Saturday, 28 December 2024

खुराफ़ाती चीन

              "खुराफ़ाती चीन"

        चीन की सभ्यता दुनिया की पुरानी सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। इसका इतिहास लगभग तीन हज़ार वर्ष पुराना है। चीन का आधिकारिक नाम झोंग्गुआ जिसका अर्थ मध्य साम्राज्य या केंद्रीय राष्ट्र है किंतु पश्चिमी देशों द्वारा इसे कई नामों से जाना जाता है जिसमें सिनो या सिना सिने कैथे लेकिन इसका प्रचलित नाम चीन ही है। यूं तो चीन कभी किसी देश का गुलाम नहीं रहा किंतु अंग्रेजों ने उसे 1840 में अर्थ उपनिवेश अवश्य बनाया था।1911 में डॉक्टर सतयान सेन के नेतृत्व में अंतिम छींग वंश का तख्ता पलट कर चीन लोक गणराज्य की स्थापना की गई । सत्तारूढ़ कोमिंग तांग के कुशासन का अंत कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा 1949 में किया गया जिससे चीनी जनता को कुछ हद तक राहत मिली किंतु सही अर्थों में चीन को स्वतंत्रता द्वितीय विश्वयुद्ध 1939-45 के बाद ही नसीब हुई। किंतु चीन को पूरी तरह अंग्रेजों से मुक्ति 1 जुलाई 1997 को मिली जब हॉन्गकॉन्ग पूरी तरह चीन के नियंत्रण में आ गया इस तरह 1841 से शुरु हुए ब्रिटिश शासन का अंत अंततः 1997 में हो गया यानि कुल 146 वर्ष की परतंत्रता। उस समय चीन की स्थिति बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं थी। चारों तरफ़ सामान्य से सामान्य चीज़ों का भी अभाव था किंतु विस्तारवाद का कीड़ा तब भी चीन के शासकों में अन्दर तक धंसा हुआ था। इसी का परिणाम था 1962 में भारत पर चीन द्वारा आक्रमण का किया जाना था। तत्कालीन भारत सरकार की गलत और गलत फहमी पूर्ण नीतियों के कारण भारत को पराजय का मुंह देखना पड़ा। ये एक ऐसा झटका था जिससे भारत को उबरने में काफ़ी वक्त लगा। हालांकि भारत द्वारा 1967 में नाथुला की संक्षिप्त लड़ाई में चीन पर बढ़त लेने से भारतीय सेना का मोराल काफ़ी हद तक कवर हुआ किंतु असली मोराल डॉकलाम विवाद पर भारत की प्रतिक्रिया से ज्यादा पैदा हुआ।
        
         1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया दो खेमों में विभक्त हो गई थी, एक खेमा अमेरिका के संग था तो दूसरा सोवियत संघ के साथ यानि कि दुनिया के शेष देश किसी एक महाशक्ति के साथ रहने के लिए अभिशप्त थे किंतु कुछ देश थे जो इन दोनों महाशक्तियों के साथ नहीं रहना चाहते थे। सोवियत संघ और अमेरिका दोनों बाक़ी देशों को अपने अपने हिसाब से प्रलोभन दे रहे थे ताकि वे विश्व पटल पर अपने आपको अजेय योद्दा दिखा सकें। इसी कड़ी में तीसरा विश्वयुद्ध न हो इसके लिए यू एन ओ की स्थापना की गई जिसमें प्रमुख पांच देशों का दख़ल तय था इसलिए अमेरिका की तरफ़ से भारत की दावेदारी को इस लिहाज़ से महत्वपूर्ण माना गया कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है एवम् जनसंख्या के हिसाब से भी चाइना के बाद भारत ही दूसरे नंबर पर था किंतु धन्य हो उस समय की विदेश नीति जिसे तत्कालिक सरकार द्वारा नकार दिया गया और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रख दी यानि वे देश जो न अमेरिका के पक्ष में थे न सोवियत संघ के पक्ष में तो वो देश बन गए तीसरी दुनिया के देश। अब चूंकि अमेरिका सोवियत संघ से शक्ति संतुलन साधना चाहता था तो उसने चीन को बढ़ावा दिया। नतीजतन चीन माओ से तुंग के नेतृत्व में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा और आज चीन विश्व की सबसे बड़ी फैक्ट्री बनकर उभरा है। ज़रूरत पूरी हुई तो पेट भरा, पेट भरा तो सपने बड़े होने लगे और उन सपनों को पूरा करने में विश्व के देशों से हो रही पैसों की बरसात में उसकी पुरानी आकांक्षा यानि विस्तारवाद फिर सिर उठाने लगा। आज जो चीन है उसका उभार 1966 से 2020 यानि 54 वर्षों में हुआ है। अमेरिकी लडाकू विमानों की नकल करके चीन अब छटी पीढ़ी के लडाकू विमान बनाने की ओर अग्रसर हैं वहीं भारत पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने की ओर प्रयास रत्त है। फ़िलहाल भारत के पास फ़्रांस से प्राप्त राफेल लड़ाकू विमान हैं जो कि 4.5 पीढ़ी के हैं अच्छी बात ये है कि अब ये विमान भारत में ही निर्मित होंगे।

चीनी सिनीजाईनेशन
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          1978 में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना शुरू किया और सुधारी करण की नीति का पालन किया। 1980 तक आते- आते पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में चीन अव्वल होकर निकला।  2022 की रिपोर्ट के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 18 ट्रिलियन डॉलर था जिसके बदौलत चीन के पास पैसे की भरमार हो गई है तो उसका ध्यान चीन के विकास तक सीमित नहीं रहा है पिछले 40-45 सालों में लगभग पूरे चीन में सड़कों, पुलों, ट्रेन ट्रैक का जाल बिछ गया है यही हाल हवाई अड्डों का भी है। चीन अब विकसित हो चुका है एक अनुमान के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था का आकार इस समय लगभग 19 ट्रिलियन डॉलर है जिस कारण वो अब उस अमेरिका को भी आँखे दिखाने लगा है जिसने उसे इस मजबूत स्थिति में खड़ा करने में मदद की। यही का कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में विश्व के कई देश चीन की विस्तारवादी नीतियों से खासे परेशान हो गए हैं जिस कारण बड़ी बड़ी कम्पनियों ने अपना कामकाज समेटना शुरू कर दिया है और उनका पसन्दीदा डेस्टिनेशन भारत बन गया है। 1995 से चीन ने 11वें पंचेन लामा गेदुन चेकई न्यीमा एवं अन्य राजनैतिक लोगों को अपने यहाँ बंदी बनाया हुआ है जिनकी रिहाई के लिए लगातर  निर्वासित तिब्बती संसद जो कि भारत में है,  समय समय पर अपनी आवाज़ बुलंद करती रहती है।  इस संसद का आरोप है कि चीनी   सिनीसाईजेशन जिसका एक ही सूत्र है कि तिब्बती लोगों को चीनी संस्कृति अपनाने के लिए मजबूर किया जाए न मानने की स्थिति में जुल्मों सितम की एक कभी ख़त्म न होने वाली दास्तान से सामना। तिब्बती लोगों का कहना है कि तिब्बत कभी  भी चीन का हिस्सा नहीं रहा।फिर भी चीन है कि तिब्बत के मुद्दे पर भारत से भी 
भिड़ता रहता है। रूस, मंगोलिया, किरगिस्तन, कजाखस्तान, म्यांमार, अफगानिस्तान, पाकिस्तान,  उत्तर कोरिया,ताजिकिस्तान नेपाल से सीमा विवाद में उलझा हुआ है पिछले दो तीन वर्षों में उसने ताइवान को हड़पने की  भरकस कोशिश की है वो जब तब ताईवान के आकाश में अपने फाईटर प्लेन भेजकर उसे धमकाने की कोशिश करता रहता है किन्तु अमेरिका के सपोर्ट के कारण वो ताईवान का कुछ भी बिगाड़ नहीं पा रहा। इन सबके बावजूद भी एशिया में दूसरे ताकतवर देश भारत से नए नए विवाद में उलझता ही रहता है। 

        अब आते हैं चीन की नई खुराफात पर, चीन ने अभी हाल में अपनी संसद में एक प्रस्ताव पारित कर ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा डैम या बांध बनाने की घोषणा कर दी है। चीन में भारत को तीआंझू के नाम से भी जाना जाता है इसका अर्थ आदर्श स्थान या स्वर्ग जैसी भूमि का स्वामी होता है। इसके अलावा भी चीन में भारत को यिन- तू कहकर भी पुकारा जाता है। चीन में बौद्ध धर्म सर्वाधिक है के अतिरिक्त  ताओवाद, इस्लामिक, कैथोलिक, प्रोटेंस्टेटवाद एवं कन्फ्यूशियस वाद प्रचलित है किन्तु जब से जी शिनपिंग सत्ता में आए हैं वहां धर्म को चरस कहा जाने लगा है जिसको मानने का मतलब चरस का नशा माने जाना लगा है। इससे पहले कि मैं इसके पक्ष विपक्ष में अपने विचार व्यक्त करूं हमें ये जान लेना ज़रूरी है कि चीन में किसी भी देश की अपेक्षा लगभग 98000 छोटे बड़े बांध हैं जिनमें विश्व का सबसे बड़ा बांध थ्री गोरजेस भी शामिल है। जिससे वह 88.2 बिलियन किलो वॉट घंटा की विद्युत उत्पन्न करता है। इसमें 39.3 KM या 31,930,000 एकड़ फीट पानी मौजूद है इसका कुल क्षेत्रफ़ल 1045 कम  है। इसके बनने के बाद पृथ्वी के घूमने की गति 0.06 माइक्रो सेकेंड का अंतर आ चुका है जिसकी पुष्टि नासा ने भी की है। वैसे दुनिया का सबसे ऊंचा जिनपिंग प्रथम आर्च बांध है जिसकी ऊंचाई 305 मीटर या 1001 फीट है वहीं दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा तटबंध बांध 300 मीटर या 984 फीट नूरेक बांध तजाकिस्तान में है।जहां तक भारत का प्रश्न है तो आज भी भाखड़ा नांगल डैम दुनिया का सबसे ऊंचा तथा सीधे ग्रैविटी वाला बांध है वैसे सबसे बड़ा बांध हीराकुंड है जिसकी लम्बाई 25.8 किलोमीटर है। यह बांध इंजीनियरिंग का अदभुत नमूना माना जाता है जिसे उड़ीसा में 1957 में बनाया गया था। जहां तक टिहरी बांध का प्रश्न है तो यह उत्तराखण्ड में बना है जिसकी ऊँचाई 260.5 मीटर है इसे गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी तथा भीलगंगा नदी पर बनाया गया है। यह दुनिया का सबसे लम्बा मिट्टी का बांध है। टिहरी बांध को स्वामी रामतीर्थ सागर बांध भी कहते हैं। 

         जब से चीन ने विकासवाद की उड़ान भरी है तब से उसे कुछ भी अनुचित नहीं लगता इसका जीता जागता उदाहरण 1979 में दिखाई दिया जब आंदोलन कारी छात्रों पर चीनी सेना ने टैंक चढ़ा दिए थे 1978 में  वियतनाम द्वारा बीजिंग से अलग होकर मास्को से 25 सालों के सोवियत रूस के साथ एक पारम्परिक रक्षा समझौता कर लिया साथ ही वियतनाम ने कम्बोडिया में कठपुतली माओवादी कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ़ युद्द का ऐलान कर दिया परिणाम स्वरूप चीन ने कम्युनिस्ट वियतनाम के खिलाफ़ युद्द शुरू कर दिया और लगभग 2,20,000 सैनिकों को युद्ध के मैदान में उतार दिया इस युद्ध में चीन और वियतनाम दोनों को ही भारी नुकसान हुआ । चीन ने जहां इसे वियतनाम के खिलाफ़ दंडात्मक कार्यवाही बताया वहीँ वियतनाम ने इसे अपनी सम्प्रभुता से जोड़कर देखा। यानि पैसा आया तो पॉवर आई और पॉवर आई तो विस्तारवादी नीति आई और इसका खमियाजा भुगतने के लिए उसके पड़ौसी अभिशप्त हैं।  आए दिन चीन कुछ न कुछ ऐसा करता रहता है जिससे पूरे विश्व की आँखों में वो खटक जाता है फिर चाहे वो पाकिस्तान के रास्ते उसका महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट CPEC जो कि 3000 KM लम्बा है बना रहा है  वहीं वह श्रीलंका को कर्ज़ देकर लगभग कंगाल कर चुका है वो तो भला हो भारत का जिसने समय रहते श्रीलंका को सम्भाल लिया लेकिन चीन हर गरीब देश को कर्ज दे रहा है जब वो देश कर्जा उतारने में असमर्थता व्यक्त करता है तब चीन उसके संसाधनों पर कब्ज़ा जमा लेता है मतलब कि ब्रिटेन की तरह चीन भी वर्तमान में उपनिवेशवाद की राह या चाह पाले हुए है। 

         अब जब चीन ने एक ट्रिलियन डॉलर यानि करीब 137 अरब डॉलर की लागत से नए बाँध बनाने का फैसला कर लिया है तो इससे सबसे ज्यादा खतरा भारत और बांग्लादेश को है, विपरित परिस्थितियों में चीन नए बाँध से भारत में क्रत्रिम बाढ़ ला सकता है जिससे भारत के अलावा इसका असर बांग्लादेश पर भी पड़ना तय है। य़ह बाँध वह यारलुगां जंगबो ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम पर बन रहा है ब्रह्मपुत्र यार लूंग नदी तिब्बत के पठार से होlकर बहती है। यारलूंग या भारतीय नाम ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलकर भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बांग्लादेश को सेती है। चीन की ये परियोजना दुनिया की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है। यार लूंग जंगबो नदी पर जल विद्युत परियोजना इंजीनियरिंग की विषम चुनौतियों से भी सामना करना पड़ेगा ऐसा इसलिए कि ये पूरा हिमालयी क्षेत्र टेक्टॉनिक प्लेटो पर टिका हुआ है। और इस क्षेत्र में भूकंप आना नई बात नहीं है हाँ ये बात अलग है कि जब ये बाँध कम्प्लीट हो जाएगा तो चीन को इससे 300 अरब किलोवाट से अधिक की बिजली मिलेगी जो कि वर्तमान थ्री गोरजेस बाँध के 88.3 से तीन गुने से भी ज्यादा है। जहाँ तक भारत का प्रश्न है भारत ने चीन के साथ सीमा पार नदियों से सम्बन्धित विभिन्न मसलों पर चर्चा करने के लिए 2006 में स्पेशल लेवल मैकेनिज्म की स्थापना की, वैसे चीन बाढ़ के मौसम के दौरान भारत को ब्रह्मपुत्र नदी और सतलुज नदी पर जल विज्ञान सम्बन्धित जानकारी साझा करता रहा है। निश्चित रूप से चीन का एक मात्र मकसद विद्युत उत्पादन मात्र नहीं है बल्कि वह इस बाँध के द्वारा सैनिक शक्ति का प्रयोग भी करना चाहता है मतलब युद्ध जैसी स्थिति में चीन इस बाँध से अतिरिक्त पानी छोड़कर भारत को परेशान कर सकता है।

         अब प्रश्न यह है कि यदि इस बाँध के निर्माण को लेकर चीन की मंशा ठीक नहीं है तो भारत इस विषय में बचाव के लिए क्या कर रहा है। भारत सरकार इसके प्रतिउत्तर में सियांग परियोजना लेकर आ रही है। सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना के पूरा होने पर इससे न केवल विद्युत उत्पन्न होगी बल्कि चीन की ओर से किसी भी दुस्साहस करने पर यदि वह पानी छोड़ता है तो वह पानी भारत द्वारा बनवावाए गए बाँध में किसी हद तक समाहित हो जाएगा। इस बाँध में 9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा हो सकता है। यदि चीन पानी छोड़ता है तो यह पानी बफर के रूप में कार्य करेगा। इससे पूरे साल नदियों में पानी का प्रवाह एक जैसा रहेगा। यानि कुल मिलाकर भारत न सिर्फ अपनी प्रतिरक्षा की तैयारी कर रहा है बल्कि वह अपने पड़ौसी बांग्लादेश का भी ख्याल निरन्तर रख रहा है। जहाँ तक भारत और चीन की विदेश नीति के तुलनात्मक अध्ययन की बात है तो चीन दूसरे देशों को खा जाने में विश्वास करता है वहीँ बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हुए घनघोर अत्याचारो के बावजूद आज जब वहाँ अन्न का संकट उत्पन्न हुआ तो भारत ने मानवीय सम्वेदना को ध्यान में रखते हुए आलू प्याज के अतिरिक्त 25 हजार टन चावल भिजवा रहा है वो भी बिल्कुल निःशुल्क।

प्रदीप डीएस भट्ट-301224

         
         


         

         

Friday, 27 December 2024

"पक्षी विहीन नागालैंड"

रिपोर्ताज 
           " पक्षी विहीन नागालैंड "

