Monday, 25 January 2016

मानवता मेरा धर्म



      प्रदीप भट्ट
K-2/31,ग्रामोदया, गुलमोहर क्रॉस रोड नंबर- 06,
जुहू विले पार्ले स्कीम, जुहू, मुंबई -400 056
Mobile : 9867678909,
Mail: pradeepbhattkvic@gmail.com

                                           दिनांक :26.01.2016
“मानवता धर्म मेरा   “

हर धर्म से ऊँचा जहां सबका ईमान है,
रहते जहाँ सब प्यार से हिंदुस्तान है।

मज़हब जुदा हुए तो क्या पर हम तो एक हैं,
इसका नहीं उसका नहीं सबका जहान है ।
                   हर ग्रंथ का एक सार है सब प्रेम से रहे,
                   किसके लिए हाथों मे फिर तीर-ओ –कमान है।
हम भाव बैर का नहीं रखते कभी दिल मे ,
ले लेते वक्त पड़ने पर दुश्मन की जान हैं।
                   काशी नहीं काबा नहीं न गुरु चरणों की धूल,
                   अपनी तो बस इंसानियत अपनी पहचान है।
हर नौजवान अब छु रहा नित अपना आसमान,
रोके से न रुक पाएगी ये ऊँची उड़ान है।
                   हम प्यार की माला मे हैं मोती गूँथे हुए
                   माँ भर्ती के भाल की हमसे ही शान है।

:::प्रदीप भट्ट:::::26 जनवरी,2016












Saturday, 23 January 2016

spy की दुनियां




“ भेदियों (spy) की दुनियाँ “

     जासूस शब्द का जैसे ही मुख से संचार होता है रीढ़ की हड्डी मे एक सिहरन सी दौड़ जाती है। जासूसो की दुनियाँ इतनी रहस्मयी और तिलस्मी होती है कि व्यक्ति चाहे न चाहे पढ़ते - पढ़ते स्वत: ही रोमांच का अनुभव करने लगता है। मै तो खैर बचपन से ही जासूसी उपन्यास पढ़ने का इतना शौकीन रहा कि मेरे पढ़ने कि गति एक दिन मे दो या तीन उपन्यासों तक हो गई थी। उस समय जासूसी उपन्यास लेखन मे इब्ने सफ़ी, वेद प्रकाश कम्बोज, ओम प्रकाश शर्मा  और कर्नल रणजीत की तूती बोलती थी। मैंने इनके अतिरिक्त कुछ और लेखकों को भी पढ़ा किन्तु जितना आनंद उपरोक्त सबको पढ़कर आया उसे बयान करना मुश्किल है। फिर जब कुछ समझदार हुआ तो किसी ने देवकी नन्दन खत्री का उपन्यास चन्द्रकान्ता और चन्द्रकान्ता सन्तति (सात खंड) पढ़ने की सलाह दी ये उपन्यास सात खंडो मे था जिसे जब मैंने पढ्ना शुरू किया तो खत्म करके ही दम लिया तत्पश्चात उनही का काजर की कोठरी और एक और बेहतरीन उपन्यास भूतनाथ (सात खंड) पढ़ा। सत्य कहूँ तो जितना रहस्य, रोमांच और तिलस्मी वर्णन उन्होने किया है उसे शब्दो मे कह पाना संभव नहीं है। बाबू देवकी नन्दन खत्री ने चन्द्रकान्ता और चन्द्रकान्ता सन्तति (सात खंड) और भूतनाथ (सात खंड) मे जासूसी/गुप्तचरी को एक नया आयाम प्रदान किया है। यहाँ यह उल्लेखनीय है बाबू देवकीनंदन खत्री का  जन्म समस्तीपुर बिहार मे 1861 मे हुआ था, वे केवल 52 वर्ष ही जिये उनकी मृत्यु बनारस मे 1913 मे हुई। बाबू देवकीनंदन खत्री ने उपरोक्त उपन्यास 1888-1013 के मध्य मे लिखे हैं। तब ना तो टाइपराइटर (प्रथम टाइपराइटर का प्रयास 1714 मे हेन्री मिल ने किया था किन्तु बना वह इटालियन पेल्लेग्रीनो तुर्री के प्रयास से 1808 मे) इतने प्रचलन मे थे और न ही कोई उन्नत तकनीक प्रिंटिंग हेतु उपलब्ध थी।


     गुप्तचरी या जासूसी का उपयोग  सिर्फ आज के युग मे ही उपयोग हुआ हो  ऐसा भी नहीं है गुप्तचरी का प्रयोग तो आदि काल से हो रहा है। त्रेता युग  (मै यहाँ सतयुग का जिक्र जानबूझ कर नहीं  कर रहा हूँ।) मे भी भगवान राम व रावण के संग्राम के दौरान गुप्तचरी हुआ करती थी। हनुमान जी को आप प्रथम गुप्तचर या राजदूत कह सकते हैं। जिनहोने अपने बुद्धिचातुर्य से लंका का न केवल पूरा भ्रमण किया बल्कि वहाँ की पूर्ण जानकारी जुटाई, माता सीता को आशाव्स्त किया व स्वंय को पकडवाकर प्रकाण्ड पंडित रावण को भी अपनी बहादुरी (लंका मे आग लगाकर) चपलता,आकार प्रकार स्वामिभक्ति से भी अवगत कराया । द्वापर युग मे महाभारत युद्ध से पूर्व और पश्चात भी गुप्तचरी के बहुतेरे किस्से ग्रंथो मे मौजूद हैं।

     अब बात करते हैं कलयुग की  जिसमे किसी भी युद्ध को लड़ने के दो तरीको पर पूरा फोकस किया जाता रहा है ।एक युद्ध से पूर्व की स्थिति जहां गुप्तचरी द्वारा दुश्मन देश के समस्त भोगोलिक क्षेत्र का गुप्तचरों/पशु और पक्षियो के द्वारा गुप्तचरी कराई जाती रही है व उसी के अध्ययन के पश्चात दुश्मन देश की सेनाओ की स्थिति की जानकारी हासिल की जाती है, दुश्मन सेना के हथियारो की जानकारी जुटाई जाती है तदुपरान्त दुश्मन देश पर आक्रमण किया जाता है। प्रथम एवम दितीय विश्व युद्ध तक सामन्यात: इसी बात पर ज्यादा फोकस भी किया जाता था। किन्तु जैसे जैसे तकनीक दिन- ब -दिन बढ़ रही है वैसे वैसे आज विश्व के प्रमुख देश satellite के माध्यम से और आज तो इसका सूक्ष्म रूप ड्रोन जायदा चलन मे आ रहा रहा है ने सम्पूर्ण जासूसी/गुप्तचरी वयवस्था को ज्यादा शक्तिशाली और त्रिवतम बना दिया है।किन्तु आज भी मानव द्वारा जासूसी/गुप्तचरी  के नित नए आयाम स्थापित किए जाते रहे हैं। ये लेख लिखने का विचार इसी गरज से आया की क्यो न विश्व के कुछ चुनिंदा जासूसो के विषय मे कुछ रोचक जानकारी साझा की जाए ।

