Saturday, 31 December 2016

नोटबन्दी




"मेरे प्यारे देश वासियों"

ये है दो रूपये का नोट इस नोट के पीछे 1975 में छोड़े गए आर्यभट्ट का चित्र छपा है 

8 नवम्बर-२०१६ सायं 8 बजे नेशनल टीवी पर अचानक देश के प्रधानमंत्री नमूदार होते हैं उनके साथ तीनों सेनाओं के अध्यक्ष,वित्त मंत्री आदि बैठे हैंआवाज आती है मेरे प्यारे देश वासियों और उस समय जो लोग टीवी देख रहे होते हैं उन्हें लगता हैं कि प्रधानमंत्री पाकिस्तान से सम्बंधित कोई विशेष घोषणा करने वाले हैं लोग जहाँ के तहां बैठे रहकर चुपचाप सुनने लगते है। किन्तु ये क्या अचानक लगभग 5 मिनिट के भाषण के बाद प्रधानमंत्री घोषणा करते हैं कि आज राज 12 बजे से 500 और 1000 के नोट रद्दी हो जायेंगे। लोग हतप्रभ रह जाते हैं लोग समझ नहीं पाते कि क्या करें और क्या न करें। जो लोग 8 बजे तक अरबपति थे वे करोडपति और जो करोडपति थे वे 8:10 बजे लखपति हो गए थे। इससे नीचे का जिक्र न ही करूँ तो अच्छा है।


     9 व् 10 को बैंक व् एटीएम बंद हो ही रहे और 11 को जब खुले तो बैंकों के बहार लम्बी लम्बी लाइनें लगना स्वाभाविक ही था, जहाँ शुरू शुरू में लोगों ने इसे एक अच्छा कदम बताया समय समय बीतते बीतते लोगों के सब्र का बांध भी टूटना शुरू हो गया।  आश्चर्य जनक रूप से 8 नवम्बर कि रात्रि से अगले २-३ दिनों तक पोलिटिकल पार्टीस जहाँ इसे देश हित में उठाया कदम बता रही थी धीरे धीरे उन्हें समझ में आया कि 2017 में होने वाले 5 राज्यों के चुनाव उसमें भी उत्तर प्रदेश और पंजाब जो कि दो बड़े राज्य हैं में चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने जो पैसा जमा किया था वह भी तो रद्दी हो गया।  उसके बाद जो पॉलिटिकली पार्टी ने स्यापा पाया है जिसमें ममता जो कि सामान्यत: पश्चिम बंगाल से बहार काम ही निकलती हैं ने हर जगह अपने हाथ पांव मंरने शुरू कर दिए। इसी दौरान ममता ने मर्यादाओं कि सभी सीमाओं को लाँघ डाला और भूल गई कि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और वे 30 राज्यों में से एक कि मुख्यमंत्री मात्र। खैर उनसे तो ऐसी ही आशा थी। आप के केजरीवाल ये सोच सोच कर परेशां हो रहे थे कि वे किस दीवार में अपना सर दे मारे  क्यों कि ऐसा सुनने में आ रहा है कि उनके 3 हजार करोड़ रूपये मात्र दस मिनिट में रद्दी में बदल गए। कांग्रेस अभी तक ये समझ ही नहीं पाई है कि वो हँसे या रोये । निश्चित रूप से बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उड़ीसा बीजू जनता दल के मुख्यमंत्री नविन पटनायक ने नोटबंदी का समर्थन कर सभी विपक्षी पार्टियों को विक्षिप्त कर डाला। सभी विपक्षी पार्टियाँ अभी तक सकते में हैं और अनाप-शनाप बयानबाजी करके जनता में अपनी हंसी उडवा रहीं हैं।



और ये है 2000 का नोट जिस पर मंगल्यान का चित्र है  

जहाँ बैंको के बहार लम्बी लाइने लगी हुई हैं और लोग पैसे पैसे को मोहताज़ नज़र आ रहे हैं वहीं कुछ धन्ना सेठों ने बैंको के अधिकारीयों और कर्मचारियों से साठ-गांठ कर अपने काले धन को सफ़ेद कर लिया। लेकिन बुरा हो आजकल कि तकनीक का एक एक कर सब धरे जा रहे हैं क्यों कि किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि टेक्नोलॉजी के माध्यम से सरकार उन्हें इतनी जल्दी धर दबोचेगी। जहाँ जहाँ पुराने नोट छिपाए गए थे वहीँ पर उन्होंने नए तब्दील किये नोट भी रख दिए और देखिये कैसी साडी एजेसियाँ उनके पीछे पड गई। और लाखों ही नहीं वरन करोड़ों में नए और पुराने नोट पकड लिए गए। इससे पहले भारत में 1978 में नोटबंदी हुई थी लेकिन इतनी चर्चा नहीं हुई था किन्तु इस बार तो बाप रे बाप ,आइये पहले ये जानने की कोशिश करते हैं कि आज तक विश्व में कहाँ कहाँ नोटबंदी  हुई।

