“आधा सच “
अचानक किशोर की आँख खुल गई, थोडी देर तो वो अंधेरे में इधर उधर देखता रहा जैसे चाह रहा हो कि पहले उसकी आँखें अंधेरे की अभयस्त हो जाएँ फिर वो उठकर लाइट जलाएगा। कुछ देरे यूँ ही उन्नीदें से पडे रहने के बाद किशोर उठकर सीधा बॉथरुप में घुस गया। लाइट जलाई और निवृत होने के बात उसने जैसे ही लाइट बंद करने को हाथ बढाया तो लाइट की मद्दिम सी रोशनी में उसने आर्या को सोते हुए देखा, अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंधा क्यूँ न आर्या को भी ट्रैकिंग पर साथ ही ले चलूँ ,एक पंथ दो काज हो जायेंगे। ये विचार आते ही किशोर के होंटो पर मुस्कान तैर गई। उसने धीरे से लाइट ऑफ की और फिर बिस्तर पर आकर धीरे से पसर गया। किशोर ने आँखे तो बंद कर ली लेकिन उसके होटों की शरारत बता रही थी कि उसके दिमाग में चल रहा है। इधर जब किशोर उठकर बॉथरुम गया तो आर्या की भी आँख खुल गई, वो ये सोचकर कि किशोर जब निफराम होकर आएगा तो वो भी निवृत होने जाएगी किंतु जब उसने बॉथरुम की लाइट में किशोर को उसकी ओर देखते हुए मंद मंद मुस्कुराते हुए देखा तो उसे अहसास हो गया था कि किशोर का यूँ मंद मंद मुस्कुराना कम से कम प्रेम तो नहीं हो सकता क्यूँ कि पिछले लगभग 2 बरसों से उनके बीच में किसी तरह का कोई रिलेशन रह ही नहीं गया था। फिर वो भी आँख बंद करके सोने का नाटक करने लगी लेकिन दिमाग़ में किशोर का बॉथरुम की लाइट में उसे देखकर मुस्कुरा उसे कुछ खटक रहा था। इस चक्कर में आर्या का निवृत होने का ख्याल न जाने कहाँ गायब हो चुका था। किशोर के दिमाग में क्या चल रहा है यही सोचते सोचते वो न जाने कब पुरानी यादों में खोती चली गई।
लगभग बीस बरस पहले आर्या और किशोर ने प्रेम विवाह किया था। शुरु शुरु में तो सब कुछ ठीक ही चल रहा था लेकिन जैसे जैसे समय बीत रहा था प्यार कडवाहट में तब्दील होता जा रहा था। किशोर जहाँ भारतीय जीवन बीमा निगम में प्रशासनिक अधिकारी था वहीं आर्या भी स्टेट बैंक में मैनेजर थी। पहले किशोर शाहजँहापुर में पोस्टिड था तो वहीं आर्या की पोस्टिंग लखनऊ में थी। किशोर का बचपन जहाँ बनारस में ही बीता था वहीं आर्या बिहार के मधुबनी से थी। एक कहावत है कि मधुबनी का हर दूसरा व्यक्ति झा निकलेगा । आर्या ने पटना से इंटर पास किया और बी0 कॉम/एम कॉम करने के लिए सीधे बनारस अपने मामा के घर जो कि भूतही इमली मुहल्ले में रहते थे आ गई। किशोर का तो जन्म ही बनारस में हुआ था और वो भी नाटी इमली मुहल्ले में। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एड्मिशन के बाद आर्या का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढाई में केंद्रित था वो नहीं चाहती थी कि उसके किसी भी काम से मामा जी की बदनामी न हो। किशोर आर्या से एक वर्ष वरिष्ठ होने के कारण उसे हर तरह से सपोर्ट करता था। यही सपोर्ट न जाने कब दोस्ती और फिर प्यार में तब्दील होता चला गया। फिर मुलाकातों का दौर चल निकला तो दोनों फुर्सत मिलते ही कभी अस्सी घाट कभी दशाश्व्मेघ घाट कभी रविदास उद्यान तो कभी भारत माता मंदिर और कभी कभी फन सिटी पार्क पहुँच जाते। लोकल होने के कारण दोनों को ये डर लगा रहता था कि कहीं कोई देख न ले। वैसे भी कहावत है इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते सो एक दिन किशोर के बडे भाई विनय ने दोनों को भारत माता मंदिर के प्रांगण में देख लिया और घर आकर पिताजी को सारी बात बता दी। या कहें कि पिताजी से चुगली कर दी। शाम को जब किशोर घर पहुँचा तो उसे घर में घुसते ही अहसास हो गया कि कुछ तो गडबड हुई है। खैर खाना खाकर जब वो दो तल्ले मकान की सीढियाँ चढने लगा तो पिताजी ब्रज नाथ पाण्डेय की भारी भरकम आवाज़ सुनकर रुक गया। ब्रज नाथ ने सीधे सीधे कहा तुरत मेरे कमरे में पहुँचो। पाण्डेय जी तो कहकर अपने कमरे में चले गये इधर किशोर की सिट्टी पिट्टी गुम, पिताजी के कमरे में जाने से पहले उसने किचन में माँ से फुसफुसा कर पूछा, क्या हुआ माँ तो माँ ने मुँह पर उँगली रखकर जता दिया जैसे कहना चाह रही हों कि बेटा हमसे न पूछो बडे पाण्डेय जी ही बतायेंगे तुम किसके साथ भारत माता मंदिर में मटरगश्ती कर रहे थे। पाण्डेय जी के घर का नियम बडा सीधा साधा सा, खाना सभी लोग किचन में दरी पर बैठकर ही खायेंगे। डायनिंग टेबिल है पर वो उन मेहमानों के लिए जिन्हें नीचे बैठने में परेशानी होती है। अभी किशोर सोच ही रहा था तभी किशोर के बडे भाई विनय ने किचन से निकलते हुए किशोर को देखकर छोटी सी इस्माइल दी तो उसकी समझ में जैसे सब कुछ आ गया। अपनी उखडी हुई साँसों को नियंत्रित करते हुए उसने ब्रज नाथ पाण्डेय के कमरे में प्रवेश किया तो देखा बडे पाण्डेय जी दीवान पर दीवार से टेक लगाए बैठे हुए हैं। बिना किसी भूमिका के ब्रजनाथ पाण्डेय जी की धीर गम्भीर आवाज़ किशोर के कानों से टकराई। कौन है वो लडकी जिसके साथ तुम भारत माता मंदिर में थे। जी वो, जी वो, किशोर बुरी तरह हडबडा गया फिर भी उसने मैमेने की सी आवाज़ में कहा जी मेरे साथ ही हिंदू यूनिवर्सिटी में पढती है, एम0 काम कर रही है अभी पहले वर्ष में है। पाण्डेय जी की हूँ की आवाज़ आई तो किशोर फिर से सहम सा गया। वो अभी संयत होने की चेष्टा कर ही रहा था कि बडे पाण्डेय जी का दूसरा प्रश्न, कौन जात है। किशोर ने बडी मुश्किल से थूक गटका फिर बोला जी वो झा हैं मतलब उसका