Saturday, 25 November 2017

फ़तवों का चक्रव्यूह





“फ़तवों का चक्रव्यूह “

दारुल उलूम देववृंद

आज जब चारों ओर संजय लीला भंसाली की फ़िल्म पद्मावती की चर्चा ज़ोरों पर है और राजपूत अपनी आन बान और शान के लिए अड़े हुए हैं और किसी भी कीमत पर फ़िल्म को रिलीज़ नहीं होने देना चाहतेतब य़क-बा-यक़  मुझे फ़तवों की याद आ गईमैं सोचने लगा कि क्या मुगलों से पहले या  बाद में भी फ़तवे देने की परम्परा थी और यदि थी तो किस रूप में और आख़िर कोई धर्म का अघोषित ठेकेदार कैसे अपने ही लोगों पर हास्यास्पद फ़तवे ठोक सकता है। आख़िर इन फ़तवों का क्या महत्त्व है और क्यूँ दिए जाते हैं? अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने की होड़ ही इसकी जड़ है मुझे याद नहीं पड़ता इस तरह दूसरों के अधिकारों में दख़ल देने का फ़ैसला क्यूँ और किसने शुरू किया और उस काल खंड में इसकी क्या आवश्यकता थी।खैर एक बात जो मेरी छोटी सी  समझ में आ गई है वो यह है कि इंसान की जन्मजात फ़ितरत ही ऐसी है कि वो सामान्यता: अपने आप को दुसरे से ऊँचा कहें या श्रेष्ठ कहलाने या दिखलाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। और ये किसी एक धर्म में नहीं होता वरन ये हर धर्म में धर्म के ठेकेदारों में पाया जाने वाला वायरस हैजिसकी आमद निश्चित रूप से इस्लाम से ही हुई है। जहाँ और धर्मों में इसका प्रतिशत ना के बराबर है वहीँ इस्लाम में तो ये अपनी सारें हदें पार करता नज़र आता है और इसका कारण मुस्लिम्स का ज्यादातर पढाई लिखाई पर ध्यान ना दिया जाना हैमहत्वपूर्ण ये नहीं कि ये अशिक्षित हैं बल्क़ि ज्यादातर मुसलमान अपने बच्चों को शिक्षित करना भी नहीं चाहते इसका कारण जहाँ एक तरफ़ ग़रीबी है वहीँ दूसरी ओर ये अति के पिछड़ेपन के शिकार हैंबस जो मदरसों में पढ़ा दिया वही इनके लिए काफ़ी है  और यही कारण है कि आज भारतवर्ष और पूरा विश्वसमुदाय आतंकवाद की जिस विभीषिका से दो चार हो रहा है उसके बहुत सारे कारणों में से मदरसा कल्चर का मुस्लिम समुदाय पर हावी होना भी हैइस  मदरसा कल्चर में वहाबी विचारधारा के चलते ज्यादातर मदरसों ने लाखों की तादाद में आतंकवादी बनाए और उन्हें एक्सपोर्ट तक कर दिया जिसका खामियाज़ा आज पूरा विश्व भुगत रहा है

विश्व में जहाँ भी मुसलमान बसते हैं वे देववृंद विचारधारा को मानते हैं। दारुल उलूम फ़तवों को जारी करने के लिए प्रसिद्ध है इसके लिए यहाँ एक अलग विभाग भी है जिसका नाम दारुल इफ्ता है।100 से भी ज्यादा वर्षों से यहाँ से फ़तवे जारी किये जा रहे हैं। लोग अपनी शंका समाधान के लिए यहाँ से हर विषय ( सामाजिक मसले हलाल व् हराम शादी या अन्य )पर सवाल करते हैं यहाँ से हर वर्ष लगभग 1500 फ़तवे यहाँ से जारी किये जाते हैं। दारुल उलूम देववृंद की स्थापना 1866 और इफ्ता की स्थापना 1892 में हुई।अजिजुर्र्ह्मन दारुल इफ्ता के प्रथम मुफ़्ती के रूप में नियुक्त हुए थे। यहाँ से जो भी फ़तवे जारी किये जाते हैं उनका रिकॉर्ड रखने का चलन 1990 से शुरू हुआ ।1976 तक यहाँ से लगभग 4,50,000 फ़तवे जारी किये जा चुके हैं। जहाँ 2002 से ईमेल का इस्तेमाल शुरू हुआ वहीँ 2007 से उर्दू और अंग्रेजी में वेबसाइट शुरू की जा चुकी है। आइये कुछ महत्वपूर्ण फ़तवों पर नज़र डालते हैं जिनके कारण इस्लाम ख़तरे में आ जाता है

