रिपोतार्ज
-मेरा बेहतरीन नाशिक प्रवास और विद्योत्तमा फाऊंडेशन-
कितना अजीब है न, 34 वर्षो के पश्चात नाशिक के उसी शालीमार स्थित सुरुचि रेस्टोरेंट में अपने मित्र राम कृष्ण सहस्र बुद्दे के साथ खाना खाना, एक पल में मैं फरवरी-मार्च-1987 के दौर में लौट गया। 🤗
मौका था,विद्योतमा फांऊनडेशन, द्वारा एच आर डी सेंटर, नाशिक (महाराष्ट्र) में दिनांक: 09.01.2022 को विश्व हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर “राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मान समारोह” का भव्य आयोजन जिसे कोरोना के सभी प्रोटोकाल का पालन करते हुए किया गया। दिनांक: 07.01.2022 की सांय हैदराबाद के सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकडते हुए सुबोध मिश्र जी अध्यक्ष विद्योत्तमा फाउंडेशन का फोन आना और पूछना प्रदीप जी आप आ रहे हैं न, मैं एक क्षण में समझ गया ये जो कोरोन के मामा का लडका “ओमिक्रान आया है🤪🤪 इस कारण कार्यक्रम की प्रशासन द्वारा स्वीकृति नही मिली है। मैंने उत्तर दिया, बडे भाई पहली बात तो ये है कार्यक्रम अवश्य होगा फिर भी यदि कुछ पाबंदिया लगती हैं तो हम जितने भी लोग कार्यक्रम के लिए पहुँचेगें निश्चित रुप से अपने अपने कमरों में धमाल मचायेंगे। शायद मेरी इस बात से सुबोध जी को कुछ राहत सी मिली होगी।
खैर 8 जनवरी की सुबह 8 बजे मनमाड फिर वहाँ से नाशिक की ट्रेन और लीजिए हुज़ुर 10:30 हरे भरे सुरम्य वातावरण वाले एच आर डी सेंटर्। बाहर सडक पर जहाँ नाशिक एक महानगरीय अनुभव से दो चार करा रहा था वहीं एच आर डी सेंटर के अंदर प्रवेश करते ही गाने क़ी पंक्तियाँ याद आ गई “ ये कहाँ आ गये हम” चारों तरफ हरे भरे पेडों का हुजूम, पुराने समय की रिहाइश के दर्शन, कमरे में प्रवेश करते ही, खपरैल वाला कमरा वो भी अटैच्ड लेट्रिन बाथरुम, वातानाकुलित यंत्र, दो चारपाइयां, एक टेबल दो कुर्सी, करीने से बिछा हुआ बिस्तर,कुछ कमियाँ थीं जिन्हें इग्नौर किया जा सकता है। यहाँ है लिखना आवश्यक है कि असल में ये एक पुराना चर्च है जिसे अब ट्रस्ट बनाकर कमर्शियल तौर पर यूज़ किया जाने लगा है। खैर मैं और राम कृष्ण जी निफराम होने के बाद बाजार घूमने निकल पडे और अक्स्मात मेरी निगाह सुरुचि रेस्टोरेंट पर पडी, मुझे वहीं ठिठकता देख राम कृष्ण जी ने कहा अभी आगे और भी रेस्टोरेंट हैं, मैंने एक ही श्वांस में 1987 के ट्रेनिंग पीरियड का पूरा किस्सा उन्हें सुना दिया कि कैसे हम रोज रोज़ मैस के खाने से परेशान होकर शनिवार व रविवार इसी रेस्टोरेंट में खाना खाते थे। कुल 3 रुपये 75 पैसे की थाली जिसमें एक सब्ज़ी,एक दाल, सांभर अचार, तीन रोटी, एक पापड और चावल्। राम कृष्ण जी ने तय किया कि मार्किट घूमने के बाद इसी में खाना खायेंगे। मैंने जानबूझ कर खाने का पेमेंट कार्ड से किया ताकि सनद रहे।
