(प्रदीप भट्ट से प्रदीप भट्ट ,'यायावर')
" संस्कृत के श्लोकों से गुंजित हुआ केरल अधिवेशन "
दक्षिण भारत की यात्रा के अंतिम पड़ाव में कन्याकुमारी से ट्रेन द्वारा लगभग ढाई घंटे की सुखद यात्रा (हरियाली एवम् हरे पहाड़ों के नयनाभिराम दर्शन करते हुए) तिरुवनंतपुरम जा पहुँचे। रेलवे स्टेशन से होटेल की दूरी मात्र 600 मीटर बीच में बस स्टैंड भी। मुझे बेसाख्ता अंबाला कैंट स्टेशन की याद हो आई सड़क के एक ओर स्टेशन दूसरी ओर बस स्टैंड। ख़ैर ऑटो लिया और सीधे होटेल KTC grand chaithram। आप सोच रिये होंगे कि ये क्या लाट साहिबी हुईं कि 600 मीटर के लिए ऑटो जब कि स्वामी प्रदीपानंद तो रोज़ाना दस हज़ार क़दम चलने के आदी हैं 😜तो भैय्ये दो लोगों के पास कुल ठो चार नग अब सर पे कुली की तरह सूटकेस रख के तो न चल सकते। मान लो लुढ़का के भी ले जावें तो 4* होटेल वाले का दरबान क्या सोचेगा कहाँ से ठलुए आ गए। 😜चलो उसे तो डपट भी देंगे लेकिन रिसेप्शन पर बैठी हुईं किसी महिला की निग़ाह पड़ गईं तो .... अपनी तो बेइज़्ज़ती में दाग़ लगाना तय था न जी 😊 सो भईय्या ऐसा रिस्क न लेते हुए सीधे होटेल में एंट्री ली। पुछताछ की तो पता चला हमारे रूम met राजपाल जी तिरुवनंतपुरम के लोकल दौरे पर हैं। ख़ैर इस समस्या का तोड़ पूछा तो रिसेप्शनिस्ट ने तुरंत अपने मोतियों जैसे सफेद दाँतों के साथ फ़्री में ख़ूबसूरत मुस्कान के साथ डुप्लीकेट चाबी बनाकर हमारे हवाले कर दी। मोतियों जैसे दाँत देखकर हम सोचने लगे ये मोहतरमा कौन सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करती होंगी जो इनके दाँत हैदराबादी मोतियों की तरह चमक रिये हैं।😄 मोहतरमा का रंग साँवला या काला होता तो कोई बात नहीं लेकिन दुग्ध में नहाई काया और चिट्टे रंग पर मोतियों जैसे दाँत ये तो वही बात हुईं कि beauti with brain कहावत याद हो आई 👩❤️👨। ख़ैर ख़ुशी और ऊर्ज़ा से लबरेज़ जब हमने कमरे में प्रवेश किया तो स्वप्न से जागने जैसा अनुभव हुआ। कमरे की हालात बैचलर्स लाइफ के कमरे सी प्रतीत हो रही थीं।😉सो पहला काम साथ आए होटेल अटेंडेंट को दिया मैं रिसेप्शन में बैठता हूँ कृपया इस कमरे को किसी सुघड़ महिला के कमरे की तरह कर दें। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से हमें देखा तो हमें अपनी गल्ती का अहसास हो गया। मलयालम हमें नी आवै और हिन्दी अंग्रेज़ी उसे नी आवै तो फ़िर एक समझदार व्यक्ति की तरह उसे और हाउस कीपिंग स्टाफ को इशारों में समझाया तब बात बनी।👏
