“दादा भाई नौरोजी से राहुल गांधी तक
1939 में कोंग्रेस द्वारा चर्खे वाले झंडे
को अप्नाया गाया जिसे दूसरे विश्व
युध में मुक्त भारत की अंत:कालीन सरकार द्वारा अपनाया गया।
कांग्रेस (स्त्रीलिंग)
अर्थ-विचार-विमर्श करनेवाली महासभा।
वास्त्विक्ता:??? ??????
आज भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस्
की जो गत बनी हुई है उसे देखकर निश्चित ही दिल को तक्लीफ होती है । 28 दिसम्बर-1885 को ए ओ हयूम जो
कि एक रिटयर्ड ब्रिटिश अधिकारी थे, दादाभाई नौरोजी एवम दिंशा वाचा ने 65 व्यक्तियो के साथ मिल्कर भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस् स्थापना की। निश्चित रुप से
उस समय उन महान हस्तियो का उद्देश्य ब्रिटिश राज से भारत की मुक्ति रहा होगा। 1947 में जब
भारत को स्व्तंतत्रा प्राप्त हुई तब तक ये पार्टी अपने उद्देश्य से तनिक भी भट्की
नही अपितु स्व्तंत्राता प्राप्ति तक सबको साथ लेकर चलती रही किंतु 1950 आते आते ये
पार्टी अपने उद्देश्यो से भटक्ना प्रारम्भ हो चुकी थी। 1948 में काश्मीर
में काबलियो का आक्र्मण हो या 1962 में चीन जैसे सोश्लिस्ट देश पर अत्यधिक विश्वास
करना हो जिसकी परीणिति भारत की युध में
पराजय के रुप में सामने आयी। जैसा कि बताया
जाता है कि उस समय के प्रधान्मंत्री जवाहर लाल नेहरु सिर्फ अपनी ही सुनते थे उनके निर्णय
ही अंतिम होते थे जिस कारण देश को काफी बार बडे नुकसनो से दो चार होना पडा।किंतु सत्य
कह्ने का साहस कौन जुटाए। सरदार वल्लभ भाई पटेल जो उन्हे सत्य से रुबरु करा सकते थे को ऐसे जटिल
कार्यो में लगा दिया गया जिससे वो इस ओर
ध्यान ही नही दे पाए। आइए आगे किसी चलने से पूर्व कोंग्रेस् के अभी तक हुए
प्रेसिडेंट्स पर नज़र दौडा लेते हैं ताकि पता तो चले कि इस पार्टी में कितनी महान विभूतिया
रही हैं:-
क्रम संख्या
|
नाम
|
समय काल
|
रिमार्क
|
1.
|
उमेश चंद्र बनर्जी
|
1885,1892
|
|
2.
|
दादभाई नौरोजी
|
18861886,1893,1906
|
|
3.
|
बदरुद्दीन तैय्य्ब जी
|
1887
|
|
4.
|
जोर्ज यूल
|
1888
|
|
5.
|
विल्लियम वेडंवर्ड
|
1889,1910
|
|
6.
|
फिरोज़ शाह मेह्ता
|
1890
|
|
7.
|
आन्न्द चर्लू
|
1891
|
|
8.
|
अल्फ्रेड वेव
|
1894
|
|
9.
|
सुरेंद्र नाथ बनर्जी
|
1895,1902
|
|
10.
|
रह्मततूल्ला
|
1896
|
|
11.
|
सी शंकर नाराय्न
|
1897
|
|
12.
|
आन्न्द मोहन बोस
|
1898
|
|
13.
|
रमेश चंद्र दत्त
|
1899
|
|
14.
|
नारायण गणेश चंद्रवर्कर
|
1900
|
|
15.
|
दिनशा वाचा
|
1901
|
|
16.
|
लाल मोहन घोष
|
1903
|
|
17.
|
हेंनरी काट्न
|
1904
|
|
18.
|
गोपल क्रिषण गोख्ले
|
1905
|
|
19.
|
रास बिहरी घोष
|
1907,1908
|
|
20.
|
मदन मोहन माल्वीय
|
1909,1918,1932
|
|
21.
|
बिशन नारायण धर
|
1911
|
|
22.
|
रघुनथ नरसिंह मुधोलकर
|
1912
|
|
23.
|
नवब सैय्य्द मुह्म्म्द बहदुर
|
1913
|
|
24.
|
भुपेंद्र दास बोस
|
1914
|
|
25.
|
सतेंद्र प्रसन्नसिन्हा
|
1915
|
|
26.
|
अम्बिका चरण मजूम्दर
|
1916
|
|
27.
|
एनि बेसंट
|
1917
|
|
28.
|
सैय्य्द हसन इमाम
|
1918
|
बम्बई विषेश सत्र
|
29.
|
मोती लाल नेहरु
|
1919,1928
|
|
30.
|
लाला लाजपत राय
|
1920
|
कलकत्ता षेश सत्र
|
31.
|
विजय राघवाचर्य
|
1920
|
|
32.
|
चितरंजन दास
|
1921,1922
|
|
33.
|
मोहम्म्द अली जौहर
|
1923
|
|
34.
|
अब्दुल कलम आजद
|
1923,1940-1946
|
देल्हि विषेश सत्र
|
35.