     

   
        जर्मनी की महान जासूस माता हारी
       (Margaretha Geertruida MacLeod)

विश्व के प्रसिद्धतम कुछ जासूसो मे जिनका नाम लिया जाना श्रेयस्कर होगों उनमे प्रथम नाम मैं जर्मनी की महान जासूस माता हारी जिनका पूरा और असली नाम हारी (Margaretha Geertruida MacLeod) जिनका जन्म 7 अगस्त 1876 को Leeuwarden लीऊवार्डेन नीदरलैंड मे हुआ था। उनकी मृत्यु 15 ओक्टोबर 1917 को Vincennes फ़्रांस मे डबल जासूसी करने के अपराध मे एक फ़ाइरिंग मे  हुई। वे एक जासूस होने के साथ साथ एक अच्छी नर्तकी भी थे साथ ही वे मिस्ट्रेस्स (Mistress/रखेल या उप-पत्नी) भी थी। उन्हे 1916 आर्मी के कप्टेन जोर्जे लडौक्स ने  फ़्रांस की सेना की  जासूसी के लिए हायर किया गया था। माता हारी ने मात्र 19 बरस की आयु मे रूडोल्फ मैकलोड़ जो की उनसे 21 बरस बड़ा था 11 जुलाई 1895 को शादी कर ली। रूडोल्फ मैकलोड़ जो की उग्र प्रक्रति का था व  जायदा तर नशे मे ही रहता था को शक था कि माता हारी के अन्य के साथ अनेतिक संबंध है ।


           
     माता हारी के विषय मे एक दिलचस्प तथ्य यह है कि उसने अपने आप को एक हिन्दू कलाकार के तौर पर स्थापित किया। उसे अपने शरीर को  विभिन्न प्रकार से  शरीर को सजना या गोदवाना बहुत पसंद था। उसने अपना स्टेज का नाम माता हारी जिसका अर्थ इंडोनेशिया मे बोली जाने वाली देसी भाषा मे नैनो का दिन या “आइ ऑफ थे डे” होता है रखा। माता हारी के दैहिक आकर्षण और अंदाज के आम आदमी ही नहीं वरन फौज के बड़े बड़े ओहदेदार भी दीवाने हो जाते थे जिसका उसने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जमकर फायदा उठाया। 1916 मे 40 की उम्र मे माता हारी एक गोलमटोल 21 वर्षीय रशियन कैप्टन व्लादिमीर डे मसलोफ़्फ़ के प्यार मे पड़ गई। व्लादिमीर की जंग के दौरान एक आँख चली गई। पैसा कमाने के चक्कर मे माता हारी को फ़्रांस के लिए जासूसी करनी पड़ी। ये एक रहस्य  ही बन कर रह गया की माता हारी असल मे किसके लिए जासूसी करती थी फ़्रांस के लिए या जर्मनी के लिए, इसी दरम्यान फ्रेंच औथोरिटी ने उसे गुप्तचरी के आरोप मे पेरिस मे अरैस्ट ही नहीं किया अपितु 13 फ़रवरी 1917 को गिरफ्तार कर लिया और उसे एक रात-इनफेसटेड सेल मे डाल दिया गया उसे वहाँ सिर्फ अपने वकील से ही मिलने की इजाजत दी गई थी।

      इस तरह एक खूबसूरत,साहसिक नृत्य मे प्रवीण जासूसी मे बेजोड़ एक महान गुप्तचर का मार्मिक अंत हो गया। न्यू यॉर्क टाइम्स ने उसे “ A Woman of attractiveness and with a romantic history” करार दिया।1931 मे माता हारी पर एक फिल्म का भी निर्माण हुआ जिसमे ग्रेटा गार्बो ने माता हारी की भूमिका निभाई थी।

                            -जूलियस और एथेल रोसेन्बेर्ग-
     जूलियस एवं एथेल रोसेन्बेर्ग जो की अमेरीकन कोममुनिस्ट्स और शादीशुदा थे ने 1553 मे अमेरिकी न्यूक्लियर से संबन्धित गुप्त जानकारी सोवियत संघ को उपलब्ध कराई थी। वे गुप्तचरी के जाल मे 1942 मे तब उलझे जब जूलियस केजीबी द्वारा भर्ती किया गया।जूलियस को कुछ महत्वपूर्ण/वर्गीकृत (क्लासिफीड) जानकारी जिसमे fuse डिज़ाइन भी शामिल थे के लिए केजीबी द्वारा  ज़िम्मेदारी दी गई। इस केस का खुलासा 1951 मे हुआ जिसमे दोनों को अपराधी माना गया इस काम मे उसे उसकी बहन के पति sergeant डेविड greenglass का सहयोग प्राप्त था। बाद मे डेविड द्वारा ये स्वीकार किया गया कि उसने ये न्यूक्लियर से संबन्धित गोपनीय जानकारी जूलियस के माध्यम से सोवियत संघ को मुहैया कराई जिनको एथेल ने टाइप किया था। दोनों को अमेरिका के विरुद्ध गुप्तचरी के इलज़ाम मे 1953 मे जेल मे इलैक्ट्रिक चेयर के माध्यम से  मृत्यु दंड कि सजा दी गई। ये अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य शीत युद्ध के दौर की घटना है।


     तीसरा नाम है सिडनी रेल्ली का जिनका जन्म 1873 मे Georgievich Rosenblum नमक जगह पर रशिया मे हुआ था। सिडनी रेल्ली इयान फ्लेमिंग द्वारा निभाए गए जेम्स बॉन्ड के किरदार से बहुत ज्यादा प्रभावित थे उन्हे विश्वास था कि इस काम मे औरों से ज्यादा माहिर हो सकते हैं। रेल्ली एक (womanizer)व्यभिचारी थे।किन्तु कुछ लोगो को लगता था कि वे गुप्तचरों  की दुनियां मे एक सज्जन जासूस थे जो कि गलत धारणा थी।बल्कि उनकी जीवन शैली काफी (extravagant) खर्चीली थी। ऐसा कहा जाता है कि वे सोवियत यूनियन के नेता लेनिन कि हत्या के प्रयास मे शामिल थे किन्तु शानदार ढंग से वहाँ से भागने मे सफल रहे। वे 1925 पुन: सोवियत लौटे व वहाँ की शासन पद्दती मे सम्मलित हुए किन्तु इस बार उनके भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और व सोवियत यूनियन द्वारा पकड़े गए और उन्हे उसी साल फांसी दे दी गई।

