Friday, 26 February 2016

आओ राजनीति राजनीति खेलें



““आओ छात्रों राजनीति-राजनीति खेलें”


नेतागण देश के नौजवानो को अपने फायदे के लिए कैसे इस्तेमाल करते हैं इसका ताजा उदाहरण “केजरीवाल कहिन” (रोहित वेमुला पर देश को गर्व होना चाहिये) और “राहुल” गांधी के वक्तव्यो से लगाया जा सकता हैं जहां केजरीवाल रोहित वेमुला के लिए कहते हैं कि देश को रोहित वेमुला पर गर्व होना चाहिये तो मुझे ये सोचने पर विवश करता हैं कि क्या जनाब केजरीवाल वास्तव मे “भारतीय राजस्व सेवा (IRS) से हैं अगर ये सत्य है क्यों कि उन्होने बकायदा नौकरी भी की है तो एक बात समझ नहीं आती कि क्या उन्होने अपने शैक्षिक योग्यता किस स्कूल या कॉलेज से प्राप्त कि जहां ये सिखाया या पढ़ाया जाता हो कि आत्महत्या जैसा कायरता पूर्ण कार्य करने वाले पर देश गर्व करे ? क्या वो शहीद हुआ है उसके आत्महत्या करने से समाज घर या देश का क्या भला होने वाला था। ऐसा वक्तव्य देने के पीछे की उनकी मानसिकता क्या है मात्र “दलित वोट बैंक”।इससे ये साबित होता हैं की बड़े -बड़े वादे करने वाला,अन्ना जैसे व्यक्ति का अपनी अति महत्वकांशा को पूरी करने वाला, जिन लोगो ने पहले एनजीओ मे इसका साथ दिया उन्ही लोगो द्वारा स्थापित “आप” नामक पार्टी से से लतियाने का ही कार्य करने वाला कितना आत्म मुग्धता का शिकार है। जो बीजेपी और काँग्रेस की तर्ज पर विज्ञापनों मे कहता है की “केजरीवाल सरकार”। मतलब राजनीति को साफ करने का वादा करने वाला खुद ही एक क्लिष्ट राजनीतिज्ञ की भूमिका मे आ गया है। जिसे ये बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कि कोई उसकी कही बात को काटने का साहस करे।

     आखिर पिछले कुछ दिनों से जारी “आओ छात्रों खेल-खेल मे राजनीति-राजनीति सीखें”। इस खेल का पटाक्षेप पहले हैदराबाद विश्वविद्यालया मे रोहित वेमुला की आत्महत्या से होता है। इल्ज़ाम लगाने का एक अंतहीनसिलसिला शुरू हो जाता है कोई भी तथ्यों पर गौर नहीं करना चाहता कि वास्तव मे इसके पीछे क्या हुआ है न ही ये जानने का प्रयास करता है कि इससे पूर्व कुल कितने छात्रों ने अभी तक आत्महत्या कि है। मैंने तो नहीं पढ़ा कि इससे पहले जिनहोने आत्महत्या कि थी वे किस जाति से थे। किन्तु इस बार चूँकि मामला बीजेपी से जुड़ा था ।(सुश्री स्मृति ईरानी एचआरडी मिनिस्टर हैं )अतएव लग गए सब अपना-अपना ज्ञान बखारने। ऐसा महसूस हुआ कि आज़ाद भारत मे आज तक कि ये सबसे दुखद घटना है। तुरंत प्रभाव से राहुल और केजरी पहुँच गए अपनी अपनी राजनीति चमकाने। तुरत फुरत रोहित की माँ से मिले उन्हे आश्वासन दिया और “दलित छात्र” कि आत्महत्या पर बीजेपी को लानत अमानत भेजनी शुरू कर दी,साथ ही स्मृति ईरानी शिक्षा का भगवा करण कर रही हैं? कहते हुए इस्तीफा भी मांग लिया।

     अब इन बेअक्लों से कोई पुछे भाई ये भगवा करण क्या होता है अगर बच्चो को अपने देश कि संस्कृति और सही इतिहास से परिचय कराया जाना भगवाकरन है तो फिर ये भगवा-करण काँग्रेस सरकार ने पिछले 60 वर्षो मे क्यों नहीं किया। सही इतिहास को बताना अपनी संस्कृति कि रक्षा करना प्रत्येक राज्य और राष्ट्र का धर्म भी है और स्वाभिमान भी है। फिर काँग्रेस ने ये सही कार्य क्यों नहीं किया या उसे अंग्रेज़ो द्वारा रचे गए षडयंत्रो के तहत इतिहास को अपने पक्ष मे लिखवाने के लिए क्या उन किताबों और लेखको पर रोक नहीं लगानी चाहिये थी? अगर अपनी संस्कृति और सही इतिहास को बच्चों को उपलब्ध करना पाप है तो बच्चों  को गलत (क्रिश्चियन संस्कृति को बढ़ावा देना) संस्कृति और गलत इतिहास पढ़ना तो महापाप कि श्रेणी मे आना चाहिये। फिर एक विषय और भी उठता है कि मस्जिदों मे जो पढ़ाया जाता है या क्रिश्चियन स्कूलों मे जो पढ़ाया जाता है क्या उसे क्रिश्चियनी करण और मुस्लिम करण नहीं कहा जाना चाहिये। हम क्यों नहीं बच्चो को सही और वास्तविक तथ्यों से परिचित करने का साहस नहीं कर पाते,हमे किसका डर है किसी एक धर्म विशेष का या एक समुदाय विशेष का। काँग्रेस क्या चाहती है कि उसकी सरकार मे जो पिछले 60 वर्षों मे पढ़ाया जाता रहा है वह सब सही और तथ्यों पर आधारित था या है। ऐसा कुछ भी नहीं है काँग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई है और उसे ये हजम नहीं हो रहा है कि क्या वो सत्ता से पदच्युत हो गई है ?


     खैर अभी हैदराबाद विश्वविद्यालया का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था तभी 9 फरवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय मे कुछ भोंडे लोण्डो ने देश विरोधी नारे ही नहीं लगाए वरन देश को तोड़ने वाले नारों कि पूरी श्रंखला का ही मुजाहरा पेश किया वहाँ निश्चित रूप से जेएनयू के स्टूडेंट्स के अतिरिक्त बाहरी लोग भी मौजूद थे, तो उन्हे किसने और क्यों बुलाया? जेएनयू प्रशासन क्या सो रहा था? हम सब ने जो भी विडियो क्लिप्स देखि हैं उनमे साफ पता चलता है कि जेएनयू मे देश विरोधी नारे लगे,पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे,कश्मीर कि आजादी के नारे लगे और भी न जाने क्या-क्या जिनहे लिखा जाना ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के विषय मे भी अनाप-शनाप बका गया।प्रधानमंत्री मोदी या अन्य किसी भी व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध छात्र कुछ भी कहे समझा जा सकता है क्यों कि आदतन छात्र उग्र या विरोधी होते हैं। उन्हे किसी विचारधारा पर अपने विचार रखने,उन्हें मानने या न मानने का पूर्ण अधिकार है किन्तु देश द्रोही नारे लगाना किसी भी द्रष्टि से क्षमा योग्य नहीं है फिर वो चाहे छात्र हों शिक्षक हों या अन्य कोई।देशद्रोही लोगो का पक्ष लेने वाले उनसे भी बड़े देशद्रोही माने जाने चाहिये। 

 किन्तु ये भारत है विश्व का प्रथम पायदान का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश। यहाँ राजनीतिज्ञ जो न कर दे थोड़ा है। सो तुरत प्रभाव से राजनीति शुरू हो गई या तो विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रहा था कि वो तीन दिन मे कार्रवाई करने मे असफल रहा है वहीं जहां सरकार ने सबूत एकत्र कर चोथे दिन छात्र नेता “कन्हैय्या” को गिरफ्तार किया और कुछ लोगो कि तलाश शुरू की तो विपक्ष आक्रामक मोड मे आ गया और पहुँच गए राहुल गांधी अपने un-mature साथियों के साथ राजनीति- राजनीति खेलने। आरोपों को दौर शुरू और सगरा विपक्ष आ गया “कन्हैय्या” और देशद्रोही छात्रों के पक्ष मे। शायद इनकी नज़र मे यही है देशप्रेम ? यहाँ कुछ पक्षपात करने वाले अखबार और मीडिया चेनल भी ये सिद्ध करने मे लग गए कि जिन विडियो के आधार पर “कन्हैय्या” को गिरफ्तार किया है वो Doctorate यानि छद्म है.

