Saturday, 31 March 2018

"फ्रेंच लीव चालू आहे"

“फ्रेंच लीव चालू आहे”
(20 करोड़  का घोटाला)

पिछले दिनों IT यानि इंडिया ढूडे में एक ख़बर पढ़ी कि बिहार पुलिस में २०० जवान गायब हैं जब कि उनकी तनख्वाह के रूप में अब तक लगभग २० करोड़ रूपये सरकारी ख़जाने से निकाले जा चुके हैं। पढ़कर थोडा आश्चर्य तो हुआ किन्तु इतना भी नहीं जितना होना चाहिए था कारण भी स्पष्ट है क्यों कि पिछले लगभग २० वर्षो की नौकरी के दौरान जब मैं डेल्ही में पोस्टेड था तो इस प्रकार के प्रकरण आये दिन सुनते रहते थे कि किस प्रकार NDMC और MCD में परमानेंट सफ़ाई कर्मचारी मिलीभगत करके अपनी जगह दूसरे किसी को अपनी नौकरी करवाते रहे और उनकों बहुत कम पैसे उनके काम के देते रहे इस झमेले में भी कई बार वो व्यक्ति और कोई ना होकर अपने ही घर का कोई सदस्य ये कार्य करता रहा ताकि किसी भी प्रकार के झमेले से बचा जा सके किन्तु इस प्रकार की कहानियां ज्यादा दिनों तक चलती नहीं हैं और परिणामस्वरूप ये बाहर आकर सबको हिला डालती हैं किन्तु ये सब भी NDMC और MCD के कर्ताधर्ताओं की बिना मिलीभगत के संभव नहीं हो सकता था । प्रश्न ये है कि आख़िर लोगों में इतनी हिम्मत कहाँ से आती है जो इस प्रकार की हेरा फेरी करने से पहले उनका कलेजा नहीं कांपता । आखिर वो क्या वजह है जो लोगों को इस प्रकार के कृत्य करने के उकसाती है । हद तो तब हो जाती है जब ये सब खुराफ़ातें धीरे धीरे ही सही सभी विभागों में पनपने लग पड़ी हैं।

कुछ दिनों पूर्व पाकिस्तानी सेना के विषय में एक आर्टिकल पढ़ था कि पाकिस्तानी सेना सिर्फ़ आतंक की फैक्ट्री ही नहीं चलाती  है वरन वो चाय की पत्ती,दुध,बोर्नविटा और ना जाने कितने खाद्य पदार्थो के साथ साथ वाशिग मशीन जैसी चीजों का भी उत्पादन और विपणन करती है। आख़िर वो ऐसा क्यों करती है इसका कारण जानकर अचम्भा नहीं हुआ क्यों कि इस प्रकार के कार्य में जो वर्कफोर्स की ज़रूरत होती है उस वर्कफोर्स में 35 से  60-65 हजार तक का फर्जीवाडा आराम से खपाया जा सकता है यानि सीधे सीधे कहें तो वो सारा पैसा पाकिस्तानी आर्मी फर्जी तरीके से अपने पास रख रही थी और यहाँ तक भी आशंका व्यक्त की गई थी कि ऐसा सिर्फ़ साधारण कामों के लिए ही नहीं वरन पाकिस्तानी आर्म्ड फ़ोर्स में जवान भी फ़र्जी भर्ती कर लिए जाते हैं ताकि उनकी तनख्वाह को अफसरान अपने लिए इस्तेमाल कर सके और हो सकता है ये सब जानबूझ किया जा रहा हो ताकि उस फर्जी पैसे को आतंकिस्तान बनाने में खर्च किया जा सके।

अब आते हैं असली मुद्दे पर  यानि बिहार की फ़र्जी पुलिस की कारीगरी की। पटना शहर की पुलिस  लाइन में कुल 1500 पुलिस कर्मी तैनात हैं जिनमें से 200 पुलिस कर्मी पिछले साल  से बड़े ही हैरतगंज तरीके से लापता हैं आश्चर्य ये है कि उनकी तनख्वाह बाकायदा हर मार सरकारी खजाने से निकल ली जाती है । ये तो भला हो DIG राजेश कुमार का जिन्होंने इसकी जाँच शुरू की और पाया कि केवल 200 पुलिस कर्मी गायब ही नहीं हैं वरन 300 पुलिस कर्मियों को पिछले कुछ महीनों से कोई कार्य ही नहीं सौपा गया है। आख़िर ऐसा क्यों और कैसे चल रहा है। इस प्रश्न पर पूरा महकमा मौन हैं।जब राजेश कुमार ने जाचं शुरू की तो पाया गया कि कुछ पुलिस कर्मी शुरू शुरू में तो कुछ दिनों का अवकाश लेकर गए थे किन्तु पिछले कुछ महीनों से और किसी किसी केस में तो एक वर्ष पूरा होने पर भी अभी तक लौट कर रिपोर्ट नहीं की गई है ।

