रिपोतार्ज
"दो खूबसूरत शाम साहित्यिक के कुम्भ के नाम"
पिछले कुछ दिनों से व्यस्तता अधिक रही है किंतु साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते मेरी सदैव से पहली प्राथमिकता साहित्यिक आयोजन में शिरकत की रही है। दीपों का पर्व दीपावली का आयोजन पूरे पाँच दिन चलता है। अब ऐसे में 22 एवम 23 अक्टूबर (शनिवार एवम रविवार। जहाँ नृत्य के माध्य्म से भारतीय संस्कृति की झलक देखी वहीं 30 अक्टूबर को हिमायत नगर के उर्दु हॉल में सुबह 11 बजे से 9 बजे तक सहित्य के सरोवर में डूबकी लगाने का मौका मिला वहीं 31 अक्टूबर को केंद्रीय हिन्दी संस्थान, बोयन पल्ली में सांय 5 बजे से तक रात्रि 11 बजे तक साहित्य के सानिध्य में बिताना एक अलग सुखद अनुभूति दे गया। मेरा मानना है साहित्य के विषय में हर व्यक्ति की राय अलग हो सकती है कोई साहित्य को समाज का आईना बताता है तो कोई कुछ और किंतु मेरी दृष्टी में साहित्य हमारे समाज का एक ऐसा मोखा/रोशनदान या झरोखा/दरीचा आप जिस नाम से भी चाहें सम्बोधित करें। है, जिसके प्रकाश से हमारा समाज आलोकित होता है। आईना वही दिखलाता है जो उसमें प्रतिबिम्बित होता है इसलिए मैं इसे रोशनदान या झरोखा कहना ज्यादा उचित समझता हूँ। क्यों कि साहित्य रुपी झरोखा समाज में व्याप्त कुरितियों पर जहाँ करारी चोट करके इसके दुष्परिणामों के प्रति समाज को आगाह करता है वहीं इन कुरितियों से कैसे बाहर निकला जाए ये भी समझाता है। फिर वो सही हो या गलत हमारे परिवारों में हो या मौह्ल्ले में गाँव में हो या शहर में प्रांत में हो या देश में। साहित्यकार बिना किसी लाग लपेट के गद्य या पद्य द्वारा अपने विचार समाज के पटल पर रख देता है। मैंने अपने ट्विटर अकाउंट के अपने स्टेटस पर भी अपने इस वाक्य को स्थान दिया है कि “कलम जब बिकने या समझोते करने लगे तो उसका टूटना अच्छा।“
एक बात जो मुझे अनुचित प्रतीत होती है वह है साहित्यिक समारोह में भी लोग अपनी लेट लतीफी से बाज़ नहीं आते। पता नहीं देर से आकर वो क्या साबित करना चाहते हैं और कुछ तो उस समय अपने दर्शन देते हैं जब लंच/रेफ्रेशमेंट शुरु होने में मात्र आधा घण्टा शेष हो। शायद उनके लिए साहित्य के आनंद से पेट का आनंद ज्यादा अहमियत रखता है। और कुछ महानुभाव तो ऐसे कि अपनी कविता सुनाई और दस मिनिट लंच के बाद अंतर्ध्यान। पाठक स्वंय अंदाज़ा लगा लें ऐसी विभूतियों की मानसिकता का। खैर चूँकि कार्यक्रम सुबह 10 बजे से निर्धारित था तो मैं तो सुबह 09:30 बजे हिमायत नगर स्थित उर्दु हॉल पहुँच गया। ठीक 10 बजे आदरणीय प्रोफेसर ऋषभदेश शर्मा जी भी अपनी अर्धाग्नि आदरणीय पूर्णिमा जी के साथ उपस्थित हो गये । 10:30 तक कुल जमा 13 लोग तो थोडा और इंतेज़ार करने का निर्णय हुआ किंतु ये भी निश्चित किया गया कि 11 बजे कार्यक्रम हर हाल में शुरु कर दिया जाएगा। कुछ देर बाद ही ज्योति नारायण जी, डॉक्टर डी के गोयल, दक्षिण समाचार के नीरज सिन्हा एवम अन्य कुछ सुधीजन भी उपस्थित हो गये मौका था काव्यधारा प्रकाशन द्वारा एक साझा संकलन “ कदम-दर-कदम, ‘मेरे भीतर आप’ एवम ‘हंसा मेरा उड गया’ के लोकार्पण का। मंच संचालन की जिम्मेदारी प्रिय शिल्पी भटनागर एवम वर्षा शर्मा ( वर्षा शर्मा को एक प्रोग्राम में उनकी आवाज़ एवम शब्दों की अदायगी देखकर ही मैंने उन्हें एंकरिग करने पर भी ध्यान देने के लिए कहा था) ज्योति जी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के पश्चात कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत हुई। धीरे धीरे कार्यक्रम अपने पूरे रौ में आ गया। दो बज रहे थे, अच्छे एवम स्वादिष्ट भोजन की खुश्बू अब लोगों के नथूनों से टकरा कर विद्रोह करने पर उतारू थी सो पुस्तक लोकार्पण के साथ ही प्रथम सत्र सम्पन्न हुआ।
