीटर क़ी DOB ली कुछ गुणा भाग किया तो इतना समझ आ गया क़ि अंक सात का जबरदस्त प्रभाव है किंतु ये अस्थाई है। ख़ैर कुछ देर बाद मैंने मनोचिकित्सक क़ी भाँति उससे बात क़ी। मैंने पूछा तुमने कौन कौन सी धार्मिक पुस्तकें पढ़ी हैं उसने तपाक से श्रीमद्भागवत औऱ रामायण का नाम लिया, मैंने पूछा बाईबिल तो उसने कहा, नही, मैंने पूछा क्यों, तो उसने कहा अंदर से इच्छा नही होती।
मैंने उससे कुछ औऱ प्रश्न पूछे जिसका उसने बड़ी बेबाकी से उत्तर दिया। मेरे एक प्रश्न क़ि जिन साधुओं के पास तुम जाते हो क्या वे तुम्हें क्रिश्चियन धर्म त्यागने औऱ सनातन धर्म अपनाने के लिए किसी तरह का प्रेशर डालते हैं तो उसने हँसते हुए कहा भईय्या वो सब मस्त रहते हैं कुछ भी उल्टा सीधा पाठ नही पढ़ाते वरन कहते हैं जब तक तेरा मन हो आया कर जब ना हो तो मत आना।
मैंने कहा ठीक है तुम अगले तीन महीने तक साधुओं क़ी टोली के वहाँ न जाओ बल्कि घऱ में एक घंटा बाईबल पढ़ो, हर संडे चर्च जाओ अगर उसके बाद भी तुम्हारा मन न करे तो तुम वही करना जो तुम्हारा मन करे। मैं तीन महीने बाद सिर्फ़ तुमसे मिलने स्वयं आऊँगा। पीटर ने कुछ देर तक सोचा फ़िर पैरों को हाथ लगाते हुए बोला ठीक है भैय्या ये भी करके देखता हूँ। शायद मम्मी को ख़ुशी मिले। फ़िर मैंने बात बदलते हुए हँसते हुए कहा मेरी दक्षिणा ? उसने कहा कितने देने हैं, उसकी मम्मी उठी भी मैंने हाथ के इशारे से रोकते हुए कहा पैसे नहीं अपन को गर्म समोसे मांगता। वो मुसकुराता हुआ उठा औऱ छाता लेकर बाहर क़ी ओर चला गया।
मैंने पीटर क़ी मम्मी को कहा मैंने जानबूझ कर उसे बाहर भेजा है ताकि आपको कुछ बता सकूँ। देखिए पीटर पर ज्य़ादा दबाव न बनाएं। मैं एक प्रयास कर रहा हूँ मुझे उम्मीद है सफ़लता मिलेगी। अगर फ़िर भी वो संन्यास लेना चाहता है तो उसे डांटे डपटें नहीं। कुछ औऱ सुझाव देते हुए मैंने उन्हें ईश्वर पर विश्वास करने क़ी बात कही। तब तक पीटर भी समोसे ले आया था। चाय समोसे चट्ट करने के बाद हमने उनसे विदा ली। रास्ते में स्कूटर चलाते हुए भाई साहब ने मेरा नया नामकरण कर दिया। 'स्वामी प्रदीपानंद'! !
(c)प्रदीप देवीशरण भट्ट
17:04:2021