Tuesday, 29 January 2019

दादा भाई नौ रोज़ी से राहुल गांधी तक कांग्रेस







दादा भाई नौरोजी से राहुल गांधी तक


1939 में कोंग्रेस द्वारा चर्खे वाले झंडे को अप्नाया गाया जिसे दूसरे विश्व
युध में मुक्त भारत की अंत:कालीन सरकार द्वारा अपनाया गया

कांग्रेस (स्त्रीलिंग)
अर्थ-विचार-विमर्श करनेवाली महासभा।
वास्त्विक्ता:???  ??????


आज भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस् की जो गत बनी हुई है उसे देखकर  निश्चित ही दिल को तक्लीफ  होती है । 28 दिसम्बर-1885 को ए ओ हयूम जो कि एक रिटयर्ड ब्रिटिश अधिकारी थे, दादाभाई नौरोजी एवम दिंशा वाचा ने 65 व्यक्तियो के साथ मिल्कर भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस्  स्थापना की निश्चित रुप से उस समय उन महान हस्तियो का उद्देश्य ब्रिटिश राज से भारत की मुक्ति रहा होगा 1947 में जब भारत को स्व्तंतत्रा प्राप्त हुई तब तक ये पार्टी अपने उद्देश्य से तनिक भी भट्की नही अपितु स्व्तंत्राता प्राप्ति तक सबको साथ लेकर चलती रही किंतु 1950 आते आते ये पार्टी अपने उद्देश्यो से भटक्ना प्रारम्भ हो चुकी थी 1948 में काश्मीर में काबलियो का आक्र्मण हो या 1962 में चीन जैसे सोश्लिस्ट देश पर अत्यधिक विश्वास करना हो जिसकी परीणिति भारत की युध में  पराजय के रुप में सामने आयी जैसा कि बताया जाता है कि उस समय के प्रधान्मंत्री जवाहर लाल नेहरु सिर्फ अपनी ही सुनते थे उनके निर्णय ही अंतिम होते थे जिस कारण देश को काफी बार बडे नुकसनो से दो चार होना पडाकिंतु सत्य कह्ने का साहस कौन जुटाए सरदार वल्लभ भाई पटेल जो  उन्हे सत्य से रुबरु करा सकते थे को ऐसे जटिल कार्यो में लगा दिया गया जिससे वो इस  ओर ध्यान ही नही दे पाए  आइए आगे  किसी चलने से पूर्व कोंग्रेस् के अभी तक हुए प्रेसिडेंट्स पर नज़र दौडा लेते हैं ताकि पता तो चले कि इस पार्टी में कितनी  महान विभूतिया  रही हैं:-