अजीब बात ये है कि जब भी कोई सरकारी कर्मचारी छुट्टी पर जाता है तो एक निश्चित समय के पश्चात् उस कर्मचारी के ड्यूटी ज्वाइन न करने पर विभागीय कार्यवाही शरू कर दी जाती है और एक निश्चित समय सीमा के भीतर अगर कोई कर्मचारी कोई उत्तर नहीं देता है तो उस कर्मचारी की तनख्वाह तुरंत प्रभाव से रोक दी जाती है फ़िर लगभग एक वर्ष से किस कायदे कानून के तहत उन 200 पुलिस कर्मियों की तनख्वाह किसके आदेश से सरकारी खजाने से  निकाली जा रही थी।
निश्चित रूप से ये एक गहरी साजिश की ओर इशारा करती है सबसे ज्यादा गंभीर बात ये है कि जिन पुलिस कर्मियों की तनख्वाह निकाली जा रही है उन्मने से कई को तो विशिष्ट एवं अति विशिष्ट लोगों की सुरक्षा में लगा दिखाया गया है। आख़िर ये काम इतना तो आसां नजर नहीं आता जितना की लगता है। बिना किसी भीतरी घात के ये सब कार्य करने संभव नहीं हैं। ड्यूटी लगाने वाले से लेकर हथियार जारी करने वाले, ड्यूटी सत्यापित करने वाले और सैलरी निकालने वाले तक इनमें वे सभी अधिकारी भी जिनके हस्ताक्षर के बिना किसी को भी पैसा जारी नहीं किया जा सकता सब के सब इस साजिश में शामिल लगते हैं।

नियमानुसार किसी भी थाने में कोई भी पुलिस कर्मी (constable,Asstt. Sub Inspector,Sub Inspector)ज्यादा से ज्यादा 3 वर्ष ही एक पुलिस थाने पर ड्यूटी कर सकता है किन्तु जाँच में पाया गया कि पुरे पटना में 100 से भी ज्यादा पुलिस कर्मी जिसमें सभी रैंक के लोग हैं पांच वर्षो से भी ज्यादा समय से एक ही ठाने में डेरा जमाए बैठे हैं। जो की नियम विरुद्ध है किन्तु बिहार में नियमों की किसकों परवाह है। पिछले  दिनों ही बिहार का एक विडियो सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुआ जिसमें एक नेता एक IAS अधिकारी को सरे आम हड़का रहे हैं वह अधिकारी अपनी बात कहने का प्रयास कर रहा है किन्तु नेता जी उसे धकियाते हुए गरिया रहे हैं । जब ज्यादा ही बात बढती है तो नेता जी उस अधिकारी को धक्का मार कर गिरा देते हैं और मारने के लिए दौड़ते हैं किन्तु अब पासा पलट जाता है और वो अधिकारी उन नेता जी को ठीक ठाक ठुकिया देता है । इस घटना से नेता जी हतप्रभ हैं क्यों कि ऐसा तो उन्होंने सोचा भी नहीं था।  आखिर इस प्रकार की हरकत के मायने क्या हैं। इस प्रकार की हरकतें नेताओं की गरिमा को और नीचे ही गिरा रही है।

मैं बाकी बिहार प्रदेश की बात तो छोड़ ही देता हूँ यहाँ यह विशेष है कि पटना बिहार की राजधानी है और जानकारी के मुताबिक जब पूरा पटना पुलिस कर्मियों की कमी से जूझ रहा हो वहां 500 से ज्यादा पुलिस कर्मी फ्रेंच लीव के मज़े ले रहे हों तो स्थिति की भयावहता का समझने की आवश्यकता है। 2017 में प्रकाशित “ पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो “की रिपोर्ट के अनुसार  पूरे बिहार में 1367 लोगों पर 1 पुलिस कर्मी है जब कि राष्ट्रिय स्तर के मानकों के अनुसार कम से कम 663 पर एक पुलिस कर्मी आवश्यक है।