        पिछले वर्ष दिसम्बर-2023 की तमिलनाडु एवं केरल की साहित्यिक यात्रा के पश्चात ABS4 द्वारा जून-2024 में आयोजित नेपाल यात्रा में मैं सहभागिता नहीं हो सकी क्यूँ कि घर में धार्मिक आयोजन था किन्तु जब अगस्त में तय हुआ कि इस बार नागालैंड में आयोजन प्रस्तावित है तो हमने तुरन्त हामी भर दी। पहली फुर्सत में डिसाइड किया कि यात्रा ट्रेन से करेंगे और लो जी जैसे ही हमने डिसाइड किया कुछ और साथियों ने भी ग्रुप में अपनी सहमति प्रदान कर दी। 🫠 चूँकि बुकिंग 4 महीने पहले करवाई जा सकती है और अभी समय शेष था सो हम तो रिलेक्स थे तभी नीरव जी का संदेश प्राप्त हुआ कि तो राधा बिष्ट जो कि लखनऊ की हैं और कभी जर्मनी, कभी बंगलौर कभी नोएडा प्रवास पर रहती हैं के टिकिट की जिम्मेदारी आप ले लें, सो भैय्या जिम्मेदारी ले ली। 😝आने जाने के टिकिट बुक किए साथ ही दीमापुर रेलवे-स्टेशन पर एक ठो कमरा भी बुक कर दिया ताकि रात 12 बजे भटकना न पड़े,🙂‍↔  किन्तु ये क्या दो दिन बाद due to रिनोवेशन work booking कैंसिल का mag हमारे मुबलिया में आ धमका। क्या करें क्या न करें के बीच हमने राधा बिष्ट जी से मुबलिया पर संवाद किया और होटल सेब towar में ही एक कमरा बुक कर दिया चूँकि उनकी रूम पार्टनर अमीना खातून थीं सो एक कमरे की जगह दो कमरे कर लिए,  जैसे जैसे 17 दिसम्बर की तिथि नजदीक आ रही थी थोड़ा सा एक्साइटमेंट भी हो रहा था लेकिन जे क्या 14 को खबर लगी कि राधा जी परिवार में क्षति होने के कारण नहीं जा पाएंगी🤤 सो उनका टिकिट कैंसिल किया,  तभी waiting लिस्ट में अनीता प्रसाद जी से बात कर सूचित किया गया कि आपका नगालैंड का कार्यक्रम confirm हो गया है आप राधा बिष्ट की जगह अमीना जी के साथ कमरा साझा कर सकती हैं, ट्रेन फ्लाईट जैसे भी सम्भव हो देख लें, तीन दिन यूं ही गुजर गए तभी राश दादा राश का आग्रह कि मैं बिटिया के साथ हूँ एक कमरा हमारा भी कर दें ख़ैर आनन् फानन में फोन किया तो उन्होंने क्रिसमस के कारण होटल फूल होने का हवाला देकर हाथ खड़े कर दिए सो एक्स्ट्रा बेड के साथ दो कमरे 6 लोगों के लिए फ़ाइनल। 17 को मेरठ से दिल्ली NDRS से 16:20 की ट्रेन ली और राजधानी दौड़ पड़ी अपने गंतव्य की ओर लोहे की सड़क पर धड़क धड़क करते हुए। रात्रि 10 बजे अनीता जी का फोन कि टिकिट confirm नहीं हुई क्या करें 😱हमने भी उनींदे से में ही कह दिया current टिकिट लेकर रत्ननेश्वर जी,  राश दादा या अमीना खातून के साथ बैठ जाएं TT आवे तो मैनेज करें । चूँकि राजधानी सुबह 4 बजे पटना पहुंचती है तो सभी उन्हें मिल गए वे बैठ भी गईं लेकिन जब 8,9  बजे TT 😢 आया तो उसने घोषित कर दिया आप  पक्के तौर पर बिना टिकिट हैं रत्नेश्वर, राश दादा अमीना सब TT को समझाने में नाकामयाब हुए तब 

"जब कोई भी तरकीब मेरे काम न आई प्रदीप 
 सो यूँ किया कि ख़ुद को हवाले तिरे किया "

         सो भैय्या 17 कम्पार्टमेंट😇😇 को कूदते फांदते AC 3 tire की स्थिति जनरल बोगी से बदतर। ख़ैर टीटीई को ढूंढ़ते ढूंढ़ते पैंट्री कार जा पहुंचे वहां का नज़ारा बस पूछो मति, गरमा गर्म चाय की चुस्कियां लेते सभी TT साथ कुछ पुलिस ब्रदर्स। खैर तेजपाल जी से ही पूछा तेजपाल जी कहां मिलेंगे🤥 माजरा जानकर उन्होंने तुरन्त अनीता जी और मुझे चाय ☕ ऑफर की। इधर उधर की बातें करते हुए उन्होंने बताया वो खेकड़ा कस्बे के हैं सो मैंने बागपत का होने का हवाला देते हुए तुरन्त गुज़ारिश की कि इन मोहतरमा के लिए कुछ करें।  किन्तु अफ़सोस दिल ब्लैक होल में, उन्होंने बताया कि उन्होंने बाबू रत्नेश्वर सिंह जी की सहमति से ही अपने टैबलेट में एंट्री कर ली है इसलिए वो कुछ नहीं कर सकते ख़ैर पेमेंट के लिए जब अनीता वाई फाई कनेक्ट करने के बाद भी पेमेंट न कर पाईं तो हम थे न😻 सो तुरन्त 7200 की पेमेंट कर दी किंतु रकम 7200 ना ना ना 7020 ऐसा इसलिए कि जब हिसाब किया तो पता पता चला कि अंजाने में ही सही हमने अनीता जी को 7020 की जगह 7200 बोल दिए थे,  न भैय्या गुस्सा न कि करो, हिसाब किताब में अपना हाथ शुरू से ही अंग्रेज़ी की तरह तंग रहा है। खेकड़ा बागपत का रिश्ता इतना काम आया कि उन्होंने AC 3Tire की यात्री अनीता जी को 2tire में बैठने की इजाज़त दे दी। 👏अनीता जी का मूड थोड़ा खराब हुआ जो कि होना स्वाभाविक भी था सो बोल दिया पैंट्री में जो दो चाय पी हैं समझिए उन 2 चाय की क़ीमत 7200 न न 7020 समझें जब लगा कि वो मुस्कराने से बच रही हैं तो हमने दूसरा जुमला उछाल दिया चलिए यूं समझिए कि आपने प्रथम श्रेणी में यात्रा की है किंतु परन्तु लेकिन समझा ही तो नहीं जाता न प्रभु।🙀 ख़ैर रात्री 12:30 पर दीमापुर पहुंचे, ऑटो लिया और अपने आपको कमरों में धकेल दिया।

         गद्दे इतने ज्यादा अनस्टेबल थे कि लगा ज़्यादा जोर की करवट ली तो कहीं उछलकर खिड़की के रास्ते कोहिमा न पहुंच जाएं। राश दादा के साथ उन्हीं गद्दों पर लगभग दुई घंटे गुफ्तियाने के बाद पता नहीं कब सो गए। खटर पटर की आवाज़ ने जगा दिया देखा सूर्य 🌞 देवता लतिया रहे हैं हमने आंख मलते हुए कहा प्रभु थोड़ा सोने दें तो और जोर से लतिया दिए फिर गरज कर बोले अबे हमें उदित हुए डेढ़ घंटा हो गया है बे हम यहां जल्दी उदित हो जाते हैं यानि 4 सवा चार बजे और हां अस्त भी जल्दी होते हैं। सोना था तो घर रहते यहां क्या...... आगे के शब्द डॉट से समझ लें। प्रभु पूरे गुस्से में थे सो हमने उठने में ही भलाई समझी,  आँखें मलकर पुनः खोली तो खुर्शीद मियां आकाश में फिर चमक दमक बिखेर रहे थे। आनन फानन में तैयार हुए रत्नेश्वर बाबू और राश दादा को उठाया तभी तुम में लगा फोन घनघना उठा दूसरी ओर से मधुर सी आवाज़ में बताया गया कि भुक्कड़ो  नाश्ते का समय 7.30 से 9.00 बजे तक है इससे पहले कि नाश्ता खत्म हो जाए टूट पड़ो। 😾लो जी नाश्ते की बात सुनते ही दोनों बंधुओं ने तय किया कि पहले पेट पूजा बाक़ी काम दूजा। छोले भटूरे, कॉन्फ्लेक्स bred buttar, हलुआ, चाय कॉफी, भर पेट खा लिया क्या पता लंच कब मिले न मिले। 

         19 की प्रात :7.30 बजे परम प्रिय मित्र श्यामल मजूमदार दादा उत्तराखंड की आठ सदस्यीय टीम को वाया लखनऊ लेकर होटल 🏨 सेब टॉवर आ पहुंचे। चूंकि रूम 12 बजे से आरक्षित थे सो हमने ऑफर दे डाली जब तक तुम नहीं मिलता तब तक महिलाएं तुम नंबर 207 में एवम् पुरुष 206 में फ्रेश हो सकते हैं। साढ़े बारह के क़रीब नीरव जी सैनी धर्मपाल धर्म भी आ पहुंचे, चूंकि प्रोग्राम स्थल दूर था सो चेंज किया और जा पहुंचे पद्मपुखरी स्थित राष्ट्रभाषा हिन्दी संस्थान परिसर जिसे पद्म श्री तेजमेन जमीर द्वारा हिन्दी की अलख जगाए रखने हेतु स्थापित किया गया था। नागालैंड की सुरम्य वादियों में स्थित राजधानी दीमापुर के पद्मपुखरी में तीन दिवसीय इक्कीसवें राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारम्भ या ये कहें कि स्वागत नागालैंड के पारम्परिक लोकनृत्य से किया गया तत्पश्चात सम्मोहित करने वाला लोक गायन प्रस्तुत किया गया तत्पश्चात वेणु मण्डप में दीप प्रज्जवलन सरस्वती वंदना पुस्तकों के लोकार्पण एवं पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया तत्पश्चात बहुभाषीय कवि सम्मेलन का आयोजन। प्रथम दिन सुहावना एवं आनन्द प्रदान करने वाला था। होटल आकर तय किया कि भैय्या आज काली जबान वाले प्रदीप भट्ट के कारण लंच नसीब नहीं हुआ सो डिनर इसके सर ही ठोको सो राश दादा उनकी बिटिया पूजा अनीता प्रसाद अमीना खातून और हम आ पहुंचे होटल के ही डिनर रूम में सर्वसम्मति से तय हुआ खिचड़ी और आलू के पराठे साथ में दही, हमने झिझकते हुए जैसे ही ये कहा ये न हो कि कल नाश्ते में आलू पराठा ही मिले चार जोड़ी घूरती हुई आंखों को अपने चेहरे पर गड़ते हुए पाया सो चुप्पी साधने में ही भलाई समझी। आर्डर 20 मिनिट में ही सर्व करने बंदा आया मैंने कहा ओ तेरे की आर्डर खिचड़ी और आलू पराठे का और आया है अंडा करी और रोटी, प्रोनॉन्सिएशन की धक्का मुक्की का परिणाम था अंडा 🥚 करी ख़ैर इस बार 30 मिनिट का टाइम कहकर बंदा गया तो वहीं टेबल पर एक छुटका कवि सम्मेलन शुरु हो गया। लगभग 40 मिनिट बाद मनचाहा ऑर्डर नसीब हुआ। खा पीकर सब अपने कमरों में जा घुसे अगली सुबह जल्दी उठने के वायदे के साथ। डर भी था कहीं भास्कर ☀️ महोदय देर तक सोने पर गुस्से में पिछवाड़ा ही न जला दें।

         20 की सुबह पूरी भाजी का नाश्ता किया और साढ़े नौ बजे पद्मपुखरी स्थित वेणु मण्डप में। चूंकि प्रथम सत्र का संचालन हमारे ही जिम्मे था सो गुरु हो जा शुरु की तर्ज़ पर माइक पकड़ा और शुरु हो गए। राष्ट्रभाषा संस्थान की निदेशिका पी ताकालीला, अनिल सुलभ जी एवं सुरेश नीरव जी द्वारा सभी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न भागों से पधारें कवियों ने रचना पाठ किया। हमने सोचा क्यों न इस शुभ अवसर पर हिन्दी विषय पर ही कुछ पढ़ा जाए आखिर तेजमेन जमीर जी की आत्मा जहां कहीं भी होगी वो ये देखकर प्रसन्न तो होवेगी कि 30,35 लोगों में कोई तो है जो उनकी तरह हिन्दी की अलख जगा रहा है।

गीत 
      " हिन्दी है तो है हिन्दी "

सुबह से शाम अंग्रेज़ी, मग़र दिल में बसी हिन्दी 
सजी जो भाल पर माँ के, वही प्यारी मेरी हिन्दी 
कि सब व्यापार की बातें,मगजमारी क्यूँ करनी है 
मेरी हिन्दी, तेरी हिन्दी,मग़र हिन्दी तो है हिन्दी! 

तमिल है तेलुगू है और मलयालम,भी कन्नड़ भी, 
कि कुछ विकसित हुईं हैं, और बाक़ी कुछ है अनगढ़ भी, 
भले दक्षिण में बोली जा रही, पर सब समझ आता,
अगरचे सीखना चाहो तो, सीखन में मज़ा आता,
इन्हीं से संस्कृति अपनी,ये जिन्दी हैं तो सब जिन्दी! ! 


मराठी और गुजराती, अलग संदेश हैं देती, 
मिले पंजाबी जब संग में, तो एक दूजे को हैं सेंती,
असमिया और उड़िया, बात  बंग्ला की करूँ मैं क्या,  
सभी कल्चर समेटे, बात फ़िर दिल्ली करूँ मैं क्या,
मिला लो सिंध भी इसमें,ये सिंधी है सब सिंधी! !! 

कोई कुछ भी कहे लेकिन,सभी भाषाएं बढ़िया हैं, 
कहो कुमाऊँनी या फ़िर, कहो गढ़वाली बढ़िया है, 
सभी का सार है इसमें, कि कम प्रचार है इसमें, 
मग़र जो प्रेम है बसता, सदी का साथ है इसमें,
लड़ो आपस में कितना भी, मग़र सन्धि तो है सन्धि ! !! !

कि छोड़ो भाषा के झगड़े, गले मिल बात तो कर लो, 
कि थोड़ा हम सबर कर लें, औ थोड़ा तुम सबर कर लो, 
सभी भाषाओं की जननी, है संस्कृत देव भाषा जी,
यही संदेश है इसका, करो जीवन में आशा जी,
करो निश्चय अभी मन में,अमर हिन्दी तो है हिन्दी! 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट -14923

         इसके बाद तो बस चला चली ही बचती है और कुछ अलग है तो महिलाओं का फ़ोटो सेशन जिसमें कुछ पुरुष भी अपनी भड़ास निकाल लेते हैं। सो राष्ट्र गान न कि राष्ट्र गीत के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। 

         तीसरा दिन चूंकि शैक्षिक पर्यटन को समर्पित था तो टीम उत्तराखंड मजूमदार दादा की अगुवाई में  कोहिमा के लिए सुबह सवेरे निकल गई बाकी कॉम्प्लीमेट्री नाश्ते का मोह न त्याग सके सो तय किया कि लोकल ही रमणीय स्थलों का प्रवास किया जाए। हम अनिल सुलभ जी, शशि प्रेम देव, अनीता प्रसाद और अमीना खातून गाड़ी लेकर निकल पड़े। पहला पड़ाव ग्रीन पार्क जहां रमणीय वातावरण में सभी ने कविताओं की वीडियो बनाई, वहां से निपटकर निकल ही रहे तो सुमन जी टकरा गए जिनसे कल शाम ही मुलाक़ात हुई थी वे मैथ टीचर हैं जो 1997 से यहीं जमे हुए हैं। हमने सोचा लोकल हैं तो ज्यादा जानकारी मिलेगी गाइड का खर्चा भी बचेगा सो उनकी मोटर साईकिल को कहा कि आप यहीं 1 घंटे विश्राम करो हम इन्हें लेकर 4 घंटे में आते हैं। उस बिचारी को क्या पता ह्यूमर क्या होता है सो जब तक उसे कुछ समझ आता हम उन्हें लेकर फुर्र। अब हम सबकी बागडोर सुमन मोदी जी के हाथ में और दूसरा पड़ाव बैंबू रिसॉर्ट वहां लकड़ी से बहुत कुछ बनाया जा रहा था हम जैसे ही घुसने लगे एक श्वान 🐕 🐶 दिख गया, उसने हमें देखा भी और देखा भी नहीं उसने भौंकने के धर्म का पालन भी नहीं किया, वहां से निपटे तो उसी प्रांगण में वुड इंपोरियम चले गए वहां दूसरा श्वान 🐕 🐕 स्थिति फ़िर पहले श्वान की तरह, सब आगे बढ़ गए लेकिन हम तो हम ठहरे सीटी बजाई तो उसने एक आँख खोलकर हमारा नीचे से ऊपर तक का जायज़ा लिया फिर आंखों ही आंखों में बोला कि चाईदा तैन्नू जल्दी दस मैन्नू मैंने थोड़ा स्टाइल मारते हुए पूछ लिया तुम कुत्ते हो बे कुत्ते काटो न काटो कमसकम भौंकने 🐶 का धर्म तो निभाओ। उसने एक अगड़ाई ली फिर बोला सुनो बे मुसलमान बरसों तक बकरे को पालते हैं फिर ईद में उसका झटका मटका कर देते हैं। यहां नागालैंड में स्थिति विकट है यहां के लोगों की पहली पसंद हम हैं फिर हमारा बहुत दूर का रिश्तेदार वराह है हमने सर खुजाते हुए पूछा वराह तो वो श्वान और बिगड़ गया बोला अबे शूकर 🐖 हमने कहा नहीं हमारा नाम भट्ट है प्रदीप भट्ट अब उसे और गुस्सा आ गया बोला अबे ये सब सुअर 🐷 के पर्यायवाची शब्द हैं वराह और शूकर और ये क्या बे भट्ट नाम है  प्रदीप भट्ट सुनो ये कहते हुए तुम गंदे वाले जेम्स बॉन्ड लगते हो। हमने तुरन्त हाथ जोड़े तो श्वान महाराज आगे बोले कि कितने दिनों से हो हींया हमने कहा तीन दिन से उसने बड़ी गम्भीरता से कहा तीन दिनों में कोई चिड़िया, छिपकली कॉकरोच,कबूतर, टिड्डा टिड्डी फ़िर हांफते हांफते उसने नाम की जगह चित्र उकेर दिए और बोला,🕊️🦩🐇🐿️🦨🦡🦫🦜🦢🐉🐲🦔🐿️🐀🐁🦥🕊️🐇🦌🐐🐂🐄🫏🐎🐏🐑🦙🐈‍⬛🐈🐕‍🦺🦮🐩 
 देखे हो, हमने ना में मुंडी हिलाई तो बोला ये ससुरे इंसान छोड़कर सब कुछ खा जाते हैं और तुर्रा ये कि हम प्रकृति प्रेमी हैं। और हां ये तितलियों की चटनी बनाकर खाते हैं।हमने पूछा हमने तो यही सुना है नागालैंड वाले आदमी भी खा जाते हैं इस बार उस श्वान 🐕 ने हल्की सी बत्तीसी दिखाई फिर बोला अगर ये सच होता तो तुम जिंदा थोड़े ही रहते फिर एक दम से उदास होते हुए बोला अब तुम खुदई सोचो जिस कुत्ते को ये पता न हो कि वो कितने पल का मेहमान हो वो भौंकेगा या आने वाली मौत को आँख बंद कर गच्चा देने का प्रयास करेगा।अच्छा सुनो अब तुम पतली गली से निकल लो बेटा वरना हम अपना सिर्फ धर्म निभाएंगे नहीं वरन पिछवाड़े पे काट खायेंगे फिर लगवाते रहना 14 ठो इंजेक्शन। हमने अभी कदमों को जुंबिश दी ही थी कि मरी मरी आवाज में वो श्वान 🐕 फिर बोला यहां से तीसरा ठिकाना तुम्हारा शिव मंदिर है वहां शिवजी से कहना कि अगले जनम हमें नागालैंड ने पैदा कीजौ।

