अपनी बेबाक राय अवश्य रखे किन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी बेबाक राय से व्यक्ति विशेष के सम्मान को ठेस न लगे । हम अपनी स्व्तंत्रता के प्रति सजग रहे किन्तु दूसरों कि स्वतन्त्रता मे बाधक भी न बने ।
Tuesday, 25 October 2022
दो खूबसूरत शामें The Feet On Earth Festival के नाम
Monday, 17 October 2022
“गुड बॉय”
रिपोतार्ज़
“गुड बॉय”
पिछले कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि मानसून विदाई ले रहा है किंतु तभी मौसम विभाग भविष्य्वाणी कर देता है “ बंगाल की खाडी में उठे चक्रवात के कारण फलां फलां प्रदेशों में बदरा जम के बरसेंगे”।अरे भैय्या पूरे नोर्थ में जब लोग भीषण गर्मी से त्राही माम त्राही माम कर रहे थे तब तो तुम न बरसे और न ई सुसरा चक्रवात ही कहीं उठा। लगभग पूरे नोर्थ की धरती मैय्या पर बसे लोगां भगवान इंद्र को अगले इलेक्शन में वोट न देने का फैसला कर चुके थे । शायद किसी ने उनसे चुगली कर दी सो भगवान इंद्र को भी जल्दी समझ में आ गया कि भारत में लोक तंत्र है और आजकल लोग कुछ ज्यादा ही जागरूक हो गये हैं सो रिसर्व वाटर का ढक्कन खोल दिया और बदरा जम कर बरसने लगे। सच्ची बताउँ कई रिश्तेदारों से बात चीत हुई तो बताया भैय्या कई दिनों से एक ही कच्छे में विचरण कर रहे हैं, सुसरा सूखता ही नहीं है। सूरज निकलता नहीं और बारिश रुकती नहीं और दामिनी की अपनी इच्छा आए तो दस घंटे और न आए तो घंटा घंटा।
यहाँ हैदराबाद में तो पिछले तीन बरस से बादल कुछ ज्यादा ही बरस रहे हैं, ऑफिस के लोगां और कुछ अच्छे दोस्तां ताना मारते हैं कि भैय्या जब से तुम्हारी चरण रज इस हैदराबाद की धरती पे पडी है इंद्र भगवान कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गये हैं। सर्दी भी औसत से ज्यादा ही सता रही है। खैर शुक्रवार को GHMC ने 20 तारीख तक के लिए येलो अलर्ट जारी किया है। येलो मतलब बारिश पडेगी तो पडेगी नहीं पडी तो जय श्रीराम्। तो साह्ब शुक्रवार को दामिनी भी तडक भडक के साथ गरजी (शायद कहीं गिर भी गई हो) और लगभग पूरी रात बदरा जम के बरसे भी। शनिवार सुबह टी0 वी में उसी अंदाज़ में रिपोर्टर चीख चीख के बतलाए जा रहे रहे थे कि शहर के किन किन स्थानों पर जल भराव हुआ है कुछ बेचारे GHMC की कार्य प्रणाली को भी कोस कर अपने प्रदर्शन में सुधार करने की कोशिश कर रहे थे।
पिछले लगभग दो माह से अपने साथ भी कुछ अजब गजब चल रहा है समझ नहीं आ रहा कुछ लोगों के अच्छे बुरे कर्मो का फैसला भगवान पर छोड दें (जो आज तक करते आए हैं) या फिर कभी लगता है कि शायद भगवान ने कुछ लोगों को सबक सिखाने का माध्यम हमें ही बनाया हो और हम अपनी आदत के अनुसार सब भगवान पर छोड दिये जा रहे हैं। (वो भी किस किस के कर्मो का फैसला करेगा) खैर इसी उधेडबुन में थे कि मोबलिया घनघना उठा। चिरपरिचित आवाज़ सुनी “ गुड बॉय देखने चलेंगें” हम तो दो महीने से भरे बैठे हैं सो हमने भी आदतन उनको अपने अंदाज़ में जवाब दे दिया” चलेंगे क्या किसी का गुड बॉय कर दें क्या” उधर से हें हें करके हँसने की आवाज़ आई फिर बोले अमिताभ और रश्मिका मंधाना की फिल्म है कल ही रिलीज़ हुई है अभी टीज़र देखा है। जब दिमाग पे तनाव ज्यादा बढता है तो मैं या तो कॉमेडी फिल्म देखता हूँ या 11 नम्बर की बस ( पैदल पैदल) का इस्तेमाल कर कई कई किलोमीटर चलता रहता हूँ जब तक थक न जाउँ। सो ये सोचकर गुड बॉय कॉमेडी फिल्म होगी मैंने हाँ भर दीं। रविंद्र भारती में लीड इंडिया फाऊंडेशन भारत रत्न डॉक्टर अब्दुल कलाम के जन्मदिन पर एक विशेष कार्यक्रम कर रहा था सो पहले उसे अटेंड किया फिर कुछ खाया पिया और 1.30 बजे इर्रम मंज़िल स्थित मॉल में पहुँच गये।