नाम आर्या झा है, बिहार के मधुबनी की रहने वाली है उसके पिताजी पटना में डॉक्टर हैं। इतना सुनते ही बडे पाण्डेय जी का तो जैसे पारा ही हाई हो गया। अबे हम तुम्हें पढने भेजते हैं या ये सब करने को। माँ के पेट से निकले नहीं कि आशिकी का भूत सवार हो जाता है। पहले कुछ बन तो लो, तुम अभी एम कॉम फाईनल में हो और वो क्या नाम है उस लडकी का हाँ आर्या वो पहले साल में है। जीवन के बारे में जानते ही क्या हो अभी। ये बनारस है बेटा, यहाँ जो भी कुछ होता है सब खुल्लम खुल्ला वो भी धडल्ले से बिना किसी दुराव छिपाव के और तुम हो कि पराई लडकी को लेकर इधर उधर घूम रहे हो। उसके माँ बाप ने यही सब करने के लिए उसे भेजा है क्या? अब हम तुमसे कुछ और कहेंगे तो तुम आसन पाटी लेकर बैठ जाओगे कि हम तो उसी से ब्याह करेंगे। तो हम ये टंटा ही खत्म कर देते हैं। आर्या से कहो कि अगले गुरुवार को अपने माता पिता दोनों को हमसे मिलने के लिए कहे। और हाँ ये सब तुम कल ही आर्या से कहोगे समझे और तब तक तुम्हारा उस लडकी से मिलना जुलना बंद जब तक कि ब्याह न हो जाए। तुम्हारी क्या इज़्ज़त है बनारस में वो तुम जानो लेकिन बडे पाण्डेय जी की इज़्ज़त कितनी है तुम अच्छी तरह से जानते हो। अब खडे क्या हो निकलो यहाँ से और हाँ जाते जाते अपनी माँ को बोलो विनय के साथ तुरंत कमरे में पहुँचे। किशोर को जैसे मन माँगी मुराद मिल गई हो, सर्दी के मौसम में भी उसके माथे पर पसीने की कुछ बूँदे चुहचुहा रही थीं जिसे उसने अपनी कमीज की आस्तीन से पोंछते हुए कमरे से बाहर की ओर कदम बढा दिये। किचन में माँ को बडे पाण्डेय जी का संदेश देते हुए किशोर अपनी साँसों को संयत करते हुए पहली मंजिल स्थित अपने कमरे में पहुँचा और तुरत ही अपने बैड पर पसर गया। उसे एक तरफ मँझले पाण्डेय यानि विनय पर गुस्सा आ रहा था वहीं उसे इस बात की खुशी भी थी कि चलो इसी बहाने आर्या और उसके ब्याह के विषय में बिना कुछ उट पटांग हुए ही बात आगे बढी। किशोर ने आज तक अपने और आर्या के बीच पनपे प्रेम के विषय में घर में किसी को भी अब तक इसलिए नहीं बताया था कि पहले कुछ बन जाएँ फिर बात कर लेंगे लेकिन बाबा जी (बाबा विश्वनाथ) की मर्ज़ी के आगे किसकी चली है जो किशोर की चलती सो जो हुआ वो अच्छा जानकर किशोर बिना पढे ही सो गया।
ठीक गुरुवार के दिन आर्या के माता पिता सुबह सुबह ही पाण्डेय जी के घर पधार गये। जय भोले नाथ के उद्घोष के साथ जब पाण्डेय जी ने बैठक में प्रवेश किया तो नित्यानंद झा और सुषमा झा ने खडे होकर उन्हें प्रणाम किया। पाण्डेय जी ने हाथ जोडकर दोनों को प्रणाम का उत्तर देते हुए बैठने के लिए कहा फिर सीधे ही जोर से आवाज दी मंगला पहले झा जी और उनकी श्रीमती जी के दैनिक निवृत्ती की व्यवस्था करो भई, बातचीत तो नाश्ते के बाद भी हो जाएगी। पाण्डेय जी के ऐसे वचन सुनकर झा जी तो एकदम गदगद हो गये फिर बोले जी हम कल शाम को ही आ गये थे शायद किशोर जी ने आपको बताया नहीं कि हमारे साले साहब यही भूतही इमली मुहल्ले में रहते है , वो पी डब्लू डी में इंजीनियर हैं। आर्या पिछले चार बरस से वहीं रहकर पढाई कर रही है। बडे पाण्डेय जी ने अच्छा अच्छा कहकर उन्हें पुन: बैठने का इशारा किया और स्वंय भी दूसरे सोफे पर पसर गये। इधर उधर की बातें करते करते मंगला ने नाश्ता लगा दिया तो पाण्डेय जी ने कहा विनय और किशोर को भी यहीं बुला लो सबके सामने बात करना ही ठीक रहेगा और हाँ तुम भी यहीं बैठो। फिर पाण्डेय जी नित्यानंद झा से बोले झा जी पहले नाश्ता कर लेते हैं फिर बात चीत करेंगे। जी जैसा आपका आदेश पाण्डेय जी कहकर नित्यानंद और सुषमा हस्त प्रच्छालन के लिए खडे हुए तो विनय ने तुरंत उन्हें बाहर की ओर लगे वॉश बेसन की तरफ इशारा कर दिया। थोडी देर के बाद जब नाश्ता समाप्त हुआ तो पाण्डेय जी बोले देखिए झा जी आपने तो सुना होगा “ब्राह्मण नहाया गज़ब ढाया” यानि ब्राह्मण को नहाने के बाद पूजा अर्चन सूझता है और फिर सीधा भोजन सूझता है। फिर मुस्कुराते हुए बोले हाँ तो झा जी कहिए आपको जो कहना है मैं तो आपके बाद ही कहूँगा हाँ अगर मेरी धर्मपत्नी या मँझले पाण्डेय (विनय) कुछ पूछना चाहें तो अलग बात है। बात शादी ब्याह की है तो सब कुछ सच सच हमारी ओर से भी और आपकी ओर से भी, किसी भी रिश्ते में ज़रा सा भी झूठ हमसे बर्दाश्त न होगा।
झा जी ने हाथ जोडते हुए कहा देखिए पाण्डेय जी मेरे एक लडका है और एक लडकी। बेटा बडा है दिल्ली में रहकर एम एस कर रहा है। मैं पहले बडे बेटे की ही शादी करना चाहूँगा। पहले घर में लक्ष्मी ले आऊँ तो फिर घर की लक्ष्मी विदा करुँ ऐसी मेरी इच्छा है। वैसे भी अभी आर्या का पूरा एक वर्ष बाकी है वो एम कॉम के बाद क्या करना चाहती है अभी तक उसने कुछ बताया नहीं है। बाकी आप जैसा कहें वैसा कर देंगे। मंगला पाण्डेय ने सुषमा झा से घर बाहर की बातें ही की तभी विनय ने नित्यानंद जी से पूछा क्या आर्या नौकरी करना चाहती है, इतना सुनना था कि बडे पाण्डेय जी तमतमा गये। अभी तुम इत्ते बडे नही हुए हो कि बडे पाण्डेय जी से ज्यादा समझदारी दिखा सको। चुपचाप अपनी जगह बैठे रहो और सिर्फ सुनो और समझो। जी पिताजी जी पिताजी बस विनय के मुँह से इतना ही निकल पाया। फिर पाण्डेय जी मुस्कुराते हुए नित्यानंद झा से बोले देखिए झा जी विनय किशोर का बडा भाई है दिल्ली सरकार में काम करता है इसकी शादी अभी दो महीने