     चौथे स्थान पर हैं  krystyna skarbed जिन्हे क्रिस्टीन ग्रांविल्ले के नाम से भी जाना जाता है इनका जन्म  1908 मे पोलैंड मे हुआ था। वो  कसीनों रोयाले के कैरक्टर जिसे एवा ग्रीन द्वारा निभाया गया था से प्रभावित थीं। वे 1940 मे  ब्रिटिश गुप्तचर का तौर पर हंगरी गई किन्तु वे बार बार पोलैंड पोलिश resistance fighters को भागाने मे मदद करती रही । उन्हे गेस्टपों द्वारा गिरफ्तार किया गया किन्तु जल्दी ही छोड़ दिया गया। उन्होने अपनी ही जुबान के छोटे से हिस्से  को काट कर लहूलुहान कर लिया और जर्मनस को ये समझने मे कामयाब रही कि वे (tuberculosis) क्षय रोग से पीड़ित हैं। krystyna skarbed या क्रिस्टीन ग्रांविल्ले ने अपने जीवन कल मे कई साहसिक व गोपनीय मिशनो को अंजाम दिया जिनमे पहले वे फ़्रांस के लिए तत्पश्चात फ़्रांस और ब्रिटिश सरकार दोनों के लिए जासूसी करती रही। उनकी मृत्यु 1952 मे एक प्रशंसक द्वारा जिसे उन्होने जाने अनजाने मे नकार दिया था के चाकू घोपने के कारण हुई
   

                          हेनरी डेरिकौर्ट
     पांचवे स्थान पर हेनरी डेरिकौर्ट का जन्म 1909 फ़्रांस मे हुआ था वो एक फ्रेंच पायलट थे। दूसरे विश्व युद्ध मे डबल एजेंट के तौर काम करने के लिए उन पर हमेशा संदेह किया जाता रहा। ऐसा इसलिए भी कि बहुत सारे ब्रिटिश और फ्रेंच पायलट जहाँ पकड़े जाते रहे वही डेरीकोर्ट कभी नहीं पकड़े गए । 1942 मे फ़्रांस से  अधिकृत तौर पर ब्रिटिश चले गए और वहाँ (एसओई)Special Operations Executive को जॉइन किया किन्तु उन्हे फिर से वापिस गोपनीय ऐरक्राफ्ट लेंडिंग्स और transportation कि जानकारी लेने हेतु एसओएस एजेंट बनका फ़्रांस भेज दिया गया।उन्हे 1946 मे पकड़ा गया किन्तु वे 2 वर्ष के अंदर ही (acquit) निर्दोष साबित होकर छुट गये। ऐसा समझा जाता है कि उन्होने एक प्लेन क्रैश मे अपने आप को मरा हुआ मात्र इसलिए दर्शाया ताकि वे एक नयी ज़िंदगी जी सकें।


छटे स्थान पर क्लाउस फूंच्स जर्मनी मे 1911 मे पैदा हुए उन्हे मनहटटन प्रोजेक्ट की गुप्त जानकारी सोवियत संघ को दिये जाने को लेकर याद किया जाता है।जब जर्मनी मे नाजी सत्ता मे आए तो फूंच्स Britain भाग गये।उन्होने वहाँ ब्रिटिश अटॉमिक बॉम्ब  प्रोजेक्ट मे काम किया किन्तु कुछ ही समय बाद वे सोविएत मिलिटरी इंटेलिजेंस GRU से जुड़ गये। फिर कुछ समय बाद वे यूएसए चले गये और वहाँ उन्होने मनहटटन प्रोजेक्ट से संबन्धित वाज्ञानिको की टीम को जॉइन किया। किन्तु 1949 मे वो (espionage)गुप्तचरी के प्रयास मे शक के घेरे मे आ गये जिसे उन्होने सिरे से खारिज कर किया और वे युद्ध समाप्ती पर वहाँ से वापिस Britain लौट आये। हालांकि 1950 मे उन्होने ये स्वीकार किया कि वे एक जासूस हैं जिसके लिए उन्हे 14 बरस कि (sentence) सज़ा हुई। फूंच्स कि गुप्तचरी की कला से सोवियत संघ और अमेरिका दोनों ने ही फायदा उठाया तभी तो वे रोसेन्बेर्ग्स की (expose) पोल खोलने मे कामयाब हुए।1959 मे फूंच्स को वापिस पूर्वी जर्मनी भेज दिया गया जहाँ 1988 मे उनकी मौत हो गई ।



 
                               ओडेट्टे हल्लोवेस
     सातवें स्थान पर हैं ओडेट्टे हल्लोवेस। उन्होने युद्ध मे अपनी सेवाये देने हेतु एक पोस्टकार्ड लिखा किन्तु वे उसे गलत सरकार को अपनी सेवाये देने हेतु लिख बैठी। वैसे वो वास्तव मे एक एसओई एजेंट थीं। उन्हे तुरंत ही स्पेशल फोर्स की प्रथम AID नर्सिंग येओमनरी (FANY)के लिए बुलावा भेजा गया और उन्हे एक SOS एजेंट की तरह ट्रेंड किया गया। उन्हे नाजी द्वारा कब्जा किए गये फ़्रांस मे काम करने के लिए भेजा गया उनके साथ एक सूपर्वाइज़र पीटर चर्चिल साथ थे। वो दोने ही अपने कार्य मे निपुणता से लगे हुए थे और सभी जरूरी जानकारियां भेज रहे थे तभी उन दोनों को जरमनों द्वारा पकड़ लिया गया। उनकी कैद मे होने के बाद हल्लोवेस को लगा कि अगर वे जरमन्स को ये बताए कि पीटर चर्चिल ब्रिटिश प्रधानमंत्री Vincent Churchill का भतीजा है और वो पीटर चर्चिल कि पत्नी है तो बच सकते हैं। वे अंत तक अपने इसी बयान पर कायम रहे कि वे ब्रिटिश प्रधानमंत्री Vincent Churchill के रिश्तेदार हैं। इसका परिणाम ये हुआ कि Odette Hallowes कि चतुराई से उनकी अपने और सूपर्वाइज़र पीटर कि जान बच गई बाद मे 82 वर्ष कि उम्र मे 1995 मे उनकी मृत्यु हो गई और वे एक मात्र ऐसे महिला बनी जिनहे जीते जी जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया गया।
 .

