Tuesday, 28 March 2023

"कभी कभी बेमन भी करना पड़ता है "

रिपोतार्ज़

“कभी कभी बेमन भी करना पडता है”

16 मार्च को हैदराबाद की वरिष्ठ साहित्य्कार एवम कादम्बिनी क्ल्ब की सर्वेसर्वा अहिल्या मिश्रा जी का फोन आया आया। अत्र कुशलम तत्रास्तु के उपरांत उहोंने नव निर्मित मकान के गृह प्रवेश के लिए सादर आमंत्रित किया साथ ही बताया कि कादम्बिनी क्ल्ब अब तीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है इसलिए अपनी परम्परा तो तोडते हुए क्ल्ब की 368वीं सभा का आयोजन 19 मार्च-2023 को उनके नवनिर्मित घर में साहित्यिक मनिषियों के सानिध्य में समप्न्न होगा। मेरा मानना है कि वरिष्ठों का आग्रह भी आदेश के बराबर होता है। अपनी आदतानुसार मैं निर्धारित समय से कुछ मिनिट पूर्व ही मधुरा नगर स्थित उनके आवास पहुँच गया। निश्चित रुप  से नव निर्मित गृह का निर्माण बडे ही मनोयोग से किया गया है। अतिथियों के स्वागत में वे स्वयं भूतल स्थित सभा गृह में उपस्थित थीं। अपनी निगरानी में वे प्रत्येक कार्य का निरीक्षण स्वंय ही कर रही थी। मेरे पहुँचते ही उन्होंने आग्रह किया कि मैं पहले नव निर्मित गृह का अवलोकन कर अपना आशीर्वाद प्रिय मानवेंद्र, डॉक्टर आशा मिश्र ‘मुक्ता’ एवम दोनों प्रिय पोतियों को दूँ। यही घर के बडो का काम है जिसे वे पूरी तन्मयता से पूर्ण करने का प्र्यास कर रही हैं। मेरा मानना है कि “बडा वही जो बडो जैसे काम करे”। इसी वर्ष अहिल्या जी अपने जीवन के 75 वर्ष भी पूरे कर रहीं हैं। मतलब एक साथ तीन शुभ कार्य- नव निर्मित गृह प्रवेश, कादम्बिनी क्ल्ब की 368वीं सभा का आयोजन एवम सोने पे सुहागे स्वरुप अहिल्या जी का 75वां जन्मदिन!!!


धीरे धीरे सभा सजने लगी । स्वादिष्ट एवम सुगंधित भोजनोपरांत अहिल्या जी के अतिरिक्त वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी, वरिष्ठ साहित्यकार वेणु गोपाल भट्ट्ड जी, वरिष्ठ साहित्य्कार अजीत गुप्ता जी, केंद्रिय हिंदी संस्थान के निदेशक डॉक्टर गंगाधर वानोडे जी,सुमन मलिक एवम मदन देवी पोकरणा जी मंचासीन हुए। जहाँ प्रथम सत्र में  शुभ्रा मोहंतो एवम उनकी टीम ने होली के रंगो की बौछार अपने गीतों द्वारा की वहीं दूसरे सत्र में उपस्थित कवियों ने अपने अपने रचना पाठ से सबका मन मोह लिया। दर्शन सिंह, सुहास भटनागर, श्रीमती एवम श्री सोनी, सुनीता लुल्ला, मोहिनी गुप्ता, मायला जी, धानुका जी, भगवती अग्रवाल, रवि वैद्य , अद्रिका कुमार,डॉक्टर राशि सिन्हा, डॉक्टर राजीव सिंहनितेश सागर, विनोद अनोखा, सीताराम माने, अजय पाण्डेय, संगीता शर्मा, किरण सिंह, तृप्ती मिश्र, विनीता शर्मा, सिवांगी गुप्ता, तरुणा मन्ना, सरिता सुराणा, आर्या झा, मोहित ओझा, रंजीता, पूनम जोधपुरी, सत्य नारायण काकडा, जी पर्मेश्वर, डॉक्टर कृष्णा सिंह, दीपक दिक्षित, इंदु सिंह, डॉक्टर पूर्णिमा शर्मा,  सुनिला सूद, मीना मूथा, शिल्पी भटनागर, मंचासीन सभी वरिष्ठ साहित्यकारों  ने अपनी अपनी रचनाओं से होली मिलन कार्यक्रम में भरपूरि समां बाँधा। मैंने भी अपनी दो रचनाओं से उपस्थित जन समूह का अपनी ओर ध्यान आकृष्ट किया।

