Thursday, 28 December 2023

संस्कृत के श्लोकों से गुंजित हुआ केरल अधिवेशन

रिपोतार्ज़ 

         (प्रदीप भट्ट से प्रदीप भट्ट ,'यायावर')

" संस्कृत के श्लोकों से गुंजित हुआ केरल अधिवेशन "

दक्षिण भारत की यात्रा के अंतिम पड़ाव में कन्याकुमारी से ट्रेन द्वारा लगभग ढाई घंटे  की सुखद यात्रा (हरियाली एवम् हरे पहाड़ों के नयनाभिराम दर्शन करते हुए) तिरुवनंतपुरम जा पहुँचे। रेलवे स्टेशन से होटेल की दूरी मात्र 600 मीटर बीच में बस स्टैंड भी। मुझे बेसाख्ता अंबाला कैंट  स्टेशन की याद हो आई सड़क के एक ओर स्टेशन दूसरी ओर बस स्टैंड। ख़ैर ऑटो लिया और सीधे होटेल KTC grand chaithram। आप सोच रिये होंगे कि ये क्या लाट साहिबी हुईं कि 600 मीटर के लिए ऑटो जब कि स्वामी प्रदीपानंद तो रोज़ाना दस हज़ार क़दम चलने के आदी हैं 😜तो भैय्ये दो लोगों के पास कुल ठो चार नग अब सर पे कुली की तरह सूटकेस रख के तो न चल सकते। मान लो लुढ़का के भी ले जावें तो 4* होटेल वाले का दरबान क्या सोचेगा कहाँ से ठलुए आ गए। 😜चलो उसे तो  डपट भी देंगे लेकिन रिसेप्शन पर बैठी हुईं किसी महिला की निग़ाह पड़ गईं तो .... अपनी तो बेइज़्ज़ती में दाग़ लगाना तय था न जी 😊 सो भईय्या ऐसा रिस्क न लेते हुए सीधे होटेल में एंट्री ली। पुछताछ की तो पता चला हमारे रूम met राजपाल जी तिरुवनंतपुरम के लोकल दौरे पर हैं। ख़ैर इस समस्या का तोड़ पूछा तो रिसेप्शनिस्ट ने तुरंत अपने मोतियों जैसे सफेद दाँतों के साथ फ़्री में ख़ूबसूरत मुस्कान के साथ डुप्लीकेट चाबी बनाकर हमारे हवाले कर दी। मोतियों जैसे दाँत देखकर हम सोचने लगे ये मोहतरमा कौन सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करती होंगी जो इनके दाँत हैदराबादी मोतियों की तरह चमक रिये हैं।😄 मोहतरमा का रंग साँवला  या काला होता तो कोई बात नहीं लेकिन दुग्ध में नहाई काया और चिट्टे रंग पर मोतियों जैसे दाँत ये तो वही बात हुईं कि beauti with brain कहावत याद हो आई 👩‍❤️‍👨। ख़ैर ख़ुशी और ऊर्ज़ा से लबरेज़ जब हमने कमरे में प्रवेश किया तो स्वप्न से जागने जैसा अनुभव हुआ। कमरे की हालात बैचलर्स लाइफ के कमरे सी प्रतीत हो रही थीं।😉सो पहला काम साथ आए होटेल अटेंडेंट को दिया मैं रिसेप्शन में बैठता हूँ कृपया इस कमरे को किसी सुघड़ महिला के कमरे की तरह कर दें। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से हमें देखा तो हमें अपनी गल्ती का अहसास हो गया। मलयालम हमें नी आवै और हिन्दी अंग्रेज़ी उसे नी आवै तो फ़िर एक समझदार व्यक्ति की तरह उसे और हाउस कीपिंग स्टाफ को इशारों में समझाया तब बात बनी।👏

नहा धोकर तैय्यार हुए और सांय 5 बजे से होने वाले कार्यक्रम स्थल का नीरव जी संग जायज़ा लिया। लौटकर नीरव जी के रूम में ही आए और अवगत कराया कि केरल अधिवेशन के लिए जो थीम सॉंग लिखा है उसे तरन्नुम में प्रस्तुत करना मुश्किल है क्यों कि हरिद्वार महोत्सव में ईनाम  स्वरूप खाँसी भेंट में पाएं हैं।तक़लीफ़ खाँसी से नहीं वरन इस बात से है कि ये मुई खाँसी भी हमारी तरह ही बेसुरी है।😱  नीरव जी ने प्रेम भरी एक वक्र दृष्टि हम पर डाली,उस दृष्टि से हम तो सिहर गए किंतु खाँसी तो खाँसी ठहरी सुसरी और ऐंठ गईं।  नीरव जी ने हुक्म दे दिया थीम सॉंग तो तरन्नुम में ही होगा हमने एक बंध तरन्नुम में दो बार खाँसते हुए सुनाया लेकिन उनका आदेश ज्यों का त्यों कि प्रस्तुति तरन्नुम में ही होगी। ख़ैर ठीक 5 बजे कार्यक्रम की शुरुआत हो गईं हम प्रथम पंक्ति में बैठे बैठे पानी पीते रहे ताकि गला तर रहे। देवियों की प्रस्तुति के बाद देवताओं में प्रथम नंबर पर हमें आमंत्रित किया गया पानी साथ लेकर स्टेज़ पर। माँ शारदे को स्मरण किया और लगभग दो मिनिट की प्रस्तुति तरन्नुम में दी। प्रस्तुति के मध्य खाँसी न आना इस बात का द्योतक रहा कि है नीयत साफ़ हो तो बरक्कत तय है। लगभग 7 बजे तक कार्यक्रम चला सभी मित्रों ने अपनी अपनी प्रस्तुतियों से कार्यक्रम में समा बाँधे रक्खा।

🤗abs 4 की प्रथा के मुताबिक डिनर पश्चात रात्रि में नीरव जी के रूम में सभी अपनी छुपी हुईं प्रतिभा दिखाने जमा हो गए ये विषय अलग कि हम उन कुछ प्रतिभाशाली प्रतिभाओं की प्रतिभा के दर्शन गाँधी नगर और मैसूरु में कर चुके थे 😱। नाच गाना अन्ताक्षरी वगैरह वगैरह। हमने तो पूर्व की भांति पहले ही क्षमा माँग ली कि नाच वाच हमसे न हो पाएगा हाँ बात अगर गाने की है तो बेसुरे स्वर में कोशिश कर सकते हैं लेकिन खाँसी के कारण इस बार वो भी सम्भव नहीं। कुछ लोग पहले मना करने के आदी होते हैं लेकिन जब 🧚‍♂️ ... फ़िर वो शुरू हो जाते हैं या कहूँ कि पूरा माहौल कैप्चर करने की कोशिश करते हैं  और क़ामयाब भी हो जाते हैं जब तक कि .....          सख़्त लफ़्ज़ों की इजाज़त है नहीं मुझको 'प्रदीप'          वरना ख़ुद ही सोचिये मुँह में ज़ुबां मेरे भी है  🙆‍♂️          ख़ैर  अर्धरात्रि तक चले प्रोग्राम की ख़ासियत डॉक्टर रत्नेश की लोक गीत पर बेहतरीन ठुमकों के साथ प्रस्तुति रही। मैंने उनकी तारीफ़ में कहा भी आपकी क़मर जैसे लचक खा रही है इससे कईं देवियों को रश्क हो सकता है कि हाय रे हमने अपनी क़मर को कमरा क्यूँ बना लिया 😩 प्रोग्राम ख़त्म हुआ और मैं अपने  कमरे में आया और सो गया ।

       अगले दिन 10 दिसंबर नाश्ता किया और नीरव जी के निर्देश पर हरिद्वार से ख़रीदी विशेष पोशाक (पीताम्बरी धोती और राम नाम का हॉफ कुर्ता ) पहनकर हॉल में हाज़िर हो गए। नीरव जी तो देखकर अतीव प्रसन्न हो गए। सबकी निग़ाहें हमारी ओर ही थीं कुछ कंठ से तो कुछ इशारों में हमें अच्छा लगने की बधाई दे रहे थे। थोड़ी देर बाद एक महिला ने जो काफ़ी देर से घूरे जा रही थीं पास आकर कह ही दिया। इस ड्रेस में ......। हमने उन्हें धन्यवाद तो दिया किंतु मन ही मन हँसते हुए कहा हे प्रभु रक्षा करो। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खां थे, विशिष्ट अतिथियों में रिटायर्ड मेज़र जनरल अनूप नायर उनकी धर्मपत्नी मीरा नायर एवम् डॉक्टर श्वेता सिन्हा थी। 
मैंने रिटायर्ड मेज़र जनरल अनूप नैयर एवम् ज्ञान चंद मर्मज्ञ जी ने राज्यपाल महोदय का स्वागत किया फ़िर हॉल में पहुँचकर राष्ट्र गान हुआ तत्पश्चात दीप प्रज्ज्वलन तत्पश्चात सरस्वती वंदना फ़िर राज्यपाल महोदय को डायस तक छोड़कर मैंने अपनी सीट पकड़ी। नीरव जी ने राज्यपाल महोदय का स्वागत किया तत्पश्चात नीरव जी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। राज्यपाल महोदय ने भाषण में अपने चिर परिचत अंदाज़ में वेदों की ऋचाओं का एवम् कुरआन की आयतों का सम्मिश्रण कर बड़ी ख़ूबसूरती से माहौल को एक साहित्यिक यज्ञ में परावर्तित कर अपने हिस्से की प्रथम आहुति इस यज्ञ में दी। इस प्रकार साहित्य अधिवेशन के प्रथम सत्र का समापन सँस्कृत के श्लोकों द्वारा पूर्ण  हुआ।

       द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन जिसमें देश के विभिन्न भागों से पधारे कवियों ने रचना पाठ किया। मैंने भी अपने तेवरों के अनुरूप अपनी एक ग़ज़ल पढ़ी  :-

"वफ़ा क्या है जफ़ा क्या है, मुझे तू क्यूँ बताता है
खफ़ा होना है हो जा, बेवज़ह क्यूँ तिलमिलाता है 

हमेशा तू खफ़ा होता, अगरचे मैं हुआ तो क्या 
किया कुछ भी नहीं अहंसा, मग़र फ़िर भी जताता है 

तुझे भी इल्म ये बेहतर, नहीं मुझसा कोई दूजा 
मग़र इसमें कभी उसमें, तू दिलचस्पी दिखाता है

तेरी चालाकियां एक दिन, तुझे लेकर के डूबेंगी 
भला तू है नहीं फ़िर भी, भला बनकर दिखाता है 

तेरी बातें समझ में, कम ही आती हैं मुझे भी 'दीप' 
मेरे पहलू में आकर, मुझसे ही दामन छुड़ाता है

प्रदीप DS भट्ट -

एक बात जो मन को अखर रही थी वह यह कि कुछ मित्र ये जताने में बिलकुल भी संकोच नहीं करते कि वे वरिष्ठ कवि या साहित्यकार हैं। पिछ्ले ढ़ाई या तीन दशक से साहित्य में सक्रिय हैं किन्तु जब प्रस्तुति के लिए मंच पर आमंत्रित किया जाता है तो वही घिसी पीटी गजलें, गीत मुक्तक पढ़कर इतिश्री कर जाते हैं। भाई मेरे पुराना सुनाओ लेकीन कभी नया भी तो गुनगुनाओ। आप वरिष्ठ हो अच्छा है वरिष्ठ वरिष्ठ हो जाइए बस गरिष्ठ मत बनिए। ऐसे मित्रों के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल:

ग़ज़ल 
        "कभी नया भी पढ़ा करो"

दुनियां को पढ़ते फिरते हो, कभी तो ख़ुद को पढ़ा करो
वही पुरानी ग़ज़लें, दोहे, कभी नया भी गढ़ा करो

इसका उसका तेरा मेरा, अभी भी तुम उलझे इसमें
बे- मौसम की बारिश जैसा, हरदम न यूँ झड़ा करो 

चलते चलते श्वांस फूलती, बातें पर ओलंपिक की 
अपने घऱ की सीढ़ी पर तुम, धीरे धीरे चढ़ा करो 

काम किया क्या ख़ास जो तुमको, दुनिया वाले याद करें
औरों से क्यूँ जलना भुनना, दिल को अपने बड़ा करो 

चाहत दिल में याद करें सब,सूरज सा तपना सीखो 
या फ़िर ख़ुद को मिट्टी का तुम, छोटा सा इक घड़ा करो 

नया सीखने की ग़र इच्छा, घर से बाहर निकलो तो 
कुछ अच्छा दिख जाये उसको,अपने मन पर मढ़ा करो 

अच्छी ग़ज़लें लिखो गीत या, लिक्खो उम्दा इक मुक्तक 
अच्छी ग़ज़लें सुन दूजे की, बैठ न हरदम कुढ़ा करो 

कब तक वही पुरानी बातें, सबको बतलाओगे 'दीप'
चलो समेटो हिम्मत फ़िर से, हर दिन नव कुछ गढ़ा करो  


प्रदीप देवीशरण भट्ट -101223 (तिरुवनंतपुरम)

सायं 7 बजे तक चले प्रोग्राम में एक से बढ़कर एक गीत ग़ज़लें सुनने को मिलीं। डिनर के बाद नीरव जी के रूम में फ़िर महफ़िल जम गईं। आज़ वो सज्ज़न नदारत थे जिन्होंने कल के प्रोग्राम को लगभग कैप्चर कर ही लिया था। प्रोग्राम शुरू हुआ नंबर आने पर हमने भी एक गीत :-
 इक हंसी शाम को, दिल में मेरा खो गया 
पहले अपना हुआ करता था, 
अब किसी का हो गया 

