Wednesday, 22 November 2023

विश्व कप अपनी जगह है साहित्यिक पैशन अपनी जगह

रिपोततार्ज़ 

"विश्व कप फ़ाइनल अपनी जगह 🌹
साहित्यिक पैशन अपनी जगह"❤️❤️❤️

लगभग 18-20 बरस के बाद रविवार 19 नवंबर को मैं प्रैस क्लब ऑफ़ इंडिया में एक कवि सम्मेलन में आमंत्रित था।  जुलाई 2006 में दिल्ली छोड़कर मुंबई की नमकीन हवा में लगभग 12 बरस गुजारे फ़िर लगभग साढ़े चार बरस तेलांगना के ख़ूबसूरत शहर हैदराबाद में गुज़रे। लेकिन दिल्ली को न मैंने छोड़ा न ही दिल्ली ने मुझे। यही तो असली आशिक़ी है हुज़ूर 😊

ख़ैर दिल्ली में सर्विस के दौरान न जाने कितनी बार प्रैस क्लब आना हुआ लेकिन कारण हमेशा अलहदा ही रहे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी यहाँ कविता पाठ भी करूँगा वो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्मोत्सव पर !निश्चित रूप से इसके लिए आदरणीय सुरेश नीरव जी का धन्यवाद। गौड़ सिटी के गौड़ साहब मुख्य अतिथि आमंत्रित थे। संजय जैन, राजेश प्रभाकर,  प्रिय राजेश श्रीवास्तव , पूजा भारद्वाज पूजा श्रीवास्तव,शोभा सच्चन, निशा भार्गव राघव एवम् मधु मिश्रा जी। सभी एक से बढ़कर एक ने अपनी कविताओं से महफ़िल में समा बाँध दिया।  मैंने भी अपना एक गीत प्रस्तुत किया। 

"मैं योद्धा हूँ" 

मैं सत्ता शीर्ष से भिड़ने चली हूँ 
अकेली हूँ मग़र लड़ने चली हूँ 
है किसमें ताब मेरा रस्ता रोके 
खड्ग मैं हाथ लेकर चल पड़ी हूँ 

अरि बलशाली हो मेरी बला से 
भरोसा ख़ुद पे मुझको करना आए
ग़लत फ़हमी अगरचे हो किसी को
मेरे वो वार से बचकर दिखाए

किसी के सामने झुक जाऊँ ऐसा 
तुम्हें लगता पटाखे की लड़ी हूँ 


लहू का रंग सबका एक सा पर 
गति बतला ही देती वीर योद्धा 
जो भृकुटि तान कर रण में खड़ा हो 
वही तो असलियत में है पुरोधा

मेरी तलवार ही अब तय करेगी 
मैं अग्नि गोला या फ़िर फुलझड़ी हूँ 


किसी से भी कभी डरना न सीखा 
नहीं भाता है मीठा भाता तीखा 
हमें दस्तार अपनी जाँ से प्यारी
नहीं कमज़ोर है भारत की नारी 

कि मैं शमशीर दोधारी हूँ जानो
नहीं लकड़ी की समझो मैं छड़ी हूँ

करो कुछ भी मग़र ये ध्यान रखना 
कि तुम ख़ुद पे सदा अभिमान रखना
अगरचे काल तेरे सामने हो 
तो तुम बेख़ौफ़ हो सवाल करना

कि मैं अग्नि शिखा हूँ जान जाओ 
नहीं बरसात की कोई झड़ी हूँ 


कभी कोई अगरचे तुमको छेड़े
करो निश्चित कि खाए वो थपेड़े
झुको न ख़ुद झुकाओ तुम किसी को 
कभी तक़लीफ़ दो न तुम किसी को 

अगर तुम सारथी हो सत्य के तो 
कि मैं माणिक्य की समझो मणि हूँ 

 
मैं नारी हूँ मग़र नर मुंड पहनूँ 
मैं अपने माथ पे त्रिपुंड पहनूँ 
मेरे नयनों से अंगारे बरसते 
अरि करुणा को मेरी हैं तरसते 

मुझे तुम दुश्मनों का काल समझो 
मैं बन के जीत माथे पर जड़ी हूँ 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट -25:08:2023

