““आओ छात्रों राजनीति-राजनीति खेलें”
नेतागण देश के नौजवानो
को अपने फायदे के लिए कैसे इस्तेमाल करते हैं इसका ताजा उदाहरण “केजरीवाल कहिन” (रोहित
वेमुला पर देश को गर्व होना चाहिये) और “राहुल” गांधी’ के वक्तव्यो से लगाया जा सकता
हैं जहां केजरीवाल रोहित वेमुला के लिए कहते हैं कि देश को रोहित वेमुला पर गर्व
होना चाहिये तो मुझे ये सोचने पर विवश करता हैं कि क्या जनाब केजरीवाल वास्तव मे
“भारतीय राजस्व सेवा’ (IRS) से हैं अगर
ये सत्य है क्यों कि उन्होने बकायदा नौकरी भी की है तो एक बात समझ नहीं आती कि
क्या उन्होने अपने शैक्षिक योग्यता किस स्कूल या कॉलेज से प्राप्त कि जहां ये
सिखाया या पढ़ाया जाता हो कि आत्महत्या जैसा कायरता पूर्ण कार्य करने वाले पर देश
गर्व करे ? क्या वो शहीद हुआ है उसके आत्महत्या करने से समाज
घर या देश का क्या भला होने वाला था। ऐसा वक्तव्य देने के पीछे की उनकी मानसिकता
क्या है मात्र “दलित वोट बैंक”।इससे ये साबित होता हैं की बड़े -बड़े वादे करने वाला,अन्ना जैसे व्यक्ति का अपनी अति महत्वकांशा को पूरी करने वाला, जिन लोगो ने पहले एनजीओ मे इसका साथ दिया उन्ही लोगो द्वारा स्थापित “आप”
नामक पार्टी से से लतियाने का ही कार्य करने वाला कितना आत्म मुग्धता का
शिकार है। जो बीजेपी और काँग्रेस की तर्ज पर विज्ञापनों मे कहता है की “केजरीवाल
सरकार”। मतलब राजनीति को साफ करने का वादा करने वाला खुद ही एक क्लिष्ट राजनीतिज्ञ
की भूमिका मे आ गया है। जिसे ये बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कि कोई उसकी कही बात को
काटने का साहस करे।
आखिर
पिछले कुछ दिनों से जारी “आओ छात्रों खेल-खेल मे राजनीति-राजनीति सीखें”। इस खेल
का पटाक्षेप पहले हैदराबाद विश्वविद्यालया मे रोहित वेमुला की आत्महत्या से होता
है। इल्ज़ाम लगाने का एक अंतहीनसिलसिला शुरू हो जाता है कोई भी तथ्यों पर गौर नहीं
करना चाहता कि वास्तव मे इसके पीछे क्या हुआ है न ही ये जानने का प्रयास करता है
कि इससे पूर्व कुल कितने छात्रों ने अभी तक आत्महत्या कि है। मैंने तो नहीं पढ़ा कि
इससे पहले जिनहोने आत्महत्या कि थी वे किस जाति से थे। किन्तु इस बार चूँकि मामला
बीजेपी से जुड़ा था ।(सुश्री स्मृति ईरानी एचआरडी मिनिस्टर हैं )अतएव लग गए सब
अपना-अपना ज्ञान बखारने। ऐसा महसूस हुआ कि आज़ाद भारत मे आज तक कि ये सबसे दुखद
घटना है। तुरंत प्रभाव से राहुल और केजरी पहुँच गए अपनी अपनी राजनीति चमकाने। तुरत
फुरत रोहित की माँ से मिले उन्हे आश्वासन दिया और “दलित छात्र” कि आत्महत्या पर
बीजेपी को लानत अमानत भेजनी शुरू कर दी,साथ ही स्मृति ईरानी शिक्षा का भगवा करण कर रही हैं?