 ये विषय अलग है कि एक मात्र एलेक्ट्रोनिक टीवी चेनल Z TV अपनी बात पर कायम रहा कि जो दिखाया गया है वह पूर्ण सत्य है। इससे पूर्व भी Z TV पश्चिम बंगाल के मालदा और कोलकतता कि घटनाओ कि तथ्य पूर्ण रोपोर्टिंग करता रहा जब कि बाकी सभी अखबार और चेनलों ने वहाँ मुस्लिम उपद्रवियों द्वारा कि गई आगजनी और लुटपाट को दिखाने से परहेज किया।खैर इस विषय पर अलग से बहस की जा सकती है। विपक्ष द्वारा दिल्ली पुलिस पर अनावश्यक दबाव बनाने का प्रयास किया गया वो भला हो गृह मंत्रालय का जिनहोने दिल्ली पुलिस को तथ्यों की पूर्ण छानबिन कर कार्रवाई करने के आदेश दिये। उमर खालिद जो कि इस programme का कर्ता धर्ता था और जिसने विश्वविद्यालय प्रशासन को काव्य गोष्ठी के लिए आवेदन किया था किन्तु गुल कुछ और ही खिला गया कि भी तलाश दिल्ली पुलिस करने लगी इसके अतिरिक्त अनिर्बन भट्टाचार्य, राणा और भी जाने कितने ऐसे छात्र अभी दिल्ली पुलिस के हत्ते चढ़ेने बाकी है।

     आश्चर्य तब हुआ जब अचानक 8-10 दिनों के बाद उमर खालिद और राणा जेएनयू मे ही नमूदार हुए और कुछ पक्षपाती मीडिया चेनलों पर अपने को पूर्ण रुपेन सच्चा और ईमानदार घोषित कर दिया जो कि दिन भर TV पर दिखया जाता रहा ।

     12 या 13 फरवरी को जादवपुर विश्वविद्यालय,कोलकाता मे जेएनयू के पक्ष मे नारे लगे और एक लड़की जिसकी उम्र मुश्किल से 20-22 साल रही होगी का टीवी पर यह कहना कि वो कश्मीर,मणिपुर और एक स्टेट(नाम याद नहीं आ रहा ) कि आजादी का समर्थन करती है। मुझे ये सोचना पड़ा कि कौन हैं वो लोग जो ऐसे छात्रों को बरगला रहे हैं और वहाँ के प्रोफेसर और वीसी क्या कर रहे हैं? मुझे याद नहीं पड़ता कि अभी तक जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा निकले गए मार्च और देश विरोधी गतिविधियों पर कुछ कार्रवाई हुई है। क्या पश्चिम बंगाल सरकार राजधर्म का पालन कर रही है? कदापि नहीं जब वह मालदा कि हिंसक घटना और एक airman अभिमन्यु गौर कि मृत्यु पर भी अपराधियों को बचाने का यत्न करती नज़र आती हो तब तो ये उम्मीद करना पागलपन ही है ।

     मैं यहाँ इंडिया टुडे मे छपी एक खबर का हवाला देना चाहता हूँ जिसमे “बीमार शिक्षा तंत्र का और एक शिकार” नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमे बताया गया कि अजमेर के बांद्रासिंदरी स्थित 1700 करोड़ के बजट वाला “राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय” जिसमे अध्ययन कि शुरुआत 2010 से हुई व  जिसमे कुल 1845 छात्र पढ़ रहे हैं उनमे से 980 छात्र शोध कर रहे हैं। इसी विश्वविद्यालय के एक छात्र मोहित चौहान जो कि बिजनौर (उत्तर प्रदेश ) का रहने वाला था और गणित मे शोध कर रहा था ने आत्महत्या कर ली उनके पिता का ये बयान कि “ऐसी पढ़ाई किस काम कि जो जन ले ले “क्या साबित करती है मोहित के पिता का आरोप था कि मेरे बेटे पर विद्योतमा जैन अन्य दो प्रोफेसर जो कि उसके गाइड थे ने अनवशयक दबाव बनाया जिस कारण उसने  गाइड बदलने के लिए कहा किन्तु उसे अनसुना कर दिया गया। जिससे बाकी छात्र आक्रोशित हो गए आंदोलन किया। आंदोलन करने वाले छात्रों ने गाइडों पर अन्य कुछ आरोप भी लगाए हैं जिस कारण वहाँ तनाव बना हुआ है।अब प्रश्न या है कि जब इससे पहले जून 2015 भोतिक विज्ञान के शोधार्थी विमल चौधरी आत्महत्या की तब उस पर क्या कार्यवाही हुई उसका आज तक पता नहीं है। फिर 2015 मे ही जोगेन्द्र सिंह शेखावत जो की एमए कॉमर्स व आठ बार का गोल्ड मेडल विजेता था कुलपति से इच्छा मृत्यु की गुहार क्यों की।

     24.02.2016 को संसद मे ज्योतिराज सिंधिया, जब ये कहते हैं कि देश विरोधी नारे लगाना देश द्रोह कि श्रेणी मे नहीं आता तो उन पर तरस आता है। विपक्ष के तथ्यहीन कुतर्को का स्मृति ईरानी, एचआरडी मिनिस्टर द्वारा जिस प्रभावशाली अंदाज मे अकाट्य तथ्यों के साथ प्रस्तुतीकरण किया गया उससे घबराकर राहुल गांधी सदन से ही भाग गए जिस पर अगले दिन सोश्ल मीडिया पर उन्हे रंछोरदास कि उपाधि से विभूषित कर दिया गया। स्मृति ईरानी द्वारा सबूत के तौर पर सदन मे जेएनयूमे मे कुछ अराजक तत्वों के घुस आने वहाँ महिषासुर दिवस मनाने का जिक्र करना। बच्चो के कोमल मन मे दूषित भावनाएं भरने का (चौथी क्लास मे लगी तीस्ता शीतलवाद की पुस्तक का अंश, छटीं क्लास की पुस्तक का अंश जिसमे माँ दुर्गा को सेक्स वर्कर बताया गया भगतसिंह राजगुरु व अन्य देशभक्त महानुभावों को आतंकवादी बताया गया ) किस प्रकार पिछले 60 वर्षो मे कुचक्र रचा गया है उस पर प्रहार किया गया जिससे तिलमिला कर विपक्ष बगले झाँकने को मजबूर होता नज़र आया । एक और आश्चर्य जनक सामने आई की बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े “उदित राज” महिषासुर दिवस पर जेएनयू मे उपस्थित थे।

     उपरोक्त घटनाओ पर ड्राष्टिपात करने से ज्ञात होता है की अगर कहीं कुछ गड़बड़ है तो वो हमारी दूषित राजनैतिक सोच मे है जो अपने वोट बैंक की खातिर कुछ भी और किसी भी हद तक नीचता पर उतारने को तैयार हो जाती है और हम उसे ऐसा करने के छुट भी दे देते हैं विरोध न करना छुट देने का licence ही माना जाएगा।  लेकिन प्रश्न तो वही है कि आजादी का मतलब क्या है ? जिन महानुभावों ने देश कि आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया उसी देश के कुछ बिगड़े हुए लोग, दूषित मानसिकता लिए कुछ नेता और कुछ बरगलाए हुए बच्चे आजादी की कीमत को क्यों नहीं पहचान पा रहे हैं। जादव पुर यूनिवरसिटि के प्रांगण मे कश्मीर और मणिपुर की आजादी का समर्थन करती वो लड़की जिसे ये बताया जाना आवश्यक है कि आज वो उस देश मे खड़ी होकर देशद्रोह कि बात कर रही है जिस देश मे कभी अंग्रेज़ो का राज था और अंग्रेज़ो से लड़ने का हौसला देने वाले क्रांतिकारी और आजाद हिन्द फौज की स्थापना करने वाले सुभाष चन्द्र बोस का वही यह गृह नगर कोलकतता है। अगर देश आज भी गुलाम होता तो आज भी उस लड़की के पुरखे और शायद ये लड़की भी किसी अंग्रेज़ के घर मे चाकरी कर रही होती या उसका पाखाना साफ कर रही होती। और ऐसा सिर्फ वो लड़की के साथ नहीं अपितु जेएनयू के उन भोंडे लोंडों के साथ भी हो रहा होता।
        ये वो भीड़ है जो कमलेश तिवारी को फांसी दो के नारे लगती है 

