Tuesday, 3 June 2025

" कि हाल है त्वडा मियां मोइनुद्दीन "


रिपोर्ताज 

             " कि हाल है त्वाडा मियां मोहिउद्दीन  "

        काम तो सभी करते हैं फिर आप क्या ख़ास कर रहे हैं हुज़ूर! बस यही एक बात है जो आपको दूसरों से अलहदा बनाती हैं।🙏 8 जनवरी-2022 को संस्था की कर्ताधर्ता के हृदय में एक विचार पनपा और अगले ही रोज संस्था का नामकरण भी तय हो गया। धीरे धीरे संस्था ने मूर्त रूप लेना शुरू किया और इस तरह "साहित्य-सृजन कुटुम्ब" 🍁 संस्था अस्तित्व में आ गई। चूँकि मैं हैदराबाद में पदस्थ था अतएव दूरभाष पर ही सार्थक चर्चा के माध्यम से संस्था के कार्यो में सम्मिलित होता रहा। 20 नवंबर- 2022 को हिन्दी भवन में आयोजित कार्यक्रम में मैंने हैदराबाद से पहुँच कर पहली बार संस्था के कार्यक्रम में शिरकत की। जून -2023 में सेवानिवृत्त होने के बाद मैं मेरठ में सैटल हो गया और संस्था के कार्यों में मेरी पूर्ण रूपेण भागीदारी बढ़ गई। जून-2024 में हिन्दी भवन में भव्य समारोह का आयोजन किया गया जिसमें मेरे काव्य संकलन " उर नाद" का लोकार्पण भी शामिल है।💓 देर से ही सही अन्ततोगत्वा मार्च-2025 में संस्था का दिल्ली सरकार से रजिस्ट्रेशन भी करा लिया गया। यहाँ य़ह उल्लेख करना जरूरी है कि संस्था द्वारा अभी तक जितने भी कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं वो सब बिना किसी अनुदान के सम्पन्न हुए हैं। संस्था के पंजीकृत होने के बाद प्रथम परिचय स्वरूप डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के जन्मोत्सव पर 14 अप्रैल-2025 को न्यू शर्मा आर्ट कॉलेज, शक्ति नगर में  एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

         मई माह की मीटिंग में सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया कि चूँकि 28 मई को वीर सावरकर जी का अवतरण दिवस है तो क्यूँ न संस्था इस पावन पर्व को किसी पावन स्थान पर मनाए और निर्णय हुआ कि प्रयाग राज से अच्छा और कोई विकल्प नहीं हो सकता। आख़िर तीन नदियों (गंगा यमुना और सरस्वती) का संगम स्थल जो है। आनन फानन में संतोष सम्प्रीति जी ने भारतीय रेलवे में कार्यरत श्रीराम तिवारी जी को फोन खड़का दिया, संक्षिप्त में उन्हें माजरा समझाया और लो जी अगले दिन की सांय तक वेन्यू मैन्यू सब डिसाइड हो गए। कुल 25 साहित्यकारों ने आने की पुष्टि भी कर दी। अब बारी दिल्ली-प्रयागराज- दिल्ली के रेल्वे टिकटों की थीं तो भैय्या ये काम हमने निपटा दिया। 😇 27 मई- 2025 की सुबह एक मित्र ने साथ चलने में असमर्थता प्रकट कर दी सो कुल जमा तीन लोग रात में ट्रेन में लेटे सुबह उठे। ऐसे मति देखो मियां मतबल यूँ है कि रात्रि साढ़े दस से सुबह 6 बजे तक के सफ़र को यूँ ही लिखा जाएगा न मतबल ठीक से सोए भी नहीं कि ट्रेन के इंजिन ने चिल्लाकर कहा उतरो बे इत्ते पैसे में इत्ता ही सफ़र मिलेगा।🤣 स्टेशन से बाहर आए तो एक बड़े से आटो वाले ने खींसे🥳 निपोरते हुए दुनिया भर के होटलों के नाम गिनवा दिए, इससे पहले कि दोनों साथियों में से कोई उसे टोकता हमने यूँ ही पूछ लिया तुम्हें कित्ता कमिशन मिलेगा मोइनुद्दीन जी वो अक बका कर बोलो हमारा नाम मोइनुद्दीन नहीं है शराफत अली है हमें सहसा बड़े मियां छोटे मियां के सतीश कौशिक याद आ गए। कहाँ सतीश कौशिक का डील डॉल और कहाँ यह 127 ग्राम का, दोनों में कोई जोड़ ही नहीं बनता फिर भी जब बारीक से शराफत ने पीछा न छोड़ा तो तो जोर की अंगड़ाई लेते हुए कहना पड़ा ऊ देख रहे हो न काली चमचमाती थार हम उसमें जाएंगे अपनी फ़ूफी के पास फ़ूफी का लौंडा हमें लेने आया है।🤓 अब मियां शराफत कभी हमें कभी हमारी कलाई में बंधे कलावे को देखकर भौंचक हुए जा रिये थे। हमने अपने दोनों साथियों से कहा चलो बे प्रोग्राम के लिए लेट नई होने का समझे।🙂‍↕