         वास्तव में हमारा तीसरा ठिकाना शिव मन्दिर ही था जो कि रँगा पहाड़ है वहां कबूतर मस्ती में दाना चुगते मिले जैसे उन्हें पता हो यहां नागाओं की हद खत्म हो जाती है फिर हैंडीक्राफ्ट इंपोरियम,  छेत्री रिवर ब्रिज, noune रिसॉर्ट जहां हमने फ्राइड राइस के साथ कविताएं पढ़ी। राज बारी आर्कियोलाजी हिडिम्बा, कूडा गाँव, शाम को लौटते हुए thaihku village decoration और दीमापुर बाज़ार। रास्ते में खेतों में मुर्गियां 🐓🐓 दाने चुगते बहुत दिखीं, पूछने पर सुमन जी ने बताया एक महीना खिलाएंगे फिर हैप्पी वाला बर्थडे। कुछ लोग कुछ खरीदारी करना चाहते थे लेकिन पता चला यहां दुकानें सुबह 8 बजे से सायं 6 बजे तक ही खुलती हैं। संडे प्रे डे घोषित होता है सिर्फ़ बेकरी और मेडिकल शॉप खुल सकती हैं। कोई अन्य दुकान खुली मिली तो ग्यारह हज़ार फाइन। अगले दिन यानि 22 को 12 बजे होटल छोड़ना था और हमारी ट्रेनवा मिडनाइट यानि 23 दिसम्बर की वेरी अर्ली मार्निंग 2.08 पर चूंकि हम अकेले थे सो कोहिमा जा नहीं सकते थे सो तय किया कि रूम एक दिन के लिए एक्सटेंड करते हैं किंतु ये क्या रिसेप्शनिस्ट ने बड़े अदब से कहा हुज़ूर ए आला कल कहते तो मैनेज हो जाता क्रिसमस के कारण होटल फूल टू फूल है फ़िर बड़े प्यार से कहा आप चेक आउट करके सामान लॉकर में रख सकते हैं वो भी फ्री बिलकुल फ्री। चूंकि सुमन जी की बिटिया मेरठ में BDS कर रही है तो तय हुआ था कि उसके लिए एक पैकेट गर्म कपड़े उसको पहुंचा दूं तो उन्हें फोन कर वस्तु स्थिति बताई वे कुछ ही देर में लेने आ गए। खाना खाया और जो स्थान कल देखने से रह गए थे उन्हें उनके साथ देखा फिर रात्रि में उन्होंने ही स्टेशन ड्रॉप भी किया और 24 को मंगल टू मंगल करते वाया दिल्ली मेरठ और इस तरह नागालैंड की यात्रा सम्पन्न।

मास्टर पास्टर डॉक्टर 
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         और अंत में आप सोच रहे होंगे कि क्या नागालैंड में कुछ रोचक भी देखा या सुना। जी हां हुज़ूर नागालैंड में शादी के बाद लड़का लड़की के यहां आकर रहता है एक दो दिन नहीं वरन जीवन भर जैसे यहां लड़की अपने ससुराल में जीवन भर रहता है। टीचर नागी हो या दूसरे प्रदेश का उसे पूरी इज़्ज़त बख़्शी जाती है चूंकि यहां क्रिश्चियन बहुलता में हैं तो यहां चर्च की भरमार है। फादर हो या डॉक्टर उन्हें भी पूरी इज़्ज़त वो भी टैक्स फ्री जी हां नागालैंड को स्पेशल राज्य का दर्ज़ा हासिल है सो सर्विस क्लास की बल्ले बल्ले लेकिन बाहर का व्यक्ति ज्यादा शो ऑफ़ करे तो कुछ भी हो सकता है इसलिए पैसा कमाओ लेकिन दिखाओ नहीं नई ते। अब एक और रोचक पहलू नागालैंड को त्यौहारों की भूमि भी कहा जाता है इसका दूसरा नाम नागा हिल्स है, दीमापुर नाम हिडिंबा के नाम पर है। 1 दिसम्बर 1963 को आसाम से अलग होकर नागालैंड अस्तित्व में आया। नागालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिवल प्रमुख है। नागालैंड में कोन्याक, ए ओ, लौथा, अंगामी, चोकरी, संगतम, बंगाली, जेमे, यिमखिउग्ररु, चांग के अतिरिक्त भी 6,7 भाषाएं बोली जाती हैं। लगभग 17भाषाएं नेपाली भी है किंतु आश्चर्य इनमें से एक भी इस राज्य की भाषा नहीं है वरन अंग्रेजी है। निश्चित क्रिश्चियन सोसाइटी के प्रभाव का असर है। एक और महत्वपूर्ण जैसे मुसलमानों में बहत्तर फिक्रे होते हैं और अहमदिया, शिया, सुन्नी वगैरह वगैरह की मस्जिद अलग हैं वैसे ही यहां चर्च भी अलग अलग एक बानगी देखिए: Mao bapist church, angami bapiest church, ao bapist church, rengma, sumiyimchunger, lotha,konyak,nagamis church, Bengali church, Nepali, Spirits of faith church for new born क्रिश्चियन आदि आदि। लोग विदेशों की तरफ़ आकर्षित होते हैं उनके लिए हुज़ूर भारत में इतना कुछ है कि उसे देखने और समझने के लिए एक जीवन पर्याप्त नहीं है।

         तो कीजिए अगले रिपोर्ताज का इंतेज़ार।

Saturday, 14 December 2024

"देर लगी आने में हमको शुक्र है फ़िर भी आया तो "

रिपोर्ताज 

"देर लगी आने में हमको, शुक्र है फ़िर भी आया तो "

"ठीक हो रही खाँसी खुर्रा, लेकिन कनिया* बंद हो गये 
 अच्छे ख़ासे मलमल थे पर टाट के अब  पैबंद हो गये" 
* कान (इंस्टेंट) 
थोड़ा हँस भी लिया करो 😄😄😄😄

         मौका था महफ़िल ए बारादरी की मासिक गोष्ठी का जो कि 8 दिसम्बर को होनी निश्चित हुई थी। वर्ष 2024 की आखिरी हसीन शाम में मैंने भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने को आतुर था😊। इसी क्रम में दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में ही आलोक यात्री जी की ओर से स सम्मान आमंत्रण प्राप्त हो चुका था। पिछले एक महीने से नजले खांसी ज़ुकाम और थोड़े से बुखार बाबू के संग हम लगभग उल्टे टंगे हुए थे।🫠 खांसते ही पसलियां चीत्कार कर देती थीं। बेसाख्ता मुझे लखनऊ में बिताए बचपन की कुछ यादें ताज़ा हो आई जिनमें सर्दी की रात में "हे भुनी भुनी हैं, ये मुंगफली हैं" वो मुंगफली बेचने का अंदाज़ और सर्दी में कंपकपाते हाथों से अख़बार काटकर बनाए गए लिफ़ाफे में ढाई सौ ग्राम मुंगफली और साथ में काला नमक आहहह और गर्मियों में ककड़ी बेचता हुआ वो बंदा जो आवाज़ लगाता था "लैला की उंगलियां ले लो, मजनू की पसलियां ले लो" वो भी काले नमक के साथ, 🥒अब इन दोनों बंदों के अंदाज़ पर लाखों की MBA की डिग्रियां भी न्यौछावर �सो भैय्या जब भी खांसी आती मुझे तुरत बचपने में ले जाती और लैला की उंगलियां और मजनू की पसलियां याद आ जाती। लेकिन साहब इस बार तय कर लिया था कि महफ़िल ए बारादरी जरूर ज़रूर जरूर अटेंड करनी है।भले ही खांसी पढ़ने में व्यवधान ही क्यों न डाले। शायद नजले खांसी ज़ुकाम को अंदाज़ा हो गया था ये बंदा बहुत बड़े वाला ढीठ वाला बंदा  है 🙃सो 8 तारीख़ आते आते सवेरे वाली गाड़ी से चुपके से ये तीनों तिलंगे निकल लिए। सच कै रिया हूँ भाया पिछले नवंबर में भी इन्होंने हरिद्वार में मुझे कैच कर लिया था किंतु जब इस साल मैं दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में हरिद्वार कार्यक्रम करके लौटा तो मुझे 6 को ही अहसास हो गया था कि इस नज़ले खांसी ज़ुकाम ने तय कर लिया था कि अब दुबारा इस बंदे के साथ ना जावेंगे लेकिन साहब आदत तो बदल सकती है लेकिन फितरत नहीं  सो जाते जाते मुए पर्ची छोड़ गए "मिलते हैं नवंबर 2025 में"🌶️

         सो भैय्या 8 तारीख़ को 11.00 बजे स्कूटी उठाई और सीधे भैंसाली बस अड्डे, पहली फुर्सत में अपनी स्कूटी जमा की और गाजियाबाद वाली बस में जा बैठे की। 12 बजे जैसे ही बस ने जुंबिश की और बस अड्डे को टाटा बाय बाय बोला आगे वाली बस का ड्राईवर कूद कर आ गया और सवारी उठाने को लेकर महाभारत शुरु हो गया पहले एक दूसरे को छोटी बड़ी सभी उपाधियां दे डाली जब मन नहीं भरा तो वन टू का फोर, फोर टू का वन यानि कंडक्टर भी भिड़ गए, रास्ता पूरी तरह जाम 👻, अब तक बस की सवारियां और भीड़ ड्राईवर कंडक्टर को मोटी मोटी सुना भी रहे थे तभी दो स्टार लगाए एक पुलिस वाला और दो कांस्टेबल भी आ पहुंचे मामला बातचीत से न संभलते देख दो ⭐ ⭐ वाले ने पुलिस वाले से डंडा लिया तो चारों की तशरीफ़ को बढ़िया तरीके से गर्म कर दिया। ये लीजिए हुज़ूर मामला निपटा और हम आनंद के सागर में गोते लगाते हुए 2.45 गाजियाबाद, ई रिक्शा ली और बताया सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल, नेहरू नगर, तभी हमारा फुनवा टुनटुना गया और हम हो गए जी गापियाने में मस्त। मोबाईल से फ्री हुए तो जोर का झटका जोर से लगा, बंदा बुलंदशहर वाले स्कूल की तरफ़ अग्रसर लगा, टोका तो बोला मेरे सुनने में ग़लती हो गई लगती है। ख़ैर उसे छोड़ा दूसरा पकड़ा अब ये वाला भी पता नहीं भैय्या किन किन रास्तों की हमें सैर कराता रहा। देर से पहुंचना हमारी शान के खिलाफ़ है लेकिन मरता क्या न करता। काश मैं भी सड़क पर सन्नी देओल की तरह एक मोड़ पर गड्डी छोड़कर कार्यक्रम स्थल पहुंच जाता। ख़ैर जैसे तैसे 4.00 बजे पहुंचे हमेशा की तरह पहली मुलाक़ात आलोक जी से ही हुई, देर के आने के लिए हाथ जोड़ क्षमा मांगी⏰ फ़िर एक कुर्सी पर अपने आप को धकेल दिया।

         थोड़ा संयत हुए तो मंच पर निगाह डाली तो पाया कि बारादरी की सदारत मशहूर शायर इक़बाल अशहर कर रहे हैं सदा की भांति 'डॉक्टर माला कपूर गौहर', गोविंद गुलशन, अजीज नबील, सोमदत्त शर्मा वगैरह वगैरह मंच संचालन की जिम्मेदारी इस बार तरुणा मिश्र ने संभाली। इस शुभ अवसर पर महफ़िल ए बारादरी की ओर से डॉक्टर वीणा मित्तल एवम् ईश्वर सिंह तेवतिया जी को सम्मानित किया गया।  प्रिय आलोक यात्री जी महफ़िल में हर जगह मौजूद नज़र आए। चूंकि हम देर से उपस्थित हुए थे सो कार्यक्रम तो अनवरत चालू ही था सो अन्य के अतिरिक्त जब हमारा नाम पुकारा गया तो हम जा पहुंचे देर से उपस्थित होने के लिए अपनी आदत के अनुसार सर्वप्रथम सभागार में उपस्थित सभी से क्षमा मांगी फ़िर गीत प्रस्तुत करने से पूर्व बचपन का एक किस्सा सभी से साझा किया कि जब मैं दसवीं में फेल हुआ तो घर पर पिताजी द्वारा शरीर की डेंटिंग पेंटिंग कर दी गई, फेल होने का दुःख तो हुआ किंतु ज्यादा ख़ुशी तब मिली जब अगले दिन पता चला कि प्रमोद और दिनेश गुप्ता भी फेल हो गए। 🙃🙃🙃🙃सच्ची सच्ची बताऊं अगर भगवान जी इस ख़ुशी के बदले स्वर्ग भी देता तो मैं तुरन्त ठुकरा देता। मेरे बाद आने वाले मित्रों जिसमें डॉक्टर उर्वी अग्रवाल भी को देर से आता देखकर आज वही ख़ुशी हुई (कोई भी मित्र बुरा न माने होली दूर है) ख़ैर हमारी प्रस्तुति कुछ यूं रही:

गीत
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तुम्हारे नाम का धागा, प्रिय फ़िर बाँध लेते हैं 
कि थोड़ा ही सही पर, ज़िंदगी को साध लेते हैं 
हमें मालूम है मुश्किल मग़र,उम्मीद है फिर भी 
भले किरदार हो उलझा मगर हम बांच लेते हैं 

कहानी कोई भी हो प्रेम की, लगती सभी इक सी 
यक़ी गर हो नहीं सुन लो, हँसी भी है हँसी जैसी 
जिसे कहना है जो कह ले, वही होगा जो होना है 
ज़माने से नहीं डरना, कि उसकी ऐसी की तैसी

क़सम लेते तो हैं लेकिन,कि बस एक आध लेते हैं
भले किरदार हो कैसा, उसे हम बांच लेते हैं 

तुम्हें मालूम है मेरी कहानी, फ़िर भी ले तू सुन 
कि जो अच्छा लगे हिस्सा तू उसमें से वही ले गुन
हमारा क्या हमें मालूम है, होगा नहीं कुछ भी 
तुम्हीं परखो तुम्हीं समझो,तुम्हीं उनमें से लो इक चुन

लगी दिल में जो बरसों से उसी से आँच लेते हैं 
भले किरदार हो उलझा मगर हम बांच लेते हैं 

सदा हमने सुनी दिल की तुम्हारे दिल की तुम जानो 
अगर नाराज हो हमसे कमान ओ तीर न तानो
भरोसा हो भले न जिंदगी का यार परसों तक 
हमीं वो हैं तुम्हारे काम जो आएँगे बरसों तक 

बशर कैसा भी हो हम देख उसको जाँच लेते हैं 
भले किरदार हो कैसा मगर हम बांच लेते हैं 

मेरी हर चाह तुमसे है, नया विश्वास तुमसे है
जो बाक़ी रह गईं अब भी, वो हर इक आस तुमसे है 
हुईं जो भूल भूले से, ग़िला उसका नहीं करना
मग़र ये सत्य भी जानो, कि हर उजलास तुमसे है 

अगर वरदान दे कोई तो पूरे पाँच लेते हैं 
भले किरदार हो उलझा उसे हम बांच लेते हैं 

तुम्हीं सर्वस्व हो मेरे,ये बिलकुल सत्य तुम जानो
कि मैं पहले जैसी हूँ ,मुझे अंतस से पहचानो
बुरा जो है भला उसका, हमेशा 'दीप' है करता 
यही है रीत सदियों से, इसे मानो कि ना मानो

        अंत में एक अच्छे और खूबसूरत कार्यक्रम के लिए टीम महफ़िल ए बारादरी को साधुवाद। और पूर्व की भांति इस बार भी समोसे, छोले चावल और स्वादिष्ट गाजर का हलवा। एक ब्राह्मण को इससे ज्यादा कि 
चाईदा।🙏🏾🙏🏾🙏🏾🌹🌹🌹🙏🏾🙏🏾

प्रदीप DS भट्ट 151224

          

Monday, 9 December 2024

"अति सर्वदा वर्जियेत"

रिपोर्ताज 
              "अति सर्वदा वर्जियेत"

"वफ़ा क्या है जफा क्या है मुझे तू क्यूं बताता है 
खफा होना है हो जा बेवजेह क्यूं तिलमिलाता है"

         सितम्बर 2022 में मेरे मित्र ने आग्रह किया कि साहित्योदय संस्था द्वारा अयोध्या में रामायण का आयोजन किया जा रहा है आप अवश्य भाग लें। मित्रों को मना करना शास्त्र सम्मत नहीं है🤪, इसलिए अगले दिन पंकज प्रियम जी से फ़ोन पर गूफ्तगू की और अजीवन कार्यकारी सदस्य के रूप में साहितोदय से जुड़ाव हो गया। शायद 19,20 नवंबर 2022 को कार्यक्रम होना था मैंने 17 नवंबर की लखनऊ की फ्लाइट की टिकट भी निकाल ली लेकिन अफ़सोस 14 की मध्य रात्रि मेरठ से फ़ोन आया कि अम्मा को हॉस्पिटल में भर्ती किया है जल्दी पहुंचो। हड़बड़ाहट में टैक्सी ली सीधे हैदराबाद एयरपोर्ट, फ्लाइट ली और दिल्ली फ़िर सीधे मेरठ लगभग 17,18 दिन बाद जब अम्मा स्थिर हुई तो विदा ली और वापिस हैदराबाद। वहां पहुंचने के कुछ दिन बाद ज्ञात हुआ कि इस प्रकरण में हैदराबाद लखनऊ की टिकिट कैंसिल करना ही भूल गया था, मेरे साथ ऐसा होता ही रहता है 2020 में तो कुछ ज़्यादा ही हुआ कुल मिलाकर 25000/= का फटका पड़ा। 😝😝😝

