Tuesday, 25 October 2022

दो खूबसूरत शामें The Feet On Earth Festival के नाम

रिपोतार्ज 
दो खूबसूरत शामें “THE FEET ON EARTH FESTIVAL”के नाम

आजकल उत्सवों क़े दिन चल रहे हैं। सभी मस्ती क़े मूड में हैं। ये विषय अलग है कि कुछ क़े भाग्य में ये सुख भी नहीं है। किंतु यही तो जीवन क़ी सुंदरता है, कवि प्रदीप क़ी पंक्तियाँ है न। 
“सुख दुःख जिसमें संग संग रहते, जीवन है वो नाव,
कभी धूप तो कहीं छाँव, कभी धूप तो कहीं छाँव”। 
                                      (रामचंद्र नारायण चंद्र द्विवेदी यानि कवि ‘प्रदीप’, 6 फरवरी-1915)

मेरा मानना है कि ऐसी स्थिति में कभी कभी  यूँ ही बिना कुछ सोचे बिचारे कुछ भी कर लेना चाहिए वो भी जब,जब कि आप ज़िंदगी क़ी उलझनों से दो चार हो रहे हों। ऐसा सभी क़े जीवन में होता है कुछ क़े जीवन में कुछ कम और कुछ क़े जीवन में कुछ ज़ियादा! तो भैय्या हम तो ठहरे भगवान जी क़े अच्छे वाले प्रिय से सच्चे से बच्चे सो उन्होंने हमें दूसरे नंबर पर ही  रख़ना उचित समझा और लीजीए हुज़ूर हम पक्के तौर पर दो नम्बरी हो गये। सो दो एक साल पहले हमने भी कुछ लिखने का प्रयास किया।
"दहर क़ी उलझनों से बातें, बस दो चार करनी हैं
नहीं पतवार हाथों में, नदी पर पार करनी है"
                                                       (प्रदीप देवीशरण भट्ट यानि कवि ‘प्रदीप’,27फरवरी-1963)
         अब लगातार तीन दिन क़ी छुट्टी अपने लिए तो ये पनिशमेंट ही समझो भैय्या। घऱ में टी वी और बीवी को एक साथ झेलना बड़ा मुश्किल है। इसी उधेड़बुन में थे कि "The Feet on Earth Festival" का निमंत्रण मिला। घऱ से यही कोई 3-4 KM दूर सालारजंग म्यूज़ियम क़े ऑडिटोरियम में। प्रोग्राम डाँस बेस्ड था और हमारा डाँस से दूर दूर तक भी कोई रिश्ता नहीं लेकिन डाँस देखना और वो भी भारतीय सांस्कृति को दर्शाने वाला, फिर तो मैं देखने अवश्य जाता हूँ।किसी भी प्रकार क़े डाँस का तकनीकी ज्ञान बिलकुल भी नहीं है लेकिन देखकर आत्मा अवश्य प्रसन्न होती है। एक कवि और लेखक क़े तौर पर हम सभी एक ही बिरादरी क़े हैं। मेरा मानना है कि कलाकारों और साधु संतों क़ी कोई जाति नहीं होती। तो भैय्या तुरंत सुहास भटनागर जी को फुनवा मिला दिया। राम राम क़े बाद पूछ लिया प्रोग्राम में चलेंगे। उन्होंने तुरंत कहा अवश्य लेकिन पहले 5 बजे एक मीटिंग बंजारा हिल्स पर अटेंड करेंगे फ़िर सालारजंग का प्रोग्राम अटेंड करेंगे साथ ही ये बताना नहीं भूले कि उन्होंने मुझे कल ही  व्हाट्सएप पर इस प्रोग्राम क़ी सूचना भेजी थी जिसे मैंने अभी तक नहीं देखा था। दिमाग वैसे तो हैय्ये न लेकिन जितना भी बचा खुचा था भगवान जी ने हमें पकडा दिया तो उसी में एक ख्याल आया कम से कम दो शामें अपनी खूबसूरत हो सकती हैं बशर्ते कोई .............।  दीपावली का समय चल रहा है सो ख्याल ये भी आया कि मेट्रो में तो गज़ब की भीड होगी सो साहब अपनी मैस्ट्रो स्कूटी को याद किया जो कई महीनों से नाराज़ चल रही थी कि मुझे कहीं घुमाने क्यूँ नहीं ले जाते फोकट में पेट्रोल भरवाकर छोड देते हो चलाते हो नहीं। सो पहले तो स्कूटी को धोया फिर प्यार से पुचकार कर स्टार्ट किया तो थोडी सी ना नुकुर के बाद वो भी स्टार्ट हो गई। सुहास जी को पीछे बिठाया और ट्रैफिक से जूझते हुए जा पहुँचे बंजारा हिल्स, लगभग एक घंटे बाद फिर वहाँ से अपने घर के आगे से गुजरते हुए 19:15 पर जा पहुँचे सालारजंग म्युज़ियम। कार्यक्रम से लगभग आधा घंटा लेट (जो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं) 
अन्दर हॉल में पहुँचे तो कार्यक्रम शुरु हो चुका था और पुजीता कृष्णा का कुचीपुडी नृत्य अपने पूरे जोर पर था।हॉल में पिन ड्राप साइलेंस था। हमने अपनी जगह पकडी और तल्लीनता से डांस देखने लगे। कुछ भी तकनीकि ज्ञान न होने के बावज़ूद मैं डांस को आत्मसात करने का प्रयत्न कर रहा था। पूजिता ने अद्भुत नृत्य प्रस्तुत किया। अब बारी थी शर्मिला बिस्वास जी कि उन्होंने भी अदभुत ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया । उम्र का तकाज़ा कहें या कुछ और उन्होंने ये नृत्य दो भागों में प्रस्तुत किया जिसे उन्होंने बाद में बताया भी कि उम्र बढने के कारण वे अब एक स्टांस में इसे प्रस्तुत नहीं पर पाईं । खूबसुरत प्रस्तुति।   अब बारी थी पल्लवी वर्मा मिन्नागंति एवम नेनिता प्रवीण (फिजिकल थियेटर) की जिन्होंने  एक नृत्य के माध्यम से एक खूबसूरत नाटकी प्रस्तुत की। सच कहूँ तो दोनों ने मन मोह लिया। दोनों की प्रस्तुति देखकर ऐसा लगता था कि जैसे जलधि की तरंगे एक दूसरे के साथ किलोल कर रही हैं। बस आज की प्रस्तुतियां समपन्न हो चुकी थी। एक बेहतरीन शाम अपने उतार पर थी। कार्यक्रम के बाद पल्ल्वी व नेनिता से मिलना सोने पे सुहागा जैसा था। पल्ल्वली और नेनिता की उम्र में काफी अंतर है किंतु मंच पर दोनों की प्रस्तुति देखकर नहीं लगा कि ऐसा कुछ है। 