विश्व कप का फ़ाइनल मैच अपनी जगह और साहित्यिक पैशन अपनी जगह। एक अच्छे कार्यक्रम के लिए सभी को बधाई। 
फ़िर मिलेंगे दोस्तों 🤗🤗🤗🤗
प्रदीप DSभट्ट-22112023

Friday, 17 November 2023

"ख़ाली जाती सदा नहीं"

ग़ज़ल

     "ख़ाली जाती सदा नहीं"


अँखियाँ ताक रही दरवज्ज़ा,  कब आओगे पता नहीं
जितना चाहो तड़पा लो तुम,फ़िर भी तुमसे ग़िला नहीं 

तुमसे करी मुहब्बत हमने, बिन सोचे और समझे भी
माना इक तरफा है इसमें, दिल की कोई ख़ता नहीं 

आज नहीं तो कल ये तेरे, दिल से जा टकरायेगी 
दिल की बातें दिल ही समझे, ख़ाली जाती सदा नहीं 

कितना समझाया सखियों ने, लेकिन मन चंचल निकला 
प्यार किया तो दिल में रखना, कभी किसी को बता नहीं

माना तुम बेदिल हो लेकिन, बात मेरी सुन लेनी थी 
छोड़ भरे सावन जाना कोई, देता ऐसा सिला नहीं

तुम्हीं कहो मैं और प्रतीक्षा, करूँ तुम्हारी कब तक यूँ 
इस व्यवहार से फ़िर भी देखो, दिल मेरा जी जला नहीं 

बीत रहे दिन इक इक करके, चिट्ठी न कोई संदेशा  
'दीप' तुम्हीं सोचो मुझको क्यूँ, अब तक भी ये खला नहीं 

प्रदीप DS भट्ट -181123

"मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी "

          
             " मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी"
मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी, लेकिन मुझमें श्वाँस है 
तू भी एक दिन बोल पड़ेगी, मुझको ये विश्वास है

तन की सुंदरता सब देखें, मन में झाँक के देखे कौन
इसलिए ऐसे लोगों का, होता निश दिन ह्रास है 

ग़लत नहीं कुछ किया अगरचे, फ़िर क्यूँ डरना लोगों से
त्रास भी मिलता जीवन में,कभी मिलता जी परिहास है

दरिया की मौजे जब तेरे, पैरों को टच करती हैं 
तुझको देख के लगता लेती, तू गहरी उच्छ्वास है 

नहीं मुस्व्विर हूँ मैं माना,कोशिश में कुछ हर्ज़ नहीं 
देख तुझे अब लगता जैसे, रचना आसम पास है 

भाग्य बदा वो होकर रहता,करो जतन तुम कितने भी
जब तक प्राण बसे हैं तन में,तब तक मन में आस है 

कुछ तो अलग करो जिससे कि,दुनियाँ तुमको याद करे
वरना 'दीप' कहाँ बनता जी,कभी किसी का ख़ास है 

-प्रदीप DS भट्ट -151123

Saturday, 4 November 2023

मज़ा जीने का तुम जो चाहो

रिपोतार्ज

मज़ा जीने का तुम जो चाहो तो दून चले आओ जी दून चले आओ


मज़ा जीने का गर जो चाहो तो अंदर चले आओ जी अंदर चले आओ। ये फिल्म का गाना है जो आज यूं ही याद आ गया तो मैंने इसे कुछ यूं कर दिया मज़ा जीने का तुम जो चाहो दून चले आओ जी दून चले आओ। कारण बना अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका प्रज्ञान विश्वम के पांचवे अंक के लोकार्पण का जो की देहरादून के सुभाष सैनी जी पर केंद्रित था। आदरणीय नीरव जी ने सूचना दी कि ये प्रज्ञान विश्वम का विषेष अंक सुभाष सैनी जी पर है आप लोकार्पण का हिस्सा बनने के लिए तैय्यार रहिए। दो तीन दिन के बाद अग्रज सैनी जी का फ़ोन आ गया कि आपको आना ही पड़ेगा, अब अग्रज के आदेश को टालने की हिम्मत कौन करेगा। हमने सहर्ष अपनी सहमति प्रदान कर दी। 🙏🏾

