“खायेगा मुँह लजायेंगी आँखे”
आखिर
कन्हैय्या कुमार ने ऐसा क्या कमाल कर दिया जो जेल से वापिसी पर उसके गृह नगर (बिहार)
मे जश्न का माहौल बन गया और उससे भी ज्यादा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय मे उसका
जिस गर्म जोशी और पूरे लाव-लश्कर के साथ स्वागत किया गया उससे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे
वो कोई जंग जीत कर आया हो। निश्चित ही ये बड़ी हास्यास्पद स्थिति है। साथ ही एक चिंता भी कि हमारा ‘युवा’ आखिर किस
ओर जा रहा है। जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित विशविदयालया का माहौल अगर ऐसा है तो फिर देश
मे स्थित अन्य विश्वविद्यालयों के बारे मे आसानी से सोचा और समझा जा सकता है। जिस
उम्र और कैटेगरी के छात्र वहाँ पढ़ते है उनमे ज्यादातर पीएचडी कर रहे होते हैं,कुछ स्कालर और कुछ अन्य भी जिन्हे युवा तो किसी भी श्रेणी मे नहीं रखा जा
सकता।
आखिर
9 फरवरी को शुरू हुआ तमाशा 13 फरवरी को कन्हैय्या की गिरफ्तारी से शुरू हुआ और 6
दिन दिल्ली पुलिस की रिमांड और 13 दिन तक मशहूर तिहाड़ जेल मे बिताने के बाद दिल्ली
उच्च न्यायालय द्वारा सशर्त कन्हैय्या को 6 माह की अन्तरिम जमानत पर 03.03.2016 को
छोड़ दिया गया। यहाँ यह विशेष है कि कन्हैय्या कुमार की जमानत जेएनयू के ही एक
प्रोफेसर ने दी है। यानि शिष्य जुर्म करे और जब बचाने की बारे आए तो बेचारे गुरु
को आगे आना पड़ा। खैर इस पूरे मसले की पड़ताल करने से पहले ये आवश्यक हो जाता है की
जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष(AISF) जो कि सीपीआई का छात्र संगठन है के तौर पर निर्वाचित कन्हैय्या कुमार के
विषय मे कुछ जानकारी कर ली जाए क्यों की आशुतोष (आप) पहले ही बता चुके हैं कि
कन्हैय्या कुमार की माँ आंगनवाड़ी मे कम करती है माह मे तीन हजार रुपए कमाती है।
कन्हैय्या कुमार बिहट के मसनादपुर टोला-बेगूसराय (बिहार)का रहने वाला है जेएनयू मे
आने से पहले वो पटना विश्वविदयालाय मे पढ़ रहा था(निश्चित रूप से वहाँ भी राजनीति
भी कर ही रहा होगा) वहाँ से जेएनयू आकार कन्हैय्या कुमार इंटरनेशनल स्टडी विभाग (SIS)से अफ्रीकन स्टडीस मे पीएचडी कर रहा है। चूंकि कन्हैय्या कुमार सीपीआई का सपोर्टर
है।सनी लियोनि के विज्ञापनो पर अतुल अंजान द्वारा विरोध प्रकट करने पर यही कन्हैय्या
कुमार उन्ही के विरोध मे खड़े हो गए।
खैर इस
विषय मे मै पहले भी लिख चुका हूँ। अब बात करते हैं कल जब कन्हैय्या कुमार जेल से बाहर
आया और जेएनयू मे कल रात जो भाषण बाजी की उससे एक बात तो साबित हो गई कि लड़का वाक्पटुता
मे अच्छा है और उसका राजनैतिक भविष्य भी अच्छा है शायद इसी कला के कारण उसने अध्यक्ष,जेएनयू का चुनाव भी जीत लिया। कल एनडीटीवी
ने भाषण का LIVE प्रसारण लगभग 45 मिनिट तक किया। जहाँ बाकी सभी
टीवी चेनल कुछ फुटेज दिखाकर संतुष्ट हो गए लेकिन NDTV ने प्रधानमंत्री
द्वारा संसद मे दिये गए भाषण को इतनी तवज्जो न देकर कन्हैय्या कुमार जैसे एक साधारण
लड़के को इतना महत्व दिया। जिससे एक बात सिद्ध हो गई कि NDTV जैसा
न्यूज़ चेनल किसके इशारे पर कार्य कर रहा है। कन्हैय्या कुमार ने पूरे भाषण मे आरएसएस,बीजेपी और एबीवीपी को जिस तरह निशाना बनाया उससे ऐसा प्रतीत हुआ कि काँग्रेस के राज मे देश मे
दूध और घी कि नदियां बह रही थीं। सभी ओर विकास और खुशहली छाई हुई थी किन्तु जब से बीजेपी
सत्ता मे आई है “देखो देश मे क्या हो रहा है ब्ला ब्ला ब्ला .... ये तो नीरा पागलपन है और सोचने पर विवश करता
है कि हम किस दिशा मे जा रहे हैं हम कैसी शिक्षा बच्चों को दे रहे रहे और बच्चे किनसे
कैसी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।Mrs मुखर्जी जो कि जेएनयू मे प्रोफेसर
हैं जब कहती हैं कि भारत ने कश्मीर पर जबरन कब्जा कर रखा है तो मुझे ऐसा प्रतीत होता
है कि शायद उनका मानसिक विकास अभी तक नहीं हुआ है और फिर ऐसे लोगों को प्रोफेसर जैसे
पद पर कैसे चयनित कर लिया जाता है। आश्चर्य इस बात पर भी है कि भारत सरकार ने अभी तक
कोई कारवाई क्यों नहीं की है?