      आज़ फ़िर पूरे गाने में खाँसी ने डिस्टर्ब नहीं किया।वही मध्य रात्रि तक प्रोग्राम हुआ। कुछ बंधु एक दूसरे के साथ कल प्रात:भगवान विष्णु के मंदिर का प्रोग्राम बनाने एवम् लोकल घूमने का कार्यक्रम तय करते रहे अपन राम जी का नाम लिए और सीधे कमरे में। 

अगले दिन यानि 11 दिसंबर सुबह 5 बजे उठे फ्रेश हुए और सीधे पद्मनाभ मंदिर। धोती ख़रीदी, पहनी सामान जमा कराया और दर्शन करने निकल पड़े।50,100,500 के टिकिट की अलग पंक्ति समय का सदुपयोग करते हुए 500 की पर्ची कटवाई ये विषय अलग की ये पंक्ति भी काफ़ी लम्बी थी। श्रद्धा है भाई। ख़ैर दर्शन करते हुए सभी मित्रों के स्वास्थ एवम् प्रगति पथ पर निरंतर अच्छे  प्रदर्शन की कामना करते हुए (विशेष मित्र के लिए विशेष ) 9 बजे दर्शन कर होटेल वापसी। होटेल वापसी आते हुए चूहे पेट में कलाबाजियां ख़ा रहे है। एक  कहावत है "ब्राह्मण नहाया गज़ब ढहाया भजन किया तो भोजन पाया " सो ड्रेस चेंज की और सीधे नाश्ते की टेबिल पर।

सभी मित्र अपनी अपनी सुविधा अनुसार टोली बनाकर तिरुवनंतपुरम घूमने निकल चुके थे। नाश्ते के बाद मैं नीरव जी और मधु जी होटेल  KTC grand chethram की यादों को अपने अपने मोबाइल में क़ैद कर रहे थे। नीरव जी 12 बजे मीरा जी के यहाँ आमंत्रित थे सो मैंने सोचा इन्हें विदा कर मैं अकेले ही घूमने निकलता हूँ। 

दिन भी अपना है शाम भी अपनी
अवनि पैरों से कहाँ है मपनी 
इक बराहमन अकेला काफ़ी है 
'दीप' को माला कहाँ है जपनी ॥

तभी नीरव जी का मोबाइल घनघना उठा दूसरी तरफ़ अग्रज दर्शन बेज़ार थे जिनकी फ्लाइट सायं 7 बजे थी। समस्या ये थी की 12 बजे चैक आउट करके सामान कहाँ रखें। मैंने तुरंत सुझाव दिया मेरे कमरे में। कुछ देर बाद वे अपने भारी भरकम लगेज (मात्र एक हैंड बैग)के साथ रिसेप्शन पर हाज़िर हो गये। बात चीत शुरू हुईं तो मुझसे पूछा आपका क्या प्रोग्राम है मैंने कहा हुज़ूर नीरव जी को विदा करके घूमने निकलूँगा। थोड़ा असमंजस में देखा तो तुरंत प्रस्ताव दे दिया अभी निकलते हैं हुज़ूर आपके भारी भरकम लगेज को डिक्की में डालेंते हैं घूमते हैं आपको 5 बजे एअरपोर्ट ड्रॉप करके हम होटेल वापिस। बस नीरव जी को विदा किया। टैक्सी वाले को समझाया उसने पाँच मिनिट में रूट फ़ाइनल किया और दो प्रेमी चल पड़े तिरुवनंतपुरम घूमने। पहला पड़ाव नेय्यर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी जा पहुँचे। 2 लोगों के 2 घंटे के लिए 4500/- में पूरी सैर। लेकिन हम तो हम ठहरे दिल्ली वाले 4500/- को 4000/- करवाकर ही माने। बोट ली और निकल पड़े पूवर नदी, वर्कला बीच, बाक़ी जगहों के नाम याद नहीं आ रहे हैं। पहली बार वीडियो भी बनाई। पोस्ट की है रिस्पोंस अच्छा मिला। वहाँ से निकले तो सीधे कोवलम बीच की पहाड़ी पर महादेव के दर्शन किये फ़िर कोवलम बीच का आनंद लिया। अभी आनंद की अनुभूति हो ही रही थी कि बरख़ा रानी ने कानों में धीरे से सरगोशी की कि इससे पहले कि मैं अपना रूप दिखाऊं टैक्सी में बैठ जाओ और इत्तीफ़ाक़न हुआ भी ऐसा ही।बेज़ार जी भुनी हुईं मूँगफली खाने का लोभ संवरण नहीं कर पाए और बरखा रानी ने उनके चेहरे पर अटखेलियां करती ज़ुल्फ़ों को भिगो दिया😄।बेज़ार जी और मैं भी गर्मागर्म कॉफ़ी के इच्छुक थे और सोच रहे थे कितना अच्छा हो अगर साथ में गर्मागर्म पकौड़ी भी मिल जाएँ किंतु किंतु किंतु बरख़ा रानी ने इजाज़त नहीं दी और हम सड़क पर जमा पानी में बारिश की बूंदें गिरते देखकर उन्हें कढ़ाई में पकौड़ी समझकर संतोष करते रहे। उसी मस्त बारिश में बेज़ार जी को एअरपोर्ट ड्रॉप किया और स्वयं को होटेल में। बेज़ार जी के साथ लगभग पाँच घण्टे की गुफ़्तगू में तय हुआ कि अगले अधिवेशन में दोनों एक कमरे में रहेंगे 😉

      अगले दिन सुबह 6 बजे फ्लाइट थी तो कमरे में लौटे सामान पैक किया और सीधे नीरव जी के रूम में जहाँ अन्य मित्र पहले से ही मौज़ूद थे। थोड़ी बहुत गपशप हुईं फ़िर डिनर के नाम पर तीन दिन से एक मात्र विशुद्ध सात्विक भोजनालय नहीं नहीं विशुद्ध नहीं क्यूँ कि विशुद्ध तो सिर्फ़ मारवाड़ी भोजनालय होता है जहाँ प्याज़ भी वर्जित होती है। अब चूँकि लंच नहीं किया तो सोचा डिनर कर लें तो भैया जी 9,10,11दिसंबर को डिनर के नाम पर बस मसाला डोसा पेपर डोसा या ओनियन उत्पम। मतलब ब्रेकफस्ट  में इडली, वड़ा, उपमा पूरी सब्ज़ी कॉफ़ी जूस और वो दुग्ध में डालकर क्या खाते हैं 😊 छड्डो जी हलियो का पेट सुहालियों से कहाँ भरता है। बारह साल मुंबई में,साढ़े चार साल हैदराबाद में रहने के बाद सोचा साउथ इंडियन की आदत पड़ गईं है बस भैय्ये पिछले एक हफ़्ते से इसी पर जीवन यापन किया है। भला हो veg अरिया निवास  रेस्टोरेंट का जिसने जिलाए रक्खा वरना आस पास के veg के नाम पर बाबा रे बाबा। 👏दिल्ली से 5 दिसंबर की रात्रि को ठंड में 10:15 बजे दिल्ली एअरपोर्ट  पहुँच गए थे ताकि 6 दिसंबर की अल सुबह 5 बजे की फ्लाइट पकड़नी थी और यहाँ तिरुवनंतपुरम से 12 दिसंबर को सुबह 6 बजे की फ्लाइट। अच्छी बात ये थी इस बार दो की जगह कुल छः लोग थे सो अलसुबह 3:30 एअरपोर्ट पहुँचे फ्लाइट ली और 10:15 दिल्ली वहाँ से मेरठ खाना खाया और साढ़े छः बजे कंबल तानकर निद्रा रानी की गोद में अगले दिन आठ बजे जाकर मुबाईल की घंटी सुनकर  आँख खुली। 


बेहतरीन केरल यात्रा की स्मृतियाँ सँजोए !! !


प्रदीप DS भट्ट -291223

Wednesday, 20 December 2023

अब पड़ा तबियत में कुछ आराम सा। तुमने जब पूछा कि कैसे हो प्रदीप

यायावर की डायरी से

"अब पड़ा तबियत में कुछ आराम सा
तुमने जब पूछा कि कैसे हो प्रदीप "

          स्वास्थ्य थोड़ा नरम गरम होने के कारण यात्रा का वृतांत की दूसरी कड़ी में देरी हो गई। ख़ैर रामेश्वरम से लगभग १२ बजे बस ली और चल पड़े मदुरै स्थित मीनाक्षी टेंपल के लिए। एक बात जिसने मुझे प्रभावित किया वह थी मदुरै में और से रामेश्वरम तक साफ़ सुथरी सड़के। नॉर्थ में बस के अंदर पानी कोलड्रिंक बेचनेवालो की धूम रहती है किंतु तमिलनाडु की बसों में लोकल सामान और पानी बिकता तो देखा लेकिन कोल्ड ड्रिंक न जी न। लगभग ४ बजे मदुरै बस स्टैंड और वहां से ऑटो द्वारा मीनाक्षी टेंपल। मीनाक्षी टेंपल में भीड़ सोच रहा था रात दस बजे तक भी दर्शन हो जाएं तो जय श्रीराम वो भी विशेष टिकिट के बाद भी हालात खराब 
थे किंतु पंक्ति के साथ ही पीने के पानी की उचित व्यवस्था भी उपलब्ध थी। लेकिन एक बार दैनिक सांध्य पूजन अर्चन के बाद पंक्ति बड़ी तेजी से घटने लगा।लगभग ६ बजे दर्शन कर बाहर निकले फिर प्रशांत जी के साथ पेट पूजा की। मध्य रात्रि की ट्रेन पकड़ी और प्रातः ६ बजे कन्याकुमारी। स्टेशन से २फर्लांग की दूरी पर स्थित होटल लिया, कुछ देर आराम फिर निकल पड़े।

           सबसे पहले कन्याकुमारी माता के दर्शन किए फिर विवेकानंद रॉक के दर्शन किए। सबसे अद्भुत था तमिल के महान कवि तिरुवल्लू की मूर्ति के दर्शन करना। गर्मी पूरे प्रचंड वेग में थी इसलिए खाना खाया और होटल वापिस। सांय को सूर्यास्त देखने निकल पड़े। बेहतरीन नज़ारा किन्तु अफ़सोस दिल गड्ढे में बेहतरीन नज़ारा तो देखने को मिला किन्तु कन्याकुमारी में सूर्योदय एवम सूर्यास्त के दर्शन नहीं कर पाए। बादलों की आंख मिचौली ने सूर्य को हमसे दूर ही रक्खा।

"सूरज निकलना चाहता है बादल की ओट से
उठिए हुज़ूर ए आला पड़ा काम बहुत है "

क्या करते कुछ शंख खरीदे और चल पड़े मंथर गति से होटल की ओर आख़िर अगले दिन सुबह तिरुवंतपुरम की ट्रैनवा जो पकड़ती थी। तो ९ दिसंबर को प्रातः इडली खाई और चल पड़े अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समिति के तीन दिवसीय अधिवेशन में शिरकत करने के लिए। 

तो तैय्यार हो जाइए रिपोतार्ज के लिए 

प्रदीप DS भट्ट -211223

Monday, 18 December 2023

"देर आए दुरुस्त आए"



यायावर की डायरी से

            "देर आयाद आए"
आप सब सोच रहे होंगे कि ये क्या नया शिगूफा है भाई "यायावर की डायरी से" तो मित्रों हुआ यूं कि जब Abs4 के मैसुरू अधिवेशन में 19 वें अधिवेशन हेतु दर्शन बेजार जी द्वारा केरल के 'कोच्चि' का नाम प्रस्तावित हुआ तो हर्षित होना स्वाभाविक था किंतु किन्ही अपरिहार्य कारणों से अधिवेशन का स्थान बदलकर 'तिरुवंतपुरम' किया गया तो मन में यही विचार आया कि" मन चाहा होता नहीं प्रभु चाहें तत्काल"। ईश्वर की माया तो ईश्वर ही जाने। ख़ैर इस बार Abs4 द्वारा आपके मित्र को "यायावर" की उपाधि से विभूषित किया गया है तो सोचा हर इवेंट को दो पहलुओं में विभक्त कर देते हैं पहला "यायावर की डायरी से" और दूसरे पहलू को 'रिपोतार्ज' द्वारा जो कि सिर्फ़ कार्यक्रम पर फोकस होगा तो आइए यायावर की प्रथम डायरी का श्रीगणेश रामेश्वरम यात्रा से करते हैं।

हैदराबाद में पोस्टिंग के दौरान कोरोना भैय्या से एक लम्बी मुलाकात चली थी। वैक्सिन आई नहीं थी तो अपने मित्र सुहास भटनागर के साथ घर पर बैठे बैठे ही हमने 23 दिसंबर 2020 की जामनगर से रामेश्वरम को जाने वाली ट्रेन की दो टिकिट बुक कर दी किंतु जैसे ही वापिसी के लिए 25 दिसंबर की टिकिट बुक करनी चाही तो लिखा आ गया भैय्या कोरोना भाऊ के कारण ट्रेन कैंसिल की जाती है। आप समझ सकते हैं मूड कित्ता ख़राब हुआ होगा । 12 वर्ष मुंबई में रहकर सिर्फ़ त्रयंबकेश्वर के ही दो तीन दर्शन किए थे सो हमने महाराष्ट्र स्थित परली बैजनाथ घणेश्वर एवम भीमा शंकर के दर्शन करने का फ़ैसला किया और दिसंबर के अंतिम सप्ताह में ये पुण्य अर्जित किया किंतु रामेश्वरम के दर्शन न कर पाने की टीस बाकी थी सो जैसे ही तिरुवंतपुरम फाइनल हुआ हमने 6 दिसंबर की सुबह विजय प्रशांत जी के साथ दिल्ली से मदुरै फ्लाइट, मदुरै से रामेश्वरम बस से पहुंचे। 7 की प्रातः 5.30 बजे 22 कुंडो के पानी से स्नान कर विधिवत पूजन अर्चन कर मन एवम आत्मा तृप्त की तदुपरांत हल्का नाश्ता और फिर निकल पड़े धनुष कोड़ी के लिए। बेहद मनोहारी स्थान। दक्षिण भारत की प्रथम यात्रा का विवरण यहीं तक। अगले अंक में मदुरै के मीनाक्षी टेंपल का विवरण।