कहते हुए इस्तीफा भी मांग लिया।
अब इन
बेअक्लों से कोई पुछे भाई ये भगवा करण क्या होता है अगर बच्चो को अपने देश कि
संस्कृति और सही इतिहास से परिचय कराया जाना भगवाकरन है तो फिर ये भगवा-करण
काँग्रेस सरकार ने पिछले 60 वर्षो मे क्यों नहीं किया। सही इतिहास को बताना अपनी
संस्कृति कि रक्षा करना प्रत्येक राज्य और राष्ट्र का धर्म भी है और स्वाभिमान भी
है। फिर काँग्रेस ने ये सही कार्य क्यों नहीं किया या उसे अंग्रेज़ो द्वारा रचे गए
षडयंत्रो के तहत इतिहास को अपने पक्ष मे लिखवाने के लिए क्या उन किताबों और लेखको
पर रोक नहीं लगानी चाहिये थी? अगर अपनी संस्कृति और सही इतिहास को बच्चों को उपलब्ध करना पाप है तो
बच्चों को गलत (क्रिश्चियन संस्कृति को
बढ़ावा देना) संस्कृति और गलत इतिहास पढ़ना तो महापाप कि श्रेणी मे आना चाहिये। फिर
एक विषय और भी उठता है कि मस्जिदों मे जो पढ़ाया जाता है या क्रिश्चियन स्कूलों मे
जो पढ़ाया जाता है क्या उसे क्रिश्चियनी करण और मुस्लिम करण नहीं कहा
जाना चाहिये। हम क्यों नहीं बच्चो को सही और वास्तविक तथ्यों से परिचित करने का
साहस नहीं कर पाते,हमे किसका डर है किसी एक धर्म विशेष का या
एक समुदाय विशेष का। काँग्रेस क्या चाहती है कि उसकी सरकार मे जो पिछले 60 वर्षों
मे पढ़ाया जाता रहा है वह सब सही और तथ्यों पर आधारित था या है। ऐसा कुछ भी नहीं है
काँग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई है और उसे ये हजम नहीं हो रहा है कि क्या वो सत्ता
से पदच्युत हो गई है ?
खैर
अभी हैदराबाद विश्वविद्यालया का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था तभी 9 फरवरी को
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय मे कुछ भोंडे लोण्डो ने देश विरोधी नारे ही नहीं
लगाए वरन देश को तोड़ने वाले नारों कि पूरी श्रंखला का ही मुजाहरा पेश किया वहाँ
निश्चित रूप से जेएनयू के स्टूडेंट्स के अतिरिक्त बाहरी लोग भी मौजूद थे, तो उन्हे किसने और क्यों बुलाया? जेएनयू प्रशासन क्या सो रहा था? हम सब ने जो भी
विडियो क्लिप्स देखि हैं उनमे साफ पता चलता है कि जेएनयू मे देश विरोधी नारे लगे,पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे,कश्मीर कि आजादी के
नारे लगे और भी न जाने क्या-क्या जिनहे लिखा जाना ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी
के विषय मे भी अनाप-शनाप बका गया।प्रधानमंत्री मोदी या अन्य किसी भी व्यक्ति या
संस्था के विरुद्ध छात्र कुछ भी कहे समझा जा सकता है क्यों कि आदतन छात्र उग्र या
विरोधी होते हैं। उन्हे किसी विचारधारा पर अपने विचार रखने,उन्हें
मानने या न मानने का पूर्ण अधिकार है किन्तु देश द्रोही नारे लगाना किसी भी
द्रष्टि से क्षमा योग्य नहीं है फिर वो चाहे छात्र हों शिक्षक हों या अन्य
कोई।देशद्रोही लोगो का पक्ष लेने वाले उनसे भी बड़े देशद्रोही माने जाने चाहिये।
किन्तु ये भारत है विश्व का प्रथम पायदान का सबसे
बड़ा लोकतान्त्रिक देश। यहाँ राजनीतिज्ञ जो न कर दे थोड़ा है। सो तुरत प्रभाव से राजनीति
शुरू हो गई या तो विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रहा था कि वो तीन दिन मे कार्रवाई करने
मे असफल रहा है वहीं जहां सरकार ने सबूत एकत्र कर चोथे दिन छात्र नेता “कन्हैय्या”
को गिरफ्तार किया और कुछ लोगो कि तलाश शुरू की तो विपक्ष आक्रामक मोड मे आ गया और
पहुँच गए राहुल गांधी अपने un-mature साथियों के साथ
राजनीति- राजनीति खेलने। आरोपों को दौर शुरू और सगरा विपक्ष आ गया “कन्हैय्या” और
देशद्रोही छात्रों के पक्ष मे। शायद इनकी नज़र मे यही है देशप्रेम ? यहाँ कुछ पक्षपात करने वाले अखबार और मीडिया चेनल भी ये सिद्ध करने मे लग
गए कि जिन विडियो के आधार पर “कन्हैय्या” को गिरफ्तार किया है वो Doctorate यानि छद्म है.
