Tuesday, 14 May 2024

"तौबा तौबा ऐसे वैन्यू से"

रिपोतार्ज 

     "तौबा तौबा ऐसे वैन्यू से"

         शनिवार 11 मई को अंतर्राष्ट्रीय काव्य मंच का आमंत्रण मिला जो कि नई दिल्ली म्यूनिस्पिल कॉर्पोरेशन के कन्वेंशन हॉल में वो भी सुबह 10 बजे से 5 या 6 सायं तक और फिर शाम 4 बजे से गालिब अकादमी के कार्यक्रम में उपस्थिति भी दर्ज़ करनी थीं। सो भैय्या दिल्ली लोकल में कार्यक्रम स्थल तक पहुंचने में ही पसीने छूट जाते हैं फिर भैय्या मेरठ से और वो भी मेरठ के दूसरे छोर से🥹 लेकिन लेकिन लेकिन कमिटमेंट है तो है कह दिया हाज़िर होंगे तो फिर होना ही है।टाइम मैनेजमेंट में हो हम "सुनील बाबू की तरह ही बढ़िया है" 🤝तो भईया लगा दिया 5:04 का ⏰ अलार्म। उठे, तैय्यार हुए स्कूटी उठाई और 06:55 बस स्टैंड पर स्कूटी जमा की, हाइवे वाली बस पकड़ी और 08:40 आनंद विहार 🚇 मेट्रो पकड़ी और ठीक 09:10 कनॉट प्लेस ( आज भी राजीव चौक मुंह से निकलता ही नहीं, वैसे भी कनॉट प्लेस के लिए राजीव गांधी या इंदिरा गांधी का क्या योगदान है, कुछ भी तो नहीं फिर तख्ती बदलने से ही क्या होगा) दिल्ली में रहते हुए कभी एनडीएमसी बिल्डिंग नहीं गया (काम ही नहीं पड़ा) 🙃 रिवोली सिनेमा के पीछे से होते हुए होटल पार्क को हाय हेलो कहते हुए ठीक 09:20 पर गेट नंबर 3 स्थित कन्वेंशन हॉल जा पहुंचे। इसी बीच मित्र संतोष संप्रिति से मुबलिया से भी टच में रहे।

         हॉल में प्रवेश करते ही कुछ जाने पहचाने कुछ अंजाने चेहरों ने स्वागत किया। 😊डॉक्टर ममता सैनी डॉक्टर रमा सिंह दीदी से राम राम हुई फिर कुछ अन्य मित्रों ने जो फेसबुक पर मुझसे जुड़े हुए हैं ने बड़ी आत्मियता से हाय हेलो की सच कहूं एक मोहतरमा के अतिरिक्त मैं किसी को पहचान नहीं पाया। 👏मैंने ईमानदारी से उन सभी से ये बात साझा करने में कोई कोताही नहीं बरती। अच्छा ये लगा जब सभी ने इसे अन्यथा में नहीं लिया वरन हाथ जोड़ते हुए कहा सर फ़ेसबुक पर इतने सारे मित्र गण हैं सभी को पहचानने में तकलीफ़ तो होगी ही। अभी बात चल ही रही थी तभी एक और सज्जन ने प्यार से गले लगा लिया बोले भट्ट साहब कितने दिनों बाद मुलाकात हुईं है। शक्ल पहचान गया किन्तु नाम.... जय श्रीराम तभी बोले अरे भट्ट साहब भोपाल में मिले थे और लीजिए एक दम मुंह से निकला विजय बागड़ी जी। बस यूं ही मिलते मिलाते ब्रेकफस्ट 🥞 किया और साढ़े दस बजे अपनी सीट पकड़ ली। मुख्य अतिथि आर एस एस के इंद्रेश जी, अपनी चार लाइनों से प्रसिद्धि पा चुके सुरेंद शर्मा जी मंच की शोभा बढ़ा रहे थे। विश्व कीर्तिमान से अलंकृत "भारत को जाने" ग्रंथ का भव्य लोकार्पण इस कार्यक्रम की विशिष्टता रही। सोने पे सुहागा था आदरणीय इंद्रेश जी का संबोधन। सपना सक्सेना द्वारा प्रस्तुत स्वरचित सरस्वती वंदना बेहद उम्दा रही। राँची से रजनी शर्मा को देखकर लगा कहीं देखा है बाद में पता चला हम दोनों ही साहित्योदय मंच से जुड़े हुए हैं।🤝 चूंकि शाम को गालिब अकादमी के कार्यक्रम में पहुंचना था सो डॉक्टर ममता सैनी जी से इजाज़त ली और चल पड़े निजामुद्दीन स्थित गालिब एकेडमी।