  • ·        मुस्लिम औरतों का बाल कटवाना और आइब्रो बनवाना इस्लाम और शरियत के अनुसार ग़लत है ।


  • ·        अगर कोई व्यक्ति अपनी या अपने परिवार की फोटों फ़ेस बुक,ट्विट्टर इनस्टाग्राम पर डालना हराम माना गया है। जब कि फ़तवा देने वाले दारुल उलूम देववृंद के मौलाना स्वंय ये सब कार्य बड़े ज़ोर शोर से कर  रहे हैं साथ ही एक से बढ़िया एक स्मार्ट फोन का भी लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं? 


  • ·        ओरल सेक्स के लिए पूर्णतया मनाही का फ़तवा जारी किया गया है


  • ·        होम्योपथिक दवाइयों में पड़ने वाले अल्कोहल को हराम बताया गया है।


  • ·        पुरुष शेविंग और उनिसेक्स सैलून का धंधा नहीं कर सकते क्यों कि इस्लाम में ये हराम है।
  • ·        सरकार के आबकारी विभाग का मंत्री बनना और यहाँ तक की नौकरी के लिए भी इस्लाम अनुसार मनाही है।


  • ·        किसी भी प्रकार के डिजिटल लेन दें को गैर इस्लामी घोषित किया गया है।


  • ·        पुरुष और औरतें हस्तमैथुन नहीं कर सकती इसे इस्लाम में गुनाह-ए-अजीम माना गया है।


  • ·        मुस्लिम महिलाऐं नौकरी नहीं कर सकती साथ ही राजनीती में आना भी उनके लिए गैर इस्लामी है।


  • ·        आप किसी भी कारण से खून की अदला बदली तो कर सकते हैं किन्तु अपने शरीर का अंगदान नहीं कर सकते क्यों कि ये गैर इस्लामी है।


  • ·        नसबंदी नाजायज लेकिन अगर महिला की जान खतरे में हो तो जायज ?


  • ·        करगिल युद्ध के दौरान लापता मान लिए गए आरिफ़ को जब 2003 में पाकिस्तानी जेल से मुक्ति मिली तो उसकी बीवी का निकाह हो चुका था।सुझाव माँगा गया और सुझाव आया कि वह पहले पति के पास लौट जाए अन्यथा उसकी शादी अवैध मानी जाएगी।


  • ·        2005 में इमराना के ससुर ने उसके साथ बलात्कार किया,पंचायत हुई और फ़ैसला आया कि इमराना अपने शौहर मुहम्मद अली  को अपना बेटा माने।इस फ़ैसले पर दारुल उलूम देववृंद ने भी पंचायत के फ़ैसले पर मोहर लगाई ?


फ़तवा अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका तात्पर्य है सुझाव जो मांगने वाले और देने वाले के मध्य का मसला है किन्तु ये आवशयक नहीं कि जिसने मुफ़्ती से प्रश्न किया है वह मुफ़्ती द्वारा दिए गए उत्तर या सुझाव से सहमत भी हों अतएव ये प्रश्न पूछने वाले के विवेक पर निर्भर है कि वह मुफ़्ती द्वारा दिए गए उत्तर से यदि संतुष्ट है तो उसे माने या ना माने ऐसा भी नहीं कि दारुल उलम ने जितने भी फ़तवे दिए वो सभी विवादित फ़तवे ही   जारी किये गए होंअंग्रेजों की दासता के खिलाफ़ भी स्वतंत्रता आंदोंलन के दौरान तरके ए मवालात यानि आर्थिक बहिष्कार और 2008 में आतंकवाद को लेकर जिसमें कहा गया कि “किसी बेगुनाह की जान लेना हराम है और ये इस्लाम के सख्त विरुद्ध है