क्रम संख्या
नाम
समय काल
रिमार्क
1.
उमेश चंद्र बनर्जी
1885,1892

2.
दादभाई नौरोजी
18861886,1893,1906

3.
बदरुद्दीन तैय्य्ब जी
1887

4.
जोर्ज यूल
1888

5.
विल्लियम वेडंवर्ड
1889,1910

6.
फिरोज़  शाह मेह्ता
1890

7.
आन्न्द चर्लू
1891

8.
अल्फ्रेड वेव
1894

9.
सुरेंद्र  नाथ बनर्जी
1895,1902

10.
रह्मततूल्ला
1896

11.
सी शंकर नाराय्न
1897

12.
आन्न्द मोहन बोस
1898

13.
रमेश चंद्र दत्त
1899

14.
नारायण गणेश चंद्रवर्कर
1900

15.
दिनशा वाचा
1901

16.
लाल मोहन घोष
1903

17.
हेंनरी काट्न
1904

18.
गोपल  क्रिषण गोख्ले
1905

19.
रास बिहरी घोष
1907,1908

20.
मदन मोहन माल्वीय
1909,1918,1932

21.
बिशन नारायण  धर
1911

22.
रघुनथ  नरसिंह मुधोलकर
1912

23.
नवब सैय्य्द मुह्म्म्द बहदुर
1913

24.
भुपेंद्र दास बोस
1914

25.
सतेंद्र प्रसन्नसिन्हा
1915

26.
अम्बिका चरण मजूम्दर
1916

27.
एनि बेसंट
1917

28.
सैय्य्द हसन इमाम
1918
बम्बई विषेश सत्र
29.
मोती लाल नेहरु
1919,1928

30.
लाला लाजपत राय
1920
कलकत्ता षेश सत्र
31.
विजय राघवाचर्य
1920

32.
चितरंजन दास
1921,1922

33.
मोहम्म्द अली जौहर
1923

34.
अब्दुल कलम आजद
1923,1940-1946
देल्हि विषेश सत्र
35.
महत्मा  गांधी
1924

36.
सरोजनी नाय्डू
1925

37.
श्रीनिवास आयंगर
1926

38.
मुख्तर अह्मद अंसरी
1927

39.
जवाहर लाल नेहरु
1928-30,1936-37,1951-1954

40.
वल्लभ भाई पटेल
1931

41.
नेली सेन गुप्ता
1933

42.
राजेंद्र प्रसाद
1934,35,1939

43.
सुभष च्न्द्र बोस
1938 ,39

44.
आचार्य क्रिप्लानी
1947

45.
पट्टभि सीता रमैय्या
1948,49

46.
पुरुशोत्तम दास टंडन
1950

47.
उछंग राय नवल शंकर धेबर
1955,1959

48.
इंदिरा गांधी
1959,1978-84
देल्हि विषेश सत्र
49.
नीलम संजीव रेड्डी
1960-63

50.
के काम राज
19641964-67

51.
एस निलिज्गप्पा
1968-69

52.
जगजीवन राम
1970-71

53.
शंकर दयाल शर्मा
1972-74

54.
देवकांत बरुआ
1975-77

55.
राजीव  गांधी
1985-91

56.
पी वी नर सिंह राव
1992-96

57.
सीताराम केसरी
1996-98

58.
सोनिया गांधी
1998-2017

59.
राहुल गांधी
2017



उपरोक्त  टेबल से एक बात तो  क्लिर हो गई कि जब इस पार्टी का गटन किया गया था तो पार्टी महत्व्पुर्ण थी किंतु जैसे ही इस पार्टी पर नेहरु की छाया पडी इस पर्टी पर व्यक्ति महव्पुर्ण होते चले गये जिस परम्परा को नेहरु ने 1951-54 ने शुरु किया उसको इंदिरा गांधी ने 1978-84 पाला पोसा जिसे राजीव गांधी ने 1985-91 में और खाद पानी दिया और अति तो तब हो गई जब सीताराम केसरी को कोंग्रेस भवन से बाहर फिंक्वा कर सोनिया गांधी ने 1998-2017 तक इसको गांधी फर्म की तरह चलाया  हद तो तब हो गई जब इस फर्म का मुखिया राहूल गांधी को बना दिया गया जब कि वो अपने अधकचरे ज्ञन के कारण सैक्डो बार हंसी के पात्र बन चुके हैं   आखिर  कोंग्रेस्  अपने जन्म से आज तक गांधी नाम की प्रेत छाया से मुक्ति क्यो नही पा सकी है । आखिर ऐसा किस वजह से है ? क्या सिर्फ गांधी सरनेम ही इतनी  पुरानी पार्टी  को जीवित  रखने का एक मात्र जरिया बचा है निश्चित रुप से विश्व परिद्रिष्य पर इतनी पुरानी पार्टी का सूरज इस तरह अस्त हो रहा है और इसके सिनिय्र्र नेतगण अभी भी नही चेत रहे हैं वे अभी भी किसी चमत्कार की उम्मीद में सिर झुकाए बैठे हुए हैं

और लीजीए चमत्कार भी हो गया यानि राहूल गांधी ने कल ही अपनी छोटी बहन प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का महा-सचिव नियुक्त कर दिया  इसका मतलब ? कोंग्रेस् पार्टी किसी भी सूरत में गांधी सर्नेम की प्रेत छाया से बाहर आने को तैय्यार नहीं है अब बडे बडे दावे किये जायेंगे कि प्रियंका गांधी चुंकि अपनी दादी की तरह  दिख्ती है तो लोग अब तो कोंग्रेस को ही वोट देंगे क्यो  कि भारत की जनता तो गांधी परिवार के कर्ज़ के नीचे दबी हुई है, इस परिवार की गुलाम है आदि आदि ये भी अच्छा ही हुआ जो कोंग्रेस ने चुनाव से कुछ दिनो पहले ही ये दांव भी लगा लिया अन्यथा ना जाने अगले चुनाव तक कोंग्रेस किस मुगाल्ते में जीती रह्ती वैसे भी अभी हालिया हुए विधानसभा चुनावो में कोंग्रेस् के भाग्य से छिंका टूटा है और राज्स्थान,मध्य् प्रदेश और छत्तिस्गढ में कोंग्रेस अपनी सर्कार बनाने में कामयाब हो गई है जिसकी खुमारी में उसने उल्टी-उल्टी हरकते कारनी शुरु कर दी हैं जिस्का परिणम उसे लोक्सभा चुनवो में भुगत्ना
पडेगा

-प्रदीप भट्ट-