     हम सभी को ये समझना होगा कि देश के प्रतिष्ठित विद्यालया और विश्वविद्यालया मे आखिर अराजक तत्व अपनी घुसपैठ बना कैसे लेते हैं,कौन हैं वो लोग जो उनको खाद और पनि मुहैया कराते हैं। सभी शिक्षण संस्थान टैक्स पेयर के पैसे से पोषित होते हैं। आखिर आशुतोष (आप) कैसे कहते हैं कि “कन्हैय्या” की बिहार मे 3000 हजार रुपए कमाती है ये कहकर वो साबित क्या करना चाहते है कि उसकी माँ 3000 कमाती है तो वो निर्दोष है । क्यों नहीं आशु से ये पुछना चाहिए कि जिसकी माँ 3000 हजार कमाती है वो जेएनयू मे किसके पैसे से पोषित हो रहा है? वो यहाँ पढ़ने आया था या राजनीति राजनीति खेलने और उनको ये खेल खिला कौन रहा है? “कन्हैय्या” के अतिरिक्त और जो भी छात्र देश के अलग अलग विश्वविद्यालयों मे पढ़ते है क्या वो माँ लगाकर पढ़ाई नहीं कर सकते? उनकी प्रथमिकताएं क्या हैं और क्यों हैं।
                    "आओ छात्रों तुम्हें राजनीति सिखाये "

     और अंत मे प्रिय राहुल गांधी और केजरी महाराज से ये भी पूछा जाना चाहिए कि वो Pic N Choose की राजनीति करना चाहते हैं या धरातल की। निश्चित धरातल की तो नहीं वरना “राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय” मे जो हुआ अभी तक वे क्यों नहीं पहुंचे। देश की रक्षार्थ अपनी जान की आहुती देने वाले आ जवान की तो छोड़िए कैप्टन और कर्नल के शहीद होने पर भी नहीं जाना चाहते क्यों ? राहुल के चौकड़ी उन्हे या तो सही सलाह नहीं देती या वो लेना नहीं चाहते और केजरी को तो खुद “आप” वाले भी सिरियस नहीं लेते।


                             :::: प्रदीप भट्ट :::26.02.2016 ::::

Saturday, 20 February 2016

जैसा बोओगे वैसा काटोगे




“जैसा बोवोगे वैसा ही काटोगे”


    "Humans are the only creatures in this world       without the trees, make paper from it and then          writ “Save The Trees’ on it”

    1997 मे मैंने आस्ट्रेलिया के एक वैज्ञानिक का लेख पढ़ा था जिसमे बताया गया था कि ओज़ोन परत लगातार फैल रही है और उसके फैलने से पर्यावरण पर बुरा असर बढ़ रहा है। तभी पहली बार अलनिनों नामक बला से भी परिचय हुआ कि जब जब अलनिनों सक्रिय होता है तब तब उसके असर से सूखे जैसे हालत हो जाते हैं। उस लेख मे ये भी बताया गया था कि धीरे धीरे समुद्र का जलस्तर बढ़ता जाएगा और और 30 सालों मे आधा इंग्लैंड, श्री लंका मलद्वीप, मौरिशश जैसे द्वीप व अमेरिका के कुछ शहरों के अतिरिक्त जहां जहां समुद्र मौजूद है उन जगहों का नाम-ओ-निशान मिट जाएगा। भारत के विषय मे बताया गया था कि भारत मे बंगाल की खाड़ी, बॉम्बे (मुंबई) तमिलनाडू, गोवा,उड़ीसा और आन्ध्र प्रदेश के कई बड़े हिस्से समुद्र मे समा जाएंगे।इसी के साथ 2008 मे इंडिया टुडे मेगज़ीन का कवर पेज मुझे आज भी याद है जिसमे गेटवे ऑफ इंडिया को पानी मे आधा डूबे हुआ दिखाया गया था। इसी लेख से प्रभावित होते हुए मैंने सन 2000 मे “इक्कीसवीं सदी बनाम विकास और विनाश” से एक लेख तैयार किया था जिसे किसी भी समाचार –पत्र या मेगज़ीन ने छापने का कष्ट नहीं किया। मैंने उसे जहां जहां भी छपने हेतु भेजा उनमे से कुछ ने खेद के साथ वापिस कर दिया और एक मेगज़ीन ने तो मेरे उठाए गए मुद्दे और पर्यावरण को हो रहे नुकसान की बात को कोरी गप्प मानकर खारिज कर दिया।खैर ये लेख लिखने का विचार इस बात से आया कि कुछ दिनो पहले ही प्रधानमंत्री महोदय विश्व पर्यावरण सम्मेलन से वापिस लौटे हैं । अच्छी बात ये है कि वो विश्व बिरादरी को पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे इस पर अपनी गहन चिंता से बखूबी अवगत करने मे न केवल कामयाब हुए बल्कि उनके सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने को पूरा समर्थन भी हासिल हुआ।
    
आखिर क्या है ये ग्लोबल वार्मिंग 


     पृथ्वी के वातावरण मे 78 प्रतिशत Nitrogen,और 21 प्रतिशत ओक्सीजन है।ग्रीन हाउस गैस मात्र 1 प्रतिशत है। पर्यावरण मे यही 1 प्रतिशत ने उथल पुथल मचा रखी है। बात अगर अब से 60 वर्ष पूर्व की जाय तो ये समझ मे आता है कि पृथ्वी का लगभग 33 प्रतिशत हिस्सा ऊँचे और घने जंगलों से आबाद था। और मनुष्य उन जंगलों को साथ लेकर ही अपने विकास पर ध्यान केन्द्रित करता था किन्तु 1945 के पश्चात (6 अगस्त और 9 अगस्त-1945 दितीय विश्व युद्ध के समय पर जापान पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए गये थे) विज्ञान और तकनीक अपने पूरे ज़ोर से उभर कर सामने आई। मनुष्य कि नज़र मे ये विकास का एक महत्वपूर्ण दौर था जिसमे उसने आगे आने वाले विनाश की गूंज अनसुनी कर दी । इस समय तक ओज़ोन परत से पृथ्वी तक सूर्य से निकालने वाली अल्ट्रा वायलेट किरणें पृथ्वी को नुकसान नहीं पहुँचती थी किन्तु विकास की अंधाधुंद दौड़ ने ओज़ोन परत को छेदना शुरू कर दिया।नये –नये ऐसे उद्योग लगने लगे और इस प्रक्रिया के दौरान उन उद्योगों ने CFC (क्लोरो फ़्लोरो कार्बन) का उत्पादन जाने अनजाने शुरू कर दिया परिणामस्वरूप लोगों को नई- नई बीमारियों ने घेरना शुरू कर दिया। जब तक CFC के परिणामों की समीक्षा का निर्णय लिया गया या ये कहे कि उस पर गौर किया गया तब तक काफी देर हो चुकी थी।

     16 सितंबर 1987 को मोंट्रियल मे 189 देशो के मध्य इस विश्वव्यापी समस्या के निराकरण हेतु इस  बात पर सहमति बनी कि ओज़ोन परत को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए उद्योगो से निकलने वाली गैसों ( हैलोन -1211,1301,2401) (सीएफ़सी-13,111,112) आदि पर चरणबद्ध ढंग से समाप्त किया जाएगा।किन्तु ऐसा पूर्ण रुपेन हुआ नहीं। मनुष्य ने दूसरी जो सबसे बड़ी भूल की वह यह थी कि उसने प्राकर्तिक संसाधनों को बेवजह दोहन किया जिससे हालत और ज्यादा बिगड़ते चले गये ।यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उद्योगों से कार्बन उत्सर्जन मे ओज़ोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान जीवाश्म ईंधन ही पहुंचाता हैं। एक रिसर्च के अनुसार आठ अरब मीट्रिक टन से अधिक ग्रीन हाउस गैसें वायुमंडल मे छोड़ी जाती हैं। विवरण निम्नप्रकार से है :

1.  जीवाश्म ईंधन           -    57 प्रतिशत
2.  सीएफ़सी               -    17 प्रतिशत
3.  कृषि गतिविधियां         -    14 प्रतिशत
4.  जंगलों की कटाई इत्यादि   -    09 प्रतिशत (Carbon- die- Dockside)
5.  औद्योगिक गतिविधि          -    03 प्रतिशत (Carbon- die- Dockside)
    


