Tuesday, 31 January 2023

कभी कभी कुछ अचानक भी हो जाता है प्रभु"

रिपोतार्ज सरस्वती वंदना का लिंक https://youtu.be/jfUAuLRAiCc 


 -कभी कभी कुछ अचानक भी हो जाता है प्रभु-

 पिछले कई दिनों से हैदराबाद में ठंड का प्रकोप (सामान्य से ज्यादा) बढा। पिछ्ले 16 बरस से दिल्ली से बाहर हैं पहले 12 वर्ष मुम्बई और अब पिछले 4 वर्षो से हैदराबाद की आबो हवा को एंजॉय कर रहे हैं। लेकिन साहब इस बार हम भी लपेटे में आ गये और वो भी पूरे धूम धाम से। गले का हाल ऐसा कि अगर गर्धव सुन ले तो उसे कम्पलेक्स हो जाए। इसी बीच 27,28 व 29 को हैदराबाद लिट फेस्ट था हमने सोचा वैसे तो किसी कार्यक्रम में जा नहीं पा रहे सो सोचा यहीं मटर गश्ती कर ली जाए। तभी राजन चौधरी पुरस्कार समारोह का निमंत्रण मिला हमने गले की हालात देखते हुए विनम्रता से मना कर दिया किंतु जब पुन: आग्रह किया गया तो इस निवेदन के साथ शामिल होने की स्वीकृति दे दी कि हम कविता पाठ नहीं कर पाएगें। 28 जनवरी-2023 की सायं को सुनीता लुल्ला जी ने फोन कर हाल चाल पूछा जब हमने कहा पहले से बेहतर हैं तो फिर अनुरोध किया कि आप कल के कार्यक्रम में सरस्वती वंदना प्रस्तुत करें, हमने बताया अभी गला इतना भी ठीक नहीं हुआ कि ये रिस्क लिया जा सके किंतु उन्होंने फिर आग्रह किया तो हमने हाँ कर दी किंतु इस अनुरोध के साथ कि सरस्वती वंदना हम स्वरचित ही पढेंगे( वैसे भी सामान्यत: हम अपनी ही रचना पढते हैं} अगले दिन नियत समय हम पहुँच गये थोडी बहुत विलम्ब से ही सही कार्यक्रम शुरु हुआ। सरस्वती वंदना के लिए नाम पुकारा गया तो हमने माँ सरस्वती का ध्यान किया और हो गये शुरु ( वैसे भी भगवान की कृपा से स्टेज फियर हमें शुरु से ही नहीं है) आश्चर्य उपस्थित सभी ने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दी। सुनीता जी ने अपने अंदाज़ में कह दिया। और कितना अच्छा स्वर चाहिए प्रदीप जी। एक बात जो सबसे विशेष लगी वो ये कि इस बार साहित्यकारों के अलावा दो आर जे (रेडियो जॉकी) श्रीमती अनुराधा पाण्डेय एवम दीपा राज अजीश ( विशेष यह है कि दीपा राज अजीश केरल से हैं) को भी प्रदान किया जो एक अच्छा संकेत है। ये दोनों ही विदुषी रेडियों के माध्यम से हिंदी भाषा की बरसों से सेवा कर रही हैं। दूसरे सत्र में कविता पाठ भी हुआ। कुल मिलाकर एक बेहतरीन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। एक बात जो खटकी वह ये कि राजन चौधरी पुरुस्कार का कोई बैनर क्यूँ नहीं लगाया गया। जिस व्यक्ति के नाम से इस वर्ष 7 लोगों को सम्मानित एवम पुरुस्कृत (रुपये 2500/- प्रत्येक) क्या गया उसी व्यक्ति का एक बैनर भी न लगाना कई सारे प्रश्न चिन्ह खडे करता है। अगले वर्ष चयन समिती को इस पर गौर करना चाहिए। -प्रदीप देवीशरण भट्ट-01.02.2023

Tuesday, 24 January 2023

चांद को ऑनलाइन ही मंगा लिया है जी

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“चाँद को ऑन लाइन मंगा लिया जी“

जब मेरी प्रथम कृति “दरिया सूखकर सहरा हुआ है” 29 फरवरी-2022 को हैदराबाद में लोकार्पित हुई थी। मैं कुछ ही बंधुओं को पुस्तक की प्रति भेंट कर पाया था, तभी कोरोना बाबू पूरे जोर शोर से आ धमके। वैसे भी अपना कोई भी काम सीधे सीधे कब निपटता है भाई! ये विषय अलग है कि हम कुछ बहुत ही ज्यादा सीधे साधे हैं (कसम से झूठ ही बोल रहा हूँ)  तब डिपार्टेमेंट के कई साथियों ने जो देश के दूसरे शहरों में कार्यरत्त थे ने शिकायत की थी कि कोरोना बाबू आ गये किताब कैसे मिलेगी। यार ई कितबवा ऑनलाईन काहे उपलब्ध नहीं है। हमने प्रकाशक की कुछ मजबूरिया और अनभिज्ञता का जिक्र किया फिर ज्यादा जोर देने पर जैसे तैसे सात आठ प्रिय मित्रों को स्पीड पोस्ट से पुस्तक भिजवा दी।  उनमें से पाँच तो फोन पर ही नाराज ही हो गये । अरे भई ये क्या हमें लिंक भेज देनी थी हम खुदई मँगवा लेते तुम काहे कष्ट किये। 