         जुलाई 2023 में मैं सेवा निवृत होकर मेरठ में आन बसा यदा कदा साहित्योदय का व्हाट्सअप देख लेता था किंतु मथुरा में कृष्णायन कब हुआ पता ही नहीं चला🙃  यही हाल शिवायन का भी रहा वो तो भला हो मेरी एक मित्र का जिन्होने व्यक्तिगत तौर पर फ़ोन किया कि शिवायन में तो जा रहे हो न। मैने ऐसे किसी भी कार्यक्रम की जानकारी से अनभिज्ञता ज़ाहिर की तो बोली यार तुम तो आजीवन कार्यकारी सदस्य हो तुम्हें कैसे जानकारी नहीं है हमने मोबाईल पर ही फ़िर मुंडी हिलाकर अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर की तो बोली पंकज से अभी बात करो। अब चूंकि मेरा जन्म रुड़की में हुआ है सो अपने आप को उत्तराखंड कहने में कोई गुरेज नहीं है। सो पंकज जी बात हुई और तय हुआ कि हम शिवायन में अपने हिस्से की साहित्यिक आहुति देने उपस्थित रहेंगे। पंकज जी ने पूछा था कि आप सत्र में रहेंगे या शिव पर कुछ पढ़ेंगे या दोनों में हमने दोनों के लिए हामी भर दी और 4 दिसंबर को टैक्सी लेकर सुबह 9.15 पर सीधे निष्काम सेवा ट्रस्ट पहुंच गए। कुछ देर बाद पंकज प्रियम से मुलाक़ात हुई तो हमने उन्हें सूचित कर दिया कि चूंकि मैं अपने लेखन से संतुष्ट नहीं हूं अतएव मैं अपना नाम वापिस लेता हूं किंतु किसी भी सत्र में सहभागिता कर सकता हूं।👏 डॉक्टर बुद्धिनाथ दादा एवम् आचार्य देवेंद देव जिनसे मैं झांसी कार्यक्रम में मिल चुका था के कर कमलों से विधिवत कार्यक्रम आरम्भ हुआ तत्पश्चात बारह ज्योतिर्लिंग के नामों से बारह ग्रुपों ने अपने अपने हिस्से की साहित्यिक आहुति डालनी शुरु की। 

         हर सत्र का एक अध्यक्ष 6,7,8  सदस्य और दो संचालक। कुल बारह सत्रों के लिए दो दिन आरक्षिति। 151 लोगों में से कुछ अनुपस्थित भी थे तो अगर मैं 110,120 भी उपस्थित सदस्य मानू तो कुल 120 रचनाएँ वो भी सिर्फ़ शिव पर आप ख़ुद ही सोचिए शिव के हाथ में त्रिशूल है, जटा में गंगा है, गले में सर्पों की माला, शरीर पर भभूत है आदि आदि। एक दो को छोड़कर सभी ने अपनी रचनाएँ इसी के इर्द गिर्द पढ़ीं। वो तो भला हो आशा शैली दीदी का जो हल्द्वानी से आई थीं और अपनी बेहतरीन ग़ज़ल से महफ़िल लूट ली। सामान्यतः मैं अनावश्यक रूप से सुझाव देने से बचता हूं किंतु साहित्योदय गीत गाने वाली किशोरी जी स्वर सुनकर लगा ही नहीं कि ये प्रोफेशनल गायिका नहीं हैं सो झिझकते हुए और इजाज़त लेकर सुझाव दे ही डाला कि आप अपनी आवाज़ का प्रोफेशनली इस्तेमाल करें बेहतर होगा लोकगीत। अब सुझाव तो उन्होनें मान लिया अब फलीभूत कब होगा राम जाने लेकिन मधुर स्वर को जाया नहीं जाना चाहिए।

         प्रथम दिन 6 सत्रों में से एक सत्र में डॉक्टर सविता मोहन जी ने अध्यक्षता की, संचालिका ने उनकी शान में इतने कसीदे पढ़े कि मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि मैं अब तक इनसे क्यूं नहीं मिला। 🙊🙊🙊लेकिन लेकिन लेकिन जब सत्र के सभी सदस्यों ने शिवलिंग पर अपने हिस्से की आहुति दे दी तो उन मोहतरमा ने माइक पकड़कर जैसे ही अपनी चोंच खोली मैं समझ गया ये पक्की लेफ्टिस्ट है, लोग दो मिनिट में ही असहज हो गए किंतु सविता जी अपनी चोंच को विश्राम देने के मूड में कतई नहीं दिखीं, 😩😩😩😩अनर्गल प्रलाप करती रहीं मैंने पास बैठे सज्जन से कहा अब अगर इन्होंने और प्रवचन दिया तो मैं...... शायद भोले मेरी और चल रही स्थिति से स्वयं असहज हो गए थे सो जैसे ही सविता जी ने अपने अनर्गल प्रलाप में मां गंगा की ठेकदार बनकर उद्घोष करने लगी कि गंगा को नहाकर मैली न करें एक मोहतरमा हत्थे से उखड़ गई और उन्हें खरी खोटी सुना डाली वे तुरन्त सतर्क हुईं और कवर करने की असफल चेष्टा करते हुए धन्यवाद कहकर अपनी सीट पर जा बैठी। एक सत्र में विजय कुमार द्रोणी जो कि gst में dy कमिश्नर हैं से इन मोहतरमा को सीख लेनी चाहिए कि मंच पर कैसा व्यवहार करना चाहिए विषयांतर होना अलग है और अपनी कुंठित मानसिकता का प्रदर्शन करना अलग।

         लंच के बाद अचानक गहमा गहमी बढ़ने पर मैंने भी उत्सुकता वश पीछे देखा तो पता चला ये पर्वतारोही संतोष यादव हैं, ख़ैर एंकर ने फ़िर गलत बताया कि ये भारत की प्रथम पर्वतारोही हैं जब कि प्रथम पर्वतारोही बछेंद्री पाल हैं जिन्होंने 1984 में प्रथम बार एवरेस्ट फतह किया था, संतोष यादव विश्व की प्रथम पर्वतारोही हैं जिन्होंने दो बार एवरेस्ट फतेह की है वो भी मई 1992 में एवं पुनः मई 1993 में।  किंतु किंतु किंतु संतोष यादव भी विषयांतर हो गईं उन्हें ये बताने में हर्ष हुआ कि वे बिहार से हैं किंतु फ़िर अपनी व्यक्तिगत नियमों कायदों को उपस्थित जन समूह पर थोपने का प्रयास करती नज़र अंत। ये जानने में किसी को इंट्रेस्ट नहीं है कि संतोष यादव सफ़ेद कपड़े ही क्यों पहनती हैं, वे साबुन क्यों नहीं लगाती, उनका ये कहना कि मैं उत्तराखंड के लोगों से कहती हूं कि आप दूसरे राज्यों से आए हुए लोगों के कपड़े न धोएं क्यों कि आप देव भूमि से हो वरन उत्तराखंड आने वाले सैलानी अपने साथ एक तौलिया दो चादर लेकर आवें। अगर सब ऐसा करेंगे तो उत्तराखंड के लोग क्या करेंगे जिनकी आय का महत्वपूर्ण हिस्सा सैलानियों से प्राप्त होने वाली आय ही है। गज़ब है ऐसी बुद्धिमता पर ✊✊।  ख़ैर प्रथम दिन की अंतिम प्रस्तुति के तौर पर दो बालिकाओं का नृत्य आकर्षक का केंद्र रहा।
         
         रात को स्वप्न में भोले नाथ ने दर्शन दिए मुझे लगा थोड़े गुस्से में हैं पूछने पर कहने लगे अच्छा हुआ तुमने कुछ नहीं पढ़ा वरना तुम्हें इस त्रिशूल से कोंच देते 
अगर कल भी यही सब हुआ तो...... आगे के शब्द उन्होंने जान बूझ कर हवा में तैरने के लिए छोड़ दिए। हमने सबकी ओर से क्षमा मांगी और बताया प्रभु कल भी यही सब होगा तो कहने लगे हम सुबह चार बजे ही गंगा स्नान कर पार्वती के साथ कैलाश को चले जाते हैं अन्यथा अगर कहीं हमें गुस्सा आ गया तो दस पाँच को समय से पहले ही अपने पास बुलवा लेंगे। 🤤🤤🤤हम आगे कुछ कहते इससे पहले ही बोले सुनो ये इन दोनों बुद्धिमान स्त्रियों को बता देना हरिद्वार में ज़्यादा प्रवचन न दें यहां सब पहले से ही ज्ञानी हैं कहीं ज्ञान उल्टा न पड़ जाए। हम पहले दिन की भांति सुबह उठे फ्रेश हुए और 8 बजे नाश्ता 🍰🍰🍰🥘🥘 पेट में डाल कर सुबह की ताज़ी हवा का आनंद लेने बाहर निकल पड़े। दूसरा दिन भी पहले दिन की ही तरह ठीक ठाक बीता। बस किसी ने भी अनर्गल प्रलाप नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड एवम् पूर्व राज्यपाल महाराष्ट्र भगत सिंह कोश्यारी जी के हाथों दो दीनी शिवायन का समापन हुआ। इसी अवसर पर पंकज प्रियम ने अगले वर्ष 2025 में 8 नवंबर को कुरुक्षेत्र में कृष्णायन की घोषणा कर दी साथ ही 
कृष्णायन में भागीदारों का लक्ष्य 251 लोगों का रक्खा। ख़ैर ये उनका अपना लक्ष्य है किंतु मेरा मानना है कि कम लोगों की भागीदारी रखने से कार्यक्रम में पकड़ बनी रहती है अन्यथा रायता फैलता ही है। कार्यक्रम कोई भी हो अर्थ तो लगता ही है।

         और अंत में इस कार्यक्रम की उपलब्धि के तौर पर प्रिय प्रेरणा सिंह एवम् अनुरानी शर्मा का बेहतरीन संचालन देखने को मिला। ऐसा इसलिए नहीं कि बाक़ी ने संचालन ठीक नहीं किया वरन इन दोनों ने ही मंच पर असहज होती व्यवस्था को बेहतर ढंग से संभाला। एक एंकर का यही श्रेष्ठ गुण होता है कि वह स्थिति को किन्हीं भी परिस्थितियों में अपने हाथ से जाने न दे। कुछ प्रस्तुतियां बेहद शानदार रहीं। कुल मिलाकर शिवायन की कुछ मधुर स्मृतियों में संस्कृति मिश्रा, बुद्धिनाथ दादा से मिलन। बाकी सब चंगा है जी।😄😄😄😄😄😄😄😄

अंत में साहित्योदय उत्तराखंड की अध्यक्ष शोभा पाराशर एवम् सचिव अर्चना झा एवम् उनकी टीम( बाक़ी सदस्य क्षमा करें, उनसे मिलना नहीं हुआ तो नाम नहीं मालूम) द्वारा किए गए प्रयासों इंतज़ामों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं!!!!!🌹🌹🌹🌹🌹


प्रदीप डीएस भट्ट 91224


         
  

Thursday, 17 October 2024

" हम जैसों से बच के रहिओ "

रिपोर्ताज 

"हम जैसों से बच के रहियो"

         आलोक यात्री जी द्वारा आमंत्रण प्राप्त होने पर हम "मैं जिंदगी का गीत गाते हुए महफ़िल ए बारादरी का हिस्सा बनने "सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल"  नेहरू नगर गाज़ियाबाद जा पहुँचे। अब रविवार का दिन हो तो मन तो यही करता है कि घर पर शेष शैय्या पर विराजे विराजे बस आर्डर देते रहो और अपने कुक्ष को भरते रहो। ये विषय अलग है कि हम जैसे ज्ञानी ध्यानी श्री श्री 1008 'स्वामी प्रदीपानंद' महाराज जी छ: दिन रात का खाना छोड़ने का ढिंढोरा पिटते रहें और रविवार को पूरे दिन चरते रहें 😝😝😝। 

         ख़ैर "हुआ यूँ के" वैसे तो ये टाइटल आलोक जी के नाम रजिस्टर्ड है किन्तु अनुज होने का फ़ायदा उठाते हुए मैंने झाँसी प्रवास का रिपोर्ताज इसी शीर्षक से  फ़ेसबुक पर पोस्ट भी कर दिया था🌹🙏🏾🙏🏾 हास्य व्यंग्य का आनन्द भी तभी आता है जब आप निष्पक्ष रूप से अपने ऊपर भी उसे लागू करें। मिथ्या तो यही है कि मेरा प्रयास यही रहता है 😹 । मैं इससे पूर्व भी महफिल ए बारादरी का एक कार्यक्रम यहीं एवं दूसरा भव्य पुस्तक लोकार्पण समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका हूँ किन्तु अपनी आदत के अनुसार मैं पहले दो तीन कार्यक्रम सिर्फ़ देखने एवं समझने के लिए अटेंड करता हूँ उसके बाद ही अपनी क़लम सत्य निष्ठा के अनुसार चलती है।😇

        सो हुआ यूँ के 13 अक्टूबर को 11 बजे जैसे ही स्कूटी स्टार्ट की तो उसका डिजिटल मीटर गुस्से 😡से उबलते हुए बोला अबे कित्ते आलसी हो बे🙃 साल होने को आया हमें कब ठीक करवाओगे अगर आज नहीं तो फिर छोटी आँख करके हममे झाँक कर मति देखना कि कित्ता तेल बचा है, कसम से हम दिखते को भी छुपा लेंगे फिर किसी दिन 2,4 किलोमीटर घसिटवायेंगे तब हमारी क़ीमत पता चलेगी। हमने हाथ जोड़कर कहा प्रभु ये जुल्म कतई न करियो हम आज ही आपकी इच्छा पूर्ति किये देते हैं सो पहले भूरा मिस्त्री ढूंढा। अजब तमाशा है नाम भूरा रंग काला देखते ही बोला 950 हमने कहा न भाई अब तो 11.30 हो रहे हैं। वो मुस्कराते😊 हुए बोला जनाब मैंने नए मीटर के रेट बताएं हैं टाईम नहीं मैंने भी कहा कदी  हँस भी लिया करो। खैर मामला 850 में निपटा। मीटर चेंज करके बोला कौन सा मॉडल है हमने कहा 2014 तो हूं करके बोला अभी तक 12023  किलोमीटर ही चली है। अब मुझे बारादरी में पहुँचने की जल्दी थी सो पेमेंट किया और सीधे बस स्टैंड, स्कूटी पार्क की 12.40  की बस ली और लो जी ठीक 14.45 पर हम सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में, इस बार भी प्रथम दर्शन आलोक जी के ही हुए। अब भैय्या संयोजक हैं तो जिम्मेदारी भी है और जो उसे निभा ले जाए उसी का नाम आलोक यात्री है। फ्रेश होने आरामगाह गए तो ख्याल आया कि अगर मीटर नया है तो रीडिंग पुरानी कैसे इसका मतलब... बस पूछो मत 😊 धीरे धीरे महफिल सजने लगी और 15:00 की जगह ठीक 16:00 बजे सभा शुरू हो गई। लोगोँ को समय की क़ीमत कब समझ आएगी। इस बार मंच मूर्ति के रूप में आदरणीय सुरेंद्र सिंघल जी ने अध्यक्ष का भार अपने कंधो पर वहन करने की अनुमति प्रदान की। गोविंद गुलशन जी, डॉक्टर माला कपूर गौहर ,उर्वशी अग्रवाल, कथा रंग के अध्यक्ष शिवराज जी, नेशनल बुक के लालित्य ललित एवं वैंकूवर कनाडा से पधारी प्राची चतुर्वेदी रंधावा ,अन्य के अतिरिक्त हम तो थे ही भैय्या 😎

        आशीष द्वारा प्रस्तुत सुन्दर सरस्वती वंदना के अतिरिक्त एक से बढ़कर एक क़लाम पेश किए गए हमने भी अपनी गज़ल प्रस्तुत की। 


नमक दरिया में थोड़ा सा मिला दूँ 
मैं अपनी आँख का आँसू गिरा दूँ 

ग़मों के साए में जीना है मुश्किल 
ख़ुशी के वास्ते तुमको भूला दूँ 

जो समझा ही नहीं अश्कों की क़ीमत 
तुम्हीं बोलो उसे मैं क्या सिला दूँ 

जहाँ भी जाऊँगी वो ढूँढ लेगा 
तुम्हीं बोलो कहाँ ख़ुद को छुपा दूँ 

जहाँ के सारे ग़म मेरा मुकद्दर 
इन्हें ले जाके किस जगह बिठा दूँ 

बड़ी बा बातेँ वो सबसे कर रहा है 
कहो तो मैं भी कुछ तेवर दिखा दूँ

मकर भर के पड़ा है जाने कब से 
औ तुम कहते कि मैं इसको जगा दूँ 

कि कब से सीना जोरी कर रहा है 
कहो तो 'दीप' मैं उसको डरा दूँ

         हमसे पहले भी और हमारे बाद भी वास्तव में कुछ अच्छी रचनाएँ पढ़ी गईं। गोविंद गुलशन, मासूम गाज़ियाबादी, सुरेंद्र जी, माला कपूर उर्वशी अग्रवाल के अतिरिक्त भी कानों को बहुत दिन बाद कुछ अच्छा सुनने को मिला।
पिछले दो बार की बनिस्पत मैं इस बार अंत तक डटा रहा, अच्छी बात ये रही कि कार्यक्रम 8.15 पर समाप्त हो गया जिससे  मुझे 8.40 की मेरठ की बस मिल गई और मैं ठीक 22:45 पर घर। बस से उतरकर स्कूटी से घर के रास्ते में ठंडी हवा ने कानों में सरगोशी की कि हुजूर अगले प्रोग्राम में कुर्ता पायजामा नहीं 🙂‍↔ नई तो प्यार हो जाएगा 🤪🤪🤪

प्रदीप डीएस भट्ट-161024

" ये नया भारत है मिस्टर ट्रूडो "

    
" ये नया भारत है मिस्टर ट्रूडो "