पह्ले ही दिल्ली में मिश्रा परिवार से तय हुई है लड्की रक्षा मंत्रालय में अधिकारी है, दिसम्बर में इसकी शादी है। विनय से छोटी और किशोर से बडी एक बेटी विद्या है जो सूरत में सैटल है उसके पति प्रणव द्विवेदी का अपना बिजनेस है। विनय तो ज्यादातर दिल्ली ही रहने वाला है छुट्टी वगैरह में बनारस आए तो आए। खैर अगले साल जून तक किशोर भी एम कॉम कर लेगा फिर नौकरी लगते ही हम आर्या और इसकी शादी कर देंगे जहाँ तक आर्या बिटिया की नौकरी करने की बात है वो करे या नहीं करे, ये उसकी इच्छा होगी। हम अपनी ओर से बच्चों पर कोई भी इच्छा लादना नहीं चाहेंगे। एक बात ज़रुर है कि आप झा हैं आप तो बिना मछली खाए रह नहीं सकते और हम ठहरे विशुद्ध शाकाहारी सनातनी ब्राह्मण सो शादी के बाद बिटिया मछली खाना चाहे तो बाहर खा सकती है घर में तो कदापि नहीं। दूसरी और महत्वपूर्ण बात हमारे परदादा ने दहेज लेने या देने वालों के घर रिश्ता नहीं करने की सौगंध ले रखी है तो दहेज वहेज तो भूल ही जाएगी बस 700 एक सौ लोगों का शुद्ध शाकाहारी खाने का इंतज़ाम ही काफी होगा। अगर ठीक समझें तो शादी पटना की जगह मधुबनी से ही करें। शहर कितना भी अच्छा हो लेकिन बच्चों को गाँव की महत्ता पता होनी चाहिए। जब तक किशोर और आर्या अपने पैरों पर खडे नहीं हो जाते मिलने जुलने पर ज्यादा फोकस न करके अपनी पढाई पर फोकस करें तो बेहतर होगा। बातचीत के सिलसिले के साथ खाना पीना भी चलता रहा फिर सांय को नित्यानंद झा और सुषमा ने पाण्डेय फैमिली से विदा ली और चल पडे भूतही इमली मुहल्ले में अपने साले के घर्।
अगले तीन बरस देखते देखते ही निकल गये, किशोर ने एम कॉम के रिजल्ट के बाद भारतीय जीवन बीमा निगम में अप्लाई किया और सलेक्ट हो गया उसे शाहजँहापुर पोस्टिंग मिली और अगले ही बरस आर्या को भी एम कॉम करने के छ: माह के भीतर ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में प्रोबेशनरी अधिकारी पद के लिए सलेक्ट हो गई और उसे लखनऊ पोस्टिंग मिल गई। अभी दोनों का प्रोबेशन पिरीयड भी पूरा नहीं हुआ था कि दोनों की शादी बडे धूमधाम से मधुबनी में सम्पन्न हो गई। बात सात एक सौ बारातियों की हुई थीं लेकिन इतने लोगों को मधुबनी लेकर जाना कहां आसान था इसलिए बड़ी मुश्किल से दो एक सौ बाराती ही जमा हो पाए। हां पांडेय जी ने बनारस में हजार लोगों को बढ़िया वाला रिसेप्शन जरूर दिया ताकि बनारस में उनके ठाठ बाट को लोग देख सकें।
लखनऊ से शाहजँहापुर की दूरी मात्र 180 किलोमीटर है सो किशोर हर शुक्र्वार की शाम को पाँच बजे बस पकडता और नौ दस बजे तक आर्या के पास । इसी तरह पाँच साल निकल गये। फिर अचानक जब किशोर का तबादला बनारस हुआ तो जुगाड लगाकर आर्या ने भी अपना तबादला बनारस ही करवा लिया। अब नाटी इमली मुहल्ले में पाण्डेय जी का घर जैसे फिर रोशन हो गया। विनय तो शादी के कुछ दिनों बाद ही दिल्ली शिफ्ट हो चुका था। जैसा कि भारतीय समाज में होता है जब पाँच साल तक कोई खुशखबरी की आहट नहीं सुनाई दी तो खुसर फुसर शुरू हो गई। एक आध साल तक तो मंगला पाण्डेय सभी को यह कहती रही थीं कि ये आजकल के बच्चे हैं जैसा इनके जी में आए करें। लेकिन जब किशोर और आर्या बनारस में ही तबादला लेकर आ गये तो मुहल्ले में फिर से बात चीत होने लगी कि अब तो छ बरस होने को आए छोटे पाण्डेय की बहूरिया का क्या इरादा है। एक दिन जब रविवार की छुट्टी थी तो मंगला ने कडाई से आर्या से पूछ ही लिया क्या बात है बिटिया तुम्हारी जिठानी ने तो साल भी नहीं बीतने दिया और हमें दादी बना दिया और एक तुम हो कि छ्टा बरस खत्म होने को आ रहा है और अभी तक कोई खुशखबरी नहीं। सब कुछ ठीक ठाक है न, कछु और बात हो तो बताओ किसी डॉक्टर को दिखाना है तो दिखा देते हैं वैसे तुम्हारे घर में तो दो दो डॉक्टर हैं बिटिया। आर्या ने बात को टालने के उद्देश्य से कह दिया कि अभी किशोर ही बच्चों के चक्क्कर में पडना नहीं चाहते। मंगला को जैसे जोर का झटका जोर से लगा एकदम बिफर कर बोलीं तीस बरस का हो गया है अब क्या बुढापे में बाप बनेगा। शाम को आने दो इसे आज बडे पाण्डेय जी ही इसकी खबर लेंगे। आर्या मंद मंद मुस्कुराते हुए पहली तल्ले स्थित अपने कमरे में जाकर लेट गई।
शाम को जैसे ही किशोर अपने दोस्तों से मिलकर लौटा बडे पाण्डेय जी ने सीधे सीधे उसकी क्लॉस लगा दी, क्यूँ भई क्या इरादा है छोटे पाण्डेय जी, ब्याह को छ: बरस होने को आए क्या बुढौती में बाप बनोगे, तीस बरस के तो तुम कब के हो गये हो। किशोर सिर्फ जी जी करता रहा और फिर इज़ाज़त लेकर जब अपने कमरे में पहुँचा तो आर्या ने चुटकी ले डाली क्या छोटे पाण्डेय जी आज तो बडे पाण्डेय जी ने आपकी बैंड ही बजा दी। सच काहे नही बोल दिये कि तुममे ही कुछ समस्या है जिस कारण तुम कभी बाप नहीं बन सकते। बात तो ठीक थी लेकिन आर्या ने उसे गलत समय पर कह दिया था इसलिए उस समय तो किशोर ने कुछ नहीं कहा अलबत्ता तीन महीने बीतते बीतते किशोर ने अपना तबादला बनारस से हैदराबाद करा लिया। जैसे ही सबको पता चला सब सकते में आ गये कि अभी शाहजँहापुर से आए दिन ही कितने हुए जो फिर से तबादला हो गया। किशोर ने सबसे यही कहा कि तबादला अचानक हुआ है सो जाना तो पडेगा ही। रात में जब आर्या ने सच्चाई जाननी चाही तो किशोर ने सीधे सीधे कह दिया हम कोशिश करेंगे कि तुम्हारा तबादला भी हैदराबाद हो जाए तो अच्छा है। वैसे भी सरकारी व्यवस्था तो है ही लेकिन एक बात याद रखना अगर तुम साथ रहना चाहो तो ठीक है वरना रास्ते और भी हैं। आर्या ने पूछा क्या मतलब तो किशोर ने कह दिया अब जब हम तुम्हारी नज़र में बाप बनने के लायक हैं ही नहीं तो क्या फायदा है साथ रहने का हाँ तुम माँ बन सकती हो। हम तुम्हें आज से ही फ्री किये दे रहे रहे हैं, तुम तलाक चाहोगी तो दे देंगे लेकिन आज जो आधा सच तुमने अम्मा से कहा है उसके लिए हम तुम्हें ज़िंदगी भर माफ नहीं करेंगे। एक बात और अगर तुम्हारी जगह हमने ये बात तुम्हारे मम्मी पापा से कही होती तो तुम पर क्या बीत रही होती सोचना अगर सोच सको तो? आर्या कुछ कहना चाहती थी लेकिन किशोर ने उसे चुप रहने का इशारा कर दिया और फिर बेड के दूसरी ओर मुँह करके सोने की चेष्टा करने लगा।