प्रदीप भट्ट ,'यायावर'

Friday, 1 December 2023

शब्दों के बाज़ीगर शब्दाक्षर महोत्सव में

रिपोतार्ज़

शब्दों के बाज़ीगर शब्दाक्षर महोत्सव में

जब अक्षर अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं तो वे शब्दों बन जाते हैं, जब शब्द अपनी यात्रा आरंभ करते हैं तो वे वाक्य में परिवर्तित हो जाते हैं और कुछ वाक्यों से मिलकर कविता का निर्माण हो जाता है जो अपनी अनवरत यात्रा के दौरान काव्य संग्रह या कहनी संग्रह उपन्यास,काव्य या महाकाव्यों तक का निर्माण हो जाता है। लेकिन इस पूरी यात्रा में अगर एक चीज़ महत्वपूर्ण है तो वो है शब्द और अक्षर यानि कि शब्दाक्षर। 

पिछ्ले वर्ष अगस्त की 6,7,8 को हम सभी शब्दाक्षर महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु चेन्नई में मिले थे। मैंने भी तेलांगना इकाई का उपाध्यक्ष होने के नाते उस महत्वपूर्ण आयोजन में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की थी। इस तरह के महोत्सव में सहभागिता करना ही अपने आप में महत्वपूर्ण होता है। केवल कोठरी जी का साहित्य के प्रति समर्पण देखकर निश्चित मन गदगद हो गया था।

इस बार भी 25, 26, 27 नवंबर को हरिद्वार में आयोजित शब्दाक्षर महोत्सव में ज्योति नारायन जी अध्यक्ष तेलांगना इकाई के अतिरिक्त मैंने भी उपाध्यक्ष तेलांगाना ईकाई की हैसियत से ही प्रतिनिधित्व किया। कोठारी जी पूरी तन्मयता के साथ प्रिय अमन शुक्ला, अध्यक्ष हरिद्वार के सहयोग से सारी व्यवस्थाओं में पूर्व की भांति लगे रहे। प्रिय निशांत एवम सागर दोनों ही अपनी अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु सदैव तत्पर दिखे। पिछली बार टीम दिल्ली अनुपस्थित थी किंतु इस बार पूरी टीम स्मृति कुलश्रेष्ठ जी के नेतृत्व में दिए गए कर्तव्यों को पूर्ण करने में सजग दिखी। इस सजगता को देखकर मैं मन ही मन प्रफुल्लित हो रहा था।😊 आख़िर साड्डी दिल्ली की मेहनत सफ़ल रही।

मैं 25 को योगा एक्सप्रैस से 11.30 हरिद्वार पहुंच गया कुछ ही देर में शताब्दी से दिल्ली टीम भी पहुंच गई और हम सब लगभग 12=15 होटल शर्मा परिवार (निकट शांति कुंज) पहुंच गए। मुझे कमरा नंबर 302 अलॉट किया गया 😁 सांय को रवि प्रताप सिंह जी के आग्रह पर मैं भी मनसा देवी के मंदिर में दर्शन करने चल पड़ा। मंदिर के मध्य में पहुंचकर तय हुआ कि हम सभी अक्षर एवम शब्दों के चंद पुष्प माता जी के चरणों में अर्पित करते चलें और परिणाम स्वरूप मेरी अध्यक्षता में एक कवि गोष्ठी आयोजित हुई। हमारी कविताएं सुनकर दर्शकों के तौर पर जुड़ी मेरठ की एक लड़की नेहा ने भी अपनी एक अच्छी कविता सुनाई। गोष्ठी उपरांत माता जी के दर्शन किए फिर एक ही स्टांस में सभी नीचे उतरे और सीधे होटल। खाना खाया और होटल के लॉन में सभी एकत्र हुए। देहरादून से पधारे डॉक्टर बुद्धिनाथ मिश्र जो कि शब्दाक्षर उत्तरखंड राज्य के अध्यक्ष भी हैं से सभी कवियों का परिचय रवि प्रताप सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष शब्दाक्षर ने कराया फिर आदतानुसार एक कवि गोष्ठी। लगभग 1 बजे वापिस कमरे में आया तो थोड़ी देर बाद ही दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण राही जी आ पहुंचे। एक घण्टे तक बतियाते रहे। अभी सोए ही थे कि 4 बजे मुबलिया घनघना उठा। दूसरी तरफ़ संतोष संप्रति थी, सीधे बोली नीचे रिसेप्शन पर हूं xy फोन नही उठा रहा क्या करूं 😇 हमने भी नींद में ऊंघते हुए कह दिया 302 में आ जाओ दो घंटे आराम करो फिर सुबह देखते हैं 🥰 ख़ैर थोड़ी ही देर में अमन की आवाज़ सुनकर मैंने कमरे से बाहर आकर देखा तो संतोष संप्रिति 301 में शिफ्ट हो चुकी थीं। 

26 को नाश्ते के बाद थर्ड फ्लोर पर हॉल में जा पहुंचे। पहले सेशन में परिचय, सम्मान इत्यादि में 4 बज गए। खाना खाया फिर अनवरत 8,9 कवियो के ग्रुप में सभी को स्टेज़ शेयर करने का मौक़ा दिया गया। ये अच्छा निर्णय था। रात 11 बजे तक तीन ग्रुप ही हो पाए। डिनर के बाद फिर अनौपचारिक कविताओं का दौर। 12 या 1 बजे सोए और सुबह संतोष संप्रति 7 बजे हाज़िर। सीधे सीधे चलो भाई गंगा नहाने चलना है। मना करने की गुंजाइश बिलकुल नहीं थी सो चुपचाप ऑटो लिया स्नान किया और 8.30 वापिस होटल पहुंच गए। नाश्ता किया और हॉल में। वही प्रक्रिया प्रथम सत्र में भी , प्रिय स्मृति कुलश्रेष्ठ का बढ़िया संचालन। पूरे दिन में लगभग 7,8 ग्रुप अपनी प्रस्तुति दे चुके थे। सेकेंड लॉस्ट में हमारा नंबर था सो एक गीत और एक गजल पढ़कर हमने भी साहित्यिक यज्ञ में अपनी आहुति दे दी।

🌷नमक दरिया में थोड़ा सा मिला दूं
मैं अपनी आंख का आंसू गिरा दूं

🌷गमों के साए में जीना है मुश्किल
खुशी के वास्ते तुमको भुला दूं 

श्यामल मजुमदार दादा एवम राजीव खरे ने अपने सत्र में अच्छा संचालन किया। मैंने विश्वजीत जी के इस आग्रह को कि एक सत्र का संचालन मुझे करना है के लिए बड़ी ही विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। प्रिय लखन कटनी का संचालन या कहूं कि प्रस्तुति करण बहुत अच्छा है किंतु उन्हें अभी बहुत अधिक सीखना शेष है। एंकर मतलब अपनी वाकपटुता से सभी कुछ साधने की कला अगर एंकर ही मंच पर क्रोध प्रकट करेगा तो रायता बिखरना तय है। मुझे उम्मीद है लखन भविष्य में अपने तैश पर नियंत्रण करना सीख लेंगे।🌹

खाने के बाद होटल के कवर्ड लॉन में कोठरी दादा की अध्यक्षता में फिर गोष्ठी जुड़ गई। विश्वजीत, लखन, स्मृति कुलश्रेष्ठ, सविता बांगड़,वंदना चौधरी, सीमा त्रिवेदी, बिट्टू जैन, राज पुरोहित,
मधु पारख और है हम यानि शाहंशा ए दिल्ली 🤪 अब हम तो हम ठहरे ठंड से बचने के लिए सभी को सुझाव दे रहे थे, सिर ढक लो भैया पैर ढक लो सीना भी कवर कर लो। हमारी बात को सिरयसली लेते हुए विश्वजीत जी ने तुरन्त आधी अधूरी बुक्कल मार ली। चित्र देखें 😝 सुबह चार बजे तक चली गोष्ठी का आनंद शब्दों में बयां करना मुश्किल है। कोठरी दादा कमरा नहीं खुला तो मैंने उन्हें अपने कमरे में सोने का आग्रह किया। वो तो दस मिनिट में ही सो गए। मैं भी प्रयास कर ही रहा था तभी किसी ने मेरा पैर हिलाया देखा तो एक धुंधली सी परछाई दिखी। हमने अपने तेवर में ही पूछा कौन हो देवी यहां क्या कर रही हो तैन्नु की चाइदा। उसने न सुनाई देने वाला अट्टहास लगाया और बोली बहुत प्रवचन दे रहे थे वहां। बच के रहो सर्दी है बुड्ढा जवान नहीं देखती बस चिपक जाती है जिससे चिपकना होता है। तो बेटा हम वही सर्दी हैं अब देखो हम तुमसे कहां कहां चिपकते हैं। हमने हाथ जोड़ते 🙏🏾 हुए कहा देवी रहम करो हमें तीन दिवसीय कार्यक्रम में सम्मिलित होने 5 दिसंबर को केरल जाना है। हमने बड़ी अनुनय विनय की लेकिन उसका दिल न पासीजा बोली हमारे ग्राहक को हमसे बचाओगे तो हम तुम्हे ही अपना ग्राहक न बनाएंगे। कुछ देर बाद कमर में सिहरन सी महसूस हुई हम समझ गए कि अपना हैप्पी बर्डे पक्का। और अगले दिन घर पहुंचते पहुंचते जय श्री राम। सो भैय्या गला चॉक हो गया है। हाथ पैरों में जान सी न लग री, खांसी कौन से सुर की है पता नी चल रिया 😎😦 कोरोना के बाद फिर से काढ़ा पी रहे हैं। लगे है डॉक्टर बाबू को दिखाना भी पड़ेगा नई तो......... चेन्नई से वापिसी में भी कुछ कुछ ऐसा ही हुआ था। 16 अगस्त को हैदरावाद मेट्रो में गिर गए सो अलग। कुछ दिनों तक पट्टी बांधकर और लटकाकर 😏😏😏 वो भी क्या सीन था मेट्रो में चढ़ते ही सीट ऑफर हो जाती थीं।

कुछ लोगों को मन में बसाए और कुछ को घटाए 28 की सांय को घर वापिसी । कल सांय को मजूमदार दादा का फोन आया तो मन प्रफुल्लित हो गया। सीधे बोले राष्ट्रीय कवि प्रदीप भट्ट दादा को प्रणाम 🌷🙏🏾🌹 गले की तो एमसी बीसी हुई पड़ी हुई थीं फिर भी काफ़ी देर तक बतियाते रहे ।
चर्चा के दौरान प्रोग्राम के विषय में मजूमदार दादा ने पूछा तो मैंने बोला प्रोग्राम बहुत अच्छा और स्तरीय हुआ है दादा और अगर फिर भी कोई व्यक्ति इतने अच्छे प्रोग्राम में कमी ढूंढता है तो ये उसकी आंखों का दोष है या फिर मानसिकता का।

तो दोस्तों फिर मिलेंगे किसी नए वैन्यू पर नए मैन्यू के साथ और हां किसी ने वादा किया है दोस्ती निभाने का, देखते हैं भैय्या सिर्फ़ वादा है या दावा। एक शेर याद आ गया।
दावा करूंगा हिज़्र में मूसा के खून का
क्यूं उसने मेरे कातिल के खंजर को बाड़ दी 

प्रदीप DS भट्ट, 011023

Wednesday, 22 November 2023

विश्व कप अपनी जगह है साहित्यिक पैशन अपनी जगह

रिपोततार्ज़ 

"विश्व कप फ़ाइनल अपनी जगह 🌹
साहित्यिक पैशन अपनी जगह"❤️❤️❤️

लगभग 18-20 बरस के बाद रविवार 19 नवंबर को मैं प्रैस क्लब ऑफ़ इंडिया में एक कवि सम्मेलन में आमंत्रित था।  जुलाई 2006 में दिल्ली छोड़कर मुंबई की नमकीन हवा में लगभग 12 बरस गुजारे फ़िर लगभग साढ़े चार बरस तेलांगना के ख़ूबसूरत शहर हैदराबाद में गुज़रे। लेकिन दिल्ली को न मैंने छोड़ा न ही दिल्ली ने मुझे। यही तो असली आशिक़ी है हुज़ूर 😊

ख़ैर दिल्ली में सर्विस के दौरान न जाने कितनी बार प्रैस क्लब आना हुआ लेकिन कारण हमेशा अलहदा ही रहे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी यहाँ कविता पाठ भी करूँगा वो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्मोत्सव पर !निश्चित रूप से इसके लिए आदरणीय सुरेश नीरव जी का धन्यवाद। गौड़ सिटी के गौड़ साहब मुख्य अतिथि आमंत्रित थे। संजय जैन, राजेश प्रभाकर,  प्रिय राजेश श्रीवास्तव , पूजा भारद्वाज पूजा श्रीवास्तव,शोभा सच्चन, निशा भार्गव राघव एवम् मधु मिश्रा जी। सभी एक से बढ़कर एक ने अपनी कविताओं से महफ़िल में समा बाँध दिया।  मैंने भी अपना एक गीत प्रस्तुत किया। 

"मैं योद्धा हूँ" 

