Thursday, 28 December 2023

संस्कृत के श्लोकों से गुंजित हुआ केरल अधिवेशन

रिपोतार्ज़ 

         (प्रदीप भट्ट से प्रदीप भट्ट ,'यायावर')

" संस्कृत के श्लोकों से गुंजित हुआ केरल अधिवेशन "

दक्षिण भारत की यात्रा के अंतिम पड़ाव में कन्याकुमारी से ट्रेन द्वारा लगभग ढाई घंटे  की सुखद यात्रा (हरियाली एवम् हरे पहाड़ों के नयनाभिराम दर्शन करते हुए) तिरुवनंतपुरम जा पहुँचे। रेलवे स्टेशन से होटेल की दूरी मात्र 600 मीटर बीच में बस स्टैंड भी। मुझे बेसाख्ता अंबाला कैंट  स्टेशन की याद हो आई सड़क के एक ओर स्टेशन दूसरी ओर बस स्टैंड। ख़ैर ऑटो लिया और सीधे होटेल KTC grand chaithram। आप सोच रिये होंगे कि ये क्या लाट साहिबी हुईं कि 600 मीटर के लिए ऑटो जब कि स्वामी प्रदीपानंद तो रोज़ाना दस हज़ार क़दम चलने के आदी हैं 😜तो भैय्ये दो लोगों के पास कुल ठो चार नग अब सर पे कुली की तरह सूटकेस रख के तो न चल सकते। मान लो लुढ़का के भी ले जावें तो 4* होटेल वाले का दरबान क्या सोचेगा कहाँ से ठलुए आ गए। 😜चलो उसे तो  डपट भी देंगे लेकिन रिसेप्शन पर बैठी हुईं किसी महिला की निग़ाह पड़ गईं तो .... अपनी तो बेइज़्ज़ती में दाग़ लगाना तय था न जी 😊 सो भईय्या ऐसा रिस्क न लेते हुए सीधे होटेल में एंट्री ली। पुछताछ की तो पता चला हमारे रूम met राजपाल जी तिरुवनंतपुरम के लोकल दौरे पर हैं। ख़ैर इस समस्या का तोड़ पूछा तो रिसेप्शनिस्ट ने तुरंत अपने मोतियों जैसे सफेद दाँतों के साथ फ़्री में ख़ूबसूरत मुस्कान के साथ डुप्लीकेट चाबी बनाकर हमारे हवाले कर दी। मोतियों जैसे दाँत देखकर हम सोचने लगे ये मोहतरमा कौन सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करती होंगी जो इनके दाँत हैदराबादी मोतियों की तरह चमक रिये हैं।😄 मोहतरमा का रंग साँवला  या काला होता तो कोई बात नहीं लेकिन दुग्ध में नहाई काया और चिट्टे रंग पर मोतियों जैसे दाँत ये तो वही बात हुईं कि beauti with brain कहावत याद हो आई 👩‍❤️‍👨। ख़ैर ख़ुशी और ऊर्ज़ा से लबरेज़ जब हमने कमरे में प्रवेश किया तो स्वप्न से जागने जैसा अनुभव हुआ। कमरे की हालात बैचलर्स लाइफ के कमरे सी प्रतीत हो रही थीं।😉सो पहला काम साथ आए होटेल अटेंडेंट को दिया मैं रिसेप्शन में बैठता हूँ कृपया इस कमरे को किसी सुघड़ महिला के कमरे की तरह कर दें। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से हमें देखा तो हमें अपनी गल्ती का अहसास हो गया। मलयालम हमें नी आवै और हिन्दी अंग्रेज़ी उसे नी आवै तो फ़िर एक समझदार व्यक्ति की तरह उसे और हाउस कीपिंग स्टाफ को इशारों में समझाया तब बात बनी।👏

नहा धोकर तैय्यार हुए और सांय 5 बजे से होने वाले कार्यक्रम स्थल का नीरव जी संग जायज़ा लिया। लौटकर नीरव जी के रूम में ही आए और अवगत कराया कि केरल अधिवेशन के लिए जो थीम सॉंग लिखा है उसे तरन्नुम में प्रस्तुत करना मुश्किल है क्यों कि हरिद्वार महोत्सव में ईनाम  स्वरूप खाँसी भेंट में पाएं हैं।तक़लीफ़ खाँसी से नहीं वरन इस बात से है कि ये मुई खाँसी भी हमारी तरह ही बेसुरी है।😱  नीरव जी ने प्रेम भरी एक वक्र दृष्टि हम पर डाली,उस दृष्टि से हम तो सिहर गए किंतु खाँसी तो खाँसी ठहरी सुसरी और ऐंठ गईं।  नीरव जी ने हुक्म दे दिया थीम सॉंग तो तरन्नुम में ही होगा हमने एक बंध तरन्नुम में दो बार खाँसते हुए सुनाया लेकिन उनका आदेश ज्यों का त्यों कि प्रस्तुति तरन्नुम में ही होगी। ख़ैर ठीक 5 बजे कार्यक्रम की शुरुआत हो गईं हम प्रथम पंक्ति में बैठे बैठे पानी पीते रहे ताकि गला तर रहे। देवियों की प्रस्तुति के बाद देवताओं में प्रथम नंबर पर हमें आमंत्रित किया गया पानी साथ लेकर स्टेज़ पर। माँ शारदे को स्मरण किया और लगभग दो मिनिट की प्रस्तुति तरन्नुम में दी। प्रस्तुति के मध्य खाँसी न आना इस बात का द्योतक रहा कि है नीयत साफ़ हो तो बरक्कत तय है। लगभग 7 बजे तक कार्यक्रम चला सभी मित्रों ने अपनी अपनी प्रस्तुतियों से कार्यक्रम में समा बाँधे रक्खा।

