“दिलकश अदा”
“ ब्यूटीफुल डेट”
दोस्तों ये बात है 2003 की, मैं शाहदरा (देल्ही) से रोज़ाना 08:50 बजे की रुट नम्बर 317 की DTC बस से कनाट प्लेस जाता था। कुछ दिनों से उस समय की बस उपलब्ध न होने के कारण किसी सह-यात्री ने एक स्वराज माज़दा को बुक कर लिया था। हम कुछ चुनिंदा लोग ही उससे सफर करते थे। 2003 में ही रिलायंस के मोबाईल ने दूरभाष के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। 16500/- की कीमत पर (स्टालमेंट में भी उपलब्ध था) सैमसंग या मोटोरोला जो जिसको पसंद हो। मैंने भी अपने लिए एक स्टालमेंट में बुक किया। उसे बड़ी शान से सहेज कर रखते थे। कोई देखना भी चाहे तो दूर से ही दर्शन कराते थे (जैसे उसके हाथ में लेते ही काल लग जाएगी) ख़ैर लगभग तीन महीने बाद ये घटना घटी। मैं 08:40 बजे उस स्वराज माज़दा में चढ़ा और अपनी नियत सीट पर बैठ गया तभी एक आवाज आई।
- माफ कीजिए शायद आपका मोबाइल गिर गया है ।
- मैंने प्रश्न वाचक दृष्टी से अपनी ग्रीवा को उधर घुमाया जहाँ से आवाज़ आई थी। देखा तो पाया कि एक गोरे रंग की औसत कद की गोरी मेरी ओर ही निहार रही थीं । मैने पूछा आप मुझसे मुखातिब हैं ?
- जी हाँ मैं ही ...आगे के शब्द उसने अधूरे ही छोड़ दिये थे।
- मैंने तुरंत जेब में हाथ डाला, मोबाईल जेब से नदारत था, तुरंत सीट के नीचे झुककर देखने का प्रयास किया किंतु स्पेस कम होने के कारण देख न सका।
- उसने बडी अदा से मेरे पीछे की सीट पर जाकर मोबाईल उठाया मुझे पकड़ा दिया। मैंने शिष्टाचार निभाते हुए उन मोहतरमा की तरफ मुस्कान के साथ शुकिया उछाल दिया। जिसे उन्होंने बडी शालीनता के साथ कैच भी कर लिया।
- अगले पाँच सात मिनिट्स तक इधर उधर की बातें होती रहीं फिर उन मोहतरमा ने अपना मोबाईल नम्बर दिया: 9385711878। शिष्टता वश मैंने भी अपना मोबाईल नम्बर: 9385731221 उनके साथ शेयर किया।
- -चूँकि रिलायंस टू रिलायंस फ्री था तो पहले पहले यदा कदा बातें होती रही फिर धीरे धीरे दिन दो या तीन बार।
- चूँकि मेरे office के सामने मोहन सिंह पैलेस में इंडियन काफी हाऊस था और देल्ही सरकार का भी एक काफी होम ऑफीस के पास ही खुल गया था, तो बातों बातों में उन मोहतरमा ने बताया कि वो चाय नहीं पीती हैं सिर्फ और सिर्फ काफी । सो शिष्टाचार वश मैंने उन्हें काफी पर Invite कर लिया। फिर तो सप्ताह में एक या दो बार शाम को हम बस पकडने से पूर्व काफी हाउस में बैठ जाते। मैं कभी कभी ऑफिस अपनी बाइक से कभी मेट्रो से आ जाता था तो 10:30 के अंदर उन मोहतरमा का फोन आ जाता। अरे आज आप कहाँ रह गये थे? मैं इंतज़ार कर रही थी या अगर आपको बाइक से आना था तो मुझे पिक कर लेते वगैरह वगैरह।
एक बात विशेष जब बंदी बोलना शुरु करती थी तो उसे रोकना मुश्किल होता था। रिश्तों पर, दोस्ती पर, लम्बे लम्बे भाषण देना उसका शगल था। जब एक बार उसने दोस्ती के विषय में पूछा तो मैंने कहा मैं सिर्फ दोस्त की दोस्ती से मतलब रखता हूँ उसकी पारिवारिक या निजी ज़िंदगी में दखल देना बिलकुल भी पसंद नहीं करता। “दोस्ती देने का नाम हैं-पाने की चाह का नहीं” उसने मज़ाक में ही कहा था यार तुम तो साधु संतो जैसे प्रवचन देते हो फिर बोली अपना नाम प्रदीप भट्ट से “स्वामी प्रदीपानंद” कर लो।
उसकी इस बात पर मैं भी मुस्कुराए बिना न रह सका।
- -ऐसे ही मार्च-2004 आ गया। एक दिन अकस्मात उसने कहा शाम को मिलो बहुत ज़रूरी बात करनी है। मैंने कहा मार्च चल रहा है वर्किग डे में तो सम्भव नही है कल शनिवार को मिलते हैं वैसे अगर ज़्यादा ज़रुरी है तो फोन पर बता दो, वो बोली नही Saturday मेरा half होता है कल तीन बजे मैंने कहा ठीक है।