“रंगो की बौछार, प्यार की होली में
तन मन भीगा जाए, प्यार की होली में
जल सरंक्षण पर तुम हमको, लेक्चर दो
अब अपनी सरकार, प्यार की होली में”

“तुलसी सूख जाएगी”

“वो बच्चों की तरह भोली है, हरदम मुस्कुराएगी
अगर अपनी कसम दे दूँ, मुझे आँखे दिखाएगी
करुँ मैं लाख कोशिश पर, शहर बिलकूल न आएगी
मेरी माँ को यही डर है, के तुलसी सूख जाएगी”


मुझे प्रसन्न्ता है कि मेरी दूसरी रचना “ तुसली सूख जाएगी” को उपस्थित जन समूह द्वारा खडे होकर सराहा गया। हैदराबाद में ये दूसरा मौका था जब मुझे ये सम्मान मिला। लगभग साढे छ: बजे कार्यक्रम का समापन हुआ। एक बात जो हमें खल रही थी कि संतोष पाण्डेय उर्फ संतोष रजा जो अच्छे गज़ल कार हैं क्यूँ नहीं आए। विनोद अनोखा जी से ज्ञान हुआ कि उनकी तबियत ठीक नहीं है इसलिए उन्हें हॉस्पिटल के आई सी यू में एडमिट किया गया है। हम सभी उनकी सेहत के लिए प्रार्थना कर ही रहे थे कि कार्यक्रम खत्म होते होते दु:खद सूचना प्राप्त हुई कि प्रिय संतोष हमारे बीच नहीं रहे। ये हम सभी के लिए जबरदस्त झटका था। पिछले वर्ष ही उनकी धर्मपत्नि का देहांत हुआ था और इस वर्ष...... ये अपूर्णीय क्षति है। मुझे भी दो तीन लगे इससे उबरने में लेकिन आश्चर्यजनक रुप से कल प्रथम नवरात्र के दिन प्रिय संतोष मुझे स्वपन्न में दिखायी दिये। अजीब बात ये है कि वो किसी दवाई और वैद्य का जिक्र रहे थे । सायं सुहास भटनागर से मुलाकात के दौरान मैंने उनसे ये बात साझा की। ये ठीक है जो इस संसार में आया है वो जाएगा ही किंतु....... कुछ का जाना अचम्भित कर जाता है।14  जून-2020 में सुशांत का जाना भी कुछ ऐसा ही था तब मैंने सुबह कुछ पंक्तियाँ लिखी थी और दोपहर होते होते वो मनहूस खबर आ गई थी। 

“जाने का तेरे गम भी है, अफसोस भी मगर
इतना मलाल है तू, बता कर नहीं गया”

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-23.03.2023

Friday, 17 March 2023

बेबी एलीफेंट की फुसफुसाहट भी सुन लीजिए हुज़ूर

रिपोतार्ज़ “ बेबी ऐलीफेंट की फुसफुसाहट भी सुन लीजिए हुज़ूर” 

 कितना अच्छा लगता है न आप सुबह सोकर उठे और आपको खुशखबरी मिले कि भारत में निर्मित आर आर आर और एलिफेंट व्हिस्पर्स को ऑस्कर मिल गया है। निश्चित मन गदगद हो जाता है। लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता कि आप सुबह सोकर उठे और आपको खुशखबरी ही मिले कभी कभी उल्टा भी हो जाता है। 25 जून-1975 में इमर्जेंसी की खबर कुछ ऐसी ही थी। 31 जुलाई-1980 मोहम्म्द रफी के निधन की खबर ऐसी ही थी। 13 अक्टूबर-1987 को सोकर उठा तो पता चला किशोर कुमार, नहीं रहे| इसी प्रकार 21 मई- 1991 में मैं उदयपुर में था सोकर उठा तो पता चला कि राजीव गाँधी नहीं रहे। निश्चित ही ये ऐसी तारीखें हैं जिन्हें कोई भी याद नहीं रखना चाहेगा। मैं उन दिनों भूटान में था जब 21 मई-1994 की सुबह खबर मिली कि सुष्मिता सेन मिस यूनिवर्स बन गई हैं। मैं टी वी पर ये न्यूज़ देखते ही उछल पडा था। फिर यही अनुभूति 19 नवम्बर-1994 को हुई जब ऐश्वर्य राय विश्व सुंदरी चुनी गई। 17 नवम्बर-1966 रीटा फारिया जो कि आज के गोवा राज्य से थीं पहली एशियाई मूल की सुंदरी थी जिन्होंने विश्व सुंदरी का ताज पहना था। मुझे याद है सुष्मिता सेन और ऐश्वर्य राय को दिल्ली में राष्ट्रपति की बग्गी में बिठाकर घुमाया गया था। आप इसी बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पूरे 28 वर्षो के बाद 1994 में भारत की दो सुंदरियों ने पहली बार मिस यूनिवर्स एवम विश्व सुंदरी जैसे खिताब जीतकर भारत की साख बढाई थी। इसके पीछे के कारणों पर फिर कभी प्रकाश डालूँगा लेकिन सफलता तो सफलता है फिर वो किसी भी रुप में मिले।