भारत में प्राचीन समय में जो मुद्रा प्रणाली प्रचलन में थी उसकी एक बानगी के दर्शन भी कर लें 

फूटी कौड़ी से कौड़ी तक      
कौड़ी से दमड़ी तक         
दमड़ी से धेला तक 
धेला से पाई तक 
पाई से पैसा तक 
पैसा से आना  और 
आना से रुपया 

  256 दमड़ी =192 पाई =128धेला =64 पैसा (ओल्ड)=16 अन्ना-1 रुपया 
प्राचीन मुद्रा क इन्हीं इकाइयों ने हमारी बोल-चाल की भाषा को कई कहावतें भी दीं,जो पहले भी प्रचलित थी और आज भी प्रचलित है

1982, में घाना जो कि एक छोटा सा अफ़्रीकी देश है में टैक्स चोरी व भ्रष्टाचार रोकने के उद्देश्य से वहां 50  सेडी के नोटों को बंद कर दिया गया था और नोटबेदी का कदम उठाया गया था  इस कदम से घाना के नागरिकों को अपनी ही मुद्रा में विश्वास कम हो गया, और उन्होंने विदेशी मुद्रा और ज़मीन-जायदाद का रुख कर लिया, जिससे न सिर्फ देश के बैंकिग सिस्टम को भारी नुकसान पहुंचा, बल्कि विदेशी मुद्रा पर काला बाज़ारी बेतहाशा बढ़ गई थी ग्रामीणों को मीलों चलकर नोट बदलवाने के लिए बैंक जाना पड़ता था, और अंतिम समय सीमा खत्म होने के बाद बहुत ज़्यादा नोट बेकार हो गए थे


1984, नाइजीरिया में मुहम्मदू बुहारी के नेतृत्व वाली सैन्य सरकार ने भ्रष्टाचार से लड़ने के उद्देश्य से बैंक नोटों को अलग रंग में जारी किया था, और पुराने नोटों को नए नोटों से बदलने के लिए सीमित समय दिया था नाइजीरिया सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों में से एक यह कदम पूरी तरह नाकाम साबित हुआ था, और कर्ज़ में डूबी व महंगाई तले दबी अर्थव्यवस्था को कतई राहत नहीं मिल पाई थी, और अगले ही साल बुहारी को तख्ता-पलट के कारण सत्ता से बेदखल होना पड़ा था

1987, में भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में भी नोत्बंदी लागु की गई थी जब वहां सत्तासीन सैन्य सरकार ने काला बाज़ार को काबू करने के उद्देश्य देश में प्रचलित 80 फीसदी मुद्रा को अमान्य घोषित कर दिया इस कदम के प्रति लोगों में काफी गुस्सा रहा, और छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए तथा भारी विरोध प्रदर्शन किया गया, देशभर में प्रदर्शनों का दौर काफी लंबे अरसे तक जारी रहा, और आखिरकार अगले साल सरकार को हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस और सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी


        1990, की शुरुआत में
ज़ायरे में बैंक नोटों में सुधार के नाम पर तानाशाह मोबुतु सेसे सेको को उस दौरान भारी आर्थिक उठापटक का सामना करना पड़ावर्ष 1993 में अप्रचलित मुद्रा को सिस्टम से पूरी तरह वापस निकाल लेने की योजना के चलते महंगाई बेतहाशा बढ़ गई, और अमेरिकी डॉलर की तुलना में स्थानीय मुद्रा में भारी गिरावट दर्ज की गई इसके बाद गृह-युद्ध हुआ, और वर्ष 1997 में मोबुतु सेसे सेको को सत्ता से बेदखल कर दिया गया