🤗abs 4 की प्रथा के मुताबिक डिनर पश्चात रात्रि में नीरव जी के रूम में सभी अपनी छुपी हुईं प्रतिभा दिखाने जमा हो गए ये विषय अलग कि हम उन कुछ प्रतिभाशाली प्रतिभाओं की प्रतिभा के दर्शन गाँधी नगर और मैसूरु में कर चुके थे 😱। नाच गाना अन्ताक्षरी वगैरह वगैरह। हमने तो पूर्व की भांति पहले ही क्षमा माँग ली कि नाच वाच हमसे न हो पाएगा हाँ बात अगर गाने की है तो बेसुरे स्वर में कोशिश कर सकते हैं लेकिन खाँसी के कारण इस बार वो भी सम्भव नहीं। कुछ लोग पहले मना करने के आदी होते हैं लेकिन जब 🧚‍♂️ ... फ़िर वो शुरू हो जाते हैं या कहूँ कि पूरा माहौल कैप्चर करने की कोशिश करते हैं  और क़ामयाब भी हो जाते हैं जब तक कि .....          सख़्त लफ़्ज़ों की इजाज़त है नहीं मुझको 'प्रदीप'          वरना ख़ुद ही सोचिये मुँह में ज़ुबां मेरे भी है  🙆‍♂️          ख़ैर  अर्धरात्रि तक चले प्रोग्राम की ख़ासियत डॉक्टर रत्नेश की लोक गीत पर बेहतरीन ठुमकों के साथ प्रस्तुति रही। मैंने उनकी तारीफ़ में कहा भी आपकी क़मर जैसे लचक खा रही है इससे कईं देवियों को रश्क हो सकता है कि हाय रे हमने अपनी क़मर को कमरा क्यूँ बना लिया 😩 प्रोग्राम ख़त्म हुआ और मैं अपने  कमरे में आया और सो गया ।

       अगले दिन 10 दिसंबर नाश्ता किया और नीरव जी के निर्देश पर हरिद्वार से ख़रीदी विशेष पोशाक (पीताम्बरी धोती और राम नाम का हॉफ कुर्ता ) पहनकर हॉल में हाज़िर हो गए। नीरव जी तो देखकर अतीव प्रसन्न हो गए। सबकी निग़ाहें हमारी ओर ही थीं कुछ कंठ से तो कुछ इशारों में हमें अच्छा लगने की बधाई दे रहे थे। थोड़ी देर बाद एक महिला ने जो काफ़ी देर से घूरे जा रही थीं पास आकर कह ही दिया। इस ड्रेस में ......। हमने उन्हें धन्यवाद तो दिया किंतु मन ही मन हँसते हुए कहा हे प्रभु रक्षा करो। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खां थे, विशिष्ट अतिथियों में रिटायर्ड मेज़र जनरल अनूप नायर उनकी धर्मपत्नी मीरा नायर एवम् डॉक्टर श्वेता सिन्हा थी। 
मैंने रिटायर्ड मेज़र जनरल अनूप नैयर एवम् ज्ञान चंद मर्मज्ञ जी ने राज्यपाल महोदय का स्वागत किया फ़िर हॉल में पहुँचकर राष्ट्र गान हुआ तत्पश्चात दीप प्रज्ज्वलन तत्पश्चात सरस्वती वंदना फ़िर राज्यपाल महोदय को डायस तक छोड़कर मैंने अपनी सीट पकड़ी। नीरव जी ने राज्यपाल महोदय का स्वागत किया तत्पश्चात नीरव जी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। राज्यपाल महोदय ने भाषण में अपने चिर परिचत अंदाज़ में वेदों की ऋचाओं का एवम् कुरआन की आयतों का सम्मिश्रण कर बड़ी ख़ूबसूरती से माहौल को एक साहित्यिक यज्ञ में परावर्तित कर अपने हिस्से की प्रथम आहुति इस यज्ञ में दी। इस प्रकार साहित्य अधिवेशन के प्रथम सत्र का समापन सँस्कृत के श्लोकों द्वारा पूर्ण  हुआ।

       द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन जिसमें देश के विभिन्न भागों से पधारे कवियों ने रचना पाठ किया। मैंने भी अपने तेवरों के अनुरूप अपनी एक ग़ज़ल पढ़ी  :-

