Saturday, 30 September 2017

ये दुर्घटनाएं कुछ कहती





“ये दुर्घटनाएँ कुछ कहती हैं”
(भारतीय रेल)


कल मम्बई के एल्फिस्टन रोड एवं परेल उपनगरीय रेलवे स्टेशनों को जोड़ने वाले फुटओवर ब्रिज पर लगभग 10:30 बजे के समय उडी अफवाह कि ब्रिज गिरने वाला है भगदड़ मच गयी और इस भगदड़ ने 22 लोगों की जान ले ली इसके अतिरित 30 के लगभग लोग घायल भी हो गए  27 घायल हो गए। रेलवे के सूत्र जहाँ उस पुल की चौड़ाई 8  मीटर बता रहे हैं वहीँ उस फुटओवर ब्रिज की चौड़ाई नापने पर मत्री 2.5 मीटर चौड़ी ही पाई गई। ये एक अजीब तरह का विरोधाभास है आख़िर साढ़े पांच मीटर चौड़ाई कहाँ चली गई? पिछले ही वर्ष इस फुट ओवर ब्रिज को बनवाने के लिए रेलवे ने 11.8  करोड़ रूपये की राशी आवंटित की थी किन्तु वही लालफीताशाही के चलते उस पर कोई कार्रवाई ही अभी तक नहीं हो पाई। आख़िर हम इतने असंवेदनशील कैसे हैं? क्या रेलवे प्रशासन इस बात का इंतजार करता रहता है कि जब तक दुर्घटना न हो,लोग ना मेरे तब तक वो कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं करने वाली ? ये स्थिति निश्चित रूप से अच्छी नहीं है


वर्ष 2017 को अगर किसी ख़ास कारण से याद किया जायेगा तो निश्चित भारतीय रेल प्रशासन के लिए।जितनी दुर्घटनाएँ इस वर्ष हुई हैं मुझे याद नहीं पड़ता कि इससे पूर्व कभी इस तादाद में दुर्घटनाएँ हुई हों और उनमें भी ट्रेन के डिब्बों का पटरी से उतरना? ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे प्रभु की रेल प्रभु की भी नहीं सुन रही थी। और जहाँ उसका मन होता था वह पटरी छोडकर पटरी के किनारे उतर पड़ती थी जैसे कि उसे अचानक याद हो आया हो की मुझे तो खेत में भी कुछ काम करना था?खैर ये सिलसिला अभी भी अब जब रेल मंत्री बदल चुके हैं और पियूष गोयल को ये अहम मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया है। यहाँ एक बात तो निश्चित है कि इन दुर्घटनाओं के लिए किसी भी प्रकार से रेल मंत्री तो दोषी नहीं हैं। क्यों कि अब हर पटरी की पड़ताल मंत्री महोदय तो जाकर करने वाले नहीं इन सब कामों के लिए एक तंत्र बना है जिसकी महती जिम्मेदारी है कि वह दिए गए कार्यों का पूरी निष्ठा से किर्यान्वयन करे किन्तु ऐसा होता नहीं हैहर विभाग में लालफीताशाही इस कदर हावी है कि सब अपनी जिम्मेदारी दूसरे पर थोप कर साइड से निकल जाना चाहते हैं। यही एक कारण नहीं है भारत में रेल दुर्घटनाओं के लिए

२२ दिसम्बर १८५१ को भारत की प्रथम रेल (मॉल गाड़ी ) रूडकी जो अब उत्तरांखंड में आता है से चलकर एक गाँव तक पहुंची। इस गाड़ी का उपयोग उस गाँव के किसानों के लिए मिट्टी लाने के लिय उस माल गाड़ी का परिचालन किया गया।  इसके लगभग दो वर्ष बाद 16 अप्रैल 1853 को इस 35 किमी के सफर का शुभारंभ किया गया था। भाप के इंजन के साथ 14 डिब्बों की रेलगाड़ी मुंबई से ठाणे के बीच रवाना हुई थी।। तब से अब तक भारतीय रेल अपना सफ़र तय करते हुए यहाँ तक आ पहुंची है जहाँ अब वह मुंबई अहमदाबाद के मध्य बुलेट ट्रेन १९२२ तक चलाने की तैयारी कर रही हैजिसे डेल्ही से मुंबई डेल्ही से कोलकत्ता,डेल्ही से चेन्नई तक चलाने की बातें की जा रही है। जो कि अच्छी बात है किन्तु हमें वर्तमान रेलवे की दशा और दिशा दोनों सुधारने पर भी धयान दिए जाने की आवश्यकता है। भारतीय रेलवे का नेटवर्क दुनिया में अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। हालंकि तकनीक के मामले में ये तीनों देश भारत से कुछ या बहुत आगे हैं।जब हम इस बात को गर्व से कहते हैं कि भारतीय रेल दुनियां की चौथी सबसे बड़ी रेल व्यवस्था है तो हमें पहले तीनों देशो की रेल व्यवस्थाओं पर भी गौर करना चाहिए ताकि गुणवत्ता बनी रहे।

