Tuesday, 22 August 2023

"प्रदीप बाबू बढ़िया है"

रिपोतार्ज़


            "प्रदीप बाबू बढ़िया है"

अगर मैं अपनी साहित्यिक यात्रा का पुनर्रावलोकन करने बैठूं तो इसका आगाज़ स्कूली पत्रिका संभावना में प्रकाशित मेरी पहली कविता "शहीदों का मज़ार" जिसकी अंतिम पंक्तियाँ कुछ यूँ थी:-

"तभी अनिश्चय के बादल में बिजली चमकी, 
रस्ता पाया
याद मुझे फिर ये दिन आया
दौड़ा दौड़ा गया शहीदों के मज़ार पे
इन फूलों का हार उन्हीं पर जा चढ़ाया"

निश्चित रूप से मेरी प्रथम कविता माखनलाल चतुर्वेदी की कविता सुमन की चाह से प्रभावित थी।
फिर नाटक, कहानी लिखते लिखते कविता से दिल लगा बैठा😊 ग़लत न समझें ये शब्दों वाली कविता का जिक्र है मांसल देह वाली कविता का नहीं😁 फिर आकाशवाणी में वार्ता प्रसारित हुई फ़िरनौकरी वग़ैरह वग़ैरह। दिल्ली से मेरठ से मुम्बई फिर हैदराबाद यानि साहित्यिक पारियाँ कभी exprsss ट्रेन सी कभी पैसिंजर ट्रेन से चलती रही।

       अब नौकरी है तो रिटायरमेंट भी है सो सोचा रिटायरमेंट से पहले ज़्यादा न सही कुछ शांत वातावरण में एक कुटिया या फ्लैट ले लिया जाए सो मई में मेरठ में शहर की सरहद से बाहर एक फ़्लैट ले लिया। शांत सौम्य वातावरण हरे भरे खेत, लाईट की आँख मिचौली साथ ही नेटवर्क समस्या सो अलग लेकिन अच्छी जगह एवम शांत वातावरण के सामने ये समस्या कुछ भी नहीं😃 

     अभी मेरठ के मित्रों को सूचना नहीं दी है कि "गब्बर इज़ बैक"😊  पहली बार अहसास हो रहा है फ़्लैट लेना अलग बात है और इंटीरियर के नाम पर मानसिक क्लेश किसे कहते हैं। बन्दों का काम है कि ख़त्म ही नही हो रहा ख़ैर आदरणीय नीरव जी से ज़रूर संपर्क बना रहा। 16 अगस्त को आग्रह कि आपको 20 अगस्त को गुरुग्राम के कार्यक्रम में शिरक़त करनी है। शाम को राजेश प्रभाकर जी का कॉल आ गया (मेरा राजेश से प्रथम परिचय 26 अप्रैल-2022 को राजपाल यादव जी के निवास पर हुआ था इत्तिफ़ाक़ ये कि एक ही शहर में होने के बावज़ूद राजेश जी और राजपाल जी पहली बार मिल रहे थे और मुलाक़ात का माध्यम मैं बना) सो जब राजेश जी ने स्वर साधना के कार्यक्रम में उपस्थित होने का आग्रह किया तो मैंने सहर्ष हामी भर ली।

      20 अगस्त-2023 प्रात: 4:30 के अलार्म से दिनचर्या शुरू हुई। सामान्य परस्थितियों में मुझे समय से कार्यक्रम में पहुँचने की आदत है फिर चाहे आमंत्रण अतिथि के तौर पर हो या विशिष्ट अतिथि के तौर पर हो या कि फिर कार्यक्रम अध्यक्ष के तौर पर। मुझे ख़ुशी है कि उत्तर प्रदेश से चलकर दिल्ली से हरियाणा के गुरुग्राम तक मैं 09:58 पर कार्यक्रम स्थल के प्रांगण में प्रवेश कर चुका था।स्वागत प्रिय राजेश श्रीवास्तव ने किया फिर आदरणीय नीरव जी, मधु जी,यशपाल जी राजेश प्रभाकर प्रिय अनुज अवधेश कनौजिया, कुमार राघव, कुलदीप कौर मोनिका शर्मा इत्यादि ।कुछ अपरिचित चेहरे भी थे जिनसे मेरा प्रथम बार परिचय हो रहा था। जिनमें पंकज जौहरी कृष्ण गोपाल सोलंकी सुनील शर्मा प्रेम बिहारी मिश्र इत्यादि।