        1991, सोवियत संघ (यूएसएसआर - यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स) मिखाइल गोर्बाचेव के नेतृत्व वाले सोवियत संघ ने अपने 'अंतिम साल' की शुरुआत में 'काली अर्थव्यवस्था' पर नियंत्रण के लिए 50 और 100 रूबल को वापस ले लिया था, लेकिन यह कदम न सिर्फ महंगाई पर काबू पाने में नाकाम रहा, बल्कि सरकार के प्रति लोगों को विश्वास भी काफी घट गया
उसी साल अगस्त में उनके तख्तापलट की कोशिश हुई, जिससे उनका वर्चस्व ढहता दिखाई दिया, और आखिरकार अगले साल सोवियत संघ के विघटन का कारण बना इस कदम के नतीजे से सबक लेते हुए वर्ष 1998 में रूस ने विमुद्रीकरण के स्थान पर बड़े नोटों का पुनर्मूल्यांकन करते हुए उनमें से बाद के तीन शून्य हटा देने की घोषणा की, यानी नोटों को पूरी तरह बंद करने के स्थान पर उनकी कीमत को एक हज़ार गुना कम कर दिया गया सरकार का यह कदम तुलनात्मक रूप से काफी फायदे का सौदा रहा

        2010,
उत्तर कोरिया में तत्कालीन तानाशाह किम जोंग-इल ने अर्थव्यवस्था पर काबू पाने और काला बाज़ारी पर नकेल डालने के लिए पुरानी करेंसी की कीमत में से दो शून्य हटा दिए, जिससे 100 का नोट 1 का रह गया उन सालों में देश की कृषि भी भारी संकट से गुज़र रही थी, सो, परिणामस्वरूप देश को भारी खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ाचावल की बढ़ती कीमतों से जनता में गुस्सा इतना बढ़ गया कि आश्चर्यजनक रूप से किम को क्षमायाचना करनी पड़ी तथा उन दिनों मिली ख़बरों के मुताबिक इसी वजह से तत्कालीन वित्त प्रमुख को फांसी दे दी गई थी
1978, भारत में जब जनता पार्टी की सरकार थी तब उस समय के प्रधानमंत्री स्व०मोरारजी देसाई ने 100 रूपए से अधिक के नोट्स पर प्रतिबंध लगाकर सभी को आश्चर्य में ला दिया। मोरारजी देसाई के इस निर्णय से सारे देश में हलचल मच गई थी वर्ष 1978 में 1000 रूपए और 5000 रूपए के ही साथ 10000 रूपए के नोट्स प्रतिबधित करने से लोग प्रभावित हुए थे। हालात ये रही थी कि जिनके पास नोट अधिक थे वे खुद को आर्थिकतौर पर लगभग बर्बाद मान रहे थे। मगर फिर व्यवस्था में धीरे-धीरे नए नोट चलन में आने लगे। गौरतलब हे कि उस दौर में मुंबई जैसे शहर में 1000 रूपए में 5 स्क्वैयर फीट की जमीन भी क्रय की जा सकती थी।

1978

जब अमेरिका में पेज़र की शुरुआत हुई तो उस समय अमेरिका में ५ वर्षों में केवल १ लाख पेज़र ही बिक पाए किन्तु जब यही पेज़र भारत में इंट्रोडूस हुए तो १ वर्ष में ही ५ लाख पेज़र बिक गए थे इससे पता चलता हैं कि हम भारतीय किसी भी न्यू चीज़ को जल्दी ही स्वीकार नहीं करते किन्तु जब करते हैं तो एक रिकॉर्ड ही बनाकर दम लेते हैं। ये लिखने का का एक कारन है कितने लोग जानते हैं कि ८ नवम्बर कि रात्रि से ११ नवम्बर तक पुराने नोटों में सबसे ज्यादा क्या ख़रीदा गया । निशिचत ही लोग कहेंगे सोना, कुछ कहेंगे जमीं के सौदे सबसे ज्यादा हुए या कुछ कहेंगे की लोगों ने अग्रिम टैक्स सरकार को चूका दिए होने आदि आदि । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन तीन दिनों में सबसे ज्यादा पुरानें नोटों से आई फोन बिके वो भी १००० या १०००० नहीं अपितु एक लाख से भी अधिक । तो ये है हम भारतियों कि सोच।