खैर अब जब दूसरी पुस्तक “असलियत में चाँद मेरे पास है” 29 दिसम्बर-2023 को गाँधीनगर (गुजरात) में लोकार्पित हुई तो हमने आदतानुसार एक रिपोतार्ज़ लिख मारा साथ ही ऑनलाईन पुस्तक मंगाने के लिए लिंक भी शेयर कर दिया इससे पहले कि कोई और मित्र ऑनलाईन पुस्तक मंगवाने का कष्ट करते हैदराबाद की ही स्नेही मित्र मोहिनी गुप्ता जी ने बिना बताए बिना देरी किये पुस्तक मंगवा भी ली और हमें चित्र भी व्हाट्सअप पर शेयर कर दिया जैसे कहने चाह रही हों हमसे बढकर कौन है रे बाबा। उनके इस स्नेह पर एक गज़ल की पंक्ति याद हो आई।

 “मुझसे बढ के यहाँ, तुझे कौन है चाहने वाला
  अगर यकीं नहीं तो तू भी देख, पैर का छाला“

खैर इसके लिए वे स्नेह की पात्र तो हैं ही। अच्छी बात ये है कि वे स्वंय भी अच्छी कविताएँ लिखती हैं पढने का अंदाज़ भी बढिया है। तो भईय्या इस बार कऊनो गल्ती न की है जऊनो जऊनो ऑनलाईन मँगाना चाहें मंगा लो भाई फिर न कहना ॥
जय श्री राम!!!!!!

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-16.01.2023

Thursday, 5 January 2023

"आख़िर गाँधीनगर में चाँद लोकार्पित हो ही गया "

रिपोतार्ज़

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“ आखिर गाँधीनगर में चाँद लोकार्पित हो ही गया”

“असलियत में चाँद मेरे पास है”

अक्टूबर-2022 के अंतिम सप्ताह में आदरणीय सुरेश नीरव जी जो कि देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था "अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फोन आया कि 28,29 व 30 दिसम्बर को संस्था का 17 वां राष्ट्रीय अधिवेशन गुजरात की राजधानी गाँधीनगर में 28,29 व 30 दिसम्बर को होना तय हुआ है। आप इस अधिवेशन में सादर आमंत्रित हैं। मैंने इस अधिवेशन में सम्मलित होने के लिए सहर्ष अपनी सहमति प्रदान कर दी। 🤗11 मई-2022 को प्रथम भेंट से लेकर अक्टूबर तक नीरव जी और मेरे मध्य घनिष्टता काफी बढ गई थी। जब भी फोन पर वार्तालाप होता था तो समय का पता ही नहीं चलता था। नीरव जी मुझसे काफी वरिष्ठ हैं किंतु हम दोनों ही दुनिया भर के विषयों पर अपना अपना दृष्टीकोण एक दूसरे से साझा करते रहे। ये सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। राष्ट्रीय अधिवेशन की तैय्यारियों के विषय में भी काफी विस्तृत चर्चा हुई। देश भर से निकलने वाले समाचार पत्रों में अधिवेशन से सम्बंधित समाचार छप रहे थे, जिन्हें एक निश्चित समय के बाद ही सोशल मीडिय पर प्रचारित प्रसारित करने का निर्णय लिया गया। किसी भी कार्यक्रम की सफलता एक दिन में नहीं मिलती उसके पीछे कढी मेहनत और एक सुदृढ रणनीति की आव्श्यकता होती है जिसमें नीरव जी सिद्धहस्त हैं।🌹 इस पूनीत कार्य में प्रिय ऋषि सिन्हा, पटना और दिनेश दवे जी इंदौर की मेहनत साफ झलकती है।🌷