         लो जी ठीक सात मिनिट कम 10 बजे त्रिमूर्ति पहुँच गई प्रीतम नगर स्थित हल्दीराम के खान पान केंद्र पर, काफ़ी बड़ा तामझाम, प्यारे से मैनेजर साहब ने बढ़िया स्वागत किया फिर अगले आधे घण्टे में उन्होंने सारी व्यवस्थाएं करवा दीं। मैंने यूँ ही चुटकी लेते हुए पूछा भईय्या जी हमारे प्रोग्राम से आपके ग्राहक डिस्टर्ब तो नहीं होंगे, 😜हो सकता है किसी को कविता पसन्द न आए तो वो बिना पैसा दिये नौ दो ग्यारह हो गया तो... मुस्कराते हुए मैनेजर बोले गर्मी के मौसम में पहली बात तो दिन में ग्राहक नाम मात्र का आता है अगर आ गया और उसे कविता पसन्द आ गई तो फिर हम उससे अगले पिछले सब हिसाब बराबर कर लेंगे।🤔 हम मन ही मन बुदबुदाए प्रदीप बाबू आदमी पूरा घुटा हुआ लगता है। बात करते करते सत्य प्रकाश जी ने हॉल में कदम रक्खा। साढ़े ग्यारह बजते बजते अच्छी खासी तादाद इकट्ठी हो चुकी थी। अलग अलग शहरों में कई अलग अलग सम्मेलन अटेंड किये हैं, हालत सब जगह एक सी पाई। हर कवि लेखक को लगता है कि मुन्शी प्रेमचन्द और दिनकर के बाद बस वही है जो साहित्य की नाव के खेवनहार है🥵, कुछ तो अपने आपको उनसे भी ऊपर समझ बैठे हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि अगर वे समय से कार्यक्रम में जाएंगे तो उनकी पूंछ कट जाएगी। अब उन्हें कौन समझाए समय कब किसी का हुआ है जो उनका होगा। एक दिन ऐसा आएगा कि अपनी पूंछ अपने हाथ में लेकर घर पर पड़े रहेंगे कोई पूछेगा भी नहीं, हाँ नई तो....!🙄