Richard Sorge            रिचर्ड सोर्गे
आठवें स्थान पर रिचर्ड सोरगे जो एक सोवियत जासूस थे। उनका जन्म जर्मनी मे हुआ था उन्हे आज तक का महान जासूस माना जाता है।दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लगी चोट से उबरने के दौरान वे एक जुनूनी साम्यवादी विचारधारा से ओतप्रोत थे। 1920 मे वे सोवियत संघ गये और वहाँ गुप्तचर अधिकारी बन गये।दितीय विश्व युद्ध से पूर्व और पश्चात और उस दौरान उन्होने जापान मे काम किया और सोवियत संघ को जापान और नाज़ियों कि फितरत के विषय मे जानकारी मुहैया कराई । सोर्गे के मुताबिक सोवियत्स ने समझा कि जापान रशिया पर आक्रमण नहीं करेगा किन्तु ये भी समझा कि हिटलर भी इस बात को समझता है। सोर्गे ने निश्चित तिथि तक बताई कि जर्मन कब आक्रमण करेगा।1941 मे उसे जापानियों ने expose कर दिया और उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया। उसे जेल हुई और वो तीन साल के बाद रिहा कर दिया गया।1964 मे मरणोपरांत सोर्गे को हीरो ऑफ दी सोवियत यूनियन के पुरुसकर से नवाजा गया।


Virginia Hall
                            वर्जीनिया हॉल
नोवेन स्थान पर हैं वर्जीनिया हॉल जो कि अमेरिकन गुप्तचर थीं जो कि कथित रूप से मित्र राष्ट्रों मे सबसे खतरनाक जासूस थीं दितिय विश्व युद्ध प्रादुर्भाव के पश्चात उन्होने अपने आप को पेरिस मे स्थापित कर लिया। फ़्रांस के आत्मसमर्पण के बाद वे ब्रिटेन भाग गई और वहाँ पर OSE एजेंट बन गई। तत्पश्चात उन्होने वापिस फ़्रांस आकार गुरिल्ला समूहो को एकत्र किया और उनकी मदद करने लगीं किन्तु 1942 मे उन्हे स्पेन भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। लगभग 2 वर्षो के पश्चात उन्होने US Office ऑफ Strategic Services(OSS) जॉइन की और फिर से फ़्रांस आ गई और मित्रा राष्ट्रों के फ्रेंच गोरिल्ला समूहो को पैरश्यूट लैंडिंग का प्रशिषण देने लगी।(Allied Parachute Landings and train French resistance fighters)  दितिय युद्ध के पसच्चत हॉल ने अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए जॉइन कर ली और मरते दम तक उससे जुड़ी रहीं उनका देहांत 76 वर्ष के उम्र मे 1982 मे हुआ।

 

                    अल्डरिच अमेस ,सोवियत जासूस
   Famous Spies: Aldrich Ames, Soviet Union Spy
10वें और अंतिम स्थान पर हैं अल्डरिच अमेस जो सीआईए का एजेंट था किन्तु 1985 अंकारा और तुर्की मे रहने के पश्चात वो सोवियत संघ के लिए जासूसी करने लगा था। वो उन्हे अमेरिका के बदले सोवियत संघ की मिलिटरी और सोवियत संघ की जासूसी संस्था KGB को वास्तविक जानकारी देने लग गया था।यहाँ तक कि उसने सीआईए के लिए कौन कौन जासूसी कर रहा रह है उनकी गुप्त पहचान तक केजीबी को बता दी थी और ये सब उसने पैसे और भावनात्मक विषाद के कारण किया।लगभग 100 सीआईए agents की पहचान उसने केजीबी और सोविएत मिलिटरी को बताई जिसमे से लगभग 10 पकड़े भी गए। अमेस सोवियत यूनियन के लाई जासूसी करने के दौरान दो बार लाई डिटेक्टर से साफ बच कर निकाल गया किन्तु वह सोवियत यूनियन द्वारा दिया गए लगभग हाफ million डॉलर,luxury स्पोर्ट्स कार और हजारो डॉलर के फोन बिल को सीएआई से नहीं छुपा पाया।अंतोगत्वा 1994 मे उसे एफ़बीआई ने गिरफ्तार किया और उम्र भर के लाई जेल मे डाल दिया।

     उपरोक्त से एक बात तो साफ है कि जासूसी कि दुनिया सुनने मे तो  बहुत अच्छी लगती है किन्तु एक जासूस जब जासूसी का कार्य शुरू करता है तब उसे अच्छी तरह पता होता है कि ये दुनिया जितनी रोमांचकारी और साहसिक है इस दुनियाँ के खतरे भी कम नहीं है हो सकता है वह कुछ आराम से बिना किसी संकट के लंबे समय तक जासूसी करने मे कामयाब हो जाए या हो सकता है कि उसे दूसरे ही दिन बड़े संकट का सामना करना पड़े और संकट भी ऐसा कि उसकी जान पर ही न बन आये।

     देश चाहे मित्र या दुश्मन जासूसी करना या करना उनके लिए आवश्यक है। जासूसी सिर्फ युद्ध के लिए नहीं होती अपितु प्रत्येक देश आज अपने संसाधनो को सुरक्षित रखने के लिए भी करते हैं। जासूसी तो वयवसाय मे भी होने लगी है एक कंपनी दूसरी कंपनी कि जासूसी सिलिए करती है ताकि  उसे पता रहे कि उसकी arrival कंपनी क्या क्या नीति बना रही है। कोई दो या ढाई दशक पहले मैंने पढ़ा था कि पेरिस जिसे फ़ैशन कि राजधानी भी कहा जाता है वहाँ भी टेक्सटाइल कंपनी एक दूसरे कि जासूसी करती रही हैं। और भारत मे तो अब माँ बाप अपने बच्चो पर नज़र रखने के लिए प्राइवेट जासूसो कि मदद लेते हैं ताकि वे अपने बच्चो के बारे मे जानकारी रख सके साथ ही शादी विवाह मे भी जासूसो कि मदद ले जाती है और ये मादद सिर्फ लड़की वाला ही नहीं अपितु लड़के वाला भी लेने लगा है।
                                  :::::::प्रदीप भट्ट:::::23.01.2016

Monday, 18 January 2016

“तुर्को पर आखिर पर इतनी दरियादिली क्यों”     पिछले...

"प्रदीप की कलम से ": “तुर्कोपर आखिर पर इतनी दरियादिली क्यों”
     पिछले...
: “तुर्को पर आखिर पर इतनी दरियादिली क्यों”      पिछले कई सालो से सामान्य जन यह देखकर हैरान एवं परेशान है कि देश मे कुछ राज्यो की सरकारें...