- -मैं 2:45 पर ही काफी होम पहुँच गया। बंदी आई मैंने पूछा कुछ खाना है या सिर्फ काफी। उसने कहा सिर्फ काफी नहीं कुछ खिलाओ भी मैं आज लंच नही लाई थी। मैंने आर्डर दिया वेटर ने कहा सर 15 मिनिट वेट करना पडेग़ा। मैंने कहा कोई बात नही और फिर बातों का सिलसिला चल निकला। दस मिनिट् बाद मैंने टोकते हुए कहा पहले ज़रुरी बात कर लो मोहतरमा, उसने कहा हाँ यार, ऐसा है कि मम्मी ने आपको घर पर Invite किया है। अपने चिरपरिचित अंदाज़ में मैंने पूछा क्यों भाई? उसने घूरते हुए कहा ये तो वो ही बताएगीं। मैंने असमंजस की स्थिति में पूछा क्या निकिता (उसकी बड़ी बहन) की शादी पक्की हो गई। उसने कहा वो तो दो महीने पहिले ही पक्की हो गई। 7 अप्रैल की शादी भी फिक्स हो गई है समझे। अब मुझे थोड़ी सी घबराहट होने लगी थी। (तभी वेटर आर्डर रख कर चला गया) अपने को सयंत करते हुए मैंने काफी की सिप ली और पूछ ही लिया “फिर किस कारण से बुला रही हैं” अब उसके चेहरे पर झुंझलाहट साफ दिखायी दे रही थी। फिर मुस्कुराते हुए कहा मेरी शादी के लिए! अब मैं पूरी स्थिति समझ चुका था। मैंने सैंड्विच और काफी की ओर इशारा करते हुए कहा कुछ खा पी लो फिर बात करते हैं। पता नहीं उसे क्या लगा ह्त्थे से उखड़ते हुए उसने कहा पहले कह डालो फिर खा पी लूँगी। मैंने एक लम्बी उच्छ्वास भरते हुए पर्स निकाला और अपनी बेटी की फोटो दिखाते हुए कहा तुम्हें शायद गलत फहमी हो गई है मैं शादी शुदा हूँ और इस बच्ची का बाप भी। उसने दोनों हाथों में सर पकड़ते हुए मुझे खूब बुरा भला कहा। कुछ लोग हमारी तरफ देखने लग पडे थे कई तो जानते भी थे। मैंने कहा इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है मेरी तरफ से दोस्ती अभी भी औन है। उसने फिर मुझे घूरा और कहा भाड में जाओ तुम और भाड में जाए तुम्हारी दोस्ती।
फिर पैर पटकते हुए वो बिना कुछ खाए पीए काफी होम से बाहर।
- मैं ये सोचकर परेशान ये सैंड्विच (उसका),औऱ डोसा (जो मेरा आर्डर था) दो काफी हे भगवान कैसे खाऊँगा/पीऊँगा। लेकिन दोनों आइटम्स को पेट के हवाले कर मैं भी घऱ क़ी ओर चल दिया।
- इसी बीच 2006 में मैं देल्ही से ट्रांसफर होकर मुम्बई आ गया। 13 अक्टूबर-2007 को देल्ही से मुम्बई की फ्लाइट पकड़ने मैं घर से निकला। प्लान किया कि पहले कनाट प्लेस चलते हैं हनुमान मंदिर की आलू की सब्ज़ी और कचौरी खाई जाए फिर एक ठो काफी फिर वहीं से एअर पोर्ट। कश्मीरी गेट से मेट्रो चेंज करते हुए क्या देखता हूँ वही मोहतरमा एक दो-ढाई साल के बच्चे का हाथ पकड़े मेरे साथ साथ मेट्रो में प्रवेश कर रहीं हैं , नज़रें मिली, उसने एक हल्की सी मुस्कान मेरी ओर उछाल दी मैंने भी शिष्टाचार का पुन: पालन किया और मुस्कुराकर अभिवादन किया। फिर उसने बच्चे की ओर इंगित करते हुए कहा बेटा अंकल को हेलो कहो, बच्चे ने झट से मेरी ओर हाथ बढा दिया मैंने भी गर्म जोशी से हाथ मिलाते हुए कहा “कैसे हो दोस्त, क्या नाम है आपका ? बच्चा बोला शलभ अंकल। मैंने जानबूझ कर दोस्त शब्द पर ज्यादा ज़ोर दिया था। एक उचटती सी नज़र मैंने उन मोहतरमा पर डाली, उसने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा सॉरी, मैंने हँसते हुए कहा कोई बात नही, गलत फहमी के लिए तो आपको माफ किया परंतु उस सैंड्विच, डोसा और दो काफी पीने के लिए मजबूर करने के लिए माफी ..फिर रुककर कहा फिर कभी।
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- -प्रदीप देवीशरण भट्ट- -30:01:2021
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