"वफ़ा क्या है जफ़ा क्या है, मुझे तू क्यूँ बताता है
खफ़ा होना है हो जा, बेवज़ह क्यूँ तिलमिलाता है 

हमेशा तू खफ़ा होता, अगरचे मैं हुआ तो क्या 
किया कुछ भी नहीं अहंसा, मग़र फ़िर भी जताता है 

तुझे भी इल्म ये बेहतर, नहीं मुझसा कोई दूजा 
मग़र इसमें कभी उसमें, तू दिलचस्पी दिखाता है

तेरी चालाकियां एक दिन, तुझे लेकर के डूबेंगी 
भला तू है नहीं फ़िर भी, भला बनकर दिखाता है 

तेरी बातें समझ में, कम ही आती हैं मुझे भी 'दीप' 
मेरे पहलू में आकर, मुझसे ही दामन छुड़ाता है

प्रदीप DS भट्ट -

एक बात जो मन को अखर रही थी वह यह कि कुछ मित्र ये जताने में बिलकुल भी संकोच नहीं करते कि वे वरिष्ठ कवि या साहित्यकार हैं। पिछ्ले ढ़ाई या तीन दशक से साहित्य में सक्रिय हैं किन्तु जब प्रस्तुति के लिए मंच पर आमंत्रित किया जाता है तो वही घिसी पीटी गजलें, गीत मुक्तक पढ़कर इतिश्री कर जाते हैं। भाई मेरे पुराना सुनाओ लेकीन कभी नया भी तो गुनगुनाओ। आप वरिष्ठ हो अच्छा है वरिष्ठ वरिष्ठ हो जाइए बस गरिष्ठ मत बनिए। ऐसे मित्रों के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल:

ग़ज़ल 
        "कभी नया भी पढ़ा करो"

दुनियां को पढ़ते फिरते हो, कभी तो ख़ुद को पढ़ा करो
वही पुरानी ग़ज़लें, दोहे, कभी नया भी गढ़ा करो

इसका उसका तेरा मेरा, अभी भी तुम उलझे इसमें
बे- मौसम की बारिश जैसा, हरदम न यूँ झड़ा करो 

चलते चलते श्वांस फूलती, बातें पर ओलंपिक की 
अपने घऱ की सीढ़ी पर तुम, धीरे धीरे चढ़ा करो 

काम किया क्या ख़ास जो तुमको, दुनिया वाले याद करें
औरों से क्यूँ जलना भुनना, दिल को अपने बड़ा करो 

चाहत दिल में याद करें सब,सूरज सा तपना सीखो 
या फ़िर ख़ुद को मिट्टी का तुम, छोटा सा इक घड़ा करो 

नया सीखने की ग़र इच्छा, घर से बाहर निकलो तो 
कुछ अच्छा दिख जाये उसको,अपने मन पर मढ़ा करो 

अच्छी ग़ज़लें लिखो गीत या, लिक्खो उम्दा इक मुक्तक 
अच्छी ग़ज़लें सुन दूजे की, बैठ न हरदम कुढ़ा करो 

कब तक वही पुरानी बातें, सबको बतलाओगे 'दीप'
चलो समेटो हिम्मत फ़िर से, हर दिन नव कुछ गढ़ा करो  


प्रदीप देवीशरण भट्ट -101223 (तिरुवनंतपुरम)

सायं 7 बजे तक चले प्रोग्राम में एक से बढ़कर एक गीत ग़ज़लें सुनने को मिलीं। डिनर के बाद नीरव जी के रूम में फ़िर महफ़िल जम गईं। आज़ वो सज्ज़न नदारत थे जिन्होंने कल के प्रोग्राम को लगभग कैप्चर कर ही लिया था। प्रोग्राम शुरू हुआ नंबर आने पर हमने भी एक गीत :-
 इक हंसी शाम को, दिल में मेरा खो गया 
पहले अपना हुआ करता था, 
अब किसी का हो गया 

      आज़ फ़िर पूरे गाने में खाँसी ने डिस्टर्ब नहीं किया।वही मध्य रात्रि तक प्रोग्राम हुआ। कुछ बंधु एक दूसरे के साथ कल प्रात:भगवान विष्णु के मंदिर का प्रोग्राम बनाने एवम् लोकल घूमने का कार्यक्रम तय करते रहे अपन राम जी का नाम लिए और सीधे कमरे में। 

अगले दिन यानि 11 दिसंबर सुबह 5 बजे उठे फ्रेश हुए और सीधे पद्मनाभ मंदिर। धोती ख़रीदी, पहनी सामान जमा कराया और दर्शन करने निकल पड़े।50,100,500 के टिकिट की अलग पंक्ति समय का सदुपयोग करते हुए 500 की पर्ची कटवाई ये विषय अलग की ये पंक्ति भी काफ़ी लम्बी थी। श्रद्धा है भाई। ख़ैर दर्शन करते हुए सभी मित्रों के स्वास्थ एवम् प्रगति पथ पर निरंतर अच्छे  प्रदर्शन की कामना करते हुए (विशेष मित्र के लिए विशेष ) 9 बजे दर्शन कर होटेल वापसी। होटेल वापसी आते हुए चूहे पेट में कलाबाजियां ख़ा रहे है। एक  कहावत है "ब्राह्मण नहाया गज़ब ढहाया भजन किया तो भोजन पाया " सो ड्रेस चेंज की और सीधे नाश्ते की टेबिल पर।