     16वीं सदी मे बारूद का आविष्कार हुआ था। वैसे भी तापमान मे बढ़त सिर्फ उद्योगों से ही नहीं परमाणु परीक्षणों से आण्विक आयुधों की होड भी ऐसे स्थिति उत्पन्न करने मे कम सहायक नहीं है।  आजकल लड़ाई मे केवल बंदूक का ही प्रयोग नहीं होता वरन बमो (जैविक और रसायनिक) का भी प्रयोग धड्ड्ले से प्रयोग किया जाता है।इसलिय वायुमंडल मे Carbon- die- Dockside, Nitrogen, कार्बन Mono dockside, Nitrogen-die- Dockside की मात्र अत्यधिक बढ़ जाती है जिसका प्रभाव घटक होता है। यह कार्बन वायुमंडल मे देर तक टीका  रहता है कार्बन सौर किरणों के विकिरण को अपने अंदर सोखने का विशिष्ट गुण रखते हैं इसी कारण सौर विकिरण शोषित करने के कारण वायुमंडल का बढ़ा देते हैं। इसे ही वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। विश्व स्वास्थ संगठन के मुताबिक 1710 से 1960 तक ग्रीन हाउस गैसों मे Carbon- die- Dockside की बढ़ोत्तरी मात्र 20 प्रतिशत थी। इसके उलट 1960 से 1990 तक यही बढ़ोत्तरी 30 प्रतिशत हो गई। दुनिया मे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन मे अमेरिका सबसे आगे है । उसकी अकेले की भागीदारी 25 प्रतिशत से अधिक है। कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने वाली कई योजनाओ का क्रियान्वयन भी किया जा रहा है इनहि मे शामिल है कार्बन ट्रेडिंग या कार्बन क्रेडिट। इसके तहत हर देश एक तय सीमा से अधिक कार्बन डाई डॉक्साइड का उत्सर्जन नहीं कार सकता अन्यथा उसे देश पर जुर्माने का प्रावधान रखा गया हैं किन्तु एक सत्य यह भी है कि अगर कोई देश तय सीमा से कम उत्सर्जन करता है तो वो देश अन्य देशों को बेच कार भरी धनराशि एकत्र कार सकता है। 1990 के बाद मे विकसित किए गये  जंगलो को उनके विकास के आधार पर पर कार्बन डाई डॉक्साइडक्रेडिट दिया जाता हैं इन जंगलों के स्वामी इस क्रेडिट को अधिक प्रदूषण फैलाने वाले ओद्योगिक संस्थानो को बेचकर अच्छा खासा पैसा बना सकते हैं।मतलब ये कि जिस देश मे जितनी अधिक हरियाली होगी, उस देश के आर्थिक खुशहली मे भी उतनी ही बढ़ोतती होगी।1997 मे क्योटो संधि के अंतर्गत कार्बन क्रेडिट के अवधारणा बनी ।क्योटो संधि के तहत कुल 38 ओद्योगिक देश कार्बन उत्सर्जन मे कटोती करने के लिए प्रतिबद्ध हुए ।

     उपरोक्त सभी  कारणो से पृथ्वी का तापमान 1000 वर्षों मे 0.2 Degree Centigrade के हिसाब से बढ़ रहा है। अध्ययन से पता चला है की 2006 से 2100 तक पृथ्वी के तापमान मे 1.1 degree centigrade की बढ़ोत्तरी होनी निश्चित है। पृथ्वी पर मौजूद 75000 से अधिक वन्यजीव प्रजातियों मे से 50000 कीट वर्ग,140 मोलस्क व आक्षेरुकीय प्रजातियों,420 से अधिक सरिसर्प,1200 से अधिक पक्षी और 340 से अधिक स्तनधारियों का अस्तित्व खतरे मे पड़ गया है।2001 से 2005 तक पिछले रेकॉर्ड के मुताबिक 20000 वर्षों मे सबसे अधिक गरम समय रहा है। ताजा आँकडों के अनुसार वर्ष 2015 अभी तक का सबसे अधिक गरम वर्ष रेकॉर्ड किया गया है। नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीस के अध्ययन के मुताबिक पृथ्वी का तापमान यदि 1 Degree Centigrade और बढ़ गया तो यह पिछले 10 लाख वर्ष मे सर्वाधिक तापमान होगा। जलवायु परिवर्तन पर बने अंतर्राष्ट्रीय पैनल ने सन 2001 मे अपनी पहली रिपोर्ट रखी थी जिस पर ज्यादा तव्व्जो नहीं दी गई तत्पश्चात 8 अप्रैल-2007 को ब्रूसेल्स मे रखी गई रिपोर्ट मे 113 देशों के 620 शीर्ष वैज्ञानिकों ने अपनी सेवाएँ प्रदान की । उस रिपोर्ट का लब्बो लुआब ये था की सन 2100 तक 2.8 लोग पेयजल संकट का सामना करेंगे।पृथ्वी के तापमान मे 3 से 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी व विश्व की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत भाग मरेलरिया,डेंगू और अन्य तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो जाएगा।समुद्र के जलस्तर मे 29 -45 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी जिससे विश्व के प्रमुख समुद्रतटीय महानगरों की 1.3 करोड़ आबादी इनके डूबने के कारण बेघर हो जाएगी। इस डूब मे नीदरलैंड का 6 प्रतिशत,मिस्र का 1 प्रतिशत,मार्शल द्वीप का 80 प्रतिशत शामिल है । अकेले यूरोप मे 25 लाख लोग बाढ़ से पीड़ित होने व 20 प्रतिशत जैव –प्रजातियाँ लुप्त  हो जाएंगी। भारत मे 25-30 प्रतिशत लोग भूख से मरने के लिए मजबूर होंगे।



     पूरे विश्व मे जो पर्यावरण संरक्षण की मुहिम चलाई जा रही है आखिर वो उपजी कैसे। इस समस्या को इतना पढ़ने से पूर्व ही रोका क्यों नहीं गया। क्या विश्व मे अपने आप को दारोगा की हैसियत से स्थापित करने वाले अमेरिका ने विकास की अंधी दौड़ की शुरुआत नहीं की और उसका साथ रूस  (सोवियत संघ) और European देशो ने नहीं दिया ? आज हर देश का नागरिक डर केसाये मे ज़िंदगी जी रहे हैं कि पता नहीं कब सुनामि आ जाए और लाखो लोगो कि ज़िंदगी लील जाए।पता नहीं कब ज्वालामुखी सक्रिय हो और मिलों तक बस विनाश के ही  अंश शेष रह जाएँ। आखिर क्यों नहीं हम अपनी आकांशाओ पर काबू पाते। विकास कि अंधी दौड़ मे मनुष्य बस भागे जा रहा है बिना ये सोचे कि इसके परिणाम कितने भयावह होते जा रहे हैं। आखिर रहने के लिए एक घर और खाने के अनाज की ही तो दरकार है फिर अपनी अनंत इच्छाओ की पूर्ति हेतु मनुष्य क्यों इस खूबसूरत पृथ्वी पर से सब जीव जन्तुओ पशु पक्षियों को नष्ट करने पर आमादा है।

     इस बढ़ते प्रदूषण से क्या गाँव क्या शहर सब प्रदूषित होते जा रहे हैं। जो प्रक्रति हमे इतना कुछ देती है हम उसे दिन ब दिन नष्ट करने के नित नये उपाय अपना रहे हैं। सबसे बड़ी गलती मनुष्य ने वनों का संरक्षण न करके उनके विनाश के बीज ज्यादा बोये हैं। भारत मे इस विषय मे चंडी प्रसाद भट्ट (उत्तराखंड) जो की “चिपको आंदोलन” के जनक हैं ने काफी प्रयास किए किन्तु ये प्रयास सिर्फ उत्तराखंड तक ही सीमित होकर रह गये । बड़े बड़े बाँध बनाने से सिचाई की फौरी वयवस्था तो हो जाती है किन्तु उसके लिए लाखो पेड़ों को काट दिया जाता है। उत्तराखंड और अन्य राज्यों मे जो बाढ़ ने जो  तांडव किया है उसे अभी तक सहमे हुए हैं।नदियों पर तटबंध बनाने से उंजौ मिट्टी मिलनी बंद हो जाती है। जिन भी इलाको के इसको आजमाया गया है वहाँ पर भूजल का स्तर नीचे हो गया हैं और पेड़ खत्म होते जा रहे हैं।इस विषय मे यह विशेष है कि लबे समय तक पेड़ कि जड़ मे एक निश्चित ऊंचाई पर पानी विद्यमान रहता है उसके ऊपर से पेड़ कमजोर पड़ जाता है। जिससे तेज हवा या आँधी आने कि स्थिति मे वह जड़ से ही उखड़ जाता है। बिहार राज्य की सरकार के वन विभाग ने बड़े पैमाने पर  शीशम के पेड़ लगवाए थे किन्तु वे एक के बाद एक सब सूख गये।मतलब पुराने काट लिए गये तो रहे नहीं और नये आए नहीं तो वर्षा का पानी ठहरेगा कैसे । परिणाम  स्वरूप वर्षा के लिए आवश्यक कारक पेड़ों के नहीं होने से मौसम का मिजाज बादल गया है और कहीं अतिव्रष्टि  और कहीं सूखा पड़ रहा है।