खैर इसी बीच नवम्बर माह में मुझे तीन दिवसीय मेरठ लिटरेचर फेस्टीवल में अपनी सहभागिता और जिम्मेदारियों को भी पूरा करना था सो वहाँ से फ्री होकर वापिस हैदराबाद आते हुए आदरणीय नीरव जी से पुन: भेंट करने का अवसर मिला। वही गर्मजोशी से स्वागत, मधु जी के हाथ का बना सात्विक भोजन ग्रहण करने का फिर सौभाग्य मिला। घंटो चर्चा हुई सो अलग्। शाम को फ्री होकर दिल्ली में अपने प्रिय मित्र और बडे भाई समान पवन गोयल के पास हाजरी लगाई। पहली बार दिल्ली -बंगलौर राजधानी ट्रेन का टिकिट कंफर्म नहीं हुआ। वेटिंग 14 पर अटक गया। हवाई यात्रा का विचार किया तो अगले तीन दिन तक भी 18 हजार से टिकिट कम नहीं ( कभी कभी ऐसा भी होता है) सो तय किया कि वाया मुम्बई जाया जाए, फिर टिकिट बुक की पर “अफसोस दिल गड्ढे में” इस बार वेटिंग 41 पर आकर रुक गई और कोई चारा न देख दिल्ली-यशवंतपुर विंडो टिकिट निकाला और राम का नाम लेकर चढ गये। 😅ईश्वर की कृपा रही और जैसे तैसे हैदराबाद पहुँच ही गये। अगले ही दिन सन्मति प्रकाशन से फोन आ गया कि आपकी पुस्तक “ असलियत में चाँद मेरे पास है” स्पीड पोस्ट से रवाना कर दी गई है। जिसे मेरठ लिटरेचर में लोकार्पित होना था वो अब प्रतीक्षारत्त थी।  पार्सल खोला तो एक किताब स्वत:उछलकर सामने आ गई जैसे पूछ रही हो बेटा अब क्या करोगे। 😹2023 में होने वले इंडो नेपाल फेस्टिवल तक हमें इंतेज़ार कराओगे क्या। हमने भी उसी अंदाज़ में जवाब दे डाला न बहन न ऐसा कतई न होने देंगे, अच्छा सुनो गाँधीनगर में तुम्हारे चेहरे से नकाब हटा दें क्या। 😉अब बारी थी कवर पेज पर चाँद के चित्र की वो भी मूड में आ गया और बोला “ भय्ये जो करना है करो लेकिन करना 2022 में ही 2023 में करने की सोची तो नकाब हटाने पर एडिशनल 28% जी एस टी ठोक देंगे।😱 हमारी और किताब की ये वार्ता चल ही रही थी तभी नीरव जी फोन आ गया हमने अपनी दुविधा बताई तो बोले ये तो बडी अच्छी बात है ये तो सोने पे सुहागे वाली बात हो गई थी सो नीरव जी से बातचीत खत्म कर हमने विजयी मुस्कान के साथ किताब पर दृष्टी डाली तो चाँद का चेहरा उतरा पाया शायद उसे 28% एडिशनल जी एस टी न मिलने का मलाल सता रहा था।🤨

नियत दिन यानि 27 दिसम्बर-2022 को हमने राजकोट एक्स्प्रेस से अहमदाबाद के लिए सफर शुरु किया। आश्चर्य राजकोट एक्सप्रेस सिकंद्रराबाद से बनकर चलती है और 18 मिनिट्स लेट हैय्यं ये क्या हो रहा है ( लोहानी जी, अध्यक्ष इंडियन रेलवे, तनिक इस पर ध्यान दें हुज़ूर ) 28.12.2022 को अपरान्ह 2 बजे अहमदाबाद वहाँ से टैक्सी से गाँधीनगर और फिर होटेल में एंट्री। दवे जी से बात हुई तो बोले हुज़ूर रुम नम्बर 1011 आपकी राह देख रहा है, हमने फिर पूछा तीन दिनों के हमारे रुम पार्टनर का नाम तो बोले डॉक्टर एल बी तिवारी “अक्स” जी हैं। एक बेहरतीन इंसान लेकिन थोडा रिजर्व नेचर के लेकिन हमारे साथ जल्दी ही घुलमिल गये। फ्रेश हुए तो 5 बजे से फेसबुक लाइव शुरु हो गया, बेहतरीन कार्यक्रम। हमने भी अपनी एक रचना “बीते साल की बातें करके क्या होगा, हम अच्छे तो साल नया अच्छा होगा” पढ दी, अच्छी सराहना बटोरी। 🥰अगले दिन सुबह स्वामीनारायण मंदिर द्वारा संचालित स्कूल में कार्यक्रम रखा था। नई तकनीक से लैस बढिया हॉल, समुचित व्यव्स्था। 17वें  अधिवेशन में देश के विभिन्न भागों से पधारे लोगों से परिचय हुआ। जिनमें प्रतापगढ (उत्तर प्रदेश) से डॉक्टर एल बी तिवारी “अक्स”,गुरुग्राम से राजेंद्र व इंदु निगम, इंदौर से दिनेश दवे एवम आलोक रंजन, रतलाम से यशपाल, देहरादून से सुभाष चंद सैनी, दिल्ली से ब्रहमदेव शर्मा,उमंग सरीन, रंजना मजूमदार, राजेश लखेरिया, गाज़ियाबाद से सुरेश नीरव व मधु मिश्रा राजस्थान से मधु मुकुल चतुर्वेदी, प्रमिला व्यास, उज्जैन से हास्य कवि राज, बिहार से ऋषि सिन्हा, अहमदाबाद से आभा मेहता, मुम्बई से डॉक्टर ऋचा सिन्हा एवम बंगलौर (कर्नाटक) से मेरे प्रिय मित्र और भाई ज्ञान चंद मर्मज्ञ और हाँ भईय्या तेलांगना से हम यानि नाम तो सूना सूना सूना सूना और एक बार सूना होगा ही। कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ डॉक्टर बलवंत शांतिलाल जानी जो कि केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर (मध्य प्रदेश) के कुलाधिपति हैं के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ।  इस अवसर पर दूरदर्शन पटना के निदेशक राजकुमार नाहर जी मुम्बई से पधारे संगीतकार शिव राजोरिया एवम उनकी धर्मपत्नि डॉक्टर ज्योतसना राजोरिया (बेहतरीन गायिका- माँ सरस्वती की कृपा है) भी उपस्थित रहे। फिर बारी आई आपके भाई की पुस्तक “असलियत में चाँद मेरे पास है” के लोकार्पण की जिसे मेरे अतिरिक्त मंच पर उपस्थित अतिथियों द्वारा लोकार्पित किया गया। दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन जिसमें हमने अपनी प्रेम के ऊपर एक रचना 
“चल स्लेट पर फिर लिख डालें, अपनी प्रेम कहानी को
कच्ची उम्र के कच्चे सपने, अपनी उस नादानी को”