मेरी समझ में ये बात आज तक नहीं आई कि छोटी छोटी बातों पर इस्लाम खतरे में कैसे आ जाता है क्या उपरोक्त बातें ये साबित नहीं करती कि बेवजह मुस्लिम पुरषों ने मुस्लिम महिलाओं को शोषित श्रेणी में रखने के लिए ही ये फ़तवे का चक्कर नहीं चलाया। अन्यथा क्या कारण है कि ऐसे बहुत सारे फ़तवे दिए गए जिनको किसी भी एंगल से जायज नहीं ठहराया जा सकता ,वो दिए ही सिर्फ़ इसलिए गए कि महिलाऐं घरों में बंद रहे। खाना बनाएं,बेहिसाब बच्चे पैदा करें और अपने शौहर की जब तब जूतियाँ खाती रहें अगर कोई दूसरी औरत या लड़की पसंद आ जाए तो अपनी बीवी को बिना किसी वजह के तलाक दे दिया जाए ताकि वह एक और घर बर्बाद कर सके और ये सिलसिला बेरोकटोक चार शादियों तक चलता रहता है क्यों कि इस्लाम में इसे जायज ठहरा दिया गया है (वास्तविकता किसी को पता नहीं)। इस्लाम में हलाला एक ऐसी प्रथा है जिस पर स्वर्गीय मीना कुमारी ने कहा था कि ये प्रथा एक भली स्त्री को वैश्या में तब्दील कर देता है।

अंत में आख़िर क्या कारण है कि मुस्लिम समुदाय अपने धर्म में पल रही कुरीतियों को समाप्त करने का कोई प्रयास क्यों नहीं करता जब कि अन्य धर्मों में समय समय पर इस प्रकार की कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए लोग आगे आते रहे हैं इनमें प्रथम नाम राजा राम मोहन रॉय का है जिन्होंने सती प्रथा के ख़िलाफ़ न केवल अपनी आवाज को बुलंद किया बल्कि इस जन मानस तक को जोड़ दिया जिसका परिणाम भी सबके सामने है कि भारत वर्ष से सती प्रथा अब लुप्तप्राय हो गई। राजा राम मोहन रॉय ने केवल सती प्रथा का ही विरोध नहीं किया वरन विधवा विवाह पर भी बहुत कार्य किया । आज पूरा भारतीय समाज उनका ऋणी है । ऐसा ही कोई आन्दोलन मुस्लिम समुदाय से क्यों नहीं निकलता ताकि मुस्लिम महिलाओं को गुलामी से आजादी मिले वे भी मुख्यधारा से अपने आप को जोड़ सके ,अपने बच्चों को पढाई लिखाई पर ध्यान दे सकें उनको अपने पैरों पर खड़े होने में संबल प्रदान कर सके । आतंकवाद के विरोध मुस्लिम समाज द्वारा  आन्दोलन क्यों नहीं किये जाते, मुस्लिम महिलाओं को तलाक/हलाला के भंवर जाल से मुक्ति के लिए कोई आन्दोलन क्यों नहीं निकलता,क्यों नहीं इस्लामिक विद्वान देश में बढती जनसँख्या पर रोक लगाने के लिए आगे आते। ये सब कार्य हो सकते हैं अगर हमारे दिल साफ़ हों, हम वास्तव में सबको एक नजर से देखने का नज़रिया रखना शुरू करें तो कुछ भी असम्भव नहीं। बस ज़रूरत है तो शुद्ध और व्यापक सोच की ।
                                                                                                (courtesy IT)