तुर्क

“तुर्को पर आखिर पर इतनी दरियादिली क्यों”

     पिछले कई सालो से सामान्य जन यह देखकर हैरान एवं परेशान है कि देश मे कुछ राज्यो की सरकारें चुनाव मे तो बड़े बड़े भाषण देती है कि अगर हम सत्ता मे आ गए तो देश के संविधान के अनुरूप ही शासन करेंगे। किसी भी जाति या धर्म विशेष के  लोगों के प्रति न तो दुराग्रह रखेंगे और न ही उन्हे एक दूसरे से अनुचित लाभ प्रदान करेंगे किन्तु ऐसा होता दिख तो बिलकुल नहीं रहा।

     मै ये स्पष्ट कर देना मुनासिब समझता हूँ की मेरे इस लेख का मकसद किसी भी  जाति या धर्म पर आधारित लोगों या समूह का विरोध करना नहीं है । भारत देश विभिन्न जातियों, धर्मो और भारत की विशाल सांस्कृतिक धरोहर का विश्व पटल पर जीता जागता नमूना है । हाँ जो लोग समाज को बांटने का राजनैतिक षड्यंत्र रचते रहते हैं।गुलामों (गुलाम अली) की महफिल की शोभा बढ़ाना ज्यादा ज़रूरी समझते हैं किन्तु एक युवा सैनिक की मौत पर चार दिनों तक मौन रहते है मै ऐसे असमाजिक लोगों द्वारा फैलाये जा रहे प्रदूषण का घोर विरोधी हूँ, जो हमारी सांस्कृतिक विरासत को डकार जाना चाहते हैं।

     मालदा (पश्चिम बंगाल) मे हुई सांप्रदायिक घटना होती है जिसमे जान  –माल मे साथ एक पुलिस स्टेशन को सम्पूर्ण रूप से जला दिया जाता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस घटना को सांप्रदायिक मानने से ही इंकार कर देती हैं। आखिर ऐसा क्यो? भारत सरकार का एक प्रतिनिधि मण्डल श्री विजय वरगिस जो की पश्चिम बंगाल के प्रभारी हैं के नेत्रतत्व मे एक प्रतिनिधि मण्डल मालदा जाना चाहता है तो उन्हे जबरन रोक दिया जाता है वहीं मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन इदारा-ए-शरिया के लगभग दो लाख लोगो को प्रदर्शन की इजाजत दे दी जाती है आखिर क्यों ?

     चूंकि मालदा बांग्लादेश सीमा के निकट है और वहाँ से बहुत सारे उल्टे सीधे काम होते रहते है जिनमे बंगाल के राजनैतिक दलों के कई नेता शामिल हो सकते  है और जिनके खिलाफ काफी सबूत मालदा के उस पुलिस स्टेशन के रेकॉर्ड रूम मे मौजूद थे। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि देश कि राष्ट्रीय जांच संस्था (एनआईए) इस बात कि पिछले कुछ माह से जांच मे लगी हुई है । अतएव इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि “मालदा कांड “ के पीछे निश्चित रूप से उन सफेदपोश लोगो का हाथ हो सकता है अन्यथा क्या कारण है कि पुलिस स्टेशन को आग लगाई गई और उसमे भी वहाँ मौजूद रेकॉर्ड रूम का पूरा जलकर स्वाहा जो जाना इस बात को इंगित करता है कि दाल मे ज़रूर कुछ काला है ।

     मालदा मे सांप्रदायिक हिंसा बड़े पैमाने पर होती है और भीड़ द्वारा पुलिस स्टेशन को जला दिया जाता है। जब ममता बनर्जी को ये खबर लगती है कि मालदा घटना की जांच NIA करने वाली है तब उस पुलिस स्टेशन को दिन-रात एक करके रंग-रोगन लगाकर चमका दिया जाता है आखिर ऐसा क्यों ? आखिर बीजेपी मजबूर होकर महामहिम राष्ट्रपति से गुहार लगाती है और जापन मे जड़ यू संसद गुलाम रसूल ,अदरिश अली और इमरान अहमद जो कि तृणमूल काँग्रेस से ताल्लुक रखते है पर संदेह जताया जाता है।

     अब बात करते हैं भारतीय वायु सेना के एक 23 वर्षीय ऑफिसर कोरपोरल अभिमन्यू गौड़ की जिनकी कोलकतता के रेड रोड एरिया मे अंबिया और संबिया सोहराब जो कि  तृणमूल काँग्रेस के नेता मोहम्मद सोहराब के पुत्र है ने शराब के नशे मे बुधवार प्रातः तब अपनी ऑडी कर से कुचलकर हत्या कर दी जब वे 26 जनवरी के परेड की  रिहरर्सल कर रहे थे। यहाँ यह उल्लेखनीय है की जब –जब इस प्रकार की परेड की रिहरर्सल आयोजित की जाती है तब तब नियमानुसार स्थानीय पुलिस पर सुरक्षा का भार होता है इसी के साथ साथ वायु सेना अन्य जवान भी सुरक्षा प्रदान करते हैं । अब प्रश्न यह है इतनी सुरक्षा के बावजूद वो दोनों नशेडियो को उस ज़ोन मे आने की इजात कैसे मिली और पुलिस द्वारा लगाई गई 3-4 बेरिकेडो को तोड़कर कैसे वे परेड स्थल तक पहुँचने मे कामयाब रहे । तत्पश्चात ऑडी कार को छोडकर वो कैसे भागने मे कामयाब हो गए ?

      प्रदीप भट्ट
K-2/31,ग्रामोदया, गुलमोहर क्रॉस रोड नंबर- 06,
जुहू विले पार्ले स्कीम, जुहू, मुंबई -400 056
Mobile : 9867678909,
Mail: pradeepbhattkvic@gmail.com


                                           दिनांक :18.01.2016

तुर्को पे मेहरबानी का आलम तो देखिये,
मरता रहा जवान और सरकार मौन है ।

क़ातिल को बड़े ठाठ से बैठा लिया घर मे,
और हमसे पुछते  बता  मकतूल कौन है।

जाने भी दो एक मौत पे रोने से फायदा,
क़ातिल है मेहरबान बता परिवार कौन है।

तुम बेवजह ही दीप यूँ बदनाम न करो,
तुम जानते नहीं हो क्या सरकार डॉन है।

                                      ::::प्रदीप भट्ट :::::