मैं सत्ता शीर्ष से भिड़ने चली हूँ 
अकेली हूँ मग़र लड़ने चली हूँ 
है किसमें ताब मेरा रस्ता रोके 
खड्ग मैं हाथ लेकर चल पड़ी हूँ 

अरि बलशाली हो मेरी बला से 
भरोसा ख़ुद पे मुझको करना आए
ग़लत फ़हमी अगरचे हो किसी को
मेरे वो वार से बचकर दिखाए

किसी के सामने झुक जाऊँ ऐसा 
तुम्हें लगता पटाखे की लड़ी हूँ 


लहू का रंग सबका एक सा पर 
गति बतला ही देती वीर योद्धा 
जो भृकुटि तान कर रण में खड़ा हो 
वही तो असलियत में है पुरोधा

मेरी तलवार ही अब तय करेगी 
मैं अग्नि गोला या फ़िर फुलझड़ी हूँ 


किसी से भी कभी डरना न सीखा 
नहीं भाता है मीठा भाता तीखा 
हमें दस्तार अपनी जाँ से प्यारी
नहीं कमज़ोर है भारत की नारी 

कि मैं शमशीर दोधारी हूँ जानो
नहीं लकड़ी की समझो मैं छड़ी हूँ

करो कुछ भी मग़र ये ध्यान रखना 
कि तुम ख़ुद पे सदा अभिमान रखना
अगरचे काल तेरे सामने हो 
तो तुम बेख़ौफ़ हो सवाल करना

कि मैं अग्नि शिखा हूँ जान जाओ 
नहीं बरसात की कोई झड़ी हूँ 


कभी कोई अगरचे तुमको छेड़े
करो निश्चित कि खाए वो थपेड़े
झुको न ख़ुद झुकाओ तुम किसी को 
कभी तक़लीफ़ दो न तुम किसी को 

अगर तुम सारथी हो सत्य के तो 
कि मैं माणिक्य की समझो मणि हूँ 

 
मैं नारी हूँ मग़र नर मुंड पहनूँ 
मैं अपने माथ पे त्रिपुंड पहनूँ 
मेरे नयनों से अंगारे बरसते 
अरि करुणा को मेरी हैं तरसते 

मुझे तुम दुश्मनों का काल समझो 
मैं बन के जीत माथे पर जड़ी हूँ 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट -25:08:2023

विश्व कप का फ़ाइनल मैच अपनी जगह और साहित्यिक पैशन अपनी जगह। एक अच्छे कार्यक्रम के लिए सभी को बधाई। 
फ़िर मिलेंगे दोस्तों 🤗🤗🤗🤗
प्रदीप DSभट्ट-22112023

Friday, 17 November 2023

"ख़ाली जाती सदा नहीं"

ग़ज़ल

     "ख़ाली जाती सदा नहीं"


अँखियाँ ताक रही दरवज्ज़ा,  कब आओगे पता नहीं
जितना चाहो तड़पा लो तुम,फ़िर भी तुमसे ग़िला नहीं 

तुमसे करी मुहब्बत हमने, बिन सोचे और समझे भी
माना इक तरफा है इसमें, दिल की कोई ख़ता नहीं 

आज नहीं तो कल ये तेरे, दिल से जा टकरायेगी 
दिल की बातें दिल ही समझे, ख़ाली जाती सदा नहीं 

कितना समझाया सखियों ने, लेकिन मन चंचल निकला 
प्यार किया तो दिल में रखना, कभी किसी को बता नहीं

माना तुम बेदिल हो लेकिन, बात मेरी सुन लेनी थी 
छोड़ भरे सावन जाना कोई, देता ऐसा सिला नहीं

तुम्हीं कहो मैं और प्रतीक्षा, करूँ तुम्हारी कब तक यूँ 
इस व्यवहार से फ़िर भी देखो, दिल मेरा जी जला नहीं 

बीत रहे दिन इक इक करके, चिट्ठी न कोई संदेशा  
'दीप' तुम्हीं सोचो मुझको क्यूँ, अब तक भी ये खला नहीं 

प्रदीप DS भट्ट -181123

"मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी "

          
             " मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी"
मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी, लेकिन मुझमें श्वाँस है 
तू भी एक दिन बोल पड़ेगी, मुझको ये विश्वास है

तन की सुंदरता सब देखें, मन में झाँक के देखे कौन
इसलिए ऐसे लोगों का, होता निश दिन ह्रास है 

ग़लत नहीं कुछ किया अगरचे, फ़िर क्यूँ डरना लोगों से
त्रास भी मिलता जीवन में,कभी मिलता जी परिहास है

दरिया की मौजे जब तेरे, पैरों को टच करती हैं 
तुझको देख के लगता लेती, तू गहरी उच्छ्वास है 

नहीं मुस्व्विर हूँ मैं माना,कोशिश में कुछ हर्ज़ नहीं 
देख तुझे अब लगता जैसे, रचना आसम पास है 

भाग्य बदा वो होकर रहता,करो जतन तुम कितने भी
जब तक प्राण बसे हैं तन में,तब तक मन में आस है 

कुछ तो अलग करो जिससे कि,दुनियाँ तुमको याद करे
वरना 'दीप' कहाँ बनता जी,कभी किसी का ख़ास है 

-प्रदीप DS भट्ट -151123

Saturday, 4 November 2023

मज़ा जीने का तुम जो चाहो

रिपोतार्ज

मज़ा जीने का तुम जो चाहो तो दून चले आओ जी दून चले आओ


मज़ा जीने का गर जो चाहो तो अंदर चले आओ जी अंदर चले आओ। ये फिल्म का गाना है जो आज यूं ही याद आ गया तो मैंने इसे कुछ यूं कर दिया मज़ा जीने का तुम जो चाहो दून चले आओ जी दून चले आओ। कारण बना अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका प्रज्ञान विश्वम के पांचवे अंक के लोकार्पण का जो की देहरादून के सुभाष सैनी जी पर केंद्रित था। आदरणीय नीरव जी ने सूचना दी कि ये प्रज्ञान विश्वम का विषेष अंक सुभाष सैनी जी पर है आप लोकार्पण का हिस्सा बनने के लिए तैय्यार रहिए। दो तीन दिन के बाद अग्रज सैनी जी का फ़ोन आ गया कि आपको आना ही पड़ेगा, अब अग्रज के आदेश को टालने की हिम्मत कौन करेगा। हमने सहर्ष अपनी सहमति प्रदान कर दी। 🙏🏾

हमारे अतिरिक्त गुरुग्राम हरियाणा से निगम दम्पत्ति ,( राजेंद्र निगम एवम इंदु निगम जी) एवम राजेश प्रभाकर भी लोकार्पण का हिस्सा बनने के लिए देहरादून पहुंच रहे थे । सो 29 अक्तूबर को हम भी पहुंच गए देहरादून पिछले 43 बरस की यादों को संजोए। सैनी जी ने होटल हिल व्यू में रहने की व्यवस्था की हुई थी। लगभग 2 बजे होटल पहुंचा तो राजेश प्रभाकर पहले ही वहां विराजे मिले। नमस्कार चमत्कार, (बस यूं ही लिख दिया चमत्कार होना भी क्या था) राजेश जी ने कहा पहले खाना खा लें, मैं तो खा चुका हूं मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा आज दिन के खाने की छुट्टी। सैनी जी ने प्रोग्राम के बाद घर पर डिनर  रक्खा हुआ है सो......🤝

उत्तराखंड के शिक्षा विभाग के सहस्र धारा स्थित डायट के सभागार में नियत समय पर कार्यक्रम शुरु हो गया। मै स्वयं समय का पाबंद हूं इसलिए मुझे नीरव जी की यही बात पसंद आती है कि वे सामान्यत कार्यक्रम समय से शुरु कर देते हैं । यहां भी ऐसा ही हुआ। टैक्सी ड्राइवर ने होटल से डायट पहुंचने में कुछ ज्यादा ही समय लिया ख़ैर फिर भी हम 3.50 पर पहुंच गए। अध्यक्षता एम एम घिड़ल्याल जी ने की।दीप प्रज्ज्वल के पश्चात् सुमन सैनी जी द्वारा सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। थोड़ी देर बाद ही वह शुभ समय आ गया जब प्रज्ञान विश्वम के विषेष अंक का लोकार्पण समृद्ध मंच द्वारा सम्पूर्ण हुआ। उसके बाद आदरणीय नीरव जी के सधे हुए संचालन में कविता पाठ प्रारम्भ हुआ। एक से बढ़कर एक कवि कोई श्रृंगार पर पढ़ रहा था तो कोई व्यंग्य पर कोई ओज पर तो कोई हास्य पर। कुल मिलाकर बेहद उम्दा कवि सम्मेलन संपन्न हुआ। मैंने भी अपनी एक रचना प्रस्तुत की।

नमक दरिया में थोड़ा सा मिला दूं
मैं अपनी आंख का आंसू गिरा दूं
     के अतिरिक्त

पानी ऊपर पानी लिक्खूं या फिर कोई कहानी लिकखूं 
ख़ुद को बतलाऊँ मैं राजा और तुम्हें क्या रानी लिक्खूं 

प्रोग्राम के बाद सैनी जी के घर जमी महफ़िल ने पुराने दिनों की याद ताज़ा कर दी जब रात में देर तलक कवि गोष्ठी में ऊंघते रहते थे लेकिन बैठे रहते थे क्या पता अपना नंबर आने वाला हो और हमें सोता समझकर कोई दूसरा अपनी कविता न चेप दे। ब्राह्मण को यदि बढ़िया खाना खाने को मिल जाए तो बल्ले बल्ले। रात बारह बजे होटल वापिसी। सुबह सात बजे सहस्र धारा पहुंच गए फिर से यादें ताज़ा करने। लेकिन 20=22 बरस पहले की अपेक्षा सहस्र धारा थोड़ा नहीं काफ़ी बदल गया हमने एक को रोककर पूछा तो बोला हुज़ूर ये सब चेंच 2014 के बाद ही आया चिकनी चिकनी 🛣️ सड़के इलैक्ट्रिक बस electrik 🚌 वगैरह फिर जय श्री राम कहते हुए निकल लिया भाई। हमने भी जय श्री राम बोलते हुए सहस्र धारा में नहाने का लुत्फ उठाया फिर वापिस होटल। नाश्ते के बाद सामान समेटा और राजेश जी को एयरपोर्ट रवाना कर हम भी प्रेमनगर पहुुंच गए। 1 नवंबर की सुबह 5 बजे की ट्रेन छुट गई सो बस से वापिस मेरठ सुनहरी यादों के संग।

एक अच्छे और सुनियोजित कार्यक्रम के लिए नीरव जी सैनी जी को हार्दिक शुभेच्छा ।
सैनी जी बेहतरीन आवभगत के लिए हृदय से धन्यवाद।


प्रदीप DS भट्ट 41123

Wednesday, 25 October 2023

हीरो हो तो लगो भी मियां वरना.....


रिपोतार्ज़

"सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है"

आप सोच रहे होंगे आज रिपोतार्ज़ का शीर्षक कुछ अज़ीब सा क्यूँ है। भैइय्य्या जब ससुरी ज़िंदगी में तूफ़ान ही तूफ़ान हों तो कोई क्या करे।बचपन से एक उक्ति सुनते आ रहे हैं कि:😉

"क़िस्मत में हों कंकर, तो क्या करेंगे शंकर"

अब ऐसा लगता है कि ये उक्ति विशेष तौर पर मेरे लिए ही लिखी गईं है। जीवन के तीसरे प्रहर में लकड़ी वाले से, पेंट वाले से प्लम्बर इत्यादि से इतना अत्याचार होना लिखा था सो भईय्या भोग रहे हैं।😔 काफी नुक़सान झेलकर एक सीख मिली कि बेटा ज़रूरत से ज़ियादा दरियादिल भी अच्छी नहीं होती। कुछ प्रजाति ऐसी होती हैं जिनकी पूँछ कभी सीधी नहीं होती अलबत्ता ये प्रजाति नलकी टेढ़ी करने में दक्ष होते हैं। प्रणाम है ऐसी प्रजाति को !🐶

ख़ैर इसी ऊहापोह में के मध्य नौयडा से आदरणीय नीरव की फ़ोन पर मधुर वाणी सुनी। आग्रह था 13 अक्टूबर को हिन्दी भवन में हाज़िर होना है। जीवन में कुछ लोग ऐसे भी होने चाहिए जिनका आग्रह आदेश के बराबर हो सो नीरव जी उन्हीं चंद विभूतियों में से एक हैं।🔱 एक दिन पूर्व ही प्रिय राजेश प्रभाकर जी गुरुग्राम से भी आमंत्रण/निवेदन प्राप्त हो गया। हमने भी सोचा प्रोग्राम तो सायं 4 बजे से है तो क्यूँ न प्रकशाधीन पुस्तक " उरनाद  " का हाल चाल ले लिया जाए सो पहुँच गये सेक्टर 19 स्थित इंडिया बुक के ऑफिस में। इंडिया बुक के सर्वेसर्वा डॉक्टर संजीव एक बेहतरीन इंसान हैं।बिना लाग लपेट के बात करना पसंद करते हैं। बेहतरीन ☕काफ़ी के साथ लगभग डेढ़ घण्टे की गुफ़्तगू के बाद उनसे विदा ली।