ये विषय अलग है कि एक मात्र एलेक्ट्रोनिक टीवी चेनल Z
TV अपनी बात पर कायम रहा कि जो दिखाया गया है वह पूर्ण सत्य है।
इससे पूर्व भी Z TV पश्चिम बंगाल के
मालदा और कोलकतता कि घटनाओ कि तथ्य पूर्ण रोपोर्टिंग करता रहा जब कि बाकी सभी
अखबार और चेनलों ने वहाँ मुस्लिम उपद्रवियों द्वारा कि गई आगजनी और लुटपाट को
दिखाने से परहेज किया।खैर इस विषय पर अलग से बहस की जा सकती है। विपक्ष द्वारा
दिल्ली पुलिस पर अनावश्यक दबाव बनाने का प्रयास किया गया वो भला हो गृह मंत्रालय
का जिनहोने दिल्ली पुलिस को तथ्यों की पूर्ण छानबिन कर कार्रवाई करने के आदेश
दिये। उमर खालिद जो कि इस programme का कर्ता धर्ता था और
जिसने विश्वविद्यालय प्रशासन को काव्य गोष्ठी के लिए आवेदन किया था किन्तु गुल कुछ
और ही खिला गया कि भी तलाश दिल्ली पुलिस करने लगी इसके अतिरिक्त अनिर्बन
भट्टाचार्य, राणा और भी जाने कितने ऐसे छात्र अभी दिल्ली
पुलिस के हत्ते चढ़ेने बाकी है।
आश्चर्य
तब हुआ जब अचानक 8-10 दिनों के बाद उमर खालिद और राणा जेएनयू मे ही नमूदार हुए और
कुछ पक्षपाती मीडिया चेनलों पर अपने को पूर्ण रुपेन सच्चा और ईमानदार घोषित कर
दिया जो कि दिन भर TV पर
दिखया जाता रहा ।
12 या
13 फरवरी को जादवपुर विश्वविद्यालय,कोलकाता मे जेएनयू के पक्ष मे नारे लगे और एक लड़की जिसकी उम्र मुश्किल से
20-22 साल रही होगी का टीवी पर यह कहना कि वो कश्मीर,मणिपुर
और एक स्टेट(नाम याद नहीं आ रहा ) कि आजादी का समर्थन करती है। मुझे ये सोचना पड़ा
कि कौन हैं वो लोग जो ऐसे छात्रों को बरगला रहे हैं और वहाँ के प्रोफेसर और वीसी
क्या कर रहे हैं? मुझे याद नहीं पड़ता कि अभी तक जादवपुर
विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा निकले गए मार्च और देश विरोधी गतिविधियों पर कुछ
कार्रवाई हुई है। क्या पश्चिम बंगाल सरकार राजधर्म का पालन कर रही है? कदापि नहीं जब वह मालदा कि हिंसक घटना और एक airman अभिमन्यु गौर कि मृत्यु पर भी अपराधियों को बचाने का यत्न करती नज़र आती हो
तब तो ये उम्मीद करना पागलपन ही है ।
मैं
यहाँ इंडिया टुडे मे छपी एक खबर का हवाला देना चाहता हूँ जिसमे “बीमार शिक्षा
तंत्र का और एक शिकार” नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमे बताया गया कि अजमेर
के बांद्रासिंदरी स्थित 1700 करोड़ के बजट वाला “राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय”
जिसमे अध्ययन कि शुरुआत 2010 से हुई व
जिसमे कुल 1845 छात्र पढ़ रहे हैं उनमे से 980 छात्र शोध कर रहे हैं। इसी