सभी मित्र अपनी अपनी सुविधा अनुसार टोली बनाकर तिरुवनंतपुरम घूमने निकल चुके थे। नाश्ते के बाद मैं नीरव जी और मधु जी होटेल  KTC grand chethram की यादों को अपने अपने मोबाइल में क़ैद कर रहे थे। नीरव जी 12 बजे मीरा जी के यहाँ आमंत्रित थे सो मैंने सोचा इन्हें विदा कर मैं अकेले ही घूमने निकलता हूँ। 

दिन भी अपना है शाम भी अपनी
अवनि पैरों से कहाँ है मपनी 
इक बराहमन अकेला काफ़ी है 
'दीप' को माला कहाँ है जपनी ॥

तभी नीरव जी का मोबाइल घनघना उठा दूसरी तरफ़ अग्रज दर्शन बेज़ार थे जिनकी फ्लाइट सायं 7 बजे थी। समस्या ये थी की 12 बजे चैक आउट करके सामान कहाँ रखें। मैंने तुरंत सुझाव दिया मेरे कमरे में। कुछ देर बाद वे अपने भारी भरकम लगेज (मात्र एक हैंड बैग)के साथ रिसेप्शन पर हाज़िर हो गये। बात चीत शुरू हुईं तो मुझसे पूछा आपका क्या प्रोग्राम है मैंने कहा हुज़ूर नीरव जी को विदा करके घूमने निकलूँगा। थोड़ा असमंजस में देखा तो तुरंत प्रस्ताव दे दिया अभी निकलते हैं हुज़ूर आपके भारी भरकम लगेज को डिक्की में डालेंते हैं घूमते हैं आपको 5 बजे एअरपोर्ट ड्रॉप करके हम होटेल वापिस। बस नीरव जी को विदा किया। टैक्सी वाले को समझाया उसने पाँच मिनिट में रूट फ़ाइनल किया और दो प्रेमी चल पड़े तिरुवनंतपुरम घूमने। पहला पड़ाव नेय्यर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी जा पहुँचे। 2 लोगों के 2 घंटे के लिए 4500/- में पूरी सैर। लेकिन हम तो हम ठहरे दिल्ली वाले 4500/- को 4000/- करवाकर ही माने। बोट ली और निकल पड़े पूवर नदी, वर्कला बीच, बाक़ी जगहों के नाम याद नहीं आ रहे हैं। पहली बार वीडियो भी बनाई। पोस्ट की है रिस्पोंस अच्छा मिला। वहाँ से निकले तो सीधे कोवलम बीच की पहाड़ी पर महादेव के दर्शन किये फ़िर कोवलम बीच का आनंद लिया। अभी आनंद की अनुभूति हो ही रही थी कि बरख़ा रानी ने कानों में धीरे से सरगोशी की कि इससे पहले कि मैं अपना रूप दिखाऊं टैक्सी में बैठ जाओ और इत्तीफ़ाक़न हुआ भी ऐसा ही।बेज़ार जी भुनी हुईं मूँगफली खाने का लोभ संवरण नहीं कर पाए और बरखा रानी ने उनके चेहरे पर अटखेलियां करती ज़ुल्फ़ों को भिगो दिया😄।बेज़ार जी और मैं भी गर्मागर्म कॉफ़ी के इच्छुक थे और सोच रहे थे कितना अच्छा हो अगर साथ में गर्मागर्म पकौड़ी भी मिल जाएँ किंतु किंतु किंतु बरख़ा रानी ने इजाज़त नहीं दी और हम सड़क पर जमा पानी में बारिश की बूंदें गिरते देखकर उन्हें कढ़ाई में पकौड़ी समझकर संतोष करते रहे। उसी मस्त बारिश में बेज़ार जी को एअरपोर्ट ड्रॉप किया और स्वयं को होटेल में। बेज़ार जी के साथ लगभग पाँच घण्टे की गुफ़्तगू में तय हुआ कि अगले अधिवेशन में दोनों एक कमरे में रहेंगे 😉