मुझे लगा सेक्टर 19 से हिन्दी भवन (ITO) एक डेढ़ घंटा तो लगेगा किंतु मैं लगभग 45 मिनिट बाद ही हिन्दी भवन के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा था "मैं हूँ हसीना खोल दरवाज़ा दिल का, आ गया दीवाना तेरा" की तर्ज़ पर। हॉल में एंट्री की तो सामने कुसुम सिंह 'अविचल' कानपुर के दर्शन हो गए। हम दोनों ही एक दूसरे को देखकर चौंक गए क्यूँ कि अभी 30 सितंबर को ही मैं उनकी पुस्तक के विमोचन में लखनऊ में उपस्थित था। काफ़ी देर तक बात चलती रही फ़िर स्वरूप किशन जी कि एंट्री हुईं जो इस कार्यक्रम के मुख्य आतिथि थे। इनसे पिछले वर्ष नवंबर में मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल में मुलाक़ात हुईं थी। धीरे धीरे हॉल भरने लगा। बहुत सारे चिरपरिचत चेहरे मुस्कान बिखेरते हुए मिल रहे थे तभी राजेश प्रभाकर जिनकी शान में ये कार्यक्रम रखा गया था। चौंकिये मत राजेश प्रभाकर जी का 13 अक्टूबर को अवतरण दिवस था। लोग 13 तारीख़ को अच्छा नहीं मानते किंतु हम सब की तो निकल पड़ी। थोड़ी देर में नीरव जी मधु जी के साथ उपस्थित हुए। मैं सोच रहा था अवतरण दिवस किसका है राजेश प्रभाकर या नीरव जी का। भईय्या हीरो तो वही लग रहे थे न👩‍❤️‍👨।अच्छी बात ये रही कार्यक्रम समय से शुरू हो गया। 

सायं 4 बजे से लगभग 10 बजे (सूत्रों से मिली सूचना के आधार पर) चलता रहा। कुछ आत्ममुग्धता के शिकार लोगों को ये समझना होगा कि वे कार्यक्रम की शालीनता को बनाए रखने में यदि सहयोग नहीं करते तो एक न एक दिन मुझ जैसे सिरफ़िरे से उलझना पड़ सकता है। मैं और स्वरूप किशन जी 8:50 पर विदा लेकर मेरठ के लिए निकल लिए और रात्रि 11:15 घऱ वापिस।Thx स्वरूप किशन जी।

-प्रदीप DS भट्ट-19102023

Sunday, 24 September 2023

कमिटमेंट है तो है

रिपोतार्ज

     "कमिटमेंट है तो है"

सृजन एजुकेशन ट्रस्ट 
.............................

सृजन एजुकेशन ट्रस्ट यानि SET
की निदेशक/अध्यक्ष रश्मि रंजन का फ़ोन आया अत्र कुशलम तत्रास्तु के उपरांत सूचना दी कि सर set का पहला बर्थडे है,16 अक्टूबर को आपको तो आना ही पड़ेगा। अनुजो को पूरा हक है कि वे अग्रजो से बात मनवा लें 😁 ख़ैर मैंने एक सुझाव रखा कि बेहतर होगा कि यह कार्यक्रम पहले रख लिया जाए या बाद में क्यों कि १९ से २८ तक गणेशोत्सव फिर श्राद्ध पक्ष शुरू हो जाएंगे। मेरी बात को तवज्जो दी गईं और लीजिए हुज़ूर २० सितंबर फाइनल हो गया। मैंने भी टिकिट वगैरह बुक की और निवेदन किया कि मेरे लिए एक होटल की व्यवस्था कर दी जाएगी। जिसे अमान्य कर दिया गया और बताया गया कि आपको सीधे घर पहुंचना है बिना किसी अन्य को सूचना दिए।🤣 पिछला अनुभव ख़ैर जैसी प्रभु की इच्छा!

15 को भरी बारिश में पहले मेरठ से नोएडा अगली पुस्तक "उर नाद" के प्रकाशन की चर्चा हेतु फिर आदरणीय नीरव जी के साथ लंच और केरलम महोत्सव पर गहन चर्चा हुई फिर वहां से सीधे निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। 🚂 ली और सुबह ११ बजे भोपाल। और ये क्या बारिश हमारे स्वागत के लिए पलक पांवड़े बिछाए तैय्यार जैसे कह रही हो राजा भोज की नगरी में मेहमानों का स्वागत ऐसे ही होता है। मित्र थोड़ा विलंब से पहुंचे तब तक हमने स्टेशन मैनेजर से स्टेशन पर और शौचालय में पसरी हुईं गंदगी और कुव्यवस्था पर अपनी नाराज़गी दर्ज़ करा दी।

झमाझम होती बारिश में अक्षय बंसल जी गाड़ी सहित स्टेशन पर हाज़िर। सीधे जा पहुँचे उनके इको सेंटर पर वैसे तो हम चाय नहीं पीते लेकिन मौसम को देखते हुए हाँ भर  दी। शाम को एक गोष्ठी निश्चित थी किंतु बारिश बारिश और सिर्फ़ बारिश क्या करते। जैसे तैसे नियत वैन्यु पहुँचे,थोड़ी देर इन्तेज़ार किया फ़िर मैं अक्षय जी रुपाली सक्सेना और उनके सुपुत्र अविरल जो इंदौर में रहकर B Tech कर रहे हैं एक मात्र श्रोता की उपस्थिति में कविताओं का दौर चालू हो गया। ❤️ प्रिय रुपाली उपहार स्वरूप माँ सरस्वती की मूर्ति लेकर आईं थीं जिसे लेने से मना नहीं किया जा सकता था। thx dear। पेटपूजा के बाद अक्षय जी ने रानी कमलावति  रेलवे स्टेशन ड्रॉप किया। 17 की तड़के यानि 12:40 ट्रेन ली और 11 बजे नाशिक मित्र ऋषि देव के पास। अगले दिन सुबह 5 बजे कार से पूना और उसी दिन 11 बजे वापिसी। रास्ते में  पता चला मुंबई से वडोदरा की ट्रेन ज़ियादा बारिश के कारण कैंसिल हो गईं है। बड़ी पशोपेश में पड़ गया फ़िर और कोई रास्ता न देखकर फ्लाइट की टिकिट निकाली। रश्मि से  कमेंटमेंट किया है सो पहुंचना तो है। कमिटमेंट है तो है 🤛।

19 को नाशिक से सुबह सुबह  निकले 11बजे मुंबई दोस्तों से मिले डॉक्टर नागर के साथ लंच लिया शाम को अरुण भाई से गुफ़्तगू की और सीधे एअरपोर्ट। 20 की सुबह फ्लाइट ली और सीधे वडोदरा। शाम को सृजन एजुकेशन ट्रस्ट के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित हुए। अच्छी खासी तादाद में लोकल सहित्यकारों ने अपनी  उपस्थिति दर्ज़ कराई। बढ़िया कवि गोष्ठी संपन्न हुईं। तभी गोकुल क्षत्रिय अपने मित्र के साथ बारिश से लड़ते झगड़ते कई वाहनों में सफ़र करते हुए कार्यक्रम में पहुँच ही गये। पिछले वर्ष की गोवा की यादें ताज़ा हो गईं। 

अगले दिन बंसल जी से मुलाक़ात हुईं फ़िर एक मित्र के यहाँ लंच लिया और शाम को आद्या के हाथ की बनी हुईं स्पेशल आइसक्रीम का आनंद लिया ही था कि प्रिय रंजन सिंह (रश्मि जी के पतिदेव ) ने एक थैला जिसमें फ्रूट, खाखरा नमकीन कुछ और भी साथ में था मेरे हाथ में थमा दिया। मुझे सृजन द्वारा प्रदान किये पौधे को विशेष रूप से पैक करके दिया गया ताकि घऱ तक पहुँच जाए। घऱ से कुछ पहले ऑटो में आते हुए रंबल स्ट्रीप पर खाखरा साथ में कुछ और भी थैले से निकलकर धरती मईय्या पर बिखर गये जैसे कोई लड़की मायके में आकर ख़ुशी में बिखर गईं हो ग़नीमत रही मैंने समय रहते पौधे को संभाल लिया जो आज सूर्य की रश्मि से आलोकित होकर  बॉलकनी में मुस्कुरा रहा है। 

अंत में 15 सितंबर से शुरू हुआ सफ़र 22 की सायं पर संपन्न हुआ। इन सभी दिनों में एक भी दिन ऐसा नहीं था जिस दिन मैंने यात्रा न की हो। एक यादगार प्रवास की ख़ूबसूरत यादें संजोय जब सुबह उठा तो सोचा अख़बार की सुर्ख़ियां बाद में पहले रिपोतार्ज ही बना लूँ। 🤗🤗🤗

प्रदीप DS भट्ट -23923

Tuesday, 22 August 2023

"प्रदीप बाबू बढ़िया है"

रिपोतार्ज़


            "प्रदीप बाबू बढ़िया है"

अगर मैं अपनी साहित्यिक यात्रा का पुनर्रावलोकन करने बैठूं तो इसका आगाज़ स्कूली पत्रिका संभावना में प्रकाशित मेरी पहली कविता "शहीदों का मज़ार" जिसकी अंतिम पंक्तियाँ कुछ यूँ थी:-

"तभी अनिश्चय के बादल में बिजली चमकी, 
रस्ता पाया
याद मुझे फिर ये दिन आया
दौड़ा दौड़ा गया शहीदों के मज़ार पे
इन फूलों का हार उन्हीं पर जा चढ़ाया"

निश्चित रूप से मेरी प्रथम कविता माखनलाल चतुर्वेदी की कविता सुमन की चाह से प्रभावित थी।
फिर नाटक, कहानी लिखते लिखते कविता से दिल लगा बैठा😊 ग़लत न समझें ये शब्दों वाली कविता का जिक्र है मांसल देह वाली कविता का नहीं😁 फिर आकाशवाणी में वार्ता प्रसारित हुई फ़िरनौकरी वग़ैरह वग़ैरह। दिल्ली से मेरठ से मुम्बई फिर हैदराबाद यानि साहित्यिक पारियाँ कभी exprsss ट्रेन सी कभी पैसिंजर ट्रेन से चलती रही।

       अब नौकरी है तो रिटायरमेंट भी है सो सोचा रिटायरमेंट से पहले ज़्यादा न सही कुछ शांत वातावरण में एक कुटिया या फ्लैट ले लिया जाए सो मई में मेरठ में शहर की सरहद से बाहर एक फ़्लैट ले लिया। शांत सौम्य वातावरण हरे भरे खेत, लाईट की आँख मिचौली साथ ही नेटवर्क समस्या सो अलग लेकिन अच्छी जगह एवम शांत वातावरण के सामने ये समस्या कुछ भी नहीं😃 

     अभी मेरठ के मित्रों को सूचना नहीं दी है कि "गब्बर इज़ बैक"😊  पहली बार अहसास हो रहा है फ़्लैट लेना अलग बात है और इंटीरियर के नाम पर मानसिक क्लेश किसे कहते हैं। बन्दों का काम है कि ख़त्म ही नही हो रहा ख़ैर आदरणीय नीरव जी से ज़रूर संपर्क बना रहा। 16 अगस्त को आग्रह कि आपको 20 अगस्त को गुरुग्राम के कार्यक्रम में शिरक़त करनी है। शाम को राजेश प्रभाकर जी का कॉल आ गया (मेरा राजेश से प्रथम परिचय 26 अप्रैल-2022 को राजपाल यादव जी के निवास पर हुआ था इत्तिफ़ाक़ ये कि एक ही शहर में होने के बावज़ूद राजेश जी और राजपाल जी पहली बार मिल रहे थे और मुलाक़ात का माध्यम मैं बना) सो जब राजेश जी ने स्वर साधना के कार्यक्रम में उपस्थित होने का आग्रह किया तो मैंने सहर्ष हामी भर ली।

      20 अगस्त-2023 प्रात: 4:30 के अलार्म से दिनचर्या शुरू हुई। सामान्य परस्थितियों में मुझे समय से कार्यक्रम में पहुँचने की आदत है फिर चाहे आमंत्रण अतिथि के तौर पर हो या विशिष्ट अतिथि के तौर पर हो या कि फिर कार्यक्रम अध्यक्ष के तौर पर। मुझे ख़ुशी है कि उत्तर प्रदेश से चलकर दिल्ली से हरियाणा के गुरुग्राम तक मैं 09:58 पर कार्यक्रम स्थल के प्रांगण में प्रवेश कर चुका था।स्वागत प्रिय राजेश श्रीवास्तव ने किया फिर आदरणीय नीरव जी, मधु जी,यशपाल जी राजेश प्रभाकर प्रिय अनुज अवधेश कनौजिया, कुमार राघव, कुलदीप कौर मोनिका शर्मा इत्यादि ।कुछ अपरिचित चेहरे भी थे जिनसे मेरा प्रथम बार परिचय हो रहा था। जिनमें पंकज जौहरी कृष्ण गोपाल सोलंकी सुनील शर्मा प्रेम बिहारी मिश्र इत्यादि।

  थोड़े से विलम्ब से ही सही कार्यक्रम आदरणीय नीरव जी की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ। नीरव जी को जर्मनी के प्रतिष्टित मैक्स मूलर सम्मान से नवाज़ा गया है। स्वर साधना संस्था द्वारा नीरव जी की इस उपलब्धि पर ही ये विशेष कार्यक्रम माधव सेवा केंद्र में उनके सम्मानार्थ आयोजित किया गया।वरिष्ठ साहित्यकार अशोक जैन जी विजय प्रशान्त, प्रिय रमाकांत (पूरे कार्यक्रम में एक्टिव रोल निभाया) प्रिय सुनीता सिंह के मधुर स्वर में सरस्वती वंदना सुनकर 'स्वर साधना मंच" अभिभूत हुआ। "अह्म ब्रह्मास्मि" की सर्वेसर्वा दीपशिखा जी संस्था का नाम बहुत ही सुंदर रक्खा है। सभी उपस्थित कवियों ने रचना पाठ करके कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई। ये देखकर अच्छा लगा कि प्रिय मोनिका शर्मा औऱ राजेश श्रीवास्वत का इस बात पर फोकस करते रहे कि कार्यक्रम में कोई त्रुटि न रह जाए । मेरी नज़र में इस कार्यक्रम की यही उपलब्धि रही कि स्वर साधना मंच को दो कर्मठ सहयोगी मिल गए। दोनों को आशीष।