अगले दिन सुबह एक और निमंत्रण आ पहुँचा। शाम को 7-11 बजे तक ‘दीपावली मिलन समारोह’। अब थोडा कंफ्यूजन था कि दोनों कार्यक्रम कैसे अटेंड करेंगे। खैर मैं निश्चित था कि मुझे तो डांस का प्रोग्राम ही अटेंड करना है। फिर भी सुहास जी से पूछा तो उन्होंने भी यही कहा डांस प्रोग्राम फाईनल सो साहब रविवार को हम 18:30 पर ही सालारजंग म्युज़िय जा पहुँचे। कार्यक्रम की शुरुआत श्रीविद्या अंगारा सिन्हा के कुचीपुडी नृत्य से हुई लगभग 30-35 मिनिट्स तक सिर्फ एक शब्द आनंदम आनंदम आनंदम्। भारतीय नृत्य प्रस्तुति में कितना स्टेमिना लगता है मैं सोचकर ही रोमांचित हो रहा था। मैं व्यक्तिगत रुप से कहूँ तो इतना आनंद आया कि अगर ये नृत्य दो घंटे भी चलता मैं इसे अपलक देखता रह सकता था। उत्तमता के उच्च मानदंड स्थापित करते कलाकार्।  इसके बाद Maaraa (Manmatha or Kamadeva-Cupid) की बेहतरीन प्रस्तुति। बेहतरीन गायक प्रस्तुति के साथ साथ नृत्य प्रस्तुति। अद्भुत अद्भुत अद्भुत्।  अंतिम प्रस्तुति के तौर पर सन्निधा राजा सागि द्वारा कुचीपुडी नृत्य की बेहद उम्दा प्रस्तुति। मैं सदैव तुलनातक अध्य्यन से बचता हूँ। और यहाँ तो तुलना करने का प्रश्न ही नहीं उठता। खूबसूरती के साथ साथ कुचीपुडी की नृत्य मुद्राओं के प्रदर्शन में न पूजिता कम लगी न श्रीविद्या अंगारा सिन्हा और न सन्निधा राजा सागि। जहाँ तक शर्मिला विस्वास जी की बात है वे जिस मुकाम पर हैं वो ये दर्शाती है कि उन्होंने ओडिसी नृत्य को अपना सब कुछ अर्पण कर दिया है। स्त्री सुंदर हो तो अच्छा किंतु यह भी सत्य है कि सुंदरता ज़ियादा दिनों तक साथ नहीं देती। साथ देती है आपके द्वारा अर्जित विद्या। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि ये छहों स्त्री इस पैमाने पर खरी उतरती हैं और यक्षगाना में मैं किरिमाने श्रीधारा हेगडे (पुरुष) ने ये कहीं भी अहसास नहीं होने दिया कि वो किसी से कम हैं।
अंत में दो खूबसूरत शामें प्रदान करने के लिए “ THE FEET ON EARTH FESTIVAL” की पूरी टीम को प्रणाम। पूजिता कृष्णा को विशेष्।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-25:10:2022