      अगले दिन सुबह 6 बजे फ्लाइट थी तो कमरे में लौटे सामान पैक किया और सीधे नीरव जी के रूम में जहाँ अन्य मित्र पहले से ही मौज़ूद थे। थोड़ी बहुत गपशप हुईं फ़िर डिनर के नाम पर तीन दिन से एक मात्र विशुद्ध सात्विक भोजनालय नहीं नहीं विशुद्ध नहीं क्यूँ कि विशुद्ध तो सिर्फ़ मारवाड़ी भोजनालय होता है जहाँ प्याज़ भी वर्जित होती है। अब चूँकि लंच नहीं किया तो सोचा डिनर कर लें तो भैया जी 9,10,11दिसंबर को डिनर के नाम पर बस मसाला डोसा पेपर डोसा या ओनियन उत्पम। मतलब ब्रेकफस्ट  में इडली, वड़ा, उपमा पूरी सब्ज़ी कॉफ़ी जूस और वो दुग्ध में डालकर क्या खाते हैं 😊 छड्डो जी हलियो का पेट सुहालियों से कहाँ भरता है। बारह साल मुंबई में,साढ़े चार साल हैदराबाद में रहने के बाद सोचा साउथ इंडियन की आदत पड़ गईं है बस भैय्ये पिछले एक हफ़्ते से इसी पर जीवन यापन किया है। भला हो veg अरिया निवास  रेस्टोरेंट का जिसने जिलाए रक्खा वरना आस पास के veg के नाम पर बाबा रे बाबा। 👏दिल्ली से 5 दिसंबर की रात्रि को ठंड में 10:15 बजे दिल्ली एअरपोर्ट  पहुँच गए थे ताकि 6 दिसंबर की अल सुबह 5 बजे की फ्लाइट पकड़नी थी और यहाँ तिरुवनंतपुरम से 12 दिसंबर को सुबह 6 बजे की फ्लाइट। अच्छी बात ये थी इस बार दो की जगह कुल छः लोग थे सो अलसुबह 3:30 एअरपोर्ट पहुँचे फ्लाइट ली और 10:15 दिल्ली वहाँ से मेरठ खाना खाया और साढ़े छः बजे कंबल तानकर निद्रा रानी की गोद में अगले दिन आठ बजे जाकर मुबाईल की घंटी सुनकर  आँख खुली। 


बेहतरीन केरल यात्रा की स्मृतियाँ सँजोए !! !


प्रदीप DS भट्ट -291223

Wednesday, 20 December 2023

अब पड़ा तबियत में कुछ आराम सा। तुमने जब पूछा कि कैसे हो प्रदीप

यायावर की डायरी से

"अब पड़ा तबियत में कुछ आराम सा
तुमने जब पूछा कि कैसे हो प्रदीप "

          स्वास्थ्य थोड़ा नरम गरम होने के कारण यात्रा का वृतांत की दूसरी कड़ी में देरी हो गई। ख़ैर रामेश्वरम से लगभग १२ बजे बस ली और चल पड़े मदुरै स्थित मीनाक्षी टेंपल के लिए। एक बात जिसने मुझे प्रभावित किया वह थी मदुरै में और से रामेश्वरम तक साफ़ सुथरी सड़के। नॉर्थ में बस के अंदर पानी कोलड्रिंक बेचनेवालो की धूम रहती है किंतु तमिलनाडु की बसों में लोकल सामान और पानी बिकता तो देखा लेकिन कोल्ड ड्रिंक न जी न। लगभग ४ बजे मदुरै बस स्टैंड और वहां से ऑटो द्वारा मीनाक्षी टेंपल। मीनाक्षी टेंपल में भीड़ सोच रहा था रात दस बजे तक भी दर्शन हो जाएं तो जय श्रीराम वो भी विशेष टिकिट के बाद भी हालात खराब 
थे किंतु पंक्ति के साथ ही पीने के पानी की उचित व्यवस्था भी उपलब्ध थी। लेकिन एक बार दैनिक सांध्य पूजन अर्चन के बाद पंक्ति बड़ी तेजी से घटने लगा।लगभग ६ बजे दर्शन कर बाहर निकले फिर प्रशांत जी के साथ पेट पूजा की। मध्य रात्रि की ट्रेन पकड़ी और प्रातः ६ बजे कन्याकुमारी। स्टेशन से २फर्लांग की दूरी पर स्थित होटल लिया, कुछ देर आराम फिर निकल पड़े।

           सबसे पहले कन्याकुमारी माता के दर्शन किए फिर विवेकानंद रॉक के दर्शन किए। सबसे अद्भुत था तमिल के महान कवि तिरुवल्लू की मूर्ति के दर्शन करना। गर्मी पूरे प्रचंड वेग में थी इसलिए खाना खाया और होटल वापिस। सांय को सूर्यास्त देखने निकल पड़े। बेहतरीन नज़ारा किन्तु अफ़सोस दिल गड्ढे में बेहतरीन नज़ारा तो देखने को मिला किन्तु कन्याकुमारी में सूर्योदय एवम सूर्यास्त के दर्शन नहीं कर पाए। बादलों की आंख मिचौली ने सूर्य को हमसे दूर ही रक्खा।

"सूरज निकलना चाहता है बादल की ओट से
उठिए हुज़ूर ए आला पड़ा काम बहुत है "

क्या करते कुछ शंख खरीदे और चल पड़े मंथर गति से होटल की ओर आख़िर अगले दिन सुबह तिरुवंतपुरम की ट्रैनवा जो पकड़ती थी। तो ९ दिसंबर को प्रातः इडली खाई और चल पड़े अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समिति के तीन दिवसीय अधिवेशन में शिरकत करने के लिए। 