       भोजनोपरांत हम ठीक 4 बजे निकले और से:सायं ९:15 मेरठ। तो भैय्या एक यादगार यात्रा एक यादगार कार्यक्रम कुछ नये मित्रों से मुलाक़ात या यूँ कहूँ तो ज्यादा बेहतर कि कुल मिलाकर एक यादगार दिन। 
स्वर साधना मंच प्रगति पथ पर सदैव अग्रसर रहे और साहित्यिक आकाश पर अपने लिए एक विशेष स्थान बनाएं।
टीम "स्वर साधना मंच" शुभेच्छा।
राजेश प्रभाकर जी को विशेष🌹🌹

Monday, 14 August 2023

मानवाधिकार की धज्जियाँ उड़ाता पाकिस्तान




“मानवाधिकार की धज्जियां उड़ाता पाकिस्तान और बांग्लादेश 
और वहाँ अपना अस्तीत्व तलाशते हिन्दू”


      पिछले कुछ समय से देश मे हिन्दू-मुस्लिम और बीफ विविद की चर्चा ज़ोरों पर है। अब हम सभी इन बे-सिर पैर की बातों मे उलझकर रह गए हैं। हाँ इतना ज़रूर हुआ की कुछ छद्म साहित्यकारों ने अपने अवार्ड वापिस करने की एक मुहिम चलाई जिसकी शुरुआत तो उदय प्रकाश ने की लेकिन अवार्ड वापिस किया काफी देर से । खैर इस विषय पर मै पहले ही काफी कुछ लिख चुका हूँ। आज हम पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिन्दुओ कि दुर्दशा पर चर्चा करेंगे ।

      पिछले दिनों पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिन्दुओ की स्थिति पर पढ़ने सुनने और समझने का मौका मिला और ये जानकार आश्चर्य हुआ की भारत मे लगभग 18-20 करोड़ मुस्लिम इन दोनों देशो के मुक़ाबले कितने सुखी और सुरक्षित हैं। आइये एक बानगी देखते हैं।

      1947 मे जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान नामक देश अस्तीतव  मे आया उस समय पाकिस्तान मे हिन्दुओ की जनसंख्या लगभग 15% थी जो की 1981 आते-आते घटकर 5% रह गई। और अब हिन्दू और सिखों को मिलकर तो ये मात्र 1.6% रह गई है।




  1986-90 तक हिन्दू परिवारों के साथ हुआ जो हुआ  वो कितना  वीभत्सकारी था इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की आज कश्मीर मे कुल 808 हिन्दू परिवार बचे हैं। उस दौर मे कश्मीरी पंडितो के साथ जो कुछ किया गया क्या वो मानवता के ऊपर कलंक नही था। लाखो हिन्दुओ को बेरहमी से मारा गया उनकी बहू -बेटियो की इज्ज़त लूट ली गई पुरुषो और बच्चों का बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया। पाँच लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडितओ को दर-बदर होना पड़ा अलग से । मुझे याद नहीं पड़ता कि बुद्धिजीवी ने इस पर उफ भी हो यहाँ तक आज जो पुरुसकर वापिसी का नाटक चलाया जा रहा है तब किसी ने भी ऐसा कोई कदम उठाने का साहस क्यों नहीं किया। मेरी समझ से ये बात सिरे से समझ मे नहीं आई कि इस विषय पर पहले और आज तक भारत सरकार का रुख स्पष्ट क्यों नहीं रहा। क्यों नहीं मानवाधिकार आयोग खामोश क्यों है। जिन छोटे –छोटे मुद्दो पर राजनीति की जा रही है क्या कश्मीरी पंडितो का मुद्दा उनसे भी छोटा है ?



      अब बात करते हैं बांग्लादेश की जिसका जन्म ही भारत की बदोलत 1971 हुआ अन्यथा क्रूर पाकिस्तानी आर्मी ने जितना ज़ुल्म पश्चमी पाकिस्तानी प्रांत पर कर रखा था उससे ऐसा प्रतीत होता था कि पश्चिमी पाकिस्तान जल्द ही नर विहीन हो जाएगा। ये तो भला हो तत्कालीन  भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरागांधी का जिनहोने समय रहते व  सही निर्णय लेते हुए जनरल मानेकशा को भारतीय सेनाओ को दखल देने के लिए कहा। किन्तु भारत के रहमो करम से मिली आज़ादी के बाद बांग्लादेश मे किस तरह हिन्दुओ का उत्पीड़न हो रहा है। वहाँ हिन्दुओ को दोयम दर्जे का नागरिक भी नहीं माना जाता क्यो ? वहाँ पर भी हिन्दुओ कि बहू-बेटियो के साथ बलात्कार करना तो आम बात है। बांग्लादेश मे हिन्दुओ कि गति क्या है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1947 मे वहाँ कि कुल आबादी मे हिन्दुओ कि संख्या 28% थी जो 1981 आते आते सिर्फ 8.5%  रह गई। 1971 कि लड़ाई मे पाकिस्तानी सेना ने हिन्दुओ पर जो अमानवीय अतयाचर किए उससे 1971 से 1981 आते बांग्लादेश से लगभग 10 लाख हिन्दू गायब हो गये। 25 वर्षो मे कुल लगभग 53 लाख हिन्दुओ ने बांग्लादेश से पलायन किया। अगर 1947 से अभी तक कि स्थिति पर द्र्ष्टिपात किया जाए तो ये जानकार आश्चर्य होगा कि पूर्व मे पश्चिमी पाकिस्तान और 1971 मे बने  बांग्लादेश से लगभल 5 करोड़ हिन्दुओ का कुछ अता-पता नही है या ये कहना ज्यादा श्रेयस्कर होगा कि पिछले 60-65 वर्षो मे 5 करोड़ हिन्दू गायब हो गये हैं।



      कुछ इसी तरह कि नितियाँ पश्चिमी बंगाल और उत्तर प्रदेश मे आज भी जारी हैं। पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद मे तो 23 दुर्गा पंडालो मे आग लगाई गई। कोलकाता मे प्रशासन द्वारा  माँ दुर्गा का विसर्जन इसलिए टालने का निर्णय लिया गया क्यो कि 22 अक्तुबर को गुरुवार होने के कारण विसर्जन नहीं किया जाता 23 को शुक्रवार होने के कारण 24 को मुहर्रम होने के कारण मतलब साफ है। यहाँ प्रश्न यही है कि क्या प्रशासन अर्धसैनिक बलों कि मदद लेने का निर्णय नही ले सकता था जिससे दोनों धर्मो के लोगो कि भावनाओ कि रक्षा होती ।  उत्तर प्रदेश मे तो सरकार सरे आम हर विभाग मे जाति और धर्म के चश्मे से सब कुछ देखना पसंद करती है। भारत मे सरकार कोई भी हो उन्हे धर्म विशेष कि भावनाओ कि चिंता ज्यादा रहती है किन्तु यही भावनाएँ बांग्लादेश या पाकिस्तान मे तो हर्गिज नहीं दिखाई पड़ती ।

      विश्व मे भारतवर्ष ही अकेला ऐसा देश है जहां हर धर्म को अपने सरोकारों/ मान्यताओ के साथ जीने की सहूलियत है। इक्का दुक्का घटनाओ से इन सरोकारों/ मान्यताओ की जड़ो को कोई  चाहकर भी नहीं हिला सकता। इस प्रकार के प्रयास चंद फिरकपरस्तों द्वारा पहले भी किए जाते रहे हैं। किन्तु जिस प्रकार सूर्य की प्रथम किरण के साथ अँधियारा छट जाता है उसी प्रकार इस प्रकार की घटनाओ के पश्चात धीरे धीरे सब कुछ स्वत: ठीक होने लगता है।



Monday, 12 June 2023

"पाला बदल कर देख लो"

“पाला बदल कर देख लो “

जब भी चाहो ज़िंदगी का, रुख बदल कर देख लो
पार क्या है आसमाँ के, बस उछल कर देख लो

माना तेरी ताब से, पत्थर पिघल सकता मगर
हम भी तो कुछ कम नहीं, पाला बदल कर देख लो

एक गुब्बारे की जिद फिर, फैलना बाज़ार में
एक बच्चे की तरह तुम भी मचल कर देख लो

दोस्त या दुश्मन हो पहला, वार मैं करता नहीं
आज़माना जब भी चाहो, मुझको छल कर देख लो

जिस पे बीते वो ही जाने, तुम भी जानोगे कभी
पैर नंगे शूल पथ पे, तुम भी चल कर देख लो

प्रेम तो जल की तरह निर्मल ही रहता है ‘प्रदीप’
गर यकीं तुमको नहीं तो, मुझमें ढल कर देख लो

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-15.05.2023

Sunday, 21 May 2023

"हगने के दस मूतने के पाँच"

रिपोतार्ज़
                “हगने के दस 
                 मूतने के पाँच”

क्यों चौंक गये ना, 😆जी मुझे भी लगा क्या ये शीर्शक ठीक रहेगा फिर लगा हम आम दिनों में एक दूसरे से कभी गुस्से में कभी व्यंग्य स्वरुप और कभी यूँ ही (दिल्ली वाले जो ठहरे) किन किन विशेषणों से युक्त भाषा का प्रयोग करते हैं तो फिर पक्का हो गया जी इस रिपोतार्ज़ का शीर्शक तो यही रहेगा( मतलब खटोला यहीं बिछेगा की तर्ज़ पर)। 🤓 दिल्ली छोडे हमें 16 साल हो गये लेकिन दिल्ली ने हमें न छोडा है चाहे मुम्बई रहे हो या अब हैदराबाद आना जाना लगा ही रहता है। मुझे आवश्यक कार्य से 3 मई को मेरठ पहुँचना था इसलिए मैंने समय रहते 30 अप्रैल की एस सी टू टायर की (दुरंतो- सिकंदराबाद-निज़ामुद्दीन) में प्रतीक्षा सूची में टिकिट आरक्षित करवा लिया। ऐसा इसलिए कि बंगलौर-दिल्ली राजधानी में काफी लम्बी प्रतीक्षा सूचि थी। मैं निश्चिंत भी था क्यों कि हैदराबाद के पिछले लगभग साढे चार वर्ष के प्रवास में कभी ऐसा नहीं हुआ था कि मुझे स्टेशन से वापिस आना पडा हो। जब हम ज्यादा निश्चिंत हो जाते हैं तभी गडबड हो जाती है। तो लीजीए हुज़ूर हम गुसलखाने की ओर जाना ही चाहते थे कि मोबाइल में मैसेज आ गया कि आप प्रतीक्षा सूचि-1 पर आकर अटक गये हैं हमसे न हो पाएगा 🙃अपना दूसरा इंतेज़ाम कर लो भैय्या।  मतलब हो गया ना हैप्पी बड्डे! स्नान ध्यान तो छूट गया हम लग गये फ्लाइट के चक्कर में शायद रेलवे वालों ने एअर वालों से सैटिंग कर रक्खी है। हैदराबाद- दिल्ली का किराया 16500/- , 1 मई का ट्राई किया तो 13,500/- फिर मुँह लटकाए लटकाए हमने 2 मई ट्राई किया तो सिर्फ आकाशा (राकेश झुंझुनवाला- शेयर मार्किट टाइकून) की फ्लाइट में शाम की एक टिकिट मिली वो भी 9500/-। हमने सोचा तुरंत बुक करो बे🥱 कहीं सोचते रह गये तो इसके भी रेट बढ जाएंगे। अब सोचिए शनिवार, रविवार, सोमवार और मंगलवाल मिलाकर चार दिन खराब हो गये।  मतलब दोनों तरफ से जय सियाराम्। खैर हैदराबाद से दिल्ली और दिल्ली से मेरठ पहुँचने में रात काली हो गई। 