            2008 में स्लमडॉग मिलेनियर के गाने को ऑस्कर मिला लेकिन वो खुशी बस खानापूर्ति वाली ही थी। किंतु इस बार की खुशी वास्तविक एवम दोगनी रही। आर आर आर एक बेहतरीन फिल्म बनी है जो कि हैदराबाद के मुक्ति संग्राम पर आधारित है जिस काल का इसमें चित्रण किया गया है उस समय हैदराबाद स्टेट में रजाकारों का जुल्म अपने पूरे जोरों पर था। उस समय दो नाम बेहद सुर्खियों में रहे। कोमाराम भीम जो कि आदीवासी थे और हैदराबाद के मुक्ति संग्राम में उनका बहुत बडा योगदान है (मैंने अभी हाल ही में इनके ऊपर एक आलेख उस्मानिया यूनिवर्सिटी में पढा था) के अतिरिक्त अल्लूवरी सितारमा राजू। कोमाराम भीम के करेक्टर को फिल्म में जूनियर एन टी आर ने निभाया है अजीब बात ये कि कोमाराम भीम एक हिंदू करेक्टर था किंतु निर्माता निर्देश्क ने उस करेक्टर पर अनाव्श्यक रुप से मुस्लिम मुल्म्मा चढा दिया गया जिसकी कोई ज़रुरत नहीं थी,ये प्रश्न विचारणीय है। इसी प्रकार 2007 में आई फिल्म चक दे इंडिया के करेक्टर पर भी मुस्लिम मुलम्मा चढा दिया गया था जब कि वास्तविक रुप में चक दे इंडिया फिल्म मीर रंजन नेगी (हॉकी प्लेयर) पर बनी थी। अभिवय्क्ति की आजादी का बेज़ा इस्तेमाल कैसे किया जाता है इसे फिल्म उद्योग में आसानी से देखा जा सकता है। वैसे मेरी नज़र में ये एक बीमार मानसिकता से ज्यादा कुछ नहीं है। पिछ्ले कुछ दिनों से हिंदी फिल्म उद्योग के पतन के कारणों में अत्यधिक नग्नता परोसने के अतिरिक्त ये भी एक कारण रहा है।


द एलिफेंट व्हिस्पर्स- एक साफ सुथरी फिल्म है जिसमें बोमन एण्ड बैली (वास्तविक करेक्टर) द्वारा एक अनाथ हाथी के एक बच्चे को पालने से लेकर दोनों के मध्य पनपते रिश्ते को बेहद खूबसूरती से दर्शाया गया है। ये एक 39 मिनिट्स की शार्ट फिल्म है। बेबी एलीफेंट जिसका नाम फिल्म में रघु है, के साथ ताल मेल बिठाने में निर्देशक कर्तिकी गोंसाल्विस को काफी वक्त लगा। इसलिए 39 मिनिट्स की ये फिल्म लगभग 5 वर्षो में बनकर तैय्यार हुई। मूलत: यह फिल्म तमिल एवम जेन्नु कुरुम्बा भाषा में बनाई गई है। जहाँ तक बोमन एण्ड बैली का प्रश्न है वो मानव हैं किंतु अनाथ बेबी एलीफेंट तो वास्तव में जानवरों की ही श्रेणी में ही आएगा न किंतु तीनों के रोज मर्रा की ज़िंदगी पर पाँच साल तक बारिकी नज़र रखना और उसे पर्दे पर उतारना आसान काम तो कतई नहीं है किंतु जो काम आसान हो उसे ऑस्कर नहीं मिला करते। निर्देश्क कार्तिकी गोंज़ालिव्स एवम प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा ने वास्तव में इस प्रोजेक्ट में अपना कीमती समय लगाया है इसके अतिरिक्त सिनेमेटोग्राफर करण थप्लियाल, क्रिश मखीजा, आनंद बंसल और निर्देशक कार्तिकी गोंजाल्विस का समर्पण काबिले तारीफ है। इस फिल्म ने ऑस्कर जीतकर बताया कि “struggle is the last mantra of success”.