                                                                   -प्रदीप भट्ट-

                                 Satarday, November 25, 2017

Wednesday, 22 November 2017

आ बैल मुझे मार यानि किंम जोंग उन




“आ बैल मुझे मार यानि किम जोंग



पिछले कुछ दिनों से नार्थ कोरिया के शासक किम जोंग और अमेरिका के राष्ट्रपति के मध्य ज़बानी युद्ध चल रहा है दोनों ही एक दूसरे को जी खोलकर अच्छे अच्छे विशेषणों से अनुग्रहित कर रहे हैं ये समझना थोडा कठिन है कि कौन ज्यादा अच्छा और सटीक विशेषण दे एक दूसरे को दे रहा है। किम जोंग जहाँ अमेरिका की दादागिरी को खुले आम चुनौती दे रहे हैं वहीँ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प युद्ध न करने की रणनिति पर काम कर रहे हैं जो एक तरह से अच्छा और समझदारी भरा फ़ैसला समझा जा सकता है। उत्तर कोरिया जहाँ अमेरिका को अपने हाव भाव और नित नये न्यू-क्लियर  टेस्ट और मिसाइल टेस्ट से धमकाने का प्रयास कर रहा है, उससे उसकी उद्दंडता का ही परिचय मिलता है। किम ज्योंग एक सनकी तानाशाह जैसा बर्ताव कर रहा है बिना इस बात की कल्पना किये कि अगर युद्ध गुआ तो इसके कितने ज्यादा दुष्परिणाम हो सकते हैं। ये ठीक है की हर व्यक्ति और देश को अपनी स्वतंत्रा की रक्षा करने का अधिकारी है किन्तु प्रश्न तो यही है कि उत्तरी कोरिया का जानी दुश्मन दक्षिण कोरिया और फ़िर जापान उसकी सीमा का अतिक्रमण तो कर नहीं रहे फ़िर क्यों वह अपनी मिसाइलों को कभी दक्षिण कोरिया और कभी जापान के ऊपर से उड़ा रहा है आख़िर वह अपनी इस हरकत से साबित क्या करना चाहता है?  मात्र अपनी सनक के कारण एक तानाशाह पूरे विश्व को तीसरे विश्व युद्ध की आग में क्यों झोंकना चाहता है। युद्ध से तो किसी समस्या का समाधान आज तक हुआ नहीं और फ़िर एक यक्ष प्रश्न यह भी है कि उत्तर कोरिया की समस्या क्या है ? जब कि वह स्वयं सबके लिए एक समस्या बना हुआ है ।

ईसा पूर्व में यहाँ कोर-यो वंश का राज्य होने के कारण इसका नाम कोरिया पड़ गया। कोरिया प्रायद्वीप को अनेक शताब्दियों तक चीन का ही एक राज्य समझा जाता था। 1776  में इसने जापान के साथ संधि-संपर्क स्थापित किया।1904-1905  में रूस-जापान के मध्य हुए युद्ध के बाद  इसे  जापान का संरक्षित क्षेत्र बना दिया गया। 22 अगस्त्‌ 1910 को यह जापान का अंग बना लिया गया 1894 से ये  जापानी  दबदबे में आ गया था। 1910 में जापान ने उसे अपना हिस्सा बना लिया। रूस-जापान के मध्य हुए युद्ध के  के दरम्यान ही संयुक्त राष्ट्र के सैनिक चीनी सीमा के पास पहुँचे, जिस कारण चीन भी खुल कर इस लड़ाई में कूद पड़ा। स्वंय सेवी बताते हुए उसने लाखों लड़ाके मैदान में उतार दिये जिस कारण  संयुक्त राष्ट्र सैनिकों को पीछे हटना पड़ा। तब मैकआर्थर ने राष्ट्रपति ट्रूमैन से कहा कि उन्हें चीन पर परमाणु बम  गिराने का अधिकार दिया जाये। ट्रूमैन यह हिम्मत नहीं जुटा पाये। ट्रूमैन की जगह जब आइजन्वर  राष्ट्रपति बने, तब उन्होंने युद्धविराम का निर्णय किया।इस तरह, 27 जुलाई 1953 को, कोरिया की सीमा पर के एक स्थान पानमुन्जोम में युद्धविराम का समझौता हुआ और लड़ाई रोक दी गई । दोनों देशों के मध्य आज भी युद्धविराम ही है, युद्ध-स्थिति का विधिवत अंत नहीं हुआ है।युद्धविराम होने तक 40 हज़ार संयुक्त राष्ट्र सैनिक, जिनमें कि 90 प्रतिशत अमेरिकी सैनिक थे मारे जा चुके थे। उत्तर कोरिया और उसके साथी देशों के संभवतः 10 लाख तक सैनिक मारे गये। मारे गये असैनिक नागरिकों की संख्या 20 लाख आँकी गई। आज भी कई हज़ार अमेरिकी सैनिक दक्षिण कोरिया में तैनात हैं, ताकि उत्तर कोरिया अचानक फिर कोई आक्रमण करने की जुर्रत न करे । इसके विपरित भारी आर्थिक कठिनाइयों और संभवतः आंशिक भुखमरी के बावजूद उत्तर कोरिया ने भी 12 लाख सैनिकों वाली सेना पाल रखी है।