इस घटना के पंद्रह दिनों के बाद किशोर ने अपना ज़रुरी सामान पैक किया, फिर अम्मा और बडे पाण्डेय जी के चरण छूकर जाने की आज्ञा माँगी तो मंगला बोल उठी देखो छोटे पाण्डेय जी जितनी जल्दी हो सके हैदराबाद में मकान वकान ले लो फिर बहुरिया को भी भी कुछ दिनों के लिए लिवा ले जाओ, हमने बहुरिया से कह दिया है कि अपने अफसरों से बात करके जल्दी ही अपना तबादला तुम्हारे पास ही करवा ले, आखिर ऐसे कैसे चलेगा अभी गृहस्थी ठीक से जमी भी नहीं और तिबारा तबादला हो गया। किशोर ने फ्लाइट पकडी और सीधा हैदराबाद, तुरंत अमिर पेट के होट्ल में डेरा जमा दिया और अगले दिन सिकंदराबाद स्थित भारतीय जीवन बीमा निगम के ऑफिस में जाकर ड्यूटी ज्वाइन कर ली। एक हफ्ता होते होते बेगम पेट में एक फ्लैट भी ले लिया फिर देखते देखते दो महीने यूं ही बीत गये। इस दौरान वो अम्मा और बडे पाण्डेय जी से ही फोन पर बतियाता रहा आर्या से तो न के बराबर्। कभी कभी जीवन में ऐसा हो जाता है कि हाथी निकल जाता है और पूँछ फँसी रह जाती है बस कुछ ऐसा ही किशोर और आर्या के साथ हुआ। आर्या द्वारा कहे शब्दों को किशोर चाहकर भी मन से निकाल नहीं पा रहा था। एक ऐसा सच जो कि आधा सच था और जिसे आर्या ने अम्मा से बिना उसपे पूछे ही कह दिया था। आर्या की ढिढाई देखकर किशोर को कुछ ज्यादा ही तकलीफ हुई। लगभग एक वर्ष यूँ ही निकल गया। अचानक एक दिन आर्या के फोन ने उसे सोते से उठा दिया। आर्या उधर से कह रही थी हमने भी अपना तबादला हैदराबाद करवा लिया है। अगले महीने पहुँचेंगे कुछ लाना हो तो बता देना। किशोर ने नपा तुला उत्तर दिया नहीं कुछ मत लाओ सिर्फ अपने कपडे लत्ते ले आना यहाँ सर्दी नहीं होती है इसलिए गर्म कपडे वगैरह की ज़रुरत नहीं है। गृहस्थी का सभी ज़रुरी सामान हमने जमा कर लिया है कुछ और ज़रुरत लगेगी तो तुम्हारे आने के बाद ले आयेंगे। ठीक है कहकर आर्या ने फोन काट दिया। पिछले एक वर्ष में किशोर केवल एक बार ही बनारस गया था वो भी दीपावली पर तभी उसे मालूम हुआ कि आर्या उसके जाने के एक महीने बाद ही अपने मामा के यहाँ भूतही इमली मोहल्ले में शिफ्ट हो गई थी। बडे पाण्डेय जी और अम्मा ने नाराज़गी जताई तो कहने लगी हम यहाँ अकेले क्या करेंगे। आप दोनों तो खाना खाकर अपने दडबे में घुस जाते हो हम अकेले क्या करेंगे तो इससे अच्छा मामा के साथ रहेंगे कम से कम भाई बहन तो हैं बतियाने को। बस इसके बाद बडे पाण्डेय जी ने और अम्मा ने आर्या से कुछ भी कहने की जैसे कसम ही खा ली थी। हफ्ते दस दिन में जब आर्या की इच्छा होती वो सुबह सुबह ही आ जाती थी और शाम होते होते भूतही इमली मोहल्ले में वापिस।
यूँ तो फरवरी महीने में धूप ज्यादा तेज नहीं होती लेकिन अप्रैल से जून आते आते तो उत्तर भारत की तरह हैदराबाद में भी लू के बड़े वाले थपेडे सुबह दस के बाद से आपका स्वागत करने को आतुर रहते हैं। अगर सरकारी भाषा में कहें तो किसी कर्मचारी को चेतावनी देने की जगह अगर कहा जाए “अरे ओ साँभा तूने ये गलती की है न तो अब सजा तो मिलकर रहेगी, जा तुझे चेतावनी पत्र नहीं बल्कि सजा के तौर पर 11 बजे दिन में अपना पिछवाडा धोने की सजा दी जाती है । निश्चित मानिए वो कर्मचारी यही कहेगा ना सरदार ना, चेतावनी एक की जगह दो दे दो या चाहे तो दो थप्पड मार लो पर पिछवाडा धोने की सज़ा इस मौसम में कतई ना दो” मतलब पानी किस हद तक गर्म हो जाता है वो इसी बात से समझा जा सकता है। फरवरी की पाँच तारीख को किशोर आर्या को लेने एअरपोर्ट जा पहुँचा फिर कार पार्क कर वह एग्जिट गेट पर आ खड़ा हुआ।फ्लाइट लगभग एक बजे आई जब आर्या बाहर आई तो उसे समझ में आ गया कि बनारस और हैदराबाद गर्मी के मामले में एक से हैं। किशोर ने जब उसका सामान गाडी में रक्खा तो आर्या चौंक गई, तुमने गाडी ले ली मुझे बताया भी नहीं। किशोर ने बस इतना ही कहा, अब पता चल गया ना। लगभग 45 मिनिट्स के बाद जब दोनों बेगम पेट फ्लैट में पहुँचे तो आर्या ने किशोर से कहा एअरपोर्ट तो बहुत दूर हैं । इतनी देर में तो हम बनारस से प्र्यागराज पहुँच जाएँ। किशोर ने सिर्फ़ हूँ कहकर जवाब की खाना पूर्ति की। फिर जब कार एयर पोर्ट से बाहर निकली तो किशोर ने कहा यही हाल बैंगलौर का भी है वहाँ भी एअर पोर्ट शहर से बहुत दूर हैं। आर्या ने बताया कि उसको परसों कोटी ब्राँच में ज्वाइन करना है। ठीक है परसों तुम्हें गाडी से ड्रॉप कर दूँगा, शाम को ले भी आऊँगा। जब तक तुम्हें रास्तों का ज्ञान नहीं होता तब तक के लिए ऑटो से आना जाना करो बाद में गाडी से जाया करना। आर्या के हैदराबाद आने के बाद किशोर के जीवन में अगर कुछ तब्दिली आई थी तो वे ये कि उसे अब घर के कामों से छुट्टी मिल गई थी। खाना तो आर्या ही बनाती थी अलबत्ता बाकी कामों के लिए किशोर ने बाई लगा दी थी।