            आर आर आर(रौद्रम रानम रुधिराम) ये ठीक है कि नाटू नाटू गाने की सफलता इस समय पूरे विश्व में अपना परचम फैहरा रही है जिससे द एलीफेंट व्हिस्पर्स जैसी शार्ट फिल्म को उतनी तव्ज्जो नहीं मिली जितनी की वह हकदार है किंतु मेरा मानना है धीरे धीरे ही सही लोग अब इस फिल्म की चर्चा करने लगे हैं। द एलीफेंट व्हिस्पर्स एक खूबसूरत फिल्म है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि आर आर आर फिल्म का बस गाना ही बढिया बन पडा है। नहीं हुज़ूर! बल्कि पूरी फिल्म जिस भव्य स्तर पर बनाई गई है वो लाजवाह है। हमारे यहाँ (नोर्थ ) में एक कहावत काफी प्रचलित है कि नाचने वाले के पैर नहीं रुकते और कहने वाले की ज़ुबान नहीं रोक सकते। तो नाटू नाटू गाना कुछ ऐसा ही बन पडा है कि जैसे ही ये बजेगा आपके पैर खुद ब खुद थिरकने को मजबूर हो जाएगें। 2011 में एक गाने ने बडी धूम मचाई थी, कुछ याद आया, नहीं तो हम याद दिला देते हैं। “ व्हाय दिस कोलावरी डी” उस गाने की लोकप्रियता ऐसी थी कि लोग ट्रेन में हों या बस में, ड्राइंग रुम में हों या बॉथरुम में, सडक पर हों या ऑफिस में बस यही एक गाना लोगों की ज़ुबान पर चढा हुआ था। मुझे याद है मैं उस समय मुम्बई में पोस्टिड था एक नायिका ने कहा क्या करूँ ये गाना मेरे दिमाग में घर कर गया है बाहर निकलता ही नहीं। सामान्यत: हिंदी फिल्म के पुराने गाने लोग आज भी गुनगुनाते मिल जाएंगे शादी विवाह में पंजाबी सॉन्ग की धूम रहती है। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि आने वाले एक आध साल तक नोर्थ हो या साउथ सब जगह शादियों में इसी गाने नाटू नाटू की धूम मचने वाली है। एस एस राजमौली का निर्देशन (मक्खी, बाहुबली सीरिज़) और अब आर आर आर बस नाम ही काफी है। राजमौली की सफलता की कहानी उनके द्वारा निर्देशिल फिल्में खुद बयाँ करती है निश्चित हिंदी फिल्म निर्देशको को इससे जलन हो सकती है। जूनियर एन टी आर हों या राम चरण तेजा ( दोनों ने अपने पिता की विरासत को अच्छे से आगे बढाने का काम किया है) संगीत निर्देश्क एम एम किरवानी जो अपने संगीत से कितनी ही फिल्मों में लोहा मनवा चुके हैं। गीतकार चंद्रबोस वाह क्या कहने। इस गाने की सफलता का सबसे बडा कारण इसका डांस जिसके बिना इतना बडा हिट हो ही नहीं सकता था। कोरिओग्राफर प्रेम रक्षित जिन्होंने कुल 110 डांस स्टेप्स तैय्यार किये जिसमें से लगभग 40 को गाने में इस्तेमाल किया गया। 

            अंत में दोनों ही फिल्मों की पूरी टीम बधाई की पात्र है। उनके अथक प्रयास से ही आज भारत की झोली में दो ऑस्कर आए हैं। मैं इन्हें सिर्फ पुरुस्कार नहीं मानता वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढती भारत की साख मानता हूँ। पूरे विश्व में सिर्फ एक ही चीज़ कॉमन है और वह है बिजनेस्। मैं बार बार कहता रहा हूँ कि इस विश्व को लगभग दो हजार पॉवरफुल लोग चला रहे हैं जिसमें बिजनेस ही सर्वोपरि हैं। वे ही तय करते है कि किस देश से किसको कितना फायदा होगा उसी अनुसार फिर राजनीति तय की जाती है। ये काफी बडा विषय है इसलिए फिर कभी। फिलहाल तो आनंद के सागर में गोते लगाते रहिए। 

 -प्रदीप देवीशरण भट्ट-17.03.2023 हैदराबाद (भारत)