Monday, 17 October 2022

“गुड बॉय”



 रिपोतार्ज़

                                                                “गुड बॉय”

पिछले कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि मानसून विदाई ले रहा है किंतु तभी मौसम विभाग भविष्य्वाणी कर देता है “ बंगाल की खाडी में उठे चक्रवात के कारण फलां फलां प्रदेशों में बदरा जम के बरसेंगे”।अरे भैय्या पूरे नोर्थ में जब लोग भीषण गर्मी से त्राही माम त्राही माम कर रहे थे तब तो तुम न बरसे और न ई सुसरा चक्रवात ही कहीं उठा। लगभग पूरे नोर्थ की धरती मैय्या पर बसे लोगां भगवान इंद्र को अगले इलेक्शन में वोट न देने का फैसला कर चुके थे । शायद किसी ने उनसे चुगली कर दी सो भगवान इंद्र को भी जल्दी समझ में आ गया कि भारत में लोक तंत्र है और आजकल लोग कुछ ज्यादा ही जागरूक हो गये हैं सो रिसर्व वाटर का ढक्कन खोल दिया और बदरा जम कर बरसने लगे। सच्ची बताउँ कई रिश्तेदारों से बात चीत हुई तो बताया भैय्या कई दिनों से एक ही कच्छे में विचरण कर रहे हैं, सुसरा सूखता ही नहीं है। सूरज निकलता नहीं और बारिश रुकती नहीं और दामिनी की अपनी इच्छा आए तो दस घंटे और न आए तो घंटा घंटा।


यहाँ हैदराबाद में तो पिछले तीन बरस से बादल कुछ ज्यादा ही बरस रहे हैं, ऑफिस के लोगां और कुछ अच्छे दोस्तां ताना मारते हैं कि भैय्या जब से तुम्हारी चरण रज इस हैदराबाद की धरती पे पडी है इंद्र भगवान कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गये हैं। सर्दी भी औसत से ज्यादा ही सता रही है। खैर शुक्रवार को GHMC ने 20 तारीख तक के लिए येलो अलर्ट जारी किया है। येलो मतलब बारिश पडेगी तो पडेगी नहीं पडी तो जय श्रीराम्। तो साह्ब शुक्रवार को दामिनी भी तडक भडक के साथ गरजी (शायद कहीं गिर भी गई हो) और लगभग पूरी रात बदरा जम के बरसे भी। शनिवार सुबह टी0 वी में उसी अंदाज़ में रिपोर्टर चीख चीख के बतलाए जा रहे रहे थे कि शहर के किन किन स्थानों पर जल भराव हुआ है कुछ बेचारे GHMC की कार्य प्रणाली को भी कोस कर अपने प्रदर्शन में सुधार करने की कोशिश कर रहे थे। 