         मैं संतोष संप्रिती, रजनी शर्मा और एक स्टूडेंट नाम शायद नीटू किसी एक ऑटो में किसी तरह ठुसकर बैठ गए। संतोष जी ने चालक के बाजू में सीट पर कब्ज़ा करते हुए ऑटो चालक को आश्वत किया कि पुलिस रोकेगी तो साहब भुगत लेंगे। 😹मरता क्या न करता कि तर्ज़ पर ऑटो वाले ने निजामुद्दीन छोड़ा। निजामुद्दीन की तंग गलियों से गुजरते हुए बेसाख्ता पुरानी दिल्ली लखनऊ हैदराबाद और साउथ मुंबई की याद ताज़ा हो गई। गली में प्रवेश से गालिब एकेडमी तक लगभग हर दुकान पर चिकन मटन की जबरदस्त दुर्गन्ध नथुने फाड़ देते को तैय्यार थी। दिल्ली में दो दशक से ज्यादा रहा लेकिन कभी इस ओर आना नहीं हुआ। आज मजबूरी थी जो शायद आखरी भी होगी। चार की जगह साढ़े कार्यक्रम शुरू हुआ। पता नहीं क्यूं हर शायर/शायरा तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ने के पीछे क्यूं पड़ा है। भई तहत में ग़ज़ल पढ़िए अलग आनंद प्राप्त होगा। कुछ ने तो हदें ही लांघ दी तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ते हुए कव्वाली का अहसास करा गए। चाय नाश्ता ऑफर किया गया किंतु हमने विनम्रता से मना कर दिया। सायं 7 बजे फारिग हुए। फिर वही दुहराव यानि अनचाही दुर्गन्ध भीड़ का बेतरतीब जमावड़ा। मुझे लगा भारतीय फिल्मों में पाकिस्तानी इलाका दिखाने के लिए निजामुद्दीन सही लोकेशन है। तीन चार माध्यम चेंज करते हुए रात्रि 11.30 बजे मेरठ वापिसी। सोते समय एक खुशी थी कि कल गाजियाबाद में कथा रंग की मीटिंग हैं जहां वैन्यू,मैन्यू एण्ड जेंट्री तीनों ही बढ़िया मिलेंगी।

         तो भैय्या सुबह आराम से उठे 11 बजे घर से सीधे AC वाले को खड़खड़ाते हुए कि हुज़ूर सोमवार को इंस्टालेशन वाला भिजवा दें ताकि गर्मी में हम भी कुछ सर्दी का अहसास कर सकें। बस स्टैंड पर स्कूटी जमा की और मोहन नगर की बस पकड़ी लेकिन ये क्या मोदी नगर में जाम ? मालूम पड़ा परशुराम जयंती का जुलूस हैं हमने सोचा ऐं जे क्या माजरा है भाया परशुराम जयंती तो परसों हो चुकी फिर ये क्यूं तभी बाजू में बैठा कंडक्टर बोला बेरोजगार हैं ससुरे सब। हमने सोचा ई ससुर को कईसन पता फिर कुछ सोचकर "मौन सर्वार्थ साधकम" का फार्मूला अपना लिया। ढाई बजे मोहन नगर उतरे फिर ऑटो लिया और ढूंढते ढांढते आज के कथा संवाद के मेज़बान बत्रा जी के निवास स्थान D 83,,"अमित्र थियेटर", न्यू पटेल नगर पहुंच ही गए। अच्छा वैन्यू, 🛗 लिफ्ट से द्वितीय तल पहुंचे, यात्री जी, अल्का सिन्हा जी सुभाष चंद्र जी टेक सिंह और स्नेही रिंकल शर्मा ने स्वागत किया। रिंकल को विवाह के अट्ठारह वर्ष पूर्ण करने पर बधाई प्रेषित की साथ ही वायदे के मुताबिक़ कहानी संग्रह "काला हंस" की एक प्रति एवम केरल से लाए गए शंख को भेंट स्वरूप प्रदान किया। धीरे धीरे लोग आते गए और कारवां बन ही गया। आज़ के कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर अल्का सिन्हा जी ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिन्दी अकादमी के उप सचिव श्री ऋषि कुमार शर्मा रहे।