नहा धोकर तैय्यार हुए और सांय 5 बजे से होने वाले कार्यक्रम स्थल का नीरव जी संग जायज़ा लिया। लौटकर नीरव जी के रूम में ही आए और अवगत कराया कि केरल अधिवेशन के लिए जो थीम सॉंग लिखा है उसे तरन्नुम में प्रस्तुत करना मुश्किल है क्यों कि हरिद्वार महोत्सव में ईनाम स्वरूप खाँसी भेंट में पाएं हैं।तक़लीफ़ खाँसी से नहीं वरन इस बात से है कि ये मुई खाँसी भी हमारी तरह ही बेसुरी है।😱 नीरव जी ने प्रेम भरी एक वक्र दृष्टि हम पर डाली,उस दृष्टि से हम तो सिहर गए किंतु खाँसी तो खाँसी ठहरी सुसरी और ऐंठ गईं। नीरव जी ने हुक्म दे दिया थीम सॉंग तो तरन्नुम में ही होगा हमने एक बंध तरन्नुम में दो बार खाँसते हुए सुनाया लेकिन उनका आदेश ज्यों का त्यों कि प्रस्तुति तरन्नुम में ही होगी। ख़ैर ठीक 5 बजे कार्यक्रम की शुरुआत हो गईं हम प्रथम पंक्ति में बैठे बैठे पानी पीते रहे ताकि गला तर रहे। देवियों की प्रस्तुति के बाद देवताओं में प्रथम नंबर पर हमें आमंत्रित किया गया पानी साथ लेकर स्टेज़ पर। माँ शारदे को स्मरण किया और लगभग दो मिनिट की प्रस्तुति तरन्नुम में दी। प्रस्तुति के मध्य खाँसी न आना इस बात का द्योतक रहा कि है नीयत साफ़ हो तो बरक्कत तय है। लगभग 7 बजे तक कार्यक्रम चला सभी मित्रों ने अपनी अपनी प्रस्तुतियों से कार्यक्रम में समा बाँधे रक्खा।
🤗abs 4 की प्रथा के मुताबिक डिनर पश्चात रात्रि में नीरव जी के रूम में सभी अपनी छुपी हुईं प्रतिभा दिखाने जमा हो गए ये विषय अलग कि हम उन कुछ प्रतिभाशाली प्रतिभाओं की प्रतिभा के दर्शन गाँधी नगर और मैसूरु में कर चुके थे 😱। नाच गाना अन्ताक्षरी वगैरह वगैरह। हमने तो पूर्व की भांति पहले ही क्षमा माँग ली कि नाच वाच हमसे न हो पाएगा हाँ बात अगर गाने की है तो बेसुरे स्वर में कोशिश कर सकते हैं लेकिन खाँसी के कारण इस बार वो भी सम्भव नहीं। कुछ लोग पहले मना करने के आदी होते हैं लेकिन जब 🧚♂️ ... फ़िर वो शुरू हो जाते हैं या कहूँ कि पूरा माहौल कैप्चर करने की कोशिश करते हैं और क़ामयाब भी हो जाते हैं जब तक कि ..... सख़्त लफ़्ज़ों की इजाज़त है नहीं मुझको 'प्रदीप' वरना ख़ुद ही सोचिये मुँह में ज़ुबां मेरे भी है 🙆♂️ ख़ैर अर्धरात्रि तक चले प्रोग्राम की ख़ासियत डॉक्टर रत्नेश की लोक गीत पर बेहतरीन ठुमकों के साथ प्रस्तुति रही। मैंने उनकी तारीफ़ में कहा भी आपकी क़मर जैसे लचक खा रही है इससे कईं देवियों को रश्क हो सकता है कि हाय रे हमने अपनी क़मर को कमरा क्यूँ बना लिया 😩 प्रोग्राम ख़त्म हुआ और मैं अपने कमरे में आया और सो गया ।
अगले दिन 10 दिसंबर नाश्ता किया और नीरव जी के निर्देश पर हरिद्वार से ख़रीदी विशेष पोशाक (पीताम्बरी धोती और राम नाम का हॉफ कुर्ता ) पहनकर हॉल में हाज़िर हो गए। नीरव जी तो देखकर अतीव प्रसन्न हो गए। सबकी निग़ाहें हमारी ओर ही थीं कुछ कंठ से तो कुछ इशारों में हमें अच्छा लगने की बधाई दे रहे थे। थोड़ी देर बाद एक महिला ने जो काफ़ी देर से घूरे जा रही थीं पास आकर कह ही दिया। इस ड्रेस में ......। हमने उन्हें धन्यवाद तो दिया किंतु मन ही मन हँसते हुए कहा हे प्रभु रक्षा करो। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खां थे, विशिष्ट अतिथियों में रिटायर्ड मेज़र जनरल अनूप नायर उनकी धर्मपत्नी मीरा नायर एवम् डॉक्टर श्वेता सिन्हा थी।