तो तैय्यार हो जाइए रिपोतार्ज के लिए 

प्रदीप DS भट्ट -211223

Monday, 18 December 2023

"देर आए दुरुस्त आए"



यायावर की डायरी से

            "देर आयाद आए"
आप सब सोच रहे होंगे कि ये क्या नया शिगूफा है भाई "यायावर की डायरी से" तो मित्रों हुआ यूं कि जब Abs4 के मैसुरू अधिवेशन में 19 वें अधिवेशन हेतु दर्शन बेजार जी द्वारा केरल के 'कोच्चि' का नाम प्रस्तावित हुआ तो हर्षित होना स्वाभाविक था किंतु किन्ही अपरिहार्य कारणों से अधिवेशन का स्थान बदलकर 'तिरुवंतपुरम' किया गया तो मन में यही विचार आया कि" मन चाहा होता नहीं प्रभु चाहें तत्काल"। ईश्वर की माया तो ईश्वर ही जाने। ख़ैर इस बार Abs4 द्वारा आपके मित्र को "यायावर" की उपाधि से विभूषित किया गया है तो सोचा हर इवेंट को दो पहलुओं में विभक्त कर देते हैं पहला "यायावर की डायरी से" और दूसरे पहलू को 'रिपोतार्ज' द्वारा जो कि सिर्फ़ कार्यक्रम पर फोकस होगा तो आइए यायावर की प्रथम डायरी का श्रीगणेश रामेश्वरम यात्रा से करते हैं।

हैदराबाद में पोस्टिंग के दौरान कोरोना भैय्या से एक लम्बी मुलाकात चली थी। वैक्सिन आई नहीं थी तो अपने मित्र सुहास भटनागर के साथ घर पर बैठे बैठे ही हमने 23 दिसंबर 2020 की जामनगर से रामेश्वरम को जाने वाली ट्रेन की दो टिकिट बुक कर दी किंतु जैसे ही वापिसी के लिए 25 दिसंबर की टिकिट बुक करनी चाही तो लिखा आ गया भैय्या कोरोना भाऊ के कारण ट्रेन कैंसिल की जाती है। आप समझ सकते हैं मूड कित्ता ख़राब हुआ होगा । 12 वर्ष मुंबई में रहकर सिर्फ़ त्रयंबकेश्वर के ही दो तीन दर्शन किए थे सो हमने महाराष्ट्र स्थित परली बैजनाथ घणेश्वर एवम भीमा शंकर के दर्शन करने का फ़ैसला किया और दिसंबर के अंतिम सप्ताह में ये पुण्य अर्जित किया किंतु रामेश्वरम के दर्शन न कर पाने की टीस बाकी थी सो जैसे ही तिरुवंतपुरम फाइनल हुआ हमने 6 दिसंबर की सुबह विजय प्रशांत जी के साथ दिल्ली से मदुरै फ्लाइट, मदुरै से रामेश्वरम बस से पहुंचे। 7 की प्रातः 5.30 बजे 22 कुंडो के पानी से स्नान कर विधिवत पूजन अर्चन कर मन एवम आत्मा तृप्त की तदुपरांत हल्का नाश्ता और फिर निकल पड़े धनुष कोड़ी के लिए। बेहद मनोहारी स्थान। दक्षिण भारत की प्रथम यात्रा का विवरण यहीं तक। अगले अंक में मदुरै के मीनाक्षी टेंपल का विवरण।

प्रदीप भट्ट ,'यायावर'

Friday, 1 December 2023

शब्दों के बाज़ीगर शब्दाक्षर महोत्सव में

रिपोतार्ज़

शब्दों के बाज़ीगर शब्दाक्षर महोत्सव में

जब अक्षर अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं तो वे शब्दों बन जाते हैं, जब शब्द अपनी यात्रा आरंभ करते हैं तो वे वाक्य में परिवर्तित हो जाते हैं और कुछ वाक्यों से मिलकर कविता का निर्माण हो जाता है जो अपनी अनवरत यात्रा के दौरान काव्य संग्रह या कहनी संग्रह उपन्यास,काव्य या महाकाव्यों तक का निर्माण हो जाता है। लेकिन इस पूरी यात्रा में अगर एक चीज़ महत्वपूर्ण है तो वो है शब्द और अक्षर यानि कि शब्दाक्षर। 

पिछ्ले वर्ष अगस्त की 6,7,8 को हम सभी शब्दाक्षर महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु चेन्नई में मिले थे। मैंने भी तेलांगना इकाई का उपाध्यक्ष होने के नाते उस महत्वपूर्ण आयोजन में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की थी। इस तरह के महोत्सव में सहभागिता करना ही अपने आप में महत्वपूर्ण होता है। केवल कोठरी जी का साहित्य के प्रति समर्पण देखकर निश्चित मन गदगद हो गया था।