आर्या के जीवन में लखनऊ ऑफिस में ही काम करने वाले सुदेश तिवारी से ने अपना मकां तलाश कर लिया था। सुदेश ने न केवल आर्या का तबादला बनारस से हैदराबाद कराया वरन अपना भी तबादला लखनऊ से हैदराबाद कोटी ब्रांच में ही करा लिया था ताकि दोनों एक ही शहर में साथ साथ समय बिता सकें। आर्या अपना बाकी जीवन सुदेश के साथ बिताना चाहती थी ताकि उसे बच्चों का सुख मिल सके वहीं किशोर को शाहजहाँपुर में रहते ही आर्या और सुदेश के रिश्ते की भनक लग चुकी थी किंतु वह घर की इज़्ज़त के लिए चुप था। उसने आर्या पर ये सच्चाई कभी जाहिर नहीं होने दी कि उसे सुदेश के विषय में सब जानकारी बहुत पहले से है। किशोर की कई डिपार्टमेंट में अच्छी जानकारी थी इसलिए वो चाहता था कि आर्या बनारस छोडकर दूसरे शहर में आ जाएगी तो शायद सब कुछ ठीक हो जाए किन्तु एक दिन राजेश चौधरी जो कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, सिकंद्राबाद ब्राँच में चीफ मैंनेजर थे ने सूचना दी कि लखनऊ से कोई सुदेश तिवारी और बनारस से भाभी जी यानी आर्या झा का तबादला हैदराबाद की कोटी ब्राँच के लिए हुआ है तो उसका दिमाग सुन्न हो गया। किशोर ने सिर्फ इतना ही कहा थैंक्स यार । राजेश बोला मैंने तो पिछले हफ्ते ही हेड ऑफिस में भाभी जी के ट्रांसफर के लिए एप्रोच किया था लेकिन मैं ये जानकर थोड़ा चौंका कि भाभी जी का तबादला तो पंद्रह दिन पहले ही हो चुका है हाँ लिस्ट कल जारी हुई है जिनमें और भी तबादलों का जिक्र है लेकिन हैदराबाद के लिए सिर्फ दो ही नाम हैं फिर लम्बी श्वांस लेते हुए राजेश बोला चलो किशोर काम होने से मतलब है । किशोर ने फीकी सी हँसी के साथ पुन: थैंक्स कहा। शाम हुई तो किशोर सीधे घर जा पहुंचा आज उसका खाने का बिलकुल भी नहीं था इसलिए वो फ्रेश होकर सीधे बेडरूम में AC चलाकर लेट गया रह रह कर उसके दिमाग़ में राजेश के शब्द गुंज रहे थे।अब किशोर का दिमाग चकरघिन्नी बन गया था जिस बीमारी से पीछा छुडाने के लिए वो आर्या का तबादला हैदराबाद करवाना चाहता था वही बीमारी साथ साथ आ गई। यही सब सोचते सोचते न जाने कब उसे नींद आ गई और सुबह सुबह ही आर्या ने फोन पर अशुभ सूचना दे दी।
आर्या ने अपने और किशोर के रिश्ते को लेकर सुदेश को सब कुछ साफ साफ बता दिया था। आर्या और सब के अलावा ये बताना विशेष तौर पर नहीं भूली कि किशोर बाप नहीं बन सकता इसलिए उसे किशोर से मुक्ति चाहिए। आर्या चाहती तो बनारस से ही तलाक की कार्रवाई शुरु कर सकती थी किंतु वह अपने घर वालों को इस पचडे से दूर ही रखना चाहती थी इसलिए उसने सुदेश के साथ मिलकर ये प्लॉन बनाया कि पहले हैदराबाद तबादला लेकर चलते हैं फिर साल छ: महीने में किशोर से बात करके तलाक की प्रक्रिया शुरु करते हैं। तब तक सुदेश भी कोई फ्लैट लेकर सेट हो जाएगा। मतलब आर्या एक एक कदम बिलकुल नपा तुला रखना चाहती थी। और परिणीति स्वरूप अब वो हैदराबाद आ चुकी थी। इसी तरह जब तीन चार महीने बीत गये तो एक दिन आर्या ने किशोर से सीधे सीधे कह दिया कि अब वो उसके साथ नहीं रह सकती बेहतर होगा वो उसे तलाक दे दे। किशोर थोडी देर तो चुप रहा फिर बोला तलाक लेकर किससे ब्याह करोगी उस लखनऊ वाले सुदेश तिवारी से? सुनते ही आर्या के पैरो के नीचे से जैसे जमीन ही निकल गई। उसका चेहरा बिलकुल कागज़ की तरह सफेद पड गया फिर उखड़ी श्वांस के बाद बस इतना ही कह पाई हाँ यही समझो। किशोर ने फिर थोडा रुककर कहा देखो आर्या मुझे चार साल से इस खिचडी की भनक थी इसलिए मैंने बनारस तबादला लिया और तुम्हारा भी करवा दिया लेकिन तुम किसी न किसी बहाने सुदेश से मिलने लखनऊ पहुँच ही जाती थीं। मुझे लगा तुम खुद ही सही गलत समझ जाओगी लेकिन तुम नहीं मानी और तुमने आधा सच अम्मा से कह दिया। मुझे पहली बात तुम्हारी बात दिल पर लगी जो अभी भी कायम है। मैंने ये सोचकर हैदराबाद तबादला लिया कि कुछ दिनों बाद तुम्हारा तबादला भी हैदराबाद करा लूँगा तो इस सुदेश नामक बीमारी से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन मैं गलत निकला। तुमने न केवल अपना तबादला करवाया बल्कि सुदेश का भी तबादला हैदराबाद करवा लिया। तुम्हारा तबादला तो मार्च में ही हो गया था लेकिन तुम सुदेश के तबादले के लिए सिफारिश लगाती रहीं और अंततोगत्वा तुम सुदेश का तबादला करा कर ही मानी। अब ये मत पूछना कि मुझे ये सब कैसे मालूम है। थोडे बहुत सम्पर्क मेरे भी हैं। हाँ तो बात करते हैं तलाक कि अगर तुम बनारस में तलाक माँगती तो मैं तुरंत दे देता जैसा मैंने कहा भी था लेकिन अभी तुम छ: सात महीने ठहरो। मेरा प्र्मोशन ड्यू है जैसे ही प्रमोशन आर्डर आएगा उसके अगले ही महीने मैं तुम्हें आपसी सहमती से तलाक दे दूँगा। प्रमोशन आएगा तो निश्चित तबादला भी होगा ही। तब तक तुम्हारा यहाँ हैदराबाद में एक वर्ष भी पूरा हो जाएगा। तब तक तुम चाहो तो मेरे पास रहो चाहे तो सुदेश के पास मुझे कोई आपत्ती नहीं है। आज पहली बार आर्या को लगा कि वो जिस किशोर को जानती है वो ये नहीं है। वो पिछ्ले चार साल से सब कुछ जानते हुए भी अंजान बनने का नाटक कर रहा था। उसका मन तो था कि वो तुरंत कह दे आज से मेरा तुम्हारा रिश्ता खत्म लेकिन फिर