शाम को, ज्ञान चंद मर्मज्ञ जो कि पत्नि के साथ बंगलौर से पधारे थे मुलाकात हुई, पता चला काफी लोगों ने कोरोना के कारण अपनी टिकिट कैंसिल कर दी हैं कुछ की रेलवे ने कैंसिल कर दीं। सायं को कुछ बेहतरीन स्थानीय लोगों से मुलाकात हुई जिनमें सुधीर जी के साथ सुनीता माहेश्वरी, सुधा सिंह, सी पी मिश्र, प्रिय स्वप्निल (जो लगातार कार्यक्रम के इंतेज़ामात में व्यस्त रहे), नागपुर से पूनम मिश्र,श्रद्धा शिंदे जी अपने पति के साथ एक और नाम शायद रागनी जी, मिलकर लगा ही नही हम पहली बार मिल रहे हैं। और तभी बरखा रानी ने अपना ज़बरदस्त रुप दिखाया चारों तरफ पानी ही पानी,केटरिंग वाले को मैंने पहले ही सावधान कर दिया था कि आप कॉरिडोर में शिफ्ट हो जाएं, खुले में तकलीफ होगी (शायद इस डर से कि बारिश ने गडबड कर दी तो रात भर भूखा ही रहना पडेगा) 😅राम कृष्ण जी लगातार चाँदनी समर जी के सम्पर्क में थे जो कि अपने पिताजी के साथ मुजफ्फरपुर बिहार से आ रही थीं। इसके अतिरिक्त एक फैमिली चार सदस्यों के साथ नागपुर से भी अपनी कार से आ रही थी। सुधीर जी से चर्चा के दौरान यह तय हुआ कि देर रात तक जो भी लोग आने वाले हैं हम उन्हें एंटरटेन कर लेंगे आप लोग घर जाकर आराम करें क्यों कि उन्हें कार्यक्रम की और बहुत सारी तैय्यारी करनी थी। चूँकि बारिश लगातार हो रही थी तो तय किया कि केटरिंग वाले भी खाना लगाकर चले जाएं क्यों कि उन्हें भी सुबह सवेरे आना था। लगभग 10:30 पर चाँदनी और 11 के करीब नागपुर वाली फैमिली आई जिसे हम दोनों ने अच्छे से एंटरटेन किया वो भी हास्य विनोद के साथ्।😉😁
अगले दिन यानि 9 जनवरी को विधिवत कार्यक्रम की भव्य शुरुआत करगिल युद्द के जीवित हीरो में से एक नायक दीप चंद, (यहाँ यह विदित हो कि करगिल वार के समय नायक दीप चंद ने युद्ध में अपने दोनों पैर व एक हाथ को खो दिया है।) द्वारा दीप प्रजव्वलित कर की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता उद्योगपति व समाज सेवी श्री के सी पाण्डेय द्वारा की गई, कार्यक्रम में सुबोध मिश्र, अध्यक्ष विद्योतमा फांऊनडेशन ऋषि कुमार मिश्र, एवम प्रसिद्ध साहित्यकार डॉक्टर विद्या केशव चिटको एवम शिल्पी अवस्थी ( Mrs India International) उपस्थित रहीं। कार्यक्रम दो सत्रों में आयोजित किया गया। प्रथम सत्र में देश के विभिन्न भागों से पधारे साहित्यकारों का पुरुस्कार राशि के साथ साथ विधिवत्त रुप से सम्मानित भी किया गया। विद्योतमा फांऊनडेशन द्वारा मेरी प्रथम पुस्तक “दरिया सूखकर सहरा हुआ है” के लिए मुझे “साहित्य सारथी” सम्मान से सम्मानित किया गया।
दूसरे सत्र में देश के विभिन्न भागों से पधारे कवियों ने काव्य पाठ कर उपस्थित श्रोताओं को आनंदित कर दिया वहीं मेरे द्वारा नव वर्ष के उपलक्ष्य में पढी गई गज़ल “बीते वर्ष की बातें करके क्या होगा/ हम अच्छे तो साल नया अच्छा होगा” ने श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया। चाय के समय सभी कविगण फिर से एकत्र हुए ।प्रसिद्ध साहित्यकार डॉक्टर विद्या केशव चिटको द्वारा मेरे पास आकर मेरी गज़ल की तारीफ करना मेरे लिए आशीर्वाद स्वरुप रहा।
अंत में सुधीर जी एवम उनकी पूरी टीम जिसने इतने बेहतरीन इंतेज़ाम किये उनका हार्दिक धन्यवाद और विशेष धन्यवाद सुधीर जी को उनकी सह्रदयता के लिए जिन्होंने सुबह से अपने काम में मश्गूल उन फ़ोटोग्राफर महोदय का भी सम्मान कराया निश्चित ही ये बात मेरे दिल पर अंकित हो गई क्यों कि सामान्यत: लोग फोटोग्राफर से यही कहते देखे हैं कि भईय्या जाने से पहले खाना ज़रुर खा लेना, धन्यवाद देना और सम्मान करना तो जाने दीजिए।
एक बेहतरीन और यादगार प्रवास।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-
- 18:01:2022