  थोड़े से विलम्ब से ही सही कार्यक्रम आदरणीय नीरव जी की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ। नीरव जी को जर्मनी के प्रतिष्टित मैक्स मूलर सम्मान से नवाज़ा गया है। स्वर साधना संस्था द्वारा नीरव जी की इस उपलब्धि पर ही ये विशेष कार्यक्रम माधव सेवा केंद्र में उनके सम्मानार्थ आयोजित किया गया।वरिष्ठ साहित्यकार अशोक जैन जी विजय प्रशान्त, प्रिय रमाकांत (पूरे कार्यक्रम में एक्टिव रोल निभाया) प्रिय सुनीता सिंह के मधुर स्वर में सरस्वती वंदना सुनकर 'स्वर साधना मंच" अभिभूत हुआ। "अह्म ब्रह्मास्मि" की सर्वेसर्वा दीपशिखा जी संस्था का नाम बहुत ही सुंदर रक्खा है। सभी उपस्थित कवियों ने रचना पाठ करके कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई। ये देखकर अच्छा लगा कि प्रिय मोनिका शर्मा औऱ राजेश श्रीवास्वत का इस बात पर फोकस करते रहे कि कार्यक्रम में कोई त्रुटि न रह जाए । मेरी नज़र में इस कार्यक्रम की यही उपलब्धि रही कि स्वर साधना मंच को दो कर्मठ सहयोगी मिल गए। दोनों को आशीष।

       भोजनोपरांत हम ठीक 4 बजे निकले और से:सायं ९:15 मेरठ। तो भैय्या एक यादगार यात्रा एक यादगार कार्यक्रम कुछ नये मित्रों से मुलाक़ात या यूँ कहूँ तो ज्यादा बेहतर कि कुल मिलाकर एक यादगार दिन। 
स्वर साधना मंच प्रगति पथ पर सदैव अग्रसर रहे और साहित्यिक आकाश पर अपने लिए एक विशेष स्थान बनाएं।
टीम "स्वर साधना मंच" शुभेच्छा।
राजेश प्रभाकर जी को विशेष🌹🌹

Monday, 14 August 2023

मानवाधिकार की धज्जियाँ उड़ाता पाकिस्तान




“मानवाधिकार की धज्जियां उड़ाता पाकिस्तान और बांग्लादेश 
और वहाँ अपना अस्तीत्व तलाशते हिन्दू”


      पिछले कुछ समय से देश मे हिन्दू-मुस्लिम और बीफ विविद की चर्चा ज़ोरों पर है। अब हम सभी इन बे-सिर पैर की बातों मे उलझकर रह गए हैं। हाँ इतना ज़रूर हुआ की कुछ छद्म साहित्यकारों ने अपने अवार्ड वापिस करने की एक मुहिम चलाई जिसकी शुरुआत तो उदय प्रकाश ने की लेकिन अवार्ड वापिस किया काफी देर से । खैर इस विषय पर मै पहले ही काफी कुछ लिख चुका हूँ। आज हम पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिन्दुओ कि दुर्दशा पर चर्चा करेंगे ।

      पिछले दिनों पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिन्दुओ की स्थिति पर पढ़ने सुनने और समझने का मौका मिला और ये जानकार आश्चर्य हुआ की भारत मे लगभग 18-20 करोड़ मुस्लिम इन दोनों देशो के मुक़ाबले कितने सुखी और सुरक्षित हैं। आइये एक बानगी देखते हैं।

      1947 मे जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान नामक देश अस्तीतव  मे आया उस समय पाकिस्तान मे हिन्दुओ की जनसंख्या लगभग 15% थी जो की 1981 आते-आते घटकर 5% रह गई। और अब हिन्दू और सिखों को मिलकर तो ये मात्र 1.6% रह गई है।




  1986-90 तक हिन्दू परिवारों के साथ हुआ जो हुआ  वो कितना  वीभत्सकारी था इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की आज कश्मीर मे कुल 808 हिन्दू परिवार बचे हैं। उस दौर मे कश्मीरी पंडितो के साथ जो कुछ किया गया क्या वो मानवता के ऊपर कलंक नही था। लाखो हिन्दुओ को बेरहमी से मारा गया उनकी बहू -बेटियो की इज्ज़त लूट ली गई पुरुषो और बच्चों का बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया। पाँच लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडितओ को दर-बदर होना पड़ा अलग से । मुझे याद नहीं पड़ता कि बुद्धिजीवी ने इस पर उफ भी हो यहाँ तक आज जो पुरुसकर वापिसी का नाटक चलाया जा रहा है तब किसी ने भी ऐसा कोई कदम उठाने का साहस क्यों नहीं किया। मेरी समझ से ये बात सिरे से समझ मे नहीं आई कि इस विषय पर पहले और आज तक भारत सरकार का रुख स्पष्ट क्यों नहीं रहा। क्यों नहीं मानवाधिकार आयोग खामोश क्यों है। जिन छोटे –छोटे मुद्दो पर राजनीति की जा रही है क्या कश्मीरी पंडितो का मुद्दा उनसे भी छोटा है ?