जाने क्या सोचकर वो चुप ही रही कि खाँ-म-खाँ बात बढ जाएगी इसलिए उसने इतना ही कहा ठीक है अब जब तुम्हें सब कुछ पता चल चुका है तो फिर इतनी ड्रामेबाजी की क्या ज़रुरत है। ये सच है जब से डॉक्टर ने बताया कि तुम कभी बाप नहीं बन सकते हो उसके बाद से ही मुझे लगने लगा था कि इस रिश्ते का क्या मतलब। एक तरीका था कि हम दोनों बच्चा गोद ले सकते थे किंतु मुझे अपना ही बच्चा चाहिए सो जब सुदेश ने मुझसे शादी का प्रपोजल रक्खा तो मैंने सोचने के लिए एक साल का समय माँगा लेकिन तुमने बनारस तबादला ले लिया और मेरा भी वहीं करवा लिया तो मैंने उसी दिन निश्च्य किया कि मैं इस ढोंग के साथ ज़िंदगी नहीं जी सकती इसलिए तुम्हारे हैदराबाद जाने के से पहले ही मैंने अम्मा और बडे पाण्डेय जी को पूरा सच बता दिया कि तुम कभी बाप नहीं बन सकते और फिर मैं अपने मामा के यहाँ शिफ्ट हो गई। तुम्हें बुरा लगा मानती हूँ किंतु सच को बदला तो नहीं जा सकता। अब अंतिम बात अगले रविवार को पटना से मम्मी पापा और बडे भैय्या मिलने आ रहे हैं तो जहाँ इतना सहा है तो थोडा और सह लो वो लोग एक हफ़्ते में वापिस चले जाएँगे। आर्या की बात सुनकर किशोर ने बस इतना ही कहा मुझे कोई आपत्ती नहीं है ,उनका ही घर है वे एक हफ्ते रुके या एक महीना।
अगले हफ्ते जब आर्या के माता पिता और भडे भाई आए तो किशोर ने एक हफ्ते की छुट्टी लेकर उन्हें पूरा हैदराबाद ही नहीं घुमाया वरन श्री शैलम (ज्योतिर्लिंग) के दर्शन भी करवा दिये। सब कुछ अच्छे से निपट गया और वे सब दस दिन के बाद पटना वापिस लौट गये। दिन तो दिन हैं कब गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता। किशोर का प्रमोशन आर्डर आ चुका था उसको अगले एक महीने बाद जम्मू जाकर ज्वाइन करना था। लगभग 40 दिन का समय शेष था। आर्या और किशोर ने आपसी सहमती से तलाक के लिए अप्लाई कर दिया, पहली सुनवाई के बाद तीने महीने बाद की डेट मिली। किशोर ने जम्मू जवाइन करने से पहले अकेले ही एक हफ्ते के लिए महाबलेश्वर जाने का प्लान किया था। चूँकि किशोर अपनी ही गाडी से महाबलेश्वर रहा था तो उसने आर्या से कह दिया था कि अगर वो चाहे तो एक हफ्ते के लिए सुदेश के साथ जाकर रह ले या यहीं रहे किंतु सुदेश इस घर में नहीं आना चाहिए। आर्या ने भी टका सा जवाब दे दिया इसकी कोई ज़रुरत नहीं है मैं यहीं रहूँगी। जब तक हम दोनों का तलाक नहीं हो जाता और सुदेश और मेरी शादी नहीं हो जाती तक कुछ भी नहीं। मतलब किशोर ने यूँ ही लापरवाही से पूछा तो आर्या बोली कुछ भी नहीं मतलब कुछ भी नहीं मेरे और सुदेश के बीच आज तक कुछ भी नहीं हुआ और जब तक शादी नहीं होगी तब तक कुछ होगा भी नहीं ये बात मैंने उसे शादी के लिए हाँ करने से पहले ही बता दी थी। मेरे इस निर्णय का सम्मान वो भी करता है। किशोर ने एक अजीब सी नज़रों से आर्या को देखा फिर सोने के लिए बेड पर चला गया। अचानक जब उसकी आँख खुली तो बाथरुप की रोशनी से उसने आर्या को बडे गौर से देखा और उसके दिमाग में कुछ चलने लगा था। आर्या भी जागते हुए भी मकर भरे पडी रही।
जब सुबह आर्या ने बेड टी किशोर को दी तो उसने उसे अपने पास बैठने का इशरा किया फिर बोला क्या तुम महाबलेश्वर चलोगी। आर्या ने थोडी देर सोचकर कहा कब जाना है तो किशोर बोला शनिवार को निकलेंगे शाम तक महाबलेश्वर फिर चार पाँच दिन रुकेंगे अगर मूड किया तो माथेरान भी घूम लेंगे। फिर अगले शनिवार या रविवार तक वापिस फिर उसके अगले हफ्ते में तो मुझे जम्मू ज्वाइन करना ही है तो सोचा थोडा घूम फिर लिया जाए। ठीक है मैं आज ही लीव अप्लाई कर देती हूँ। किशोर जहाँ खुश था वहीं आर्या को जाने क्यूँ कुछ शंका सी हो रही थी। शनिवार के दिन सुबह नाश्ता करके के बाद सात बजे के लगभ आर्या और किशोर ने अपनी यात्रा शुरु की आर्या ने रास्ते के लिए दो समय का खाना बनाकर रख लिया था। रात्रि नौ बजे जाकर दोनों महाबलेश्वर पहुँचे। चुँकि किशोर ने होटेल की बुकिंग पहले ही कर रक्खी थी इसलिए दोनों फ्रेश हुए कुछ खाया और सो गये। अगले दिन सुबह फ्रेश हुए नाश्ता किया और नौ बजे के करीब घूमने निकल गये। वैसे तो महाबलेश्वर अक्टूबर के बाद जाने का मौसम है किंतु घूमने वालो के लिए क्या अक्टूबर क्या जून और क्या जुलाई। जुलाई माह में बारिश अपने पूरे शबाब पर होती है क्या सड्क क्या पहाड सब जगह पानी ही पानी और थोडी सी भी ऊँची जगह हो तो झरने आपका स्वागत करने को तैयार रहते हैं। प्रतापगढ फोर्ट,फोर्ट, वेन्ना लेक, एंफिल पोइंट,माप्रो गार्डन और विल्सन पोइंट वो खूबसूरत जगह हैं जहाँ प्रकृति टुरिस्टों का मन मोह लेती है। आज महाबलेश्वर में किशोर और आर्या का तीसरा दिन था सो किशोर ने 1656 में बने प्रतापगढ फोर्ट जाने का निश्चय किया था। किला इतना बडा था कि उसे देखते देखते ही पूरा दिन निकल जाए। आर्या पिछ्ले दो दिन से किशोर के साथ घूम रही थी किंतु किसी अंजानी आशंका से वो सतर्क भी थी। प्रतापगढ किला देखने के बाद जब दोनों चार बजे लगभग नीचे होटेल के लिए उतर रहे थे तो आखिरी चढाई से उतरते हुए अचानक आर्या का पैर स्लिप हो गया और वो दस-पंद्रह बीस फुट नीचे गड्डे में जा गिरी। चूँकि उनके अलावा और लोग भी थे सो एकदम हडकम्प मचना स्वाभाविक था। आधा घंटा बीतते बीतते पोलिस, फायर और एक एम्बूलेंस भी वहाँ आ पहुँची खैर जैसे तैसे आर्या को बाहर निकाला गया। गड्डे में तीन फुट के करीब