अगले दिन यानि 30.12.2022 को हमने डॉक्टर भागिया “खामोश” से मिलना तय किया साथ में हमारे अब तक प्रिय हो चुके एल बी तिवारी “अक्स” जी साथ ही थे। एक आत्मीय और जोश से भरी हुई मुलाकात, लगभग 4 घंटे तक छोटी किंतु जानदार गोष्ठी जिसमें हमारा साथ श्रीमती भागिया ने भी दिया । घर का खाना फिर सांय को विदाई। अगले दिन सुबह अक्स जी एअर पोर्ट और हम वडोदरा ।पारिवारिक मित्र से एक हसीन मुलाकात साथ में लंच फिर प्रिय रश्मि (सृजन) एवम प्रिय शिवम (राब्ता) ने एक प्रोग्राम रखा हुआ था को अटेंड करते हुए सायं को ट्रेन पकडी और 2022 की यात्रा को 2023 के प्रथम दिन विराम दिया। एक महत्वपूर्ण बात ये रही कि गुजरात महोत्सव की पूरे दिन दूरदर्शन गिरनार द्वारा कवरेज की जाती रही।


मिले भी किंतु मिले नहीं
फूल अधर के खिले नहीं
याद तो आनी निश्चित लेकिन
नयन से मोती ढले नहीं
तन की दूरी माना लेकिन
दिल तो तेरे पास प्रिये
नहीं कभी ये सकता कि
‘दीप’ तुम्हारा जले नहीं 


प्रदीप देवीशरण भट्ट-
05.01.2023

गाँधीनगर (गुज़रात) आ रहा हूँ मैं

रिपोतार्ज़
                                   “गाँधीनगर आ रहा हूँ मैं”
“असलियत में चाँद मेरे पास है”

आप सब मित्रों से इस बात को साझा करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है कि मेरी दूसरी कृति “असलियत में चाँद मेरे पास है” “सन्मति प्रकाशन” से छ्प कर मेरे पास पिछले सप्ताह ही पहुँच गई है।  पढते लिखते और समझने का प्रयस करते हुए यूँ तो चार दशक निकल गये। लेकिन आज भी लगता है न कुछ लिखा न कुछ पढा और किया तो कुछ भी नहीं। पहले भी सिफर पर ही  खडे थे और आज भी उस सिफर से आगे एक इंच भी नहीं बढ पाए। हाँ उन दशकों में ये उपल्ब्धि अवश्य रही कि अन्य के अतिरिक्त विष्णु प्रभाकर जी, यशपाल जी के कर कमलों द्वारा प्रथम पुरुस्कार से सम्मानित अवश्य हुआ जो कि गर्व की बात कही जा सकती है। 
                    
दिल्ली से मुम्बई बारह वर्ष फिर पिछले चार वर्षो से हैदराबाद में हूँ। मुझे मुम्बई में काफी सराहना मिलती रही है। फिल्म राइटर्स एसोसिएशन से जुडाव भी हुआ कुछ किया भी लेकिन वो सिरे नहीं चढा। पुस्तक छपवाने से सदा बचता रहा क्यों कि मेरा मानना रहा कि “ छपना और खपना” न जी न हमसे न हो पाएगा किंतु जब यहाँ हैदराबाद की साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेना शुरु किया तो कुछ अग्रजों का आग्रह न टाल सका और मेरी पहली कृति “ दरिया सूखकर सहरा हुआ है”  का लोकार्पण 29 फरवरी-2020 को उर्दु हाल, हिमायत नगर, हैदराबाद  में सम्पन्न हो गया। प्रतिसाद अच्छा ही मिला काफी अग्रजों द्वारा इसे सराहा गया फिर मन में एक और छपवाने का ख्याल उमड घुमड करने लगा (लालच है,आ ही जाता है) 

तभी मार्च-2020 से कोरोना बाबू ने भारत में दस्तक दे दी । सब कुछ बिखर सा गया किंतु साहस हो तो कुछ भी असम्भव नहीं सो वर्चुअल माध्यम ने कवियों को एक दूसरे से जोडे रखा। अब जब धीरे धीरे स्थिति बेहतर होने लगी है तभी आज ही खबर आई है फिर कोरोना बाबू पुन: एक बार अपनी छिछालेदर करवाने भारत में एंट्री मारने की कोशिश कर रहे हैं। प्रभु अब बहुत हो गया बस भी करो। इस कोरोना काल में भी हमने भी कुछ अलग किया और चार दशकों का लेखा जोखा खंगालना शुरु किया। कुछ नया कुछ पुराना, कित्ता बेदर्द ज़माना। सो उसे सूची बद्ध किया और क्रम बद्ध किया और पहली फुर्सत में ही दो चार प्रकाशक टटोलते हुए आखिर सन्मति प्र्काशन से बात पक्की हो गई। बाईस वर्ष पुरानी घटना पर लिखी कविता को किताब का शीर्शक दिया और थोडी बहुत अडचनों के बाद आखिरकार पिछले सप्ताह पुस्तक मेरे हाथों में आ ही गई। 