हमारे अतिरिक्त गुरुग्राम हरियाणा से निगम दम्पत्ति ,( राजेंद्र निगम एवम इंदु निगम जी) एवम राजेश प्रभाकर भी लोकार्पण का हिस्सा बनने के लिए देहरादून पहुंच रहे थे । सो 29 अक्तूबर को हम भी पहुंच गए देहरादून पिछले 43 बरस की यादों को संजोए। सैनी जी ने होटल हिल व्यू में रहने की व्यवस्था की हुई थी। लगभग 2 बजे होटल पहुंचा तो राजेश प्रभाकर पहले ही वहां विराजे मिले। नमस्कार चमत्कार, (बस यूं ही लिख दिया चमत्कार होना भी क्या था) राजेश जी ने कहा पहले खाना खा लें, मैं तो खा चुका हूं मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा आज दिन के खाने की छुट्टी। सैनी जी ने प्रोग्राम के बाद घर पर डिनर  रक्खा हुआ है सो......🤝

उत्तराखंड के शिक्षा विभाग के सहस्र धारा स्थित डायट के सभागार में नियत समय पर कार्यक्रम शुरु हो गया। मै स्वयं समय का पाबंद हूं इसलिए मुझे नीरव जी की यही बात पसंद आती है कि वे सामान्यत कार्यक्रम समय से शुरु कर देते हैं । यहां भी ऐसा ही हुआ। टैक्सी ड्राइवर ने होटल से डायट पहुंचने में कुछ ज्यादा ही समय लिया ख़ैर फिर भी हम 3.50 पर पहुंच गए। अध्यक्षता एम एम घिड़ल्याल जी ने की।दीप प्रज्ज्वल के पश्चात् सुमन सैनी जी द्वारा सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। थोड़ी देर बाद ही वह शुभ समय आ गया जब प्रज्ञान विश्वम के विषेष अंक का लोकार्पण समृद्ध मंच द्वारा सम्पूर्ण हुआ। उसके बाद आदरणीय नीरव जी के सधे हुए संचालन में कविता पाठ प्रारम्भ हुआ। एक से बढ़कर एक कवि कोई श्रृंगार पर पढ़ रहा था तो कोई व्यंग्य पर कोई ओज पर तो कोई हास्य पर। कुल मिलाकर बेहद उम्दा कवि सम्मेलन संपन्न हुआ। मैंने भी अपनी एक रचना प्रस्तुत की।

नमक दरिया में थोड़ा सा मिला दूं
मैं अपनी आंख का आंसू गिरा दूं
     के अतिरिक्त

पानी ऊपर पानी लिक्खूं या फिर कोई कहानी लिकखूं 
ख़ुद को बतलाऊँ मैं राजा और तुम्हें क्या रानी लिक्खूं 

प्रोग्राम के बाद सैनी जी के घर जमी महफ़िल ने पुराने दिनों की याद ताज़ा कर दी जब रात में देर तलक कवि गोष्ठी में ऊंघते रहते थे लेकिन बैठे रहते थे क्या पता अपना नंबर आने वाला हो और हमें सोता समझकर कोई दूसरा अपनी कविता न चेप दे। ब्राह्मण को यदि बढ़िया खाना खाने को मिल जाए तो बल्ले बल्ले। रात बारह बजे होटल वापिसी। सुबह सात बजे सहस्र धारा पहुंच गए फिर से यादें ताज़ा करने। लेकिन 20=22 बरस पहले की अपेक्षा सहस्र धारा थोड़ा नहीं काफ़ी बदल गया हमने एक को रोककर पूछा तो बोला हुज़ूर ये सब चेंच 2014 के बाद ही आया चिकनी चिकनी 🛣️ सड़के इलैक्ट्रिक बस electrik 🚌 वगैरह फिर जय श्री राम कहते हुए निकल लिया भाई। हमने भी जय श्री राम बोलते हुए सहस्र धारा में नहाने का लुत्फ उठाया फिर वापिस होटल। नाश्ते के बाद सामान समेटा और राजेश जी को एयरपोर्ट रवाना कर हम भी प्रेमनगर पहुुंच गए। 1 नवंबर की सुबह 5 बजे की ट्रेन छुट गई सो बस से वापिस मेरठ सुनहरी यादों के संग।

एक अच्छे और सुनियोजित कार्यक्रम के लिए नीरव जी सैनी जी को हार्दिक शुभेच्छा ।
सैनी जी बेहतरीन आवभगत के लिए हृदय से धन्यवाद।


प्रदीप DS भट्ट 41123