     श्रीमदभागवत गीता मे प्रलय के विषय मे रोमांचक व भयावह वर्णन मिलता है । प्रलय चार प्रकार की होती है।
     1.नित्य यानि सुक्ष्तम स्तर (जीवों का जन्म-मरण,पदार्थों की            उत्पत्ति और विनष्टि) “यो यं सन्द्र्श्यते नित्य ,लोकं                   भूत्क्षयास्थितव्ह” (कूर्म पुराण)

     2.नैमित्तिक प्रलय – सभी पुराणो मे एक जैसा ही वर्णन वर्णित है।युगांत –4      अरब 32 करोड़ वर्ष के पश्चात) अर्थात सूर्य की सभी सातों रश्मियां सात      सूर्यों मे परिवर्तित हो जाती हैं व पाताल लोक तक सभी कुछ भस्म कर देती हैं।

    3. एकार्णव-अर्थात –पृथ्वी कछुए की पीठ की तरह कठोर हो जाती है और सब   कुछ नष्ट होने की शुरुआत होने लगती है।

   4.-प्राक्रत- यानि जब विश्व मे क्षीणप्राय पृथ्वी तल पर सौ वर्षो तक       वर्षा नहीं होगी। अतुपरान्त भाषण गर्जन के साथ पृथ्वी पर उपलब्ध सभी    प्रकार की वनस्पतियों का अकाल पड़ जाएगा। तब पृथ्वी पर सर्वत्र जल ही   जल होगा ।

     कुछ इसी प्रकार का वर्णन अन्य धार्मिक ग्रंथो मे भी विद्यमान है। अगर प्रलय होना निश्चित है तो होकर रहेगी लेकिन क्या आवश्यकता है की हम उसे समय से पूर्व ही आमंत्रित करें।

:::: प्रदीप भट्ट :::20.02.2016

Wednesday, 17 February 2016

निदा फ़ाज़ली



“निदा (स्वर) फ़ाजली” एक अज़ीम शायर”

निदा फ़ाजली
(1938-2016)
     इससे पहले कि मैं मरहूम शायर निदा फ़ाजली के विषय मे  कुछ लिखने का प्रयत्न करूँ ये बता देना अपना फर्ज़ समझता हूँ कि मेरा उनसे कोई व्यक्तिगत परिचय कभी नहीं रहा । जैसे भारतवर्ष मे उनको पसंद करने वाले बहुत से लोग हैं मैं भी उनमे से एक हूँ । उनके विषय मे लिखने का खयाल भी इसलिए आया कि उनको किसी धर्म या जाति से तौल कर कभी किसी ने नहीं देखा या ये कहें कि उन्होने इसका मौका कभी भी किसी को दिया भी नहीं। अपनी बात तो सीधे और सरल शब्दों मे कैसे बयान किया जा संकता है, ये उनको पढ़ने और पसंद करने वाले भली प्रकार जानते हैं।
     निदा के पुरखे कश्मीर के फ़ाज़िला इलाके से दिल्ली मे आकार बस गए थे ।निदा का जन्म 12 अक्तूबर 1938 को दिल्ली मे हुआ। ये अपने वालिद(श्री मुर्तुजा हसन व अम्मी फातिमा बेगम,जो बाद मे हिन्दू मुस्लिम दंगो से तंग आकार पाकिस्तान मे जाकर बस गए) की वे तीसरी संतान थे। निदा दिल्ली से ग्वालियर आ गए उनका बचपन और शिक्षा -दीक्षा  ग्वालियर (मध्य प्रदेश) मे हुई। विक्टोरिया  कॉलेज से 1958 मे उन्होने बीए की पढ़ाई पूरी की। लिखने का शौक़ निदा ने बचपन से ही पाल लिया था। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान एक दुखद घटना से वे बहुत व्यथित हुए। एक लड़की जिसका सरनेम टंडन था उसकी एक दुर्घटना मे मृत्यु हो गई। अपने दुख को वे व्यक्त नहीं कर पा रहे थे उन्हे लगा की उन्होने अभी तक जो कुछ भी लिखा है वो इस दर्द को कम करने के लिए नाकाफी है। उसी दुख और विरह मे वे एक दिन एक मंदिर के पास से गुजर रहे थे कि उन्होने किसी को सूरदास का भजन “ मधुबन तुम क्यों राहत हरे ? बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यों न जरे ?(इस गीत मे गोपिया और राधा कृष्ण के मथुरा से जाने के पश्चात फूलो और से कह रही हैं कि तुम अभी तक कैसे हरी हरी दिखाई क्यों दे रही हो तुम वियोग मे जल क्यों नहीं गई । इस गीत को सुनते -सुनते ही निदा को अहसास हुआ कि  उनकी उलझनों कि सभी गिरह खुलती जा रही हैं। इसके बाद निदा ने तुलसी ,कबीर बाबा फरीद और अन्य कई महान कवियों को पढ्न शुरू किया । यही उन्हे ये भी अहसास हुआ कि इन महान कवियों ने कैसे गूढ बातों को बड़े ही सरलीय भाषा मे व्यक्त किया है।


     1964 मे निदा मुंबई (तब का नाम बॉम्बे) काम कि तलाश मे आ गए । उस समय बॉम्बे से प्रतिष्ठित साप्ताहिक धर्मयुग और सारिका पत्रिका का प्रकाशन होता था वे धर्मयुग ब्लिट्ज़ के लिए लिखने लगे उनकी सीधी और सरल शैली सभी को काफी पसंद आई । 1969 मे निदा के पहली उर्दू कविता का संग्रह छपा। फिल्मों मे लिखने का मौका उन्हे कमाल अमरोही ने दिया जो उस समय रज़िया सुल्तान बना रहे थे और जाँनिसार अख्तर (जावेद अख्तर के वालिद) के असामयिक निधन के पश्चात सोच रहे थे कि बाकी गाने किससे लिखवाएँ तभी उन्हे जाँनिसार अख्तर जो स्वम भी ग्वालियर से थे की बात याद हो आई जिसमे उन्होने निदा के ख़ालिस उर्दू बोलने और लिखने के विषय मे बताई थी। उन्होने तुरंत उनसे संपर्क साधा और रज़िया सुल्तान के बाकी बचे दो गाने लिखने का आग्रह किया। उनका पहला फिल्मी गीत “ तेरा हिज़्र मेरा नसीब है तेरा गम मेरी हयात है “  “और दूसरा आई जंजीर कि झंकार खुदा ख़ैर करे”(जिसे कब्ब्न मिर्जा ने गया है ) इसके बाद तो उनका ये हुनर चल निकला।अपनी पुस्तक “मुलाकातें” मे दरबारी कवियों और लेखको का जिक्र किया है जिससे काफी लोग उनसे नाराज़ हो गए और उन्होने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया किन्तु निदा अपनी बात पर अड़े रहे और चाटुकारिता को कभी तरजीह न दी । एक वाकया उनके साथ पाकिस्तान मे हुए एक मुशायरे मे हुआ जब उनके लिखे एक शेर “ घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो कुछ यूं कर ले /किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए।“इस शेर पर वहाँ के मुल्लाओं ने इसे खुदा कि शान मे गुस्ताख़ी समझा और काफी हो हल्ला किया तब निदा ने कहा कि बच्चे तो खुद अल्लाह का रूप हैं और मस्जिद को इंसान के हाथ चिनते हैं और साथ मे ये भी जोड़ दिया कि अल्लाह कि एक ही बेटी है जिसका नाम है तहरीर।