पिछले लगभग दो माह से अपने साथ भी कुछ अजब गजब चल रहा है समझ नहीं आ रहा कुछ लोगों के अच्छे बुरे कर्मो का फैसला भगवान पर छोड दें (जो आज तक करते आए हैं) या फिर कभी लगता है कि शायद भगवान ने कुछ लोगों को सबक सिखाने का माध्यम हमें ही बनाया हो और हम अपनी आदत के अनुसार सब भगवान पर छोड दिये जा रहे हैं। (वो भी किस किस के कर्मो का फैसला करेगा) खैर इसी उधेडबुन में थे कि मोबलिया घनघना उठा। चिरपरिचित आवाज़ सुनी “ गुड बॉय देखने चलेंगें”  हम तो दो महीने से भरे बैठे हैं सो हमने भी आदतन उनको अपने अंदाज़ में जवाब दे दिया” चलेंगे क्या किसी का गुड बॉय कर दें क्या” उधर से हें हें करके हँसने की आवाज़ आई फिर बोले अमिताभ और रश्मिका मंधाना की फिल्म है कल ही रिलीज़ हुई है अभी टीज़र देखा है। जब दिमाग पे तनाव ज्यादा बढता है तो मैं या तो कॉमेडी फिल्म देखता हूँ या 11 नम्बर की बस ( पैदल पैदल) का इस्तेमाल कर कई कई किलोमीटर चलता रहता हूँ जब तक थक न जाउँ। सो ये सोचकर गुड बॉय कॉमेडी फिल्म होगी मैंने हाँ भर दीं। रविंद्र भारती में लीड इंडिया फाऊंडेशन भारत रत्न डॉक्टर अब्दुल कलाम के जन्मदिन पर एक विशेष कार्यक्रम कर रहा था सो पहले उसे अटेंड किया फिर कुछ खाया पिया और 1.30 बजे इर्रम मंज़िल स्थित मॉल में पहुँच गये। 


एक वाहयात गाने के साथ फिल्म की शुरुआत होती है। कुछ ही देर में नीना गुप्ता जो कि अमिताभ बच्चन की पत्नि का किरदार निभा रही हैं की मृत्यु का समाचार अमिताभ रश्मिका मंधाना को देने का प्रयास करते हैं किंतु वो कान फोडू संगीत के साथ वाइन गटकती हुई नज़र आती हैं। अगले दिन अमिताभ के साथ उनका फोन पर वार्तालाप/व्यव्हार (वे ऑफ टॉकिंग)  ये प्रदर्शित करता है कि आजकल के 99 प्रतिशत बच्चों को माँ बाप की कितनी परवाह है। घर में एक मात्र ऐसी लडकी जिसे नीना गुप्ता नोर्थ ईस्ट से लाकर अपने साथ रखती हैं का नीना व अमिताभ के प्रति कितना अधिक अटैचमेंट होता है वो उन पाँच बच्चों में से एक है जो कि अमिताभ और नीना के साथ रहती है। खैर एक लडका जो विदेश में है के लिए कम्पनी का प्रोजेक्ट अहम है वो तय नहीं कर पा रहा कि माँ की मृत्यु ज़रुरी है या कम्पनी का प्रोजेक्ट्। एक लडका जो सरदार है वो भी विदेश में है किंतु जैसे तैसे दुबई के रास्ते आने की कोशिश कर रहा है। एक लडका नकुल जिसका फोन नहीं लग रहा है सो हारकर धर्म बेटी उसको एक मैसेज करके छोड देती है। आशिष विद्यार्थी सिंह साहब की भूमिका में ये बताने की कोशिश करते हैं कि ऐसे समय में क्या करना है और क्या नहीं करना है। नीना गुप्ता की डेड बॉडी घर के बाहर के बरामदे में रखी है। उस बॉडी को पूरब दिशा में रखना है या उत्तर में वहाँ उपस्थित हुज़ूम समझ ही नहीं पा रहा है। मुझे अकस्मात “जाने भी दो यारों” की याद ताज़ा हो आई जिसमें नीना गुप्ता एक अहम किरदार में थीं और सतीश शाह की डेड बॉडी के साथ क्या क्या प्रयोग किये जाते हैं। इसी डेड बॉडी संग एक लम्बे सीन पर पूरी फिल्म का पूरा दारो-म-दार टिका हुआ था। इन सबके बीच रश्मिका मंधाना का हर रीति रिवाज़ में लॉजिक ढूँढना  या ये बताने की कोशिश करना कि नीना गुप्ता मेरी भी माँ थी और वो कैसे मरना चाहती थीं पर अमिताभ संग काफी तीखी बहस होते दिखाया गया है। फिल्म देखते देखते सनातनी लोगों को लगेगा कि इस फिल्म के द्वारा हमारे रीति रिवाज़ों पर कुठाराधात किया गया है किंतु......