जब तलक अडचन मिले न,
राह मिलती ही नहीं।
राह मिल भी जाए तो फिर,
वाह मिलती ही नहीं।
मैं नहीं कहता मुताबिक,
मेरे दुनिया भी चले।
दुनिया मिल भी जाए तो फिर,
चाह मिलती ही नहीं॥

(प्रदीप देवीशरण भट्ट)
23.12.2022

“असलियत में चाँद मेरे पास है” का लोकार्पण देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था "अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के गाँधीनगर गुजरात में आयोजित होने वाले 17 वें राष्ट्रीय अधिवेशन जो की गुजरात की राजधानी गाँधीनगर में 28,29 व 30 दिसम्बर को समपन्न होगा में किया जाएगा।  इस बार का राष्ट्रीय अधिवेशन आजादी के 75वें अमृतवर्ष पर प्रधानमंत्री के “स्वस्थ भारत स्वच्छ भारत कार्यक्रम” को समर्पित होगा। इस राष्ट्रीय अधिवेशन में देश के विभिन्न हिंदी भाषी और अहिंदी भाषी राज्यों के साहित्यकार, संगीतकार और शिक्षाविद सम्मलित होगें। निश्चित रुप से ये हर्ष का विषय है। 

आपकी पुस्तक “असलियत में चाँद मेरे पास है” अमेज़न पर उप्लब्ध रहेगी। 

      आप सभी मित्रों से अनुरोध है कृपया पुस्तक पढें एवम अपनी प्रतिक्रिया से मुझे अवगत भी कराने का कष्ट करें।
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-प्रदीप देवीशरण भट्ट-26.12.2022

Monday, 2 January 2023

खूबसूरत शाम वड़ोदरा के नाम

रिपोतार्ज़ 

    "एक शाम वड़ोदरा के नाम"

      गुजरात की राजधानी गांधीनगर में तीन दिवसीय 28,29,30 दिसंबर को गुजरात साहित्य महोत्सव अविस्मरणीय स्aमृतियां संजोए वडोदरा से हैदराबाद के लिए हम सफर ट्रेन (ऐसा हमसफ़र जिसके टॉयलेट में न पानी हो और न ही लिक्विड सोप, बाकी सुविधाएं तो चड्डडो जी )प्रस्थान करना था। इसी बीच २८ दिसंबर को सृजन की सर्वेसर्वा रश्मि रंजन ने सूचित किया कि आपके संक्षिप्त वडोदरा आगमन के स्वागत में ३ से ५ बजे तक "HODOPHILE CAFE,"
11 12 13 M CUBE MALL,BESIDE VIJAY SALES, JETALPUR ROAD, VADODARA 390007 
एक गोष्ठी का आयोजन किया है कृपया आप स्वीकृति देवें। मैंने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी।

     इसी बीच एक अन्य पारावरिक मित्र का आदेशात्मक आग्रह आ गया कि हमसे बिना मिले गए तो आपकी ट्रेन को कहीं और डायवर्ट करा देंगे फ़िर देखें कैसे हैदराबाद पहुंचोगे ......… हमें तुंरत एक अन्य मित्र की याद हो आई जिन्होंने नेपाल प्रवास पर हमसे इसी अंदाज़ में कहा था हमारा बर्थडे.... है अगर हमें विश न किया तो आपको विष देंगे। 😡 ख़ैर हमने मारे डर के इस पंक्ति को पकड़कर एक नज़्म लिखी और नियत तिथि को बर्थडे विश भी किया और उपहार स्वरूप नज़्म भी भेंट कर दी। भगवान का शुक्र मनाया जान बची 😃। इस बार भी यही फीलिंग आ रही थी सो हम मन ही मन बुदबुदाए रजिया गुंडों में फंस गईं। ख़ैर मेनेजमेंट के असल फार्मुले का उपयोग किया और मित्र के परिवार के साथ मॉल का नाम याद नहीं आ रहा लंच किया उन्हें पुस्तक भेंट की विदा ली और पहुंच गए । 

"HODOPHILE CAFE,"
राब्ता के प्रिय शिवम एवम सृजन की रश्मि ने स्वागत किया। कुछ विलंब से ही सही कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसमें सुखन याराना से जुड़े सदस्यों द्वारा अपने अपने कलाम पढ़े गये और महफ़िल में इंद्रधनुषीय छटा बिखेर दी गईं । फर्टाईल माइंड के प्रसन्ना जी भी इसी बीच मौजूद रहे।