दूसरे सत्र में कविताओं/गीत/गज़ल का दौर चला चूँकि सभी कवियों को दो रचनाएँ पढनी थीं सो कार्यक्र्म लगभग 8.20 तक खींच गया। मैंने भी अपनी दो रचनाएँ पढीं।
(1) खता मेरी मुझको, बतानी पडेगी
अगर दोस्ती है, निभानी पडेगी
अगर तुम यूँ नाराज़, हमसे रहोगे
हमें लौ किसी से, लगानी पडेगी
(2) हम सहिष्णु हैं अर्थ नहीं, तुम कायर समझो
भस्म करे जो पल में, ऐसा फायर समझो
इश्क विश्क के गीत नहीं मैं, लिख सकता सुन
देश प्रेम की अलख जगाता, शायर समझो
अब चूँकि समय अधिक हो गया था और उर्दु हॉल के कर्मचारी बार बार कार्यक्रम समापत करने के लिए दबाव बना रहे थे सो मुख्य अतिथि आदरणीय ऋषभदेव शर्मा जी कुल 29 कवियों के द्वारा पढी गई रचनाओं पर टिप्प्णी नहीं दे सके, न ही अध्यक्षीय भाषण, निश्चित रुप से ये वरिष्ठ साहित्यिकार के साथ नहीं होना चाहिए था। कार्यक्रम के कर्णधारों को इस पर गौर करना चाहिए।
अगले दिन यानि 31.10.2022 को केंद्रिय हिन्दी संस्थान में लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक दीक्षित जी की पुस्तक “फौज की मौज” जो कि उनके फौज के अनुभवों का एक पिटारा है। मैं निश्चित 16:30 पर संस्थान के रजिस्टर में एंट्री कर केंद्रिय हिन्दी संस्थान के खूबसूरत मीटिंग हॉल में सुहास भटनागर जी के साथ जा पहुँचा मेरे पहुँचने के 2 मिनिट के बाद ही प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी भी मुख्य अतिथि की भूमिका में आ पहुँचे। लगभग 17:15 बजे कार्यक्रम की शुरुआत हुई। निदेशक वानोडे जी ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की, अतिथि के तौर पर कर्नल विजय शर्मा जी भी मंच पर उपस्थित थे। ये कार्यक्रम भी दो सत्रों में आयोजित हुआ । दोनों ही सत्रों में नये लडकों शायद सिंह व यादव जी ने क्रमश: कार्यक्रम की कमान सँभाली। प्रिय शिल्पी भटनागर ने प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा जी का जीवन परिचय पढा। इसके अतिरिक्त लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक दीक्षित एवम कर्नल विजय शर्मा का भी जीवन परिचय अन्य ने पढा। एक बात काफी रोचक लगी लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित एवम विजय शर्मा जी एवम प्रोफेसर शर्मा ने भी में रुडकी विश्वविद्यालय से इंजीनिरिग की है । लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित एवम विजय शर्मा दोनों ने ही देहरादून स्थित एन डी ए में चयनित होकर एक ही कोर में कार्य किया। कार्यक्रम से पहले की गुफ्तगू के दौरान मोहिनी गुप्ता मैं लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित एवम विजय शर्मा की पत्नियों से चर्चा के दौरान पता चला कि मोहिनी जी के साथ साथ वे दोनों भी आगरा से हैं ।दोनों के पति फौज में एक ही कोर में एक ही शहर में लेकिन दोनों का परिचय भी आज इस कार्यक्रम में पहली बार हुआ। प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी खतौली (मुजफ्फरनगर से) हैं शिल्पी भटनागर जहाँ बरेली से हैं और मुजफ्फरनगर उनकी ससुराल है वहीं मेरा जन्म स्थान रुडकी जानकर लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित एवम विजय शर्मा प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी भी इस कोइंसिडेंट पर हर्षित हुए बिना न रह सके। कितने सारे लोग एक छत के नीचे लगभग एक ही एरिआ के। प्रदीप बाबू बढिया है।कार्यक्रम का प्रथम सत्र जहाँ पुस्तक विमोचन के साथ सम्पन्न हुआ फिर टी ब्रेक (हम तो चीनी और दुध की चाय 9 अक्टूबर से त्याग चुके हैं) सो पानी पीकर अपनी सीट पकड ली। इस कार्यक्रम में एक बात पहली बार मेरे साथ हुई। सरस्वती वंदना के बाद सीट चेंज, पुस्तक लोकार्पण के बाद सीट चेंज, टी ब्रेक के बाद सीट चेंज। इसका भी अपना आनन्द है। अलग अलग लोगों का सानिध्य्।