     उपरोक्त घटना के पश्चात चार दिनो तक कोई भी कारवाई न होना क्या दर्शाता है कि पश्चिम बंगाल कि पुलिस और सरकार क़ातिलो से मिली हुई है या उन्हे बचाने का प्रयास कर रही है जिसकी तसदीक पश्चिम बंगाल से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र भी कर रहे हैं। इससे भी ज्यादा शोचनीय पहलू यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस दुखद घटना पर चौतरफा दबाव (बीजेपी और मीडिया ) के पश्चात हरकत मे आती हैं  और अधमने मन से घोषणा करती हैं कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा । ये सब क्या साबित करता है कि सरकार चाहे उत्तर प्रदेश की हो या पश्चिम बंगाल की सबको छद्म अल्पसंख्यकों (मुस्लिम भारत मे दूसरी सबसे बड़ी आबादी है ) की पड़ी है। हिन्दुओ को मार दो काट दो कोई खबर नहीं वहीं अगर किसी मुस्लिम पर कुछ हो जाए तो देश मे आशिष्णुता बढ्ने की भ्रामक खबर फैला दी जाती हैं। आखिर ये तुष्टीकरण की युक्ति कब तक और क्यों कर चलने देनी चाहिए ।


                                      ::::प्रदीप भट्ट :::::

                                      18.01.2016

Tuesday, 12 January 2016

पेशावर हमला





“ पिछवाड़े मे साँप पालने वालो सावधान “

      आज पेशावर हमले को पूरे दस दिन हो गए। भारत और पाकिस्तान के मध्य प्रस्तावित 15 जनवरी को होने वाली  सचिव स्तर की बातचीत होगी या नहीं अभी इस पर संशय बना हुआ है। पाकिस्तान के सरताज अज़ीज़ तो घोषणा कर चुके हैं की बातचीत तय समय पर होगी किन्तु भारत ने अभी इसकी पुष्टि नहीं की है । आशा है यह बातचीत होगी वैसे भी ये बातचीत होना सिर्फ भारत और पाकिस्तान के लिए ही जरूरु नहीं है वरन पूरे दक्षिण एशिया और पूरे विश्व के लिए भी महत्वपूर्ण बन चुकी है ।

      आज हम जिस आतंकवाद को झेलने के लिए अभिशप्त हैं उससे धीरे धीरे पूरा विश्व ही प्रभावित होता जा रहा है ये विषय अलग है की अमेरिका भारत द्वारा पूर्व मे उठाए गए आतंकवाद के मुद्दे को भारत की आंतरिक लॉं एंड ऑर्डर की समस्या या प्रशासनिक चूक के तौर पर मानता रहा है । किन्तु 9/11 के हमले के बाद उसका भी नज़रिया बदल गया है। उसे ये अच्छी तरह से समझ आ गया है कि जिस आग को लगाकर वह अपनी रोटियाँ सेंकता रहा है अब धीरे धीरे वही आग उसका अपना घर भी जलाने लगी है । आज जो अमेरिका का व्यवहार या आचार विचार भारत के प्रति बदलता हुआ देखा जा रहा है उसकी जड़ मे उसे यह डर सताने लगा है कि अगर उसने आतंकवाव पर अभी अपना रुख स्पष्ट नहीं किया तो उसे अपने व्यापारिक हितों /उद्देश्यों के क्षरण के लिए तैयार रहना होगा । जिसे वह किसी भी कीमत पर नहीं चाहेगा।


      चूंकि आज आतंकवाद का नया चेहरा आईएसआईएस बन गया है जिसकी क्रूरता के आगे सभी आतंकवादी संगठन बोने होते जा रहे है और जिसने पूरे विश्व की मानव जाति को हैरान और परेशान कर दिया है। विश्व के बड़े बड़े देश ये सोच कर पगला रहे हैं कि आखिर आईएसआईएस को और फैलने से कैसे रोका जाए उसी काश –म –कश के बीच रशिया ने अपने वही पुराना सिधान्त ” Attack is the best policy of defiance” अपनाते हुए पूरी आक्रामकता के साथ आईएसआई के ठिकानो पर लेटैस्ट हथियारो से आक्रमण कर दिया है जिसे शुरू मे तो अमेरिका ने ठीक नहीं माना लेकिन आईएसआईएस कि क्रूरता को देखते हुए जल्दी चुप रहना ही बेहतर समझा । आतंकवाद पर आगे बात करने से पहले हम विश्व के पाँच सबसे ज्यादा आतंकवादी हमलो को झेलते रहने को विवश देशो कि जांच पड़ताल से करेंगे । 



अमेरिका

      जहां तक विश्व पटल पर आतंकवाद का प्रश्न है शुरुआत अमेरिका से करना बेहतर होगा । अमेरिका मे यूं तो आतंकवाद की शुरुआत 19 सदी से ही हो गई थी  किन्तु 1900-1959 जिसमे प्रेसिडेंट Willam Mckinley पर गुए हमले से 1959 मे बोमिंग ऑफ थे Benevolent benevolent टैम्पल ऑफ अटलांटा (Georgia) तक। 1960 मे सनडे बोंबर Detonated ऑफ सिरीज़ ऑफ Bums in the न्यू यॉर्क subway से 12 नवम्बर 1969 तक मनहटटन क्रिमिनल कोर्ट मे हुए बम धमाके विशेष हैं।

·         1970-1979 की शुरूआत Jewish Defense League पर 27 हमलो से हुई जो दशक के अंत तक आते आते 21 September 1976 को orland letelier आ फार्मर मेम्बर ऑफ chilean की हत्या से खत्म हुई ।

·         1980 के दशक की शुरूआत Statue of Liberty पर हमले से हुई इस हमले मे कोई हताहत तो नहीं हुआ किन्तु लगभग 1800 Dolor का नुकसान अवशय हुआ ।इस दशक का अंत भी सलमान रुशदी की किताब “The Satanic Verses छापने वाली प्रैस पर हमले से हुई ।
·         1990 के दशक की शुरूआत सईद नासिर जो की इस्लामिक टेरर का एक सदस्य था ने एक राजनीतिज्ञ उमर अब्दुल्लाह – रहमान की हत्या से हुई और अंत Los Angels जेवीश कम्यूनिटी सेंटर पर फ़ाइरिंग से हुआ।

·         2000 की दशक की शुरूआत न्यू यॉर्क पर आतंकवादी हमले से हुई । इस दशक मे 9/11 के हवाई हमलो को अभी तक भी सिहरन के साथ याद किया जाता है जिसे अलकायदा ने अमेरिकी नीतियो के विरोध स्वरूप अंजाम दिया । इस हमले मे कुल 2507 आम नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । इसके अतिरिक्त 72 लॉं ऑफिसर, 343 अग्नि शमक कर्मचारी एवम 55 मिलिटरी personnel मारे गए। इस हमले मे अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध ट्विन टावर ऑफ थे वर्ल्ड न्यू यॉर्क सिटि ,Pentagon (Washington)   साथ ही 110 मंज़िला  Sky Scrapers in New York city पूरी तरह तबाह हुई ।