सृजन की रश्मि एवम राब्ता के शिवम ने भी अपनी अपनी रचनाएं पढ़ी। अध्यक्षीय टिप्पणी के साथ मैंने भी अपनी दो गज़ल प्रस्तुत की जिसे उपस्थित सुमधुर दर्शकों द्वारा अच्छा प्रतिसाद मिला। संक्षिप्त वडोदरा प्रवास की एक अच्छी शाम कुछ मुस्कुराते चेहरों के साथ। विदा होते वर्ष से और कि चाईदा। रश्मि जी ने रंजन जी को दोनों बच्चों सहित वैन्यू पर ४:३० पर हाज़िर होने का फ़रमान सुना दिया ताकि मुझसे मुलाक़ात हो सके । बच्चों से मिलकर अच्छा लगा। स्नेही रंजन जी मुझे स्टेशन ड्रॉप किया लेकिन अभी एक सरप्राइज़ बाकी था मैंने रंजन जी को विदा किया और अपने बैग को उठाया तो स्टेशन की सीढ़ियों पर फिर से हंसते मुस्कुराते चेहरे को देखकर आश्चर्य चकित चूंकि बच्चों के अपने अपने प्रोगाम फिक्स थे इसलिए मित्र महोदय मुझसे पहले ही खाना वगैरह लेकर स्टेशन पर हाज़िर। मोबाइल से चिपके रहने वाले युग में एक सुखद अनुभूति का अनुभव हुआ।  बेसाख्ता कुछ पंक्तियां याद हो आईं।

दोस्ती में प्रेम का स्थान होना चहिए
क्या ज़रूरी है कि कोई नाम होना चाहिए

खून के रिश्ते वफ़ा न जान पाएंगे कभी
दूर से ही उनका अहतराम होना चहिए 

अभी अभी सोलापुर स्टेशन क्रॉस हुआ है सोचा क्यूं न वड़ोदरा प्रवास का एक रिपोतार्ज ही बनाकर २०२३ का शुभारंभ करदूँ 😊।


प्रदीप देवीशरण भट्ट
हमसफ़र से ०१:०१:२०२३

दो खूबसूरत शाम साहित्य के सरोवर के नाम

रिपोतार्ज 

"दो खूबसूरत शाम  साहित्यिक के कुम्भ के नाम"

पिछले कुछ दिनों से व्यस्तता अधिक रही है किंतु साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते मेरी सदैव से पहली प्राथमिकता साहित्यिक आयोजन में शिरकत की रही है। दीपों का पर्व दीपावली का आयोजन पूरे पाँच दिन चलता है। अब ऐसे में  22 एवम 23 अक्टूबर (शनिवार एवम रविवार। जहाँ नृत्य के माध्य्म से भारतीय संस्कृति की झलक देखी वहीं 30 अक्टूबर को  हिमायत नगर के उर्दु हॉल में सुबह 11 बजे से 9 बजे तक सहित्य के सरोवर में डूबकी लगाने का मौका मिला वहीं 31 अक्टूबर को केंद्रीय हिन्दी संस्थान, बोयन पल्ली में सांय 5 बजे से तक रात्रि 11 बजे तक साहित्य के सानिध्य में बिताना एक अलग सुखद अनुभूति दे गया। मेरा मानना है साहित्य के विषय में हर व्यक्ति की राय अलग हो सकती है कोई साहित्य को समाज का आईना बताता है तो कोई कुछ और किंतु मेरी दृष्टी में  साहित्य हमारे समाज का एक ऐसा मोखा/रोशनदान या झरोखा/दरीचा आप जिस नाम से भी चाहें सम्बोधित करें। है, जिसके प्रकाश से हमारा समाज आलोकित होता है। आईना वही दिखलाता है जो उसमें प्रतिबिम्बित होता है इसलिए मैं इसे रोशनदान या झरोखा कहना ज्यादा उचित समझता हूँ। क्यों कि साहित्य रुपी झरोखा समाज में व्याप्त कुरितियों पर जहाँ करारी चोट करके इसके दुष्परिणामों के प्रति समाज को आगाह करता है वहीं इन कुरितियों से कैसे बाहर निकला जाए ये भी समझाता है। फिर वो सही हो या गलत हमारे परिवारों में हो या मौह्ल्ले में गाँव में हो या शहर में प्रांत में हो या देश में। साहित्यकार बिना किसी लाग लपेट के गद्य या पद्य द्वारा अपने विचार समाज के पटल पर रख देता है। मैंने अपने ट्विटर अकाउंट के अपने स्टेटस पर भी अपने इस वाक्य को स्थान दिया है कि “कलम जब बिकने या समझोते करने लगे तो उसका टूटना अच्छा।“