उपरोक्त तथ्यों पर द्रष्टिपात करने से एक बात तो साबित होती है कि लोगों की सोच पाताल की हद तक पहुँच गयी हैं जो आज ये स्थिति हो गई है कि लोग पुलिस जैसे महकमे में भी इस प्रकार की घोटालेबाजी करने से बाज नहीं आ रहे वरना क्या कारण है DIG राजेश कुमार से पहले किसी ने इस पर कोई ध्यान क्यों नहीं दिया। एक सकारात्मक ख़बर ये रही कि इस घोटाले की गूंज ने बिहार में पदस्थ सभी पुलिस कर्मियों के सत्यापन करने के दिशा निर्देश सरकार ने जारी कर दिये हैं। आशा ही की जा सकती है कि सब कुछ ठीक ठाक रहे और जो हो चुका है वो दुबारा ना हो।

-प्रदीप भट्ट –
SATARDAY, 31st MARCH-2018



Saturday, 24 March 2018

"कौन कहता है आतंक का धर्म नहीं होता "

-कौन कहता है आतंक का धर्म नहीं होता -

कितनी अजीब और हैरतअंगेज बात है कि भारत की जनता जिन नेताओं को चुनकर संसद में अपनी रक्षा और तकलीफ़ों के समाधान हेतु भेजती है वही नेतागण इतने संवेदनहीन व्यवहार का उदहारण प्रस्तुत करते हैं जिससे टीवी पर देख रही और समाचारों पत्रों द्वारा पढ़ रही जनता को अहसास हो रहा है कि उन्होंने किन लोगों को संसद में भेज दिया है जिन्हें इराक में मारे गए 39 भारतियों से ज्यादा फ़ेसबुक डेटा चोरी पर चर्चा ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है। आख़िर किस मिट्टी के बने हैं ये लोग ?  क्या आज राजनीती इतनी ओछी हो गई है कि लोगों के मरने पर भी नेतागण सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी मुद्दे पर वार्ता या चर्चा करना चाहते हैं जिसमें उनका स्वार्थ या हित छुपे हुए हैं। निश्चित रूप से ये स्थिति अच्छी नहीं है।
15 जून 2014 को मोसुल जो कि इराक का एक शहर है में 40 भारतीय मजदूरों का ISIS द्वारा अपहरण कर लिया गया। तब भारतीय राजनीती में भूचाल तो नहीं आया वरन ऐसे हालत जरुर बन गये थे जिससे विपक्ष को भाजपा को कोसने का मौका मिल गया था किन्तु विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा व्यक्तिगत तौर पर ये आश्वासन दिया जाता रहा कि वे इस गंभीर मुद्दे पर अपनी पैनी नजर बनाए गुए हैं। सुषमा स्वराज का स्वभाव और उनकी इमेज इतनी अच्छी है कि भारत की आम जनता को ये विश्वास था कि जैसे अब तक उन्होंने प्रत्येक कार्य को सुचारू रूप से अंजाम दिया है वे 39 लोगों  को किसी ना किसी प्रकार से स्वदेश वापस लेकर जरुर आयेगीं। किन्तु ऐसा हो न सका और लगभग चार वर्ष के पश्चात् जब इस बात के पक्के सबूत मिल गये कि ISIS द्वारा 40  में से 39 लोगों मार दिया गया है तो देश में सभी राजनैतिक पार्टियों ने इस पर जमकर कोहराम मचाना शुरू कर दिया। उस कोहराम का एक ही उद्देश्य था कि किसी भी तरह उन ३९ मजदूरों की निर्मम हत्या का दोषी मोदी सरकार को ठहराया जा सके। 