भारत सरकार चाहती है कि लोग ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक मोड में पेमेंट करे लेकिन यहीं थोड़ी जल्दबाजी है हमें एक साथ घर के सारे बल्ब बदलने की आदत से बाज़ आना पड़ेगा, जिस देश में लाईट आना किसी त्यौहार से कम न होता हो वहां आदमी कैसे तो मोबाइल खरीदेगा और अगर खरीद भी लिया तो चार्ज कैसे और कहाँ करेगा। 2019 तक गांवों में बिजली पहुंचेगी तब पहुंचेगी और कितनी देर के लिए ? जहाँ तक इंटरनेट का सवाल है उसकी स्पीड प्रधानमंत्री कार्यालय में 34 बीपीएस है बाकी का तो राम ही मालिक है ।अब जब नेट कि रफ़्तार ऐसी होगी तो कैसे ई पेमेंट होगा जहाँ लोग इसे इस्तेमाल कर रहे हैं वहां का क्या हाल है। काल ड्राप की समस्या ने रविशंकर की कुर्सी ले ली बाकी की तो जाने ही दो ।मास्टर कार्ड एडवाइजरी के मुताबिक जापान जैसा टेक्नोलॉजी में महारत रखने वाला देश भी अभी मात्र 14 प्रतिशत ही कॅश लेस है।ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड दक्षिण कोरिया व् कनाडा जैसे विकसित देश भी अभी तक 50 प्रतिशत ही कॅश लेस हुए हैं । जहाँ तक बैंकिंग की भारत की जनता तक पहुँच का प्रश्न है वह भी  मात्र 30 प्रतिशत के करीब ही है। फिर ये जितने भी ई वालेट लेकर आ रहे हैं उनका चार्ज कम से कम 2.5 प्रतिशत तो होगा ही तो कैसे लोग इसे अपनाएंगे ? यहाँ मैं आपको एक विशेष सुचना से अवगत करना आवश्यक समझता हूँ कि रिज़र्व बैंक के दिशा निर्देशों के मुताबिक डिजिटल माध्यमों पर हर कस्टमर के डेट को 128 बिट एनक्रिपशन प्रणालियों के जरिये एनक्रिप्ट करने कि बाध्यता है। सेबी ने भी मोबइल माध्यमों या वायरलेस एप्लीकेशन प्लेटफ़ॉर्मों के जरिये होने वाले वित्तीय कारोबार के लिए 64 या 128 बिट एनक्रिपशन का निर्देश दिया हुआ है लेकिन इन्टरनेट सेवा प्रदाता (इसप) और दूरसंचार विभाग के बिच हुए अनुबंध के अनुसार 40 बिट एनक्रिपशन कि भी हैं। आप सोच रहे होंगे कि ये क्या गोरख धंदा है तो याद रखे कि 128 बिट एनक्रिपशनसे एनक्रिप्ट किये गए देता को समझ पाना असंभव है वहीँ 40 बिट एनक्रिपशन को काफी कमजोर सुरक्षा प्रबंध माना जाता है  यहाँ यह भी समझ लें कि जयादातर बैंक डिजिटल भुगतान में 128 बिट एनक्रिपशन का इस्तेमाल करते हैं।  इसके बाद भी पिछले दिनों खबर आयी थी कि बैंको के 32 लाख डेबिट और क्रेडिट कार्ड का देता चोरी हो गया जिस कारन बैंकों ने उन सभी कार्डों को बंद कर दिया तब आप खुद ही सोचिये सिर्फ घोषणाएं करने से तो एक दिन में सब कुछ नहीं बदल जायेगा। कदम अच्छा है किन्तु सरकार अगर इसे फेज मैनर में करती तो ज्यादा अच्छा होता।     
::: प्रदीप भट्ट :::

                                                     31.12.2016

Thursday, 8 December 2016

जयललिता




मैनेरिज्म की मालकिन जयललिता


जयललिता अब हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन ऐसा क्या था उनकी शख्सियत में कि लगभग ३-४ लाख लोग उनकी शव यात्रा में सम्मलित हुए।  इससे पहले १९४० में महात्मा गाँधी जिनकी शव यात्रा में लगभग ५-६ लाख लोग सम्मलित हुए थे।   श्रीमती इंदिरागांधी कि शव यात्रा में भी लगभग ३-४ लाख लोग, राजीव गाँधी कि शव यात्रा में भी लगभग २-३ लाख लोग सम्मलित हुए किन्तु इस विषय में अन्न्दुरै जो कि आल इंडिया अन्ना द्रविण मुनेत्र कड़गम के जनक थे और मुख्यमंत्री भी की शव यात्रा में १.५ करोड़ से भी ज्यादा लोग सम्मलित हुए इससे ये पता चलता है कि तमिलनाडु की राजनीती में किसकी कितनी पहुँच है । भारतीय राजनीती में इतना मनेरिज्म किसको नसीब होता है जो अन्नादुरे के बाद किसी हद तक एमजीआर और अब जयललिता को मिला।  
   