एक बात जो मुझे अनुचित प्रतीत होती है वह है साहित्यिक समारोह में भी लोग अपनी लेट लतीफी से बाज़ नहीं आते। पता नहीं देर से आकर वो क्या साबित करना चाहते हैं और कुछ तो उस समय अपने दर्शन देते हैं जब लंच/रेफ्रेशमेंट शुरु होने में मात्र आधा घण्टा शेष हो। शायद उनके लिए साहित्य के आनंद से पेट का आनंद ज्यादा अहमियत रखता है। और कुछ महानुभाव तो ऐसे कि अपनी कविता सुनाई और दस मिनिट लंच के बाद अंतर्ध्यान। पाठक स्वंय अंदाज़ा लगा लें ऐसी विभूतियों की मानसिकता का। खैर चूँकि कार्यक्रम सुबह 10 बजे से निर्धारित था तो मैं तो सुबह 09:30 बजे हिमायत नगर स्थित उर्दु हॉल पहुँच गया। ठीक 10 बजे आदरणीय प्रोफेसर ऋषभदेश शर्मा जी भी अपनी अर्धाग्नि  आदरणीय पूर्णिमा जी के साथ उपस्थित हो गये । 10:30 तक कुल जमा 13 लोग तो थोडा और इंतेज़ार करने का निर्णय हुआ किंतु ये भी निश्चित किया गया कि 11 बजे कार्यक्रम हर हाल में शुरु कर दिया जाएगा। कुछ देर बाद ही ज्योति नारायण जी, डॉक्टर डी के गोयल, दक्षिण समाचार के नीरज सिन्हा एवम अन्य कुछ सुधीजन भी उपस्थित हो गये मौका था काव्यधारा प्रकाशन द्वारा एक साझा संकलन “ कदम-दर-कदम, ‘मेरे भीतर आप’ एवम ‘हंसा मेरा उड गया’ के लोकार्पण का। मंच संचालन की जिम्मेदारी प्रिय शिल्पी भटनागर एवम वर्षा शर्मा ( वर्षा शर्मा को एक प्रोग्राम में उनकी आवाज़ एवम शब्दों की अदायगी देखकर ही मैंने उन्हें एंकरिग करने पर भी ध्यान देने के लिए कहा था) ज्योति जी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के पश्चात कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत हुई। धीरे धीरे कार्यक्रम अपने पूरे रौ में आ गया। दो बज रहे थे, अच्छे एवम स्वादिष्ट भोजन की खुश्बू अब लोगों के नथूनों से टकरा कर विद्रोह करने पर उतारू थी सो  पुस्तक लोकार्पण के साथ ही प्रथम सत्र सम्पन्न हुआ।

दूसरे सत्र में कविताओं/गीत/गज़ल का दौर चला चूँकि सभी कवियों को दो रचनाएँ पढनी थीं सो कार्यक्र्म लगभग 8.20 तक खींच गया। मैंने भी अपनी दो रचनाएँ पढीं।
(1)      खता मेरी मुझको, बतानी पडेगी
अगर दोस्ती है, निभानी पडेगी

अगर तुम यूँ नाराज़, हमसे रहोगे
हमें लौ किसी से, लगानी पडेगी

(2) हम सहिष्णु हैं अर्थ नहीं, तुम कायर समझो
 भस्म करे जो पल में, ऐसा फायर समझो

इश्क विश्क के गीत नहीं मैं, लिख सकता सुन
देश प्रेम की अलख जगाता, शायर समझो

अब चूँकि समय अधिक हो गया था और उर्दु हॉल के कर्मचारी बार बार कार्यक्रम समापत करने के लिए दबाव बना रहे थे सो मुख्य अतिथि आदरणीय ऋषभदेव शर्मा जी कुल 29 कवियों के द्वारा पढी गई रचनाओं पर टिप्प्णी नहीं दे सके, न ही अध्यक्षीय भाषण, निश्चित रुप से ये वरिष्ठ साहित्यिकार के साथ नहीं होना चाहिए था। कार्यक्रम के कर्णधारों को इस पर गौर करना चाहिए।

अगले दिन यानि 31.10.2022 को केंद्रिय हिन्दी संस्थान में लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक दीक्षित जी की पुस्तक “फौज की मौज” जो कि उनके फौज के अनुभवों का एक पिटारा है। मैं निश्चित 16:30 पर संस्थान के रजिस्टर में एंट्री कर केंद्रिय हिन्दी संस्थान के खूबसूरत मीटिंग हॉल में सुहास भटनागर जी के साथ जा पहुँचा मेरे पहुँचने के 2 मिनिट के बाद ही प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी भी मुख्य अतिथि की भूमिका में आ पहुँचे। लगभग 17:15 बजे कार्यक्रम की शुरुआत हुई। निदेशक वानोडे जी ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की, अतिथि के तौर पर कर्नल विजय शर्मा जी भी मंच पर उपस्थित थे। ये कार्यक्रम भी दो सत्रों में आयोजित हुआ । दोनों ही सत्रों में नये लडकों शायद सिंह व यादव जी ने क्रमश: कार्यक्रम की कमान सँभाली। प्रिय शिल्पी भटनागर ने प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा जी का जीवन परिचय पढा। इसके अतिरिक्त लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक दीक्षित एवम कर्नल विजय शर्मा का भी जीवन परिचय अन्य ने पढा। एक बात काफी रोचक लगी लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित एवम विजय शर्मा जी एवम प्रोफेसर शर्मा ने भी में रुडकी विश्वविद्यालय से इंजीनिरिग की है । लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित एवम विजय शर्मा दोनों ने ही देहरादून स्थित एन डी ए में चयनित होकर एक ही कोर में कार्य किया। कार्यक्रम से पहले की गुफ्तगू के दौरान मोहिनी गुप्ता मैं लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित एवम विजय शर्मा की पत्नियों से चर्चा के दौरान पता चला कि मोहिनी जी के साथ साथ वे दोनों भी आगरा से हैं ।दोनों के पति फौज में एक ही कोर में एक ही शहर में लेकिन दोनों का परिचय भी आज इस कार्यक्रम में पहली बार हुआ। प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी खतौली (मुजफ्फरनगर से) हैं शिल्पी भटनागर जहाँ बरेली से हैं और मुजफ्फरनगर उनकी ससुराल है वहीं मेरा जन्म स्थान रुडकी जानकर लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित एवम विजय शर्मा प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी भी इस कोइंसिडेंट पर हर्षित हुए बिना न रह सके। कितने सारे लोग एक छत के नीचे लगभग एक ही एरिआ के। प्रदीप बाबू बढिया है।कार्यक्रम का प्रथम सत्र जहाँ पुस्तक विमोचन के साथ सम्पन्न हुआ फिर टी ब्रेक (हम तो चीनी और दुध की चाय 9 अक्टूबर से त्याग चुके हैं) सो पानी पीकर अपनी सीट पकड ली। इस कार्यक्रम में एक बात पहली बार मेरे साथ हुई। सरस्वती वंदना के बाद सीट चेंज, पुस्तक लोकार्पण के बाद सीट चेंज, टी ब्रेक के बाद सीट चेंज। इसका भी अपना आनन्द है। अलग अलग लोगों का सानिध्य्। 