         ख़ैर हमारी टीम ने दीप प्रज्ज्वलित होने के पश्चात्य सरस्वती वंदना विशिष्ट अतिथि डॉक्टर विन्ध्यवासिनी शर्मा (पूर्व भारतीय वायुसेना अधिकारी) के मुखारबिंद से सुनकर सभी उपस्थित लोगों के कानों में मिस्री सी घुल गई। कार्यक्रम अध्यक्ष- श्री भगवानदास उपाध्याय (प्रसिद्ध साहित्यकार,पत्रकार ) मुख्य अतिथि-श्री बसंत कुमार शर्मा (CPTM उत्तर रेलवे) संयोजक -श्रीराम तिवारी ‘सहज’(रेलवे अधिकारी , साहित्य घराना संस्थापक ) स्वागतकर्ता एवं संस्थापक सचिव (साहित्य सृजन कुटुंब सचिव) एवं आयोजक के तौर पर- डॉ.एस के संप्रीति (साहित्य सृजन कुटुंब संस्थापक अध्यक्ष ) अनेक वरिष्ठ कवि , कवयित्रियाँ की गरिमामयी उपस्थिति में कार्यक्रम विधिवत प्रारम्भ हुआ। सबसे पहले आयोजक डॉ.एस के संप्रीति द्वारा कार्यक्रम की जानकारी देते हुए संचालन का भार ओजस्वी कवि श्री रोहित तिवारी को दिया गया। अतिथियों को संस्था की ओर से अंग वस्त्र और ‘स्वतंत्रता सेनानी "वीर सावरकर स्मृति चिन्ह’ प्रदान करके सम्मानित किया गया ।
सचिव महोदय श्री प्रदीप भट्ट ने मंचीय अतिथियों का परिचय पढ़ा और उनका स्वागत किया। डॉ.एस के संप्रीति ने सावरकर जी के व्यक्तित्व और राष्ट्र के प्रति उनके योगदान को उल्लेखित करता हुआ एक वक्तव्य दिया। सभी उपस्थित कवियों सर्व श्री चन्द्र भूषण तिवारी, डॉ.नीलिमा मिश्रा,श्री रोहित तिवारी ,केशव प्रकाश सक्सेना रामवीर सिंह ‘पथिक’, शुभनाथ त्रिपाठी ‘अंशुल’,  एच.एन.पांडे ‘अंजान’, अर्पणा आर्या ‘ध्रुव’, समर बहादुर ‘सरोज’, ऋचा त्रिपाठी ‘तूलिका’, हंसराज ‘हंस’, सत्य प्रकाश सिंह , प्रवीना आर्या धर्मेन्द्र पाण्डेय ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में अपनी अपनी रचनाओं का पाठ किया। हमने भी वीर सावरकर पर लिखा एक गीत प्रस्तुत किया साथ ही पहलगाम घटना को ध्यान में रखते हुए एक गज़ल प्रस्तुत की।🙏🍁

गीत 

"तू अन गिन प्रणाम कर गया" 

तू तो अपना काम कर गया, जग में ऊंचा नाम कर गया 
सूर्य नहीं ढलता था जिनका,उनकी दिन में शाम कर गया 

सत्तावन के गदर को तूने, पूर्ण क्रांति था कह के पुकारा
बरस हुए जब बाइस तो तूने, वसन विदेशी धू कर डारा
हिन्दू हित की बात कही और,अडग रहे तुम वाणी पर 
ज़न मानस को साथ लिया,जयघोष किया रुद्राणी पर 

आज़ादी के मतवालो को, तू अन गिन प्रणाम कर गया 
तू तो.....

दुनिया जो कहती कहने दो, सच तो हमेशा सच रहता है 
आज़ादी के दीवानों का, गीत जुबां पर ही रहता है 
रंग केसरी हमको प्यारा, इस पर जान लुटा सकते हैं 
दुश्मन को अपनी ताकत का, जब तब भान करा सकते हैं 

ख़ास बात करने वालों की, बढ़ कर तू जय राम कर गया
तू तो  .....

सत्ता पे जो काबिज़ होकर, ज़ुल्म रियाया पर करते हैं 
अपने कर्मों का फल निश्चित, वो भी अवनी पर भरते हैं 
माफ़ी वीर कहे जो तुझको, वो अज्ञान से भरे हुए हैं 
सच तो ये है ख़ुद अन्दर से,वो भी तुझसे डरे हुए हैं 

स्व की जोत जलाने वाले, तू सचमुच कोहराम कर गया 
तू तो ......

दुबला पतला तन था लेकिन, मन तेरा मज़बूत बहुत था 
कष्ट सहे जीवन भर तूने, जीवंतता का तू सबूत था 
हिन्दू तन मन हिन्दू जन मन, बात सदा तू कहने वाला 
और फिरंगी सत्ता का ज़ुल्म, नहीं कभी तू सहने वाला 
अंडमान की जेल को तू तो, पावन तुलसी धाम कर गया 
तू तो.....

प्रदीप डीएस भट्ट-28.05.2025

💥
“ ऐसा फायर समझो “ 
हम अच्छे ये अर्थ नहीं तुम, कायर समझो 
भस्म करे जो पल में, ऐसा फायर समझो