         'अमित्र थियेटर' में आयोजित कथा संवाद में डॉ. बीना शर्मा की कहानी 'सवाल', मीना पांडेय की 'जालीदार दरवाज़ों के फ्रेम',  पूनम मटिया की "विज्ञापन : नन्हे नन्हे चमकीले तारे", शिवराज सिंह की "इकलौती'', मनु लक्ष्मी मिश्र  की ''ट्रांसफर'', सुधा गोयल की ''मां'', रश्मि वर्मा की कहानी ''ढ़ोलकी'' और टेकचंद ने संभावित कथानक पर अपना ब्रीफ प्रस्तुत किया। दर्शकों की ओर से हुए विमर्श में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार व आलोचक सुभाष चंदर, डॉक्टर अशोक मैत्रेय,आलोक यात्री, सुभाष अखिल, अवधेश श्रीवास्तव, डॉ. रक्षंदा रूही मेहदी, सुरेन्द्र सिंघल, अनिमेष शर्मा, डॉ. वंदना कुंअर रायजादा, डॉ. कुलदीप कुमार पुष्पाकर, विनय विक्रम सिंह व सुनित अग्निहोत्री ने अपने विचार व्यक्त किए। मैंने पूर्व मीटिंग की भांति आज़ भी मौन रहना ही श्रेयस्कर समझा। बस टेकचंद की प्रस्तुति पश्चात एक शेर जरूर पढ़ दिया!
"कहना पड़े जो दोस्त से फिर दोस्ती कैसी 
बरबाद न हों इश्क में फिर आशिक़ी कैसी "

अगली मीटिंग में शायद हम कुछ बोलने लायक हो जाएं। 👂🏻

         कार्यक्रम में कहानी वाचन के अतिरिक्त सुधी पाठक गण भी जिनमें" झा, डॉ. अजय गोयल, मनोज कुमार सिन्हा, डॉ. वीना मित्तल, नूतन यादव, डॉ. राजीव पांडेय, प्रेम किशोर शर्मा, सुमित्रा शर्मा, प्रताप सिंह, ओंकार सिंह, सुखबीर जैन,राधारमण, शकील अहमद सैफ, सुषमा गोयल, तिलकराज अरोड़ा, अरुण कुमार यादव, अरुण अग्रवाल, विजयलक्ष्मी, डॉ. प्रीति कौशिक, संजीव शर्मा, प्रभात चौधरी, देवव्रत चौधरी, अजय मित्तल, उत्कर्ष गर्ग, हेमलता गुप्ता, अनिल शर्मा, अभिषेक कौशिक, सिमरन व कविता" उपस्थित रहे।

विषेष: 
        बीना शर्मा जी ने बिना पढ़े कहानी वाचन किया जिसकी सभी ने भूरी भूरी प्रशंसा की। ऋषि जी ने कहा कि लेखक को ऐसा ही होना चाहिए। कैसे संभव है ऋषि जी। कवि हो शायर हो लेखक हो वो अपनी सभी रचनाएं कैसे याद रख सकता है। हां प्रतिनिधि रचनाएं याद रखना संभव है जिसको हमने 25,30 प्रोग्रमों में बार बार पढ़ा हो।  ख़ैर अपना अपना दृष्टिकोण है हुज़ूर।😊

एक बेहतरीन कार्यक्रम बेहतरीन मेज़बानी और आशानुरूप खूबसूरत संचालन जो कि निश्चित कथा रंग की यू एस पी है । पुन: टीम कथा रंग को खूबसूरत आयोजन के लिए बधाई।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

प्रदीप डी एस भट्ट 14524

Wednesday, 8 May 2024

बुरे नहीं अच्छे फंसे

पुस्तक समीक्षा 

"बुरे नहीं अच्छे फंसे"

"कथा रंग" नाम पढ़ते ही तिरोहित होने का अहसास हुआ। आमंत्रण मिला तो जा पहुंचे शंभू दयाल कॉलिज गाजियाबाद वो भी "गर्मी में गर्मी का अहसास लिए"😆।  बेहतरीन कार्यक्रम का साक्षी होना भी अपने आप में अलग बात है। किसी भी कार्यक्रम की सफ़लता का दारोमदार संचालन पर निर्भर करता है संचालन के साथ यदि अपनी पुस्तक का प्रमोशन भी किया जाए तो 😊 सुनील बाबू कुछ ज्यादा ही बढ़िया है।इस विषय में रिंकल शर्मा को 10/8.5 नंबर दिए ही जाने चाहिए। 8 नंबर संचालन के लिए और 0.5 बुरे फंसे का बढ़िया प्रमोशन के लिए।