      अब बात करते हैं बांग्लादेश की जिसका जन्म ही भारत की बदोलत 1971 हुआ अन्यथा क्रूर पाकिस्तानी आर्मी ने जितना ज़ुल्म पश्चमी पाकिस्तानी प्रांत पर कर रखा था उससे ऐसा प्रतीत होता था कि पश्चिमी पाकिस्तान जल्द ही नर विहीन हो जाएगा। ये तो भला हो तत्कालीन  भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरागांधी का जिनहोने समय रहते व  सही निर्णय लेते हुए जनरल मानेकशा को भारतीय सेनाओ को दखल देने के लिए कहा। किन्तु भारत के रहमो करम से मिली आज़ादी के बाद बांग्लादेश मे किस तरह हिन्दुओ का उत्पीड़न हो रहा है। वहाँ हिन्दुओ को दोयम दर्जे का नागरिक भी नहीं माना जाता क्यो ? वहाँ पर भी हिन्दुओ कि बहू-बेटियो के साथ बलात्कार करना तो आम बात है। बांग्लादेश मे हिन्दुओ कि गति क्या है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1947 मे वहाँ कि कुल आबादी मे हिन्दुओ कि संख्या 28% थी जो 1981 आते आते सिर्फ 8.5%  रह गई। 1971 कि लड़ाई मे पाकिस्तानी सेना ने हिन्दुओ पर जो अमानवीय अतयाचर किए उससे 1971 से 1981 आते बांग्लादेश से लगभग 10 लाख हिन्दू गायब हो गये। 25 वर्षो मे कुल लगभग 53 लाख हिन्दुओ ने बांग्लादेश से पलायन किया। अगर 1947 से अभी तक कि स्थिति पर द्र्ष्टिपात किया जाए तो ये जानकार आश्चर्य होगा कि पूर्व मे पश्चिमी पाकिस्तान और 1971 मे बने  बांग्लादेश से लगभल 5 करोड़ हिन्दुओ का कुछ अता-पता नही है या ये कहना ज्यादा श्रेयस्कर होगा कि पिछले 60-65 वर्षो मे 5 करोड़ हिन्दू गायब हो गये हैं।



      कुछ इसी तरह कि नितियाँ पश्चिमी बंगाल और उत्तर प्रदेश मे आज भी जारी हैं। पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद मे तो 23 दुर्गा पंडालो मे आग लगाई गई। कोलकाता मे प्रशासन द्वारा  माँ दुर्गा का विसर्जन इसलिए टालने का निर्णय लिया गया क्यो कि 22 अक्तुबर को गुरुवार होने के कारण विसर्जन नहीं किया जाता 23 को शुक्रवार होने के कारण 24 को मुहर्रम होने के कारण मतलब साफ है। यहाँ प्रश्न यही है कि क्या प्रशासन अर्धसैनिक बलों कि मदद लेने का निर्णय नही ले सकता था जिससे दोनों धर्मो के लोगो कि भावनाओ कि रक्षा होती ।  उत्तर प्रदेश मे तो सरकार सरे आम हर विभाग मे जाति और धर्म के चश्मे से सब कुछ देखना पसंद करती है। भारत मे सरकार कोई भी हो उन्हे धर्म विशेष कि भावनाओ कि चिंता ज्यादा रहती है किन्तु यही भावनाएँ बांग्लादेश या पाकिस्तान मे तो हर्गिज नहीं दिखाई पड़ती ।

      विश्व मे भारतवर्ष ही अकेला ऐसा देश है जहां हर धर्म को अपने सरोकारों/ मान्यताओ के साथ जीने की सहूलियत है। इक्का दुक्का घटनाओ से इन सरोकारों/ मान्यताओ की जड़ो को कोई  चाहकर भी नहीं हिला सकता। इस प्रकार के प्रयास चंद फिरकपरस्तों द्वारा पहले भी किए जाते रहे हैं। किन्तु जिस प्रकार सूर्य की प्रथम किरण के साथ अँधियारा छट जाता है उसी प्रकार इस प्रकार की घटनाओ के पश्चात धीरे धीरे सब कुछ स्वत: ठीक होने लगता है।