"आओ इतिहास-इतिहास खेलें”
एक कहावत तो हम सब बचपन से सुनते आ रहे हैं कि “हाथी
निकल गया पूंछ फंस गई” पिछले
दिनों ऐसा ही कुछ नज़ारा टीवी के हर चैनल पर नमूदार हुआ जिसमें करनी सेना के लोगों
द्वारा संजय लीला भंसाली के साथ हाता पाई की गई कारन स्पष्ट है जयपुर में ये खबर
आग की तरह फ़ैल गई कि संजय लीला भंसाली रानी पद्मिनी/पद्मावती के जीवन पर जिस फिल्म
को बना रहे हैं उसमें वे रानी पद्मिनी/पद्मावती और अल्लाउद्दीन खिलज़ी के मध्य
प्रेम प्रसंग फिल्म रहे हैं अगर ऐसा है तो निश्चित रूप से इतिहास के साथ छेड़छाड़
किये जाने का मामला बनता है ऐसा ही आक्षेप संजय लीला भंसाली पर “बाजीराव
मस्तानी” के निर्माण के दौरान भी
लगा था और फिल्म प्रदर्शन से पूर्व व् पश्चात् इस पर काफी प्रदर्शन भी हुए किन्तु
फिल्म न केवल चल निकली बल्कि ये एक बड़ी हिट भी रही।
यूँ तो इतिहास पर बहुत सारी फिल्मों का निर्माण हुआ है
और शायद सोहराब मोदी, चन्द्रमोहन और के०
आसिफ़ के समय में इतिहास पर फिल्म बनाते समय इतना हंगामा खड़ा न हुआ हो। ५०-६० के
मध्य में एक फिल्म बनी थी मुग़ल-ए-आज़म जो अपने ज़माने की भव्य फिल्म थी साथ ही सुपर
डुपर हिट भी थी। इस प्रकार की फिल्म बनाने पर अनाप शनाप पैसा खर्च होता था। फिल्म
चल गई तो वारे न्यारे वरना निर्माता सड़क पर आ जाते थे। आज ऐसी स्थिति नहीं है
फिल्म बनने से पहले ही टीवी चैनल करोड़ों में सौदा कर फिल्म खरीद लेते हैं। खैर हम
बात कर रहे हैं रानी पद्मावती (जिनका
वास्तविक नाम पद्मिनी हैं) की तो आइये पहले इतिहास के झरोखे में झांक लिया जाये।
रानी पद्मिनी, चित्तोड़ की रानी थी। रानी पद्मिनि के साहस और बलिदान की
गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंघल
द्वीप (आज
का श्रीलंका) के
राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी की शादी चित्तोड़गढ़ के राजा रतन सिंह के साथ हुई थी। रानी पद्मिनी अत्यंत खूबसूरत
थी और उनकी खूबसूरती के चर्चे चहुँ ओर फैले हुए थे। एक दिन दिल्ली के सुल्तान
अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मिनी की सुंदरता के विषय में पता चला और वह उन्हें
पाने की बदनीयत कर बैठा। श्रुति यह है कि उसने दर्पण में रानी की प्रतिबिंब देखा
था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था। अलाउद्दीन किसी
भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने 1303 ईस्वीं में चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया। उस युद्ध में
राजा रतन सिंह बुरी तरह परास्त हुए और वीरगति को प्राप्त हुए। कुलीन रानी ने लज्जा
को बचाने के लिए जौहर करना बेहतर समझा और रानी पद्मिनी ने राजपूत रमणियों के साथ
जौहर की अग्नि में आत्माहुति दी। लेकिन अपनी आन-बान पर आँच नहीं आने दी।
मलिक मोहम्मद ज्यासी के
महाकाव्य ‘पद्मावत’ की कुछ पंक्तियां जिसमें
रानी पद्मिनी/पद्मावती के विषय में बताया गया है।
तन चितउर, मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा ॥
गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ?॥
नागमती यह दुनिया-धंधा । बाँचा सोइ न एहि चित बंधा ॥
राघव दूत सोई सैतानू । माया अलाउदीन सुलतानू ॥
प्रेम-कथा एहि भाँति बिचारहु । बूझि लेहु जौ बूझै पारहु ॥
उपरोक्त से एक बात तो सिद्ध है कि पद्मिनी/पद्मावती कितनी सुंदर रही होंगी जो दर्पण में
उनका अक्स देखकर ही अलाउद्दीन खिलज़ी उन्हें पाने के लिए लालायित हो गया।
लेकिन प्रश्न ये है कि संजय लीला भंसाली पहले बाजीराव मस्तानी और अब पद्मिनी/पद्मावती
पर फिल्म बनाने का मोह नहीं क्यों नहीं छोड़ पा रहे शायद इसलिए हिन्दू नायकों/नायिकाओं
के विषय में वे कुछ भी उल्टा सीधा लिख सकते हैं और स्क्रिप्ट की डिमांड और न जाने
क्या-क्या विशेषण लगाकर वे अपनी बात को सही साबित करने की चेष्टा कर सकते हैं किन्तु
ऐसा वे मुस्लिम इतिहास के नायक या नायिकाओं के साथ करने का रिस्क कभी नहीं लेंगे क्यों
कि उन्हें फ़तवा जारी होने का भय रहता है इस विषय में हिन्दू चूँकि ज्यादा सॉफ्ट टारगेट हो
सकता है वे रिस्क ले लेते हैं।
ऐसा भी नहीं कि ये सब फिल्मों तक ही सीमित हो टीवी पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक
पहले चक्रवर्ती सम्राट अशोक और अभी चन्द्र-नंदिनी को देख लीजिये। जाने इसके निर्माता
निर्देशक कौन से इतिहास से लेकर ये सब दिखा रहे हैं अगर कोई आपत्ति दर्ज करेगा तो एक
लाइन में “इस धारावाहिक में दिखाए जा रहे पात्र और घटनाओं का इतिहास से कोई लेना देना
नहीं है” लिखकर इतिहास की माँ -बहन करने का ठेका ले लेते हैं। वैसे भी आजकल जो
धारावाहिक प्रत्येक चैनल पर प्रसारित हो रहे हैं वो सब एकता कपूर की घुट्टी पीकर
आते हैं और एतिहासिक धारावाहिक भी सास बहु के सीरियल की तरह बनाते हैं इसका
उदाहरण चन्द्र नंदिनी देखकर लगा लीजिये।ऐसा लगता ही नहीं कि ये एतिहासिक
धारवाहिक है वरन इनके सैट देख लीजिये बिलकुल बड़े घर के बंगलों की तरह दीखते हैं,
क्या राजा, क्या रानी, क्या मंत्री क्या और क्या राजमाता जिसे देखो वो कहीं भी बनावटी
महल के किसी भी कोने में मुंह उठाये घुस जाता है राजा का व्यवहार देखकर लगता है
कि ये राजा काम उठाईगिरा ज्यादा है और हद तो तब हो जाती है नंदिनी की हमशक्ल
पेश कर दी जाती है। मतलब इस तरह के धारावाहिक देखकर मुझे तो छिछोरी-गिरी की पराकाष्ठा
नज़र आती है
संजय लीला भंसाली के साथ हुए हादसे पर फिल्म इंडस्ट्री के तमाम लोग अपनी एकता
प्रदर्शन करने को आतुर दिखे । इसमें कुछ बुराई भी नहीं है भी बिरादरी का मामला है किन्तु
अनुराग कश्यप का यह कहना कि अब हिन्दू आतंकवाद मिथ नहीं रहा हास्यास्पद भी है और
समझ से परे भी है। पूरे विश्व को इस्लामिक आतंकवाद ने डरा रक्खा है और इस्लामिक
आतंकवादी हाथ पैर नहीं वरन सीधे अत्याधुनिक हथियारों से लैस होकर कहीं भी किसी भी जगह
बम फोड़ रहे हैं। भीड़ पर बड़े बड़े ट्रक चढ़ा कर लोगो को मार रहे हैं और तो और रशिया के
राजदूत को उन्हीं का सुरक्षा अधिकार सबके सामने गोलियों से छलनी कर देता है और सारा
