“फ़तवों का चक्रव्यूह “
दारुल उलूम देववृंद
आज जब चारों ओर संजय लीला भंसाली की फ़िल्म
पद्मावती की चर्चा ज़ोरों पर है और राजपूत अपनी आन बान और शान के लिए अड़े हुए हैं
और किसी भी कीमत पर फ़िल्म को रिलीज़ नहीं होने देना चाहते। तब य़क-बा-यक़ मुझे फ़तवों की याद आ गई। मैं सोचने लगा कि
क्या मुगलों से पहले या बाद में भी फ़तवे
देने की परम्परा थी और यदि थी तो किस रूप में और आख़िर कोई धर्म का अघोषित ठेकेदार
कैसे अपने ही लोगों पर हास्यास्पद फ़तवे ठोक सकता है। आख़िर इन फ़तवों का क्या
महत्त्व है और क्यूँ दिए जाते हैं? अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने की
होड़ ही इसकी जड़ है मुझे याद नहीं पड़ता इस तरह दूसरों के अधिकारों में दख़ल देने का
फ़ैसला क्यूँ और किसने शुरू किया और उस काल खंड में इसकी क्या आवश्यकता थी।खैर एक
बात जो मेरी छोटी सी समझ में आ गई है वो
यह है कि इंसान की जन्मजात फ़ितरत ही ऐसी है कि वो सामान्यता: अपने आप को दुसरे से
ऊँचा कहें या श्रेष्ठ कहलाने या दिखलाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। और ये
किसी एक धर्म में नहीं होता वरन ये हर धर्म में धर्म के ठेकेदारों में पाया जाने
वाला वायरस है। जिसकी आमद निश्चित रूप से इस्लाम से ही हुई है। जहाँ और धर्मों में इसका
प्रतिशत ना के बराबर है वहीँ इस्लाम में तो ये अपनी सारें हदें पार करता नज़र आता
है और इसका कारण मुस्लिम्स का ज्यादातर पढाई लिखाई पर ध्यान ना दिया जाना है। महत्वपूर्ण ये नहीं
कि ये अशिक्षित हैं बल्क़ि
ज्यादातर मुसलमान अपने बच्चों को शिक्षित करना भी नहीं चाहते इसका कारण जहाँ एक
तरफ़ ग़रीबी है वहीँ दूसरी ओर ये अति के पिछड़ेपन के शिकार हैं। बस जो मदरसों में
पढ़ा दिया वही इनके लिए काफ़ी है और यही कारण है कि आज
भारतवर्ष और पूरा विश्वसमुदाय आतंकवाद की जिस विभीषिका से दो चार हो रहा है उसके
बहुत सारे कारणों में से मदरसा कल्चर का मुस्लिम समुदाय पर हावी होना भी है। इस मदरसा कल्चर में वहाबी विचारधारा के चलते
ज्यादातर मदरसों ने लाखों की तादाद में आतंकवादी बनाए और उन्हें एक्सपोर्ट तक कर
दिया जिसका खामियाज़ा आज पूरा विश्व भुगत रहा है।
विश्व में जहाँ भी मुसलमान बसते हैं वे देववृंद विचारधारा को मानते हैं। दारुल उलूम फ़तवों को जारी करने के लिए प्रसिद्ध है
इसके लिए यहाँ एक अलग विभाग भी है जिसका नाम दारुल इफ्ता है।100 से भी ज्यादा वर्षों से यहाँ से फ़तवे
जारी किये जा रहे हैं। लोग अपनी शंका समाधान के लिए यहाँ से हर विषय ( सामाजिक