जयललिता जयराम जिनका जन्म,  24 फ़रवरी 1948 को मैसूर में हुआ,स्कूली शिक्षा दीक्षा पहले बंगलुरु (बंगलोर)फिर चेन्नई (मद्रास) में हुई  अपनी माँ कि इच्छा का आदर करते हुए पहले अभिनेत्री बनी फिर राजनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी ऐसी कि अच्छों अच्छों कि चूलें ही हिला डाली।  वे 1991 से 1996 , 2001 में, 2002 से 2006 तक और 201 से 2014 तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं। राजनीति में आने से पहले वो अभिनेत्री थीं और उन्होंने तमिल के अलावा तेलगु,कन्नड़ और एक हिंदी फिल्म इज्ज़त जिसमें उनके हीरो ही मैन धर्मेन्द्र साथ में थे इसके अतिरिक्त उन्होंने एक अंग्रेजी फिल्म में भी काम किया।जब वे स्कूल में पढ़ रही थीं तभी उन्होंने 'एपिसल' नाम की अंग्रेजी फिल्म में काम किया। वे 15 वर्ष की आयु में कन्नड फिल्मों में मुख्‍य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी थीं। इसके बाद वे तमिल फिल्मों में काम करने लगीं। 1965 से 1972 के दौर में उन्होंने अधिकतर फिल्में  एम् जी आर के साथ की।

फिल्मी करियर के बाद उन्होने एम॰जी॰ रामचंद्रन के साथ 1982 में राजनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने 1984 से 1989 के दौरान तमिलनाडु से राज्यसभा के लिए राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया। वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन के बाद उन्होने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। वे 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्‍यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं। अप्रैल 2011 में जब 11 दलों के गठबंधन ने 14वीं राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल किया तो वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने 16 मई 2011 को मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लीं और तब से वे राज्य की मुख्यमंत्री पद पर रहीं। राजनीति में उनके समर्थक उन्हें अम्मा (मां) और कभी कभी पुरातची तलाईवी ('क्रांतिकारी नेता') कहकर बुलाते हैं।

5 दिसम्बर 2016 को रात 11:30 बजे इनका निधन हो गया।जन्‍म से ब्राह्मण और माथे पर अक्‍सर आयंगर नमम (एक प्रकार का तिलक) लगाने वाली तमिलनाडु की पूर्व मुख्‍यमंत्री जयललिता के दाह संस्‍कार की जगह उनको दफनाया गया. वैसे तो आयंगर ब्राह्मणों में दाह संस्‍कार की परंपरा है लेकिन इसके बावजूद तमिलनाडु सरकार और शशिकला ने उनको दफनाने का फैसला लिया इस मामले में अंतिम संस्‍कार की प्रक्रिया से जुड़े लोगों का कहना है कि वह इसे द्रविड़ आंदोलन की पृष्‍ठभूमि से जोड़कर देखते हैं. उनके मुताबिक द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता मसलन पेरियार, अन्‍नादुरई और एमजी रामचंद्रन जैसी शख्सियतों को दफनाया गया था और इस‍ लिहाज से दाह-संस्‍कार की कोई मिसाल नहीं हैं इन वजहों से चंदन और गुलाब जल के साथ दफनाया जाता है

                                  ::: प्रदीप भट्ट ::: 08.12.2016

Friday, 21 October 2016

जबरा मारे रोने न दे



“जबरा मारे रोने न दे”



29 सितम्बर की रात्रि को भारत द्वारा पाकिस्तान अनधिकृत कश्मीर के 12 किलोमीटर अन्दर जाकर जो कार्यवाही की गई उसकी गूंज सिर्फ भारत पाकिस्तान में ही नहीं वरन उसकी गर्मी विश्व पटल पर अधिक दिखी पाकिस्तान तो अचंभित और हतप्रभ सा रह गया कि आखिर ये हुआ तो कैसे हुआ। इससे जो छीछालेदर हुई है उससे पाकिस्तान पूरी तरह चरमरा गया लगता है। अब तो प्रश्न पाकिस्तानी सेना और उसके सेनाध्यक्ष माहराज राहिल शरीफ पर भी उठ रहे हैं कि पाकिस्तानी सेना ऐसी कौन सी नींद में सो जाती है जिससे उसे पता ही नहीं चलता और भारतीय सेना के पैरा कमांडो सीमा के अन्दर 12 किलोमीटर तक घुसकर पाक अनधिकृत कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ के लिए बनाये गए लौन्चिंग पैडो को पूरी तरह ध्वस्त कर वापिस स-कुशल लौट जाती है और पाकिस्तानी सेना को कानो कान खबर भी नहीं लगती।