  उन्होने कवि संग्रह “लफ़्जो के फूल, मोर नाच, आँख और ख़्वाब के दरमियाँ ,खोया हुआ सा कुछ (1996,(1998 ) जिसे साहित्य अकादमी पुरुसकर से नवाजा गया। आंखो भर आकाश और सफर मे धूप तो होगी । उनकी आत्मकथा दीवारों के बीच,दीवारों के बाहर और निदा फ़ाजली जिसके संपादक –स्वर्गीय क्न्हैय्या लाल नंदन ) उनके लिखे संस्मरण- सफर मे धूप तो होगी, तमाशा मेरे आगे और मुलाक़ातें। 1998 साहित्य अकादमी पुरस्कार - काव्य संग्रह खोया हुआ सा कुछ (1996) पर - Writing on communal harmony National Harmony Award for writing on communal harmony.2003 मे  स्टार स्क्रीन पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म 'सुर के लिए। 2003 मे ही बॉलीवुड मूवी पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म सुर के गीत आ भी जा' के लिए। मध्यप्रदेश सरकार का मीर तकी मीर पुरस्कार (आत्मकथा रुपी उपन्यास दीवारों के बीच के लिए)। मध्यप्रदेश सरकार का खुसरो पुरस्कार - उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए। महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का श्रेष्ठतम कविता पुरस्कार - उर्दू साहित्य के लिए।बिहार उर्दू अकादमी पुरस्कार,उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का पुरस्कार,हिन्दी उर्दू संगम पुरस्कार (लखनऊ) - उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए।मारवाड़ कला संगम (जोधपुर),पंजाब एसोशिएशन (मद्रास - चेन्नई)कला संगम (लुधियाना)। और अंत मे भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित पुरुसकर पद्मश्री उन्हे 2013 मे प्रदान किया गया ।
  निदा ने उसे दौर मे फिल्मों मे लिखना शुरू किया जब फिल्मी गीत अपने पूरे शबाब पर थे, गीतो के कुछ माइने होते थे ।अल्फ़ाजों की अहमियत होती थी ।संगीतगर बिना शायर की इजाजत के एक भी लफ़्ज़ इधर उधर नहीं कर सकता था क्यों की फिल्म की स्टोरी लाइन पर फिल्मी गीत लिखे जाते थे। गीतों  या गजलों से ऐसा  लगे  कि फिल्म कि कहानी बयां की जा रही है । पिछले एक दो दशक मे जो गीत (भोंडापन )लिखे जा रहे हैं उनका तो न सुनना ही कानो के लिए अच्छा है । ऐसा भी नहीं कि आज के दौर मे शायर नहीं हैं लेकिन उनके लिखने लायक फिल्मे भी कहाँ बनती हैं ।शुक्र है गुलजार और जावेद, इरशाद कामिल और प्रसून जोशी उस मशाल को थामे रखने का प्रयास करते नज़र आ रहे हैं।


:::::प्रदीप भट्ट ::::::::17.02.2016




Friday, 12 February 2016

out of side out of mind



                 " तुमने मुझे इस बुलंदी तक नवाज़ा क्यूँ था
                 गिर के मै टूट गया काँच के बर्तन कि तरह "

आदमी भी पैसे और प्रसिद्धि के लिए क्या -क्या नहीं करता । उदाहरण देख लो अपने जन्मदिन के दिन शाहरुख ने क्या कहा था कि" देश मे आशिष्णुता और असंवेदनशीलटा बढ़ रही रही है "  आज वही शाहरुख अपनी फिल्म "दिलवाले" के फ्लॉप होने के दर से अपने बोले गए शब्दो का यह कहकर बचाव कर रह रहे कि मेरे शब्दो को अलग तरह से प्रचारित किया गया है। कर दी न  नेताओ वाली बात आखिर करे भी तो क्यो न नेता और अभिनेताओ मे ज्यादा अंतर भी तो नहीं है । दोनों ही एक ही थ्योरी पर चलते हैं :" Out of side,out of Mind"
इसकी एक और बानगी देखिए जिस सलमान खान से लंबे समय से बैर चल रहा था उसे भी एक ही झटके मे खतम कर "Big Boss" मे अपनी फिल्म दिलवाले कि प्रमोशन के लिए एक विशेष add campaign कारवाई जा रही है ताकि दर्शको कि नाराजगी को दूर किया जा सके । और ऐसा सिर्फ शाहरुख ही नहीं वरन सलमान  कि भी मजबूरी नज़र आती है क्यो कि उनकी भी "सुल्तान " फिल्म कि शूटिंग शुरू हो चुकी है और उन्हे भी डर है कि कहीं दर्शक आमिर और शाहरुख कि ही तरह उनकी भी फिल्म का boycott करने  का फैसला न कर लें।

इसे कहते है DAR अपनी साख खो देने का अपनी प्रसिद्धि के बट्टा लगने का ।प्रसिद्धि के घोड़े पर सवार सामान्यता आदमी अपना होश खो देता है वो भूल जाता है ये जनता है कब किस को उठा दे कब किसको गिरा दे कोई नहीं जनता ।जिस जनता के पैसे और प्यार ने उन्हे इस लायक बनाया है वो जनता नहीं जनता जनार्दन होती है । सीधे शब्दो मे कहूँ तो इस समय शाहरुख कि फटी पड़ी है और इतनी जगह से कि उसे समझ नहीं आ रहा कि कहाँ कहाँ से सिले ।

सियाचीन



Point-NJ-9842 - सियाचिन- “जंगली गुलाब”


      कुछ साल पहले मैंने सियाचिन पर तैनात सैनिको के विषय मे एक लेख पढ़ा था जिससे पढ़कर ज्ञात हुआ कि दुनिया के सबसे दुर्गम और सबसे ऊंचे हिमखंड पर माइनस 60 डिग्री पर  तैनात ये हमारे बहादुर सैनिक किस प्रकार मौत से आँख मिचौली खेलते हैं। जब वहाँ पर आम आदमी का रह पाना किसी भी द्रष्टि से असम्भव हो तो उन परिस्थियों मे भारतीय सेना के ये जाबांज सिपाही सिर्फ अपने आप को जिंदा रखने का यत्न ही नहीं करते वरन वहाँ से कुछ ही दूरी पर स्थित पाकिस्तानी पोस्ट से भी से भी अपनी पोस्ट की रक्षा पूरी द्रढ़ता और जाबांजी से करते हैं। यह भारतीय सेना के अदम्य एवम अद्भुत साहस की सोच का परिचय दुनियाँ की अन्य शक्तिशाली सेनाओ को कराती है। इससे पहले कि मै सियाचिन के विषय मे कुछ और जानकारी साझा करूँ आपको सियाचिन का अर्थ बताना चाहत हूँ। सियाचिन का एक पास एक बाल्टिस्तान नाम का एरिया पड़ता है और वहाँ कि local language मे सियाचिन का अर्थ है (“सिया मतलब “जंगली गुलाब और “चिन जिसे स्थानीय भाषा मे चुन भी कहते हैं का अर्थ है “बहुत सारा यानि ऐसा जंगली गुलाब जो कि बहुतायत मे पाया जाता हो। “सियाचुन धीरे धीरे स्थानीय भाषा मे बिगड़ते बिगड़ते सियाचिन कहलाया जाना लगा और ऐसा भारत द्वारा 1984 मे वहाँ पर अपनी सेना की तैनाती के पश्चात ज्यादा प्रचलित हुआ।और ये मसला विश्व परिदृश्य छा गया ।

      सियाचिन काराकोरम के जो पाँच बड़े हिमनद हैं उनमे सबसे बड़ा है इसे दुनियाँ का  दूसरा सबसे बड़ा हिमनद होने का भी गौरव प्राप्त है। सियाचिन का स्रोत इन्दिरा कोल पर 5753 मीटर और अंतिम छोर पर 3620 मीटर है। यह काराकोरम रेंज मे भारत और पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा के निकट देशांतर -77.10 (East) और अक्षांश -35.42(North) मे स्थित है। सामरिक रुप से यह भारत और पाकिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र है। इस पर सेनाएँ तैनात रखना दोनों ही देशों के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि सियाचिन में भारत के 10 हजार सैनिक तैनात हैं और इनके रखरखाव पर प्रतिदिन ५ करोड़ रुपये का खर्च आता है। यहाँ की भोगोलिक और प्राक्रातिक स्थिति ऐसी है कि सैनिको को अपने आप को सहेज कर रखना ही एक कठिन चुनौती है अगर उनकी एक उंगली भी विशेष ड्रेस से बाहर आ जाए तो वो काटकर गिर जाएगी और ऐसी परिस्थिति मे हमारे ये जवान स्वम को फिट रखने के साथ साथ अपने हथियारों को भी समय समय पर गर्म करते रहते हैं ताकि अगर कभी इनके इस्तेमाल कि आवशयकता आन पड़े तो ये काम कर सके। 1985 से अभी NJ-9842 पॉइंट पर लगभग 2000 सैनिको को विपरीत मौसम के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है ।


      आखिर क्या कारण है कि उजाड़, वीरान और सदा बर्फ से ढके रहने वाले इस हिमखंड “सियाचिन मे भारत, प्रतिदिन 5 करोड़ से ज्यादा रूपये खर्च कर रहा है और अपने 10 हजार के लगभग  सैनिको को मौत से आँख मिचौली करवा रहा है। ऐसा इसलिए कि 1972 मे भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद जब श्रीमति इन्दिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधामन्त्री जुल्फिकर भुट्टो के मध्य शिमला समझोता हुआ तो सियाचिन के NJ-9842 नामक स्थान पर युद्ध विराम की सीमा तय कि गई किन्तु सियाचिन के NJ-9842 के आगे के बारे मे कुछ भी स्पष्ट नहीं लिखा गया और न कहा गया। किन्तु 1970 और 1980 के दशक के प्रारम्भ मे बहुत सारे पर्वतारोहियों को पाकिस्तान ने सियाचिन के NJ-9842 से आगे जाने कि इजाजत देने शुरू कर दी।1978 मे जारोसलाव पोंकर की लीडरशिप मे (जारोसलाव पोंकर के अतिरिक्त Volker stllboh, wolfgng Kohl और मेजर असद रज़ा जो की पाकिस्तानी liaison officer थे) German Siachen-Kondus Expedition की इजाजत पाकिस्तानी सरकार द्वारा प्रदान कर दी गई। ये सभी लोग सियाचिन वाया Bilafond La पहुंचे और उन्होने अपना बेस कैंप सियाचिन और तेरम शेहर के संगम (confluence) पर स्थापित किया। इस मिशन पर बनी डॉक्युमेंट्री का प्रसारण जर्मन टीवी पर 1979 के चैनल 3 पर किया गया था।