         कार्यक्रम के समापन के पश्चात रिंकल जी ने अपनी पुस्तक "बुरे फंसे" जो की एक नाटक है मुझे सप्रेम भेंट की। अब पुस्तक लेकर उसे सिर्फ़ शेल्फ में नहीं सजा कर नहीं छोड़ा जाना चाहिए अपितु पहली फुर्सत में पढ़ने के पश्चात  अपना मंतव्य भी लेखक को प्रकट/अग्रसारित किए जाने की आवश्यकता होती है। मैं व्यक्तिगत रूप से इस धर्म का पालन करता हुं वो भी पूरी ईमानदारी के साथ।

"बुरे फंसे"
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         इससे पहले कि "बुरे फंसे" के विषय में कुछ लिखूं ये शेर आप सबकी सेवा में कारण "बुरे फंसे" नाटक जेठ की तपती जलती गर्मी से तन पर पड़ी हास्य की हल्की पुहार का अहसास कराता है। इसके लिए रिंकल शर्मा जी को हृदय तल से बधाई तो बनती है न जी।

"गम से आख़िर कब तलक यूं मुंह छुपाना चाहिए
 रोज़ थोड़ी देर ही पर मुस्कुराना चाहिए" 

बचपन से काका हाथरसी, शैल चतुर्वेदी,सुरेंद शर्मा, व्यंग्य गद्य लेखनी के सिरमौर भारतेंदु हरिश्चंद्र,हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और मेरे पसंदीदा के पी सक्सेना । एक लंबे अरसे से देख रहा हूं कि हास्य व्यंग्य के नाम पर दर्शकों को कुछ भी परोस दिया जा रहा है। मुंबई में रहते हुए फिल्म राइटर एसोसिएशन की मीटिंग अटेंड करते हुए और डिस्कशन के दौरान ये पाया कि उपस्थित लोग हास्य के नाम पर लोग दादा कोंडके की पुहड़ कॉमेडी को पसंद करते हैं या प्रभावित हैं। चूंकि इस विधा में मेरा हाथ जरूरत से ज्यादा तंग है अतएव मैं मौन रहना ही पसंद करता हुए।

         बुरे फंसे में रिंकल जी ने कुछ पात्रों का जमावड़ा किया  है फिर हर पात्र की विशेषता दर्शाते हुए उसे एक मुकाम तक पहुंचाने में मदद की है। फिर वह कल्लन हो या दादी, छज्जू हो या शबनम, रहमत हो या फिर दुबे जी या अन्य क़िरदार। पूरे नाटक में सिर्फ़ एक क़िरदार है जो अपने चुटीले संवादो से पूरे नाटक में छाया रहता है और वह है ब्रजभूमि की महारानी चम्पा। नाटक का 70 प्रतिशत हास्य वहीं से उपजता है जब दरवाज़े पर दस्तक होती है तो सामने वाला पूछता है रहमत शेख घर पर हैं तो चंपा उत्तर देती है ।
"हां हते"। अंदर आ जाओ। 

         ऐसा कई मर्तबा होता है किन्तु पृष्ठ संख्या 142 पर जब फोटोग्राफर आता है तो चम्पा "हां हते" न कहकर बोलती है 
"हां हैं"। अंदर आ जाओ

         पढ़ने में तल्लीन पाठक तुरंत पकड़ लेता है और ख़ुद से पूछता है 
"जे के भयो भैय्या"

"चम्पा का क़िरदार जिस तरह से बुना गया है मुझे बेसाख्ता संसार फिल्म में अरुणा ईरानी के क़िरदार की याद हो आईं "

         नेहरू जैकेट 1947 से पूर्व लोकप्रिय नहीं थी वरन 60 के दशक में 70 लोकप्रिय करवाई गई या हुई।

         मेरा मानना है कि जब लेखक के दिमाग़ में कोई विषय उपजता है तब वह कहानी हो या नाटक या फिर उपन्यास वह स्वेटर बुनने की प्रक्रिया से होकर गुजरता है। कभी दो फंदे सीधे कभी दो फंदे उल्टे। इसलिए मैं कहानी बुनने का पक्षघर रहा हूं। इतने सारे किरदारों को लेकर उसके हर क़िरदार के साथ न्याय करना लेखक के लिए चुनौती पूर्ण काम होता है। रिंकल शर्मा इसमें खरा उतरने का पूरा प्रयास करती नज़र आती हैं।

         रिंकल जी का नाटक "बुरे फंसे" पढ़कर एक बात तो निश्चित कह सकता हूं कि उन्होंने इसे तह दर तह बुना है और वे एक विशुद्ध हास्य नाटक लिखने में कामयाब हुई हैं। रिंकल जी अपना काम ईमानदारी से कर चुकी हैं। अब बारी इसके सटीक मंचन की है। 

         ढेरों शुभकामनाओं के साथ 

प्रदीप डी एस भट्ट.9524