उडी हमले के बाद भारत में ऐसा मौहोल हो गया था कि बस बहुत हो चूका अब तो कुछ कठोर जवाब देना बनता ही है और ऐसा ही कठोर जवाब दिया भी गया जिसकी पाकिस्तान बिलकुल भी उम्मीद नहीं कर रहा था।  जब मियां नवाज शरीफ़ (शराफ़त ही तो नहीं है) संयुक्त राष्ट्र में उडी हमले से उपजे भारतीय आक्रोश को कश्मीर-कश्मीर चिल्लाकर और हवा देने की कोशिश कर रहे थे उस वक्त भारतीय सेना पाकिस्तानी प्रायोजित आतंकवादियों की सर्जरी करने का प्लान बना रही थी । जब सुषमा स्वराज संयुक्त राष्ट्र में नवाज़ की नवाजिश (चंपी) कर रही  थी उस समय भारतीय सेना सर्जिकल स्ट्राइक को अमली जमा पहनाने की तयारी कर रही थी। और आख़िरकार 29,सितम्बर-2016 को रात्रि में इस मिशन को अंजाम तक पहुंचा दिया गया वो भी बिना किसी जोख़िम के। जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है वो इसी मुगालते में रहा कि भारत सिन्धु जल की पुनरीक्षा कर रहा है,पाकिस्तान को विश्व में घेरने का प्रयास कर रहा है। किन्तु भारत ने जहाँ कुटनीतिक दबाव बयाए रक्खा वहीँ इस बार मुहं तोड़ जवाबी कार्रवाई का भी मन बना लिया था।

इस सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सोशल मिडिया पर पाकिस्तान के विषय में बहुत सारे चुटकुले  चल निकले जिसमें पाकिस्तान की काफी थू-थू की जा रही थाई किन्तु एक चुटकुला जो सबमें बजी मार ले गया वो कुछ इस प्रकार था :-

नवाज़ नौकर से     -     आज खाने में क्या बनाया है ?
नौकर नवाज़ से     -     भिन्डी की  सब्जी और मसूर की दाल
नवाज़ नौकर से     -     तेरा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया कितने दिन से कह
                        रहा हूँ ,मुर्गा पका,मटन पका, साले  सुनता क्यों नहीं ?
नौकर नवाज़ से     -     सर जी कल
नवाज़ नौकर से     -     साले तू भी सर्जिकल सर्जिकल करके मजाक उड़ा रहा है? 
 
वो तो जब भारतीय सेना के द्ग्मो द्वारा घोषणा कि जाती है कि भारतीय सेना ने पाक अनधिकृत कश्मीर कि सीमा में 12 किलोमीटर तक अन्दर घुसकर आतंकवादियों की घुसपैठ करने के उद्देश्य के लिए बनाये गए लौन्चिंग पैडो को नष्ट कर दिया है और पूरी पैरा कमांडों फ़ौज सकुशल वापिस आ गई है इसके साथ ही भारत कुटनीतिक स्तर पर २२ देशों को इस सर्जिकल स्ट्राइक कि सूचना देता है जिसमें अमेरिका,रूस,चीन,फ़्रांस,इंग्लैंड आदि शामिल हैं तब जाकर पाकिस्तानी सेना और वहां कि सरकार की नींद टूटती है। इसके बाद शुरू होती है पाकिस्तानी सरकार और सेना की डैमज कंट्रोल करने की कवायद जिसमें विश्व स्तर पर ये प्रचारित किया जाता है कि भारत झूठ बोल रहा है ऐसी कोई सर्जिकल स्ट्राइक हुई ही नहीं ये तो भारत सरकार अपने लोगों की वाहवाही लुटने का प्रपचं मात्र है। इसका कारन भी बड़ा स्पष्ट है पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि भारतीय सेना ऐसा कुछ करेगी क्यों कि पिछला इतिहास ऐसा ही रहा है पाकिस्तानी सेना के बुझदिल जवान धोके से पेट्रोलिंग पर गई भारतीय सेना पर हमला करते रहे हैं और उनको मरकर उनके सर भी काटकर ले जाते रहे हैं और हमारी तरफ से बस बयानबाजी के अतिरिक्त कुछ खास कभी नहीं हुआ जिससे पाकिस्तान को ये सन्देश गया कि भारतीय सेना तो ऐसी ही है । किन्तु पाकिस्तान की सेना और सरकार दोनों ही इस मुगालते में रहे कि 2014 में भारत में सरकार बदल चुकी है। ये सरकार एक हद ही बेहूदगी बर्दाश्त कर सकती है। अति होने पर पलट वार वो भी दोगुने दमखम से करने में यकीन रखती है।