      उपरोक्त के अतिरिक्त 1977 मे श्री नरेंद्र कुमार जो कि इंडियन आर्मी मे कर्नल थे इस बात से बड़े ‘offended’ नाखुश थे कि अंतराष्ट्रीय लोग तो हिमखंडो पर साहसिक अभियानो के लिए पाकिस्तान कि तरफ से जा सकते हैं किन्तु भारतीय नहीं। उन्हे शायद शक था कि इस तरह के अभियानो का मकसद oropolitics (पर्वतारोहण का गलत प्रयोग) था। इसलिये उन्होने अपने उच्चाधिकारियों से 70 सदस्यीय एक दल (जिसमे ‘Climbers’ पहाड़ो पर चढ़ाई करने वाले लोग और ‘porters’ कुली शामिल थे) का नेत्रतत्व करने कि अनुमति मांगी। उन्होने ये अभियान पूर्ण किया और 1981 मे वापिस आ गए। इस बाबत उस समय कि प्रसिद्ध पत्रिका Illustrated Weekly of India  मे चित्र और खबर प्रकाशित हुई थी।इस विषय मे जोयदीप सिरकर का एक लेख “High Politics in the काराकोरम” टेलीग्राफ न्यूज़ पेपर कलकत्ता मे 1982 मे छ्पा था। बाद मे वही लेख रिप्रिंट होकर Alpine जर्नल,लंदन मे 1984 मे भी प्रकाशित हुआ था।   
      ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान द्वारा जारी नक्शों मे उस स्थान को दर्शाया जाने लगा। पाकिस्तान के पिछले इतिहास से सबक लेते हुए भारत ने अप्रैल 1984 मे Lt. Gen। छिबबर, मेजर जनरल शिव शर्मा और Lt. जनरल पी.एन.हून को पाकिस्तान के प्लान (जिसमे वे सियाला और बिलफ़ोंड ला पॉइंट्स जो कि हिमनद पर मौजूद थे को बंद करना चाहते थे।) को असफल करने के लिए आपरेशन मेघदूत के तहत लद्दाख स्काउट जो कि इंडियन आर्मी की ही एक फोर्स यूनिट है और कुमाऊँ रेजीमेंट के जवानो द्वारा बिलफ़ोंड ला को 13 अप्रैल 1984 पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और 17 अप्रैल को सिया ला 1984 को अपने अधीन कर लिया इसमे इंडियन एयर फोर्स कि मदद ली गई । इसके जवाब मे पाकिस्तानी आर्मी ने 25 अप्रैल1984 को स्पेशल सर्विसेस ग्रुप और नॉरदन लाइट इंफेंटरी के सहयोग से भारतीय सैन्य दल को वहाँ से हटाने का प्रयत्न किया किन्तु इस पहली सैन्य मुठभेड़ मे पाकिस्तानी आर्मी को मुँह की खानी पड़ी । और इस प्रकार भारतीय आर्मी ने  सियाचिन के NJ-9842 के North Side पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। भारत की सेनाओ ने सियाचिन के जिस हिस्से NJ-9842के पर नियंत्रण किया उसे सालटोरो कहते हैं। इसे वाटेरशेड भी कहते हैं अर्थात इस पॉइंट से आगे लड़ाई नहीं होगी। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि काराकोरम का कुछ भाग पाकिस्तान के पास और कुछ भाग चीन के पास भी है। सियाचिन के NJ-9842 को भारत और पाकिस्तान के बीच Line of Actual Control यानि वास्तविक नियंत्रण रेखा है।
      सियाचिन के NJ-9842 पॉइंट के भारत के पास होने से भारत लेह,लद्दाख के साथ साथ चीन के कुछ महातपूर्ण हिस्सो पर नज़र रखने मे सहायता मिलती है। कश्मीर क्षेत्र में स्थित इस ग्लेशियर पर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद बहुत पुराना है। सियाचिन विवाद को लेकर पाकिस्तान, भारत पर बार –बार आरोप लगाता है कि 1989 में दोनों देशों के बीच यह सहमति हुई थी कि भारत अपनी पुरानी स्थिति पर वापस लौट जाए लेकिन भारत ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। पाकिस्तान का कहना है कि सियाचिन ग्लेशियर में जहां पाकिस्तानी सेना हुआ करती थी वहां भारतीय सेना ने 1984 में कब्जा कर लिया था। उस समय पाकिस्तान में जनरल जियाउल हक का शासन था। पाकिस्तान का कहना है कि भारतीय सेना ने 1972 के शिमला समझौते और 1949 में हुए करांची समझौते का उलंघन किया है। पाकिस्तान कहता है कि भारतीय सेना 1972 की स्थिति पर वापस जाए और वे इलाके खाली करे जिन पर उसने कब्जा कर रखा है।
      मेरी अपनी राय ये है कि 1972 कि स्थिति ही क्यों ? सत्य तो यह है कि 1948 मे काबलियों के भेष मे पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर मे घुसपैठ कि थी और चूंकि उस समय दोनों ही देशो मे सेनाध्यक्ष की कुर्सी पर अंग्रेज़ सेनाध्यक्ष मौजूद थे इस कारण दोनों ही सेनाओ के सेनाध्यक्ष हारने के डर से एक दूसरे से सैनिक जानकारी साझा करते थे जिस कारण जब 1949 मे युद्ध विराम की स्थिति बनी तो पाकिस्तान द्वारा जो हिस्सा कब्जाया गया जिसे  आज भी लोग PAK Occupied Kashmir” के नाम से जानते हैं। कुछ इसी तरह की कहानी 1971 की बांग्लादेश बनने के समय की है जब पाकिस्तान के 92000 से ज्यादा सैनिको ने मेजर जसजित सिंह अरोरा (उस समय भारत के सेनाध्यक्ष सैम मानेकशा थे) के समक्ष आत्मसमर्पण किया था जो आज भी एक विश्व रेकॉर्ड है, के पश्चात 1972 मे जुल्फिकर अली भुट्टो और श्रीमती इन्दिरा गांधी के मध्य 1972 मे जो शिमला समझोता हुआ था तब लगभग टूटते हुए समझोते को श्रीमान भुट्टो द्वारा रूआँसा होकर यह कहना कि अगर मै खाली हाथ पाकिस्तान गया तो पता नहीं वहाँ कि जनता मेरे साथ कैसा बर्ताव करेगी तब  श्रीमाती गांधी ने तरस खाकर भारतीय सेना द्वारा जीत लिए गए इलाको को वापिस ही नहीं किया वरन 92000 हजार सैनिको को भी वापिस कर दिया था ताकि भुट्टो पाकिस्तान जाकर अपनी इज्ज़त बचा सके । तात्पर्य यह है कि अगर दोनों ही देशो को वास्तविक स्थिति मे आना ही है तो 1972 क्यों 1947 कि स्थिति मे क्यों नहीं।
      दुनिया के सबसे उजाड़, वीरान और ऊँचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर सैन्य गतिविधियाँ बंद करने के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच काँग्रेस शासन के दौरान एक बार फिर बातचीत हुई है। इस बातचीत में भारतीय रक्षा सचिव अजय विक्रम सिंह भारतीय दल के मुखिया थे जबकि पाकिस्तानी शिष्टमंडल का नेतृत्व वहाँ के रक्षा सचिव सेवानिवृत्त लैफ़्टिनेंट जनरल हामिद नवाज़ ख़ान ने किया। किन्तु पूर्व मे हुई सात वार्ताओ की भाँति   नतीजा कुछ नहीं निकला। 1984 से अभी तक Point-NJ-9842 सियाचिन के लिए भारत और पाकिस्तान के मध्य कई बार सैन्य मुठभेड़ हो चुकी है जिनका विवरण निमन्वत है:-