पानी भरा हुआ था इसलिए आर्या को चोट तो लगी लेकिन उतनी नहीं जितनी खाली गड्डे में लगती। बाएँ पैर में फ्रेक्चर हो गया था, बाएँ हाथ की ही दो ऊँगलियों में भी फ्रेक्चर था साथ ही जगह रगड वगैरह के निशान अलग थे । हॉस्पिटल पहुँचकर तुरंत ही उपचार प्रारम्भ हो गया, बाएँ पैर और हाथ में प्लास्टर बाँध दिया गया था। फिलहाल जब डॉक्टर को पता चला कि ये दम्पती हैदराबाद से यहाँ घुमने आएँ है तो उन्होंने किशोर को कम से कम एक हफ्ते तक फुल रेस्ट की सलाह दी उसके बाद ही हैदराबाद जाने की अनुमति प्रदान की गई। आर्या के चेहरे पर भी काफी चोट लगी थी जिस कारण उसे बोलने में परेशानी हो रही थी। जैसे तैसे एक हफ्ते के बाद किशोर आर्या को लेकर हैदराबाद पहुँचा और अपनी बडी बहन विद्या को फोन से सारी स्थिति बताई तो वो तुरंत ही अगले दिन अपने चार साल के बेटे के साथ हैदराबाद आ गई। आर्या विद्या को देखते ही चौंक गई। अरे दीदी आप यहाँ, विद्या ने आर्या के सर पर हाथ फेरते हुए कहा कितने दिन हो गये हैदराबाद आए एक फोन भी नहीं किया खैर छोडो मैंने कहा मैं ही चलती हूँ अपनी भाभी को देखने। विद्या के आने से किशोर ने ऑफिस जाना शुरु कर दिया था और कोटि स्थित एस बी आई में खुद चीफ मैंनेजर से मिलकर स्थिति बयां कर दी थी। चीफ मैंनेजर रेड्डी ने कोई बात नही पाण्डेय जी जब तक आर्या बिलकुल स्वस्थ न हो जाएँ उन्हें आने की ज़रुरत नहीं है तब तक मैं कोशिश करुँगा कि आर्या का तबादला सिकंद्राबाद ब्रांच में हो जाए। किशोर रेड्डी जी को धन्यवाद देकर उठा तो उसने पाया कि कोई है जो रेड्डी जी के कमरे में बार बार झाँक कर जा रहा है। उसे अंदाज़ा हो गया कि हो न हो ये सुदेश तिवारी ही है।किशोर ने ऑफिस में तीने महीने बाद रिलीव करने के लिए प्रार्थना की जो कि स्थिति को देखते हुए स्वीकार भी कर लिया गया कर।
इधर आर्या ये सोच सोच कर परेशान हो रही थी कि वो तो किशोर की तरफ से कुछ उल्टा सीधा किये जाने की आशंका से घिरी थी कहाँ वो खुद ही गड्डे में जा गिरी। सच तो ये है कि जब उसका पैर फिसला तब उसके दिमाग में यही आ रहा था कि किशोर उसे अब धक्का देगा तब धक्का देगा और उसकी इहलीला समाप्त कर देगा लेकिन वैसा तो कुछ हुआ नहीं वो स्वंय ही उल्टे सीधे ख्यालों को दिमाग में जगह देती रही और परिणाम सामने गढ्ढे के दर्शन। ख़ैर धीरे धीरे ऐसे ही दो महीने निकल गये अब आर्या न केवल स्वंय अच्छी तरह चल पा रही थी वरन उसने किचन का काम भी सम्भाल लिया था। एक दिन उसने किशोर से कहा कि अब वो पूरी तरह ठीक है वो दीदी को सूरत छोड आएँ वहाँ उनका परिवार भी सफर कर रहा होगा। किशोर ने कहा कोई बात नहीं विद्या दीदी का ससुराल काफी बडा है या यूँ कहूँ तो ज्यादा बेहतर होगा कि सन्युक्त परिवार होने के कारण वहां सब कुछ अच्छे से निपट जाता है। मैं दीदी से बात करता हूँ अगर वे जाना चाहेंगी तो ठीक है वर्ना वो जब कहेंगी तब्। ठीक है कहकर आर्या अपने काम में लग गई। शाम को जब किशोर आया तो आर्या ने बताया कि रेड्डी सर का फोन था उन्होंने मेरा तबादला सिकंद्राबाद ब्रांच में करा दिया है। वही बता रहे थे कि मेरा भी प्रमोशन ड्यू है शायद इस महीने या अगले महीने आर्डर आ जाएँगे। अभी वो बात कर ही रहे थे कि बैल बजी तो किशोर दरवाज़ा खोलने के उठा तो विद्या ने कहा किशोर तुम रहने दो मुझे मालूम है कौन आया है। किशोर ने अचकचा कर विद्या को देखा तो उसे मुस्कुराता पाकर वो सब कुछ समझ गया। दरवाजा खुला तो प्रणव द्विवेदी हाजिर्। किशोर और आर्या ने पैर छुकर प्रणव का आशीर्वाद लिया। प्रणव थोडा हँसमुख स्वभाव का था इसलिए किशोर को गले लगाते हुए बोला किशोर हैदराबाद से सूरत एक हजार किलोमीटर ही है। फ्लाइट में बैठो तो डेढ घंटे में । कभी याद नहीं आती क्या और ये क्या विद्या बता रही थी कि तुम्हारा प्रमोशन हो गया है और तुम जम्मू जा रहे हो, भई ये बात अपनी तो समझ में आई नही। आर्या बनारस से यहाँ तुम्हारे पास आई और तुम फिर इसे छोडकर जम्मू जा रहे हो। तभी आर्या बोल पडी जीजा जी अब ऐसा कुछ नहीं होने वाला , मेरा भी प्रमोशन ड्यू है एक आध महीने बाद मैं भी जम्मू ही पहुँच जाऊँगी। आर्या की बात सुनकर किशोर एक बारगी तो चौंका लेकिन फिर संयत होते हुए बोला जीजा जी हम ठहरे नौकरी वाले आपकी तरह बिजनेसमैन थोडे ही है जो पूरी ज़िंदगी एक ही जगह निकल जाएगी। फिर इसी तरह हँसी ठहाको के बीच तीन चार दिन यूँ ही निकल गये। प्रणव विद्या को लेकर सूरत लौट चुका था। आर्या ने सिंकंद्राबाद ब्रांच में ज्वाइन कर लिया था। किशोर आर्या द्वारा जीजा जी को कही गई बात पर स्पष्टीकरण चाहता था किंतु न जाने क्या सोचकर चुप हो जाता था ।