1939 से 1945 तक चले दितीय विश्वयुद्ध  के समय जर्मनी  और जापान घनिष्ठ मित्र थे। युद्ध दोनो पानमुन्जोम के पास उत्तर कोरिया की भारी पराजय के साथ समाप्त हुआ। मुख्य विजेता शक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ ने कोरिया को जापान से छीन कर जर्मनी  की ही तरह इस पुरे प्रायद्वीप को दो भागों में विभाजित कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध  के समय जब जापान ने मित्र सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तब 1945 में याल्टा संधि  के अनुसार 38 उत्तरी अक्षांश रेखा के द्वारा कोरिया को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। उत्तरी भाग पर सोवियत संघ (अब रूस)  का और दक्षिणी भाग पर अमेरिका का अधिकार हो गया। इसके पश्चात्‌ अगस्त 1948 में दक्षिणी भाग में कोरिया गणतंत्र  का तथा सितंबर, 1948 में उत्तरी कोरिया में कोरियाई जनतंत्र (Korean Peoples Democratic Republic) की स्थापना हुई। दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल और नार्थ कोरिया की राजधानी पियांगयांग बनाई गई।
सन्‌ 1953 की पारस्परिक संधि के अनुसार 38 उत्तर अक्षांश को विभाजन रेखा मानकर इन्हें अब नार्थ कोरिया  जिसका क्षेत्रफल 1.21 वर्ग किलोमीटर है। तथा दक्षिणी कोरिया जिसका क्षेत्रफल 98 हजार  वर्ग किलोमीटर है के नाम से पुकारा जाता है।ये प्रायद्वीप पूर्वी एशिया में मुख्य स्थल से लगा हुआ एक छोटा सा प्रायद्वीप है जो पूर्व दिशा में जापान सागर एवं दक्षिण में ये पीत सागर से घिरा हुआ है। इसके उत्तरपश्चिम में मंचूरिया एवं उत्तर में इसकी रूस के साथ सीमाएं लगी हुई हैं।  उत्तर का हिस्सा रूस और चीन की पसंद के अनुसार एक कम्युनिस्ट देश बना और बोलचाल की भाषा में उत्तर कोरिया कहलाया। दक्षिण का हिस्सा अमेरिका और उसके मित्र देशों की इच्छानुसार एक पूँजीवादी देश बना और दक्षिण कोरिया कहलाया। चूँकि कोरिया के सम्बन्ध चीन एवं जापान से ज्यादा रहे अतएव इसे चोसेन के नाम से भी जाना जाता है। जिसका शाब्दिक अर्थ 'सुबह की ताज़गी का देश' (Land of morning freshness) है।कोरिया पर सैकड़ो बार बाहर के देशों द्वारा आक्रमण किया गया जिस कारण कोरिया ने राष्ट्रीय एकांतिकता की भावना अपनाना श्रेयस्कर समझा। इस कारण इसे विश्व में यती देश (Hermit Kingdom) भी कहा जाता रहा है। कोरिया मुख्यत: पवर्तीय देश है। रीढ़ की हड्डी के समान यहाँ की पर्वतश्रेणीयाँ पश्चिमी तट की अपेक्षा पूर्वी तट के अधिक निकट हैं। उत्तरपूर्व का पवर्तीय प्रदेश समुद्रतल से 2,670 मीटर ऊँचा है। पीत सागर  में गिरनेवाली नदियाँ जापान  की नदियों से बड़ी हैं और कुछ बहुत दूर तक, वशेषकर ज्वारभाटा  के समय में नौगम्य हैं।उसमें कहीं कहीं ज्वालामुखी  शिखर भी हैं। पश्चिमी तटवर्ती भाग मैदानी हैं। इसमें बहनेवाली मुख्य नदियाँ ताईयोंग, हार्न, क्यूम और नाकतोंग हैं।