इस बार भी 25, 26, 27 नवंबर को हरिद्वार में आयोजित शब्दाक्षर महोत्सव में ज्योति नारायन जी अध्यक्ष तेलांगना इकाई के अतिरिक्त मैंने भी उपाध्यक्ष तेलांगाना ईकाई की हैसियत से ही प्रतिनिधित्व किया। कोठारी जी पूरी तन्मयता के साथ प्रिय अमन शुक्ला, अध्यक्ष हरिद्वार के सहयोग से सारी व्यवस्थाओं में पूर्व की भांति लगे रहे। प्रिय निशांत एवम सागर दोनों ही अपनी अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु सदैव तत्पर दिखे। पिछली बार टीम दिल्ली अनुपस्थित थी किंतु इस बार पूरी टीम स्मृति कुलश्रेष्ठ जी के नेतृत्व में दिए गए कर्तव्यों को पूर्ण करने में सजग दिखी। इस सजगता को देखकर मैं मन ही मन प्रफुल्लित हो रहा था।😊 आख़िर साड्डी दिल्ली की मेहनत सफ़ल रही।

मैं 25 को योगा एक्सप्रैस से 11.30 हरिद्वार पहुंच गया कुछ ही देर में शताब्दी से दिल्ली टीम भी पहुंच गई और हम सब लगभग 12=15 होटल शर्मा परिवार (निकट शांति कुंज) पहुंच गए। मुझे कमरा नंबर 302 अलॉट किया गया 😁 सांय को रवि प्रताप सिंह जी के आग्रह पर मैं भी मनसा देवी के मंदिर में दर्शन करने चल पड़ा। मंदिर के मध्य में पहुंचकर तय हुआ कि हम सभी अक्षर एवम शब्दों के चंद पुष्प माता जी के चरणों में अर्पित करते चलें और परिणाम स्वरूप मेरी अध्यक्षता में एक कवि गोष्ठी आयोजित हुई। हमारी कविताएं सुनकर दर्शकों के तौर पर जुड़ी मेरठ की एक लड़की नेहा ने भी अपनी एक अच्छी कविता सुनाई। गोष्ठी उपरांत माता जी के दर्शन किए फिर एक ही स्टांस में सभी नीचे उतरे और सीधे होटल। खाना खाया और होटल के लॉन में सभी एकत्र हुए। देहरादून से पधारे डॉक्टर बुद्धिनाथ मिश्र जो कि शब्दाक्षर उत्तरखंड राज्य के अध्यक्ष भी हैं से सभी कवियों का परिचय रवि प्रताप सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष शब्दाक्षर ने कराया फिर आदतानुसार एक कवि गोष्ठी। लगभग 1 बजे वापिस कमरे में आया तो थोड़ी देर बाद ही दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण राही जी आ पहुंचे। एक घण्टे तक बतियाते रहे। अभी सोए ही थे कि 4 बजे मुबलिया घनघना उठा। दूसरी तरफ़ संतोष संप्रति थी, सीधे बोली नीचे रिसेप्शन पर हूं xy फोन नही उठा रहा क्या करूं 😇 हमने भी नींद में ऊंघते हुए कह दिया 302 में आ जाओ दो घंटे आराम करो फिर सुबह देखते हैं 🥰 ख़ैर थोड़ी ही देर में अमन की आवाज़ सुनकर मैंने कमरे से बाहर आकर देखा तो संतोष संप्रिति 301 में शिफ्ट हो चुकी थीं। 

26 को नाश्ते के बाद थर्ड फ्लोर पर हॉल में जा पहुंचे। पहले सेशन में परिचय, सम्मान इत्यादि में 4 बज गए। खाना खाया फिर अनवरत 8,9 कवियो के ग्रुप में सभी को स्टेज़ शेयर करने का मौक़ा दिया गया। ये अच्छा निर्णय था। रात 11 बजे तक तीन ग्रुप ही हो पाए। डिनर के बाद फिर अनौपचारिक कविताओं का दौर। 12 या 1 बजे सोए और सुबह संतोष संप्रति 7 बजे हाज़िर। सीधे सीधे चलो भाई गंगा नहाने चलना है। मना करने की गुंजाइश बिलकुल नहीं थी सो चुपचाप ऑटो लिया स्नान किया और 8.30 वापिस होटल पहुंच गए। नाश्ता किया और हॉल में। वही प्रक्रिया प्रथम सत्र में भी , प्रिय स्मृति कुलश्रेष्ठ का बढ़िया संचालन। पूरे दिन में लगभग 7,8 ग्रुप अपनी प्रस्तुति दे चुके थे। सेकेंड लॉस्ट में हमारा नंबर था सो एक गीत और एक गजल पढ़कर हमने भी साहित्यिक यज्ञ में अपनी आहुति दे दी।