एक वाहयात गाने के साथ फिल्म की शुरुआत होती है। कुछ ही देर में नीना गुप्ता जो कि अमिताभ बच्चन की पत्नि का किरदार निभा रही हैं की मृत्यु का समाचार अमिताभ रश्मिका मंधाना को देने का प्रयास करते हैं किंतु वो कान फोडू संगीत के साथ वाइन गटकती हुई नज़र आती हैं। अगले दिन अमिताभ के साथ उनका फोन पर वार्तालाप/व्यव्हार (वे ऑफ टॉकिंग) ये प्रदर्शित करता है कि आजकल के 99 प्रतिशत बच्चों को माँ बाप की कितनी परवाह है। घर में एक मात्र ऐसी लडकी जिसे नीना गुप्ता नोर्थ ईस्ट से लाकर अपने साथ रखती हैं का नीना व अमिताभ के प्रति कितना अधिक अटैचमेंट होता है वो उन पाँच बच्चों में से एक है जो कि अमिताभ और नीना के साथ रहती है। खैर एक लडका जो विदेश में है के लिए कम्पनी का प्रोजेक्ट अहम है वो तय नहीं कर पा रहा कि माँ की मृत्यु ज़रुरी है या कम्पनी का प्रोजेक्ट्। एक लडका जो सरदार है वो भी विदेश में है किंतु जैसे तैसे दुबई के रास्ते आने की कोशिश कर रहा है। एक लडका नकुल जिसका फोन नहीं लग रहा है सो हारकर धर्म बेटी उसको एक मैसेज करके छोड देती है। आशिष विद्यार्थी सिंह साहब की भूमिका में ये बताने की कोशिश करते हैं कि ऐसे समय में क्या करना है और क्या नहीं करना है। नीना गुप्ता की डेड बॉडी घर के बाहर के बरामदे में रखी है। उस बॉडी को पूरब दिशा में रखना है या उत्तर में वहाँ उपस्थित हुज़ूम समझ ही नहीं पा रहा है। मुझे अकस्मात “जाने भी दो यारों” की याद ताज़ा हो आई जिसमें नीना गुप्ता एक अहम किरदार में थीं और सतीश शाह की डेड बॉडी के साथ क्या क्या प्रयोग किये जाते हैं। इसी डेड बॉडी संग एक लम्बे सीन पर पूरी फिल्म का पूरा दारो-म-दार टिका हुआ था। इन सबके बीच रश्मिका मंधाना का हर रीति रिवाज़ में लॉजिक ढूँढना या ये बताने की कोशिश करना कि नीना गुप्ता मेरी भी माँ थी और वो कैसे मरना चाहती थीं पर अमिताभ संग काफी तीखी बहस होते दिखाया गया है। फिल्म देखते देखते सनातनी लोगों को लगेगा कि इस फिल्म के द्वारा हमारे रीति रिवाज़ों पर कुठाराधात किया गया है किंतु......
फिल्म का टर्निग़ पॉइंट सुनील ग्रोवर की एंट्री से होता है जो एक पढा लिखा और विचार शील, तर्कवान कर्मकाण्डी पंडित की भूमिका में है। हरिद्वार हर की पैडी की घिचपिच का अच्छा चित्रण किया गया है। कर्मकाण्ड के बाद पंडित जी का छोले भटूरे खाने का आग्रह करना और ये बताना कि पेट की क्षुधा शांत होगी तभी सब काम ठीक प्रकार सम्पन्न होंगे। सुनील ग्रोवर किस तरह रश्मिका मंधाना के उल जलूल प्रश्नों के उत्तर बडी तार्किकता के साथ देता रहता है जिससे धीरे धीरे रश्मिका को अपने अधकचरे ज्ञान का अहसास होता है और वह सनातन धर्म संसकृति को धीरे धीरे ही सही समझने लगती है। एक सीन बडा मजेदार है जब हर की पौडी पर सुनीन ग्रोवर कहता है कि बडे लडके को (जिसने क्रिया सम्पन्न की है) को अपने बालों का त्याग करना होगा।बडा लडका जो अभी तक रश्मिका मंधाना ओ रीति रिवाजों क्यूँ ज़रुरी है के लिए ज्ञान बाँट रहा होता है वो बाल न कटवाने के लिए नाना प्रकार के बहाने ढूँढता है क्यों कि उसे लगता है गंजा होने पर वो कम्पनी के प्रजेंटेशन कैसे देगा। बाल कटवाने क्यूँ ज़रुरी है इस बात को काफी अच्छे से समझाया गया है।
अंत आते आते तीन में से दोनों भाई (सरदार को छोडकर) समझ आने पर अपनी इच्छा से बालों का यानि अहम का त्याग करते दिखाये गये हैं। इस फिल्म का एक छुपा हुआ पहलू यह भी है कि पाँचों बच्चे ( तीन लडके, दो लडकी) अमिताभ और नीना गुप्ता द्वारा अडॉप्ट किये जाते हैं। मुझे लगता है आज के दौर में जब फिल्म निर्माण पूर्णतया एक व्यापर हो गया है। कार्पोरेट घरानों द्वारा सिर्फ पैसा कमाने के उद्देश्य से ही ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के साथ हद से ज्यादा छेड छाड की जा रही है,जिसका जागरुक दर्शक द्वारा ऐसी बेतुकी फिल्मों का बहिष्कार करके ऐसे निर्माताओं को सबक सिखाने का प्र्यास किया जा रहा है। गुड बॉय हिन्दी फिल्मों के निर्माताओं के लिए एक दर्पण साबित होगी।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट- 17.10.2022