    एक कहावत है जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की तरफ़ भागता है। आजकल ऐसा ही कुछ अंतरराष्ट्रीय पटल पर देखने को मिलता है। जिस भी देश के नेता को अपने देश में अपनी गिरती साख बचानी हो या विपक्ष से ध्यान हटवाना हो तो वह भारत से उलझ जाता है या कुछ गलत टीका टिप्पणी कर देता है। देर सवेर ही सही भारत उसको ऐसी धोबी पछाड़ मारता है कि उस देश का नेता अच्छी भली सत्ता गवां देता है या अर्थ दण्ड का ऐसा झटका लगता है जिससे वह भारत के सामने सरेंडर या दण्डवत कर अपनी जान बचाता है। अगर यक़ी नहीं हो तो पाकिस्तान और मालदीव की हालात देख लें। जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है तो उसकी स्थिति तो और भी ज्यादा विकट है या कहें कि साँप छछूंदर वाली है। ffta की ग्रे लिस्ट से निकलने के लिए वह अरसे तक हाथ पाँव मारता रहा लेकिन हर बार हताशा ही हाथ लगी। बैक डोर से हाथ पाँव जोड़े तब जाकर भारत ने उसे ग्रे लिस्ट से निकालने के लिए ftta को इशारा किया लेकिन पाकिस्तान तो पाकिस्तान ठहरा वो तो सुधरने से तो रहा और वैसे भी जो सुधर जाए उसे पाकिस्तान थोड़े ही कहते हैं।

        9,10 सितम्बर-2023 को जब भारत ने भव्य G20 का आयोजन किया था तब उसका थीम था "वसुधैव कुटुम्बकम" यानि पूरा विश्व एक परिवार है। इस सम्मेलन में उपस्थिति दर्ज कराने पहुँचे विश्व के 20 पावर फुल देशों के प्रतिनिधियों ने भारत की उत्कृष्टता के दर्शन भी किए । चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एवं रूस के राष्ट्रपति अपरिहार्य कारणों से इस सम्मेलन में उपस्थित नहीं हुए थे किन्तु उनके प्रतिनिधि अवश्य उपस्थित रहे। विदाई के समय कनाडा के राष्ट्रपति जनाब जस्टिन ट्रूडो विमान की खराबी के कारण तय समय के बाद भी भारत में रुके ही रहे। ऐसी स्थिति में मेजबान होने के बावजूद भारत ने उनके लिए समान्य से अधिक की सहायता नहीं की कारण मिस्टर ट्रूडो कनाडा में रह रहे सिख अलगाववादी नेताओं का पक्ष लेना माना गया। भारत ने ट्रूडो को उनके अवांछनीय व्यवहार के लिए कनाडा में भी धोया और भारत में भी। पंजाब में रह रहे पंजाबियों की सबसे बड़ी इच्छा यही रहती है कि मुंडा़ कनाडा सैटल हो जाए या रैपर बन जाए। ख़ैर कुछ दिनों पहले जस्टिन ट्रूडो को फ़िर खुजली मची और उन्होंने कनाडा में अपनी गिरती साख को बचाने के लिए भारत पर फिर से बे सिर पैर के आरोप लगा दिए जैसे कि निज्जर की हत्या में भारत की खुफ़िया ऐजेंसी RAW के एक्स एजेंट शामिल हैं और हत्या भारत के लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने की है जिसे सूचनाएँ RAW ने मुहैय्या कराई हैं। मिस्टर ट्रूडो  यहीं नहीं रुके वरन भारत के राजदूत सहित छ: राजनयिकों को कनाडा से ओटोया ( कनाडा की राजधानी) से जाने के लिए कह दिया। भारत ने इस बार तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कनाडा में अपने राजदूत संजय वर्मा को भारत वापिस बुलाने का आदेश तो दिया ही  साथ ही भारत में कनाडा के छ: राजनयिकों को 19 अक्तुबर तक भारत छोड़ने का फरमान भी जारी कर दिया। निश्चित रूप से कनाडा ने भारत से इस प्रकार के व्यवहार की उम्मीद सपने में भी नहीं की थी सो जस्टिन ट्रूडो इस खबर से पूरी तरह बौरा गए। जल्द ही कनाडा में चुनाव होने वाले हैं और वर्तमान रेटिंग के अनुसार ट्रूडो की रेटिंग रसातल की ओर अग्रसर है! कोढ़ में खाज वाली स्थिति तब पैदा हो गई जब लिबरल पार्टी ऑफ कैनेडा के प्रमुख ने ट्रूडो को स्वयं 28 अक्तुबर तक त्यागपत्र देने के लिए कह दिया। ट्रूडो  को ये झटका कुछ ज्यादा ही जोर से लगा है।

        जस्टिन ट्रूडो ने ऐसा पहली बार नहीं किया है जब पिछले साल जून-2023 में कनाडा ने निज्जर जो कि कनाडाई नागरिक है की हत्या पर भारत पर आरोप लगाए थे तब भी अंतर्राष्ट्रीय पटल पर काफ़ी हो हल्ला मचा था। ये विषय अलग है कि कनाडा स्वयं भी निज्जर को एक आतंकवादी मानता रहा है वरना क्या कारण रहे जो कनाडा ने उसकी हवाई यात्राओं पर प्रतिबंध लगा रक्खा था। चूँकि बात चुनाव में वोटों की है तो जस्टिन ट्रूडो  को कनाडा में रह रहे लगभग 2.1 सिखों के वोटों की दरकार है जब कि सिखों से ज्यादा वहाँ अन्य भारतीय बसते हैं जिनका वोट प्रतिशत सिखों से ज्यादा है किन्तु कनाडा भी तुष्टीकरण की राजनीति ही करता नजर आता है। जस्टिन ट्रूडो की स्थिति तब और खराब हो गई जब न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ नेता जगमीत सिंह ने 2022 में जस्टिन ट्रूडो को दिया गया राजनैतिक समर्थन यह कहते हुए वापिस ले लिया कि वह य़ह समझौता तोड़ रहे हैं क्यूँ कि ट्रूडो बेहद कमजोर, स्वार्थी और एक महा भ्रष्ट नेता हैं। इसका कारण भी बड़ा ही हास्यास्पद कम दयनीय ज्यादा लगता है, वोट की खातिर ट्रूडो कनाडा के हर छोटे बड़े गुरुद्वारे में सरापा प्राप्त कर रहे हैं।आख़िर क्यूँ?  जगमीत सिंह चाहते हैं कि ट्रूडो निज्जर की हत्या में भारत को घेरे लेकिन ट्रूडो आज तक निज्जर की हत्या में कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके यहाँ तक कि निज्जर का मृत्यु प्रमाण पत्र भी। जस्टिन ट्रूडो की दोगली नीति का एक उदाहरण और है।  कनाडा में पाकिस्तानी कट्टरपंथीयों द्वारा हिंसक वारदातें की जाती हैं 2020 में एक बलूच महिला करीमा बलूच की हत्या कर दी गई। इसी कनाडाई पुलिस की रिपोर्ट है कि करीमा डूब कर मरी, इसी प्रकार एक बलूच पत्रकार की भी पाकिस्तानियों द्वारा हत्या कर दी और उसे भी कनाडाई पुलिस ने.............।

          भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात्य जब अपना संविधान तैयार किया तो उसमें ये वाक्य कनाडा के संविधान से लिया गया। " संघवाद के केन्द्र प्रसारक रूप जिसमें संविधान में केंद्र राज्यों से मजबूत होता है " कनाडा की कुल आबदी 39,854,546 है यानि दुनिया की आबादी का लगभग 0.49 प्रतिशत। इसमें 15 लाख भारतीय हैं जिनमें सिखों की जनसंख्या 7,70 हजार है। जनसंख्या के हिसाब से कनाडा विश्व का 38वां देश है जहाँ तक घनत्व का प्रश्न है यह प्रत्येक 4 पर 1 किलोमीटर है। लगभग 80 % लोग शहरों में रहते हैं।भारत की IT कंपनियों में से इन्फोसिस, टी सी एस, विप्रो,  एच सी एल टेक्नोलॉजी एवं टेक् महिंद्रा कनाडा में अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं। जहाँ तक भारत से कनाडा के निर्यात का प्रश्न है तो भारत से फार्मास्यूटिकल उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर,इस्पात की वस्तुएं, मोती, विद्युत उपकरण, कार्बनिक रसायन, रबड़,  प्लास्टिक, चाय, कॉफ़ी, ऑप्टिकल फाइबर, चिकित्सा उपकरण के साथ ही डेयरी उत्पाद भी शामिल हैं वहीं कनाडा से भारत दाल,वुड्स पल्प, न्यूजप्रिंट,पोटाश, aisbestas, आइरन, स्क्रैप, कॉपर खनिज व केमिकल आयात करता है। दोनों देशों के बीच 2023-24 में 8.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है। आज जब युद्द से ज्यादा व्यापार महत्वपूर्ण है तब कनाडा क्यूँ अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने पर उतारू है। भारत तो कनाडा की जगह कोई और देश से व्यापार बढ़ा लेगा लेकिन क्या कनाडा भारत से ये सब अफोर्ड कर सकता है.  1.45 करोड़ की जनसंख्या वाले देश की कितनी खपत है वो सभी देश भली भांति समझते हैं किन्तु कनाडा फ़िर भी खां म खां पंगा ले रहा है। 

       अब जब भारत ने हरदीप सिंह निज्जर मुद्दे पर कनाडा को धोबी पछाड़ दिया तो वह रोता हुआ "फाइव आइज " ( अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड और कनाडा का गुप्तचर गठबंधन है) से भी शिकायत की कि मोदी काका ने ज्यादा जोर से मारा है। बाकी देश तो शांत रहे किन्तु अमेरिका ने जरूर पन्ननू के विषय में थोड़ा बहुत हो हल्ला मचाया कि CRPF का एक अफ़सर पन्ननू की हत्या करवाने की साज़िश में शामिल है। पहले तो ये एक साज़िश है जो पूरी नहीं हुई।भारत सरकार ने इस विषय में आवश्यक जानकारी अमेरिका के साझा भी की लेकिन इसी बीच ये मसला सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और फिर उस अफ़सर के फेवर में जिस तरह की मुहिम चली उससे भारत सरकार भी अचंभित रह गई। अब कनाडा को बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा कि वो भारत से कैसे पेश आए जिससे बिगड़ी बात बन जाए।  भारत की कूटनीति की चर्चा आजकल विश्व पटल पर एक नजीर बनती जा रही है। इजराइल -फ़िलीस्तीन -हमास  युद्द हो या रूस यूक्रेन युद्ध सभी को लगता है कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी एक मात्र नेता हैं जो इन युद्धों को रुकवाने में सक्षम है। भारत किसी एक पक्ष में कभी नहीं रहा 2014  के बाद जिस तेजी से स्थितियों ने करवट ली है उस स्थिति में भारत अब राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धांत का अक्षरशः पालन करता है। एक तरफ वह अमेरिका आस्ट्रेलिया जापान के साथ मिलकर क्वाड समूह बनाता है जिसका उद्देश्य चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता है। क्वाड का गठन चीन की बढ़ती विस्तारवादी नीतियों को रोकने के उद्देश्य से किया गया है। वहीं भारत ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है जिसमें ब्राजील, रूस, चीन, भारत के अतिरिक्त साऊथ अफ्रीका है। इन चार देशों की जीडीपी का विश्व में हिस्सा 43% है। विश्व के तेजी से बदलते पॉवर ऑर्डर को देखते हुए हर देश इसमें शामिल होकर अपने को सुरक्षित करना चाहता है। पाकिस्तान इसका सदस्य बनने के लिए छटपटा रहा है किन्तु उसे अभी तक कामयाबी हाथ नहीं लगी है।

         कनाडा में अगले अक्तुबर यानि 2025 में चुनाव होने वाले हैं।जिस तरह से ट्रूडो की लोकप्रियता घट रही है उससे उन्हें आभास हो गया है कि वो अगले चुनाव में सत्ता से बाहर होने वाले हैं अगर उससे पहले वे इस्तीफा न दे दें। ख़ैर मसला ये है कि ट्रूडो ऐसा कर क्यूँ रहे हैं। आखिर कनाडा एक बड़ा देश है उसे ये कतई शोभा नहीं देता कि वो किसी भी देश पर अनाप शनाप आरोप लगा दे उसे ऐसा करने से पहले दस बार सोचना चाहिए।  ज़रा सी लापरवाही भरी टिप्पणी से अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं जिन्हें पटरी पर लाने में कई बार दशकों लग जाते हैं।ताज़ा उदाहरण भारत चीन सीमा विवाद को लेकर समझा जा सकता है जहाँ चीन की एक ग़लती से जून 2020 जारी तनाव अब जाकर थोड़ा घटना शुरू हुआ है। जहाँ तक कनाडा का मसला है मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जब से ट्रूडो सत्ता में आए हैं उनके बयानों से भारत ही नहीं वरन अमेरिका चीन के अतिरिक्त कई अन्य शक्तिशाली देश भी असहज हुए हैं या परेशान हुए हैं। ये विषय अलग है कि बिना अमेरिका की सहमति के ट्रूडो कुछ भी कर पाने की स्थिति में हैं।  अमेरिका सबका है और किसी का नहीं। आजकल अमेरिका गाता फिरता है कि भारत - अमेरिका संबंध हिमालय की ऊंचाई की तरफ बढ़ रहे हैं जब कि अभी सितंबर में जब प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका गए तो इसी अमेरिका के उकसावे पर गुरुवंत सिंह पन्ननू ने अमेरिका जिला न्यायालय में एक याचिका दायर की जिसमें उसने बताया कि भारत सरकार उसे मरवाना चाहती है इसलिए उसने न्यायालय से गुहार लगाई की  न्यायालय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सहित भारत को समन जारी करे।  कनाडा की पुलिस भी ट्रूडो से परेशान नज़र आती है वर्ना क्या कारण है कि निज्जर की हत्या के विषय में वो जो भी टिप्पणी करती है उसमें विरोधाभास नज़र आता है। कनाडाई पुलिस अपनी भद्द कैसे पिटवा रही है उसका उदाहरण एक और है इसी साल जून में कनाडाई पुलिस ने एक दावा नहीं नहीं नहीं रहस्योद्घाटन किया कि वे 1985 में हुए बम विस्फोट जिसमें एयर इंडिया का विमान कनिष्क हादसे का शिकार हो गया था और उसमें 300 लोग मारे गए थे जिसकी जाँच कनाडाई पुलिस अब भी कर रही है। निश्चित रूप से ये हास्यास्पद है कि कनाडाई पुलिस 39 वर्ष बीतने पर भी अंतरराष्ट्रीय हादसे की जाँच करने में नाकाम रही है अब ये जाँच कब तक चलती रहेगी इसका कोई उत्तर कनाडाई पुलिस के पास नहीं है। अब जब कनाडाई पुलिस 39 साल में एक जाँच न कर पाई हो तो उसने 1 वर्ष में कैसे पता लगा लिया कि निज्जर की हत्या में भारत, RAW विश्नोई गैंग शामिल है। हद तो तब हो गई जब ट्रूडो ने कनाडाई संसद में निज्जर की हत्या पर एक मिनट का मौन रखने का ऐलान कर दिया जब उनकी ही सरकार के सम्मानित सदस्यों ने विरोध किया तो कार्यक्रम कैंसिल कर दिया। भई या तो आप पहले ग़लत थे या अब। अब इस बात की समझ आ जाए तो उसे ट्रूडो थोड़े ही कहेंगे। भाई पिछले सात साल में उत्तर प्रदेश पुलिस से ही कुछ सीख लेते या भारत सरकार को रिक्वेस्ट करके उत्तर प्रदेश पुलिस से एक टीम बुला लेते वो कनिष्क और निज्जर दोनों ही जाँचों को निश्चित 39 दिनों में ही निपटा देती, सबूत के तौर पर दोनों हादसों के षड्यंत्र में शामिल लोगों के पैरों पर गोली मारती और कनाडाई पुलिस को सौंप देती हाँ अगर कोई साज़िश कर्ता ज्यादा ची चपड़ करता तो उसका राम नाम सत्य भी कर देती। सीखो कुछ उत्तर प्रदेश पुलिस से कनाडाई पुलिस। वैसे भी भारत की नज़र में मिस्टर टेढ़ा ट्रूडो एक जोकर से ज्यादा कुछ नहीं हैं जो समय समय पर विश्व पटल पर अपनी जोकराना हरकतों से सबका मनोरंजन करता नज़र आते हैं।

फाइव आइस बनाम थ्री आइस 
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         मैं पहले ही ऊपर बता चुका हूँ कि अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा ने फाइव आइस नामक ग्रुप बना रक्खा है जिसका काम दूसरे देशों में जासूसी कर उसकी सूचना आपस में शेयर की जाती है। ये विषय अलग है कि ये एक दूसरे को काटने का भी प्रयास करते रहते हैं।अब भारत, चीन, ब्राजील रूस और अब साउथ अफ्रीका भी भारत रूस चीन की तिकड़ी के साथ आन मिला है तो जो काम फाइव आइस करती है। वही अब त्रिनेत्र करेगा।भारत की तरफ से कनाडा को कुल 26 अपराधियों के प्रत्यर्पण के लिए अनुरोध किया गया है किन्तु कनाडा ने अभी तक मात्र 5 अनुरोध ही स्वीकार किए हैं। गुरजीत सिंह,  गुरजिदर सिंह, गुरप्रीत सिंह, अर्शदीप सिंह एवं लखविदर सिंह लांडा़ सहित कईं आतंकियों के प्रत्यार्पण के केस पिछले दस सालों से भी ज्यादा पेंडिंग हैं, कनाडा उन पर कब सुध लेगा कोई नहीं जानता। भारत जहाँ अपने पड़ोसियों से मधुर संबन्धों का हामी है वहीं पड़ोसियों को है कि भारत की तरक्की से जलने से ही फुर्सत नहीं है फिर भी भारत के प्रयास जारी हैं। पाकिस्तान का ध्येय वाक्य ही है कि हम नहीं सुधरेंगे, पाकिस्तान जहाँ भारत का बच्चा है वहीं बांग्लादेश भारत का पोता हुआ न पर ससुरा पूरा अपने बाप पर गया है। कितना भी अच्छा कर लो गद्दारी करेगा ही आप इसे यूँ समझ सकते हैं जैसे कि भारत एक हार्ड वेयर है जिसके अंदर सनातन का सॉफ्टवेयर inbuilt होकर ऊपर से ही आया है जब कि बाकी जबरदस्ती उस सॉफ्टवेयर को uninstal कर अपने बनाए सॉफ्टवेयर डाल रहे हैं और परिणाम सामने है इसलिए भारत की आवश्यकता है कि वह अन्य देशों के साथ गठजोड़ कर अंदर बाहर सब कुछ साधने की कोशिश करता रहे। हाँ अगर कनाडा को ये मुट्ठीभर चरमपंथी ज्यादा भाते हैं तो बेहतर हो जस्टिन ट्रूडो  कनाडा के एक हिस्से को खालिस्तान घोषित कर दें।

