"विश्व कप फ़ाइनल अपनी जगह 🌹
साहित्यिक पैशन अपनी जगह"❤️❤️❤️
लगभग 18-20 बरस के बाद रविवार 19 नवंबर को मैं प्रैस क्लब ऑफ़ इंडिया में एक कवि सम्मेलन में आमंत्रित था। जुलाई 2006 में दिल्ली छोड़कर मुंबई की नमकीन हवा में लगभग 12 बरस गुजारे फ़िर लगभग साढ़े चार बरस तेलांगना के ख़ूबसूरत शहर हैदराबाद में गुज़रे। लेकिन दिल्ली को न मैंने छोड़ा न ही दिल्ली ने मुझे। यही तो असली आशिक़ी है हुज़ूर 😊
ख़ैर दिल्ली में सर्विस के दौरान न जाने कितनी बार प्रैस क्लब आना हुआ लेकिन कारण हमेशा अलहदा ही रहे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी यहाँ कविता पाठ भी करूँगा वो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्मोत्सव पर !निश्चित रूप से इसके लिए आदरणीय सुरेश नीरव जी का धन्यवाद। गौड़ सिटी के गौड़ साहब मुख्य अतिथि आमंत्रित थे। संजय जैन, राजेश प्रभाकर, प्रिय राजेश श्रीवास्तव , पूजा भारद्वाज पूजा श्रीवास्तव,शोभा सच्चन, निशा भार्गव राघव एवम् मधु मिश्रा जी। सभी एक से बढ़कर एक ने अपनी कविताओं से महफ़िल में समा बाँध दिया। मैंने भी अपना एक गीत प्रस्तुत किया।
"मैं योद्धा हूँ"
मैं सत्ता शीर्ष से भिड़ने चली हूँ
अकेली हूँ मग़र लड़ने चली हूँ
है किसमें ताब मेरा रस्ता रोके
खड्ग मैं हाथ लेकर चल पड़ी हूँ
अरि बलशाली हो मेरी बला से
भरोसा ख़ुद पे मुझको करना आए
ग़लत फ़हमी अगरचे हो किसी को
मेरे वो वार से बचकर दिखाए
किसी के सामने झुक जाऊँ ऐसा
तुम्हें लगता पटाखे की लड़ी हूँ
लहू का रंग सबका एक सा पर
गति बतला ही देती वीर योद्धा
जो भृकुटि तान कर रण में खड़ा हो
वही तो असलियत में है पुरोधा
मेरी तलवार ही अब तय करेगी
मैं अग्नि गोला या फ़िर फुलझड़ी हूँ
किसी से भी कभी डरना न सीखा
नहीं भाता है मीठा भाता तीखा
हमें दस्तार अपनी जाँ से प्यारी
नहीं कमज़ोर है भारत की नारी
कि मैं शमशीर दोधारी हूँ जानो
नहीं लकड़ी की समझो मैं छड़ी हूँ
करो कुछ भी मग़र ये ध्यान रखना
कि तुम ख़ुद पे सदा अभिमान रखना
अगरचे काल तेरे सामने हो
तो तुम बेख़ौफ़ हो सवाल करना
कि मैं अग्नि शिखा हूँ जान जाओ
नहीं बरसात की कोई झड़ी हूँ
कभी कोई अगरचे तुमको छेड़े
करो निश्चित कि खाए वो थपेड़े
झुको न ख़ुद झुकाओ तुम किसी को
कभी तक़लीफ़ दो न तुम किसी को
अगर तुम सारथी हो सत्य के तो
कि मैं माणिक्य की समझो मणि हूँ
मैं नारी हूँ मग़र नर मुंड पहनूँ
मैं अपने माथ पे त्रिपुंड पहनूँ
मेरे नयनों से अंगारे बरसते
अरि करुणा को मेरी हैं तरसते
मुझे तुम दुश्मनों का काल समझो
मैं बन के जीत माथे पर जड़ी हूँ
-प्रदीप देवीशरण भट्ट -25:08:2023
विश्व कप का फ़ाइनल मैच अपनी जगह और साहित्यिक पैशन अपनी जगह। एक अच्छे कार्यक्रम के लिए सभी को बधाई।
फ़िर मिलेंगे दोस्तों 🤗🤗🤗🤗
प्रदीप DSभट्ट-22112023