जब से श्री नरेन्द्र मोदी,प्रधानमंत्री,भारत सरकार ने १५ अगस्त-२०१६ को लालकिले की प्राचीर से “बलोचिस्तान के लोगों के साथ पाकिस्तानी सेना द्वारा जो अत्याचार किया जा रहा है पर” जब से सकारात्मक सोच के संकेत दिए हैं तब से पाकिस्तान की दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई है उसे अब ये भय सता रह है कि कहीं भारत १९७१ की पुनरावृत्ति न दोहरा दे। अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान का  ४४ प्रतिशत भूभाग पहले कि तरह ही स्वतंत्र हो जायेगा जैसे कि वह १९४७ से पूर्व में था। जहाँ तक पाकिस्तान के वर्तमान हालत का प्रश्न है तो पहले वो वह अमेरिका का पिछलग्गू था आज चीन का । उसका न पहले कोई अस्तित्व था न कभी होगा ? और आज जो हालत चल रहे हैं वो दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान की पूर्णरूपेण सत्त्ता शंघाई से ही संचालित होगी ।अपने नार्थ इंडिया में एक कहावत आम है कि  “खायेगा मुंह लजाएँगी आँखे “ लेकिंन पकिस्तान का तो इतिहास (१९४७) से रहा है कि वो किसी का सगा नहीं रहा है। एक दूसरी कहावत भी पाकिस्तान जब तब चरितार्थ करता रहता है “ऐसा कोई सगा नहीं जिसको उसने ठगा नहीं” यहाँ तक कि अपनी ही जनता तक को। पाकिस्तान में कुल चार प्रान्त हैं लेकिन सारा कुछ सिर्फ पंजाब प्रान्त में ही निवेश किया जाता है। क्यों कि शायद पाकिस्तान को ये अंदेशा शुरू से ही है कि आज नहीं तो कल पाकिस्तान के टुकड़े होने ही हैं वैसे भी जिस देश की सेना दैनिक उपयोग की चीज़े बनाने  में ज्यादा रूचि रखती हो बनास्पित देश की सीमाओं को रक्षा करने के,उस सेना का तो भगवान ही मालिक है ।

उपरोक्त से एक बात तो साफ है कि पाकिस्तान इस सर्जिकल स्ट्राइक के सदमें से बहुत दिनों तक रहने वाला है क्यों कि इससे उसकी सेना की क्षमता पर कुठारघात हुआ है । वो इस समय तिलमिलाया हुआ है और इस तिलमिलाहट में वो हो सकता है दो या चार और ऐसी टुच्ची हरकतें करें लेकिन अब उसे ऐसा करने से पहले कई मर्तबा सोचना होगा क्यों की भारत ने किसी भी फोरम में ये वादा नहीं किया है कि वो इस प्रकार की कार्रवाई दुबारा नहीं करेगा ।
       

::: प्रदीप भट्ट :::

Saturday, 1 October 2016

आतंकवाद और युद्ध




आतंकवाद को समाप्त करने के लिए क्या युद्ध ही विकल्प है


खादीऔर ग्रामोद्योग के मुख्यालय में दिनांक 27.09.2016 को आयोजित वाद-विवाद का विषय आतंकवाद को समाप्त करने के लिए क्या युद्ध ही विकल्प है विषय पर 19 में से 03 लोग इसके पक्ष में और 13 ने इसके विपक्ष में अपने विचार व्यक्त किये. - मिनिट का समय निर्धारित किया गया था शुरुआत भी मुझी से हुई मैंने जो भी विचार उस प्रतियोगिता में रक्खे उन्हें जस का तस रखने का प्रयास करूँगा।

पहले तो ये समझना आवश्यक है कि आतंकवादी या आतंकवाद कोई एक देश नहीं है जिसे कोई भी देश आमने सामने की लड़ाई में लड़ सके। आतंकवाद  शब्द अगर मैं परिभाषित करने का यत्न करूँ तो पाउँगा कि  आतंक नामक शब्द का पहली बार मेरा सामना बचपन में हुआ जब सुना कि सुन्दर डाकू ने उत्तर प्रदेश में बड़ा आतंक मचा रक्खा है फिर थाने में उसकी फोटो भी देखी तो लगा ये एक आदमी कैसे पुरे प्रदेश में आतंक मचा सकता है क्यों कि तब तक इतनी समझ ही नहीं थी कि इस आदमी का एक पूरा गिरोह है जिसने पुरे प्रदेश में आतंक/कोहराम मचा रक्खा था। उसके बाद इच्छा जागृत हुई और जाना कि मध्य प्रदेश के चम्बल में भी माधो सिंह, मलखान सिंह  मोहर सिंह बाद में फूलन देवी ने भी अपना आतंक फैला रखा है। उसके बाद पंजाब में भिंडरेवाले के आतंक के विषय में सुना।