सुबह उठे और लग गये अपना ज़रुरी काम निपटाने में ,शाम तक उससे जब काम से फारिग होकर घर आए तो दोनों भाईयों के बच्चे बोले क्या ठाकुर 🦜खाली हाथ, सजा मिलेगी बरोबर मिलेगी। हमने भी उनके सुर में सुर मिला दिया हुकूम करें जनाब ए आली तो  बोले सभी बच्चा लोगों को भयंकर वाली  पार्टी मांगता है। हमने कहा कुछ खास है क्या छुटकी बोली खास क्या ठाकुर “असलियत में चाँद मेरे पास है” का लोकार्पण गुजरात के होटेल में किया था न, तो हमें भी बढिया वाले होटेल में हमारी पसंद की पार्टी और हाँ इस बार आर्डर सिर्फ हमारा चलेगा यानी बच्चों का बच्चे जो आर्डर करेंगे वो बडो को भी खाना पडेगा, ये नहीं कि दाल रोटी दाल रोटी, वो तो रोज़ घर में भी खाते हो भई। हमने मन ही मन कहा “रज़िया फिर से गुंडो में फंस गई” (सच कहूँ तो इत्ते सोणे सोणे  गुंडे हो तो रजिया को फँसने में रोज़ मज़ा आएगा ही)। खैर साहब इस बार हमने भी ना नुकुर नहीं की और सीधे सीधे सरेंडर कर दिया। बच्चे खुश तो ईश्वर खुश्। दो तीन दिन बिताकर सीधे मुरादाबाद (बैच्चु लुलू पार्टी कहानी यहीं जनमी थी) फिर दो दिन बाद सीधे दिल्ली की बस पकडी और कौशाम्बी मेट्रो स्टेशन उतर गये। मुरादाबाद से दिल्ली भले ही ए सी बस थी किंतु सफर तो सफर है सो सोचा कि शाहदरा की मेट्रो पकडने से पहले निफराम हो लिया जाए। हम जैसे ही निफराम होने सुलभ शौचालय में घुसे तो वहाँ बैठे आदमी ने तुरंत कहा बाबू जी “हगने के दस और मूतने के पाँच” हम एक दम सन्न ठिठक गये सो अलग। उसके चेहरे की तरफ देखा तो बडा भोला भाला शायद कुछ दिनों पहले ही बिहार से आया था। हमारे चेहरे पर तुरंत एक मुस्कार तैर गई हमने भी उसी अंदाज़ में उसे जवाब दे दिया ना भैय्या हगने का प्रोग्राम ना है हमारा मूत के निकल लेंगे। वो बोला बाबू जी बुरा मत मानियो जाने से पहले बताना हमारा धरम है, कई लोग काम तो दस का करें हैं पर देंवे है पाँच रुप्प्या ही। ज्यादा कहो तो माँ बहन की गाली भी दे देंवे हैं सो हम पहले ही बता देने में अपनी और उसकी भलाई समझें हैं। खैर पाँच मिनिट में निफराम होकर हम बाहर आए उसने खुद ही उठकर हमें बैग़ थमा दिया हमने उसे पचास रुपये पकडा दिये तो बोला बाबू जी खुले दे दो, हम पे खुले ना हैं । मैंने उसके कंधे को थपथपाकर कहा हमें पैसे वापिस ना चाहिए भैय्या, बचे पैसे से बाहर जाकर छोले कुलचे हमारी तरफ से खा लेना। हमें तुम्हारी बात और अंदाज बढिया लगा।😆 इससे पहले कि वो और कुछ बोलता हमने जय सियाराम कहा और दूसरी मेट्रो लेकर निकल लिए दोस्त के घर।

अब बारी थी दिल्ली नौयडा के कार्य निपटाने की तो 11 मई को को इंडिया बुक्स (आगामी कहानी संग्रह “काला हंस” ) के सेक्टर 19 नौयडा पहुँचे। डॉक्टर संजीव से बेहतरीन मुलाकात रही। लगभग दो घंटे की मीटिंग में कविताओं के कई दौर चले, लगा ही नही कि हम लोग पहली बार मिल रहे हैं। 🌹वहीं पर ही जसविंदर कौर बिंद्रा जी से भी मुलाकात हुई। पंजाबी हिंदी अंग्रेजी भाषा में पूर्ण रुपेण पकड, रिटायर्ड हैं किंतु जबरदस्त जोश से भरपूर। उनके साथ स्ट्रीट लंच लिया फिर पहुँचे आदरणीय और प्रिय प्रिय प्रिय सुरेश नीरव जी नये आशियाने पर्। उन्होंने गाज़ियाबाद से दो तीन दिन पूर्व ही शिफ्ट किया है, मैं साहित्यिक दृष्टी से प्रथम व्यक्ति रहा जिसने उनके द्वार पर प्रथम अतिथि के रुप में दस्तक दी। कुछ देर बाद मधु मिश्रा जी भी पुराने निवास स्थान से कुछ सामान लेकर लौटी फिर महफिल जम गई जो सांय 7:15 तक चलती रही। खाने के आग्रह के बावजूद मैंने जाने की आज्ञा माँगी ताकि समय से मित्र के घर पहुँच सकूँ। रास्ते भर मैं अब से तीस पैतीस बरस पहले के नौयडा को याद करने की कोशिश कर रहा था जिसमें अट्टा मोड की धूल विशेष रही। 
अब दिल्ली जाओ और दोस्तों से न मिलो ऐसा तो हो ही नहीं सकता न सो अगले दिन फोन मिला दिया, उधर से आवाज़ में कुछ कम्पन लग रहा था मालूम हुआ पति देव का बॉयपास हुआ है और छुट्टी लेकर घर जा रहे हैं बस हमने भी तुरंत मेट्रो पकडी और पहुँच गये मिज़ाज़पुर्सी को। अगले दिन का कार्यक्रम निश्चित था, पहले एक छोटे से कार्यक्रम में भागीदारी फिर मित्र के साथ लंच फिर शाम को बंगलौर राजधानी। जब ये सब पूर्ण कर हम निज़ामुद्दीन स्टेशन जा रहे थे तो अहसास हुआ कि परसों और कल के मुकाबले आज तबियत कुछ ज्यादा नासाज़ सी लग रही है। जैसे दिल्ली की लू कह रही हो अरे ओ साम्भा 😡कित्ते दिन हो गये लू खाए हुए बे ,हम बोले पूरम पट्ट सोलह बरस तो लू ने कहा इस बार तो तुमसे चिपकर ही रहेेंगे बचकर दिखाओ। खैर जैसे तैसे स्टेशन पहुँचे, A-5-29 पर जाकर बैठ गये। पिछले कई बरस हो गये ठंडा पानी पीए किंतु आज सादे पानी से प्यास न बुझी और प्यास ने ज्यादा हलकान कर दिया तो पी लिया ठंडा ठंडा कूल कूल जैसे तैसे कुछ संयत हुए, ट्रेन चली तो सहयात्रियों से परिचय हुआ। ऐं पर ये क्या, 🙃जो भी अपना नाम बतावें सबका प्र से यानी श्रीमति एवम श्री प्रिया मुखर्जी बच्चे का नाम भी प्र से , दूसरी जोडी प्रियंका और रोहित की,और हम तो हैं ही प्रदीप्। अचानक अप्रैल-मई-2022 की याद हो आई जब हम गोवा और नेपाल के साहित्यिक प्रवास पर थे कुल 14 लोगों में से 11 महिलाएँ सभी का नाम र से शुरु सिर्फ हम और एक और सज्जन थे जो अलग अक्षर से नाम रखते थे। कभी कभी ऐसा होता है जो अच्छा भी लगता है। पिछ्ले एक सप्ताह से इलेक्ट्रोल, ग्लूकोन सी जैसी चीज़ों का सेवन कर उबरने की कोशिश कर रहे हैं। आज कुछ आराम सा आया तो एक ठो शेर याद हो आया। वैसे तबियत के बारे में अभी तक पूछा तो किसी ने नहीं। फिर भी शेर ठोकने में क्या हर्ज है जी 😆😆😆😆

“अब पडा तबियत में कुछ आराम सा
  तुमने जब पूछा कि कैसे हो ‘प्रदीप’”

प्रदीप देवीशरण भट्ट-
20.05.2023

Saturday, 8 April 2023

एक ख़ूबसूरत दिन की मधुर स्मृतियाँ

रिपोतार्ज़

“ एक खूबसूरत दिन की मधुर स्मृतियाँ”
(इंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया,गच्ची बॉली)

पिछले वर्ष तीन दिवसीय नेपाल-भारत साहित्यिक महोत्सव में सम्मलित होने के लिए मैं 28 अप्रैल-2022 की सांय को को नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुँचा। दिल्ली एअरपोर्ट पर लखनऊ से पधारे पत्रकार व लेखक प्रिय मनीष शुक्ला से भेंट हुई। उन्हीं से ज्ञात हुआ कि सेम फ्लाइट में बिजनौर से गिरिश त्यागी एवम प्रयागराज से डॉक्टर मोहिका महेरोत्रा भी यात्रा कर रही हैं । भारत के विभिन्न प्रदेशों से साहित्यकार इस साहित्यिक यज्ञ में अपनी आहुति देने काठमांडू पहुँच रहे थे। ये पहला अवसर था जब किसी साहित्यिक आयोजन में सम्मलित होने वाले किसी भी साहित्य्कार से मेरा परिचय नहीं था। जो एक मात्र परिचय हुआ वह भी एअर पोर्ट पर मनीष के रुप में। खैर 29,30 31 मार्च को साहित्यिक चर्चाओं में बहुत आनंद आया साथ ही विभिन्न स्थानों की सैर साथ में एक से बढकर एक साहित्यिक विभूतियाँ। प्रदीप बाबू इससे बढिया और क्या चाहिए। इसी आयोजन में साहित्य की धरती बिहार से पधारे कई मित्रों से मुलाकात हुई। डॉक्टर राशि सिन्हा, अजय श्रीवास्तव, नूतन सिन्हा और हाँ विभा रानी श्रीवास्तव (दीदी) उनसे प्रथम मुलाकात में मैंने उन्हें इसी सम्बोधन से सम्बोधित किया। सौम्य सहज और अपनी बात को बडे ही सहज तरीके से रखने की अदभुत कला। चार पाँच दिन कैसे गुजर गये पता ही नही चला था। इस साहित्यिक प्रवास में डॉक्टर राशि की बिटिया अद्रिका कुमार (बबुआ)पहले दिन तो थोडा सकुचाई किंतु अगले दिन से बबुआ मेरी बढिया वाली दोस्त बन गईं।  अब आप सोच रहे होंगे कि इस आयोजन को तो लगभग एक वर्ष हो गया फिर काहे को रिपोतार्ज़ तो भईय्या इस बार ये आयोजन नेपाल के बीरागंज में 17,19 19 मार्च को आयोजित हुआ। कम्पीटेंड ऑथारिटी की स्वीकृति के अभाव में इस बार हम सम्म्लित होने से चुक गये। 

मार्च के प्रथम सप्ताह में अचानक विभा दीदी दूरभाष यंत्र पर दस्तक दी तो हमें सुखद अनुभूति हुई। राम राम शाम शाम के बाद उन्होंने बताया कि वे 25 मार्च को हैदराबाद प्रधार रही हैं साथ ही पूछ भी लिये कि इससे पहले तो हम नेपाल में मिल ही लेंगे लेकिन हम एड्वांस में टिकिट भेजकर बता रहे हैं कि 25,26,27 मार्च को खाली रहियेगा। हम तो खुशम खुश हो गये। इसी बीच उन्होंने बताया कि राशि से भी बात हो गई है (डॉक्टर राशि के पति देव का ट्रांसफर छ: माह पूर हैदराबाद हो गया है) हमने उन्हें आश्वत किया कि आप बेफिक होकर हैदराबाद पधारिये। बातों ही बातों में विभा दि ने बताया कि यहाँ हैदराबाद में कोई मीनाक्षी श्रीवास्तव हैं जो कि कहानियाँ लिखती है उन्होंने अपनी पुस्तक किसी सज्जन के हाथ उन तक पहुँचवाई है। हमने कहा पिछले चार वर्षो से हैदराबाद के साहित्यिक जगत में हमारी पैठ है हम तो इस नाम की महिला को नहीं जानते। खैर जब विभा दीदी ने क्षमा माँगते हुए सो कॉल्ड मीनाक्षी श्रीवास्तव का मोबाइल नम्बर भेजा और बताया कि उनका नाम प्रेमलता श्रीवास्तव है तो हमने बताया हाँ इन्हें तो बहुत अच्छी तरह जानते हैं। चूकि विभा दीदी के पति अरुण ईंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया के कॉन्सिल सदस्य हैं इसी के दो दिवसीय सम्मेलन के लिए वे हैदराबाद पधार रहे थे। डॉक्टर प्रेमलता एबिड्स में रहती हैं और विभा दीदी को खैरताबाद में रुकना था सो अगले शनिवार को डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव से मिलकर हमने कार्यक्रम की पूरी रुपरेखा बनाई और उनके ही घर पर एक गोष्ठी के आयोजन का फैसला किया। 
वित्तीय वर्ष की क्लोज़िंग का समय चल रहा है सो हम भी शनिवार को ऑफिस में थे। लगभग 1 बजे दीदी का फोन आया कि हम हैदराबाद एअरपोर्ट पहुँच गये हैं और गाडी द्वारा नियत स्थान पर पहुँचकर बताते हैं। लगभग 2:30 विभा दीदी ने जो एडरैस हमें व्हाट्सप किया वो खैराताबाद का न होकर गच्चीबॉली का निकला। हम सोच ही रहे थे कि ये क्या हुआ तभी फोन घनघना उठा उधर दीदी थी बताया कि खैरताबाद में कमरे कम होने के कारण सम्मेलन का स्थान बदल दिया गया है। हमने कहा फिकर नॉट दी हम एक घंटे में पहुँच रहे हैं। तुरंत सुहास भटनागर को फोन मिलाया उन्होंने कहा आधे घंटे में पहुँचते हैं। हैदराबाद की तेज धूप में सुहास जी हमारे यूसुफगुडा का पता भूल गये और मुड गये दूसरी तरफ अब किसे देखकर किसके पीछे मुडे ये बात यहीं छोड देते हैं ( कदि हँस भी लिया करो बादशाहो) सवा तीन पहुँचे पानी शानी पिया और चल दिये मेट्रो की सवारी का आनंद लेने के लिए रायदुर्ग मेट्रो (ब्लू लाईन का अंतिम स्टेशन) पहुँचे और टैक्सी लेकर सीधे इंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया कॉवेरी ब्लॉक- डी-4 में सीधे एंट्री। अगले दो घंटो तक भूली बिसरी यादों को समेटते हुए  विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। सुहास जी को एक कार्यक्र्म में जाना था वो साढे पाँच निकल लिए। इसी दौरान डॉक्टर राशि से बातचीत में पता चला कि बबुआ को 103 बुखार है और राशि जी की स्वंय भी तबियत गडबड है सो उन्होंने रविवारीय गोष्ठी में आने में असमर्थना व्यक्त की। ऐसा ही दो तीन और महानुभावों ने अपनी अपनी व्यस्ताओं का हवाला देते हुए आने में असमर्थता जताई तो डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव से बात कर तय किया गया कि मैं स्वंय, डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव एवम सुहास भटनागर कल साढे ग्यारह बजे विभा दीदी के रुम में ही गोष्ठी करेंगे। ये सब तय हो जाने के बाद विभा दीदी ने अपनी साहित्यिक संस्था  “लेख मंजूषा” को लाइव कर दिया जिसमें मैंने अपनी दो कविताएँ प्रस्तुत की। 