दूसरे सत्र में कविता पाठ आरम्भ हुआ तो रेखा अग्रवाल जी के बाद सीधे हमारा बुलावा आ गया सो अपने चिरपरिचत अंदाज़ में हमने अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर दी।

“कलम सच ही लिखेगी”
किसी भी हाल में सच का,यहाँ व्यापार ही होगा
कलम सच ही लिखेगी, झूठ को इंकार ही होगा

कि जाँ से भी है जियादा कीमती, इस ज़ुबाँ की शाँ
कटाने सर को मेरे घर में इक, तैयार ही होगा

यकीं तुमको नहीं है गर, मेरी बातों पे, जाने दो
मने गर जश्न समझो, सच का वो, त्यौहार ही होगा

कि माना सच का साथी ढूँढना,थोडा सा मुश्किल है
हमारा तेज अब अपना, खरा हथियार ही होगा

इलम तुमको नहीं है सच, पराजित हो नही सकता
पढा जिसमें है तुमने ,शहर का,अखबार ही होगा

कभी स्वीकार मत करना, कोई उपहार लोगों से
तेरे इंकार में वरना, तेरा इकरार ही होगा

डगर तूने चुनी है जो, रसातल का है वो रस्ता
शरण में सत्य की आ जा, तेरा उद्धार ही होगा

जिसे भी हो गलत फहमी, अभी भी दूर वो कर लें
कि जब तक हम यहाँ जिंदा,तो सच्चा सार ही होगा

तुझे लगता बुरा जब टोकते हैं, हम सुनो ऐ ‘दीप’
हमारी डाँट में, तेरे लिए पर ,प्यार ही होगा

(प्रदीप देवीशरण भट्ट-02.08.202)

कुल 21 कवियों ने अपनी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की जिनमें झाँसी से पधारे ब्रजेश शर्मा, ज्योति नारायण जी, सरिता सुराणा, शिल्पी भटनागर, सुहास भटनागर, मोहिनी गुप्ता लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित डॉक्टर राजीव सिंह, सुरभि दत्त जी एवम सुनीता लुल्ला जी शामिल रहे। प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी ने अपनी बेहतरीन कविता पढी साथ ही समस्त 21 कवियों की रचनाओं पर बिना किसी लाग लपेट के अपनी टिप्प्णी प्रस्तुत की। एक शानदार कार्यक्रम का समापन रेखा अग्रवाल जी के धन्यवाद ज्ञापन के सास सम्पन्न हुआ।

अंत में, मैं अगले माह हैदराबाद में चार वर्ष पूर्ण कर रहा हूँ। प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी से कई कार्यक्रमों में मुलाकत हुई काफी बतियाये भी किंतु ऐसा पहली बार हुआ कि लगातार दो दिनों तक उनका सानिध्य प्राप्त हुआ साथ कि कई विषयों पर उनसे उन्मुक्त ढंग से चर्चा हुई। ज्ञानवान लोगों का सानिध्य मिलना सौभाग्य की बात है। पिछले चार दशकों की अपनी साहित्यिक यात्राओं में से पिछले दो दिनों की यात्रा के अद्भभुत एवम आनंदित क्षणों को मैं सहेज कर रखना चाहूँगा। अब बारी थी घर चलने की सो हम सुनीता जी को उनके घर पर छोडते हुए ब्रजेश शर्मा जी के साथ नामपल्ली स्थित होट्ल राजमाता। उन्हें ड्राप किया फिर अपने घर, कालोनी में घुसते हुए ही दो तीन श्वानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी, शायद वो एक कवि को अपने अंदाज में अपनी कविता सुनाना चाहते थे। 

एक सफल आयोजन के लिए लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित,सुरभि जी, डॉक्टर राजीव सिंह एवम उनकी पूरी टीम को साधुवाद्।

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-02.11.:2022