किम जोंग जो कि इस समय उत्तरी कोरिया का शासक है, का जन्म 8 जनवरी 1983 को किम जोंग उल के यहाँ हुआ तीन भाइयों में किम जोंग बीच का है ।किम के  दादा का नाम किम सुंग है जिनकी मृयु 1994 में हुई। किम जोंग बचपन से ही अपने दादा से प्रभावित  रहा है और वह उनके जैसा ही बनना भी चाहता है इसी कारण उसने प्लास्टिक सर्जरी के माध्यम से अपनी शक्ल को अपने दादा के अनुरुप देने का यत्न भी किया है। अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उसने 28 दिसम्बर 2011 को अपने आपको तानाशाह घोषित तक कर दिया और उसकी आधिकारिक घोषणा भी कर दी।
आख़िर किम जोंग इतना निर्दय क्यों है कि वो छोटी छोटी बातों पर भी अपने सगे सम्बन्धियों को मौत के घाट उतार देता है। अपने सगे फूफा को 100 से भी ज्यादा भूखे कुत्तों के सामने फ़ेंक दिया  ताकि उनके दुश्मन इससे सबक़ ले सके  और अपनी सगी बुआ को जहर देकर मरवा दिया गया। अपनी सरकार के शिक्षा मंत्री री ओंग जिन और कृषि मंत्री हंग मं को महज इसलिए एंटी एयरक्राफ्ट गन से भुनवा डाला क्यों की दोनों सी उसकी सभा में सो रहे थे । उसकी निर्दयता का इससे ज्यादा सबूत और क्या होगा कि उसने अपनी गर्लफ्रेंड को भी इसलिए पूरे ग्रुप सहित मरवा दिया क्यों कि वह ग्रुप पोर्न फिल्म बनवा रहा था जब कि वह स्वंय बचपन से इस पोर्न फिल्म देखने का आदि रहा है। किम जोंग ने सोल जू जो कि एक चिअर लेडी और सिंगर रह चुकी है से शादी की है।
जिस तरह अमेरिका का धीरे धीरे धैर्य चुक रहा है हो सकता है अमेरिका ओसामा बिन लादेन के तरह कोई गुप्त कार्रवाई कर डाले जिससे सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। क्यों कि अगर अमेरिका और उत्तर कोरिया के मध्य युद्ध हुआ तो इसकी जद में सिर्फ़ ये दोनों देश नहीं रहने वाले निश्चित ही इसका असर पूरे विश्व पर पड़ना लाज़िमी है ।क्यों कि बहुत सारी वजहों से रूस और चीन नार्थ कोरिया से बंधे हुए हैं वहीँ अमेरिका जापान और दक्षिण कोरिया की संप्रभुता की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। ईश्वर से प्रार्थना ही की जा सकती है कि किम ज़ोंग को जल्द से जल्द सदबुद्धि आ जाए ताकि उसकी सनक के कारण नार्थ कोरिया की आम जनता युद्ध की विभीषिका से बची रहे।


                                         -प्रदीप भट्ट-
                                 Wednesday, November 22, 2017

Saturday, 4 November 2017

कमल का कमाल या गोलमाल





“कमल का कमाल”  या
“गोलमाल”

कमल कीचड़ में ही खिलता है ?
और 

तिमिर पर प्रकाश का ही राज होता है ?
लोग अपनी महत्त्वकांशाओं को अमली जामा पहनाने को लेकर इतने सजग हैं कि वे ये भी नहीं देखना चाहते कि इसके दुष्परिणाम क्या क्या हो सकते हैं ऐसे लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी अपनी अति महत्त्वकांशाओं के मारे हुए होते हैं इसका जीता जागता उदाहरण कुछ दिनों पूर्व दक्षिण के अभिनेता प्रकाश राज के द्वारा 5 सितम्बर -2017 को 55 वर्ष की गौरी लंकेश की हत्या पर दिए गए बयान  कि  प्रधानमंत्री मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी उनसे भी बड़े अभिनेता हैं एवम दोनों ही ने गौरी लंकेश की हत्या पर अपनी अपनी आँखे बंद की हुई हैं प्रकाश राज के इस बयान पर लखनऊ में उनके विरुद्ध एक मुकदमा दर्ज हो गया है