मसले हलाल व् हराम शादी या अन्य )पर सवाल करते हैं यहाँ से हर वर्ष लगभग 1500 फ़तवे यहाँ से जारी किये जाते हैं। दारुल
उलूम देववृंद की स्थापना 1866 और इफ्ता की स्थापना 1892 में हुई।अजिजुर्र्ह्मन
दारुल इफ्ता के प्रथम मुफ़्ती के रूप में नियुक्त हुए थे। यहाँ से जो भी फ़तवे जारी
किये जाते हैं उनका रिकॉर्ड रखने का चलन 1990 से शुरू हुआ ।1976 तक यहाँ से लगभग 4,50,000 फ़तवे जारी किये जा चुके हैं। जहाँ 2002 से ईमेल का इस्तेमाल शुरू हुआ वहीँ 2007 से उर्दू और अंग्रेजी में वेबसाइट शुरू की जा चुकी है। आइये कुछ महत्वपूर्ण
फ़तवों पर नज़र डालते हैं जिनके कारण इस्लाम ख़तरे में आ जाता है।
- · मुस्लिम औरतों का बाल कटवाना और आइब्रो बनवाना इस्लाम और शरियत के अनुसार ग़लत है ।
- · अगर कोई व्यक्ति अपनी या अपने परिवार की फोटों फ़ेस बुक,ट्विट्टर इनस्टाग्राम पर डालना हराम माना गया है। जब कि फ़तवा देने वाले दारुल उलूम देववृंद के मौलाना स्वंय ये सब कार्य बड़े ज़ोर शोर से कर रहे हैं साथ ही एक से बढ़िया एक स्मार्ट फोन का भी लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं?
- · ओरल सेक्स के लिए पूर्णतया मनाही का फ़तवा जारी किया गया है।
- · होम्योपथिक दवाइयों में पड़ने वाले अल्कोहल को हराम बताया गया है।
- · पुरुष शेविंग और उनिसेक्स सैलून का धंधा नहीं कर सकते क्यों कि इस्लाम में ये हराम है।
- · सरकार के आबकारी विभाग का मंत्री बनना और यहाँ तक की नौकरी के लिए भी इस्लाम अनुसार मनाही है।
- · किसी भी प्रकार के डिजिटल लेन दें को गैर इस्लामी घोषित किया गया है।
- · पुरुष और औरतें हस्तमैथुन नहीं कर सकती इसे इस्लाम में गुनाह-ए-अजीम माना गया है।
- · मुस्लिम महिलाऐं नौकरी नहीं कर सकती साथ ही राजनीती में आना भी उनके लिए गैर इस्लामी है।
- · आप किसी भी कारण से खून की अदला बदली तो कर सकते हैं किन्तु अपने शरीर का अंगदान नहीं कर सकते क्यों कि ये गैर इस्लामी है।
- · नसबंदी नाजायज लेकिन अगर महिला की जान खतरे में हो तो जायज ?
- · करगिल युद्ध के दौरान लापता मान लिए गए आरिफ़ को जब 2003 में पाकिस्तानी जेल से मुक्ति मिली तो उसकी बीवी का निकाह हो चुका था।सुझाव माँगा गया और सुझाव आया कि वह पहले पति के पास लौट जाए अन्यथा उसकी शादी अवैध मानी जाएगी।
- · 2005 में इमराना के ससुर ने उसके साथ बलात्कार किया,पंचायत हुई और फ़ैसला आया कि इमराना अपने शौहर मुहम्मद अली को अपना बेटा माने।इस फ़ैसले पर दारुल उलूम देववृंद ने भी पंचायत के फ़ैसले पर मोहर लगाई ?
