Wednesday, 9 November 2022

"मन चाहा होता नहीं प्रभु चाहें तत्काल"

रिपोतार्ज़

"मन चाहा होता नहीं, प्रभु चाहें तत्काल"

  हर चीज़ का समय निश्चित है, कब कहाँ कैसे क्या होगा वो सब नीली छतरी वाले ने हमें अवनि पर भेजने से पहले डिसाइड किया हुआ है। अगर दूसरे उदाहरण से समझाऊँ तो ये हमारा शरीर हार्ड वेयर है और बाकी जो भी दिनचर्या में शामिल है वह साफ्ट वेयर् है। हमारे पैदा होने से लेकर मरने तक सब कुछ फिक्स्। मानो तो ठीक नहीं तो जय श्रीराम्। कुछ लोगों को लगता है कि किस्मत हमारे हाथ में है जो कि कभी नहीं होती। हर चीज़ निश्चित समय और निश्चित मात्रा में ही होती है। न एक बूँद इधर न एक बूँद उधर्। अब इसमें लॉजिक ढूँढने की कतई ज़रुरत न है। मैं तो वैसे भी कहता हूँ कि –

क्रोध की अग्नि में तू, जल जाएगा
प्रेम से ईश्वर तुझे, मिल जाएगा
झूठ का कुछ काल, लम्बा है मगर
सत्य का इक दिन, कँवल खिल जाएगा
कर्म की तू व्याख्या न, कर कभी
भाग्य से ज्यादा नहीं, मिल पाएगा

 वर्चुअल या आभासी मीटिंग जो भी आप कहना चाहें कह लें, कोरोना काल में बहुत अच्छा लगा क्यूँ कि हमें भी आज की पीढी से कदम से कदम मिलाकर चलने का या दिखाने का मौका मिला कि “हम भी किसी से कम नहीं” किंतु जल्दी ही आभास हो गया कि एक कविता पढने के लिए दो तीन घंटे मॉनिटर के सामने बैठना कोई अक्लमंदी का काम नहीं। इससे बडी बात ये कि जो आनंद मंचो पर कविता पढकर प्राप्त होता है उसका 1 प्रतिशत भी आनंद इस आभासी दुनियाँ से प्राप्त नहिं हुआ। इसलिए मैंने धीरे धीरे इस आभासी दुनियाँ से दूरी बनानी शुरु कर दी। अब यदा कदा ही इस तरह की मीटिंग अटेंड करता हूँ। दो तीन महीने में एक भी बाहर का कार्यक्रम मिल जाए तो वल्ले वल्ले (अरे भैय्या ज्यादा कर जो नहीं सकते, भारत सरकार की सेवा भी ज़रुरी है न)

 अचानक 10 अक्टूबर-2022 को अर्चना पाण्डेय जी जो कि डी आर डी ओ के डी आर आई एल में सहायक निदेशक (राजभाषा) हैं ने अगले दिन यानि 11 अक्टूबर मंगलवार को डी आर आई एल में कविता पाठ का निमंत्रण दिया जिसे हमने सहर्ष स्वीकार कर लिया। अगले दिन मैं और ज्योति नारायण जी नियत समय पर पहुँच गये। चूँकि डिफेन्स का मामला है इसलिए दो सज्जन ( श्री सिंह व श्री ओझा) हमें रिसीव करने गेट पर ही मौजूद थे। उन्हीं से ज्ञात हुआ क़ी हमारी वरिष्ठ डॉक्टर सुमन लता जी भी पधार रहीं है।निश्चित सुनकर आनंद क़ी अनुभूति हुई। हम दोनों के मोबाईल गेट पर ही जमा कराने का आग्र्ह हुआ जिसे हमने मैनेज कर ज्योति जी की गाडी में ही ड्राइवर के पास छोड दिया। ज़रूरी पास बनवाने में दोनों ने पूरी पूरी मदद की व प्रोटोकॉल के तौर पर कार्यक्रम के शुरु से लेकर अंत तक हमारे साथ ही बने रहे। बेहतरीन हॉल व व्यवस्था के तो क्या कहने। डी आर आई एल के निदेशक चूँकि एक आवश्यक मीटिंग में थे इसलिए कार्यक्रम थोडा विलम्ब से शुरु हुआ। प्रथम सत्र में निदेशक व सन्युक्त निदेशक के द्वारा हम सभी कवियों का शाल उढाकर, पुष्प गुच्छ देकर भव्य स्वागत व सम्मान किया गया। डी आर आई एल  के अधिकारियों व स्टाफ द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया गया जिसमें विजेताओं का भी भव्य तरीके से सम्मानित किया गया। तदुपरांत डी आर आई एल के अधिकारियों द्वारा हिन्दी भाषा के उत्थान पर चर्चा की गई। फिर दस मिनिट्स के लिए रेफ्रेश्मेंट ब्रेक, अरे भैय्या “भूखे भजन न होय गोपाला, पकड ये अपनी कंठी माला”

