-प्रदीप की कलम से-
-निर्भया से लेकर दिशा (प्रियंका)
कविता और उन्नाव की उस अनाम लड्की तक-
बार बार एक ही लाईन हम इस
अपराध की कडी निंदा करते हैं। अपराधी बख्शे नहीं जाएगें किंतु स्थिति जस की तस। एक
घटना तभी तक सुर्खियाँ बटोरती है जब तक कोई इससे बडी दूसरी घटना उसका स्थान लेने के
लिए आ धमकती। और फिर उस पहली घटना को लोग इतनी जल्दी भूलने लगते हैं जैसे वे कल क्या
खाया था इसको याद नहीं रखना चाहते। कोई मेरी बात से सहमत हो या ना हो किंतु ज्यादातर
इसी मानसिकता से ग्रसित हैं। घटनाएँ एक सी हैं बस लड्कियों के नाम और शहर के नाम अलग
अलग और कई बार तो एक ही शहर में ऐसी कई घटनाएँ हो जाती हैं और ज्यादातर मामलों में
पोलिस पर सवालों जवाबों के चौक्को छक्को की बरसात होती रहती है। ज्यादातर मामलों में
पोलिस ही सवालों के घेरे में होती है किंतू कुछ मामलों में पोलिस भी जब अच्छा काम करती
है तो वही चौक्के छक्के फूलों की बरसात में भी तब्दिल होते देखे गये हैं। निश्चित उन
कामों को करते हुए पोलिस समाजिक दबावों को राजनैतिक दबावों पर तरजीह देती होगी। आप
माने ना माने किंतु पोलिस भी आखिर हम और आप जैसी ही है। हमारे ही सामाजिक ताने बाने
का हिस्सा है। ज्यादातर मामलो में नीचे ही रहता है किंतु कुछ मामलों में जो उपर होता
है वह एक झटके में इतना ऊपर हो जाता है कि अगले पिछ्ले सब रिकार्ड धवस्त कर देता है।
हैदराबाद का दिशा केस कुछ उन्ही चुनौतियों पर खरा उतरता है। दो तीन घटनाएँ याद आ रही
हैं जिन्हें लिखने का ये सही समय है।
2015 में मिज़ोरम में सैय्यद फरीद खान ने एक
नागा लड्की के साथ बलात्कार किया था, पोलिस ने उसे दिमापुर सेंट्रल जेल में डाल दिया। वो भी वहाँ बिरयानी खाता
रहता किंतु वहाँ के जागरुक नागरिकों की दस हजार की भीड ने उसे जेल से छुडवाया, पहले तबियत से पिटाई, धुलाई रंगाइ और नलाई की फिर नंगा किया और एक खंबे से बांधकर
जिंदा जला दिया। ये घटना एक नज़ीर बन गई और उसके बाद फिर कभी मिज़ोरम में बलात्कार
की घट्ना प्रकाश में नही आई।
इसी प्रकार नागपुर का
पप्पू यादव केस याद है। सरे आम लड्कियों को छेडना उन पर फब्तियाँ कसना और शायद कुछ
का उसने बलात्कार भी किया हो। नागपुर शहर के लोगो ने पोलिस और प्रशासन से कितनी बार
गुहार लगाई किंतु पोलिस और प्रशासन के रुखे रवैये से तंग आकर वहाँ की महिलाओं ने स्वँय
ही उसे सबक सिखाने का फैसला किया और एक दिन जब वह एक लडकी का पीछा करता हुआ उस मौहल्ले
तक आ गया और फिर उस मौहल्ले की सब महिलाओं ने उसे इतना कूटा कि उसका वहीं पर हैप्पी
बर्ड डे हो गया|
इसी कडी में उत्तर प्रदेश
के रामपुर या बरेली की भी एक घटना स्मरण हो रही है जब इंस्पैक्टर शर्मा बलात्कार के
आरोपी को पकडने गये तो वहाँ उसकी गिरफ्तारी का विरोध हुआ और पत्थरबाजी हुई अलग से।
स्थिति बिगड्ते देख इंस्पैक्टर शर्मा ने आरोपी को गोली मारकर घायल कर दिया किंतु मीडिया
में ये खबर वायरल हो गई कि एक बलात्कारी को एक इंस्पैक्टर ने सरेआम गोली मारी।
ये निश्चित है कि इस प्रकार
के तुरत फुरत इंसाफ वाहवाही बटोरने की दृष्टी से उचित लगते हैं किंतु ये घटनाँ नज़ीर
बिलकुल भी नहीं बननी चाहिए अन्यथा समाज में गलत संदेश जाएगा। हम कोई अरब देश नहीं है
जो चोरी करने पर हाथ काटने की सज़ा देंगें या बुर्का ना पहनने या एक औरत के घर से अकेले
बाज़ार निकलने पर सरे आम उसे गोलियों से भून देंगें। ये एक सभ्य समाज की पहचान तो नहीं
हो सकती किंतु ये बात भी गौर करने वाली है कि लोग लोकतंत्र को मज़ाक ना समझे। “यथा
राजा तथा प्रजा” आव्श्यक्ता है राजनैतिक एवम कोर्पोरेट (धन्ना सेठों) लोगों को
अपने गिरेबाँ में झाँकने की। क्यों कि ज्यादातर केस में यही लोग स्वंय या इनकी औलादें
इन सब में शामिल होती है और जब आंच आती है तो ये अपनी सो काल्ड इज़्ज़त की खातिर किसी
भी हद तक गिर जाते हैं।और इस काम में इनका साथ देते हैं नेता और कभी खुशी से कभी दबाव
में पोलिस ।
अंत में एक बेताल प्रश्न यह
भी रह गया कि 28.11.2019 के बाद 29.11.2019 को एक शादी शुदा औरत का जला हुआ शव भी हैदराबाद
में बरामद हुआ था प्रियंका को इंसाफ की पुकार में उस गरीब औरत के विषय में ना तो हैदराबाद
जनता को कुछ याद है और ना ही अन्य को। उन्नाव की घटना की मार्मिक कहानी ये है कि बलात्कार
के बाद आरोपियों को पोलिस से पकडा किंतु वे जमानत पर बाहर आ गए और कल ये वीभत्व कृत्य
किया। लोग हतप्रभ है कि कैसे एक व्यक्ति ने पोलिस को सूचना दी और उस जलती हुई लडकी
ने एक किलोमीटर तक चलती रही और उसी ने पोलिस को उस व्यक्ति के मोबाइल से सूचना दी।
हो हल्ला होने पर पहले उन्नाव से लखनऊ फिर ऐअर एम्बुलेंस से देल्ही। अब हम सभी को गम्भीरता
से सोचना होगा कि आखिर हम समाज के लोग किस तरफ जा रहे हैं।