फर्स्ट क्लास में सलाम करते थे हैड टीटी उस समय इस ट्रेन में फर्स्ट क्लास में सफर करने वाले का अलग ही सम्मान होता था। फर्स्ट क्लास का इतना रुतबा था कि ट्रेन के रुकने पर हैड टीटी आकर डिब्बे में सलाम मारकर सार-संभाल करते थे। भोजनालय में इतना स्वादिष्ट खाना बनता था कि शहर से लोग डबल रोटी लेने ट्रेन तक जाया करते थे।

भारत में जहाँ सबसे पहले रेल 1851 में दौड़ी थी, जबकि चीन में इसके 23 साल बाद यानी 1876 में। जब भारत आजाद हुआ तो भारत में रेल नेटवर्क की कुल लंबाई 53,596 किमी थी, जबकि चीन का रेल नेटवर्क सिर्फ 27,000 किमी ही था। स्वतंत्रता के 70 वर्षों के पश्चात् भारत में केवल 12,000 किमी की या उसे कुछ ही अधिक बढ़ोतरी हो पाई है, जब कि चीनमें लगभग 80,000  किमी के रेल नेटवर्क के साथ भारत से काफी आगे निकल गया है तथा उसका रेल नेटवर्क भारत की तुलना में फैलता ही जा रहा है। उसने ठेठ तिब्बत तक जिसे दुनियां की छत के नाम से भी जाना जाता है तक रेल लाइनें बिछा दी हैं। भारत में  भारतीय रेलवे में तीन तरह की प‍टरियां बिछी हुई हैं, ये हैं- बड़ी लाइन, छोटी लाइन तथा संकरी लाइन। इनमें से बड़ी लाइन की पटरियों का संजाल भारत के अधिकांश हिस्सों में फैला हुआ है। अधिकतर गा‍ड़ियां इसी पटरी पर चलती हैं।
छोटी लाइन की पटरियां अब धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं। मध्यप्रदेश में संभवत: रतलाम से अकोला तक का छोटी लाइन का नेटवर्क बचा हुआ है। यह भाग भी अब शीघ्र ही बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा।
संकरी लाइन का भी भाग मप्र में संभवत: नागपुर-छिंदवाड़ा-जबलपुर वाले भाग में ही शेष रह गया है, जो कि भविष्य में बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा। इसके बाद शायद ही कोई छोटी या संकरी लाइनें सिर्फ़ मध्य प्रदेश  में ही शेष रह पाएगी।