फ़तवा अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका
तात्पर्य है सुझाव जो मांगने वाले और देने वाले के मध्य का मसला है किन्तु ये
आवशयक नहीं कि जिसने मुफ़्ती से प्रश्न किया है वह मुफ़्ती द्वारा दिए गए उत्तर या
सुझाव से सहमत भी हों अतएव ये प्रश्न पूछने वाले के विवेक पर निर्भर है कि वह
मुफ़्ती द्वारा दिए गए उत्तर से यदि संतुष्ट है तो उसे माने या ना माने। ऐसा भी नहीं कि दारुल उलम ने जितने भी फ़तवे दिए वो सभी विवादित फ़तवे ही जारी
किये गए हों। अंग्रेजों की दासता के खिलाफ़ भी स्वतंत्रता आंदोंलन के दौरान तरके ए मवालात
यानि आर्थिक बहिष्कार और 2008 में आतंकवाद को लेकर जिसमें कहा गया कि
“किसी बेगुनाह की जान लेना हराम है और ये इस्लाम के सख्त विरुद्ध है।
मेरी समझ में ये बात आज तक नहीं आई कि
छोटी छोटी बातों पर इस्लाम खतरे में कैसे आ जाता है क्या उपरोक्त बातें ये साबित
नहीं करती कि बेवजह मुस्लिम पुरषों ने मुस्लिम महिलाओं को शोषित श्रेणी में रखने
के लिए ही ये फ़तवे का चक्कर नहीं चलाया। अन्यथा क्या कारण है कि ऐसे बहुत सारे
फ़तवे दिए गए जिनको किसी भी एंगल से जायज नहीं ठहराया जा सकता ,वो दिए ही सिर्फ़
इसलिए गए कि महिलाऐं घरों में बंद रहे। खाना बनाएं,बेहिसाब बच्चे पैदा करें और
अपने शौहर की जब तब जूतियाँ खाती रहें अगर कोई दूसरी औरत या लड़की पसंद आ जाए तो
अपनी बीवी को बिना किसी वजह के तलाक दे दिया जाए ताकि वह एक और घर बर्बाद कर सके
और ये सिलसिला बेरोकटोक चार शादियों तक चलता रहता है क्यों कि इस्लाम में इसे जायज
ठहरा दिया गया है (वास्तविकता किसी को पता नहीं)। इस्लाम में हलाला एक ऐसी प्रथा
है जिस पर स्वर्गीय मीना कुमारी ने कहा था कि ये प्रथा एक भली स्त्री को वैश्या
में तब्दील कर देता है।
अंत में आख़िर क्या कारण है कि मुस्लिम
समुदाय अपने धर्म में पल रही कुरीतियों को समाप्त करने का कोई प्रयास क्यों नहीं
करता जब कि अन्य धर्मों में समय समय पर इस प्रकार की कुरीतियों को जड़ से उखाड़
फेंकने के लिए लोग आगे आते रहे हैं इनमें प्रथम नाम राजा राम मोहन रॉय का है
जिन्होंने सती प्रथा के ख़िलाफ़ न केवल अपनी आवाज को बुलंद किया बल्कि इस जन मानस तक
को जोड़ दिया जिसका परिणाम भी सबके सामने है कि भारत वर्ष से सती प्रथा अब लुप्तप्राय
हो गई। राजा राम मोहन रॉय ने केवल सती प्रथा का ही विरोध नहीं किया वरन विधवा
विवाह पर भी बहुत कार्य किया । आज पूरा भारतीय समाज उनका ऋणी है । ऐसा ही कोई
आन्दोलन मुस्लिम समुदाय से क्यों नहीं निकलता ताकि मुस्लिम महिलाओं को गुलामी से
आजादी मिले वे भी मुख्यधारा से अपने आप को जोड़ सके ,अपने बच्चों को पढाई लिखाई पर
ध्यान दे सकें उनको अपने पैरों पर खड़े होने में संबल प्रदान कर सके । आतंकवाद के
विरोध मुस्लिम समाज द्वारा आन्दोलन क्यों नहीं
किये जाते, मुस्लिम महिलाओं को तलाक/हलाला के भंवर जाल से मुक्ति के लिए कोई
आन्दोलन क्यों नहीं निकलता,क्यों नहीं इस्लामिक विद्वान देश में बढती जनसँख्या पर
रोक लगाने के लिए आगे आते। ये सब कार्य हो सकते हैं अगर हमारे दिल साफ़ हों, हम
वास्तव में सबको एक नजर से देखने का नज़रिया रखना शुरू करें तो कुछ भी असम्भव नहीं।
बस ज़रूरत है तो शुद्ध और व्यापक सोच की ।
(courtesy IT)
-प्रदीप भट्ट-
Satarday,
November 25, 2017