         जस्टिन ट्रूडो की गलतियों का पिटारा जिसमें से न जाने कब कौन सा कबूतर निकल आए जो रायता फैला दे। पिछले वर्ष यू ए ई के खिलाफ कनाडा ने कुछ आपत्ति जनक कह दिया परिणामस्वरुप उन्होंने कनाडा में पढ़ने वाले अपने विद्यार्थियों को वापिस बुला लिया जिससे कनाडा की जी डी पी को क्षति उठानी पडी । 2024 के आंकड़ों के अनुसार 13 लाख भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए जिसमें से 3.37 लाख अमेरिका एवं 4.27 कनाडा गए। अब सोचिए अगर भारत अपने 4.27 लाख छात्रों को वापिस बुला ले तो क्या होगा। ये बात हमें समझ आती हैं किन्तु टेढ़े ट्रूडो को नहीं तो फिर ऐसे शख्स का पद पर रहने का क्या औचित्य है इसलिए उनकी पार्टी उनसे सख्त नाराज है। वैसे अभी हाल ही में ट्रूडो ने  स्वयं माना कि उन्होंने निज्जर हत्याकांड पर जो आरोप लगाए हैं उनके सबूत के तौर पर उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं है।  बकौल भारतीय उच्चायुक्त वर्मा जी के अनुसार हर वर्ष सुनहरे भविष्य के लिए भारतीय छात्रों का उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना आम बात है किन्तु शिक्षा पूरी होने पर नौकरी न मिल पाने पर छात्र चाय समोसे, पकौड़े बेच रहा है। ऐसा इसलिए भी कि वहाँ के विद्यालयों में अमूमन हफ्ते में एक दिन क्लास लगती है तो छात्र पार्ट टाईम काम करते हैं किन्तु जब शिक्षा पूरे होने पर भी कुछ नहीं हो पाता तो बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं। 2022 से ओहोयो में पदस्थ उच्चायुक्त वर्मा जी बताते हैं कि हर हफ़्ते दो बच्चों के शव भारत भेजे जाते रहे हैं।निश्चित रूप ये एक गंभीर विषय है जिस पर भारतीय माता पिता को चिंता करने की आवश्यकता है। बेहतर होगा वे बच्चों की हायार एजूकेशन के साथ ये भी सुनिश्चित करें कि बच्चे जिंदा भी रहें. इस विषय में मोदी सरकार को भी चिंता के साथ साथ चिंतन की आवश्यकता है 

         आज भारत जिस तेजी से प्रगति पथ पर अग्रसर है उस अनुपात में उसके दुश्मनों की संख्या बढ़नी भी तय है जो सामने तो भारत का गुणगान करते हैं किन्तु पीठ पीछे प्रगति पथ में बाधा खड़ी करने में लगे रहते हैं। खैर मेरी छटी इंद्री मुझे सचेत कर रही है और एक सम्भावना भी बता रही है कि हो सकता है निज्जर की हत्या पाकिस्तान की बदनाम इंटेलिजेंट ऐजेंसी ISI द्वारा की गई हो और हो सकता है इसका इशारा अमेरिका ने दिया है क्यूँ कि अमेरिका भविष्य में  चीन, रूस भारत की तिकड़ी के साथ आने से अपने आपको असहज महसूस कर रहा है। तो हो सकता है मेरा अंदाज़ा सही हो। वैसे भी एक पुरानी कहावत है कि पानी में आग लगा कर जमालो दूर खड़ी तमाशा देखे। भारत कनाडा एक दूसरे का सिर फोड़ने में व्यस्त रहें और अमेरिका पाकिस्तान को मोहरा बना अपना उल्लू सीधा करते रहे।

         और अंत में अब जब 5 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव का परिणाम घोषित हुआ तो जैसी उम्मीद थी कमला हैरिस कहें या कमला हारी आख़िरकार चुनाव हार गई और डोनाल्ड अमेरिकी राजनीति में अपनी जिजीविषा के दम पर पुनः ट्रम्प साबित हुए। अगर आप अमेरिकी राजनीति पर एक दृष्टि डालें तो पाएंगे कि ऐसा पहली बार हुआ जब कोई राष्ट्रपति गैप देकर विजयी हुआ। इन चार वर्षों में डोनाल्ड पर असीमित आरोप प्रत्यारोपों का दौर चला उन पर अत्याचारों की सभी सीमाएं लांघ दी गई किन्तु डोनाल्ड तो डोनाल्ड ठहरे आख़िर जीत कर ही माने। डोनाल्ड की जीत के लिए जितने यज्ञ अनुष्ठान भारत में हुए उससे डोनाल्ड की भारत में लोकप्रिता को देखकर कोई भी नेता रश्क कर सकता है। वैसे इसका कारण भी है अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बांग्लादेश में हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के साथ जो वीभत्सता हुई उस पर जिस तरह से डोनाल्ड ट्रम्प ने खुलकर विरोध व्यक्त किया उससे अमेरिका में रह रहे भारतवंशियों में एक क्लियर कट संदेश गया कि  डोनाल्ड ट्रम्प का जीतना ही भारत के हित में है न कि कमला हैरिस का। वैसे भी अमेरिकी उपराष्ट्रपति के रूप में कमला हैरिस का कार्यकाल ऐसा नहीं रहा जिससे भारतीय समुदाय उनकी तरफ़ आकर्षित होता। डोनाल्ड ट्रम्प जनवरी 2025 में जैसे ही सत्ता नशी होंगे कई देशों की आफ़त आनी तय है इसका नमूना उन्होंने तुलसी गेबार्ड को राष्ट्रीय खुफ़िया विभाग का प्रमुख नियुक्त किया है। ट्रम्प के राष्ट्रपति का चुनाव जीतते ही चीन कनाडा पाकिस्तान सब जगह शोक व्याप्त हो गया था रही सही कसर तुलसी, रामास्वामी की नियुक्ति से कनाडा एकदम बैकफुट पर आ गया। जस्टिन trudo हैरान परेशान हैं इसलिए भारत के साथ हुए विवाद को कवर करने के उद्देश्य से 10 नवंबर को अर्श दीप उर्फ़ अर्श दीप डल्ला को आनन फानन में गिरफ्तार कर लिया गया। Brampton के हिन्दू मन्दिर में हुए खालिस्तनियो के हमले में शामिल कट्टरपंथी इंद्रजीत गोसाल  को भी गिरफ्तार किया किन्तु बाद में छोड़ भी दिया। भारत ने भी तुरन्त देरी किए बिना अर्श दीप के प्रत्यर्पण की मांग कर जस्टिन को असहज कर दिया। इसी के साथ जब कि 31 अक्तूबर को ही कनाडा की जासूसी ऐजेंसी CEC ( कम्युनिकेशन सिक्योरिटी ऐशबलिशमेंट) विभाग द्वारा एक लिस्ट जारी की गई थी जिसमें चीन, रूस ईरान और उत्तर कोरिया के अतिरिक्त भारत को भी इस सूची में रक्खा गया था जिनसे कनाडा को ख़तरे की बात कही गई थी। जहाँ तक भारत का प्रश्न है तो ये कहने में कोई संकोच नहीं कि मोदी ट्रम्प की दोस्ती 2029 तक किस किस को पानी पिलाने वाली है कोई नहीं जानता बस अंदाज़ा लगाया जा सकता है। मैं भी लगा रहा हूँ आप भी लगाईये ।

प्रदीप डीएस भट्ट-271124
कवि/लेखक 

         

Monday, 7 October 2024

"हुआ यूँ के "



 रिपोर्ताज 
              "हुआ यूँ के"
 
         हुआ यूँ के हिन्दी साहित्य भारती की उत्तर प्रदेश राज्य इकाई की सभा का आयोजन झाँसी में 29 सितंबर को होना निश्चित हुआ तो संस्था के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रविन्द्र शुक्ल जी से हमें भी आमंत्रण प्राप्त हुआ। चूँकि इस संस्था से जुड़ाव हैदराबाद प्रवास के दौरान हुआ था तो हमने शुक्ल जी को अपनी दुविधा 😇बताई कि भैय्या हम तो तेलंगाना से जुड़े थे फिर हमें काहे आमंत्रण? शुक्ल जी बोले भैय्या जी अब आप मेरठ में निवास कर रहे हैं जो उत्तर प्रदेश में आता है और हम उत्तर प्रदेश में दो बार के मंत्री रह चुके हैं 😀 और ध्यान से सुनें हम झाँसी में विराजते हैं और झाँसी बुंदेलखंड में!समझ गए या कुछ और परिचय देंवे। आमंत्रण भेज दिया है आप अवश्य पधारें।🤗 अब सोचने की बारी हमारी थी हम मन ही मन बुदबुदाए बेटा तुम्हारा हैदराबाद से पत्ता साफ़ और उत्तर प्रदेश में हाफ ये विषय अलग है कि मेरठ दिल्ली NCR का भी हिस्सा है और भारत की प्रथम रीजनल ट्रेन मार्च तक मेरठ से दिल्ली तक पूर्ण रूपेण शुरू भी हो जाएगी। ख़ैर ट्रेन की खोजबीन शुरू हुई तो मेरठ से कोई भी ट्रेन हमें ले जाने के लिए तैय्यार ही न हुई (टिकिट ही  available न hue) तो क्या करते सो दिल्ली से दक्षिण express की कंफर्म टिकिट बुक की और वापसी की ltt to हरिद्वार की waiting ले ली।इसी बीच कथा रंग की सूचना मिली तो विनय सहित क्षमा मांग ली। क्यूँ  कि भैय्या कमिटमेंट है तो है!

         29 की सुबह ब्ला ब्ला ली और सीधे I P extension वहाँ से एक काम निपटाया और सीधे निर्माण विहार 😀अब ये मति पूछो काहे महाराज मित्रता भी कुछ होती है सो मिले फिर दिल्ली खादी भवन, शाम तक वहीं आनन्द के गोते लगाए फिर निर्माण विहार वाले मित्र के साथ कनाट प्लेस में मस्ती की फिर खरामा खरामा निजामुद्दीन स्टेशन।  इधर 22.50 पर ट्रेन ने सीटी दी और उधर हम नींद के आगोश में। 29 की सुबह सुबह 5.15 झाँसी पहुँचे बारिश हमारे स्वागत में बिछी बिछी जा रही थी  ख़ैर भीगते हुए ही ऑटो पकड़ा। बारिश के जोर के कारण रास्ता भूलना लाज़िम था अब अलसुबह 5.30 पर कौन रास्ता बताता है भाई सो तुरन्त होटल marvelous फोन किया तो फोन उठाया रविन्द्र शुक्ल जी ने थोड़ा अचकचा कर समस्या बताई तो उन्होंने ऑटो ड्राईवर का मार्ग दर्शन किया जिससे बारिश का आनन्द लेते हुए हम होटल पहुँच ही गए। 

        आश्चर्य इतनी सुबह सुबह 3,4 लोग रिसेप्शन पर स्वागत करते मिले, परिचय उपरांत हमें कन्नौज से पधारे डॉक्टर अमरनाथ दुबे जी के रूम में शिफ्ट कर दिया गया। अब सुबह सुबह यदि कोई  किसी को सोते से जगाए तो.......  खैर हमने अभयदान देते हुए कहा हुजूर आप सोए रहें हम एडजस्ट कर लेंगे तभी हमारे मोबाईल का 6.03 का अलार्म बज गया। हमने उसे चुप कराया और फ्रेश होने सीधे आरामगाह जा पहुँचे। तैय्यार हुए और सीधे रिसेप्शन पर! वहाँ कई लोगों से मिलना हो गया।

         9 बजे नाश्ता किया फिर ठीक 10 बजे राष्ट्रीय गीत से कार्यक्रम की शुरुआत हुई।  उत्तर प्रदेश राज्य के वर्तमान अध्यक्ष डॉक्टर वागिश दिनकर के स्थान पर प्रह्लाद बाजपेई जी को नया अध्यक्ष मनोनीत किया गया जब कि महामन्त्री अक्षय प्रताप सिंह के स्थान पर मेरे रूम मेट डॉक्टर अमरनाथ दुबे को सर्वसम्मति से महामन्त्री घोषित किया गया।सर्वसम्मति अर्थात उपस्थित जन समुह से दोनों हाथ ऊपर उठाकर ओम की ध्वनि करना। पूरा कार्यक्रम बिलकुल आरएएस पैटर्न पर। सच कहूँ आनन्द आ गया। इतने सारे लोगों में से एक मात्र परिचित के रूप में वागीश शर्मा (कथा रंग)जी से मिलकर आनन्द आ गया। सांय 6.30 तक कार्यक्रम चला बीच बीच में निश्चित अन्तराल पर  स्वादिष्ट  खाने पीने का कार्यक्रम अलग से अब चूँकि हम रात का खाना छोड़ चुके हैं अतएव संगी साथियों के आग्रह पर थोड़ी खिचड़ी लेकर खाना पूर्ति कर ली।लेकिन लेकिन लेकिन...

         अगले दिन नाश्ता करने के बाद टैक्सी के लिए रिसेप्शन पर रिक्वेस्ट की पता नहीं कहाँ गड़बड़ हुई एक घण्टे बाद एक बड़े वाला ऑटो हाज़िर, हम जैसे ही बाहर निकले ऑटो देखकर माथा ठनका हमने कारण पूछा तो ड्राईवर बोला हमसे तो यही मँगवाया है ख़ैर बेकार बहस में न पड़कर हमने पुनः बात कर टैक्सी मंगवाई और चल पड़े ओरछा मन्दिर दर्शन के लिए।लेकिन ये क्या ऑटो टैक्सी के चक्कर में ध्यान नहीं दिया कि मन्दिर 1 बजे बंद हो जाता है ख़ैर   बाहर से ही ईश्वर के दर्शन कर मुड़े ही थे कि देखा मन्दिर का द्वार खुला और भोग का एक थाल लेकर पुजारी जी ने एक व्यक्ति को दिया साथ में आई उनकी धर्म पत्नि मन्दिर के बंद दरवाज़े पर ही बड़ी श्रद्धा से साष्टांग कर रही थीं। मैंने पूछा तो रोहित सोनी नामक सज्जन ने बताया सर यहाँ प्रसाद के लिए काफ़ी लम्बी प्रतीक्षा करनी होती है हमारा नंबर भी सवा महीने के बाद आया है ,तब तक उनकी पत्नि भी हाज़िर हो गई दो तीन मिनट बात करने के बाद मैंने कहा यदि आप दोनों को आपत्ति न हो तो मुझे इस भोग का प्रसाद दे दें। उन्होंने नाम पूछा फिर पूछा कहाँ से आए हैं मैंने पूर्ण परिचय दिया तो दोनों ने प्रणाम किया फिर ये कहते हुए प्रसाद दे दिया कि भगवान ने  स्वयं प्रसाद के दूसरे कौर के लिए आपका चयन किया है। निश्चित उस समय मैं भाव विभोर हो गया। उनसे विदा ली और सीधे ओरछा फोर्ट। भले ही काफ़ी समय बीत गया है किन्तु विरासत तो विरासत है। मध्य प्रदेश शासन देखभाल कर रहा है सोचा कुछ खा लिया जाए सो काफ़ी कुछ नकारने के बाद दही खिचड़ी का ऑर्डर दे दिया। रात में भी और अब लंच में भी खिचड़ी प्रदीप बाबू बढ़िया है 😆😆😆😆


         बेतवा नदी पर दो चार फोटो खिंची ,जब जिंदगी ख़ुद ही भूलभुलैया बनी हुई हो तो भूलभुलैया देखकर क्या करेंगे सो ड्राईवर से कहा भैय्या लक्ष्मी मन्दिर चलो फिर सीधे झाँसी लोकल। ओरछा का लक्ष्मी मन्दिर देखा और सीधे रानी झाँसी के किले के बाहर से ही दर्शन किए दो चार फोटू फिर झाँसी शहर का एक चक्कर लगाया और सीधे होटल आकर कमरे में अब आप कहोगे  ये क्या बात हुई तो भैय्या 29 सितम्बर को बारिश  ने स्वागत किया था हम खुश थे तो झाँसी शहर ने अगले दिन जलती तपती गर्मी के भी दर्शन करा दिये।अब ऐसी गर्मी में फोर्ट की दीवारें भी तपती💥🔥 हुई मिली सो सब कुछ देखना डॉप कर दिया।

         शाम को कुछ ठंडक हुई तो जान में जान आई। चूँकि लंच में दही खिचड़ी खाई थी तो 8 बजे कुछ भूख महसूस हुई। डिनर में फिर वही पकवान देखकर वापिस कमरे में आए दही खिचड़ी खाई फिर आराम किया और रात 12 बजे स्टेशन। 1.10 पर ट्रेन आई और सुबह 9 बजे मेरठ। एक अच्छा कार्यक्रम, दो अच्छे दिन बिताकर वापिस मेरठ आकर लगा भैय्या जो आनन्द घर में है वो और कहाँ 💓सो खाया पीया और चादर तानकर नींद के आगोश में, अब महराज ट्रेन कित्ती भी अच्छी हो ससुरी नींद ठीक से आती न है तो हुआ यूँ के!!!!!!!