      पाकिस्तानी आर्मी द्वारा बिलफ़ोंड ला जिसका दूसरा नाम “क्वेद पोस्ट” भी था पर जून –जुलाई -1984 के आखिरी दिनो मे  कब्ज़ा कर लिया गया था जिस पर वे लगातार 3 वर्ष तक काबिज रहे। पॉइंट से पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना की हर गतिविधि पर सूक्ष्म द्रष्टि रख सकती थी और भारतीय पॉइंट ऑफ व्यू से ये पोस्ट वापिस भारतीय सेना के अधिकार मे आनी अतिआवश्यक थी अतएव 1987 मे भारतीय सैन्य दल द्वारा आपरेशन राजीव जिसे ब्रिगेडियर जनरल चन्दन नुगयाल द्वारा लीड किया गया और जिसमे मेजर वरिंदर सिंह,Lt.राजीव पाण्डे और नायाब सूबेदार बना सिंह ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए क्वेद पोस्ट” पर पुन: भारतीय ध्वज फहराने मे सफलता पाई।यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि नायाब सूबेदार बना सिंह ने जिस तत्परता से क्वेद पोस्ट” पर अचूक हमला  (Assault) किया उससे पाकिस्तानी आर्मी भौचक रह गई और इससे पहले कि उन्हे कुछ समझ मे आता “क्वेद पोस्ट” पर भारतीय ध्वज फहराया जा चुका थानायाब सूबेदार बना सिंह के इस अदम्य साहस को सलाम करते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हे भारतीय सेना के सबसे बड़े सम्मान “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया।
      सितम्बर-1987 मे ब्रिगेडियर जनरल परवेज़ मुशर्रफ (जो बाद मे नवाज शरीक को पद्चुयत कर पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने) ने पाकिस्तानी आर्मी की SSG की पहली और तीसरी बटालियन (खपलू गैरीसन ) को मिलाकर “आपरेशन कैडद” के तहत एक बड़े  हमले के तहत  क्वेद पोस्ट” को वापिस लेने बाबत हमला किया किन्तु “आपरेशन व्रजशक्ति” चलकर भारतीय सैनिको ने उनकी एक न चलने दी और अपनी पोस्ट को बचा लिया तदुपरान्त उन्होने उसका नया नाम “बाना पोस्ट” रख दिया।
      मार्च –मई -1989 मे भारतीय सेना द्वारा आपरेशन ल्बेक्स” के तहत चूमिक ग्लेसियर पोस्ट से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ा जाना था किन्तु प्रथम प्रयास मे आपरेशन ल्बेक्स” मे सफलता हाथ नहीं लगी ये इसलिए भी आवश्यक था क्यों कि पाकिस्तानी सेना उस पोस्ट से भारतीय सैनिको पर आसानी से नज़र ही नहीं रख रही थी वरन वे नुकसान भी पहुंचा सकते थे। तब ब्रिगेडियर आर के नानावटी के नेत्रतत्व मे कौसर बेस पर आर्टिललेरी से हमले को अंजाम दिया गया और पाकिस्तानी सैन्य बलों को चूमिक ग्लेसियर पोस्ट से खदेड़ दिया गया।
      28 जुलाई 1992 को पाकिस्तानी सेना ने भारी हथियारो से लैस होकर “चुलुंग की बहादुर पोस्ट” पर हमला किया जिसमे पाकिस्तान एयर फोर्स के हेलिकोप्टेर्स का इस्तेमाल किया गया। भारतीय सेना ने “आपरेशन त्रिशूल” के तहत प्रतिरोधात्मक धावा बोला और मसूद नक़वी, सीनियर assault commanders (Northern Area) के साथ कई और सीनियर commanders इस हमले मे मारे गए। ये सब 28 जुलाई से 3 अगस्त 1992 के मध्य घटा।
  मई - 1995 मे पाकिस्तानी आर्मी के एनएलआई यूनिट द्वारा Saltoro defense line के दक्षिणी ओर से  “त्याक्षी पोस्ट “ पर अचानक हमला किया गया किन्तु भारतीय सैन्य दल द्वारा उन्हे वापिस पीछे खदेड़ दिया गया ।
      जून 1999 मे पाकिस्तानी सैन्य दल द्वारा घुसपैठ करने पर भारतीय सेना के  ब्रिगेडियर पी सी कटोच  के नेत्रतत्व मे  कर्नल कोंसम,हिमालय सिंह पॉइंट -5770 (नवीद टॉप /चीमा टॉप /बिलाल टॉप) द्वारा Saltoro defense line के दक्षिणी ओर से हमला कर उसे पाकिस्तानी सैन्य दल के लिए अवरुद्ध कर दिया।
      भारतीय सेना को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने विश्व के सबसे ऊंचे बर्फीले स्थान (समुद्र तल से 21000 फीट,6400 मीटर) पर हेलीपैड का निर्माण कर दिया है और अब उसे सोनम पॉइंट के नाम से जाना जाता है। इस हेलीपैड के द्वारा भारतीय सेना अपनी आर्मी को,उसके लिए आवश्यक सामान (हथियारो और खाने पीने कि चीजे शामिल हैं) को किसी भी मौसम मे हर पॉइंट तक पहुँचने के काबिल हो गई है यहाँ यह विशेष है कि इस पुनीत कार्य को अंजाम भी भारत मे ही निर्मित MK-III ध्रुव हेलीकाप्टर जिसमे स्वदेशी इंजन (शक्ति) लगा है के द्वारा ही पूरा किया जा रहा है। यही नहीं भारत ने वहाँ विश्व के इस सबसे ऊंचे हिमनद पर टेलीफ़ोन बूथ भी स्थापित कर दिया है जिससे जवान वहाँ से अपने घर आसानी से बात कर सकते हैं।
      चूंकि सियाचिन विश्व का सबसे ऊंचा हिमनद है और वहाँ पर सैनिको के अतिरिक्त कोई भी survive नहीं कर सकता। सियाचिन मे 97 प्रतिशत मौतें विषम मौसम और Avalanche (बर्फीले तूफान ) आने के कारण होती हैं। 11 फ़रवरी 2010 को southern glacier पोस्ट पर Avalanche आने के कारण 2 लद्दाखी स्काउट्स के अलावा 1 भारतीय सैनिक भी वीरगति को प्राप्त हुआ। इसी तरह 2011 मे 24 भारतीय जवान मौसम और दुर्घटना मे अपनी जान गंवा बैठे।12 दिसम्बर 2012 को एक Avalanche के चपेट मे आकार 6 भारतीय सैनिक शहीद हुए। 2015 मे 4 भारतीय सैनिक तब शहीद हो गए जब एक Avalanche कि चपेट मे उनका स्नो स्कूटर आ गया।इसी प्रकार 4 जनवरी -2016 मे तीसरी लद्दाख स्काउट्स के चार जवान मारे गए जब वे पेट्रोल ड्यूटि कर रहे थे।


      इस महीने कि 3 फ़रवरी-2016 को प्रात: उत्तरी ग्लेशियर में भारतीय सेना की सबसे महत्वपूर्ण पोस्टों में से एक सोनम पोस्ट के 10 फौजी 3 फरवरी को रूटीन पैट्रोल पर गए, और लौटकर दोपहर को लगभग 1:30 बजे उन्होंने रिपोर्ट किया... दोपहर बाद 3:30 बजे उन्होंने रेडियो के जरिये सब कुछ ठीक होने की जानकारी भी दी... लेकिन शाम को 5:30 बजे सोनम पोस्ट नामक की कोई पोस्ट बची ही नहीं थी... वहां थी तो सिर्फ 1,000 फुट चौड़ी, 800 फुट लंबी और 50 फुट ऊंची बर्फ की दीवार। 19600 फीट कि ऊंचाई पर स्थित 6th मद्रास बटालियन के 10 जवान एक Massive Avalanche के आने से मौत के मुँह मे समा गए । इस विषय मे भारत सरकार द्वारा उन सभी 10 जवानो को शहीद घोषित कर दिया गया किन्तु भारतीय सेना द्वारा चलाए गए रेसक्यू आपरेशन जिसमे प्रशिशित कुत्ते ने अहम भूमिका निभाई और आपरेशन के छटवें दिन 35 फीट बर्फ के नीचे लांस नायक हनुमंथप्पा कोप्पड़ को  जीवित ढूंढ निकालने मे सफलता पाई। हनुमंथप्पा कोप्पड़ को तुरंत ही ज़रूरी चिकित्सीय सहायता प्रदान करने के बाद देल्ही स्थित RR hospital जो कि आर्मी का है मे भर्ती किया गया लगभग 4 दिन ज़िंदगी और मौत कि आँख मिचौली के उपरांत गुरुवार 11 फरवरी -2016 को इस वीर सपूत ने इस संसार से विदाई ले ली।

:::::प्रदीप भट्ट ::::::::09.02.2016