      ऊपर जिनका भी जिक्र किया गया है वे सभी लोग मज़बूरी या अपनी इच्छा से अपराधी बने और अपने आतंक को कायम किया किन्तु आज हम जिस आतंक की बात करते हैं वो समाज के प्रति न होकर देश के विरुद्ध हो गया है शायद इसलिए इन्हें आतंकवादी कहा जाने लगा है क्यों कि इन लोगों को किसी समाज, धर्म,जाति या समुदाय से कोई परेशानी नहीं है वरन ये शांतिप्रिय देशों के आर्थिक तंत्र को नुकसान पहुँचाना चाहते है। निश्चित रूप से इसके पीछे बहुत बड़ी-बड़ी ताकतें काम कर रही हैं जो कि नहीं चाहती कि कोई भी उभरता हुआ देश उनके देश के वर्चस्व को चुनौती दे। पिछले दो दशकों में इन आतंकवादी घटनाओं में जबरदस्त इजाफा हुआ है। आज विश्व के कई सम्रध देश भी इनकी गतिविधियों से अछूते नहीं रहे हैं। फिर चाहे वो अमेरिका हो या ब्रिटेन,फ्रांस हो या जर्मनी भारत हो या बंग्लादेश ,मिस्र हो या अफगानिस्तान। ऑर बस आतंक ही आतंक नज़र आने लगा है।आखिर इस आतंक के कारोबार से किसे फायदा पहुंच रहा है क्यों कि जिन्होंने इसको बढ़ावा दिया प्रश्रय दिया वो भी तो आज इसके दुष्परिणामों को भोगने को अभिशप्त हो ही रहे है।

जहाँ तक भारत का प्रश्न है वह १९८० से ही इस आग से झुलसता आ रहा है पहले पंजाब फिर कश्मीर आजकल नक्सली भी उसी राह पर रहे हैं और NER पूर्वोत्तर के कुछ राज्य भी इस आग से अछूते नहीं रहे। भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने और प्रश्रय देने का काम शुरू से ही पाकिस्तान करता आ रहा है। १९७१ के युद्ध में पराजित होने के बाद से ही जनरल भुट्टो इंदिरा गाँधी के आगे नतमस्तक हो गए थे और शिमला समझोते के तहत एक प्रकार से भीख मांग कर अपने लगभग एक लाख सैनिकों को जिन्होंने युद्ध में आत्मसमर्पण किया था और युद्ध में ही भारत द्वारा जीती गई ज़मीं भी लेकर वापिस पाकिस्तान गए ताकि वे वहां सर उठाकर अपने लोगों के बीच जा सके। किन्तु भुट्टो ने इंदिरा गाँधी कि भलसमानत का गलत फायदा उठाया और पाकिस्तान वापिस जाते ही बड़ी बड़ी डींगे हाँकनी शुरू कर दी कि हम घास कि रोटी खायेंगे लेकिन एटम बम ज़रूर बनायेंगे। भारत ने जहाँ १९७४ में राजस्थान के पोखरण में पहला परमाणु परिक्षण किया वहीँ पाकिस्तान ने १९८४ में इसे अंजाम दिया। तत्पश्चात भारत और पाकिस्तान ने १९९८ में पुन: परमाणु परिक्षण किये। परमाणु संपन्न राष्ट्र होने पर जो संजीदगी उस राष्ट में होने चाहिए उसका भारत तो अक्षरशः पालन करता है किन्तु पाकिस्तान के रक्षामंत्री और जाने कितने ऐरे गैरे बार बार यही दोहराते रहते हैं कि अगर भारत ने हमला किया तो पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियार ( techtikalटेकटीकल वेपोन् ) सिर्फ सजावट के लिए रक्खे हैं वो इन्हें चलाएगा  भी । अब आप इसे बन्दर घुड़की कहें या कुछ और किन्तु पाकिस्तान ने ये तो साबित कर ही दिया कि वो कितना गैरजिम्मेदार देश है।
आखिर इन सब बातों से किसका भला होने वाला है। क्या उन्हें बताने कि आवश्यकता है कि 
techtikalटेकटीकल वेपोन् क्या होते हैं और क्या कर सकते हैं क्या उन्हें सेकंड वर्ल्ड वार में अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरो हिरोशिमा और नागासाकी का ह्रष नहीं मालूम? आतकवादियों और आतंक को पनाह देने वालों को विश्व स्तर पर अलग थलग करने, उन पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाकर उनके साथ अब तक हुई सभी संधियों को पुन: आज के आलोक में पुन: परिभाषित किया जाना अत्यंत आवश्यक है। जहाँ तक आतकवादियों के खात्मे का प्रश्न है तो आतंक को पोषित करने वाले लोगों और देशों के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक ज्यादा उम्दा विकल्प है न कि परोक्ष युद्ध।

-    प्रदीप भट्ट -