प्रदीप डीएस भट्ट-101024

Tuesday, 24 September 2024

"पर्यावरण के दुश्मन"

  
      "पर्यावरण के दुश्मन"
 
         जब पूरा विश्व केवल इज़राइल- फ़िलीस्तीन, रूस और यूक्रेन युद्ध पर ही परेशान हो रहा है, बताता चलूं कि ग्लोबल पीस इंडेक्स की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार इस वक्त पूरे विश्व में कुल 56 युद्ध और गृह युद्ध चल रहे हैं। 1970 के दशक में 23 प्रतिशत युद्धों का अंत अंततः शांति वार्ता के जरिए ही हुआ इसमें भारत पाकिस्तान युद्ध भी शामिल है जब कि इक्कीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में ये आंकड़ा घटकर केवल 4 प्रतिशत रह गया है जो किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं है। ये तथ्य महत्वपूर्ण है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा जापान पर 6 व 9 अगस्त 1945 को हिरोशिमा एवं नागासाकी पर परमाणु बम का प्रयोग किया गया था किन्तु आज लगभग 79 वर्ष बीतने के बाद 7 देश परमाणु सम्पन्न हो गए हैं। इन देशों के पास हजारों की संख्या में परमाणु हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि भविष्य की स्थिति कितनी विकट होगी। एक तरफ हम पर्यावरण की रक्षा की अहद लेते हैं  पेड़ काटे जाने पर जमीन आसमान एक कर देते हैं और दूसरी तरफ़ लम्बे लम्बे युद्धों में शामिल देशों को रोक नहीं पाते। पेड़ तो छोड़िए कुछ सनकी लोग अपनी 'मैं' के  चलते  पूरी धरती को बर्बाद कर देना चाहते हैं। फिर ये पर्यावरण बचाओ का खोखला नारा किसके लिए और क्यूँ ?

        यूक्रेन जिसका  पुराना नाम कीवियन रूस है और जो नवीं शताब्दी में एक बड़ा एवं शक्तिशाली देश था किन्तु 12 वीं शताब्दी तक आते  आते यह देश क्षेत्रीय शक्तियों में विभाजित हो गया। 24 फ़रवरी  2022 को रूस ने यूक्रेन पर युद्ध थोप दिया। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्यों कि सोवियत संघ के विघटन के बाद 15 अलग अलग देश अस्तित्व में आए जिसमें से यूक्रेन भी एक अलग स्वतन्त्र देश बना।  अन्य छुटपुट कारणों के अतिरिक्त जैसे ही यूक्रेन ने नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) में शामिल होने का फैसला किया वैसे ही रूस की द्रष्टि यूक्रेन की तरफ वक्र हो गई। इसका सीधा सा कारण है यदि यूक्रेन नाटो की गोद में बैठता है तो रूस की सुरक्षा compromise होती है।नाटो की सेनाएं और रूस के मध्य में यूक्रेन है अगर यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो नाटो की सेनाओं की सीमा सीधे सोवियत रूस से लग जाएंगी। बस रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन इसी बात से असहज हो गये। रूठने से लेकर मनाने तक के जब सभी जतन बेकार हुए तो 24 फ़रवरी को रूस ने यूक्रेन पर सीधे हमला कर दिया। इसकी आशंका पूरे विश्व को पहले से थी किन्तु इसमें अमेरिका अपने हित देख रहा था और यूरोपीय देश अपने। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन जहाँ kjb से हैं वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की पहचान एक कॉमेडियन की रही है। दुनिया के सभी देशों को विश्वास था कि यूक्रेन 10-15 दिन में निपट जाएगा या सरेंडर कर देगा किन्तु ढाई वर्ष बीतने के बाद भी दोनों देश अपनी अपनी ताकत दिखाने में लगे हैं।

        इस युद्ध से निश्चित सोवियत रूस एवं यूक्रेन का भारी नहीं वरन भारी भरकम नुकसान हुआ है। यूक्रेन अपनी जिद छोड़ने के लिए तैय्यार नहीं है और सोवियत रूस अपनी। खामियाज़ा दोनों देशों की जनता भुगत रही है। इस युद्द में निश्चित नुकसान का आकलन करना तो मुश्किल है किन्तु इस युद्द से किस देश ने कितना प्रॉफिट अर्न किया है उसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अमेरिका यूरोपीय यूनियन एवं कई अन्य देशों ने अपने कचरा बन गए हथियारों को यूक्रेन को बेच दिया। एक खबर काफी प्रचलित रही की अमेरिका ने अपने F16 बम वर्षक विमान यूक्रेन को दे दिए किन्तु वो विमान पुरानी पीढ़ी के निकले। अगर व्यापारिक द्रष्टि से देखें तो अमेरिका ने अपना कबाड़ यूक्रेन को बेचकर अपनी चांदी कर ली किन्तु वो सारा कबाड़ सोवियत रूस की स्मार्ट टेक्नोलॉजी के आगे धराशायी हो गया। जब ढाई साल से लगातार युद्ध चल रहा है तो मिसाइल हो या रॉकेट या फिर टैंक गोला बारूद खत्म तो होना ही है सो यूक्रेन की मदद जहाँ अमेरिका एवं यूरोपियन डेनमार्क नार्वे नीदरलैंड के अतिरिक्त पाकिस्तान ने भी करने की कोशिश। वहीं सोवियत रूस को भी हथियारों की सप्लाई चीन एवं तुर्की जैसे देश कर रहे थे। इन देशों ने भी हथियारों की सप्लाई कर चांदी काटने की कोशिश की । चीन तुर्की को तो कुछ कामयाबी मिली भी किन्तु पाकिस्तान के साथ "ना ख़ुदा ही मिला न विसाल ए सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे" वाली कहावत चरितार्थ हो गई।  पाकिस्तान भारत की तरह रूस से कच्चा तेल लेना चाहता था किन्तु जब रूस को जानकारी हुई कि पाकिस्तान यूक्रेन को हथियार सप्लाई कर रहा है तो बात कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई। एक अनुमान के अनुसार 24 फ़रवरी 2022 से अभी तक इस युद्द में यूक्रेन को 55 बिलियन डॉलर का नुक़सान हुआ है।

         उपरोक्त के अतिरिक्त एक विशेष बात का ज़िक्र करना लाज़िमी है। 2011 में प्रसिद्ध डॉक्यूमेंट्री निर्माता मैक्स वेक्स्टर ने एक फ़िल्म बनाने का निर्णय लिया कारण वे बढ़ती उम्र के बदलावों से परेशान थे। फ़िल्म का नाम था  "How to live for ever" मैक्स ने बढ़ती उम्र के कईं लोगों से बात की और जानने की कोशिश की कि वे अपने जीवन में सबसे ज्यादा कब खुश हुए थे। एक सौ वर्ष पार कर चुके व्यक्ति का उत्तर सबसे बेहतरीन एवं उत्साह वर्धक था। उसने कहा 11 नवंबर 1918 का दिन जिस दिन जब उत्तर फ्रांस के क़स्बे 
कॉपिगने में युद्ध समाप्ति पर हस्ताक्षर हुए थे। यहाँ य़ह उधृत करना भी जरूरी है कि 1914 से 1918 तक चले प्रथम विश्वयुद्ध में 2 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए थे घायलों की गिनती का तो अंदाज़ा ही नहीं है और माल असबाब के नुक़सान की भरपाई तो की ही नहीं जा सकती। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूक्रेन स्वतन्त्र देश की हैसियत में आ गया। जार शासन को सत्ता से बेदखल कर ब्लादिमीर के volsheviko ने सत्ता हथिया कर यूक्रेन को खत्म करने पर ध्यान केंद्रित किया और अंततः यूक्रेन के हिस्से में हार आई। 1921 तक आते आते यूक्रेन सोवियत रिपब्लिक का हिस्सा बन गया। ब्लादिमीर से लेकर जोसेफ स्टालिन की फाईवे स्टेक्स ऑफ ग्रेन की नीति के कारण यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गई। भुखमरी के कारण हालात काबू से बाहर हो गए इन्हीं सब के बीच लोग घास कुत्ते बिल्ली खाने पर मजबूर हुए। 1932 से 1933 तक होल्डडॉमोर में 39 लाख लोग मारे गए या शासन द्वारा नरसंहार किया गया। पिछले ढाई साल के युद्ध में अभी तक ये स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है लेकिन लोग तो लगातर मारे जा रहे हैं न।

        अब बात करते हैं इजराइल और फिलिस्तीन के झगडे की। दोनों के बीच इनके झगड़े की शुरुआत 1917 से शुरू हुई। जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव ऑर्थर जेम्स बेल्फॉर ने बेल्लफॉर घोषणा के तहत फ़िलीस्तीन में यहूदियों के लिए नेशनल होम के लिए ब्रिटिश राज्य की तरफ से आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया गया। 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध (28 जुलाई-1914 से 11 नवंबर-1918 ) की शुरुआत हो चुकी थी ब्रिटिश आर्मी भी युद्द में मसरूफ थी नाजियों द्वारा यहूदियों पर चरम सीमा पर अत्याचार किए जा रहे थे तभी बेल्फोर्ड डिक्लेरेशन की घोषणा हो गई जिसके बाद यहूदियों ने फ़िलीस्तीन में व्यापक पैमाने पर जमीन खरीदना शुरू कर दिया।  सच पूछा जाए तो अंग्रेजों ने 1947 में जो भारत के साथ किया उसका एक्सपेरिमेंट उन्होंने 30 वर्ष पहले यहूदियों और इजराइल के साथ कर दिया था। इज़राइल और फिलिस्तीन का झगड़ा एक अनिवार्य फ़िलीस्तीन के संघर्ष और आत्म निर्णय के अधिकार को लेकर सैन्य और राजनैतिक संघर्ष है। संघर्ष के मेन मुद्दों में वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी  पर इज़राइल का कब्जा, यरुशलम की स्थिति, इजराइली बस्तियां, सीमा निर्धारण, जल अधिकार परमिट व्यवस्था, फिलिस्तीन आन्दोलन फिलिस्तीन वापसी का अधिकार वगैरह वगैरह।

 1917 से लेकर 7 अक्तुबर 2021 तक इज़राइल ने न जाने कितने छुटपुट युद्द किए हैं। किन्तु 7 अक्टूबर 2023 को फ़िलीस्तीनी हमलावरों द्वारा हमास के संरक्षण में दक्षिणी इज़राइल पर बड़े पैमाने पर हमला किया गया यहां ये उल्लेखनीय है कि जिस दिन ये हमला किया गया उस दिन यहूदी पूरा दिन शान्ति प्रार्थना में बिताते हैं हथियार रखना या चलाना एक तरह से वर्जित है। इस हमले से इज़राइल सकते में आ गया जवाबी कार्यवाही शुरू हुई और फ़िर विश्व ने इज़राइल का वो रूप देखा जिसे आज तक किस्सों कहानियों में यदा कदा सुना जाता था। गाजा पट्टी में फिलिस्तीनियो ने हमास द्वारा बिछाए गए सुरंगों के जाल से इज़राइल को बहुत परेशान किया किन्तु टेक्नोलॉजी के बूते इज़राइल इन सब संकटो पर पूर्व की तरह भारी ही पड़ रहा है।  इज़राइल की आक्रमकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शुरुआती झटकों से उबरकर गाजा पट्टी में छ: दिनों में लगभग छ: हजार बम गिराए तत्पश्चात सम्पूर्ण गाजा पट्टी की नाकाबंदी कर गाजा पट्टी पर कब्जा करने के लिए पैदल सेना उतार दी। लगभग दस महीने की लड़ाई में एक तरफ़ इज़राइल अर्जुन की तरह अकेला खड़ा है उसका अगर कोई सहायक है तो वो अमेरिका है। भारत तठस्त की भूमिका में है। इन्हीं सब के बीच ईरान ने इज़राइल के खिलाफ़ कुछ उल्टा सीधा करने की कोशिश की तो इज़राइल के एक ही वार से उसके राष्ट्रपति जन्नत सिधार गए ,के अतिरिक्त भी ईरान को काफ़ी हानि उठानी पड़ी है। विश्व के सभी देश भली भाँति जानते हैं कि फ़िलीस्तीन लेबनान के आतंकी गुटों को परोक्ष रूप से ईरान ही पोषित कर रहा है अन्यथा क्या कारण है कि हिज्बुल्ला की अपनी एक अलग घातक आर्मी बन गई। ताजातरीन घटना पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि इज़राइल समय से 2 से 4 साल आगे की सोच कर चलता है।  सितम्बर 2024 में हुए पेजर धमाके फिर वाकी टॉकी धमाके इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि कैसे इज़राइल ने इसके ऊपर 2022 से ही कार्य शुरू कर दिया था जिसका परिणाम हिज्बुला के कोर कमांडर को मार कर उसने पूरा कर दिया। आश्चर्य की बात ये है कि रूस जो शेष विश्व के देशों के लिए स्वयं यूक्रेन युद्ध का खलनायक है वह मास्को में बैठकर इज़राइल फ़िलीस्तीन पर विशेष टिप्पणी दे रहा है जरा बानगी देखिए:-

"चिंगारी भड़काना आसान है,  बहुत आसान है। वहाँ जो घटनाएँ हो रही हैं, उन्हें देखते हुए करना आसान है।जब आप पीड़ित और खून से लथपथ बच्चों को देखते हैं तो आपकी मुट्ठीयां भीच जाती हैं और आँखों में आँसू आ जाते हैं। यह किसी भी समान्य व्यक्ति की प्रतिक्रिया है। अगर ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं है तो उस व्यक्ति के पास दिल नहीं है वह पत्थर का बना हुआ है।" 

         उपरोक्त पंक्तियों को पढ़कर मुझे सिर्फ़ हँसी आती है। जो व्यक्ति स्वयं पिछले ढाई वर्ष से यूक्रेन से "युद्धम शरणम गच्छामी" खेल रहा हो वह फ़िलीस्तीन का पक्ष लेकर इज़राइल पर दोषारोपण कैसे कर सकता है।  जितनी जाने इज़राइल फ़िलीस्तीन हमास हिज्बुला में गई हैं उससे सैकड़ों गुना जाने रूस यूक्रेन युद्ध में अब तक जा चुकी हैं। यहाँ सिर्फ़ जान के नुक़सान का आकलन है माल  असबाब का आकलन सम्भव ही नहीं।  रूस यूक्रेन युद्ध से पूरा विश्व पहले जहाँ चटकारे लेकर खबरें परोस रहा था अब वह भी इन खबरों को परोस कर 
फेडअप हो चुका है। खबर कोई भी हो ज्यादा दिन तक खबर में रहे तो वह खबर नहीं रहती। रूस यूक्रेन युद्ध की खबरों का हाल कुछ ऐसा ही हो चुका है। इन खबरों का कोई खरीदार ही नहीं। दोनों देशों के असहले खत्म हो चुके हैं उधार के हथियारों से तो युद्ध जीते नहीं जा सकते अलबत्ता दोनों देशों की अर्थव्यवस्था अवश्य रसातल में पहुँच गई है। कुछ दिनों में इज़राइल फिलिस्तीन हिज्बुल को भी समझ आ ही जाएगा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। यूरोपियन देशों एवं अमेरिका को रूस ही गैस एवं तेल सप्लाई कर रहा था। रूस द्वारा प्रतिकार स्वरुप गैस सप्लाई बाधित कर दी गई तो पिछली दो सर्दियों में यूरोप कितना परेशान हुआ है ये जग जाहिर है। अटल जी की पँक्ति याद आ गई "चिंगारी का खेल बुरा होता है"  

         अब अमेरिका यूरोप सहित संयुक्त राष्ट्र के पावरफूल देश चाहते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी इस युद्ध को रुकवाएं क्यों कि उन्हें पता है कि आज विश्व पटल पर अगर कोई एक शक्तिशाली नेता है तो वो मोदी ही हैं जिनकी स्वीकार्यता यूक्रेन और रूस के नेताओं में बराबर है। इसका प्रमाण भी पूरी दुनिया देख चुकी है जब भारत ने युद्धरत रूस यूक्रेन के नेताओं से बात कर निश्चित समय के लिए युद्ध रुकवाकर भारत के नागरिकों के साथ साथ अन्य देशों के नागरिकों को भी भारतीय तिरंगे की छत्रछाया में सकुशल घर पहुंचवाया था। अमेरिका एवं अन्य यूरोपीय देश स्वयं इज़राइल एवं हिज्बुला के मध्य जारी युद्ध रुकवाने की कोशिश नाम मात्र भी नहीं कर रहे हैं। आखिर ये दोहरी नीति क्यूँ? क्यूँ बार बार ये सुनने और पढ़ने में आता है कि अमेरिका हो या फिर यूरोपीय देश ये सिर्फ़ युद्ध भड़काना जानते हैं समेटना नहीं। अपने फायदे के लिए ये देश किसी भी सीमा तक चले जाते हैं फिर चाहे इसके लिए इन्हें तख्ता पलट ही क्यूँ न करना पड़े। अभी हाल ही में दो छोटे अफ्रीकी देशों ने उन देशों के साथ हो रहे इस प्रकार की घटनाओं का जिक्र किया है। सबसे ताजातरीन मामला बांग्लादेश का निकल कर सामने आ गया है। बांग्लादेश की कामचलाऊ सरकार के मुखिया संयुक्तराष्ट्र की सभा में जाते हैं तो स्वीकार करते हैं कि शेख हसीना के खिलाफ़ जबरदस्त साज़िश रची गई। ये खबर भी निकल कर आई कि अमेरिका बांग्लादेश में सैनिक अड्डा स्थापित करना चाहता था जब वह सफल नहीं हुआ तो उसने बांग्लादेश में तख्ता पलट करा दिया।अमेरिका तो कामयाब हो गया किन्तु उसमें पिसा और प्रताड़ित हुआ केवल हिन्दू।

         ताजा खबर के अनुसार अमेरिका और यूरोपियन यूनियन इज़राइल और लेबनान हिज्बुलाह के बीच 21 दिन का युद्ध विराम चाहती है किन्तु बेंजामिन नेतनयाहू ने इसके लिए साफ साफ इंकार कर दिया। इज़राइल का इतिहास रहा है कि वह अपने दुश्मनों के प्रति निर्मम रहा है इसलिए ये कहना जल्दबाज़ी होगी इज़राइल अपनी संप्रभुता के साथ कोई समझोता कर लेगा क्यों कि ये उसका स्टाईल नहीं है। जब तक वह हिज्बुलाह को समाप्त नहीं कर देता तब तक इज़राइल इस युद्ध में कोई युद्द विराम लागू नहीं होने देगा। इस स्थिति को देखते हुए भारत ने लेबनान में रहने वाले भारतीयों को एडवायजरी जारी कर दी है कि वे जल्द से जल्द लेबनान छोड़ दें। हम जैसे पर्यावरण प्रेमी सिर्फ़ प्रार्थना ही कर सकते हैं कि ईश्वर हमें इन पर्यावरण के दुश्मनों से बचाए !