 दूसरे सत्र का श्रीगणेश साथी कवि दीपक द्वारा कविता पाठ करके दिया गया। प्रत्येक कवि के लिए 15 मिनिट्स निर्धारित थे। मैंने भी एक गज़ल, दो देश भक्ति के गीत प्रस्तुत किये।
(1)
“ सरहद पर दुश्मने ललकारे,
   उठो जवानों धरा पुकारे
   कर्ज़ चुकाना है माटी का,
   एक अकेला सौ को मारे।”

(2)                                                                                                   “दोस्तों की अब यही पह्चान है,
  खंजरों के पीठ पर निशान हैं।
  धर्म का निरपेक्ष रुप देखिए,
  मस्ज़िदों में हो रहा गुणगान है॥

(3) हम सहिष्णु हैं, अर्थ नहीं तुम कायर समझो
       भस्म करे जो पल में, ऐसा फायर समझो
    इश्क विश्क के गीत नहीं मैं, लिख सकता सुन
    देश प्रेम की अलख जगाता, शायर समझो

इसके अतिरिक्त मैंने हिन्दी भाषा पर अपने विचार भी रखे । अपनी आदत के मुताबिक मैंने तय समय सीमा से एक मिनिट कम लेकर अपनी वाणी को विराम दिया। तालियों की गडगडाहट ने साबित किया कि मंचों पर कविता पढने में कितना आनंद है। मेरे बाद ज्योति जी ने हिन्दी भाषा पर सुंदर गीत प्रस्तुत किया फिर सभी के आग्रह पर अर्चना पाण्डेय जी ने भी कुछ पंक्तियाँ पढ्कर मंच को नमन किया।  इसके बाद विजेताओं को ट्राफी, प्रमाण पत्र व पुरुस्कार प्रदान किये गये। फिर जैसा कि होता है विजेताओं के साथ यादगार के तौर पर एक छाया चित्र लिया गया। अच्छी बात ये रही कि अति व्यस्तता के बावजूद भी निदेशक व सन्युक्त निदेशक कार्यक्रम के अंत तक उपस्थित रहे।

 कार्यक्रम के बाद अर्चना जी के आग्र्ह पर हम उनके कक्ष तक गये रास्ते में उन्होंने हमें वह कमरा भी दिखाया जिसमें भारत रत्न महामहिम भूतपूर्व राष्ट्रपति जी बैठते थे। मुझे अनायास ही 29 जनवरी-2004 याद हो आई जब अपनी टीम के साथ मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य मिला था ( 26 जनवरी-2004 को गणतंत्र दिवस पर जो परेण होती है उसमें “KVIC Tubule” टीम का मैं इंचार्ज़ था) एक बेहतरीन दिन, बेहतरीन एंकरिंग, बेहतरीन कार्यक्रम बेहतरीन व्यवस्था, बेहतरीन आव भगत (और कवियों को चाहिए भी क्या) ।

 अर्चना पाण्डेय जी एवम उनकी टीम को साधुवाद!!!!

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-18:10:2022