आखिर क्यों
कन्हैय्या कुमार आरएसएस और बीजेपी पर अपने भाषण मे प्रहार करता रहा और काँग्रेस और
अन्य पार्टियों को बखश्ता रहा कारण बहुत सरल और सीधा है।जेएनयू यानि जवाहर लाल नेहरू
विश्वविद्यालय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के नाम पर हैं और राहुल गांधी जो कि काँग्रेस
के उपाध्यक्ष हैं उसे कहीं न कहीं अपनी जागीर समझने के मुगालते मे हैं। इसलिए तुरंत
राजनैतिक फायदे के लिए वहाँ पहुँच जाते हैं। इसी प्रकार वे हैदराबाद विश्वविद्यालय
भी रोहित वेमुला कि मृत्यु पर तुरंत पहुँच जाते है किन्तु वे और उनके unmature साथी देश पर जान न्योछावर
करने वाले शहीद के घर का रास्ता भूल जाते हैं। अब कन्हैय्या कुमार चाहकर भी काँग्रेस
के विरोध मे नहीं जा सकता क्यों कि जिस जेएनयू ने उसे इतना लोकप्रिय बनाया है उसके
मालिकों के प्रति फर्ज से वो अपने आप को बंधा हुआ पता होगा। इसलिए बड़े बुजुर्ग कह गए
हैं “खायेगा मुँह लजायेंगी आँखे”
कल जिस
प्रकार देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों ने कन्हैय्या कुमार के जेल से बाहर आने का
गुणगान किया और ये साबित करने का एक असफल प्रयास किया कि Z न्यूज़ कि सभी क्लिप्स doctored
थी ब्ला ब्ला ब्ला ....चूंकि ये सिर्फ Z न्यूज़
का मसला नहीं है बल्कि किसी भी स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए शुभ नहीं है कि लोकतन्त्र का
चौथा स्तम्भ “पत्रकारिता” पक्षपात पूर्ण रवैय्या अपनाये। इसकी जीतने कड़े शब्दों मे
निंदा कि जाए वो कम है। इससे भी अजीब बात ये हुई कि केजरीवाल महाराज जेएनयू मे इतना
इन्टरेस्ट लेते नज़र आए और 13 फरवरी को ही मजिस्ट्रेटिय जांच के आदेश दे दिये जब कि
उनका इस सबसे कुछ लेना देना नहीं था। जांच कराई और श्रीमान संजय कुमार जो कि IAS
हैं ने बिना Z न्यूज़ की क्लिप्स देखे (U
tube से डाउन्लोड कर प्राइवेट लैब मे जांच कराई ) जांच की और 1 मार्च-2016
को रिपोर्ट भी सबमिट कर दी और कन्हैय्या कुमार को निर्दोष साबित कर दिया। अच्छी बात
ये हुई कि श्रीमान संजय कुमार ने U tube से डाउन्लोड कर जो क्लिप्स
प्राइवेट लैब से जांच कराई वो doctored नहीं पाई गई।
प्रश्न ये है कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय इस केस को देख रहा है तो दिल्ली सरकार
ने मजिस्ट्रेटिय जांच के आदेश किस आधार पर दिये? क्या दिल्ली
सरकार अपने आप को दिल्ली उच्च न्यायालय से ऊपर समझती है। क्यों नहीं अभी तक देश विरोधी
नारे लगाने वालों के खिलाफ कारवाई हुई। इस तरह के अनेकों प्रश्न हैं जिनका उत्तर भविष्य
के गर्भ मे छिपा है और भविष्य आज नहीं तो कल सामने आने वाला ही है।
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प्रदीप भट्ट :::04.03.2016