|
महत्मा गांधी
|
1924
|
|
36.
|
सरोजनी नाय्डू
|
1925
|
|
37.
|
श्रीनिवास आयंगर
|
1926
|
|
38.
|
मुख्तर अह्मद अंसरी
|
1927
|
|
39.
|
जवाहर लाल नेहरु
|
1928-30,1936-37,1951-1954
|
|
40.
|
वल्लभ भाई पटेल
|
1931
|
|
41.
|
नेली सेन गुप्ता
|
1933
|
|
42.
|
राजेंद्र प्रसाद
|
1934,35,1939
|
|
43.
|
सुभष च्न्द्र बोस
|
1938 ,39
|
|
44.
|
आचार्य क्रिप्लानी
|
1947
|
|
45.
|
पट्टभि सीता रमैय्या
|
1948,49
|
|
46.
|
पुरुशोत्तम दास टंडन
|
1950
|
|
47.
|
उछंग राय नवल शंकर धेबर
|
1955,1959
|
|
48.
|
इंदिरा गांधी
|
1959,1978-84
|
देल्हि विषेश सत्र
|
49.
|
नीलम संजीव रेड्डी
|
1960-63
|
|
50.
|
के काम राज
|
19641964-67
|
|
51.
|
एस निलिज्गप्पा
|
1968-69
|
|
52.
|
जगजीवन राम
|
1970-71
|
|
53.
|
शंकर दयाल शर्मा
|
1972-74
|
|
54.
|
देवकांत बरुआ
|
1975-77
|
|
55.
|
राजीव गांधी
|
1985-91
|
|
56.
|
पी वी नर सिंह राव
|
1992-96
|
|
57.
|
सीताराम केसरी
|
1996-98
|
|
58.
|
सोनिया गांधी
|
1998-2017
|
|
59.
|
राहुल गांधी
|
2017
|
|
उपरोक्त टेबल से एक बात तो क्लिर हो गई कि जब इस पार्टी का गटन किया गया
था तो पार्टी महत्व्पुर्ण थी किंतु जैसे ही इस पार्टी पर नेहरु की छाया पडी इस
पर्टी पर व्यक्ति महव्पुर्ण होते चले गये। जिस
परम्परा को नेहरु ने 1951-54 ने शुरु किया उसको इंदिरा गांधी ने 1978-84 पाला पोसा
जिसे राजीव गांधी ने 1985-91 में और खाद पानी दिया और अति तो तब हो गई जब सीताराम
केसरी को कोंग्रेस भवन से बाहर फिंक्वा कर सोनिया गांधी ने 1998-2017 तक इसको
गांधी फर्म की तरह चलाया । हद तो तब हो गई जब इस फर्म का मुखिया राहूल
गांधी को बना दिया गया जब कि वो अपने अधकचरे ज्ञन के कारण सैक्डो बार हंसी के
पात्र बन चुके हैं । आखिर कोंग्रेस् अपने जन्म से आज तक गांधी नाम की प्रेत छाया से
मुक्ति क्यो नही पा सकी है । आखिर ऐसा किस वजह से है ? क्या सिर्फ गांधी सरनेम ही इतनी पुरानी पार्टी
को जीवित रखने का एक मात्र जरिया
बचा है । निश्चित
रुप से विश्व परिद्रिष्य पर इतनी पुरानी पार्टी का सूरज इस तरह अस्त हो रहा है और
इसके सिनिय्र्र नेतगण अभी भी नही चेत रहे हैं । वे अभी भी किसी
चमत्कार की उम्मीद में सिर झुकाए बैठे हुए हैं।
और लीजीए चमत्कार भी हो गया यानि राहूल गांधी ने कल ही अपनी छोटी बहन प्रियंका
गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का महा-सचिव नियुक्त कर दिया। इसका मतलब ? कोंग्रेस् पार्टी किसी भी सूरत में गांधी सर्नेम की प्रेत
छाया से बाहर आने को तैय्यार नहीं है। अब बडे बडे दावे किये जायेंगे कि प्रियंका गांधी चुंकि अपनी दादी की तरह दिख्ती है तो लोग अब तो कोंग्रेस को ही वोट
देंगे क्यो कि भारत की जनता तो गांधी
परिवार के कर्ज़ के नीचे दबी हुई है, इस परिवार की गुलाम है
आदि आदि। ये भी अच्छा ही हुआ जो कोंग्रेस ने चुनाव से कुछ दिनो
पहले ही ये दांव भी लगा लिया अन्यथा ना जाने अगले चुनाव तक कोंग्रेस किस मुगाल्ते में
जीती रह्ती। वैसे भी अभी
हालिया हुए विधानसभा चुनावो में कोंग्रेस् के भाग्य से छिंका टूटा है और राज्स्थान,मध्य् प्रदेश और छत्तिस्गढ में कोंग्रेस
अपनी सर्कार बनाने में कामयाब हो गई है जिसकी खुमारी में उसने उल्टी-उल्टी हरकते कारनी
शुरु कर दी हैं जिस्का परिणम उसे लोक्सभा चुनवो में भुगत्ना
पडेगा ।
-प्रदीप भट्ट-