रिपोतार्ज़
“सब कुछ ठीक नहीं है”
फेस बुक फेस बुक भी है फेक बुक भी है, जिन्होने
भुगता है वो जानते हैं। अपने अपने फालोवर बढाने की एक अंधी दौड में लगे हुए हैं
कुछ पुरुष मित्रों को तो नहीं अपितु महिला मित्रों से ये बात अवश्य साझा की व आगाह
किया कि सिर्फ अपने परिचित की फोटो देखकर ही फ्रेंड रिक्वेस्ट न स्वीकारें। कुछ
फेक चेहरे लगाकर भी फेस बुक पर एक्टिव हैं। पता नहीं उन्होंने मेरी बात को कितनी
गम्भीरता से लिया है या नहीं भी। जाने अंजाने में बिना खोज बीन के मैं रिक्वेस्ट
एक्सेप्ट नही करता हूँ फिर भी गलती है हमसे भी हो जाती है और फिर कुछ दिनों बाद उन
सज्जन या सज्जनी को ब्लॉक ही करना पडता है। कुछ लोग मेसेंजर पर शिकायत भी करते हैं
“आप अपने आप को क्या समझते हैं ........... ......वगैरह
वगैरह” अब उन्हें कौन बताए भैय्या फेस बुक की निर्धारित लिमिट से आगे जाया नहीं जा
सकता। और कुछ बंदे या बंदी तो औसतन माह में चार पाँच सीधे मेसेंजर कॉल ठोक देते
हैं। शुरु में उठाया फिर जब शिकायत का सिलसिला चल निकला तो हमने बताया फेस बुक की
लिमिट हमारे हाथ में नहीं है तो तुरंत सुझाव आप किसी को अन फोलो कर दीजीए हमें जोड
लीजिए। न तो स्वंय किसी रिश्ते में गम्भीर हैं न चाहते और कोई रहे, आज अगर मैं किसी और को निकाल कर उन्हें एड कर लूँ तो कल उन्हें भी तो
निकाल सकता हूँ, लोग समझते ही नहीं, माना
ये आभासी दुनियाँ है किंतु रिश्ते तो रिश्ते हैं। ऐसा कई बार हो चुका है इसलिए
मेसेंजर कॉल उठाना ही बंद कर दिया है। लेकिन ऐसी स्थिति आने पर एक बार गलतफहमी
होनी स्वाभाविक है “ कहीं अपुन भगवान तो नहीं हो गये” खैर जोक सपाट्। इस आभासी
दुनियाँ के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं जो हमें झेलने ही पडेगें। अब फिर
वो चाहे फेसबुक हो अन्य सोशल मीडिया के फन्ने खाँ। खैर अब असली मुद्दा।
अप्रैल माह में नेपाल जाने से पूर्व
राजपाल जी से उनके गुङगाँव स्थित आवास पर मिलना हुआ। उन्होंने दो आग्रह किये कि आप
नीरव जी से अवश्य मिले जिसे मैंने नेपाल के साहित्यिक प्रवास के बाद पूरा किया और
दूसरा आग्रह आगमन से जुडने का। मैं काफी मंचो से जुडा हूँ और आगमन से जुडने का
प्रस्ताव मुझे 2020 में मेरी एक साहित्यक मित्र ने दिया था जिसे मैंने अपनी
व्यस्तता का हवाला देते हुए क्षमा माँगते हुए मना कर दिया। किंतु अब लगभग दो वर्ष
बाद फिर आग्रह। खैर एक दिन पवन जैन जी का फोन आया और जब उनका परिचय प्राप्त हुआ तो
मैंने तुरंत हाँ कर दी। कुछ दिनों बाद पवन जी ने सूचना दी कि 18 सितम्बर-2022 को देल्ही में आगमन के दसवें स्थापना
दिवस पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं अगर आप विशिष्ट अतिथि के तौर पर
कार्यक्रम में शिरकत करें तो प्रसन्नता होगी। मैंने अपने परिचितों से फोन कर पूछा
तो एक को छोडकर सबने कहा देखेंगें । वास्तव में बच्चे के Exam छोडकर उन एक मात्र मित्र का इस कार्यक्रम में सम्म्लित होना ठीक भी नहीं
था। खैंर 17 सितम्बर की सुबह 07:15 की
हैदराबाद से राजधानी पकडी और नाश्ता करके बी पी की गोली खाई और सो गये ।सामान्यत:
मैं दिन में कभी नहीं सोता चूँकि पूरी रात प्रवचन सुनते बीती तो सो गये। उठे तो
पाया मोबालिया को चार्जिंग पे लगाया, फ्रेश होने गये,
खाना खाया तब तक 2:20 हो गये थे, बस यूँ ही कवि कैफे ग्रुप में नागपुर की साहित्यिक मित्र को उनकी पोस्ट की
कमेंट के साथ लिख मारा “ नागपुर के थाने दार साहब हम नागपुर से गुजरने वाले हैं”
इधर मेसैज उधर फोन, और फिर उनका आने के लिए कहना, हमने कहा 5 मिनिट्स के लिए 15-16 किलोमीटर से चलकर आना किंतु साहब थानेदार तो थानेदार ठहरे इधर 15:20
पर गाडी ने प्लेट्फॉर्म को छुआ और थानेदार साहब गेट के सामने।