ISIS ने  2014 में ही 40  में से 39 लोगों को इराक के मौसुल से आठ किलोमीटर दूर  बादुश नामक  इलाके में धर्म के आधार पर बेरहमी से मार दिया गया और जमीन के सैकड़ों फुट नीचे दफ़न कर दिया गया । एक हिंदू मजदूर जो उस निर्मम हत्याकाण्ड से बच सका तो उसका सिर्फ़ एक कारण था और वह था उसका झूठ बोलना। इराक के मौसुल में मजदूरी करने गये मजदूर जिनमें पाकिस्तानी बांग्लादेशी और भारतीय भी थे  तो  ISIS सभी मजदूरों  से उनका नाम पूछा जिनका नाम मुस्लिम था उन्हें छोड़ दिया गया और बाकी बचे 40 मजदूरों में से एक हरजीत ने ISIS को अपना नाम हरजीत न बताकर अली बताया और इसी वजह से उन्होंने उसे मुस्लिम समझकर छोड़ दिया। अगर हरजीत झूठ ना बोलता तो ये कभी पता ना चलता कि ISIS ने किस प्रकार धर्म के आधार पर निर्मम हत्याकांड को अंजाम दिया।
पहले हम पूरी दुनियां में वहशत और दहशत का पर्याय बन चुके आतंकी संगठनों जिनमें अलकायदा ,तालिबान ,बोको हरम तहरीक -ए –तालिबान पाकिस्तान,अलनुस्रा फ्रंट,हिज्बुल्ल्हा हमास ,कुर्दिस्तान एवं रेवोल्शुनरी आर्मड फोर्सेस ऑफ कोलंबिया  जैसे दुर्दांत संघठन पूरी दुनिया में आतंक मचाए घूम रहे थे जिनसे पार पाना किसी एक देश के बस की बात नहीं थी । जाने कितने मुस्लिम आतंकी संगठनों के विषय में पढ़ते रहते थे कि कैसे उन्होंने पूरी दुनियां को अपने कब्जे में लेने के लिए जहाँ तहां आतंकवादी हमले किये हैं । अजीब बात ये थी कि पश्चिमी देश और मीडिया इस तरह की किसी भी घटना पर ज्यादा तवज्जो नहीं देता था किन्तु आज की तारीख में इनमें से बहुत सारे संघठनों ने अब पुरे यूरोप में अपनी दशहत की दस्तक दे दी है जिससे अमेरिका ब्रिटेन फ़्रांस जर्मनी और रशिया भी अब इनसे पार पाना चाहते हैं किन्तु यक्ष प्रश्न यही है कि हर देश इसे अपनी धरती से मिटा देना चाहता है वह आज भी अच्छे और बुरे आतंकवाद का सहारा लेकर इससे बचना चाहते हैं किन्तु ऐसा कब तक होगा मालूम नहीं।
ये भी सत्य है की आतंकवाद ने सबसे ज्यादा यदि किसी को परेशान किया है तो वो है भारत देश। इस विषय में भारत विश्व बिरादरी के सामने बार बार इसके बुरे परिणामों के विषय में बताता रहा किन्तु सब सोने का नाटक करते रहे। आज स्थिति ये है कि दुनियां के ५४ -५५ मुश्लिम देशों  में से अधिकतर में भी आतंकवादी गतिविधियाँ पुरे ज़ोर पर चल रही हैं फ़िर वो चाहे इराक हो कर सीरिया कुर्दिस्तान हो अफ़गानिस्तान या अन्य कोई मुस्लिम देश । किन्तु इसके साथ साथ यूरोप अमेरिका ब्रिटेन भारत पाकिस्तान और अन्य देशों में इस्लामिक आतंकवाद ने लोगों का जीना हराम कर दिया है । जो देश या लोग कहते हैं कि आतंकवाद और आतंकवादी का कोई चेहरा नहीं होता उन्हें थोडा और अधिक जानकारी जुटानी चाहिए । आज पूरे विश्व में सिर्फ़ और सिर्फ़ इस्लामिक आतंकवाद ही पनप रहा है ये और बात है कि कुछ राजनेता वो भी भारत में और कुछ छद्म बुद्धिजीवी जिनके सुर में बिका हुआ मीडिया भी अपना सुर मिलाकर ये साबित करने की कोशिश करता रहता है कि आतंकवादी और आतंकवाद को कोई चेहरा या धर्मं नहीं होता।