      वैसे तो अमेरिका 1972 से ही इस्लामिक आतंकवाद  से त्रस्त रहा है। जहां 1972 से 9/11 के हमले तक मात्र 184 लोग हिंसा का शिकार हुए और 53 लोग जख्मी हुए वही 9/11 के पश्चात अमेरिका मे इस्लामिक आतंकवास से अब तक 104 लोग मारे जा चुके हैं और 367 जख्मी हुए हैं।यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अमेरिका कि आबादी 1 जनवरी 2015 के हिसाब से 320.09 मिलियन  है। 



इस्राइल

      अब बात करते हैं इस्राइल। 1949 मे स्वतंत्रा के पश्चात जब युद्धविराम कि घोषणा हुई तो इस्राइल का लगभग 50 प्रतिशत इलाके पर उसका कब्जा हुआ। यासर अराफात द्वारा 1959 मे फतह की स्थापना की  तत्पश्चात 1964 मे फिलिस्तीनी मुक्ति संघथन अस्तित्व मे आया। किन्तु इस्राइल ने 1967 मे 6 दिन तक चले कड़े संघर्ष मे अपने सभी पड़ोसियो को न केवल  परास्त किया बलिक एक बड़े भू-भाग पर अपना आधिपतत्य भी स्थापित किया । इस्राइल जो एक यहूदी देश है वहाँ पर भी आतंकवाद ने अपने पाँव 1972 मे ही जमा लिए थे याद किजिए म्यूनिख ओलंपिक जिसमे इस्राइल के 11 खिलाड़ियो का ब्लैक सेप्टेम्बर नाम के  फ़लस्तीनी आतंकी गुट  न केवल अपहरण किया बल्कि उनको बड़ी निर्दयता के साथ मार भी दिया गया था । अभी इस्राइल इस हमले से उबर भी नहीं पाया था कि 1974 मे डेमोक्रेटिक फ्रंट फॉर लिबरैशन ऑफ फलिस्तीनी ने लेबनान के रास्ते आकार मालोट मे 115 इस्राइलियो जिनमे 105 तो इस्राईली बच्चे थे को बंदी बना लिया गया किन्तु इस्राइल ने झुकने से इंकार कर दिया और उन पर हमला कर दिया और परिणाम स्वरूप कुल 25 लोग जिनमे 22 बच्चे थे मारे गए और 70 के लगभग ज़ख़मी हुए। 1976 मे इस्राइल के हवाई जहाज को यूगांडा मे Highjack कर लिया था । इस्राइल के 100 कमांडो 4000 किलोमीटर की यात्रा कर यूगांडा पहुंचे और मात्र 90 मिनट की कार्यवाही मे 256 यात्रियों को छुडवा लिया । अच्छी बात ये रही की जहां यूगांडा के 48 सैनिक मारे गए वही इस्राइल का सिर्फ एक कमांडो इस कार्यवाही मे मारा गया ।

      उपरोक्त से एक बात स्पष्ट है कि इस्राइल किसी भी सूरत मे आतंकवादियों से न तो डरता है और न ही उनकी उसने आज तक कोई भी अनुचित मांग मनी है इसके बरक्स वो तो उल्टा उन पर पूरे ज़ोर से प्रहार करने मे यकीन करता है। यहाँ मै इस्राइल कि आजादी से सन 2000 तक और 2000 से 2015 तक के आंकड़े दे रहा हूँ जिससे आपको इस्राइल कि सोच का पता चलेगा :-

Period
कुल आतंकवादी हमले
हमले मे मारे गए लोग
हमले मे घायल  गए लोग    
जनसंख्या                     
1948 -1999
456
1770
4680
8.059 Million
(2013)
2000-2015
687
1301
8800
      

रशिया
      अब बात करते हैं रशिया कि जो पूर्व मे सोवियत संघ था वहाँ भी आतंकवादियों के साथ कोई बातचीत नहीं कि जाती उनकी सिर्फ एक ही पॉलिसी है घेरो और मार दो भले ही कुछ रशियन लोगो की बली ही क्यो न  देनी पड़े ।
      जहां तक रशिया पूर्व का सोवियत संघ मे आतंकवाद का प्रश्न यूं तो इसकी शुरुआत 19वीं सदी से मानी जाती है जब नरोदनया वोल्या के नेत्रतव मे निहिलिस्ट मूवमेंट मे हजारों की संख्या मे लोगो ने एक राजनैतिक मार्च मार्च 1881मे किया॥ सामान्यत: सोवियत संघ मे RED Terror एक लंबे समय तक छाया रहा तत्पश्चात वहाँ Hostage-taking के रूप मे एक नये आतंकवादी

प्रारूप ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी । किन्तु रशिया को इस्लामिक आतंकवाद की आहट का आभास पहली बार 1999 मे हुआ जब बाकायदा रशियन अपार्टमेंट बोम्बिंग की श्रंखला हुई और उसमे 300 लोग मारे गए जिसे दागेस्तान वार या दूसरी चेचण्या वार के रूप मे लिया गया। यहाँ 2002 का मॉस्को theaters hostage crisis, अस्तरखान मे 2001 मे हुई बोम्बिंग,Voronezh शहर के बस स्टॉप पर बोम्बिंग, 2004 मे मॉस्को मेट्रो मे बोम्बिंग शामिल है ।

Period
कुल आतंकवादी हमले
हमले मे मारे गए लोग
हमले मे घायल  गए लोग    
जनसंख्या                     
1994 -1999
29
697
1826
142,098.141
2000-2015
142
2241
5812


पाकिस्तान
 चलिये अब इस लेख के चौथे  चरण मे चलते हैं यहाँ मै भारतवर्ष का जिक्र करने से पूर्व पाकिस्तान के विषय मे लिखना चाहूँगा । चूंकि पाकिस्तान भी भारत के साथ ही 1947 मे British गुलामी से मुक्त हुआ। जिस आतंकवाद से भारत एक लंबे समय से त्रस्त है। आज की तारीख मे पाकिस्तान भी कमोबेश उसी आतंकवाद से त्रस्त नज़र आता है जिसके बीज उसने भारत मे दहशगर्दी फैलाने के 1947 से ही शुरू किए थे। पाकिस्तान ने अपनी पैदाइश से ही भारत से बैर बांधा हुआ है ऐसा इसलिए भी की पाकिस्तान की फितरत ही ऐसी ही है न तो खुद सुख से रहो न अपने पड़ोसियो को रहने दो। जितनी ऊर्जा का इस्तेमाल वो भारत विरोधी गतिविधियो मे लगाता है अगर उतनी ही ऊर्जा वो पाकिस्तान के  उत्थान मे लगाए तो पाकिस्तानी जनता का ज्यादा भला होगा लेकिन ये सर्वविदित है कि वो ऐसा शायद ही कभी करे।

