"बचपन-पचपन"
मखमल से गद्दे पे लेटा
गहरी निंद्रा में वो लीन
जब चाहेगा तब उठ्ठेगा
भले बजाओ कितनी बीन
दुनियाँदारी वो न जाने
घऱ में सबको न पहचाने
जो भी प्यार जताता उससे
उसको ही वो अपना माने
पापा का वो राज दुलारा
औऱ माँ क़ी आँखों का तारा
दादी औऱ छुटकी बुआ क़ी
नज़र में वो है सबसे न्यारा
सबका ध्यान उसी पर रहता
पास में एक न एक है रहता
जब दो तीन हों पास में उसके
कहना हो ग़र आँख से कहता
जब तक है बचपन तुम जी लो
बड़े हुए तो पढ़ लो खेलो
औऱ हुए कुछ बडे़ तो प्यारे
बस एक दूजे क़ो ही झेलो
- प्रदीप देवीशरण भट्ट -
08:01:2021
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