अगले दिन नियत समय यानि साढे ग्यारह बजे हम फिर हाज़िर थे। यूँ तो इंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया का प्राँगण काफी बडा भी है और हरियाली से युक्त भी है किंतु तेज धूप इस बात की इज़ाज़त कतई नहीं दे रही थी कि हम अपनी गोष्ठी खुले मैदान या पार्क में करने का साहस भी करें। एक ख्याल आया और हम डायनिंग में चले भी गये किंतु जल्द ही अहसास हो गया कि हमारी आवाज़ से ज्यादा आवाज तो बर्तनों के खडकने की आ रही थी। बेसाख्ता बचपन में सुनी चंद लाईन याद हो आईं। 
खडक सिंह के खडकने से खडकती हैं खिडकियाँ
खिडकियों के खडकने से खडकता है खडक सिंह

 सो विचार त्याग दिया और उल्टे पैरों चल पडे जहाँ कमरे के वातानुकूलित वातावरण में अरुण श्रीवास्तव जी हमारा बडी बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे।  सबसे पह्ले अरुण श्रीवास्तव का सत्कार किया फिर विभा दीदी ने “लेख मंजूषा” को फेसबुक लाइव कर दिया। सुहास भटनागर, डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव और मैंने भी अपनी दो रचनाएँ प्रस्तुत कर दीं। बहुत आग्रह पर विभा दीदी ने नेपाल सम्मेलन में पढी अपनी लघु कथा हम सब को सुनाई। और इस तरह रविवारीय गोष्ठी का प्रथम सत्र 1 बजे सम्पन्न हो गया। लंच का समय हो गया था तभी विभा दीदी ने कहा कुछ और चर्चा करें या भोजन? हम सब ने एक दूसरे की तरफ देखा और मैंने तुरंत दीदी को देखते हुए कहा दी “भूखे भजन न होय गोपाला पकड ये अपनी कंठी माला” फिर सभी खिलखिला कर हँस पडे। प्रथम सत्र की उपलब्धि ये रही कि अरुण श्रीवास्तव जी भी पूरी तन्मयता के साथ एक अच्छे श्रोता के रुप में गोष्ठी में उपस्थित ही नहीं रहे वरन वाह वाह भी करते रहे। कवि हो या लेखक उसे और क्या चाहिए  अच्छा भोजन और अच्छी सी वाह्।
बढिया भोजन ग्रहण करने के बाद थोडी देर तो कमरे में आराम फरमाया फिर विभा दीदी ने बताया कि आज महादेवी वर्मा जी का अवतरण दिवस है सो हम दूसरे सत्र में दो विषयों पर लाइव चर्चा करेंगे फिर कविता पाठ फिर साढे चार बजे टी ब्रेक्। सब खुश थे। 3:15 पर दूसरा सत्र शुरु हुआ । सबसे पहले दी को हैदराबाद स्टाइल में सम्मानित किया गया। फिर विषय: ज्ञानपीठ, पद्म पुरुस्कर, आधुनिक मीरा...... क्या महादेवी जी भी परिचय की मोहताज़ हैं? एवम “ संस्मरण- साहित्य अवसर महान लोगों से संबंधित होते हैं, अब चाहे वे महान लोग द्वारा रचित हो या फिर साधारण लोगों ने महान लोगों से संबंद्ध अपने  संस्मरण प्रस्तुत किये हों। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि इन दोनों विषयों पर चर्चा करने के लिए पहले विषयों को समझना आवश्यक था जो मेरे कुछ भी पल्ले नहीं पडा न सुहास जी को और न डॉक्टर प्रेमलता को। मैंने दी से पूछा दी क्या ये विषय आपने चुने हैं उनके मना करने पर मैंने हाथ जोडते हुए कहा अपने अल्प ज्ञान के कारण मैं इस चर्चा से दूर ही रहना पसंद करुँगा किंतु दी का आदेश खैर्। जो थोडा बहुत दिमाग काम करता है उससे पूरा जोर लगाया और अपने साथियों के संग इस पर जैसे तैसे चर्चा की अब ये तो लाइव देख रहे मित्र गण ही बेहतर बता सकते हैं कि पास हुए या फेल्। खैर कविताओं का दौर फिर चल पडा इस बार सबने दो की जगह तीन तीन कविताएँ पढकर अपनी अपनी कविताओं की भूख शांत की। साढे चार बजे कॉफी का दौर चला फिर इंजीनियर स्टॉफ कॉलिज ऑफ इंडिया के खूबसूरत प्रांगण की तस्वीरें अपने मोबाईल में कैद की। हम अभी फोटोग्राफी में व्यस्त ही थे कि तभी हमारा राष्ट्रिय पक्षी मोर एक बडी चट्टान पर पेडों के झुरमुट में आकर बैठ गया। हम तो हम ठहरे पूछ ही लिया क्यों पक्षी राज हमारी कविताएँ सुनकर हमसे मिलने आए हो।शायद वो मोरनी से झगडकर आया था सो बोला तुम्हारी कविताओं से बेहतर तो मोरनी की बक बक ही सही है। तुम्हारी कविताएँ तुम्हें ही मुबारक लो भईय्या हम तो चले, देर हुई तो मोरनी रात का डीनर कैंसिल कर देगी। इससे पहले हम और कुछ पूछते वो तो उड लिया भईय्या।

कॉफी विद विभा दी के बाद हमने दी से प्रस्थान की अनुमती माँगी। दी की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी कि वे हमें छोडे। डॉक्टर प्रेम लता श्रीवास्तव और सुहास भटनागर से वे पहली बार ही मिली थी किंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम चारों बरसों से एक दूसरे को जानते हों। इसी बीच सुहास जी ने टैक्सी बुक कर ली तो दी ने कहा इसे कैंसिल कर दीजिए। रात के डिनर के बाद जाईएगा। सुहास जी ने बताया उन्हें अपनी बेटी के यहाँ जाना है तो दी ने कहा तो कुछ नहीं किंतु उनकी आँखे हल्की सी नम अवश्य हो गईं। लगबग साढे पाँच के करीब हमने दी से विदा ली। एक खूबसूरत दिन की मधुर स्मृतियों को सजोएँ हम तीनों चल पडे। 


-प्रदीप देवीशरण भट्ट-27.03.2023

Tuesday, 28 March 2023

"कभी कभी बेमन भी करना पड़ता है "

रिपोतार्ज़

“कभी कभी बेमन भी करना पडता है”

16 मार्च को हैदराबाद की वरिष्ठ साहित्य्कार एवम कादम्बिनी क्ल्ब की सर्वेसर्वा अहिल्या मिश्रा जी का फोन आया आया। अत्र कुशलम तत्रास्तु के उपरांत उहोंने नव निर्मित मकान के गृह प्रवेश के लिए सादर आमंत्रित किया साथ ही बताया कि कादम्बिनी क्ल्ब अब तीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है इसलिए अपनी परम्परा तो तोडते हुए क्ल्ब की 368वीं सभा का आयोजन 19 मार्च-2023 को उनके नवनिर्मित घर में साहित्यिक मनिषियों के सानिध्य में समप्न्न होगा। मेरा मानना है कि वरिष्ठों का आग्रह भी आदेश के बराबर होता है। अपनी आदतानुसार मैं निर्धारित समय से कुछ मिनिट पूर्व ही मधुरा नगर स्थित उनके आवास पहुँच गया। निश्चित रुप  से नव निर्मित गृह का निर्माण बडे ही मनोयोग से किया गया है। अतिथियों के स्वागत में वे स्वयं भूतल स्थित सभा गृह में उपस्थित थीं। अपनी निगरानी में वे प्रत्येक कार्य का निरीक्षण स्वंय ही कर रही थी। मेरे पहुँचते ही उन्होंने आग्रह किया कि मैं पहले नव निर्मित गृह का अवलोकन कर अपना आशीर्वाद प्रिय मानवेंद्र, डॉक्टर आशा मिश्र ‘मुक्ता’ एवम दोनों प्रिय पोतियों को दूँ। यही घर के बडो का काम है जिसे वे पूरी तन्मयता से पूर्ण करने का प्र्यास कर रही हैं। मेरा मानना है कि “बडा वही जो बडो जैसे काम करे”। इसी वर्ष अहिल्या जी अपने जीवन के 75 वर्ष भी पूरे कर रहीं हैं। मतलब एक साथ तीन शुभ कार्य- नव निर्मित गृह प्रवेश, कादम्बिनी क्ल्ब की 368वीं सभा का आयोजन एवम सोने पे सुहागे स्वरुप अहिल्या जी का 75वां जन्मदिन!!!


धीरे धीरे सभा सजने लगी । स्वादिष्ट एवम सुगंधित भोजनोपरांत अहिल्या जी के अतिरिक्त वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी, वरिष्ठ साहित्यकार वेणु गोपाल भट्ट्ड जी, वरिष्ठ साहित्य्कार अजीत गुप्ता जी, केंद्रिय हिंदी संस्थान के निदेशक डॉक्टर गंगाधर वानोडे जी,सुमन मलिक एवम मदन देवी पोकरणा जी मंचासीन हुए। जहाँ प्रथम सत्र में  शुभ्रा मोहंतो एवम उनकी टीम ने होली के रंगो की बौछार अपने गीतों द्वारा की वहीं दूसरे सत्र में उपस्थित कवियों ने अपने अपने रचना पाठ से सबका मन मोह लिया। दर्शन सिंह, सुहास भटनागर, श्रीमती एवम श्री सोनी, सुनीता लुल्ला, मोहिनी गुप्ता, मायला जी, धानुका जी, भगवती अग्रवाल, रवि वैद्य , अद्रिका कुमार,डॉक्टर राशि सिन्हा, डॉक्टर राजीव सिंहनितेश सागर, विनोद अनोखा, सीताराम माने, अजय पाण्डेय, संगीता शर्मा, किरण सिंह, तृप्ती मिश्र, विनीता शर्मा, सिवांगी गुप्ता, तरुणा मन्ना, सरिता सुराणा, आर्या झा, मोहित ओझा, रंजीता, पूनम जोधपुरी, सत्य नारायण काकडा, जी पर्मेश्वर, डॉक्टर कृष्णा सिंह, दीपक दिक्षित, इंदु सिंह, डॉक्टर पूर्णिमा शर्मा,  सुनिला सूद, मीना मूथा, शिल्पी भटनागर, मंचासीन सभी वरिष्ठ साहित्यकारों  ने अपनी अपनी रचनाओं से होली मिलन कार्यक्रम में भरपूरि समां बाँधा। मैंने भी अपनी दो रचनाओं से उपस्थित जन समूह का अपनी ओर ध्यान आकृष्ट किया।

“रंगो की बौछार, प्यार की होली में
तन मन भीगा जाए, प्यार की होली में
जल सरंक्षण पर तुम हमको, लेक्चर दो
अब अपनी सरकार, प्यार की होली में”

“तुलसी सूख जाएगी”

“वो बच्चों की तरह भोली है, हरदम मुस्कुराएगी
अगर अपनी कसम दे दूँ, मुझे आँखे दिखाएगी
करुँ मैं लाख कोशिश पर, शहर बिलकूल न आएगी
मेरी माँ को यही डर है, के तुलसी सूख जाएगी”


मुझे प्रसन्न्ता है कि मेरी दूसरी रचना “ तुसली सूख जाएगी” को उपस्थित जन समूह द्वारा खडे होकर सराहा गया। हैदराबाद में ये दूसरा मौका था जब मुझे ये सम्मान मिला। लगभग साढे छ: बजे कार्यक्रम का समापन हुआ। एक बात जो हमें खल रही थी कि संतोष पाण्डेय उर्फ संतोष रजा जो अच्छे गज़ल कार हैं क्यूँ नहीं आए। विनोद अनोखा जी से ज्ञान हुआ कि उनकी तबियत ठीक नहीं है इसलिए उन्हें हॉस्पिटल के आई सी यू में एडमिट किया गया है। हम सभी उनकी सेहत के लिए प्रार्थना कर ही रहे थे कि कार्यक्रम खत्म होते होते दु:खद सूचना प्राप्त हुई कि प्रिय संतोष हमारे बीच नहीं रहे। ये हम सभी के लिए जबरदस्त झटका था। पिछले वर्ष ही उनकी धर्मपत्नि का देहांत हुआ था और इस वर्ष...... ये अपूर्णीय क्षति है। मुझे भी दो तीन लगे इससे उबरने में लेकिन आश्चर्यजनक रुप से कल प्रथम नवरात्र के दिन प्रिय संतोष मुझे स्वपन्न में दिखायी दिये। अजीब बात ये है कि वो किसी दवाई और वैद्य का जिक्र रहे थे । सायं सुहास भटनागर से मुलाकात के दौरान मैंने उनसे ये बात साझा की। ये ठीक है जो इस संसार में आया है वो जाएगा ही किंतु....... कुछ का जाना अचम्भित कर जाता है।14  जून-2020 में सुशांत का जाना भी कुछ ऐसा ही था तब मैंने सुबह कुछ पंक्तियाँ लिखी थी और दोपहर होते होते वो मनहूस खबर आ गई थी। 

“जाने का तेरे गम भी है, अफसोस भी मगर
इतना मलाल है तू, बता कर नहीं गया”

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-23.03.2023