🌷नमक दरिया में थोड़ा सा मिला दूं
मैं अपनी आंख का आंसू गिरा दूं

🌷गमों के साए में जीना है मुश्किल
खुशी के वास्ते तुमको भुला दूं 

श्यामल मजुमदार दादा एवम राजीव खरे ने अपने सत्र में अच्छा संचालन किया। मैंने विश्वजीत जी के इस आग्रह को कि एक सत्र का संचालन मुझे करना है के लिए बड़ी ही विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। प्रिय लखन कटनी का संचालन या कहूं कि प्रस्तुति करण बहुत अच्छा है किंतु उन्हें अभी बहुत अधिक सीखना शेष है। एंकर मतलब अपनी वाकपटुता से सभी कुछ साधने की कला अगर एंकर ही मंच पर क्रोध प्रकट करेगा तो रायता बिखरना तय है। मुझे उम्मीद है लखन भविष्य में अपने तैश पर नियंत्रण करना सीख लेंगे।🌹

खाने के बाद होटल के कवर्ड लॉन में कोठरी दादा की अध्यक्षता में फिर गोष्ठी जुड़ गई। विश्वजीत, लखन, स्मृति कुलश्रेष्ठ, सविता बांगड़,वंदना चौधरी, सीमा त्रिवेदी, बिट्टू जैन, राज पुरोहित,
मधु पारख और है हम यानि शाहंशा ए दिल्ली 🤪 अब हम तो हम ठहरे ठंड से बचने के लिए सभी को सुझाव दे रहे थे, सिर ढक लो भैया पैर ढक लो सीना भी कवर कर लो। हमारी बात को सिरयसली लेते हुए विश्वजीत जी ने तुरन्त आधी अधूरी बुक्कल मार ली। चित्र देखें 😝 सुबह चार बजे तक चली गोष्ठी का आनंद शब्दों में बयां करना मुश्किल है। कोठरी दादा कमरा नहीं खुला तो मैंने उन्हें अपने कमरे में सोने का आग्रह किया। वो तो दस मिनिट में ही सो गए। मैं भी प्रयास कर ही रहा था तभी किसी ने मेरा पैर हिलाया देखा तो एक धुंधली सी परछाई दिखी। हमने अपने तेवर में ही पूछा कौन हो देवी यहां क्या कर रही हो तैन्नु की चाइदा। उसने न सुनाई देने वाला अट्टहास लगाया और बोली बहुत प्रवचन दे रहे थे वहां। बच के रहो सर्दी है बुड्ढा जवान नहीं देखती बस चिपक जाती है जिससे चिपकना होता है। तो बेटा हम वही सर्दी हैं अब देखो हम तुमसे कहां कहां चिपकते हैं। हमने हाथ जोड़ते 🙏🏾 हुए कहा देवी रहम करो हमें तीन दिवसीय कार्यक्रम में सम्मिलित होने 5 दिसंबर को केरल जाना है। हमने बड़ी अनुनय विनय की लेकिन उसका दिल न पासीजा बोली हमारे ग्राहक को हमसे बचाओगे तो हम तुम्हे ही अपना ग्राहक न बनाएंगे। कुछ देर बाद कमर में सिहरन सी महसूस हुई हम समझ गए कि अपना हैप्पी बर्डे पक्का। और अगले दिन घर पहुंचते पहुंचते जय श्री राम। सो भैय्या गला चॉक हो गया है। हाथ पैरों में जान सी न लग री, खांसी कौन से सुर की है पता नी चल रिया 😎😦 कोरोना के बाद फिर से काढ़ा पी रहे हैं। लगे है डॉक्टर बाबू को दिखाना भी पड़ेगा नई तो......... चेन्नई से वापिसी में भी कुछ कुछ ऐसा ही हुआ था। 16 अगस्त को हैदरावाद मेट्रो में गिर गए सो अलग। कुछ दिनों तक पट्टी बांधकर और लटकाकर 😏😏😏 वो भी क्या सीन था मेट्रो में चढ़ते ही सीट ऑफर हो जाती थीं।

कुछ लोगों को मन में बसाए और कुछ को घटाए 28 की सांय को घर वापिसी । कल सांय को मजूमदार दादा का फोन आया तो मन प्रफुल्लित हो गया। सीधे बोले राष्ट्रीय कवि प्रदीप भट्ट दादा को प्रणाम 🌷🙏🏾🌹 गले की तो एमसी बीसी हुई पड़ी हुई थीं फिर भी काफ़ी देर तक बतियाते रहे ।
चर्चा के दौरान प्रोग्राम के विषय में मजूमदार दादा ने पूछा तो मैंने बोला प्रोग्राम बहुत अच्छा और स्तरीय हुआ है दादा और अगर फिर भी कोई व्यक्ति इतने अच्छे प्रोग्राम में कमी ढूंढता है तो ये उसकी आंखों का दोष है या फिर मानसिकता का।

तो दोस्तों फिर मिलेंगे किसी नए वैन्यू पर नए मैन्यू के साथ और हां किसी ने वादा किया है दोस्ती निभाने का, देखते हैं भैय्या सिर्फ़ वादा है या दावा। एक शेर याद आ गया।
दावा करूंगा हिज़्र में मूसा के खून का
क्यूं उसने मेरे कातिल के खंजर को बाड़ दी 

प्रदीप DS भट्ट, 011023