अभी ये सब कहानी चल ही रही थी के परसों ही दक्षिण के ही नामचीन अभिनेता कमल हासन ने तमिल पत्रिका आनंद विकटनके हालिया अंक में अपने स्तंभ में आरोप लगाया कि दक्षिण पंथी संगठनों ने अपने रुख में बदलाव किया है, वे पहले के मुक़ाबले तर्क को तरजीह न देकर हिंसा का रास्ता अपना रहे हैं जो ग़लत है तमिल पत्रिका को दिए गए एक साक्षात्कार में कमल ने किसी भी हिंदू संगठन का नाम तो नहीं लिया अलबत्ता उन्होंने “हिंदू आतंकवाद” कहकर एक तरह से भारतीय राजनीती में एक नया शिगूफा छोड़ दिया। इससे पूर्व तमिल फिल्म अभिनेता ने लिखा, ‘चरमपंथ किसी भी तरीके से उनके लिये सफलता या विकास का मानक नहीं हो सकता जो खुद को हिंदू कहते हैं हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से मुलाकात करने वाले हासन ने मार्क्सवादी नेता द्वारा उठाये गये उस सवाल का जवाब भी दिया जिसमें उन्होंने पूछा था कि अभिनेता हिंदूवादी ताकतों द्वारा धीमी घुसपैठ के जरिये द्रविड संस्कृति को कमजोर करने के बारे में क्या सोचते हैं विजयन ने कहा हाल के समय में हम देख सकते हैं कि नस्ली भेदभाव और प्रतिक्रियावाद तमिलनाडु में अपने पांव जमाने की कोशिश कर रहा हैअभिनेता ने जवाब दिया कि सत्य की जीत होने के विश्वास का दरकना और ताकत सफल हो जायेगी और हम सबको बर्बर बना देगीएक वक्त दार्शनिक अंदाज में हासन ने कहा, ‘परिवर्तन अपरिवर्तनीय है

हिंदू आतंक पर बयान देने के मामले में अभिनेता कमल हासन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500, 511, 298, 295 (ए) और 505 (सी) के तहत मामला दर्ज किया गया है. वाराणसी की एक अदालत अभिनेता कमल हासन के खिलाफ हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को कथित रूप से आहत करने वाली टिप्पणी के खिलाफ एक शिकायत पर सुनवाई आज यानि शनिवार (4 नवंबर) को होगी अर्जी दाखिल करने वाले वकील कमलेश चंद्र त्रिपाठी ने शुक्रवार (3 नवंबर) को बताया कि अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) की अदालत ने शिकायत पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है अधिवक्ता कमलेश ने वाराणसी न्यायालय के एसीजेएम की अदालत में एक याचिका दायर कर के कमल हासन के ऊपर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया है।आख़िर कमल हासन को इस सब की क्या ज़रूरत थी । कमल दक्षिण के सुपर स्टार हैं और कुछ हद तक वे हिंदी फिल्मों में भी सफल रहे हैं फ़िर ऐसी क्या ज़रूरत आ पड़ी की उन्हें इस तरह का बयान देना पड़ा। चलिए पहले कुछ कमल हासन के विषय में जान लेते हैं।


जब कमल हासन जो कि एक भारतीय फिल्म अभिनेता हैं कुछ ऐसा कहे जिससे पूरे देश में भूचाल आ जाये तो यह सोचने का विषय है कि वे ऐसा क्यों कह रहे रहें हैं।  अभिनय और निर्देशन के अलावा, वह एक पटकथा लेखक, गीतकार, पार्श्व गायक और कोरियोग्राफर भी हैं उनका जन्म 7 नवम्बर 1954 को परमकुडी, मद्रास जिसे अब चेन्नई के नाम से जाना जाता है  में हुआ वर्ष 1978 में कमल हासन ने वाणी गणपतिसे विवाह कर लिया, किंतु दस साल बाद ही 1988 में इन दोनों का रिश्ता टूट गया इसके बाद कमल हासन ने सारिका से शादी कर ली वाणी गणपति से जहाँ श्रुति हासन है वहीँ सारिका से अक्षरा हासन साल 2004 में कमल हासन और सारिका ने तलाक ले लिया कमल हासन ने अपने सिने करियर की शुरुआत बतौर बाल कलाकार 1960 में प्रदर्शित फ़िल्म कलाधुर कमन्नासे की वर्ष 1975 में प्रदर्शित फ़िल्म अपूर्वा रंगनागलमें मुख्य अभिनेता के रूप में निभाए गए किरदार से उन्हें पहचान मिली  1977 में प्रदर्शित फ़िल्म ’16 भयानिथानिलेकी व्यावसायिक सफलता के बाद कमल हासन स्टार कलाकार बन गए. निर्माता एल.वी. प्रसाद की फ़िल्म एक दूजे के लिएमें अभिनय किया फ़िल्म में कमल हासन ने अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया 1982 कमल हसन की एक और सुपरहिट तमिल फ़िल्म मुंदरम पिरईरिलीज़ हुई, 1985 में कमल हासन रमेश सिप्पी के फिल्म सागरमें ऋषि कपूर और डिंपल कपाडिया के साथ नज़र आये 1985 में कमल हासन की एक और सुपरहिट फ़िल्म गिरफ़्तारप्रदर्शित हुई, जिसमें उन्हें सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का उन्हें मौका मिला वर्ष 1983 में सदमा शीर्षक से यह फिल्म हिंदी में रिलीज हुई जिसके कई दृश्य में कमल हसन ने एक ऐसे युवक कि भूमिका निभाई, जो एक युवती कि याददाश्त खो जाने के बाद उसे सहारा देता है और बाद में उससे प्यार करने लगता है, लेकिन बाद में जब युवती कि याददाश्त लौट कर आ जाती है तो वह उसे भूल जाती है और इस सदमें को कमल हसन सहन नहीं कर पाते हैं और पागल हो जाते हैं. हालांकि फिल्म टिकट खिड़की पर असफल हुई, लेकिन सिने दर्शक आज भी ऐसा मानते हैं कि कमल हसन के सिने कैरियर कि यह सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है पुरस्कारों की दृष्टि से पद्मश्री धारक कमल हासन, भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे अधिक सम्मानित अभिनेता हैं। उनके नाम सर्वाधिक राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार तथा सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार पाने वाले अभिनेता होने का रिकॉर्ड दर्ज है। इसके अतिरिक्त कमल हासन, पांच भाषाओं में रिकॉर्ड फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार धारक हैं और उन्होंने 2000 में नवीनतम पुरस्कार के बाद संगठन से ख़ुद को पुरस्कारों से मुक्त रखने का आग्रह किया।

