“यात्रा वृतांत”
जब तक हमें किसी बात का भान न हो तब तक हम दीन दुनियाँ से बेखबर रहते हैं और जैसे ही हमें थोडी सी भी जानकारी हो जाए हम परेशान हो जाते हैं, और खंगालने लगते हैं अगले पिछ्ले सभी रिकार्ड्। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। 1987 में ट्रेनिंग के लिए नासिक आया तो त्रम्बेक्श्वर के दर्शन कर लिया बिना तब ये नहीं पता था कि ये ज्योतिर्लिंग हैं। जब पता चला तो उत्कंठा हुई कि और कहाँ कहाँ हैं सूची निकाली ।त्रम्बेक्श्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन तो दो तीन बार और कर लिए किंतु बाकी का नम्बर नहीं आया या ये कहूँ कि जब तक प्रभु न चाहें तब तक दर्शन थोडे ही होने हैं खैर 2013 में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (नागेश्वर धाम छूट गया), 2018 में उज्जैन, ओम्कारेश्वर, 2019 में मल्लिकार्जुन ,2019 में ही बाबा विश्वनाथ। फिर कोरोना काल आ गया घर में पडे पडे पगला सा गय सो नवम्बर में देल्ही को निकल गए और दिसेम्बर में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का प्लान बनाया । गुजरात से आने वाले ट्रेन का 23 दिसम्बर को टिकिट भी बुक हो गया किंतु वापसी का नहीं। फिर सर्च किया और अपने प्रिय मित्र सुहास भटनागर के साथ पर्लीवैजनाध ज्योतिर्लिंग, घ्र्ष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग और भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का प्लान किया और देखिए 23 दिसम्बर की ही टिकिट मिल भी गई। यहाँ यह कहना आवश्यक है कि मैं लगभग 13 वर्ष मुम्बई रहा किंतु इन तीनों ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का बस प्लान ही बनता रहा फलीभूत कभी नहीं हुआ।
अब चूँकि कोरोना काल है,लिमिटिड ट्रेन हैं सो 24 दिसम्बर को समय से 40 मिनिट्स पूर्व ही पर्ली पहुँच गये, फ्रेश हुए और पहुँच गये आटो पकड कर भोले के दरबार में वो खाली और हम भी सो तसल्ली से दर्शन लाभ लिया, नाश्ता किया और चल पडे बीड बस द्वारा ( No direct bus service is available), बीड से फिर बस बदली और औरंगाबाद ( यार महाराष्ट्र कैबिनेट ने जब औरंगाबाद का नाम सम्भा जी के नाम पर करने के लिए निर्णय ले लिया तो फिर अब तक काहे नहीं किया, बहुत लेट लतिफी है भाई) फिर औरंगाबाद से घ्र्ष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (ऐलोरा की गुफाएँ आधा फर्लांग की दूरी पर हैं), कमरा लिया फ्रेश हुए और पहुँच गये मंदिर दर्शन के लिए सांय की आरती में सम्म्लित होना एक रोमांचकारी अनुभव था मैंने इससे पहले कभी ये अनुभव नहीं किया, मैं उस दौरान शायद भक्ति में पूरा लीन हो चुका था। फिर अगले दिन प्रात: पुन: दर्शन किए फिर पहुँचे ऐलोरा (1987 में पहले भी देख चुका हूँ शायद घ्र्ष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये हों किंतु याद नहीं) ऐलोरा में कुछ समय व्यतीत कर मंदिर से सादिलाबाद से औरंगाबाद से अहमदनगर से आड़े फाटा से मंचर से 21:15 पर आखिर भीमा शंकर पहूँच ही गये। भीमाशंकर में रुकने के नाम पर (मंदिर के पास) बहुत बुरा अनुभव हुआ।
खैर सुबह फिर भोलेनाथ के दर्शन किया वो भी पूरी तसलल्ली के साथ्। फिर नाश्ता और फिर बस द्वारा पूना। वहाँ मैं अपने ऑफ़िस के गेस्ट हाऊस में रुका सुबह ऑफ़िस के सामने वाली लेन पर नाश्ते के लिए और क्या देखते हैं सड़क के दोनों ओर बरगद के घने और मोटे मोटे वृक्ष। सुहास जी तो धड़ाधड़ फोटो लेने लगे वो इस माहौल को अपने मोबाईल में क़ैद करके बहुत संतुष्ट दिखे। सांय को उन्हें हैदराबाद की बस के हवाले कर मैं मुम्बई के लिए प्रस्थान कर गया। लगभग डेढ वर्ष बाद मुम्बई आना हो रहा था। घूमता घाता मैं भी 31 दिसम्बर को वापिस हैदराबाद वापिस आ गया। किंतु इस एक हफ्ते के प्रवास की यादें अभी दिमाग से निकल नहीं पा रही हैं।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट- -07:01:2021
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