      पाकिस्तान मे अभी तक जो आतंकवादी हमले हुए हैं उनमे 16 अक्तूबर 1951  को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत कि हत्या कर दी गई । 17 अगस्त 1988 को पाकिस्तान के  बहलावलपुर मे राष्ट्रपति जनरल मुहम्मद ज़िया उल हक़ की एक प्लेन हादसे मे मौत हो गई । 27 दिसम्बर 2007 को रावलपिंडी मे पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो जिनहे आतंकवादियो ने सारे आम बम/गोलियों से उड़ा दिया जब वे एक चुनावी सभा को समोबोधित करने जा रही थीं। अमेरिका पर 9/11/2001 मे हुए आतंकवादी हमले के पश्चात पाकिस्तान ने  US led global war on terror provided it with an opportunity and chance to address militancy and religious extremism is the country Terrorism as it has been defined since 9/11 has so far taken a death toll of thousands of people, mostly in Iraq followed by Afghanistan and Pakistan. This version of war against terrorism has increased not only terrorists but is has punished almost innocent people in Pakistan only.
      अब ज़रा पाकिस्तान की स्थिति पर भी नज़र डाली जाए कि सन 2000 से 2015 तक आतंकवादियो द्वारा कुल कितने लोगो कि हत्या कि गई और कुल कितने ज़ख्मी हुए :-

पीरियड     
मारे गए लोग
जख्मियों कि तादाद
जनसंख्या   
2000       
12
12
188,144,04
2015 के अनुसार
2001
27
10
2002
56
104
2003
67
159
2004
126        
164
2005
139
167
2006
190
364
2007
944
1559
2008
1467
2616
2009
1665
2706
2010
1695
4418
2011 
519
545
2012
682
1079
2013
950
1311
2014
270
309
2015
226
165

भारत


भारत मे आतंकवादी हमलो के शुरुआत 2 अगस्त 1984 मीनमबक्कम बॉम्ब ब्लास्ट (तमिलनाडू) से मानी जा सकती है जिसमे कुल 30 लोग मारे गए और 25 लोग घायल हुए । उसके बाद जुलाई 1987 से पंजाब मे उग्रवादी संगठनो का ज़ोर चलता रहा जो कि 7 जुलाई 1987  को पंजाब उग्रवादियो द्वारा 36 लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया और 60 लोग गंभीर रूप से ज़ख्मी हुए । उसके बाद चार साल कि खामोशी छाई रहने के बाद 15 जून 1991 को पंजाब मे फिर कहर बरपा और 90 लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया और 200 लोग ज़ख्मी हो गए । 12 मार्च 1993 259 लोग दंगे मे मर दिये गए 713 गंभीर रूप से घायल हुए । फिर इस आतंक की एक लंबी श्रंखला पूरे भारत मे चलती रही कभी एक शहर मे तो कभी उस शहर मे और सभी घटनाओ मे पाकिस्तान का निश्चित हाथ पाया जाता रहा ।इसमे प्रमुख 1 अक्तूबर 2001 को जम्मू कश्मीर की विधानसभा पर आतंकवादियो का हमला जिसमे 38 लोग मारे गए। 13 दिसम्बर 2001 को आतंकवादियो का भारत के लोकतन्त्र के मंदिर “संसद भवन” पर हमला हुआ जिसमे कुल 7 सुरक्षाकर्मी मारे गये ।24 सितम्बर 2002 को अक्षरधाम मंदिर गांधी नगर ,अहमदाबाद (गुजरात ) पर फिर आतंकवादियो ने हमला किया जिसमे कुल 31 लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । 13 मार्च 2003 मुंबई ट्रेन मे धमको को आतंकवादियो ने अंजाम दिया । 25 अगस्त 2003 को मुंबई मे हुए बम धमाको मे कुल 52 लोग मारे गये। मुंबई मे अभी तक जो ट्रेनो मे जो बम धमाके हुए थे उनमे सबसे बड़ा हादसा 11 जुलाई 2006 को हुआ जिसमे 209 लोग मारे गये और 500 से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए ।
        जिस प्रकार अमेरिका मे 9/11 का के हमले की याद अभी तक सभी को सालती है उसी प्रकार भारत मे 26/11/2008 को 10 पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियो ने मुंबई के विभिन्न जगहो पर हमला किया जिसमे कुल  171 लोग मारे गये और 239 लोग गंभीर रूप से घायल हुए ।2015 मे गुरुदास अटैक हुआ जिसमे कुल 10 लोग मारे गये और 15 लोग घायल हुए ।और अभी 2 जनवरी 2016 को पठानकोट एयर बेस आतंकवादी हमला हुआ जिसमे कुल 7 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गये ।


पीरियड     
मारे गए लोग
जख्मियों कि तादाद
जनसंख्या   
2000 
3
14
1 अरब 25 करोड़ के करीब
2001
38
-
2002
45
-
2003
195
474
2004
68
72
2005
13
50
2006
267
625
2007
148
70
2008
417
1055
2009
13
129
2010
18
80
2011
45
206
2012
-
5
2013
69
266
2014
17
80
2015
16
25
2016 
07
-
                                (उपरोक्त सभी आकडे इंटरनेट पर उपलब्धता के आधार पर )

भारत मे आज तक जितने भी आतंकवादी हमले हुए है उनमे पाकिस्तान परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सदेव शामिल रहा है । 2 जनवरी 2016 को पठानकोट एयर बेस पर हुए ताजातरीन हमेले के सारे के सारे तार पाकिस्तान से जुड़े है जिन पर भारत सरकार ने तुरंत एक्शन लिया और पाकिस्तान को सभी सबूत मुहैयाया करा दिये गए हैं । पाकिस्तान ने भारत सरकार द्वारा दी गई 72 घंटे कि समय सीमा मे एक्शन भी किया है और एक रिपोर्ट भारत सरकार को सौपी भी है एवं एक जाइंट जांच समिति बनाने का ऐलान भी किया है जिसका भारत सरकार ने स्वागत किया है। अब देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है।

                                                        :::: प्रदीप भट्ट :::::12.01.2016