विश्वविद्यालय के एक छात्र मोहित चौहान जो कि बिजनौर (उत्तर प्रदेश ) का रहने वाला
था और गणित मे शोध कर रहा था ने आत्महत्या कर ली उनके पिता का ये बयान कि “ऐसी
पढ़ाई किस काम कि जो जन ले ले “क्या साबित करती है मोहित के पिता का आरोप था कि
मेरे बेटे पर विद्योतमा जैन अन्य दो प्रोफेसर जो कि उसके गाइड थे ने अनवशयक दबाव
बनाया जिस कारण उसने गाइड बदलने के लिए
कहा किन्तु उसे अनसुना कर दिया गया। जिससे बाकी छात्र आक्रोशित हो गए आंदोलन किया।
आंदोलन करने वाले छात्रों ने गाइडों पर अन्य कुछ आरोप भी लगाए हैं जिस कारण वहाँ
तनाव बना हुआ है।अब प्रश्न या है कि जब इससे पहले जून 2015 भोतिक विज्ञान के
शोधार्थी विमल चौधरी आत्महत्या की तब उस पर क्या कार्यवाही हुई उसका आज तक पता
नहीं है। फिर 2015 मे ही जोगेन्द्र सिंह शेखावत जो की एमए कॉमर्स व आठ बार का
गोल्ड मेडल विजेता था कुलपति से इच्छा मृत्यु की गुहार क्यों की।
24.02.2016
को संसद मे ज्योतिराज सिंधिया, जब ये कहते हैं
कि देश विरोधी नारे लगाना देश द्रोह कि श्रेणी मे नहीं आता तो उन पर तरस आता है।
विपक्ष के तथ्यहीन कुतर्को का स्मृति ईरानी, एचआरडी मिनिस्टर
द्वारा जिस प्रभावशाली अंदाज मे अकाट्य तथ्यों के साथ प्रस्तुतीकरण किया गया उससे
घबराकर राहुल गांधी सदन से ही भाग गए जिस पर अगले दिन सोश्ल मीडिया पर उन्हे
रंछोरदास कि उपाधि से विभूषित कर दिया गया। स्मृति ईरानी द्वारा सबूत के तौर पर
सदन मे जेएनयूमे मे कुछ अराजक तत्वों के घुस आने वहाँ महिषासुर दिवस मनाने का
जिक्र करना। बच्चो के कोमल मन मे दूषित भावनाएं भरने का (चौथी क्लास मे लगी तीस्ता
शीतलवाद की पुस्तक का अंश, छटीं क्लास की पुस्तक का अंश
जिसमे माँ दुर्गा को सेक्स वर्कर बताया गया भगतसिंह राजगुरु व अन्य देशभक्त
महानुभावों को आतंकवादी बताया गया ) किस प्रकार पिछले 60 वर्षो मे कुचक्र रचा गया
है उस पर प्रहार किया गया जिससे तिलमिला कर विपक्ष बगले झाँकने को मजबूर होता नज़र
आया । एक और आश्चर्य जनक सामने आई की बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े “उदित राज”
महिषासुर दिवस पर जेएनयू मे उपस्थित थे।
उपरोक्त
घटनाओ पर ड्राष्टिपात करने से ज्ञात होता है की अगर कहीं कुछ गड़बड़ है तो वो हमारी
दूषित राजनैतिक सोच मे है जो अपने वोट बैंक की खातिर कुछ भी और किसी भी हद तक
नीचता पर उतारने को तैयार हो जाती है और हम उसे ऐसा करने के छुट भी दे देते हैं
विरोध न करना छुट देने का licence ही माना जाएगा। लेकिन प्रश्न तो
वही है कि आजादी का मतलब क्या है ? जिन महानुभावों ने देश कि
आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया उसी देश के कुछ बिगड़े हुए लोग, दूषित मानसिकता लिए कुछ नेता और कुछ बरगलाए हुए बच्चे आजादी की कीमत को
क्यों नहीं पहचान पा रहे हैं। जादव पुर यूनिवरसिटि के प्रांगण मे कश्मीर और मणिपुर
की आजादी का समर्थन करती वो लड़की जिसे ये बताया जाना आवश्यक है कि आज वो उस देश मे
खड़ी होकर देशद्रोह कि बात कर रही है जिस देश मे कभी अंग्रेज़ो का राज था और
अंग्रेज़ो से लड़ने का हौसला देने वाले क्रांतिकारी और आजाद हिन्द फौज की स्थापना
करने वाले सुभाष चन्द्र बोस का वही यह गृह नगर कोलकतता है। अगर देश आज भी गुलाम
होता तो आज भी उस लड़की के पुरखे और शायद ये लड़की भी किसी अंग्रेज़ के घर मे चाकरी
कर रही होती या उसका पाखाना साफ कर रही होती। और ऐसा सिर्फ वो लड़की के साथ नहीं
अपितु जेएनयू के उन भोंडे लोंडों के साथ भी हो रहा होता।
ये वो भीड़ है जो कमलेश तिवारी को फांसी दो के नारे लगती है
हम सभी
को ये समझना होगा कि देश के प्रतिष्ठित विद्यालया और विश्वविद्यालया मे आखिर अराजक
तत्व अपनी घुसपैठ बना कैसे लेते हैं,कौन हैं वो लोग जो उनको खाद और पनि मुहैया कराते हैं। सभी शिक्षण संस्थान टैक्स
पेयर के पैसे से पोषित होते हैं। आखिर आशुतोष (आप) कैसे कहते हैं कि “कन्हैय्या” की
बिहार मे 3000 हजार रुपए कमाती है ये कहकर वो साबित क्या करना चाहते है कि उसकी माँ
3000 कमाती है तो वो निर्दोष है । क्यों नहीं आशु से ये पुछना चाहिए कि जिसकी माँ 3000
हजार कमाती है वो जेएनयू मे किसके पैसे से पोषित हो रहा है? वो
यहाँ पढ़ने आया था या राजनीति राजनीति खेलने और उनको ये खेल खिला कौन रहा है? “कन्हैय्या” के अतिरिक्त और जो भी छात्र देश के अलग अलग विश्वविद्यालयों मे
पढ़ते है क्या वो माँ लगाकर पढ़ाई नहीं कर सकते? उनकी प्रथमिकताएं
क्या हैं और क्यों हैं।
"आओ छात्रों तुम्हें राजनीति सिखाये "
और
अंत मे प्रिय राहुल गांधी और केजरी महाराज से ये भी पूछा जाना चाहिए कि वो Pic N Choose की राजनीति करना चाहते
हैं या धरातल की। निश्चित धरातल की तो नहीं वरना “राजस्थान केन्द्रीय
विश्वविद्यालय” मे जो हुआ अभी तक वे क्यों नहीं पहुंचे। देश की रक्षार्थ अपनी जान की
आहुती देने वाले आ जवान की तो छोड़िए कैप्टन और कर्नल के शहीद होने पर भी नहीं जाना
चाहते क्यों ? राहुल के चौकड़ी उन्हे या तो सही सलाह नहीं देती
या वो लेना नहीं चाहते और केजरी को तो खुद “आप” वाले भी सिरियस नहीं लेते।
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प्रदीप भट्ट :::26.02.2016 ::::