इस्लामिक समाज (बुद्धिजीवी तो हैं ही नहीं और हैं भी तो छद्म) कभी भी कहीं भी उसके पैरोकार
बनके खड़े होने में ही अपनी वाह-वाही समझते हैं, की तुलना कुछ जोश में आये राजपूतों
(राजपूत जाति ही जोश से भरपूर रहती है) द्वारा भंसाली को थप्पड़ मारने से तो नहीं की जा
सकती और अनुराग कश्यप इसे हिन्दू आतंकवाद बताएं तो मुझे तो उनकी मुर्खता पर हंसी ही
आ सकती है।
प्रिय भंसाली जी और प्रिय अनुराग अगर आप भी इतिहास पर फिल्म बनाने की
इतनी ही इच्छा रखते हैं तो मैं औरंगजेब की बेटी जैबुनिंसा बेगम और भतीजी ताज बेगम की
कृष्ण भक्ति में लीन उनकी जीवनी पर फिल्म बनाने का आग्रह करुना दोनों ही बहने कृष्ण भक्ति
में इतनी मगन थी कि वे नमाज़ पढना ही भूल गई। उन दोनों का ऐसा मानना था कि इस्लाम
और कुरान के कारण ही औरंगजेब इतना कट्टर और निर्दयी है और इसी कारण वह हिन्दुओं पर
घोर अत्याचार करता है अतएव दोनों ने कृष्ण भक्ति में अपना मन लगाया। उनके कृष्ण भक्ति में
लींन रहने पर पूरी मुगलिया सल्तनत असमंजस में थी क्यों कि ताज बेगम कृष्ण भक्ति में पदों की
न केवल रचना ही करती थी अपितु उन्हें गाती भी थी जिस कारण पूरा राज दरबार और पूरा मुस्लिम
समाज पशोपेश में था कि इनके साथ क्या सलूक किया जाये,यहाँ मैं ताज बेगम के लिखे एक पद
को आपकी जानकारी हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ, इस एक पद में आपको उनकी भक्ति की इंतेहा दिखाई
देगी:-
“छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला।
बड़ा चित्त का अडीला, कहूँ देवता से न्यारा है।।
माल गले सोहे, नाक मोती सेत जो है कान।
कुण्डल मन मोहे, लाल मुकुट सिर धरा है।।
दुष्टजन मारे,सब संत जो उबारे ताज।
चित्त में निहारे, प्रण प्रीती कारन वारा है।।
नंदजू का प्यारा,जिन कंस को पछारा।
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है।।
सुनो दिल जानि, मेरे दिल की कहानी तुम।
दस्त ही बिकानी,बदनामी भी सहूंगी मै।।
देवपूजा ठानी मैं, नमाज़ हूँ भुलानी।
तजे कलमा-कुरान साड़े गुननि गहुंगीं मै।।
नंद के कुमार,कुर्बान तेरी सूरत पे।
हूँ तो मुगलानी, हिंदूआनी बन रहूंगी मैं।।”
औरंगजेब की एक और पुत्री फिरोजा जो कि जालौर के राजा कान्हण देव के पुत्र
कुंवर विरमदेव सोनगरा के प्रेम में दीवानी थी और जब विरमदेव वीरगति को प्राप्त हुए
तो फिरोज़ा की धाय माँ सनावर जो उस युद्ध में सेना के साथ आई थी विरमदेव का मस्तक
कट कर खुशबु युक्त पदार्थों में रख कर डेल्ही ले गई।ऐसा माना जाता है कि विरमदेव का
मस्तक जब स्वर्ण थल में रखकर फिरोजा के सामने पेश किया गया तो थाल में रखा
मस्तक उल्टा घूम गया तब शहजादी फिरोजा को अपने पूर्व जन्म की कथा जानी।
“तज तुरकाणी चाल हिन्दू आंणि हुई हमें,
भो-भो रा भरतार, शीश न धूण सोनिगारा”
फिरोजा ने स्वम विरमदेव के मस्तक का अग्नि संस्कार किया एवं अपनी माँ से आज्ञा
लेकर यमुना नदी में अपनी आहुति दे डाली (सन्दर्भ पुरस्तक-रावल विरमदेव-लेखक देवेन्द्र
सिंह जी जो एक पुलिस अधिकारी रह चुके हैं)
::: प्रदीप भट्ट :::
31.01.2017