प्रदीप डीएस भट्ट 
लेखक-9410677280


Friday, 13 September 2024

हिन्दी की है आस बनेगी एक दिन ख़ास यानि लिंगवा फ्रांका

“हिंदी की है आस, बनेगी एक दिन खास, यानि ‘लिंग्वा फ्रांका’”

         हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी 14 सितम्बर को “हिंदी दिवस” के रुप में  मनाया जाएगा। मुझे उम्मीद है कुछ मंत्रालयों में इस विषय में पत्रावलियाँ अंग्रेजी में ही प्रस्तुत की जाएगीं। हम जैसे हिंदी प्रेमियों को इससे कितना कष्ट होता है उनकी बला से। किंतु कहीं न कहीं दिल में ये आस अवश्य है कि एक न एक दिन हमारी हिंदी भाषा भी ‘लिंग्वा फ्रांका’ (प्रयोग में ली जाने वाली वह प्रभावशाली भाषा जो प्रयोग में लेने वालों की मातृ भाषा न हो) बनेगी) 

मैं हिंदवी क़ी हिंदी हूँ
राष्ट्र भाल क़ी बिंदी हूँ
अंग्रेजी भाषा के समक्ष मैं
मात्र अब भी किंचित हूँ
हाँ मैं हिन्दी हूँ ...

         विश्व परिदृश्य पर पिछले तीन हजार वर्ष के इतिहास में देखें तो ग्रीक, लैटिन, पॉर्च्युगीज, स्पैनिश, फ्रेंच और अंग्रेजी एथेंस की ग्रीक भाषा अलग-अलग दौर में प्रभावशाली रही हैं। 18वीं सदी के मध्य में फ्रांस के विद्वान वॉल्टेयर ने ‘फिलॉसफी ऑफ हिस्ट्री’ लिखी। इसका विषय संपूर्ण मानव जाति का इतिहास था। अध्ययन में यह तथ्य निकलकर आया कि ईसा पूर्व नौवीं सदी से लेकर चौथी सदी तक यूरोप, शहर रूपी कई साम्राज्यों में बंटा हुआ था। इनमें से एथेंस व्यापार और सैन्य ताकत बनकर उभरा। इसलिए प्रभावशाली एथेंस की ग्रीक भाषा यूरोप की लिंग्वा फ्रांका बनी। ईसा पूर्व 201 से आने वाले 600 वर्षों तक एथेंस यूरोप का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बना रहा। लिहाजा कैथोलिक चर्च की ताकत बढ़ी और रोमन भाषा लैटिन लिंग्वा फ्रांका बन गई। लेकिन लैटिन लिंग्वा फ्रांका बनी रही क्यों कि आने वाले एक हजार साल तक कोई नई वैश्विक शक्ति नहीं उभरी।

         1492 में कोलंबस ने अमेरिका की खोज की और छह वर्ष बाद वास्कोडिगामा ने भारत में कदम रखा। ये दोनों यात्राएं पुर्तगाल के खर्चे पर हुई और इस तरह से पुर्तगाल साम्राज्य शक्तिशाली होने लगा। पुर्तगाल की देखा-देखी स्पेन और फ्रांस भी उप-निवेशवाद में कूदे। इस दौरान पॉर्च्युगीज, स्पेनिश और फ्रेंच भषा लिंग्वा फ्रांका की दौड़ में रहीं। इंग्लैंड में स्थिति ऐसी थी कि राजघराने में जो शिक्षा ली जाती थी उसका माध्यम फ्रेंच भाषा होती थी न कि अंग्रेगी। उस समय के सभ्य समाज में अंग्रेजी गरीबों की भाषा और दरिद्रता की निशानी मानी जाती थी। 
वर्तमान में अंग्रेजी भाषा को ‘लिंग्वा फ्रांका’ का दर्जा प्राप्त है। ऐसा इसलिए कि पिछ्ले लगभग 600 वर्षो से  ब्रिटेन आर्थिक, सामजिक,राजनैतिक बाजारी कारण व सैनिक शक्ति के लिहाज से विश्व के उन पाँच महत्वपूर्ण देशों में स्थान रखता है जो कि सीधे सीधे शेष विश्व पर अपना प्रभाव रखते हैं। चूँकि अमेरिका के अतिरिक्त विश्व में प्रमुख 7 देशों में अंग्रेजी ही बोली जाती है इसलिए वर्तमान दौर में अंग्रेजी ही लिंग्वा फ्रांका बनी हुई है। जहाँ तक अंग्रेगी का ताल्लुक है इसे प्रथम अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। चूँकि ये एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पती एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई। चूँकि ब्रिटिश हुकूमत कई देशों पर रही है अतएव जैसे जैसे अंग्रेगी का प्रचलन बढा ये उन देशों में भी ज्यादा बोले जाने लगी जहाँ उस देश की अपनी भाषा पहले से ही मौजूद थी। ऐसा इसलिए भी हुआ क्यों कि ब्रिटिश लोगों ने 18,19 एवम 20वीं शताब्दी में  सैन्य, राजनितिक, आर्थिक, वैज्ञानिक एवम सांस्कृती पर अपनी पकड बनाने के उद्देश्य से अंग्रेगी भाषा के प्रयोग पर अधिक बल दिया जिससे इसे छटी भाषा के रुप में लिंग्वा फ्रांका होने का गौरव प्राप्त हुआ। कुछ देश ऐसे भी रहे जिन्होंने इसे अपनी मातृ भाषा के बाद दूसरी भाषा के रुप में मान्यता प्रदान की। अगर मैं इसे इस तरह पारिभाषित करूँ या कहूँ  कि अंग्रेगी भाषा का उत्थान चौथी या शायद पाँचवी शताब्दी के मध्य में इंग्लैंड में एंग्लो- सेक्सन लोगों द्वारा शुरु हुआ तो ज्यादा बेहतर होगा। एंग्लो सेक्सन लोग कई तरह की बोलियों/ भाषाओं को बोलते थे,यहाँ यह कथन स्प्ष्ट है कि वाइकिंग हमलावरों द्वारा अपनाई गई प्राचीन नोर्स भाषा का प्रभाव वर्तमान अंग्रेगी भाषा पर ज्यादा है। ये विषय अलग है कि अंग्रेजी भाषा लगातार अपना विकास करती रही और अन्य देशों में बोले जाने वाली भाषा के शब्दों को स्वंय में समाहित करती रही जिससे इसकी ताकत में ज्यादा वृद्धि हुई। वर्तमान में जो हम अंग्रेजी बोलते हैं उसमें नोर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी संख्या में उपयोग हुआ है। वर्तमान अंग्रेजी भाषा में प्राचीन ग्रीक और लैटिन का अत्याधिक प्रभाव दिखायी पडता है। अंग्रेजी बोलने वाले लगभग 53 प्रमुख देश हैं जिनमें संयुक्त राष्ट्र, यूरोपियन संघ,राष्ट्रमण्डल, नाटो देश व नाफ्टा के देश शामिल हैं। एक सर्वे के अनुसार पूरे विश्व में अंग्रेजी बोलने वाले देशों के क्रम में अमेरिका प्रथम स्थान भारत दूसरे स्थान पर ,नाइजिरिया तीसरे स्थान पर और आश्चर्यजनक रुप से ब्रिटेन चौथे स्थान पर आता है। इसके बाद फिलिपिंस कनाडा और आस्ट्रेलिया का नम्बर आता है। मतलब जिस अंग्रेजी भाषा की उतपत्ती ब्रिटेन में हुई वही देश अंग्रेजी बोलने वाले देशों में चौथे नम्बर पर है मतलब उसने अपना आधिपत्य जमाने के उद्देश्य से अंग्रेजी भाषा को इतना ताकतवर बना दिया कि समूचा विश्व बिना अंग्रेजी भाषा के चल नही सकता। किंतु हर जगह अपवाद होते हैं, जो यहाँ भी है। चीन में मंदारिन भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है किंतु चीन के बाहर न के बराबर किंतु चीन ने आज जो मुकाम हासिल किया है वह मंदारिन की बदौलत ही किया है। अंग्रेजी का उपयोग उतना ही किया गया जितना आव्श्यक था।
जहाँ तक हिंदी भाषा का प्रश्न है तो विश्व में अंग्रेजी, मंदारिन के बाद इसका स्थान तीसरा है। भारत में हिंदी के बाद सबसे अधिक बंगाली भाषा ( लगभग 30 करोड) बोली जाती है। जिस प्रकार आज अंग्रेजी वैश्विक भाषा के रुप में विश्व में प्रतिष्ठित है उसी प्रकार आने वाले समय में हिंदी भी वैश्विक भाषा के रुप में निश्चित अपना स्थान बनाएगी। हिंदी भारत के अतिरिक्त नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, तिब्बत, अफगानिस्तान, श्रीलंका इत्यादि  देशों में प्रमुख रुप से बोली और समझी जाती है।पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दी धीरे धीरे सम्पर्क भाषा के रुप में अपना स्थान निश्चित करती जा रही है । भारत में इस समय कुल छ: कास्मोपोटिन शहर हैं जिनमें चेन्नई को छोडकर आपको हिंदी भाषा बोलने वाले समझने वाले देल्ही,मुम्बई, बंगलौर,कोलकत्ता और हैदराबाद में आसानी से मिल जायेंगे। चेन्नई में भी हिन्दी बोलने वाले मिलेंगे लेकिन वे तमिलियन न होकर हिन्दी बेल्ट से आकर बसे हिन्दी भाषी लोग हैं। एक सत्य और है कि व्यापार के सिलसिले में राजस्थान से बाहर निकले लोग भले ही घर में मारवाडी में बातचीत करते हैं किंतु अपनी व्यापारिक गतिविधियों में वे हिन्दी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। इसका अनुभव मुझे अगस्त -2022 माह में अपने तीन दिवसीय साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान देखने को मिला। एक कहावत प्रसिद्ध है “जहाँ न पहुँचे बैलगाडी वहाँ पहुँचे मारवाडी” ये सुखद अनुभव मुझे नेपाल में भी देखने को मिला और भूटान में भी। यहाँ तक कि पश्चिम बंगाल एवम नोर्थ ईस्ट के आठों राज्यों में भी।

         भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितम्बर, 1949 को इसे राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया जिससे इसका प्रयोग और चौतरफा विकास हुआ। जैसे बंगला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम आदि को क्रमश: बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल आदि की राजभाषा (मुख्य प्रांतीय भाषा) बनाया गया है। ऐसा करने से किसी भी भाषा का महत्व कम नही हुआ है? निश्चित रुप से नही। बल्कि इससे उन सभी भाषाओं का उत्तरदायित्व और प्रयोग क्षेत्र पहले से अधिक बढ़ गया है। जहाँ पहले केवल परस्पर बोलचाल में ही इनका प्रयोग होता था या उसमें साहित्य की रचना होती थी, वहीं अब प्रशासनिक कार्य भी हो रहे हैं। यही स्थिति हिन्दी की भी है। इस प्रकार हिन्दी सम्पर्क और राष्ट्रभाषा तो है ही, राजभाषा बनाकर इसे अतिरिक्त सम्मान प्रदान किया गया है।द्वितीय महायुद्द की समाप्ति पर 1945 में जब सन्युक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी तो उसकी आधिकारिक भाषा के रुप में अंग्रेजी रशियन, फ्रेंच एवम मंदारिन को ही आधिकारिक भाषा के रुप में मान्यता मिली थी। हम भारतीयों के लिए 1991 में सन्युक्त राष्ट्र में स्व0 अटल बिहारी बाजपई जी द्वारा दिया गया भाषण ही एक मात्र गौरव का क्षण रहा है अन्यथा आज तक किसी अन्य नेता ने कभी सन्युक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देना तो दूर “नमस्ते” भी कहना उचित नहीं समझा । फिर हिन्दी को सन्युक्त राष्ट्र की भाषा में सम्मलित कराने की बात तो दूर की कौडी ही रही। बिना किसी संकोच के कहा जा सकता है कि 2014 के बाद से स्थिति बहुत तेजी से बदली और 2018 में भारत सरकार की ओर से सन्युकत राष्ट्र संघ  के वैश्विक संचार विभाग के साथ साझेदारी की गई । आज भारत सन्युकत राष्ट्र संघ   के समाचार और मल्टी मीडिया के लिए फण्ड भी दे रहा है और परिणाम सामने है। जून-2022 में सन्युकत राष्ट्र संघ द्वारा जारी होने वाले सभी कागज़ातों को अन्य मान्य भाषाओं के अतिरिक्त हिन्दी में जारी करने की घोषणा की। निश्चित रुप से भारत के लिए ये गर्व का विषय है हिन्दी के अतिरिक्त बांग्ला एवम उर्दु भाषा को भी सन्युक्त राष्ट्र ने अपनी सहमती प्रदान की है।  इसी क्रम में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी कुछ माह पूर्व घोषणा की है कि उसके द्वारा दिये गये सभी निर्णयों का अनुवाद हिन्दी भाषा में किया जाएगा ताकि वादी को समझने में आसानी हो।   

"सात कोस पर पानी बदले चार कोस पर भाषा जी 
विश्व पटल पर छा जाएगी इक दिन हिन्दी भाषा जी "

         आज का युवा निश्चित रुप से अंग्रेगी के साथ हिंदी भाषा को भी महत्व देने लगा है उसे अच्छी तरह से पता है कि विकास का पहिया केवल अंग्रेजी या प्रांतीय भाषा के सहारे नही घूम सकता। पिछ्ले कुछ वर्षो में देश में ही नही वरन विदेशों में हिंदी और संस्कृत भाषा सीखने की एक होड सी मची हुई है।  मल्टीनेशनल कम्पनियाँ अच्छी तरह से जानती है कि भारत एक बहुत बडा बाज़ार है, अगर उन्हें अपना माल बेचना है तो उन्हें भारत की मुख्य भाषा हिन्दी को स्वीकार करना ही होगा, साथ ही इसी बहाने प्रांतीय भाषाओं का भी विकास हो रहा है। कुछ वर्ष पूर्ण एक आर्टिकल पढा था जिसमें बताया गया था कि दक्षिण कोरिया की कम्पनी जब किसी को भारत में अपना प्रतिनिधी बनाकर भेजती हैं तो वे एक शार्ट टर्म हिन्दी सेशन रखती हैं ताकि वे हिन्दी भाषा के कुछ शब्द वाक्य समझ व बोल सके ताकि कम्पनी को भारत में प्रतिनिधि के तौर पर यहाँ की बोल चाल को समझने में आसानी हो, लोगों से घुलने मिलने में आसानी हो, उनका उद्देश्य सिर्फ भारत में  सिर्फ माल बेचने का ही नही वरन उनका उद्देश्य भारतीय समाज से जुडने का ज़ियादा रहता है। आज सिर्फ हिन्दी फिल्म उद्योग ही वरन प्रादेशिक फिल्म उद्योग भी अपनी सभी फिल्मों, वेब सीरिज़ को हिंदी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं में डब कराके प्रदर्शित करता है ताकि ज्यादा से ज्याद लोगों तक उसकी पहुँच सुनिश्चित हो। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। 

         भारत का संविधान कुल 22 भारतीय भाषाओं को आधारिक भाषा का दर्ज़ा देता है. इन 22 भाषाओं में शामिल है :- हिंदी, तमिल, तेलुगु, मराठी, असमिया, बोडो, कन्नड़, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, गुजराती, बांग्ला, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, डोगरी, संथाली, मैथिली, नेपाली, कोंकणी एवम उर्दू। किंतु हिंदी लगभग सब जगह बोली जाती है और यह सबसे अधिक तेजी से बढ़ भी रही है।  पढाई का माध्यम भी धीरे धीरे हिंदी ,अंग्रेजी व एक प्रांतीय भाषा के इर्द गिर्द ही सिमटता जा रहा है जो कि एक अच्छा संकेत है। इस विषय में भारत सरकार द्वारा भी विभिन्न स्तरों पर प्रोत्साहन प्रदान किये जा रहे हैं साथ ही नई शिक्षा नीति भी इसमें एक कारगर भूमिका निभा रही है। पिछले दिनों विज्ञान पत्रिका  करंट साइंस में प्रकाशित एक अनुसंधान में मस्तिष्क विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेजी पढते समय हमारे दिमाग का केवल बाँया हिस्सा ही सक्रिय रहता है जब कि हिन्दी या संस्कृत पढते समय मस्तिष्क का दायाँ और बाँया दोनों हिस्से सक्रिय हो जाते हैं। इससे दिमाग की कसरत ज्यादा होती है और दिमाग ज्यादा तरोताज़ा रहता है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र की भविष्य में अन्य भारतीय भाषाओं के प्रभाव पर भी अध्य्यन करने की योजना है। अध्यान की प्रक्रिया के दौरान छात्रों को पहले चरण में जोर जोर से अंग्रेजी भाषा पढने के लिए कहा गया उसके पश्चात  हिन्दी भाषा। इस समूची प्रक्रिया में दिमाग का एम आर आई किया गया तब उप्रोक्त रिजल्ट सामने आया। इसका कारण निश्चित रुप से हिन्दी बोलते समय मात्राओं के कारण दिमाग की सक्रियता ज्यादा होना था जब कि अंग्रेजी बोलते समय सीधा सीधा छब्बीस अल्फाबेट का रीपिटिशन ही रहा होगा। एक और अच्छी पहल हुई है वो ये कि   इंजीनियरिंग एवं मेडिकल की पढ़ाई भी हिन्दी माध्यम से करायी जाने लगी है जो कि भारतीय शिक्षा के लिए एक शुभ संदेश है l मुझे विश्वास है 2040 तक हिन्दी अगली (सातवीं) लिंग्वा फ्रांका का होने का दर्जा अवश्य प्राप्त कर लेगी।

© प्रदीप देवीशरण भट्ट - 01:09:2024