    जिन बेहुदे और कम अक्ल लोगों को आतंकवादी और आतंकवाद में फ़र्क नहीं मालूम या तो वे झूठ बोल रहे हैं या वे भी कहीं ना कहीं आतंकवादियों के रोल में ही हैं क्यों कि आतंकवाद का विरोध न करने वाला भी कहीं ना कहीं आतंकवाद का पोषक ही होता है। ऐसे लोगों के घर में जब तक कोई आतंकवादी के हाथों नहीं मारा जाता है तब तक उन्हें असलियत पता नहीं चल पति अन्यथा ऐसे लोग अपनी राजनीती महत्त्वकान्षाओं को पोषित करने का मौका कहीं न कहीं निकल ही लेते हैं । कुछ दिनों पूर्व ईराक के रुदेव मीडिया तेत्वोर्क ने 8 मार्च 2017 को लिखे एक लेख में इस बात को माना कि ISIS ने कैसे जेलों में बंद अपने ही 670 लोगों (मुस्लिमस, क्यों कि वो सब शिया,कुरदीश यजीदी और दुसरे धर्मो के लोग थे) की निर्मम हत्या की।आश्चर्य की बात ये है कि इस हत्याकांड से एक रात पहले ही जेल में तैनात सभी गार्ड जेल छोड़ छोड़ कर भाग गए थे लेकिन जाता जाते उन्होंने जेलों के दरवाजों को पूरी तरह सील कर दिया था जिस कारण जेल में बंद लोग भाग नहीं ।  
आख़िर ISIS इतना दुर्दांत क्यूँ है,इतिहास में झाँकने पर इस प्रकार की कई घटनाएँ आखें खोलने के लिए पर्याप्त हैं । एक किताब “आदि तुर्क कालीन भारत “ में जियाउद्दीन बरनी के विचारों से  जिसमें उनके नाना हुसामुद्दीन गुलाम वश के सुल्तान  गयासुद्दीन बलबन से सहयोगी और सिपहसलार का जिक्र है कि  यदि शिर्क और कुफ्र जड़ पकड़ गए हों और सभी काफिरों और मुशरिकों को पूरी तरह उखाड़ फेंकना संभव न हो तो कम से कम हिन्दुओं को हर तरह से अपमानित किया जाये। सभी मुस्लिम ये सदैव याद रखे कि हिंदू खुदा और रसूल के सबसे बड़े दुश्मन हैं। बादशाहों की दिन पनही का सबसे बड़ा चिन्ह यह होना चाहिए कि वे जब भी किसी हिंदू को देखें तो उनका मुँह लाल हो जाना चाहिए , उन्हें उस हिंदू को नष्ट करने के सभी उपाय करने चाहिए। ब्राह्मणों का जो  कुफ्र के इमाम (नेता) हैं और जिनके कारण कुफ्र और शिर्क फैलता है और जिस कारण कुफ्र की आज्ञाओं का पालन कराया जाता है उनका समूल उच्छेदन कर दिया जाना चाहिए । इस्लाम के सम्मान और दिने हक़ीकी (सच्चे धर्म) के सम्मान के लिए ये ज़रुर्री है कि किसी काफ़िर और मुशरिक को आदर पूर्वक जीवन जीने ना दिया जाये । मुसलमानों के मध्य उनका निरंतर अपमान और तिरस्कार किया जाना चाहिए। ऐसा प्रयास करना चाहिए कि उस ब्राह्मण को संतोष शांति और इत्मिनान कभी नसीब न हो । मुशरिकों और बुत्प्रस्तों को किसी कम समूह विलायत और एकता का हाकिम  नहीं बनाया जाना चाहिए । इस्लामी बादशाह के ऐश्वर्य और वैभव के कर्ण खुदा और रसूल के दुश्मनों में से एक भी निश्चिन्तता से पानी तक ना पी सके और ही ही संतोष की शैय्या पर अपने पैर फैला कर सो सके । 
    उपरोक्त से ये तो निश्चित समझ में आता है कि इस्लाम में जहाँ बड़ी बड़ी बातों को बताया गया है वहीँ संकीर्ण मानसिकता को भी उभारा गया है हम कितना भी ढोल पीट लें की इस्लाम धर्म बहुत अच्छा है किन्तु यक्ष प्रश्न फ़िर वही है कि अगर वह इतना ही अच्छा है तो फ़िर ये दुर्दांतपाना क्यूँ ? अगर इस्लाम भी और दुसरे धर्मो की तरह सद्भाव और आत्मीयता सीखता है तो फ़िर उसके मानने वाले क्यों निर्दोष लोगों की जघन्य हत्या कर रहे हैं। और तो और इस्लाम की कौन सी धरा ये सिखा रही है कि मुसलमान ही मुसलमान को मारे। निश्चित ये दिमागी बीमारी है । जिसका इलाज निकट भविष्य में तो दिखाई नहीं दे रहा है।
-प्रदीप भट्ट -