उलाहना बनता था सो उन्होंने दिया। थोडी देर बार दूसरा मोबाईल चेक किया तो पाया
“ वो खास बन गया है जो महफिल में आम है” की मिस कॉल है वापिस किया
तो ....... अब मन पूरी तरह और ज्यादा खिन्न हो गया था ऐसा पहली बार हुआ जब मैंने 21
घंटे के सफर में किसी सह यात्री से बात नहीं की दो तीन ने कुछ पूछा
भी तो सलेक्टिड उत्तर देकर इति श्री कर ली। मन खिन्न होने के कारण “मौन सर्वार्थ साधकम” अपना लिया।
खैर अगले दिन सुबह 05:34 पर ट्रेन निज़ामुद्दीन स्टेशन पहुँच गई, ऑटो लिया और
सीधे पवन गोयल साहब के दर पर (देल्ही छोडे सोलह बरस हो गये, पहले
मुम्बई से आते या जाते हुए हॉल्ट अब हैदराबाद से, 42 बरस का
याराना है) फ्रेश हुए और 10:10 पर सीधे चौथे माले स्थित आगमन
के कार्यक्रम मे।पवन जी मुलाकात हुई, लखनऊ से पधारी रेखा
वोरा को देखना सुखद रहा उनसे जनवरी-2020 के कार्यक्रम में
जयपुर में मुलाकत हुई थी। धीरे धीरे लोग आते रहे तभी थपियाल जी से मुलाकात हुई
उनसे भी गोवा के कार्यक्रम में मुलाकत हो चुकी थी, नईम जी
नेपाल के महोत्सव में मिल चुके थे, निशा माथुर जयपुर,
और भी कई लोग जो मुझे पहचान रहे थे किंतु मैं उन्हें पहचान नहीं पा रहा
था। खैर 11 बजे शालिनी अगम द्वारा प्रथम सत्र का संचालन
सँभाला गया। माँ सरस्वती के चरण स्पर्श व ‘प्रदीप’ प्रज्व्व्लित करने का सौभाग्य
पाण्डेय जी व तुषा शर्मा के साथ मुझे भी मिला। प्रथम सत्र में जहाँ कार्यक्रम में
पधारे मुख्य व विशिष्ट अतिथियों को सम्मानित किया गया वहीं वागीश्वरी पत्रिका का
विमोचन भी किया गया। दूसरे सत्र की अध्यक्षता श्रीमती व श्री लक्ष्मी शंकर बाजपई
द्वारा की गई। सभी ने अपनी अपनी रचनाओं से समां बाँधा। मैंने भी अपना एक गीत “ आज
से मन ये मेरा तुम्हारा हुआ” पढी। कार्यक्रम का समापन राष्ट्र गान से हुआ। दूसरे
सत्र का संचालन अनुराधा पाण्डेय व मानसी जोशी ने सन्युक्त रुप से किया। कार्यक्रम
के बाद प्रिय पंकज चावला का बर्थडे मनाना यादगार रहा। एक बात जिसका ध्यान मैं सदैव
रखता हूँ कि जब भी स्टेज पर जाओ नंगे पैर ही जाओ।
अगले दिन एक विशेष कार्य का निपटान
करना था सो सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक बढिया वाली धूप
में सिकते हुए उस कार्य को पूर्ण किया। ये एक नया अनुभव था जिससे मैं पहली बार दो
चार हुआ किंतु संतोष की बात ये कि मैं अपने मिशन में कामयाब होकर लौटा। अगले दिन
मेरठ और इंद्र देवता ने मेरे पहुँचते ही सारी टोंटी खोल डाली, पानी रे पानी तेरा रंग कैसा की तर्ज़ पर्। एक दिन में तीन लोगों से मिलना
वो भी बारिश की छपाक के साथ्। इसका अलग ही आनंद है। अगले दिन की दो मीटिंग्स बारिश
की भेंट चढ गई। मुरादाबाद का कार्यक्रम भी इसी क्रम में रह गया। इंद्र देवता के
तेवर कम होने का नाम नहीं ले रहे थे, एक मित्र के आग्र्ह पर
शनिवार 4 बजे देह्ली में एक मीटिंग रखी चूँकि ट्रेन 19:50
की थी सो एक बजे मेरठ से बस पकडी, अंदाज़ा था 15:30
आई टी ओ पहुँच जायेंगे किंतु बारिश की गति को देखते हुए मित्र को
मना करना पडा और हम 16:00 बजे ही निज़ामुद्दीन स्टेशन पहुँच
गये। लगभग 4 घंटे स्टेशन पर बारिश अपने पूरे रौ में बरस रही
थी। खैर ट्रेन पकडी खाना खाया और सो गये फिर अगले दिन फिर वही मौन इख्तियार कर लिया,
मन को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था सो अगले दिन हैदराबाद ।काम करने
थे किये किंतु “ कोई मन का अगर न मिले जीस्त में, बात करने से भी मन उचट जाता है “ संतोष इस बात का रहा ट्रेन में एक छोटी
सी बच्ची बार बार अंकल अंकल कहकर अपनी तोतली भाषा में कुछ समझाती रही शायद मैं भी
उसकी बात समझ पा रहा था, बच्चे में भगवान जो बसते हैं। जय
श्री राम
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-27:09:2022