भारतीय रेल की कुछ रोचक जानकारी

·        भारतीय रेलवे अधिनियम वर्ष 1890 में पारित किया गया।
·        वर्ष 1939 में वातानुकूलित यात्री गाड़ी चलाई गई।
·        स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय रेल का 1950 राष्ट्रिय कारण कर दिया गया।
·        भारतीय रेलवे का शुभंकर लालटेन (जिसमें हरी बत्ती जलती रहती है) उठाए एक हाथी है।
·        वर्ष 1952 में कुल छ: जोनों के साथ जोनल सिस्टम शुरू किया गया,वर्तमान में कुल 17 जोन कार्य कर रहे हैं।
·        सबसे व्यस्त रेलवे नेटवर्क में भारतीय रेल की गिनती होती है।
·        एक वर्ष में लगभग 600 करोड़ से अधिक यात्री यात्रा करते हैं।
·        रेलवे में लगभग 13 लाख लोग काम करते हैं।
·        हिमसागर एक मात्र ऐसी ट्रेन है जो कुल 3753 किलोमीटर का सफ़र कन्याकुमारी से जम्मू के मध्य तय करती।
·        सबसे बड़ा और लम्बा प्लेटफार्म खडगपुर है जिसकी लम्बाई 1072 मीटर है।
·        गतिमान एक्सप्रेस ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार पर चल सकती है इससे पूर्व भोपाल शताब्दी थी जिसकी अधिकतम गति 140 कोलोमिटर प्रति घंटे थी।
·        भारतीय रेल में लाइफ लाइन (हॉस्पिटल ऑन व्हील) नामक ट्रेन भी है जिसमें इलाज की सभी सुविधाएँ मौजूद है यहाँ तक कि ओपरेशन की भी व्यस्था भी है।
·        फेयरी क्वीन दुनियां में सबसे पुराना इंजन है, जो अभी भी दौड़ता है। 
·        वर्ष 1977 में धरोहर, पर्यटन शिक्षा मनोरंजन के सरंक्षण एवं प्रोत्साहन के राष्ट्रिय रेल संग्रहालय खोला गया
·        भारत की भव्य रेल गाड़ियों जैसे कि डेक्कन ओडिसी, पैलेस ऑन व्हील एवं 100 वर्ष से भी ज्यादा पुराणी ट्रॉय ट्रेन को सोसाइटी ऑफ़ इंटरनेशनल ट्रेवलर्स ने 25  सर्वश्रेष्ठ ट्रेनों की सूचि में शामिल किया है। 
·        वर्ष 2002 में जन शताब्दी ट्रेन की शुरआत की गई 
·        वर्ष 2007 से देशभर में टेलेफोन नंबर 139 की ट्रेन की सामान्य जानकारी के लिए शुरुआत हुई 
·        वर्ष 2004 से इन्टरनेट के माध्यम से आरक्षण की शरुआत हुई
·          1974 में हुई भारतीय रेलवे की हड़ताल अब तक की सबसे बड़ी हड़ताल मानी जाती है। यह हड़ताल 20 दिन चली थी। 1974 के पश्चात रेलवे में कोई हड़ताल नहीं हुई।
·        1974 में हुई भारतीय रेलवे की हड़ताल अब तक की सबसे बड़ी हड़ताल मानी जाती है। यह हड़ताल 20 दिन चली थी। 1974 के पश्चात रेलवे में कोई हड़ताल नहीं हुई।
·        भारतीय रेलवे का नेटवर्क 1.16 लाख किमी लंबा है। कोई 15 हजार रेलगाड़ियां इस नेटवर्क पर दौड़ती हैं। इस नेटवर्क पर 6 हजार से ज्यादा स्टेशन हैं। करीब 2 करोड़ लोग रोज रेल‍गाड़ियों के माध्यम से इधर से उधर आते-जाते हैं।

भारतीय ट्रेन में आमूल चूल परिवर्तन की आवशयकता तो है किन्तु वो कब और कैसे संभव है इसका जवाब तो रेल मंत्रालय ही दे सकता है क्यों कि बार बार होती दुर्घटनाएँ जनमानस में एक ग़लत सन्देश देती हैं जहाँ आवशयकता है वहां खाली पदों को तुरंत भरा जाना ही चाहिए क्यों कि सारे काम कंप्यूटर तो करने से रहा? मैंन पवार की ज़रूरत होती ही है ,इतना बड़ा नेटवर्क संभलना भी बच्चों का खेल नहीं है किन्तु भारतीय रेल में इसके कार्यों की समय समय पर समीक्षा की जाती रहनी चाहिए ताकि मानव रहित रेलवे क्रासिंग हो ये ढहते पुल (रेलवे के) इनका निरीक्षण और समाधान समय समय पर किया जाता रहना आवश्यक है। विजयदशमी से एक दिन पूर्व 22 लोगों की मौत कुछ कहती है आवश्यकता है सिर्फ़ ध्यान से सुनने,समझने और अमल करने की।



                  - प्रदीप भट्ट –

                                              Satarday, September 30, 2017