दूसरे सत्र में कविता पाठ आरम्भ हुआ तो रेखा अग्रवाल जी के बाद सीधे हमारा बुलावा आ गया सो अपने चिरपरिचत अंदाज़ में हमने अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर दी।
“कलम सच ही लिखेगी”
किसी भी हाल में सच का,यहाँ व्यापार ही होगा
कलम सच ही लिखेगी, झूठ को इंकार ही होगा
कि जाँ से भी है जियादा कीमती, इस ज़ुबाँ की शाँ
कटाने सर को मेरे घर में इक, तैयार ही होगा
यकीं तुमको नहीं है गर, मेरी बातों पे, जाने दो
मने गर जश्न समझो, सच का वो, त्यौहार ही होगा
कि माना सच का साथी ढूँढना,थोडा सा मुश्किल है
हमारा तेज अब अपना, खरा हथियार ही होगा
इलम तुमको नहीं है सच, पराजित हो नही सकता
पढा जिसमें है तुमने ,शहर का,अखबार ही होगा
कभी स्वीकार मत करना, कोई उपहार लोगों से
तेरे इंकार में वरना, तेरा इकरार ही होगा
डगर तूने चुनी है जो, रसातल का है वो रस्ता
शरण में सत्य की आ जा, तेरा उद्धार ही होगा
जिसे भी हो गलत फहमी, अभी भी दूर वो कर लें
कि जब तक हम यहाँ जिंदा,तो सच्चा सार ही होगा
तुझे लगता बुरा जब टोकते हैं, हम सुनो ऐ ‘दीप’
हमारी डाँट में, तेरे लिए पर ,प्यार ही होगा
(प्रदीप देवीशरण भट्ट-02.08.202)
कुल 21 कवियों ने अपनी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की जिनमें झाँसी से पधारे ब्रजेश शर्मा, ज्योति नारायण जी, सरिता सुराणा, शिल्पी भटनागर, सुहास भटनागर, मोहिनी गुप्ता लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित डॉक्टर राजीव सिंह, सुरभि दत्त जी एवम सुनीता लुल्ला जी शामिल रहे। प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी ने अपनी बेहतरीन कविता पढी साथ ही समस्त 21 कवियों की रचनाओं पर बिना किसी लाग लपेट के अपनी टिप्प्णी प्रस्तुत की। एक शानदार कार्यक्रम का समापन रेखा अग्रवाल जी के धन्यवाद ज्ञापन के सास सम्पन्न हुआ।
अंत में, मैं अगले माह हैदराबाद में चार वर्ष पूर्ण कर रहा हूँ। प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी से कई कार्यक्रमों में मुलाकत हुई काफी बतियाये भी किंतु ऐसा पहली बार हुआ कि लगातार दो दिनों तक उनका सानिध्य प्राप्त हुआ साथ कि कई विषयों पर उनसे उन्मुक्त ढंग से चर्चा हुई। ज्ञानवान लोगों का सानिध्य मिलना सौभाग्य की बात है। पिछले चार दशकों की अपनी साहित्यिक यात्राओं में से पिछले दो दिनों की यात्रा के अद्भभुत एवम आनंदित क्षणों को मैं सहेज कर रखना चाहूँगा। अब बारी थी घर चलने की सो हम सुनीता जी को उनके घर पर छोडते हुए ब्रजेश शर्मा जी के साथ नामपल्ली स्थित होट्ल राजमाता। उन्हें ड्राप किया फिर अपने घर, कालोनी में घुसते हुए ही दो तीन श्वानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी, शायद वो एक कवि को अपने अंदाज में अपनी कविता सुनाना चाहते थे।
एक सफल आयोजन के लिए लेफ्टिनेंट दीपक दीक्षित,सुरभि जी, डॉक्टर राजीव सिंह एवम उनकी पूरी टीम को साधुवाद्।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-02.11.:2022