चूँकि कमल हासन की पीछले कुछ वर्षो में बनाई गई फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर अपना कमाल नहीं दिखा पा रहीं थी तो उन्होंने सोचा क्यों न राजनीती में अपने मुकद्दर को आजमाया जाए और उन्होंने पहले डेल्ही के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से मुलाकात की फ़िर कुछ अन्य नेताओं से इन्हीं नेताओं में से केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन से मुलाकात के दौरान वो यह कहना नहीं भूले कि केरल में राज्य सरकार अच्छा कार्य कर रहीं है जब वास्तविक स्थिति इसके बिलकुल विपरीत हैकेरल में लव जिहाद अपने पांव जमा चुका है जिस पर देश का सर्वोच्च न्यायलय अपनी चिंता व्यक्त कर चुका है और इसकी जाँच राष्ट्रीय जाँच एजेंसी से कराने  की सिफारिश भी कर चुका है इसके अतिरित्क जिस प्रकार केरल में हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई जा रही है और हिंदू नेताओं की  बर्बर तरीके से हत्या की जा रही है वह चिंताजनक है किन्तु कमल हासन को वहां सब कुछ अच्छा दिखाई दे रहा है तो वह कैसे?



          पिछले ही वर्ष जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय में जिस प्रकार भारत विरोधी नारे लगाये गए क्या कमल उन्हें भी सहीं ठहराना चाहते हैं आख़िर सिर्फ़ राजनीती में अपना भविष्य ढूंढने को लेकर उत्साहित कमल हासन किसी भी हद तक जा सकते हैं। स्वंय हिंदू होकर वे हिंदू धर्म को नहीं समझ पाए तो वे औरों को क्या समझा पाएंगे। आख़िर कोई व्यक्ति इतना नीचे कैसे गिर सकता है। देश से बड़ा तो कुछ भी नहीं है।फ़िल्मी बातें और वास्तविकता में इतना गहरा और काला अंतर कैसे हो सकता है। ये किसी भी व्यक्ति या किसी भी समाज के लिए अच्छा नहीं हो सकता। हमें ऐसी बीमार मानसिकता वाले लोगों की ज़रूरत नहीं है जो अपने स्वार्थ के लिए पाताल से भी नीचे गिर जायें। ऐसे वहशी और चालक लोगों की सज़ा उनके कद को छोटा करने से ही पूरी हो जाएगी। लेकिन  दक्षिण के लोग तो भावुकता में मुर्खता में सर्वश्रेष्ठ साबित होते हैं। नेताओं और अभिनेताओं के मंदिर बनवाना ये निपट मुर्खता ही है इनकी एक आवाज पर आपराधिक कृत्य करना और अपनी जान तक दे देना यही दक्षिण की परिणिति रही है।



 
         
                                                           -प्रदीप भट्ट-
                                 Satarday 04,November-2017