मैंने रिटायर्ड मेज़र जनरल अनूप नैयर एवम् ज्ञान चंद मर्मज्ञ जी ने राज्यपाल महोदय का स्वागत किया फ़िर हॉल में पहुँचकर राष्ट्र गान हुआ तत्पश्चात दीप प्रज्ज्वलन तत्पश्चात सरस्वती वंदना फ़िर राज्यपाल महोदय को डायस तक छोड़कर मैंने अपनी सीट पकड़ी। नीरव जी ने राज्यपाल महोदय का स्वागत किया तत्पश्चात नीरव जी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। राज्यपाल महोदय ने भाषण में अपने चिर परिचत अंदाज़ में वेदों की ऋचाओं का एवम् कुरआन की आयतों का सम्मिश्रण कर बड़ी ख़ूबसूरती से माहौल को एक साहित्यिक यज्ञ में परावर्तित कर अपने हिस्से की प्रथम आहुति इस यज्ञ में दी। इस प्रकार साहित्य अधिवेशन के प्रथम सत्र का समापन सँस्कृत के श्लोकों द्वारा पूर्ण हुआ।
द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन जिसमें देश के विभिन्न भागों से पधारे कवियों ने रचना पाठ किया। मैंने भी अपने तेवरों के अनुरूप अपनी एक ग़ज़ल पढ़ी :-
"वफ़ा क्या है जफ़ा क्या है, मुझे तू क्यूँ बताता है
खफ़ा होना है हो जा, बेवज़ह क्यूँ तिलमिलाता है
हमेशा तू खफ़ा होता, अगरचे मैं हुआ तो क्या
किया कुछ भी नहीं अहंसा, मग़र फ़िर भी जताता है
तुझे भी इल्म ये बेहतर, नहीं मुझसा कोई दूजा
मग़र इसमें कभी उसमें, तू दिलचस्पी दिखाता है
तेरी चालाकियां एक दिन, तुझे लेकर के डूबेंगी
भला तू है नहीं फ़िर भी, भला बनकर दिखाता है
तेरी बातें समझ में, कम ही आती हैं मुझे भी 'दीप'
मेरे पहलू में आकर, मुझसे ही दामन छुड़ाता है
प्रदीप DS भट्ट -
एक बात जो मन को अखर रही थी वह यह कि कुछ मित्र ये जताने में बिलकुल भी संकोच नहीं करते कि वे वरिष्ठ कवि या साहित्यकार हैं। पिछ्ले ढ़ाई या तीन दशक से साहित्य में सक्रिय हैं किन्तु जब प्रस्तुति के लिए मंच पर आमंत्रित किया जाता है तो वही घिसी पीटी गजलें, गीत मुक्तक पढ़कर इतिश्री कर जाते हैं। भाई मेरे पुराना सुनाओ लेकीन कभी नया भी तो गुनगुनाओ। आप वरिष्ठ हो अच्छा है वरिष्ठ वरिष्ठ हो जाइए बस गरिष्ठ मत बनिए। ऐसे मित्रों के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल:
ग़ज़ल
"कभी नया भी पढ़ा करो"
दुनियां को पढ़ते फिरते हो, कभी तो ख़ुद को पढ़ा करो
वही पुरानी ग़ज़लें, दोहे, कभी नया भी गढ़ा करो
इसका उसका तेरा मेरा, अभी भी तुम उलझे इसमें
बे- मौसम की बारिश जैसा, हरदम न यूँ झड़ा करो
चलते चलते श्वांस फूलती, बातें पर ओलंपिक की
अपने घऱ की सीढ़ी पर तुम, धीरे धीरे चढ़ा करो
काम किया क्या ख़ास जो तुमको, दुनिया वाले याद करें
औरों से क्यूँ जलना भुनना, दिल को अपने बड़ा करो
चाहत दिल में याद करें सब,सूरज सा तपना सीखो
या फ़िर ख़ुद को मिट्टी का तुम, छोटा सा इक घड़ा करो
नया सीखने की ग़र इच्छा, घर से बाहर निकलो तो
कुछ अच्छा दिख जाये उसको,अपने मन पर मढ़ा करो
अच्छी ग़ज़लें लिखो गीत या, लिक्खो उम्दा इक मुक्तक
अच्छी ग़ज़लें सुन दूजे की, बैठ न हरदम कुढ़ा करो