फिल्म का टर्निग़ पॉइंट सुनील ग्रोवर की एंट्री से होता है जो एक पढा लिखा और विचार शील, तर्कवान कर्मकाण्डी पंडित की भूमिका में है। हरिद्वार हर की पैडी की घिचपिच का अच्छा चित्रण किया गया है। कर्मकाण्ड के बाद पंडित जी का छोले भटूरे खाने का आग्रह करना और ये बताना कि पेट की क्षुधा शांत होगी तभी सब काम ठीक प्रकार सम्पन्न होंगे। सुनील ग्रोवर किस तरह रश्मिका मंधाना के उल जलूल प्रश्नों के उत्तर बडी तार्किकता के साथ देता रहता है जिससे धीरे धीरे रश्मिका को अपने अधकचरे ज्ञान का अहसास होता है और वह सनातन धर्म संसकृति को धीरे धीरे ही सही समझने लगती है। एक सीन बडा मजेदार है जब हर की पौडी पर सुनीन ग्रोवर कहता है कि बडे लडके को (जिसने क्रिया सम्पन्न की है) को अपने बालों का त्याग करना होगा।बडा लडका जो अभी तक रश्मिका मंधाना ओ रीति रिवाजों क्यूँ ज़रुरी है के लिए ज्ञान बाँट रहा होता है वो बाल न कटवाने के लिए नाना प्रकार के बहाने ढूँढता है क्यों कि उसे लगता है गंजा होने पर वो कम्पनी के प्रजेंटेशन कैसे देगा। बाल कटवाने क्यूँ ज़रुरी है इस बात को काफी अच्छे से समझाया गया है। 


अंत आते आते तीन में से दोनों भाई (सरदार को छोडकर) समझ आने पर अपनी इच्छा से बालों का यानि अहम का त्याग करते दिखाये गये हैं। इस फिल्म का एक छुपा हुआ पहलू यह भी है कि पाँचों बच्चे ( तीन लडके, दो लडकी) अमिताभ और नीना गुप्ता द्वारा अडॉप्ट किये जाते हैं। मुझे लगता है आज के दौर में जब फिल्म निर्माण पूर्णतया एक व्यापर हो गया है। कार्पोरेट घरानों द्वारा सिर्फ पैसा कमाने के उद्देश्य से ही ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के साथ हद से ज्यादा छेड छाड की जा रही है,जिसका जागरुक दर्शक द्वारा ऐसी बेतुकी फिल्मों का बहिष्कार करके ऐसे निर्माताओं को सबक सिखाने का प्र्यास किया जा रहा है। गुड बॉय हिन्दी फिल्मों के निर्माताओं के लिए एक दर्पण साबित होगी।

-प्रदीप देवीशरण भट्ट- 17.10.2022