अंतिम पल तक रण भूमि में, कहर मचाये
रण बाँकुर तुम राजपूत वो, नायर समझो

इश्क़ विश्क के गीत नहीं मैं, लिख सकता सुन  
देश प्रेम की अलख जगाता , शायर समझो

मीठी मिसरी  बातों से हर, मन भरमाए 
ऐसे हरिक शख़्स को निश्चित,लायर समझो

बूढों, बच्चों, पर हम हर्गिज़,  वार न करते
उस जल्लाद के जैसा मत तुम , डायर समझो

आग का हम इक दरिया, हमसे बच के रहना
नही पतंग में उलझा तुम, कोई वायर समझो

साँसों का व्यापार कभी भी, हम न करते 
गैरों की खुशियों का लेकिन, बायर समझो

मैं ही केवल सच्चा हूँ, बाक़ी सब झूठे हैं 
ख़ुद पर इसको तीखा, एक सटायर समझो 

तुमने बात अगर ये अपनी , ‘दीप’ न मानी  
खुद के ऊपर  एक मुकदमा, दायर समझो

© प्रदीप देवीशरण भट्ट -18:04:2022                                                                                                                                                                                                                       

कार्यक्रम के अंत में संयोजक श्रीराम तिवारी ‘सहज’ द्वारा सभी के प्रति आभार व्यक्त किया गया। उपस्थित सभी कवियों के चेहरों से साफ़ झलक रहा था कि बिना राशन 😄😄🥲अब आगे कुछ न होगा सो अंतिम कड़ी के तौर पर राष्ट्र गान हुआ और फिर भैय्या जो भोजन कुछ देर पहले प्लेटों  में सजा हुआ था अब वो पेटों में पहुंचकर क्षुधा शांत कर रहा था। अच्छी बात ये रही कि भोजन प्रीतिकर भी था और क्वॉन्टिटी में भी कुछ ज्यादा ही था तो जो साफ़ सुथरा बचा उसे पैक कराकर गाय माता को अर्पण कर दिया। गाय माता🐄 ने भी एक लम्बी सी डकार मारी और thanks you बिटवा कह कर लम्बे लम्बे डग भरते हुए ये जा और वो जा।

         साहित्यिक कार्य तो सम्पन्न हो गया था तो सोचा क्यूँ न लेटे हुए हनुमान जी यानि बड़े हनुमान के दर्शन कर लिए जाएं तो भैय्या एक ऑटो लिया और बैठ गए ऑटो वाला भी अजब ही था ससुरे ने अंधेरे में ये कहकर कि यही है लेटे हुए हनुमानजी का मन्दिर हमें न जाने किस मन्दिर पर उतार दिया। उतरकर देखा तो दूर नौटंकी होती नज़र आई फिर ऑटो लिया फिर उतरे फिर दो दो गिलास शर्बत के पीए तब जाकर जान में जान गई।  वो कहते हैं न ढूंढ़ने से तो भगवान भी मिल जाते हैं सो लेटे हुए हनुमानजी भी मिल गए । कित्ता बड़ा मन्दिर, लाईन में लगे तो पता चला अभी मन्दिर बंद है 45 मिनिट बाद में खुलेगा फिर आरती होगी तब जाकर दर्शन। अब हम तो हम ठहरे अंदर से झल्लाए हुए साइड से निकलकर सोचा यहीं से दर्शन कर हनुमानजी को नमस्ते कर लेते हैं। बस यहीं हनुमानजी को गुस्सा😡😡😡😡 आ गया हम ग्रीवा टेढ़ी कर दर्शन का प्रयास कर रहे थे तभी लोहे का एक डंडा जो शायद हमारे ही इन्तजार में था माथे में टन्न से लगा, सच्ची बता रिया हूँ सारी हेकड़ी एक सेकेंड में बाहर निकल गई। साढ़े नौ बजे दर्शन कर बाहर आए फिर सीधे होटल। सुबह उठे सीधे त्रिवेणी में स्नान किया, गर्मी अपने पूरे चरम पर लेकिन हमारा हौसला उससे भी ऊपर, वहां से सीधे सिद्ध मन्दिर फिर भार्गव भवन (आनन्द भवन) फिर चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क (कम्पनी बाग) फिर चंद्रलोक चौराहे पर चंद्रलोक वाले की कचोरी और फिर सीधे होटल। शाम को पुराना शहर देखा 9 बजे ऑटो लिया और सीधे स्टेशन, समान को सीट के नीचे और खुद को सीट पर धकेला और सो गए। अगले दिन दिल्ली होते हुए मेरठ। कुछ मिलाकर एक अच्छे शहर की अच्छी यादें अगले कई दिनों तक याद रहने वाली हैं ।आख़िर में जय श्रीराम तो बनता है जी 👏

प्रदीप डीएस भट्ट-03062025