कब तक वही पुरानी बातें, सबको बतलाओगे 'दीप'
चलो समेटो हिम्मत फ़िर से, हर दिन नव कुछ गढ़ा करो
प्रदीप देवीशरण भट्ट -101223 (तिरुवनंतपुरम)
सायं 7 बजे तक चले प्रोग्राम में एक से बढ़कर एक गीत ग़ज़लें सुनने को मिलीं। डिनर के बाद नीरव जी के रूम में फ़िर महफ़िल जम गईं। आज़ वो सज्ज़न नदारत थे जिन्होंने कल के प्रोग्राम को लगभग कैप्चर कर ही लिया था। प्रोग्राम शुरू हुआ नंबर आने पर हमने भी एक गीत :-
इक हंसी शाम को, दिल में मेरा खो गया
पहले अपना हुआ करता था,
अब किसी का हो गया
आज़ फ़िर पूरे गाने में खाँसी ने डिस्टर्ब नहीं किया।वही मध्य रात्रि तक प्रोग्राम हुआ। कुछ बंधु एक दूसरे के साथ कल प्रात:भगवान विष्णु के मंदिर का प्रोग्राम बनाने एवम् लोकल घूमने का कार्यक्रम तय करते रहे अपन राम जी का नाम लिए और सीधे कमरे में।
अगले दिन यानि 11 दिसंबर सुबह 5 बजे उठे फ्रेश हुए और सीधे पद्मनाभ मंदिर। धोती ख़रीदी, पहनी सामान जमा कराया और दर्शन करने निकल पड़े।50,100,500 के टिकिट की अलग पंक्ति समय का सदुपयोग करते हुए 500 की पर्ची कटवाई ये विषय अलग की ये पंक्ति भी काफ़ी लम्बी थी। श्रद्धा है भाई। ख़ैर दर्शन करते हुए सभी मित्रों के स्वास्थ एवम् प्रगति पथ पर निरंतर अच्छे प्रदर्शन की कामना करते हुए (विशेष मित्र के लिए विशेष ) 9 बजे दर्शन कर होटेल वापसी। होटेल वापसी आते हुए चूहे पेट में कलाबाजियां ख़ा रहे है। एक कहावत है "ब्राह्मण नहाया गज़ब ढहाया भजन किया तो भोजन पाया " सो ड्रेस चेंज की और सीधे नाश्ते की टेबिल पर।
सभी मित्र अपनी अपनी सुविधा अनुसार टोली बनाकर तिरुवनंतपुरम घूमने निकल चुके थे। नाश्ते के बाद मैं नीरव जी और मधु जी होटेल KTC grand chethram की यादों को अपने अपने मोबाइल में क़ैद कर रहे थे। नीरव जी 12 बजे मीरा जी के यहाँ आमंत्रित थे सो मैंने सोचा इन्हें विदा कर मैं अकेले ही घूमने निकलता हूँ।
दिन भी अपना है शाम भी अपनी
अवनि पैरों से कहाँ है मपनी
इक बराहमन अकेला काफ़ी है
'दीप' को माला कहाँ है जपनी ॥
तभी नीरव जी का मोबाइल घनघना उठा दूसरी तरफ़ अग्रज दर्शन बेज़ार थे जिनकी फ्लाइट सायं 7 बजे थी। समस्या ये थी की 12 बजे चैक आउट करके सामान कहाँ रखें। मैंने तुरंत सुझाव दिया मेरे कमरे में। कुछ देर बाद वे अपने भारी भरकम लगेज (मात्र एक हैंड बैग)के साथ रिसेप्शन पर हाज़िर हो गये। बात चीत शुरू हुईं तो मुझसे पूछा आपका क्या प्रोग्राम है मैंने कहा हुज़ूर नीरव जी को विदा करके घूमने निकलूँगा। थोड़ा असमंजस में देखा तो तुरंत प्रस्ताव दे दिया अभी निकलते हैं हुज़ूर आपके भारी भरकम लगेज को डिक्की में डालेंते हैं घूमते हैं आपको 5 बजे एअरपोर्ट ड्रॉप करके हम होटेल वापिस। बस नीरव जी को विदा किया। टैक्सी वाले को समझाया उसने पाँच मिनिट में रूट फ़ाइनल किया और दो प्रेमी चल पड़े तिरुवनंतपुरम घूमने। पहला पड़ाव नेय्यर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी जा पहुँचे। 