अब किशोर साढे नौ बजे घर से निकलता आर्या को बैंक छोडकर फिर अपने ऑफिस पहुँच जाता। आर्या के साथ हुए हादसे ने उसे अंदर तक हिला दिया था। वो ये सोचकर परेशान था कि अगर उसे कुछ हो जाता तो वो अपने और आर्या के घरवालों को क्या जवाब देता। उसे अगले पंद्रह दिनों में जम्मू ज्वाइन करना था लेकिन उसका मन आर्या को छोडकर जाने को नहीं कर रहा था। इसी पशोपेश शुक्रवार शाम को जब वो ऑफिस से निकलकर आर्या के बैंक पहुँचा तो आर्या के हाथ में कई सारे गिफ्ट और बुके देखकर चौंक गया ।कई सारे साथी आर्या के साथ ही बैंक के बाहर खडे थे। ऐसी स्थिति देखकर किशोर तुरंत कार से बाहर निकला और सबको हाय हल्लो बोलकर आर्या के हाथ से सामान लेकर गाडी की पिछली सीट पर रखने लगा तो तभी राजेश चौधरी ने किशोर को शुभकामनाएँ दी तो किशोर चौंक पडा। अरे अरे ऐसे मत देखो पाण्डेय जी भाभी जी का प्रमोशन हो गया है अब वो स्केल वन में आ गई हैं और दूसरी शुभकामनाएँ इसलिए कि इनका तबादला भी जम्मू हुआ है। भई इस बार मैंने कोशिश की थी और मैं सफल हुआ। इसके लिए तुमसे अलग से पार्टी लूँगा। फिर हा हा करके राजेश चौधरी हँसने लगे। थोडी देर बाद जब आर्या और किशोर घर की ओर रवाना हुए तो किशोर ने पूछा ये सब कब हुआ और मुझे क्यूँ नहीं बताया। फिर प्रश्न वाचक दृष्टि से देखते हुए बोला अगले महीने कोर्ट की भी डेट है याद है ना। आर्या ने किशोर की तरफ देखे बिना ही कहा हाँ मुझे सब याद है अब इस विषय में रात में बात करते हैं।
खाना वगैरह से निपटकर जब आर्य बेडरुम में दाखिल हुई तो देखा किशोर आज फिर हेडफोन लगाकर जगजीत सिंह की गज़ले सुनने में वयस्त हैं। जब किशोर बहुत खुश या दु:खी होता था तो वो जगजीत सिंह की गज़ले ही सुनना पसंद करता था। आर्या ने धीरे से किशोर के कानों से हेडफोन उतारे फिर बोली , अब बोलो कार में क्या कह रहे थे। किशोर ने कुछ नहीं बस तुम्हें याद दिला रहा था कि अगले महीने तलाक की डेट पर सुनवाई है और हो सकता है उसी दिन फैसला भी हो जाए। किशोर की बात बीच में ही काटते हुए आर्या ने कहा बाक़ी छोड़ो पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो महाबलेश्वर जाने से पाँच दिन पहले तुम रात में बाथरुम के लिए उठे थे तुमने लाइट जलाई फिर तुम निवृत हुए फिर लाईट बंद न कर तुम मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे। जान सकती हूं ऐसा क्यूं और तुम्हारे दिमाग में उस समय चल क्या रहा था। तुम्हारे उठकर जाते ही मेरी भी आँख खुल गई थी मैंने सोचा तुम बाहर आओगे तो मैं जाऊँगी लेकिन तुम्हें अपनी तरफ देखकर मुस्कुराता हुआ देखा तो मुझे कुछ आशंका हुई फिर वापिस आकार तुम आँख बंद करके सोने की चेष्टा कर रहे थे लेकिन तुम्हारे होटों पर तब भी मुस्कान तैर रही थी । जब अगले दिन तुमने मुझे महाबलेश्वर चलने के लिए कहा तो मैं किसी आशंका से ग्रस्त हो गई थी फिर ये सोचकर की जो होगा देखा जाएगा मैं तुम्हारे साथ चली गईं मुझे लगा तुम मुझे घुमाने के बहाने वहीं महाबलेश्वर में मार डालना चाह्ते हो शायद पहाडी से धक्का देकर ताकि तुम साबित कर सको कि वो एक्सीडेंट था लेकिन हो उल्टा गया। मेरा खुद ही पैर फिसल गया और मैं गड्डे में जा गिरी। पानी होने के कारण चोट कम लगी लेकिन गड्डे में पडे पडे भी मैं तुम्हारी तेज आवाज़ सुन रही थी तुम पोलिस को समझा रहे थे। मुझे उसी अवस्था में लगा अगर ये आदमी मुझे मारने लाया है तो फिर इतना परेशान क्यूँ है फिर तुम्हारा हॉस्पिटल में सेवा करना, यहाँ विद्या दीदी को बुलाना और भी बहुत कुछ ऐसा जिससे मैं परेशान हो गई। किशोर पहले मुझे इन्हीं सब का जवाब दो।
किशोर ने आर्या को गौर से देखा फिर बोला ठीक है उस दिन जब मैं तुम्हें बाथरुम में निफराम हो रहा था तो मुझे अपनी और तुम्हारी प्रेम कहानी स्मरण हो आई। दो बरस का प्रेम फिर शादी, फिर बच्चे न हो पाने के कारण तुम्हारा सुदेश तिवारी से शादी का फैसला, तुम्हारा अम्मा को "आधा सच" बताना वगैरह वगैरह, मैं यही सोचकर मुस्कुरा रहा था कि जीवन भी क्या है न कल तक हम जिसके लिए जी जान एक किए दे रहे थे आज सिर्फ एक समस्या उत्पन्न होने पर ऐसी स्थिति कैसे बन गईं कि हम अलगाव की स्थिति तक आ पहुंचे। बस यही सब और कुछ नहीं और तुमने समझा मैं तुम्हें महाबलेश्वर में मार डालने की नीयत से ले जा रहा हूँ। खैर कोई बात नहीं जो हुआ सो हुआ। एक गहरी श्वांस लेते हुए आर्या बोली अब आखरी बात मेरी सुनो मुझे विद्या दीदी ने वो आधा सच बता दिया है जो तुमने मुझसे छुपा कर रक्खा। मैंने वही अधकचरा सच अम्मा और बडे पाण्डेय जी को अपने अहम की तुष्टी के लिए बता दिया लेकिन तुमने इतना सब सहा मुझे सच नहीं बताया जान सकती हूँ क्यूँ । माना मैं थोडी बेवकूफ हूँ लेकिन इतना तो समझ ही सकती थी। सच कहूँ तो मुझे अपने द्वारा किये गये व्यव्यार पर दु:ख नहीं वरन घृणा उत्पन्न हो रही है। “तुम तो बाप बन सकते हो पर मैं कभी भी माँ नहीं बन सकती किशोर” जब से मुझे ये सत्य पता चला है मैं जाने कितनी बार मरी हूँ। डॉक्टर से मिलकर तुमने रिपोर्ट ही बदलवा दी क्यूँ किशोर क्यूँ। तुम अच्छे हो माना लेकिन अपने अच्छे पन में मुझे सच न बताकर तुमने मुझे बहुत छोटा कर दिया। खैर अब तलाक का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता जहाँ तक बात जम्मू जाने की है तो वो मैंने बहुत सोच समझ कर ही फैसला लिया है। राजेश चौधरी सर ने मदद कर दी सो ये काम और आसान हो गया अब तुम पर डिपेंड करता है कि तुम तलाक लेना चाहते हो तो हम अगले महीने आकर ले लेंगे लेकिन अगर मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती तो कम से कम एक शहर में तो रह ही सकती हूँ। तभी किशोर उठा और आर्या का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला इस सबकी कोई ज़रुरत नहीं है आर्या। मैं अभी भी वही किशोर हूँ और तुम भी वही आर्या बस समय का फेर है खैर अभी इतनी भी देर नहीं हुई है कि हम दोनों अपना रास्ता ही बदल लें। आर्या ने किशोर को जोर से पकड़कर कहा इस पगली को माफ़ कर दो किशोर प्लीज़।
प्रदीप देवीशरण भट्ट-16.06.2023