2 लोगों के 2 घंटे के लिए 4500/- में पूरी सैर। लेकिन हम तो हम ठहरे दिल्ली वाले 4500/- को 4000/- करवाकर ही माने। बोट ली और निकल पड़े पूवर नदी, वर्कला बीच, बाक़ी जगहों के नाम याद नहीं आ रहे हैं। पहली बार वीडियो भी बनाई। पोस्ट की है रिस्पोंस अच्छा मिला। वहाँ से निकले तो सीधे कोवलम बीच की पहाड़ी पर महादेव के दर्शन किये फ़िर कोवलम बीच का आनंद लिया। अभी आनंद की अनुभूति हो ही रही थी कि बरख़ा रानी ने कानों में धीरे से सरगोशी की कि इससे पहले कि मैं अपना रूप दिखाऊं टैक्सी में बैठ जाओ और इत्तीफ़ाक़न हुआ भी ऐसा ही।बेज़ार जी भुनी हुईं मूँगफली खाने का लोभ संवरण नहीं कर पाए और बरखा रानी ने उनके चेहरे पर अटखेलियां करती ज़ुल्फ़ों को भिगो दिया😄।बेज़ार जी और मैं भी गर्मागर्म कॉफ़ी के इच्छुक थे और सोच रहे थे कितना अच्छा हो अगर साथ में गर्मागर्म पकौड़ी भी मिल जाएँ किंतु किंतु किंतु बरख़ा रानी ने इजाज़त नहीं दी और हम सड़क पर जमा पानी में बारिश की बूंदें गिरते देखकर उन्हें कढ़ाई में पकौड़ी समझकर संतोष करते रहे। उसी मस्त बारिश में बेज़ार जी को एअरपोर्ट ड्रॉप किया और स्वयं को होटेल में। बेज़ार जी के साथ लगभग पाँच घण्टे की गुफ़्तगू में तय हुआ कि अगले अधिवेशन में दोनों एक कमरे में रहेंगे 😉
अगले दिन सुबह 6 बजे फ्लाइट थी तो कमरे में लौटे सामान पैक किया और सीधे नीरव जी के रूम में जहाँ अन्य मित्र पहले से ही मौज़ूद थे। थोड़ी बहुत गपशप हुईं फ़िर डिनर के नाम पर तीन दिन से एक मात्र विशुद्ध सात्विक भोजनालय नहीं नहीं विशुद्ध नहीं क्यूँ कि विशुद्ध तो सिर्फ़ मारवाड़ी भोजनालय होता है जहाँ प्याज़ भी वर्जित होती है। अब चूँकि लंच नहीं किया तो सोचा डिनर कर लें तो भैया जी 9,10,11दिसंबर को डिनर के नाम पर बस मसाला डोसा पेपर डोसा या ओनियन उत्पम। मतलब ब्रेकफस्ट में इडली, वड़ा, उपमा पूरी सब्ज़ी कॉफ़ी जूस और वो दुग्ध में डालकर क्या खाते हैं 😊 छड्डो जी हलियो का पेट सुहालियों से कहाँ भरता है। बारह साल मुंबई में,साढ़े चार साल हैदराबाद में रहने के बाद सोचा साउथ इंडियन की आदत पड़ गईं है बस भैय्ये पिछले एक हफ़्ते से इसी पर जीवन यापन किया है। भला हो veg अरिया निवास रेस्टोरेंट का जिसने जिलाए रक्खा वरना आस पास के veg के नाम पर बाबा रे बाबा। 👏दिल्ली से 5 दिसंबर की रात्रि को ठंड में 10:15 बजे दिल्ली एअरपोर्ट पहुँच गए थे ताकि 6 दिसंबर की अल सुबह 5 बजे की फ्लाइट पकड़नी थी और यहाँ तिरुवनंतपुरम से 12 दिसंबर को सुबह 6 बजे की फ्लाइट। अच्छी बात ये थी इस बार दो की जगह कुल छः लोग थे सो अलसुबह 3:30 एअरपोर्ट पहुँचे फ्लाइट ली और 10:15 दिल्ली वहाँ से मेरठ खाना खाया और साढ़े छः बजे कंबल तानकर निद्रा रानी की गोद में अगले दिन आठ बजे जाकर मुबाईल की घंटी सुनकर आँख खुली।
बेहतरीन केरल यात्रा की स्मृतियाँ सँजोए !! !
प्रदीप DS भट्ट -291223